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पुनर्नवा गदहपूरना Punarnava in Hindi

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पुनर्नवा आयुर्वेद में प्रयोग की जाने वाली बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है। इसे बहुत ही प्राचीन समय से शरीर में सूजन, मूत्र रोगों और पथरी में प्रयोग किया जाता रहा है। इसके प्रयोग का वर्णन चरक और शुश्रुत संहिता में भी मिलता है। आयुर्वेद में मुख्य रूप से दो तरह के पुनर्नवा, रक्त पुनर्नवा और श्वेत पुनर्नवा का वर्णन है। लेकिन कुछ निघंटु इसके तीन प्रकार (लाल, सफ़ेद और नीला) भी बताते है। Read in English Medicinal Uses Of Punarnava Herb

रक्त पुनर्नवा का पौधा कुछ लाल – गुलाबी रंग लिए हुए होता है। इसके पत्ते, डंठल, व पुष्प कुछ लाल-गुलाबी रंग के दिखते है। लेकिन श्वेत पुनर्नवा के पुष्प सफ़ेद होते है।

Punarnava ke upyog
By Dinesh Valke from Thane, India (Boerhavia diffusa) [CC BY-SA 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.0)], via Wikimedia Commons
रक्त पुनर्नवा की पहचान के बारे में किसी प्रकार का संदेह नहीं है। लेकिन श्वेत पुनर्नवा के नाम से दो पौधे, Trianthema portulacastrum तथा Boerhavia verticillata जाने जाते है। सफ़ेद पुनर्नवा को संस्कृत में श्वेतमूल, शोथघ्नी, दीर्घपत्रिका, और वर्षाभू (Trianthema portulacastrum), के नाम से जानते है। यह वर्षा में उत्पन्न होता है और उसके उपरान्त दुर्लभ हो जाता है। वर्षा में ही इसमें पुष्प आते हैं। इसी कारण से इसे वर्षाभू भी कहते हैं। यह मुख्य रूप से ऊँची घास में और सरस भूमि में पाया जाता है। इसके पत्ते गोल, कोमल और मांसल होते हैं। शाखाएं छोटे रोयें युक्त होती हैं। बीज कुछ तिकोने होते हैं।

रक्त पुनर्नवा श्वेत पुनर्नवा से भिन्न है। इसका लैटिन नाम, बोएराविया डिफ्यूजा Boerhavia diffusa है। इसे संस्कृत में रक्तपुष्पा, शिलाटिका, शोथघ्नी क्षुद्रवर्षाभू, वृषकेतु, काठील्ल्क, लाल पुनर्नवा, हिंदी में लाल पुनर्नवा, लाल विषखपरा, लाल गदपुरना, लाल सांठ, साटी, और अंग्रेजी में स्प्रेडिंग हॉगवीड कहते हैं। लाल पुनर्नवा की जड़ से में वर्षा में नए शाख निकलते हैं। भूमि में इसकी जड़ें सुरक्षित होती है जो हर वर्ष बारिश आने पर फिर से नयी हो जाती है। इस कारण यह पुनर्नवा है। यह अपने आप को फिर से नया/नवीन कर लेता है। पुनर्नवा की जड़ें वर्षा के मौसम के बाद भी शुष्क नहीं होती और जीवित रहती हैं। इसके पत्ते और शाखाएं बारिश के दिनों में अधिक देखे जाते है। इसके पत्ते पतले होते हैं और थोड़े लम्बे होते हैं। यह स्वाद में सफ़ेद पुनर्नवा से कम कसैले होते हैं।

पुनर्नवा बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है। यह बढे हुए पित्त और कफ को संतुलित करता है तथा हृदय, यकृत, वृक्क, फेफड़ों और नेत्रों के लिए टॉनिक है। यह वृक्क और मूत्र मार्ग को साफ़ करता है। यकृत से भी यह विषैले पदार्थों को दूर करता है। अपने पसीना लाने, मूत्र बढ़ाने और विरेचक गुण के कारण यह शरीर की गंदगी को दूर कर रोगों को जड़ से दूर करने का काम करता है।

यह मुख्य रूप से शरीर की सूजन को दूर करने, यकृत और वृक्क के रोगों में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख वनस्पति है। इसमें लीवर की रक्षा करने के गुण हैं। डेंगू के बुखार में गिलोय के साथ पुनर्नवा का काढ़ा बनाकर पिलाने से न केवल लीवर का बचाव होता है, इससे टोक्सिन दूर होते हैं अपितु नए रक्त का निर्माण होता है और शरीर में लीवर के सही काम न करने के कारण हो जाने वाले सर्वांग शोथ में लाभ होता है।

पुनर्नवा अपने मूत्रल गुणों के कारण शरीर में पानी के भर जाने, जलोदर, किडनी – ब्लैडर के स्टोंस आदि सभी में लाभ करता है। पुनर्नवा की सब्जी का प्रयोग करने से शोथ दूर होता है, रक्त का निर्माण होता है और स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसका सेवन हृदय, यकृत और वृक्क को ताकत देता है और उनके रोगों को दूर करता है।

पुनर्नवा में पोटैशियम नाइट्रेट होता है जो इसे मूत्रल गुण देता है। अधिक मूत्र जाने के बाद भी शरीर में इसके सेवन से पोटैशियम साल्ट की कमी नहीं होती।

पुनर्नवा पांडुरोग, हिपेटाईटिस, यकृत की खराबी, विषदोष,शूल, शोथ, पथरी, जलोदर, मूत्र अवरोध, मूत्रकृच्छ, हृदय रोग, सूजन, हाथ-पैर में पानी इकठ्ठा हो जाना, अनिद्रा, आदि में अत्यंत प्रभावशाली है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: बोएराविया डिफ्यूजा Boerhavia diffusa
  • कुल (Family): पुनर्नवा कुल
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा, पंचाग (फूल, पत्ते, जड़ पुष्प, तना) मुख्य रूप से जड़ें
  • पौधे का प्रकार: छोटा पौधा
  • वितरण: पूरे भारत में
  • पर्यावास: छोटे-छोटे फैले हुए पौधे खाली जमीन, सड़क किनारे आदि वर्षा में दिखते हैं।

पुनर्नवा के स्थानीय नाम / Synonyms

  • संस्कृत: भौम, कठिल्लक , कृष्णख्या , क्रूर , लोहित , मंडलपत्रिका , नवा , नव्या , नीला , नीलपुनर्नवा , नीलवर्षाभू , नीलिनी , प्रावृषेण्य , पुनर्भव , पुनर्नवा , रक्तकांदा , रक्तपत्रिका , रक्तपुनर्नवा , रक्तपुष्प , रक्तपुष्पिका रक्तवर्षभू, शिलाटिक , शोणपत्र , शोफ्गनी , शोथाग्नि , श्याम, स्वतपुनार्नावा , वैशाखी , वर्षाभाव , वर्षाभू , वर्षाकेतु , विकासवार , विषघ्नी , विषखर्पर
  • असमिया: : Ranga Punarnabha
  • बंगाली: रक्त पुनर्नवा
  • अंग्रेज़ी: Hog weed, Pig weed, Spreading Hog weed
  • गुजराती: Dholisaturdi, Motosatodo
  • हिन्दी: Gadhapurana, Gadapurna, Lalpunarnava, Sant, Thikri, Beshakapore, Lal Punarnava
  • कन्नड़: Komme Gida, Sanadika, Kommeberu, Komma, Teglame, Ganajali
  • कश्मीरी: Vanjula Punarnava
  • मलयालम: Thazhuthama, Thavizhama, Chuvanna Tazhutawa
  • मराठी: Ghetuli, Vasuchimuli, Satodimula, Punarnava, Khaparkhuti
  • उड़िया: Lalapuiruni, Nalipuruni
  • पंजाबी: ltcit, Khattan
  • तमिल: Karichcharanai, Mukaratte, Mukurattai, Mukkaraichchi
  • तेलुगु: Atika mamidi, Atikamamidi, Erra galijeru
  • सिंहली: Pitasudupala, Pitasudu-Sarana

पुनर्नवा का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: कैरयोफियलेडीए Caryophyllidae
  • आर्डर Order: कैरयोफिलेल्स Caryophyllales
  • परिवार Family: नैकटागिनेसिऐइ Nyctaginaceae
  • जीनस Genus: बोरहाविया Boerhavia
  • प्रजाति Species: बोरहाविया डिफ्यूजा Boerhavia diffusa

पुनर्नवा के संघटक Phytochemicals

  • रक्त पुनर्नवा और श्वेत पुनर्नवा दोनों में ही पुनर्नवीन अल्कालॉयड पाया जाता है।
  • पुनर्नवा में पोटैशियम नाइट्रेट, सल्फेट, क्लोराइड तथा तेल भी पाया जाता है।

पुनर्नवा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

पुनर्नवा त्रिदोषहर, लेखन, शोथहर, दीपन, अनुलोमन, रेचक, हृदय, रक्तवर्धक, कासहर, मूत्रजनन स्वेदजनन, ज्वरघ्न, कुष्ठाघ्न, रसायन, और विषघ्न है। यह मूत्रल होने से शोथहर है। स्वाद में यह कड़वा कसैला, मधुर है। यह गुण में रूक्ष है और मधुर विपाक है। विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। मधुर विपाक के सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

  • रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): रुक्ष
  • वीर्य (Potency):शीत (परन्तु कुछ जगहों पर इसे उष्ण वीर्य माना गया है)
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

कर्म:

  • अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे। anti- phlegmatic
  • कफनिःसारक / छेदन: द्रव्य जो श्वासनलिका, फेफड़ों, गले से लगे कफ को बलपूर्वक बाहर निकाल दे। expectorant
  • मूत्रल : द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये। diuretics
  • मूत्रकृच्छघ्ना: द्रव्य जो मूत्रकृच्छ stranguryको दूर करे।
  • पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • श्लेष्महर: द्रव्य जो चिप्चे पदार्थ, कफ को दूर करे।
  • रसायन: द्रव्य जो शरीर की बीमारियों से रक्षा करे और वृद्धवस्था को दूर रखे। toxin
  • विषहर : द्रव्य जोविष के प्रभाव को दूर करे। antidote

आयुर्वेदिक दवाएं जिनमें पुनर्नवा मुख्य घटक है:

  1. पुनर्नवा चूर्ण Punarnava Churna
  2. पुनर्नवादि गुग्गुलु Punarnavadi Guggulu
  3. पुनर्नवारिष्ट , पुनर्नवासव Punarnavarishta, Punarnavasava
  4. पुनर्नवादि तैल Punarnavaadi Taila
  5. पुनर्नवादि मंडूर Punarnava Mandoor / Punarnavadi Mandura
  6. पुनर्नवाष्टक क्वाथ चूर्ण Punarnavashtaka Kvatha Churna
  7. सुकुमार घृत Sukumara Ghrita

पुनर्नवा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Punarnava in Hindi

पुनर्नवा कड़वा, पाक में चरपरा, रूक्ष, हल्का, ग्राही, कफविकार, पित्त विकार और रुधिर विकार को दूर करने वाला है। यह वीर्य में कहीं तो उष्ण और और कहीं पर शीत माना गया है। ऐसा शायद पुनर्नवा के रूप से प्रयोग किये गये पौधे के भेद से है। रक्त पुनर्नवा को जहाँ शीतल माना जाता है वहीँ सफ़ेद पुनर्नवा उष्ण वीर्य है।

पुनर्नवा एक मृदु विरेचक है जो की शरीर से मल को दूर करने में सहायक है। यह पाचक, मूत्रल, काफनिःसारक, वामक है। इसका सेवन श्वास, सूजाक, शोथ, पीलिया, हेपेटाईटिस, कामला, मूत्रकृच्छ, मूत्रघात, प्लीहा-यकृत वृद्धि समेत बहुत से रोगों में लाभप्रद है। नेत्र रोगों में भी पुनर्नवा का प्रयोग अच्छे परिणाम देता है। बाह्य रूप से पुनर्नवा का लेप विष वाले कीटों के दंश का महाऔषध माना गया है। बिच्छू के काटे पर इसको लगाने से लाभ होता है।

1- शोफ Edema, पूरे शरीर में सूजन

  • पुनर्नवा के पत्तों का शाक बना, सेंधा नमक मिला कर रोटी के साथ सेवन करना चाहिए।
  • पुनर्नवा के काढ़े के साथ गुग्गुल का सेवन करें। अथवा
  • पुनर्नवा के काढ़े / जड़ के पेस्ट को सोंठ के साथ मिला कर दूध के साथ एक मास तक लें। अथवा
  • पुनर्नवा को दूध में उबाल कर लें।

2- शोथ, पेट के रोग, प्लीहा वृद्धि, यकृत वृद्धि, एसिडिटी, बुखार

पुनर्नवासव का सेवन करें।

3- किडनी स्टोंस / गुर्दे की पथरी

  • पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा बनाकर एक माह तक पियें। अथवा
  • पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण + संगेयहूद भस्म 250 mg + शहद, मिलाकर दिन में दो बार, सुबह-शाम सेवन करें। अथवा
  • पुनर्नवा को दूध में उबालकर दिन में दो बार सुबह और शाम पियें।

4- पीलिया

पुनर्नवा के पंचाग / रस / जड़ का काढ़ा/ जड़ के चूर्ण का सेवन करें।

5- जलोदर ascites

पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण को शहद के साथ खाएं।

6- दाद

पुनर्नवा के पौधे को पीस बाह्य रूप से लेप किया जाता है।

7- मूत्र की रुकावट urine retention पेशाब रुक जाना

  • पुनर्नवा के पत्तों के रस को दूध मिलाकर सेवन किया जाता है।
  • पुनर्नवा के पंचाग / रस / जड़ का काढ़ा/ जड़ के चूर्ण का सेवन करें।

8- सूजन

पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पियें और बाह्य रूप से प्रभावित स्थान पर लगाएं।

9- आर्थराइटिस, एडिमा, मोटापा, किडनी के रोग, पेशाब के रोग, बढ़ा यूरिक एसिड

पुनार्नावादी गुग्गुल का सेवन करें।

10- खांसी, अस्थमा cough, asthma

पुनर्नवा जड़ का चूर्ण / जड़ का काढ़ा पियें।

11- पित्त की अधिकता से होने वाला बुखार excess heat, fever

पुनर्नवा जड़ का दूध के साथ सेवन करें ।

12- हृदय रोग heart diseases

पुनर्नवा की जड़ और अर्जुन की छाल को दस ग्राम की मात्रा में ले कर काढ़ा बनायें। इसे दिन में दो बार पियें।

13- नींद न आना insomnia

पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा दिन में दो बार पियें।

14- खूनी बवासीर bleeding piles

पुनर्नवा की जड़ को हल्दी के काढ़े के साथ दें।

15- गैस bloating

पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण, हींग और काले नमक के साथ लें।

16- रसायन, टॉनिक

सुबह पुनर्नवा जड़ के चूर्ण अथवा पत्तों के रस का सेवन करें।

17- बिच्छू का डंक

रक्त पुनर्नवा के पत्ते तथा अपामार्ग की टहनियों को पीस कर बिचू के डंक पर मसलें।

नेत्र रोगों में पुनर्नवा का प्रयोग Uses of Punarnava in Eye Diseases

1- नेत्रों की फूली

पुनर्नवा की जड़ को घी में घिस कर नेत्र में लगाएं।

2- नेत्रों में खुजली

पुनर्नवा की जड़ को शहद अथवा दूध में घिस कर अंजन की तरह प्रयोग करें।

3- नेत्रों से पानी गिरना

पुनर्नवा की जड़ को शहद में घिस कर लगायें।

4- रतौंधी

पुनर्नवा की जद को कांजी में घिस कर आँखों में लगायें।

पुनर्नवा की औषधीय मात्रा Medicinal Dose of Punarnava

  1. पुनर्नवा के पौधे का रस 10-20ml की मात्रा में लिया जाता है।
  2. जड़ के काढ़े को लेने की मात्रा 50-100ml है।
  3. जड़ का चूर्ण चौथाई से एक टीस्पून की मात्रा में लेना चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह मूत्रल है।
  2. यह विरेचक है।
  3. अधिक सेवन पर यह वमनकारी emetic है।
  4. इसका सही मात्रा में सेवन करने पर यह शरीर पर किसी भी तरह का दुष्प्रभाव नहीं डालता।

सिंघाड़ा Singhara in Hindi

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सिंघाड़े को संस्कृत में श्रृंगाटक, श्रृंगाहक, जलफल, त्रिकोणफल, जलकंटक, हिंदी में सिंघाड़ा, बंगाली में पानीफल, मराठी में शिंगाड़ा, गुजराती में शिंघोड़ा, पंजाबी में गौनरी, तेलुगु में परिकी गड्डू और इंग्लिश में वाटर केल्ट्रॉप, इंडियन वाटर चेस्टनट खाते हैं। इसका लैटिन में नाम ट्रापा नेटंस, ट्रापा बाई स्पाईनोज़ है।

यह एक जलीय पौधा है। इसके दो प्राकर के पत्ते होते हैं, एक जो पानी के अन्दर डूबे रहते हैं और दूसरे जो सतह पर तैरते रहते हैं। ऊपर वाले तैरते पत्ते गोल, हरे रंग तथा लाल शिरा युक्त होते हैं। पत्रवृंत तीन इंच लम्बे लाल रंग के होते हैं। इसके तने बैंगनी रंग के और रोयें युक्त होते हैं। इसमें पत्तियों के कोने से सफ़ेद रंग के पुष्प आते हैं। बाद में इसमें तिकोन आकार के फल लगते हैं जो की बाद में डाली के मुड़ जाने से पानी में लटकते रहते हैं। फल के छिलके मोटे और हरे होते हैं। पकने पर यह छिलके काले – हरे रंग के हो जाते है। छिलका हटाने पर सफ़ेद रंग की मज्जा होती हैं। जिसे हम सिंघाड़ा कहते हैं।

singhara medicinal uses
By Bergin76 (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
सिंघाड़ा पूरे भारतभर में नदी, तलाब, पोखर आदि के मीठे पानी में उगाया जाता है। इसके फलों को हम विभिन्न तरीके से खाते हैं। इसे हम ताज़े फल की तरह खाते हैं। इन्हें उबाल कर भी खाया जाता है। इससे बनी सब्जी बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। सिंघाड़े के फल को सुखा कर-पीस कर सिंघाड़े का आटा बनाते हैं, जिससे हम हलवा, बर्फी व रोटी बना सकते हैं। सिंघाड़ा व्रतों में खाया जाने वाला एक प्रमुख आहार है। क्योंकि यह एक फल है इसलिए व्रत के दौरान, जिनमे अनाज का सेवन वर्जित होता है, हम इसका हलवा या रोटी बना कर खा सकते है।

सिंघाड़े के फल पौष्टिक भोजन होने के साथ-साथ एक औषधि भी है। इसका आयुर्वेद के पुराने ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है। इसे पुष्टिकारक, बलवर्धक, वाजीकारक फल माना गया है जिसका सेवन शरीर को ताकत देता है और धातुओं की वृद्धि करता है। इसका सेवन शरीर में कमजोरी को दूर करता है। स्त्रियों के लिए तो बहुत ही उत्तम कहा गया है। इसके सेवन से स्त्रियों में आयरन, विटामिन्स, मिनरल्स की कमी दूर होती है, साथ ही गर्भाशय मजबूत होता है। इससे असामान्य स्राव रूकता है तथा स्वस्थ्य संतान होने भी मदद होती है। पुरुषों में भी इसका सेवन वीर्य और शुक्र की वृद्धि करता है।

स्थानीय नाम

  • वैज्ञानिक नाम: Trapa natans
  • संस्कृत: Shringata, Jalaphala, Paaniphal, Trikonaphala
  • बंगाली: Paniphal, Singade, Jalfal
  • अंग्रेज़ी: Water Chestnut
  • गुजराती: Shingoda, Singoda
  • हिन्दी: Singhara, Singhada
  • कन्नड़: Singade, Gara, Simgara, Simgoda
  • मलयालम: Karimpolam, Vankotta, Jalaphalam, Karimpola
  • मराठी: Shingoda
  • उड़िया: Paniphala, Singada
  • पंजाबी: Singhade, Gaunaree
  • तमिल: Singhara
  • तेलुगु: Kubyakam, Singada
  • उर्दू: Singhara

सिंघाड़ा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

स्वाद में सिंघाड़ा मधुर-कषाय, पचने में भारी है और स्वभाव से शीत है। यह मधुर रस हैं जिसका सेवन शरीर में धातुओं की वृद्धि करता है तथा वज़न बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात-पित्त-विष शामक है।

लेकिन मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है। यह मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, प्रमेह, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।

यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

  • रस (taste on tongue): मधुर, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।

मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

कर्म Principle Action

  • शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
  • पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
  • वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
  • श्रमहर: द्रव्य जो थकावट दूर करे।
  • शुक्रकर: द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे।
  • ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
  • स्तन्यजन्य: द्रव्य जो दूध का स्राव बढ़ाये।
  • गर्भस्थापना: जो गर्भ की स्थापना में मदद करे।
  • रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।

सिंघाड़ा खाने के फायदे

सिंघाड़े को कच्चा, उबाल कर अथवा इसके आटे को हम इसके स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। इसे आयुर्वेद में पचने में भारी माना गया है इसलिए पाचन शक्ति के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए। बहुत अधिक मात्रा में सेवन पाचन को धीमा करता है, गैस बनाता है और कब्ज़ करता है। इसलिए जैसी पाचन शक्ति हो उसी के अनुसार आप इसकी दस से लेकर पचास ग्राम तक की मात्रा का सेवन कर सकते हैं।

  1. यह शीतल है और शरीर में अधिक गर्मी को शांत करता है और इस कारण शरीर में गर्मी के कारण होने वाले रोगों जैसे की नाक से खून गिरना, योनि से रक्त स्राव आदि को रोकता है।
  2. यह शरीर में पित्त की अधिकता को दूर करता है और एसिडिटी तथा अन्य पित्त रोगों में लाभ करता है।
  3. इसके सेवन से मेद धातु बढ़ती है और वज़न की वृद्धि होती है। इसलिए जो लोग बहुत पतले हों वे इसका हलवा बना कर सेवन करें।
  4. यह वीर्यवर्धक, शुक्रवर्धक और बलकारक है। इसके आटे की दूध के साथ फंकी लेने अथवा हलवा बनाकर खाने से वीर्य बढ़ता है।
  5. यह महिलाओं के लिए वरदान है। इसके सेवन से स्त्रियों में गर्भाशय को ताकत मिलती है और बच्चे होने के आसार भी बढ़ते है। यह गर्भावस्था में गर्भाशय से होने वाले आसामान्य रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है और गर्भस्थ शिशु को पोषण देता है। जिन स्त्रियों में गर्भाशय की कमजोरी के कारण एबॉर्शन के आसार हों उन्हें इसका नियमत सेवन करना चाहिए। रक्त प्रदर की समस्या होने पर इसके आटे से बनी रोटी का सेवन करें।
  6. यह कब्ज़ करता है और इस कारण लूज़ मोशन होने पर इसके सेवन से लाभ होता है।
  7. यह पचने में भारी है जिस कारण देर तक पेट भरा रहता है।
  8. अतिसार, पित्त विकार हों तो इसका सेवन करके देखें।
  9. यह पौष्टिक और ज्वर नाशक है। इसमें प्रोटीन, फैट, विटामिन बी, सी, कार्बोहायड्रेट, लोहा, कैल्शियम, मग्निसियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, समेत बहुत से एनी फाइटोकेमिकल पाए जाते हैं। सिंघाड़े आटे का हलवा देसी घी में बनाकर खाने से शरीर की कमजोरी दूर होती है। इसमें भैस के दूध की तुलना में करीब बाइस प्रतिशत अधिक मिनरल पाए जाते हैं। सौ ग्राम सिंघाड़े का सेवन करीबी 115 कैलोरी देता है।
  10. गला बैठ जाने, टोंसिल, एनीमिया, अस्थमा, अनियमित पीरियड, रक्त के विकारों, कमजोरी, शरीर में जलन, खून गिरना, पतलापन, कामेच्छा की कमी, प्रमेह आदि में सिंघाड़े के आटे का सेवन बहुत लाभप्रद है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह शरीर में वात और कफ को बढ़ाता है। इसलिए वात और कफ प्रवृति के ओग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. इसके सेवन से गैस की समस्या हो सकती है।
  3. इसके नियमित सेवन से वज़न में वृद्धि होती है।
  4. यह पचने में भारी है। इसलिए पाचन की क्षमता के अनुसार ही इसका सेवन करें।
  5. कब्ज़ में इसका सेवन न करें।
  6. सिंघाड़ा खा कर तुरंत पानी न पियें।

सांडू विमफिक्स शक्तिवर्धक और स्फूर्तिदायक Vimfix Detail and Uses in Hindi

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विमफिक्स, सांडू द्वारा निर्मित एक आयुर्वेदिक दवाई है। यह पुरुषों के लिए है और इसके सेवन से पुरुष प्रजनन अंगों को ताकत मिलती है जिससे शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, धातु गिरना आदि में लाभ होता है।

यह दवा आयुर्वेद में प्रमुखता से प्रयोग किये जाने वाले उत्तम वाजीकरण द्रव्यों, केवांच,अश्वगंधा, शतावरी, गोखरू, केशर, शिलाजीत, विधारा, आदि के योग से बनी है । यह कामोत्तेजक है तथा स्नायु, मांसपेशियों की दुर्बलता, को दूर करने वाली औषधि है। यह धातु वर्धक, वीर्यवर्धक, शक्तिवर्धक तथा बलवर्धक है।

Vimfix is proprietary Ayurvedic medicine from Sandu. This medicine is only for males. It helps in physical weakness, sexual weakness, low libido, decreased stamina etc.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल-मिनरल आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: पुरुषों के लिए
  • मुख्य गुण: पुरुष प्रजनन अंगों को ताकत देना
  • मूल्य Sandu Vimfix 50 Tablets: Approximately Rs. 398.00 /-

सांडू विमफिक्स के घटक Ingredients of Vimfix

हर गोली में है:

  • केवाँच बीज – 145mg
  • तालमखाना – 75mg
  • उटंगन बीज – 100mg
  • शुद्ध कुचला – 5mg
  • शुद्ध काला धतूरा – 5mg
  • गोखरू – 100mg
  • विदारी कंद – भुइकोहल – 150mg
  • सफ़ेद मूसली – 100mg
  • शतावरी – 100mg
  • अश्वगंधा – 150mg
  • नागकेशर – 2mg
  • केशर – 3mg
  • जायफल – 20mg
  • कपूर – 5mg
  • वंग भस्म – 10mg
  • रस सिन्दूर – 30mg
  • शुद्ध शिलाजीत – 20mg

सांडू विमफिक्स के लाभ/फ़ायदे Benefits of Vimfix

  • यह एक सेक्सुअल टॉनिक है।
  • इसमें केवांच, तालमखाना, उटंगन बीज, कुचला, गोखरू, धतूरा विदारीकन्द, मुस्ली, अश्वगंधा, शिलाजीत जैसे द्रव्य हैं जो की पुरुषों के विशेष रूप से उपयोगी माने गए हैं।
  • यह यौन दुर्बलता को दूर करने में सहायक है।
  • यह नसों को ताकत देता है।
  • यह शीघ्रपतन, स्तंभन दोष, अनैच्छिक शुक्रपात, स्वप्नदोष में लाभप्रद है।
  • यह शरीर को शक्ति और स्फूर्ति देती है तथा दुर्बलता को दूर करता है।
  • यह वीर्य / शुक्राणु की मात्रा को बढ़ाती spematogenic है।
  • यह प्रजनन अंगों के सही प्रकार से काम करने में सहयोग करता है।

सांडू विमफिक्स के चिकित्सीय उपयोग Uses of Vimfix

  1. शीघ्रपतन Premature ejaculation
  2. इरेक्टाइल डिसफंक्शन erectile dysfunction
  3. अनैच्छिक शुक्रपात spermatorrhoea
  4. जोश – शक्ति की कमी

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Vimfix

  1. 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  2. इसे दूध के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के बाद लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
  5. इस दवा में कुचला, धतूरा आदि हैं इसलिए इसे निर्धारित मात्रा में लें और डॉक्टर से परामर्श अवश्य कर लें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

गंभारी Gambhari Gmelina arborea in Hindi

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गंभारी को संस्कृत में काश्मरी, काश्मर्य, गंभारी, श्रीपर्णी, भद्रपर्णी, मधुपर्णिका, हीरा, पीतरोहिणी, कृष्णवृन्ता, मधुरसा हिंदी में गम्न्हार, खम्हारी, गम्हार, गम्हारी, उड़िया में कुमार, बंगाली में गाभार, मराठी में सवन तामिल में कुम्पिल, और लैटिन में मेलिना आर्बोरेया कहते हैं। यह पूरे भारतवर्ष में नम पर्णपाती जंगलों, दक्षिण भारत, उत्त्तर-पश्चिम हिमालय प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि में पाया जाता है। यह एक औषधीय वृक्ष है जिसके सभी हिस्से किसी न किसी औषधीय प्रयोजन के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

गंभारी भारत का मूल निवासी है तथा इसका विविरण प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों में भी मिलता है। यह दशमूल की बृहत्पंचमूल में से एक है। अरणी, श्योनाक, पाढ़ की छाल, बेल और गंभारी को ‘बृहत्पंचमूल’ कहते हैं एवं दवा की तरह इनकी जड़ अथवा छाल का प्रयोग करते हैं । दशमूल का एक घटक होने से, गंभारी आयुर्वेद की अनेकों दवाओं में डाला जाता है। इसका मुख्य गुण शरीर में वात-पित्त और कफ का संतुलन करना है। यह अधिक प्यास को दूर करने वाला, रक्तपित्तशामक, बल्य, रसायन और विषघ्न है। चरक संहिता में इसके फल को विरेचन, शरीर में जलन, पित्त रोगों में प्रयोग करने का वर्णन है। शुश्रुत संहिता में गंभारी को सारिवादि गण में सम्मिलित किया गया है।

gambhari medicinal uses
By Jayesh Patil from Mumbai, India (Sivan Uploaded by uleli) [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons
गंभारी का वृक्ष चालीस से साठ फुट का हो सकता है। इसकी टहनियां थोड़ी सफ़ेद सी और रोयें युक्त होती हैं। इसकी पत्तियां चार से नौ इंच लम्बी और तीन से आठ इंच तक चौड़ी हो सकती हैं। रूप में यह लट्वाका, हृदयाकार होती हैं। एक संधि पर पायी जाने वाली पत्तियां कुछ बड़ी और छोटी होती हैं। गंभारी के पुष्प पीले रंग के होते हैं। इसका फल अंडाकार और हरा होता है। पक जाने पर यह पीला-हर दीखता है। स्वाद में यह मीठा-कसैला होता है। इसके बीज लम्बे और अर्धचंद्राकार होते हैं। इसमें वसंत ऋतु पुष्प और गर्मी में फल आते हैं। गंभारी की जड़ें बाहर से हल्के रंग की और अन्दर से पीला रंग लिए होता है। स्वाद में कड़वी और लुआबी होती है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: मेलिना आर्बोरेया Gmelina arborea
  • कुल (Family): वर्बीनेसिएई Verbenaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, छाल, पुष्प, पत्ते, और फल
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष
  • वितरण: पूरे भारतवर्ष में, श्री लंका, म्यांमार, फिलिपिन्स में।
  • पर्यावास: नम अथवा शुष्क पर्णपाती वन तथा सड़कों के किनारे, बगीचों में

गंभारी के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Kashmari, Kashmari, Kashmarya, Kasmari, Bhadraparni, Gambhari, Katphalah
  2. असमिया: Gamari, Gomari
  3. बंगाली: Gambhar, Gamar, Gumar, gumbar
  4. अंग्रेज़ी: Candhar Tree, Candahar tree, Coomb tree, Cashmeri teak, Coomb Teak, Gamari, White Teak
  5. गुजराती: Shivan
  6. हिन्दी: Gamari, गाम्बरी, Gambhar, Gamhar, Gumbhar, कंबर, Kambhar, Khambhari, Khammara कुमार, Kumbhar, Sewan, Shewan, Shiwan
  7. कन्नड़: Shivanigida, Shivani, Kashmiri, Shivanimara, Shivane, Kumbala mara, Shewney, kuli
  8. कश्मीरी: Kashmari
  9. मलयालम: Kumizhu, Kumpil, Kumalu, Kumbil, Kumizhu
  10. मराठी: Shivan, Shewan
  11. उड़िया: Gambhari
  12. पंजाबी: Gumhar, कुम्हार
  13. तमिल: Kumishan, Kumizhan, Gumadi, cummi
  14. तेलुगु: Peggummudu, Peggummadi, Gumudu, Pedda-gumudu, tagumuda
  15. नेपाल: गाम्बरी
  16. लेपचा: Numbor
  17. गारो: Bolkobak

गंभारी का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
  • आर्डर Order: लैमिऐल्स Lamiales
  • परिवार Family: वर्बीनेसिएई Verbenaceae
  • जीनस Genus: मेलिना Gmelina
  • प्रजाति Species: मेलिना आर्बोरेया Gmelina arborea Roxb।

गंभारी के संघटक Phytochemicals

जड़ में पीले रंग का तेल, अल्कलोइड, बेन्जोइक एसिड, ब्यूटरिक एसिड, टारटेरीक एसिड, राल, और कषाय द्रव्य पाए जाते हैं।

गंभारी के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

गंभारी आयुर्वेद में प्रयोग की जाने वाली एक बहुत ही महत्वपूर्ण वनस्पति है। आयुर्वेद में दवाओं को बनाने हेतु मुख्य रूप से इसके तने की छाल तथा जड़ का प्रयोग किया जाता है। यह उष्ण वीर्य अर्थात तासीर में गर्म है। इसके सेवन से भ्रम, शोष, तृषा, शूल, आम दोष, बवासीर, विष, जलन, ज्वर आदि नष्ट होते हैं। रस में यह तिक्त और कषाय है।

तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, (नीम, कुटकी)। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है। यह कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। तिक्त रस का अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।

यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है।

  • रस (taste on tongue): तिक्त, कषाय (जड़) मधुर, कटु, तिक्त (तने की छाल)
  • गुण (Pharmacological Action):गुरु
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  • पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  • भेदन: द्रव्य जो बंधे या बिना बंधे मल का भेदन कर मलद्वार से निकाल दे।
  • मेद्य: बुद्धि के लिए हितकारी।
  • त्रिदोषजित: वात-पित्त और कफ को संतुलित करने वाला।
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • विषहर : द्रव्य जो विष के प्रभाव को दूर करे।
  • ज्वरहर: द्रव्य ज्वर को दूर करे।

गंभारी के फल का भी लोगों द्वारा भोजन या दवा की दवा की तरह सेवन किया जाता है। फल को वीर्यवर्धक, बलदायक, भारी, केशों के लिए हितकारी, रसायन, पाक में मधुर, शीतल, स्निग्ध, कसैला, खट्टा, आँतों को साफ़ करने वाला और वात-पित्त, अधिक प्यास, रक्तविकार। क्षय, मूत्र, कब्ज़/विबंध, जलन, वात, रक्तपित्त, क्षतक्षय, को शांत करने वाला माना गया है।

गंभारी की औषधीय मात्रा

  • फलों का रस-12-24ml
  • जड़ का काढ़ा: 25-50ml
  • पुष्प चूर्ण: 3-12gram

गंभारी के औषधीय प्रयोग

  1. गंभारी स्निग्ध, पाचक, विरेचक, बल्य श्रमहर होता है। इसकी जड़ की छाल बुखार,अजीर्ण, गंभीर शोथ में काढ़े के रूप में ली जानी चाहिए।
  2. माताओं में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए इसे मुलेठी और दूध के साथ लेने चाहिए।
  3. पत्तों का रस सूजाक में लेने से लाभ होता है।
  4. इसके फलों का सेवन बुखार, अधिक प्यास, नाक से खून गिरना, रक्त पित्त, और शरीर में जलन में लाभप्रद है।
  5. यह विरेचक व शोथहर है।

पाटला –पाढर Patala Stereospermum suaveolens in Hindi

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पाढ़र, पाढ़ल या पाटला के आयुर्वेद में कामदूती, कुम्भिका, कालवृन्तिका, स्थल्या, अमोघ, मधोर्दूती, ताम्रपुष्प, अम्बुवासिनी आदि नाम पर्याय हैं। यह एक औषधीय वनस्पति है तथा दशमूल की बृहत्पंचमूल में से एक है। पाढ़ल की छाल, अरणी, श्योनाक, बेल और गंभारी को ‘बृहत्पंचमूल’ कहते हैं एवं दवा की तरह इनकी जड़ अथवा छाल का प्रयोग करते हैं।

दशमूल का एक घटक होने से, पाढ़ आयुर्वेद की अनेकों दवाओं में डाला जाता है। इसका मुख्य गुण शरीर में वात और कफ को संतुलित करना है। पाढ़ल को चरक संहिता में शोथहर गण में और शुश्रुत संहिता में अरग्वधादि , बृहत् पंचमूल, अधोभागहर वर्ग में रखा गया है।

patala
https://www.flickr.com/photos/dinesh_valke/2499750454

पाढ़र की जड़ को दशमूल को बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह जड़ें बेलनाकार, करीब छः से नौ सेंटीमीटर लम्बी और 1-1.5 सेमी मोटी होती है। बाहर से यह भूरे-सफ़ेद रंग की, रूखी, दरार युक्त, तथा अन्दर से गहरी भूरे रंग की होती हैं। यह रेशे युक्त होती हैं तथा स्वाद में कड़वी होती हैं।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: स्टीरियोस्पेर्मम सुआवेओलेंस Stereospermum suaveolens
  • कुल (Family): बाईग्नोनीऐसेआई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, जड़ की छाल, पुष्प, पत्ते और क्षार
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष
  • वितरण: भारत में वेस्टर्न घाट-दक्षिण, दक्षिण-मध्य महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में, श्री लंका, म्यांमार
  • पर्यावास: नम पर्णपाती वनों में

पाढ़ल के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: : Amogha, Madhuduti, Krishnvrinta, Tamrapushpa
  2. असमिया: Parul
  3. बंगाली: Parul
  4. अंग्रेज़ी: Trumpet flower tree, Yellow snake tree
  5. गुजराती: Podal
  6. हिन्दी: padal, Padhal, Paral, Paroli
  7. कन्नड़: Padramora, Kalaadri, Paadari
  8. मलयालम: Karingazha, Paathiri, Puuppaathiri
  9. मराठी: padal
  10. उड़िया: बोरो, Patulee
  11. पंजाबी: padal
  12. तमिल: Ampu, Ampuvakini, Patalam, Patiri, Punkali
  13. तेलुगु: Kaligottu, Kokkesa, Podira, Padiri, Ambuvasini, Patala

पाढ़ल का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • आर्डर Order: स्क्रोफुलेरिएल्स Scrophulariales
  • परिवार Family: बाईग्नोनीऐसेआई Bignoniaceae
  • जीनस Genus: स्टीरियोस्पर्मम Stereospermum
  • प्रजाति Species: स्टीरियोस्पर्मम सुआवेओलेंस Stereospermum suaveolens
  • स्टेरियोस्पर्मम चेलोनॉइड्स Stereospermum chelonoides को सफ़ेद पाढ़ल (सफ़ेद रंग के फूले के कारण) तथा स्टीरियोस्पर्मम सुआवेओलेंस Stereospermum suaveolens को ताम्रपाढ़ल (लाल-ताम्बे के रंग के फूलों के कारण) माना गया है।
  • केरल में स्टेरियोस्पर्मम टेट्रागोनम stereospermum tetragonum synonym स्टेरियोस्पर्मम पेर्सोनेटम stereospermum personatum को पाढ़ल की तरह प्रयोग किया जा है।

पाढ़ल के संघटक Phytochemicals

कड़वे पदार्थ, स्टेरोल्स ग्लाइकोसाइड, ग्लाइकोअल्कालॉयड

पाढ़ल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

पाटला मुख्य रूप से कफ और वात को नष्ट करने वाली औषध है। यह स्वाद में तिक्त, कषाय है। यह ग्राही है और इसके सेवन से शरीर का जल सूखता है जिससे कब्ज़ हो जाती है। यह दीपनीय है और जठराग्नि को तेज करता है।

  • रस (taste on tongue):तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): अनुउष्ण (बहुत अधिक गर्म नहीं)
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म

त्रिदोषहर: वात-पित्त-कफ का संतुलन करना

रुच्य: भोजन में रूचि बढ़ाने वाला

आयुर्वेदिक दवाएं

  1. दशमूल की विभिन्न दवाएं जैसे दशमूल क्वाथ, दशमूलारिष्ट
  2. अमृतारिष्ट
  3. भारंगी गुड़
  4. इन्दुकांत घी

पाढ़ल को आयुर्वेद में मुख्य रूप से निम्न रोगों में प्रयोग किया जाता है:

  1. श्वास/अस्थमा, शोथ/सूजन
  2. अर्श/बवासीर, छर्दी/उलटी
  3. हिक्का/हिचकी, तृष्णा / अधिक प्यास, अम्लपित्त
  4. रक्त विकार, मूत्र विकार
  5. विस्फोट
  6. मोटापा

पाढ़ल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Patala / Stereospermum suaveolens in Hindi

  1. पाढ़ल के पत्ते, जड़, पुष्प, फल और बीज सभी का दवाई की तरह प्रयोग किया जाता रहा है।
  2. पत्तों को कान के दर्द, रूमेटिक दर्द, मलेरिया बुखार, पुराने अजीर्ण, और बुखार में देते हैं।
  3. पुष्पों को शरीर में जलन, पित्त-वात के रोगों, हृदय के रोगों, हिचकी, और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए दिया जाता है।
  4. फूलों को कुचलकर, शहद मिलाकर लेने से हिचकी रुकती है। इसके फूलों से बने गुलकंद को खाने से स्वास्थ्य अच्छा होता है।
  5. पत्तों और पुष्पों से बना काढ़ा ज्वर, शरीर में विष, कब्ज़, आदि में दिया जाता है।
  6. फलों का सेवन पित्त और वात रोगों में लाभप्रद है। बीजों को बाहरी रूप से सिर के दर्द /माइग्रेन में प्रयोग किया जाता है।
  7. जड़ों में ज्वरनाशक, दर्द निवारक, कब्ज़ करने के, मूत्रल, कफ निस्सारक expetorant, कार्डियो टॉनिक, कामोद्दीपक,सूजन दूर करने के, एंटीबैक्टीरियल, उल्टी रोकने तथा अस्थमा-कफ निवारक गुण पाए जाते हैं। जड़ों को अस्थमा, सूजन, बवासीर, उल्टी, इक्का, एसिडिटी, मूत्र विकार, त्वचा पर फोड़े आदि में दिया जाता है।
  8. पाढ़ल के तने की छाल को त्रिदोषज रोगों/ सन्निपात, हिक्का, उल्टी, भोजन करने में रूचि न होना, अस्थमा, गैस, जलने के घाव, पेशाब के रुक जाने और सूजन में प्रयोग करते हैं।
  9. पाढ़ल के पंचाग से बने क्षार को सात बार छान कर पेशाब रोगों, मूत्राघात, और प्रमेह में दिया जाता है।
  10. सरसों के तेल में पाढ़ल के काढ़े और पेस्ट को पका जो तेल बनता है उसे छालों और जलने के घाव पर लगाते हैं।
  11. मोटापे में पाढ़ल के काढ़े में चित्रक, सौंफ, और हींग मिलाकर देते हैं।

पाढ़ल की औषधीय मात्रा

  1. पाढ़ल की जड़ के चूर्ण/पाउडर को 5-10gram की मात्रा में लिया जा सकता है।
  2. पाटला की जड़ की छाल से बने काढ़े को 50-100ml की मात्रा में सेवन करना चाहिए।
  3. इसके पंचांग से बने क्षार को लेने की मात्रा 1-5 gram तक की है।
  4. पेड़ की छाल को 3-6gram की मात्रा में में ले सकते हैं।

Brooke Bond Red Label Natural Care Tea in Hindi

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रेड लेबल नेचुरल केयर चाय (ब्रूक बांड, हिंदुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड) द्वारा निर्मित चाय है जिसमें चाय पत्ती के अतिरिक्त पांच आयुर्वेदिक हर्ब्स डाली गई हैं, तुलसी, अश्वगंधा, मुलेठी, सोंठ और इलाइची। यह एक चाय की पत्ती है और चाय की ही तरह दूध और चीनी डाल कर उबाल कर बनाई जाती है।

  • ब्रांड: रेड लेबल
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है.
  • मूल्य MRP: Rs. 233.00 per 500 grams; Rs 460.00 per 1 kg

Red label natural tea

ब्रूक बांड रेड लेबल नेचुरल केयर के घटक Ingredients of Brooke Bond Red Label Natural Care Tea 500 grams

आधा किलो चाय में है :

  1. इलाइची 1.5 % w/w – 7.5 grams
  2. सोंठ 1.5 % w/w – 7.5 grams
  3. मुलेठी 0.5 % w/w – 2.5 grams
  4. अश्वगंधा 0.5 % w/w – 2.5 grams
  5. तुलसी 0.5 % w/w – 2.5 grams
  6. तथा डाले गए फ्लेवर्स

ब्रूक बांड रेड लेबल नेचुरल केयर का आधा किलो का पैकेट 233.00 रुपये और एक किलो का पैकेट 460.00 रुपए में उपलब्ध है। इसे बनाने की कोई अलग विधि नहीं है। इसे किसी भी अन्य चाय की ही तरह बनाया जाता है।

आप घर पर भी हर्बल चाय बना सकते है और बहुत से लोग बनाते भी हैं। हर्बल चाय बनाने के लिए, पानी को जब उबालते हैं तो उसी में ताज़ा अदरक ग्रेट करके या सूखा अदरक पाउडर जिसे सोंठ कहते हैं डाल दें। इसमें तुलसी के दस पत्ते, तेज पत्ता, काली मिर्च के कुछ दाने, दालचीनी, छोटी इलाइची आदि सभी कूट कर डाल दें और दस मिनट पका लें। इसमें फिर चाय की पत्तियां डाल दें और उबालें। अब दूध और चीनी डाल लें और छान कर पियें। इस प्रकार आप घर पर ही कई मसाले मिला कर हर्बल चाय का मसाला बना कर प्रयोग कर सकते हैं। कुछ चीजों को आप ताज़ा और कुछ को पाउडर के रूप में चाय बनाते समय उबलते पानी में डाल सकते हैं।

घर पर चाय का मसाला बनाते समय निम्न हर्ब्स के सूखे पाउडर को मिला कर रख लें और चाय बनाते समय प्रयोग करें।

तुलसी, के प्रयोग से इम्युनिटी बढती है। यह एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है और टोक्सिंस को दूर करती हैं।

अदरक एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। इसका प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है। अदरक पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

काली मिर्च (ब्लैक पेपर, गोल मिर्च) पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर काम करती है। यह गैस को दूर करती है, मेटाबोलिज्म बढ़ाती है, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक है। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

मुलेठी को आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसे खांसी, गले में खराश, सांस की समस्याओं, पेट दर्द औरअम्लपित्त आदि में उपयोग किया जाता है। यह खांसी, अल्सर, के उपचार में और बाहरी रूप से भी त्वचा और बालों के लिए उपयोग किया जाता है।

मुलेठी का सेवन उच्च रक्तचाप, द्रव प्रतिधारण, मधुमेह और कुछ अन्य स्थितियों में नहीं किया जाना चाहिए।

दालचीनी या दारुचिनी एक पेड़ की छाल है। यह वात और कफ को कम करती है, लेकिन पित्त को बढ़ाती है। यह मुख्य रूप से पाचन, श्वसन और मूत्र प्रणाली पर काम करती है। इसमें दर्द-निवारक / एनाल्जेसिक, जीवाणुरोधी, ऐंटिफंगल, एंटीसेप्टिक, खुशबूदार, कसैले, वातहर, स्वेदजनक, पाचन, मूत्रवर्धक, उत्तेजक और भूख बढ़ानेवाले गुण है। दालचीनी पाचन को बढ़ावा देती है और सांस की बीमारियों के इलाज में भी प्रभावी है।

छोटी इलायची त्रिदोषहर, पाचक, वातहर, पोषक, विरेचक और कफ को ढीला करने के गुणों से युक्त हैं। यह मूत्रवर्धक है और मूत्र विकारों में राहत देती है। इलाइची के बीज अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गले के विकार, बवासीर, गैस, उल्टी, पाचन विकार और खाँसी में उपयोगी होते हैं।

तेजपत्ता, एक पेड़ से प्राप्त सूखे पत्ते है। यह तासीर में गर्म होता है। यह कफ और वातहर है। तेजपत्ते का सेवन पित्तवर्धक है। यह बवासीर के इलाज और स्वाद में सुधार करता है। तेजपत्ता कड़वा, मीठा, सुगंधित, कृमिनाशक, मूत्रवर्धक, वातहर और सूजन दूर करने वाला है। यह रक्त को साफ़ करता है और, भूख एवं पाचन को सुधारता है। यह भूख न लगना, मुँह का सूखापन, खांसी, सर्दी, मतली, उल्टी, गैस और अपच के उपचार के लिए आयुर्वेद में उपयोग किया जाता है।

दिव्य पेय Divya Peya Detail and Uses in Hindi

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दिव्य पेय, पतंजलि दिव्य फार्मेसी द्वारा निर्मित हर्बल चाय है जिसमें बहुत सी जड़ी-बूटियाँ जैसे की इलाइची, चित्रक, सोम-लता, ब्राह्मी,काली मिर्च, चंदन, गुलाब के फूल, सौंठ, दालचीनी, पुनर्नवा, तेज पत्ता, लौंग, तुलसी, अर्जुन, अश्वगंधा, सौंफ, वासा, गिलोय आदि हैं। यह हर्बल चाय, काली चाय के एक विकल्प के रूप में रोजाना ली जा सकती है। यह एक हर्बल काढ़ा कहा जा सकता है जिसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण है। इसके सेवन से शरीर में उर्जा, इम्युनिटी, की वृद्धि होती है, कफ-कोल्ड से राहत मिलती है, पाचन सम्बन्धी दिक्कतें दूर होती हैं और मानसिक विकारों में लाभ होता है।

Patanjali Divya Peya is Ayurvedic proprietary tea from Divya Pharmacy. It contains many well-known herbs and spices and can be used as alternative for regular tea. Here is given more about this tea such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

dibya peya

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • प्रकार: Herbal tea
  • मूल्य MRP: Rs. 50.00 for 100 grams

दिव्य पेय के घटक Ingredients of Divya Peya

100 gram coarse powder contains:

  1. छोटी इलाइची 3 gram
  2. बड़ी इलाइची 4 gram
  3. दालचीनी 1 gram
  4. लौंग 4 gram
  5. सफ़ेद चन्दन 1 gram
  6. रक्त चन्दन 3 gram
  7. जावित्री 4 gram
  8. जायफल 4 gram
  9. काली मिर्च 1 gram
  10. गुलाब फूल 3 gram
  11. कमल फूल 3 gram
  12. अश्वगंधा 3 gram
  13. सोमलता 3 gram
  14. गजवान 2 gram
  15. सौंफ 2 gram
  16. चित्रक 3 gram
  17. वासा 3 gram
  18. बनफ्शा 3 gram
  19. चव्य 3 gram
  20. छोटी पिप्पली 2 gram
  21. सोंठ 3 gram
  22. गिलोय 3 gram
  23. मुलेठी 3 gram
  24. तेजपत्ता 2 gram
  25. गोरखपान 2 gram
  26. आज्ञाघास 4 gram
  27. भूमिआमला 4 gram
  28. पुनर्नवा 4 gram
  29. बला 2 gram
  30. सर्पुन्खा 2 gram
  31. ब्राह्मी 4 gram
  32. शंखपुष्पि 4 gram
  33. वनतुलसी 5 gram
  34. अर्जुन 3 gram

अश्वगंधा का सेवन तंत्रिका संबंधी विकार, आंतों में संक्रमण, त्वचा रोगों, तनाव, अवसाद आदि में लाभप्रद है। यह उत्तम रसायन या टॉनिक है।

तुलसी के प्रयोग से इम्युनिटी बढती है। यह एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है और टोक्सिंस को दूर करती हैं।

अदरक एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। इसका प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है। अदरक पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

काली मिर्च (ब्लैक पेपर, गोल मिर्च) पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर काम करती है। यह गैस को दूर करती है, मेटाबोलिज्म बढ़ाती है, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक है। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

मुलेठी को आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसे खांसी, गले में खराश, सांस की समस्याओं, पेट दर्द औरअम्लपित्त आदि में उपयोग किया जाता है। यह खांसी, अल्सर, के उपचार में और बाहरी रूप से भी त्वचा और बालों के लिए उपयोग किया जाता है।

मुलेठी का सेवन उच्च रक्तचाप, द्रव प्रतिधारण, मधुमेह और कुछ अन्य स्थितियों में नहीं किया जाना चाहिए।

दालचीनी या दारुचिनी एक पेड़ की छाल है। यह वात और कफ को कम करती है, लेकिन पित्त को बढ़ाती है। यह मुख्य रूप से पाचन, श्वसन और मूत्र प्रणाली पर काम करती है। इसमें दर्द-निवारक / एनाल्जेसिक, जीवाणुरोधी, ऐंटिफंगल, एंटीसेप्टिक, खुशबूदार, कसैले, वातहर, स्वेदजनक, पाचन, मूत्रवर्धक, उत्तेजक और भूख बढ़ानेवाले गुण है। दालचीनी पाचन को बढ़ावा देती है और सांस की बीमारियों के इलाज में भी प्रभावी है।

छोटी इलायची त्रिदोषहर, पाचक, वातहर, पोषक, विरेचक और कफ को ढीला करने के गुणों से युक्त हैं। यह मूत्रवर्धक है और मूत्र विकारों में राहत देती है। इलाइची के बीज अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गले के विकार, बवासीर, गैस, उल्टी, पाचन विकार और खाँसी में उपयोगी होते हैं।

तेजपत्ता, एक पेड़ से प्राप्त सूखे पत्ते है। यह तासीर में गर्म होता है। यह कफ और वातहर है। तेजपत्ते का सेवन पित्तवर्धक है। यह बवासीर के इलाज और स्वाद में सुधार करता है। तेजपत्ता कड़वा, मीठा, सुगंधित, कृमिनाशक, मूत्रवर्धक, वातहर और सूजन दूर करने वाला है। यह रक्त को साफ़ करता है और, भूख एवं पाचन को सुधारता है। यह भूख न लगना, मुँह का सूखापन, खांसी, सर्दी, मतली, उल्टी, गैस और अपच के उपचार के लिए आयुर्वेद में उपयोग किया जाता है।

पिप्पली उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।

अर्जुन के पेड़ की छाल सुप्रसिद्ध हार्ट टॉनिक है। इसके सेवन से अनियमित हृदय की धड़कन नियमित होती है और रक्त चाप नियंत्रित होती है। यह ज्वर, अस्थमा, समेत बहुत से रोगों में लाभप्रद है।

ब्राह्मी और शंखपुष्पि मस्तिष्क के लिए उत्तम टॉनिक है। इसके सेवन से याददाश्त बढ़ती है और दिमाग तेज होता है। यह मिर्गी, बुढ़ापा, बालों के झड़ने, तंत्रिका संबंधी विकार, अवसाद, मानसिक कमजोरी में बहुत उपयोगी है।

दिव्य पेय के लाभ/फ़ायदे Benefits of Divya Peya

  1. इसमें कैफीन नहीं है।
  2. यह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।
  3. इसमें एंटीऑक्सीडेंट हैं।
  4. यह इम्युनिटी को बढ़ाने वाली चाय है।
  5. इसमें पिप्पली, काली मिर्च, सोंठ आदि हैं जो पाचन और सांस रोगों में लाभकारी है।
  6. इसमें अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि द्रव्य है जो की अवसाद, स्ट्रेस, मानसिक विकारों में लिए प्रयोग किये जाते है।
  7. इसके सेवन से शरीर के अंगों को ताकत मिलती है।
  8. यह पाचन में सहयोगी है।
  9. यह कफ रोगों को दूर करने वाली चाय है।
  10. इसे बनाना बहुत ही सरल है और पीने से इसमें डाली गई जड़ी-बूटियों के लाभ मिलते हैं।

दिव्य पेय के चिकित्सीय उपयोग Uses of Divya Peya

  1. ठंड/कफ से संबंधित रोग cold-cough related diseases
  2. पेट से संबंधित रोग stomach related diseases
  3. पाचन की समस्या Digestive weakness
  4. मानसिक समस्याएं psycho-related diseases
  5. दैनिक पीने के लिए चाय के वकल्प के रूप में

बनाने की विधि How to prepare Divya Peya

एक कप पानी में एक टीस्पून दिव्य पेय को डालें। इसे धीमी आंच पर पकाएं। इसे पांच-दस मिनट या ज्यादा देर तक पकाएं। इसमें आवश्यकता अनुसार दूध और चीनी मिलाएं। छाने और पियें।

ऊंझा कफेश्वरी Kafeshwari Herbal Cough Syrup Detail and Uses in Hindi

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कफेश्वरी हर्बल कफ सिरप, उंझा की प्रोपरायटरी आयुर्वेदिक दवाई है। यह खांसी, सर्दी, तथा कफ के कारण होने वाली शिकायतों में प्रयोग की जाती है। इसके सेवन से सूखी खांसी, काली खांसी, दमा, एलर्जी ब्रोंकाइटिस, संक्रामक ब्रोंकाइटिस, ग्रसनीशोथ निमोनिया, तीव्र ब्रोंकाइटिस, श्वास लेने में कठिनाई, श्वासनलिका में कफ, आदि में लाभ होता है। यह टीबी की चिकित्सा में भी एडजूवेंट / सहायक दवा की तरह ली जा सकती है। इसे दिन में आवश्यकता अनुसार दो या तीन बार लिया जा सकता है। इसे बच्चे, बड़े सभी ले सकते हैं।

ऊंझा कफेश्वरी कफ निस्सारक (बलगम निकालने के) expectorant गुण हैं जिस कारण कफ को दूर करना आसान हो जाता है। इस दवाई का सेवन चिपचिपे बलगम को ढीला करता है और खांसी में राहत देता है।

kafeswari syrup

Unjha Kafeshwari Herbal Cough Syrup is proprietary Ayurvedic herbal medicine containing Ardushi, Jethimadh, Ajmo, Unnab, Khubkhala, Somlata, Talispatra, Gaujava, Kakdasing, Kulinjan, Pipli, Khatmijad, Bharangi, Tulsi, Black Hansaraj, Navsar, Kapoor, Jangali Pyaj, Arand mool and Sugar. It effectively controls dry cough and smoothens the respiratory mucosa. It gives relief in excessive cough, cold and related disorders.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल प्रोपरायटरी आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: कफ समस्याएं
  • मुख्य गुण: कफ कम करना
  • Packing: 100, 200, 450 ml

कफेश्वरी के घटक Ingredients of Kafeshwari Cough Syrup

Each 10 ml contain Aqueous extract derived from

  1. अरुसा Ardushi (Adhatoda Vasica) 500 mg
  2. कंटकारी Kantakari (Solanum Xanthocarpum) 500 mg
  3. मुलेठी Jethimadh (Glycyrrhiza Glabra) 250 mg
  4. अजमोद Ajmo (Trachyspermum Ammi) 125 mg
  5. उन्नाब Unnab (Zizyphus Vulgaris) 25 mg
  6. खूबकला Khubkhala (Sisymbrium irio) 25 mg
  7. सोमलता Somlata (Sarcostemma Brevistigma) 25 mg
  8. तालीसपत्र Talispatra (Taxus Baccata) 25 mg
  9. काकड़ासिंगी Kakdasing (Pistacia Chinensis) 25 mg
  10. कुलीनजन Kulinjan (Alpinia Galanga) 25 mg
  11. पिप्पली Pipli (Piper Longum) 25 mg
  12. खतमीजड़ Khatmijad (Althaea Officinalis) 25 mg
  13. भारंगी Bharangi (Clearodendrum Serratum) 25 mg
  14. तुलसी Tulsi (Ocimum Sanctum) 25 mg
  15. ब्लैक हंसराज Black Hansaraj (Adiantum Lunulatum) 25 mg
  16. मेंथा Menthol (Mentha Piperata) 3 mg
  17. कपूर Kapoor (Cinnamomum Camphora) 5 mg
  18. जंगली प्याज Jangali Pyaj (Urginoea Indica) 25 mg
  19. अरंडी जड़ Arand mool (Ricinus Communis) 25 mg
  20. चीनी Sugar (Saccharum Officinarum) QS
  21. Carmoisine Colour QS
  22. Excipients QS

कफेश्वरी के लाभ/फ़ायदे Benefits of Kafeshwari Cough Syrup

  1. कफेश्वरी के सेवन से कफ से राहत मिलती है।
  2. इसमें कासरोधी, कफनिस्सारक, और ब्रोंकोडाईलेटरी mucolytic, antitussive, expectorant and broncho dilatory गुण हैं।
  3. यह जलन कम करती है।
  4. यह कफ को पतला करने वाली दवाई है।
  5. यह सभी आयु समूहों के लिए सुरक्षित है।

कफेश्वरी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Kafeshwari Cough Syrup

  1. सूखी खाँसी Dry Cough
  2. बलगम वाली खांसी Productive Cough
  3. काली खांसी Whooping Cough
  4. धूम्रपान करने वालों खांसी Smokers cough
  5. टीबी की खाँसी Cough of TB
  6. सर्दी-खांसी-जुखाम

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kafeshwari Cough Syrup

  1. बच्चों को यह दवा 5 ml से 10 ml की मात्रा में दिन में २-३ बार दें।
  2. वयस्क यह दवा 10 से 15 ml की की मात्रा में दिन में २-३ ले सकते हैं।
  3. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

भृंगराजासव Bhringrajasava Detail and Uses in Hindi

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भृंगराजासव एक आयुर्वेदिक आसव है जिसे की शरीरिक कमजोरी, आँखों के रोगों, बालों के असमय सफ़ेद होने, प्रमेह तथा कफ रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह लीवर टॉनिक के रूप में भी प्रयोग की जाने वाली औषध है।

भृंगराजासव का प्रमुख घटक भृंगराज है जिसे भांगरा, भंगरिया, भंगरा, केशराज, भृंगराज, भृंगरज, मार्कव, भृंग, अंगारक, केशरंजन आदि नामों से भी जानते हैं। भृंगराज आयुर्वेद की एक रसायन औषधि है जिसके सेवन से आँखों में चमक आती है, शारीरिक ताकत बढ़ती है, खून की कमी दूर होती है और शरीर में बल आता है। आयुर्वेद में भृंगराज को प्राचीन समय से एनीमिया, त्वचा रोग, खांसी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी पित्ती, पेट फूलना, पेट का दर्द, लीवर-स्प्लीन रोगों, लीवर संक्रमण, प्लीहा और यकृत के बढ़ जाने, प्रतिश्यायी पीलिया, चक्कर, आना, कान में आवाजें आना, दांत गिरना, बालों का असमय सफ़ेद होना, एसिडिटी, पेचिश, रतौंधी, नेत्र रोग, और अल्सर के लिए एक एंटीसेप्टिक के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। Read in English Bhringrajasava For Hair Problems

bhringrajasava

भृंगराजासव में भृंगराज के अतिरिक्त चतुर्जात, जायफल, हरीतकी और पुराना गुड़ भी है। चतुर्जात आयुर्वेद में दालचीनी, इलाइची, तेजपत्ता और नागकेशर के बराबर मिले मिश्रण को कहते हैं। इसके सेवन से भूख-पाचन में सुधार होता है तथा गुर्दे और यकृत के रोग दूर होते हैं। हरीतकी भी रसायन है जो की शरीर से विषाक्त पदार्थों को दूर करती है व अधिक वात को काम करती है।

Bhringrajasava is a polyherbal classical Ayurvedic medicine. The principle ingredient in this medicine is Bhringraja or Eclipta alba. Bhringrajasava is a general health tonic and helps to cure various conditions caused by deficiencies. It has rejuvenating, revitalizing, antioxidant, and anti-aging properties. Bhringrajasava is also helpful in premature hair greying and hair fall.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: आसव
  • मुख्य उपयोग: कमजोरी, सांस के रोग, पाचन की दिक्कतें, बालों की आम समस्याएं
  • मुख्य गुण: कफ और वात को संतुलित करना

भृंगराजासव के घटक Ingredients of Bhringrajasava

  1. भृंगराज Eclipta alba Asteraceae Wh.pl. 12.250 liter
  2. हरीतकी Terminalia chebula Combretaceae Fr. 384grams
  3. पिप्पली Piper longum Piperaceae Fr. 96grams
  4. जटीफल Myristica fragrance Myristicaceae Fr. 96grams
  5. लवंग Sygizium aromaticum Myrtaceae Fl. 96grams
  6. त्वक Cinnamomum zeylanicum Lauraceae Br. 96grams
  7. एल Elatteria cardamom Zingiberaceae Sd. 96grams
  8. तमालपत्र Cinnamomum tamala Lauraceae Lf. 96 grams
  9. नागकेसर Messua ferrea Guttiferae Fl. 96grams
  10. गुड़ Cane jaggery (Old) 9.600 kgs

भृंगराजासव के लाभ/फ़ायदे Benefits of Bhringrajasava

  1. इसके सेवन से शरीर में धातुओं की वृद्धि होती है।
  2. इसके सेवन से वज़न की वृद्धि होती है।
  3. यह एक टॉनिक है। यह बलकारक और शक्तिवर्धक है।
  4. यह इम्युनिटी की कमी, खांसी, जुखाम, कृशता आदि को नष्ट करने वाली दवाई है।
  5. इसे लेने से स्त्रियों में फर्टिलिटी बढती है और स्वस्थ्य संतान होने के आसार बढ़ते हैं।
  6. इसमें कामोद्दीपक गुण हैं।
  7. यह लीवर, स्प्लीन, किडनी, नेत्रों, श्वशन तथा पाचन अंगों को मजबूती देता है।
  8. यह धातु क्षय और टीबी में लाभप्रद है।
  9. यह रक्त को साफ़ करने में सहयोगी है।

भृंगराजासव के चिकित्सीय उपयोग Uses of Bhringrajasava

  1. सुस्ती, निर्बलता
  2. याद्दश्त की कमी
  3. बार-बार सर्दी-खांसी-जुखाम, नजला
  4. श्वास रोग
  5. नेत्र विकार
  6. बालों का असमय सफ़ेद होना, गिरना
  7. टॉनिक की तरह

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Bhringrajasava

  • 12-24 ml दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे पानी की बराबर मात्रा मिलाकर लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  1. बैद्यनाथ Baidyanath Bhringrajasava Price: 450 ml for Rs. 133.00 /-
  2. डाबर Dabur Bhringarajasava 450ml for INR 133.00 /-
  3. संजीवका Sanjeevika Bringrajasava
  4. डीऐवी DAV Ayurvedic products Bhringrajasava
  5. भारद्वाज Bhardwaj Pharmaceutical Works Bringrajasava
  6. कपिवा Kapiva Bhringrajasav
  7. केरला आयुर्वेद Kerala Ayurveda Bhringarajasavam आदि।

कौंच पाक Kaunch Pak Detail and Uses in Hindi

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कौंच पाक, एक आयुर्वेदिक टॉनिक है जिसके सेवन से शरीर में शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति की वृद्धि होती है। यह पाक नपुंसकता नाशक, पौष्टिक, वीर्यवर्धक, वाज़िकारक तथा कामशक्तिवर्धक है। यह धातुक्षीणता को दूर करने वाली और शरीर को सबल और पुष्ट करने वाली दवा है।

इसके सेवन से शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, वीर्य सम्बंधित परेशानियों, कमजोरी आदि रोगों में लाभ होता है। इस पाक का मुख्य घटक कौंच या केवांच बीज Mucuna pruriens की गिरी है। केवांच की गिरी बहुत ही प्रभावशाली हर्बल दवा है तथा इसे हजारों वर्षों से पुरुष प्रजनन क्षमता में सुधार करने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। यह हाइपोथेलेमस पर काम करता है। इसके सेवन से सीरम टेस्टोस्टेरोन, लुटीनाइज़िंग luteinizing हार्मोन, डोपामाइन, एड्रेनालाईन, आदि में सुधार होता है। यह शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में भी उचित सुधार करने वाली नेचुरल दवा है। मानसिक तनाव, नसों की कमजोरी, टेस्टोस्टेरोन के कम लेवल आदि में इसके सेवन से बहुत लाभ होता है।

Kaunch pak

केवांच के साथ-साथ इसमें सफेद मूसली, वंशलोचन, त्रिकटु, चातुर्जात, घी, दूध, शहद आदि जैसे पौष्टिक द्रव्य है। पुरुषों में इसके सेवन से स्पर्म काउंट को बढ़ते है। यह वीर्य को की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार करता है। कौंच के प्रमुखता होने से यह औषधि कामोद्दीपक, स्पेर्मेटोजेनिक, शक्तिवर्धक, अवसाद दूर करने के और फर्टिलिटी बढ़ाने के गुणों से युक्त है। चतुर्जात और त्रिकटु, के होने से यह भूख, पाचन और अवशोषण में सुधार करता है।

यह दवा आयुर्वेद की वाजीकरण शाखा के अंतर्गत आती है और पौरूष शक्ति तथा प्रजनन क्षमता में सुधार लाने और स्वस्थ संतान होने में सहायक है।

Kaunch Pak is an Ayurvedic medicine used for treatment of sexual weakness and infertility in men. It is a tonic and boosts fertility in both male and female on oral intake.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक
  • मुख्य उपयोग: यौन दुर्बलता, फर्टिलिटी को बढ़ाना
  • मुख्य गुण: टॉनिक, शक्ति और ओजवर्धक
  • कौंच पाक के घटक Ingredients of Kaunch Pak

केवांच, गो दुग्ध , गो घृत , वंशलोचन, सफ़ेद मूसली , सफ़ेद जीरा , लवंग , जीवन्ति , जतिफल , करंज गिरी , प्रियंगु , गजपिप्पली , बिल्व , अजोवन , अकरकरा , समुद्र शोष and त्रिकटु (पिप्पली , काली मिर्च , शुंठी) and चतुर्जात (तेजपत्र , दालचीनी , इलाइची , नागकेसर)

कौंच पाक के लाभ/फ़ायदे Benefits of Kaunch Pak

  1. यह कामोद्दीपक है।
  2. यह बल और ताकत को बढ़ाता है
  3. यह शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, धातु-विकार आदि में लाभप्रद है।
  4. इसके सेवन से धातु (शुक्र) का पतलापन दूर होता है तथा वीर्य गाढ़ा होता है।
  5. यह शरीर को बलिष्ठ करता है।

कौंच पाक के चिकित्सीय उपयोग Uses of Kaunch Pak

  1. शुक्र को गाढ़ा करने के लिए watery semen
  2. शुक्र कीटों की संख्या और गुणवत्ता के सुधार के लिए
  3. शीघ्रपतन premature ejaculation
  4. स्वपन दोष nocturnal emission / nightfall
  5. धात गिरना spermatorrhoea
  6. नसों की दुर्बलता weakness of nerves
  7. सेक्स करने की क्षमता में कमी, मेल सेक्सुअल वीकनेस
  8. स्तम्भन दोष / इरेक्टाइल डिसफंक्शन ED
  9. शरीर में बल, ओज की कमी low energy level

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kaunch Pak

  • 1-2 टीस्पून, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे दूध के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
  • इसके सेवन के समय दूध, घी, मक्खन, केला, खजूर आदि वीर्यवर्धक आहारों का सेवन अवश्य करें।
  • जंक फ़ूड न खाएं।
  • तले, भुने, खट्टे, मसालेदार भोजन न खाएं।
  • खूब पानी पियें।
  • एक्सरसाइज करें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  1. व्यास कौंच पाक
  2. साधना कौंच पाक
  3. ररसाश्रम कौंचापाक
  4. दीनदयाल कौंच पाक
  5. कामधेनु कौंच पाक
  6. लायन ब्रांड कौंचापाक

सालममिश्री Salep in Hindi

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सालममिश्री को संस्कृत में बीजागंध, सुरदेय, द्रुतफल, मुंजातक पंजाबी में सलीबमिश्रि, इंग्लिश में सालब, सालप, फ़ारसी में सालबमिश्री, बंगाली सालम मिछरी, गुजराती में सालम और इंग्लिश में सैलेप कहते हैं।

यह पौधों के भेद के अनुसार देसी (देश में उगने वाला) और विदेशी माना गया है। देशी सैलेप का वानस्पतिक नाम यूलोफिया कैमपेसट्रिस तथा यूलोफिया उंडा है। विदेशी या फ़ारसी सैलेप का लैटिन नाम आर्किस लेटीफ़ोलिया तथा आर्किस लेक्सीफ्लोरा है। इसे भारत में फारस आदि देशों से आयात किया जाता है।

salep medicinal uses
By Bernd Haynold (Own work) [GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html), CC-BY-SA-3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0/) or CC BY 2.5 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.5)], via Wikimedia Commons
सैलेप मुंजातक-कुल यानिकी आर्कीडेसिऐइ परिवार का पौधा है और समशितोष्ण हिमालय प्रदेश में कश्मीर से भूटान तक तथा पश्चिमी तिब्बत, अफ्गानिस्तान, फारस आदि देशों में पाया जाता है। हिमालय में पाए जाने वाले सैलेप के पौधे 6-12 इंच की ऊँची झाडी होते हैं जिनमें पत्तियां तने के शीर्ष के पास होती हैं। यह पत्तियां लम्बी और रेखाकार होती हैं। इसके पुष्प की डंडियाँ मूल से निकलती हैं और इन पर नीले-बैंगनी रंग के पुष्प आते हैं।

पौधे की जड़ें कन्द होती है और देखने में पंजे या हथेली की तरह होती हैं। यह मीठी, पौष्टिक और स्वादिष्ट होती हैं। दवाई या टॉनिक के रूप में पौधे के कन्द जिन्हें सालममिश्री या सालमपंजा कहते हैं, का ही प्रयोग किया जाता है।

बाजारों में मुख्य रूप से दो प्रकार के सालममिश्री उपलब्ध है, सालम पंजा और लहसुनी सालम/ सालम लहसुनिया। सालम पंजा के कन्द गोल-चपटे और हथेली के आकार के होती हैं जबकि लहसुनि सालम के कन्द शतावरी जैसे लंबे-गोल, और देखने में लहसुन के छिले हुए जवों की तरह होते हैं। इसके अतिरिक्त सालम बादशाही (चपटे टुकड़े), सालम लाहौरी और सालम मद्रासी (निलगिरी से) भी कुछ मात्रा में बिकते हैं। बाज़ार में पंजासालम का मूल्य सबसे अधिक होता है और गुणों में भी यह सर्वश्रेष्ठ है।

सालम मिश्री को अकेले ही या अन्य घटकों के साथ दवा रूप में प्रयोग करते हैं। सालम मिश्री के चूर्ण को दूध में उबाल कर दवा की तरह से दिया जाता है।

इसे अन्य घटकों के साथ पौष्टिक पाक में डालते हैं। यूनानी दवाओं में इसे माजूनों में प्रयोग करते हैं। इसका हरीरा भी बनाकर पिलाया जाता है।

सामान्य जानकारी

वानस्पतिक नाम: Orchis mascula Linn, Orchis latifolia, Orchis laxiflora, Allium macleani (ऑर्किड और संबद्ध प्रजातियाँ)

कुल (Family):आर्कीडेसिऐइ

औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़ें

स्थानीय नाम

  • आयुर्वेदिक: Munjataka, Salam-misri
  • यूनानी: Salab-misri, Khusyat-us-Salab
  • सिद्ध: Silamishri
  • अंग्रेज़ी: Salep, Salep Orchid
  • हिंदी: Salabmishri
  • अफगानिस्तान, फ़ारसी: Salap, Salab

संग्रह और भण्डारण

इन्हें दवा की तरह प्रयोग करने के लिए छाया में सुखा लिया जाता है। इनका भंडारण एयर टाइट कंटेनर में ठन्डे-सूखे-नमी रहित स्थानों पर किया जाता है।

उत्तम प्रकार की सालम

यह मलाई की तरह कुछ क्रीम कलर लिए हुए होती है। यह देखने में गूदेदार-पारभाषी और टूटने पर चमकीली सी लगती हैं। सालम में कोई विशेष प्रकार की गंध होती और यह लुआबी होता है।

सालम कन्द का संघटन

सालम मिश्री के कंडों में मुसिलेज की काफी अच्छी मात्रा होती है। इसमें प्रोटीन, पोटैशियम, फोस्फेट, क्लोराइड भी पाए जाते है।

वीर्यकालिक अवधि

दो वर्ष

सालममिश्री के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

सालममिश्री स्वाद में मधुर, गुण में भारी और चिकनाई देने वाली है। स्वभाव से यह शीतल है और मधुर विपाक है।

यह मधुर रस औषधि है। मधुर रस, मुख में रखते ही प्रसन्न करता है। यह रस धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात-पित्त-विष शामक है। लेकिन मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है। यह मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, प्रमेह, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।

  • रस (taste on tongue): मधुर
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

कर्म:

  • पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष निवारक हो।
  • वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  • वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो.
  • श्रमहर: द्रव्य जो थकावट दूर करे.
  • शुक्रकर: द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे.
  • ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
  • मस्तिष्क और नाड़ीबल्य
  • रसायन: द्रव्य जो शरीर की बीमारियों से रक्षा करे और वृद्धवस्था को दूर रखे।

वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

सालममिश्री के लाभ Health Benefits of Salep in Hindi

  1. सालममिश्री को मुख्य रूप से धातुवर्धक और पुष्टिकारक औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है।
  2. यह टी बी / क्षय रोगों में लाभप्रद है।
  3. इसके सेवन से बहुमूत्र, खूनीपेचिश, धातुओं की कमी में लाभ होता है।
  4. इसके सेवन से वज़न बढ़ता है।
  5. यह बलकारक, शुक्रजनक, रक्तशोधक, कामोद्दीपक, वीर्यवर्धक, और अत्यंत पौष्टिक है।
  6. यह मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं के लिए उत्तेजक है।
  7. पाचन नलिका में जलन होने पर इसे लेते हैं।
  8. इसे तंत्रिका दुर्बलता, मानसिक और शारीरिक थकावट, पक्षाघात और लकवाग्रस्त होने पर, दस्त और एसिडिटी के कारण पाचन तंत्र की कमजोरी, क्षय रोगों में प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
  9. यह शरीर के पित्त और वात दोष को दूर करता है।

सालममिश्री के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Salep in Hindi

सालममिश्री को मुख्य रूप से शक्तिवर्धक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, शुक्रवर्धक, और कामोद्दीपक दवा के रूप में लिया जाता है। इसके चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से इसके स्वास्थ्य लाभ लिए जा सकते हैं। इसे अन्य द्रव्यों के साथ मिला कर लेने से इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है।

यौन कमजोरी / दुर्बलता, कम कामेच्छा, वीर्य की मात्रा-संख्या-गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, वीर्य के अनैच्छिक स्राव को रोकने के लिए

सालममिश्री के चूर्ण को इससे दुगनी मात्रा के बादाम के चूर्ण के साथ मिलाकर रख लें। रोजाना 10 ग्राम की मात्रा में, दिन में दो बार, सेवन करें।

मांसपेशियों में हमेशा रहने वाला पुराना दर्द

बराबर मात्रा में सालममिश्री और पिप्पली के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो बार बकरी के दूध के साथ सेवन करें।

प्रमेह, बहुमूत्रता

बराबर मात्रा में सालममिश्री, सफ़ेद मुस्ली और काली मुस्ली के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो बार सेवन करें।

सफ़ेद पानी की समस्या

बराबर मात्रा में सालममिश्री, सफ़ेद मुस्ली, काली मुस्ली, शतावरी और अश्वगंधा के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में एक बार सेवन करें।

सालममिश्री के चूर्ण की औषधीय मात्रा

सालममिश्री के चूर्ण को 6 gram से लेकर 12 gram की मात्रा में ले सकते हैं। दवा की तरह प्रयोग करने के लिए करीब एक या दो टीस्पून पाउडर को एक कप दूध में उबाल कर लेना चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. इसका अधिक प्रयोग आँतों के लिए हानिप्रद माना गया है।
  2. हानिनिवारण के लिए सोंठ का प्रयोग किया जा सकता है।
  3. इसके अभाव में सफ़ेद मुस्ली का प्रयोग करते हैं।
  4. पाचन के अनुसार ही इसका सेवन करें।
  5. इसके सेवन से वज़न में वृद्धि होती है।
  6. यह कब्ज़ कर सकता है।

दन्त कान्ति Patanjali Dant Kanti Detail and Uses in Hindi

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दन्त कान्ति डेंटल क्रीम, पतंजलि द्वारा निर्मित हर्बल टूथपेस्ट है। यह डेंटल क्रीम या पेस्ट तीन प्रकार का है, दन्त कान्ति रेगुलर, दन्त कान्ति एडवांस्ड और दन्त कान्ति जूनियर। एडवांस्ड पेस्ट में, रेगुलर की तुलना में ज्यादा द्रव्य है जबकि जूनियर पेस्ट बच्चों के लिए है और इसमें ज्यादा सुरक्षित घटक हैं जिससे बच्चे भी इसे निश्चिन्त होकर प्रयोग कर सकें। जुनियर पेस्ट नारंगी से रंग का है और इसमें नीम, सौंफ, मुलेठी, मेस्वाक, बाबुल, पुदीना, तोमल और लौंग है।

दन्त कान्ति में दांतों की देखभाल के लिए प्रयोग की जाने वाली जानी-मानी जड़ी-बूटियाँ हैं। रेगुलर और एडवांस्ड पेस्ट में अकरकरा, नीम, बबूल, तोमर, पुदीना, लवंग, छोटी पिप्पली, वज्रदंती, बकुल, विडंग, हल्दी, पीलू और माजूफल डाले गए हैं जो की दांतों को साफ़ करते है, उन्हें मजबूती देते हैं और कीड़ा लगने से बचाते हैं। यह अन्य टूथ पेस्ट से रंग में भिन्न है। रेगुलर पेस्ट भूरे-चोकलेट से रंग का है और इसमें फ्लोराइड भी डाला गया है।

Dant Kanti

Patanjali Dant Kanti Dental Cream is a herbal tooth paste from Patanjali Pharmacy. It is used for teeth cleaning.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • प्रकार: हर्बल टूथपेस्ट
  • मुख्य उपयोग: दांतों की सफाई
  • मुख्य गुण: एंटीबैक्टीरियल

मूल्य Price:

  • Patanjali Dant Kanti JUNIOR 100 gm @ Rs. 35.00
  • Patanjali Dant Kanti Dental Cream REGULAR – 100gram @ Rs. 40.00
  • Patanjali Dant Kanti Dental Cream REGULAR 200 g @ Rs. 75.00
  • Patanjali Dant Kanti Advance Dental Cream ADVANCED 100g @ Rs. 90.00

दन्त कान्ति के घटक Ingredients of Dant Kanti Toothpaste

Patanjali Dant Kanti Junior:

Composition: Each 10 g contains extract of

  • सौंफ 5mg
  • मुलेठी 2mg
  • मेस्वाक 1mg
  • नीम 0.5mg
  • बबूल 0.5mg
  • पुदीना 0.5mg
  • तोमर 0.1mg
  • लौंग 0.1mg

Base Material: Gel base Preservative: Sodium Benzoate QS

Dant Kanti Toothpaste REGULAR:

Composition: Each 10 g contains extract of

  • अकरकरा Anacyclus pyretheum 20 mg
  • नीम Azadirachta indica 10 mg
  • बबूल Acacia Arabica 20 mg
  • तोमर Xanthoxylum alatum 20 mg
  • पुदीना Mentha spicata 10 mg
  • लौंग Syzygium aromaticum 10 mg
  • पीपली छोटी Piper sylvaticum 10 mg
  • वज्रदंती Barleria prionitis 10 mg
  • बकुल Mimusops elengi 10 mg
  • विडंग Embelia ribes 10 mg
  • हल्दी Curcuma longa 10 mg
  • मेसवाक Salvadora persica 10 mg
  • माजूफल Quercus infectoria 5 mg

Base material: Calcium Carbonate Base, Preservative: Sodium Benzoate QS

Available FLUORIDE CONTENT 924 PPM APPROX.

Dant Kanti Toothpaste ADVANCED

Composition: Each 10 g contains extract of

  1. लौंग Syzygium aromaticum 10 mg
  2. तोमर Xanthoxylum alatum 10 mg
  3. अकरकरा Anacyclus pyretheum 10 mg
  4. बबूल Acacia Arabica 10 mg
  5. त्रिफला 10 mg
  6. खदिर 10 mg
  7. पुदीना सत् Mentha spicata 10 mg
  8. अजवाइन सत् 10 mg
  9. कपूर सत् 10 mg
  10. नीम Azadirachta indica 5 mg
  11. वज्रदंती Barleria prionitis 5 mg
  12. मेसवाक Salvadora persica5 mg
  13. अनार छिलका 5 mg
  14. अपामार्ग 5 mg
  15. कंटकारी 5 mg
  16. स्ट्राबेरी 5 mg
  17. बकुल 5 mg
  18. मुलेठी 5 mg
  19. निलगिरी का तेल 5 mg
  20. बड़ी इलाइची का तेल 5 mg
  21. दालचीनी का तेल 5 mg
  22. सौंफ का तेल 5 mg
  23. काली मिर्च 5 mg
  24. तुलसी का तेल 1 mg
  25. जायफल का तेल 1 mg
  26. अदरक का तेल 1 mg

Base Material: स्फटिका भस्म, टंकण भस्म, ग्लीसरीन, जिंक सिट्रेट, सोडियम बेन्जोएट, कैल्शियम कार्बोनेट, फ्लेवर, पानी

Available फ्लोराइड FLUORIDE CONTENT 924 PPM APPROX.

दन्त कान्ति के लाभ/फ़ायदे Benefits of Dant Kanti Toothpaste (जैसा पैक पर बताया गया है)

  1. यह दांतों को मज़बूत बनाता है।
  2. इसमें फ्लोराइड है।
  3. यह मसूड़ों की समस्याओं जैसे की खून आना, पाएरिया, सूजन आदि में लाभप्रद है।
  4. यह दांतों को कीड़े लगने से बचाता है।
  5. दन्त कान्ति के चिकित्सीय उपयोग Uses of Dant Kanti Toothpaste
  6. दांत साफ़ करने के लिए एक पेस्ट जिसे रोजाना दिन में दो बार प्रयोग करना चाहिए
  7. जिन्जेवाईटिस gingivitis
  8. दांत में दर्द toothache
  9. सांस की बदबू bad breath

मसूड़ों से खून आना spongy and bleeding gums

  1. यह एक टूथपेस्ट है तथा किसी भी अन्य टूथपेस्ट की तरह ही प्रयोग किया जाता है। पी-साइज़ मात्रा लेकर टूथ ब्रश पर लगायें और करें। इसे सुबह उठने के बाद और रात का भोजन करने के बाद नियमित रूप से करें।
  2. यह पेस्ट है और इसे निगलना नहीं चाहिए। इसलिए सात वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ये पेस्ट प्रयोग करने में सावधानी की ज़रूरत है क्योंकि वे अक्सर पेस्ट्स को खा लेते है। इसमें बहुत सी जड़ी-बूटियाँ हैं जो की बच्चो के सेवन के लिए उपयुक्त नहीं है।
  3. इसमें हर्बल नेचुरल पदार्थ हैं जो की कुछ समय में रंग बदल सकते हैं लेकी इससे पेस्ट की गुणवत्ता पर प्रभाव नहीं पड़ता।
  4. इसे ठन्डे और सूखे स्थान पर रखें।

जानिए झंडु बाम फायदे Zandu Balm in Hindi

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झंडु बाम नाम से हम सभी परिचित हैं। आप को भी इसका टीवी पर आने वाला ऐड याद होगा ‘ झंडु बाम – झंडु बाम पीड़ाहारी बाम, सर्दी-खांसी-सरदर्द को पल में दूर करेझंडु बाम – झंडु बाम। यह एक बाम है जो की झंडु Zandu Pharmaceutical Works Ltd। द्वारा निर्मित है और इसलिए इस बाम का नाम ‘झंडु बाम’ है।

भारत में तो बाम का पर्याय ही झंडु बाम है। यह तब से उपलब्ध है जब मार्किट में कोई अन्य ओटीसी दवा मोच आदि के लिए उपलब्ध नहीं होती थी।

Zandu Balm ke Fayade

बाम एक इंग्लिश शब्द है जिसका मतलब होता है balm means fragrant cream or liquid used to heal or soothe the skin, मरहम या लेप। झंडु बाम एक दर्द निवारक या पीड़ाहारी मरहम है जिसे सिर के दर्द के लिए, पीठ दर्द, कोल्ड-कफ आदि में बाहरी रूप से लगाया जाता है। यह एक हरे रंग का लेप है और पूरी तरह से बाहरी प्रयोग के लिए है।

झंडु के तीन बाम उपलब्ध हैं, झंडु बाम, झंडु बाम अल्ट्रा पॉवर और झंडु बाम जूनीयर। जूनियर में घटक अलग हैं और इसलिए यह बच्चों की कोमल त्वचा के लिए उपयुक्त है। बड़ों के बाम ज्यादा स्ट्रोंग होते हैं और उन्हें बच्चों को नहीं लगाना चाहिए।

झंडु बाम अल्ट्रा पॉवर को अधिक दर्द apply on affected parts and gently massage on Strong Headache, Strong Backache, Strong Knee Pain, Strong Joint Pain, Strong Neck and Shoulder Pain, Sprain, Muscle Pain, Inflammation, Cold में प्रयोग किया जाता है। इसे भी सिर दर्द, पीठ दर्द, घुटने का दर्द, कंधे के दर्द, मोच, मांसपेशियों के दर्द, सूजन, कफ आदि में लगाते है।

Zandu Balm is a proprietary Ayurvedic herbal medicine marketed by Zandu pharmaceuticals containing time-tested, active herbal natural potent pain relievers. It is a pain relieving rub / ointment for external use only. It is suitable for minor aches and pains from sprains, strains, backaches, arthritis, bruises and sports exertion.

Zandu Balm contains Oil of Gaultheria or Wintergreen (used as topical medicine for rheumatic disorders). Its topical application gives relief in Vata Roga or musculoskeletal disorders.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • ब्रांड: झंडु
  • दवाई का प्रकार: Proprietary Medicine
  • मुख्य उपयोग: दर्द
  • मुख्य गु: दर्द निवारक

कौन प्रयोग कर सकता है: सभी व्यस्क लोग, क्योंकि यह केवल बाह्य रूप से लगाने के लिए है

मूल्य Price:

  • 1 ml: Rupees 2
  • 4.5ml: Rupees 10
  • 8ml: Rupees 30
  • 25ml: Rupees 80 (Prices are inclusive of all taxes)

रेंज:

  • Zandu Gel Balm Junior (mild gel balm for cold, headache and body ache)
  • Zandu Balm
  • Zandu Balm Ultra Power

झंडु बाम के घटक Ingredients of Zandu Balm

  • Zandu Balm
  • Mentha Sp. Satva 14.0%
  • Gaultheria Fragrantissima Oil 12.0%
  • Eucalyptus Globulus Oil 0.80%, Base q.s.

Zandu Balm Ultra Power

  • Menthol 20%
  • Oil of Gaultheria 25%
  • Cajuput Oil 5%
  • Clove Oil: 5%
  • Capsaicin Extract 0.02%

Zandu Gel Balm Junior

  • Mentha sp – Satva 6%
  • Gaultheria fragrantissima – Oil 1%
  • Cinnamomum camphora – Satva 11%
  • Syzygium aromaticum Oil 0.3%
  • Trachyspermum ammi Satva 0.1%
  • Eucalyptus globulus – Oil 2%
  • Myristica fragrans – Oil 0.5%
  • Origanum majorana – Oil 0.5%
  • Quinazarine Green SS, Base q.s.

झंडु बाम के लाभ/फ़ायदे Benefits of Zandu Balm

  1. यह एक पीड़ाहारी बाम है।
  2. इसे बाहरी रूप से प्रयोग किया जाता है।
  3. यह आयुर्वेदिक हर्बल लेप है।
  4. इसे लगाने से जोड़ों और मांसपेशियों के जकड़न से राहत मिलती है।
  5. जोड़ों के दर्द, जकड़न, सूजन, गठिया, आदि में भी यह दर्दनिवारक और सूजन दूर करने के गुण के कारण लाभकारी है। मालिश करने से जोड़ों में गर्माहट आती है और रक्तप्रवाह ठीक होता है।
  6. सिर के दर्द में इसे माथे पर लगाने से ठंडक मिलती है, सूजन कम होती है, नसों को आराम मिलता है और इन सब असर से दर्द में राहत होती है।
  7. गर्दन के दर्द, पीठ के दर्द, मांसपेशियों के दर्द आदि में भी यह सूजन को दूर करने में और दर्द निवारक गुण के कारण लाभकारी है। यह जब हलकी मालिश के साथ लगते हैं तो दर्द वाले हिस्से में आराम मिलता है।
  8. मोच, मांसपेशियों के दर्द, खिचाव, समेत यह सभी इसी तरह की समस्याओं तथा वात रोगों में बाहर से प्रयोग की जा सकने वाली उत्तम हर्बल दवाई है।
  9. इससे मालिश करने से सर्दी-जुखाम के लक्षणों में लाभ होता है।
  10. जुखाम-कफ आदि में इसे लगाने से नाक खुलती है, कंजेशन में राहत होती है और मालिश करने से खून का दौरा ठीक होता है।
  11. इसमें मिथाइल सेलीसाईलेट है जो की वात-रोगों में musculoskeletal disorders में लाभप्रद है।
  12. यह दर्द-निवारक और सूजन दूर करने के गुणों से युक्त है।
  13. इसको लगाने से आराम मिलता है।
  14. इसे प्रयोग करना आसान है।
  15. यह बाम भरोसेमंद ब्रांड झंडु से है। अब झंडु बाम नाम तो बाम का ही एक पर्याय बन है।

झंडु बाम के चिकित्सीय उपयोग Uses of Zandu Balm

  1. आर्थराइटिस, गठिया Arthritis
  2. पीठ दर्द Backache
  3. सर्दी-खांसी-जुखाम Cold
  4. सिर दर्द Headache
  5. सूजन Inflammation
  6. जोड़ों का दर्द Joint Pain
  7. घुटनों का दर्द Knee Pain
  8. मांसपेशियों का दर्द Muscle Pain
  9. गर्दन और कंधे का दर्द Neck & Shoulder Pain
  10. मोच Sprain

झंडु बाम कैसे प्रयोग करें?

झंडु बाम को कितने दिन लगाना है और यह कितनी देर में काम करती है, यह बहुत सारे फैक्टर्स पर निर्भर है, जैसे दर्द की गंभीरता, कारण, प्रकार, उम्र, शारीरिक बनावट, ताकत आदि। इस लिए हो सकता है, इसे लगाने के बाद आपको तुरंत ही दर्द से राहत न मिले। यह भी हो सकता है की परिणाम सभी के लिए एक जैसे न हों।

क्योंकि यह बाह्य प्रयोग के लिय है, इसलिए इसे लगाने से कोई हानि नहीं है।

यह लोकल एप्लीकेशन के लिए है। प्रभावित स्थान पर इसे बाहरी रूप से जरुरत के अनुसार हल्की मालिश के साथ लगायें। मालिश करने से एक तो खून का दौरा सही होगा और दूसरा यह दवा के अवशोषण में भी मदद करेगा।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. बड़ों वाला बाम बच्चों को न लगायें।
  2. बाम के जार को बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. लगाने के बाद हाथ अच्छे से साफ़ कर लें।
  4. अगर गलती से आँख में लग जाए तो आँख को ठन्डे पानी के छीटे मार कर धो लें।
  5. याद रखें यह बाम केवल और केवल बाह्य प्रयोग के लिए है। इसका सेवन नहीं करें और बच्चों के आस-पास यह न रखें। बच्चे उत्सुकतावश इसे मुख में डाल सकते हैं।
  6. बहुत छोटे बच्चों पर इसका प्रयोग न करें।

कामिनी विद्रावण रस Kamini Vidrawan Ras Detail and Uses in Hindi

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कामिनी विद्रावण रस एक आयुर्वेदिक दवाई है जिसे पुरुषों के यौन विकारों में दिया जा सकता है। यह वीर्य स्तंभक है, और वीर्य को गाढ़ा करने वाली दवा है।

यह आयुर्वेद की रस औषधि है जिसमें हिंगुल है। हिंगुल, पारे का एक भारी अयस्क है। यह रासायनिक संघटन में मकरध्वज जैसा है लेकिन गुणों में इसे इससे भिन्न माना गया है। आयुर्वेद की रस औषधियां, वे दवाएं हैं जिनमें हेवी मेटल्स होती है। इन दवाओं को कम दिनों तक और केवल डॉक्टर के पर्यवेक्षण में ही लिया जाता है। यह दवाएं लम्बे समय के सेवन के लिए उपयुक्त नहीं होती। रस औषधियों उन्ही आयुर्वेदिक फार्मेसी की खरीदनी चाहिए जो की अच्छी, पुरानी और जानी-मानी हों। इन्हें बनाना कठिन होता है और यदि यह ठीक से न बनायी गयीं हो तो स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

कामिनी विद्रावण रस के अच्छे प्रभाव और कई खतरनाक दुष्प्रभाव भी है। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है की दवा के बारे में विस्तार से जाना जाए। इसके सेवन से आपके शरीर पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा और कैसे यह स्वास्थ्य को प्रभावित करेगी, यह सभी जानकारी दवा को प्रयोग करने से फले ही भली-भांति जान लेना चाहिये। यदि दवा ऐसी हो की जिसे प्रयोग करने से शरीर पर अच्छे परिणाम कम और दुष्प्रभाव अधिक हों, तो ऐसी दवा को न लेने में ही भलाई है।

kamini vidrawan ras

मेरे विचार से यह दवा नहीं लेनी चाहिए क्योंकि यह कुछ दिन तो अच्छे परिणाम देने में सहयोगी है लेकिन बाद में मुश्किलें बढ़ा सकती है। आगे इस दवा के बारे में विस्तार से पढ़ें।

Kamini Vidrawan Ras is an Ayurvedic medicine containing purified cinnabar, Sulphur, spice and opium. This medicine has aphrodisiac property and indicate in low libido, premature ejaculation, erectile dysfunction and watery semen. Though this s an Ayurvedic medicine but it has many side-effects. It can cause addition and withdrawal symptoms. This medicine is unsafe to take for longer duration.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: रस औषधि
  • मुख्य उपयोग: शीघ्र पतन, वीर्य का पतला होना
  • मुख्य गुण: वाजीकारक

कामिनी विद्रावण रस के घटक Ingredients of Kamini Vidrawan Ras

  1. शुद्ध हिंगुल 3 gram
  2. शुद्ध गंधक 3 gram
  3. अकरकरा Anacyclus pyrethrum 12 gram
  4. सोंठ Zingiber officinale 12 gram
  5. लौंग Syzygium aromaticum 12 gram
  6. केशर Crocus aativus 12 gram
  7. पिप्पली Piper longum 12 gram
  8. जायफल Nutmeg Myristica fragrans 12 gram
  9. जावित्री Mace Myristica fragrans 12 gram
  10. सफ़ेद चन्दन Santalum album 12 gram
  11. शुद्ध अहिफेन (ओपियम) Papaver somniferum 48 grams

कामिनी विद्रावण रस के लाभ/फ़ायदे Benefits of Kamini Vidrawan Ras

  1. यह वीर्य को गाढ़ा करता है।
  2. यह स्तम्भन में सहायक है।
  3. यह नाड़ियों को ताकत देता है।
  4. यह शीघ्रपतन में लाभदायक है।
  5. यह रस यौन प्रदर्शन को सुधारने में सहायक है।

कामिनी विद्रावण रस के चिकित्सीय उपयोग Uses of Kamini Vidrawan Ras

कामिनी विद्रावण रस इन परेशानियों में लाभप्रद है:

  1. वीर्य का पतलापन
  2. नसों की कमजोरी
  3. शीघ्रपतन
  4. उर्जा, जोश की कमी
  5. कामेच्छा की कमी
  6. नामर्दी

कामिनी विद्रावण रस के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव

  1. इसमें अफीम है, अधिक समय तक लेने पर आप इसके आदि हो सकते हैं।
  2. इसके सेवन से कब्ज़ की शिकायत हो जाती है।
  3. यह मूत्र की मात्रा को भी कम कर देती है।
  4. एक बार इसकी आदत पड़ जाने पर इसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है।
  5. छोड़ने पर व्यक्ति को बार बार लूज़ मोशन आते हैं, उलटी जैसा लगता है और इसे लेने की इच्छा होती है।
  6. इसकी लत को छुड़ाने के लिए बहुत कोशिश और प्रोफेशनल की सहायता भी पड़ सकती है।
  7. शुरू में यह सेक्स परर्फोर्मांस को बढ़ाने में सहयोगी है लेकिन कुछ महीने यदि लगतार इसका सेवन कर लिया जाए तो सेक्स करना भी मुश्किल हो जाता है।

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kamini Vidrawan Ras

  1. इस दवा को लेने की मात्रा बहुत कम है।
  2. इसे 125mg-250mg की मात्रा में लें।
  3. इसे दूध के साथ लें।
  4. इसे भोजन करने के बाद लें।
  5. इसे दिन में केवल एक बार, बिस्तर में जाने के आधा घंटा पहले लें।
  6. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  1. आयुर्वेदांत Ayurvedant Vidravan Ras Keshar Yukt
  2. बैद्यनाथ Baidyanath (Kamini Vidrawan Ras, Keshar yukta) 10 grams Price: Rs। 699/-
  3. डाबर Dabur Kamini Vidrawan Ras K।J।A Yukta 25 tablets, Rs। Rs। 300 /-
  4. देहलवी Dehlvi Kamini Vidrawan Ras
  5. हमदर्द Hamdard Kamini Vidrawan Ras
  6. मुल्तानी Multani Kamini Vidrawan Ras, with Kesar
  7. रेक्स Rex Kamini Vidrawan Ras (With Kesar) आदि।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. इस दवा में अफीम है, इसे केवल डॉक्टर के निर्देश पर ही लें।
  2. इसको लेने की मात्रा केवल 1-2 रत्ती है।
  3. यह शरीर में पानी की मात्रा को बढ़ा सकती है।
  4. यह दवा एक महीने से ज्यादा तक नहीं ली जानी चाहिए।
  5. यह दवा वाजीकारक तो है लेकिन लम्बे समय तक प्रयोग किये जाने पर इसका यह प्रभाव नष्ट हो जाता है।
  6. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।

बोल –मुरमकी Commiphora myrrha in Hindi

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बोल, गंधरस, गोरस, हीराबोल, हिराबोल, सुरसा, बर्बर, पौरा आदि एक अफ़्रीकी पेड़ से प्राप्त राल-युक्त गोंद (रेजिन) के नाम हैं। इसे प्राचीन समय से अफ्रीकन देशों में उपचार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इसका पेड़ सुमालीलैंड, अबीसीनिया, पूर्वी अफ्रीका, अर्ब, फारस, आदि देशों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह भारत की वनस्पति नहीं है और इसे भारत में बाहर से आयात किया जाता है। सुमाली लैंड का बोल और मक्का का बोल सर्वोत्तम माना जाता है। भारत में मक्का का बोल मुर मक्की के नाम से बिकता है।

यह रेजिन गुग्गुल प्रजाति के एक पौधे से प्राप्त होता है। जैसे गुग्गुल पेड़ का गोंद या निर्यास ही, इसी प्रकार यह भी पेड़ के तने पर किसी कारण से हुए घाव, चोट या नुकसान से बाहर निकलता है। शुरू में यह पीले रंग का तरल होता है, लेकिन बाद में यह कुछ लाल से रंग का हो जाता है।

myrrh gum
By No machine-readable author provided. Gaius Cornelius assumed (based on copyright claims). [Public domain], via Wikimedia Commons
बोल के दाने गोल, बेडौल, और छोटे-बड़े होते हैं। इन्हें आपस में मिलाने से विभिन्न आकार और प्रकार की डलियाँ बनाई जा सकती हैं। बाहर से यह लाल रंग लिए हुए पिली-भूरी सी लगती हैं। बाहरी सतह धूल युक्त लगती है। छूने पर यह कड़े और भंगुर होते हैं। तोड़ने पर यह अनियमित से टूटते हैं। टूटा हुआ टुकड़ा पारभासी सा प्रतीत होता है। यह तेल युक्त होता है और इस पर जगह-जगह सफ़ेद रेखाएं देखी जा सकती हैं। स्वाद में यह कड़वा होता है और पानी में नहीं घुलता लेकिन अल्कोहल में घुल जाता है।

बोल को आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी में एक दवा की तरह से से प्रयोग करते हैं। इसमें एंटीसेप्टिक, दर्द शामक, एंटीफंगल, एंटीट्यूमर, कृमिनाशक, और घाव को ठीक करने के गुण होते हैं। बाहरी रूप से इसे मुख में सूजन, मसूड़ों की सूजन, दांतों के आस-पास सूजन, घाव, बेडसोर्स, आदि में प्रयोग करते हैं।

बाह्य रूप से लगाने के लिए इसको पीस कर पेस्ट बना कर प्रभावित स्थान पर लगाते हैं। यह पेस्ट चोट, पाइल्स, आर्थराइटिस, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के दर्द आदि पर लगा सकते हैं। जिन लोगों की संवेदनशील त्वचा हो उन्हें इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: कोमीफोरा मिर्हा Commiphora myrrh अथवा बलसामोदेडेड्रोंन मिर्हा Balsamodendron myrrha Nees
  • कुल (Family): बरसेरेसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: रेसिन
  • पौधे का प्रकार: छोटा वृक्ष
  • वितरण: मध्य भारत के कुछ रेतीले हिस्से
  • पर्यावास: सोमालिया, अरब का मूल निवासी

बोल के स्थानीय नाम / Synonyms

  • वैज्ञानिक नाम: Commiphora myrrha
  • आयुर्वेदिक: बोला, बोल, Heerabola, Hirabol, Gandhrasa, Surasa, बर्बर
  • अंग्रेजी: अफ्रीकी लोहबान, African Myrrh, Arabian Myrr, Bitter Myrrh, Commiphora, Commiphora molmol, Diddin, Didin, Male Myrrh, Malmal, Mohmol, Molmol, Murr, Myrrh, Somali Myrrh, Yemen Myrrh लोहबान, सोमाली लोहबान, यमन लोहबान
  • हिंदी, बंगाली, गुजराती: बोल
  • कन्नड़: Bola
  • मराठी: Balata-bola
  • सिद्ध: Vellaibolam
  • तमिल: Vellaip-polam
  • तेलुगु: Balimtra-polam
  • यूनानी: Mur Makki, Murmakki, Bol
  • तेहरान: Khak-i-mugl, Mun-e-makki
  • फारस: Myrrha mechensis

बोल का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  • आर्डर Order: सेपिनडेल्स Sapindales
  • परिवार Family: बरसेरेसिएई Burseraceae
  • जीनस Genus: कोमीफोरा Commiphora
  • प्रजाति Species: मिर्हा myrrh

बोल के संघटक Phytochemicals

बोल में 57%-61% गोंद, 25-40% रालिया या रेजिन, तथा 7-17% उड़नशील तेल पाया जाता है।

बोल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

बोल स्वाद में कटु, कड़वा और काषाय है। गुण में यह लघु और रूक्ष है। स्वभाव में यह गर्म और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

कर्म:

  • पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  • अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • मेध्य: मेधा के लिए हितकारी
  • गर्भाशय शोधक: गर्भाशय को साफ़ करता है।
  • रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
  • स्वेदजनन: पसीना लाने वाला।
  • मासिकधर्म के स्राव को बढ़ाने वाला emmenagogue
  • कफ निकालने वाला expectorant
  • त्वकरोगनाशक: चमड़ी के रोग दूर करने वाला।

बोल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Commiphora myrrha in Hindi

बोल को बाहरी और आंतरिक दोनों ही तरह से प्रयोग किया जाता है। इसे मुख्य रूप से रक्त की अशुद्धियों, कफ, खांसी, जकड़न, मासिक धर्म की परेशानियों, बुखार, मिर्गी, बुखार, कुष्ठ, आदि में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से पेल्विस में खून का संचार बढ़ता है और इसलिए इसे गगर्भावस्था में प्रयोग नहीं किया जाता है। यह गर्भाशय का शोधक भी है और गर्भाशय की अशुद्धियाँ दूर करता है।

बोल को मुख रोगों में भी इसके संकोचक, एंटीसेप्टिक, और सूजन को दूर करने के गुण के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे पानी में डाल कर गरारे करने से मसूड़ों की सूजन, मुख में छाले, गले में सूजन, आदि में लाभ होता है।

बोल को सुहागे में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार मसूड़ों पर धीरे-धीरे मलने से दांतों व मसूड़ों के सभी रोगों में लाभ होता है।

यह एंटीफंगल है और इसलिए इसके टिंक्चर को केलेंडूला के साथ मिलाकर बाहरी रूप से लागाते हैं।

बोल की औषधीय मात्रा

  • बोल को आंतरिक प्रयोग के लिए बहुत कम मात्रा में लिया जाता है।
  • बोल को लेने की औषधीय मात्रा आधा से लेकर 1.25 ग्राम तक की है।
  • इसे चूर्ण की तरह या गर्म पानी में डाल कर लिया जा सकता है।
  • यह पानी में अघुलनशील है लेकिन अल्कोहल में घुल जाती है, इसलिए इसका मदर टिंकचर भी प्रयोग की जा सकता है। मदर टिंक्चर को लेने की मात्रा 2.5–5.0 mL है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह तासीर में गर्म है।
  2. यह शरीर में रूक्षता करता है।
  3. यह पित्त को बढ़ाता है।
  4. यह उष्ण प्रकृति के लोगों के लिए अहितकर माना गया है।
  5. इसके दुष्प्रभाव का निवारण करने के लिए शहद, तथा मीठे और तर पदार्थों का सेवा करना चाहिए।
  6. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  7. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  8. अधिक मात्रा में सेवन दिल को प्रभावित करता है।
  9. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।

शिलाप्रवंग Shilapravang Detail and Uses in Hindi

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शिलाप्रवंग मौक्तिक युक्त तथा शिलाप्रवंग स्पेशल, श्री धूतपापेश्वर लिमिटेड द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवाइयाँ हैं। दोनों ही दवाओं के मुख्य घटकों में शामिल हैं, शुद्ध शिलाजीत, प्रवाल पिष्टी और वंग भस्म और इसलिए इस दवा को नाम दिया गया है, शिलाप्रवंग। इसके अतिरिक्त इसमें मोती पिष्टी, स्वर्णमाक्षिक भस्म, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, इला, गिलोय, और गोखरू भी है।

शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।

shilapravang for male health

शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है।

प्रवाल पिष्टी, कोरल या मूंगे की पिष्टी है। पिष्टी का शाब्दिक अर्थ पीस कर बनाया चूर्ण। पिष्टी के निर्माण के लिए जिस पदार्थ की पिष्टी बनानी होती है उसे सर्वप्रथम शोधित या साफ़ किया जाता है। फिर इसे गुलाब जल की भावना देकर सूर्य अथवा चाँद की रौशनी में सुखाया जाता है। भावना दे कर सुखाने का क्रम सात दिन या उससे ज्यादा दिन तक किया जाता है जब तक की उसे पीसने से एकदम बारीक चूर्ण या पाउडर न बन जाए। क्योंकि इसके निर्माण में अग्नि का प्रयोग बिलकुल ही नहीं किया जाता इस कारण से पिष्टी को अनअग्नितप्त भस्म भी कहा जाता है।

प्रवाल पिष्टी का प्रयोग शुक्रस्थान की कमजोरी को दूर करता है। इसे कैल्शियम की कमी, शरीर में अधिक गर्मी, रक्त बहने के विकारों, बिना बलगम की खांसी, सामान्य दुर्बलता, अल्सर, अल्सरेटिव कोलाइटिस, हेपेटाइटिस, पीलिया, मूत्र में जलन, कमजोरी आदि में आंतरिक रूप से दिया जाता है।

वंग या बंग भस्म, स्टेनम या टिन की भस्म है। इसे आयुर्वेद में हल्का, दस्तावर, रूखा, गर्म, पित्तकारक माना गया है। इसे मुख्य रूप से प्रमेह, कफ, कृमि, पांडू, श्वास रोगों में प्रयोग कियाजाता है। शुद्ध वांग को सम्पूर्ण प्राकर के प्रमेहों को नष्ट करने वाला कहा गया है। बंग भस्म का सेवन शरीर को बल देता है, इन्द्रियों को शक्ति देता है और पुरुषों के सभी अंगों को ताकत से भरता है तथा पुरुष होर्मोन का भी अधिक स्राव कराता है। यह मुख्य रूप से प्रजनन अंगों के लिए ही उपयोगी है। बंग भस्म वाजीकारक भी है।

शिलाप्रवंग प्रमेह रोगों की दवा है। इसे मधुमेह, बहुमूत्रता, पेशाब की जलन, मूत्राघात, स्वप्नदोष, तथा इरेक्टाइल डिसफंक्शन, में दिया जाता है। इसके सेवन से शरीर में वात और कफ संतुलित होते हैं। शिलाप्रवंग स्पेशल, में औषधीय द्रव्यों की संख्या और मात्रा अधिक है इसलिए यह गुणों और पोटेंसी में शिलाप्रवंग मौक्तिक युक्त से अधिक है। शिलाप्रवंग स्पेशल, मे मकरध्वज, अश्वगंधा, शतावरी, केवांच, अकरकरा जैसे कई वाजीकारक द्रव्य है जो इसे और गुणकारी बना देते हैं। रोगों के अनुसार दोनों में से कोई एक दवा ली जा सकती है।

यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में पारद, गंधक (मकरध्वज पारद और गंधक से बना हुआ होता है), खनिज आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए। इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Shilapravang (Mouktikyukta) is a Rasayan or tonic medicine which gives energy. It mainly works on Shukravaha Srotas and gives relief in burning sensation due to its cooling action. This medicine is useful in Prameha, Madhumeha, Shukrakshaya, Ojakshaya & Dhatushaithilya and benign type of Prostatitis.

Shilapravang Special is special Saptadhatu poshak, strength promoter and aphrodisiac. It supports formation of Sapta dhatu including Shukradhatu (Semen), in quality as well as quantity. It also increases the sustaining capacity. Shilapravang Special boosts Stamina, Vigour & vitality & relieves mental stress, anxiety, fatigue.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: मिनरल्स और हर्ब युक्त आयुर्वेदिक दवा
  • मुख्य उपयोग: प्रमेह रोग
  • मुख्य गुण: शक्तिवर्धक, पोषक, ओजवर्धक
  • मूल्य Price: Dhootpapeshwar Shilapravang Special tablet 30 @ Rs. 570.00

शिलाप्रवंग के घटक Ingredients of Shilapravang

शिलाप्रवंग (मौक्तिक युक्त)

प्रत्येक गोली में:

  1. शिलाजीत Shuddha Shilajit 30 mg
  2. प्रवाल पिष्टी Pravala Pishti 30 mg
  3. वंग भस्म Vanga Bhasma 30 mg
  4. मोती पिष्टी Mouktik Pishti 1 mg
  5. स्वर्णमाक्षिक भस्म Suvarnamakshik Bhasma 20 mg
  6. भीमसेनी कपूर Bhimseni Karpoor 20 mg
  7. वंशलोचन Vanshalochan 20 mg
  8. इलाइची Elaichi 10 mg
  9. गिलोय Guduchi Satva 50 mg
  10. गोखरू Gokshur 50 mg

शिलाप्रवंग स्पेशल

Each tablet contains –

  1. शिलाजीत Shuddha Shilajit 40 mg
  2. प्रवाल पिष्टी Pravala Bhasma 20 mg
  3. वंग भस्म Vanga Bhasma 20 mg
  4. स्वर्णमाक्षिक भस्म Suvarnamakshik Bhasma 20 mg
  5. गिलोय Guduchi Satva 20 mg,
  6. अश्वगंधा Ashwagandha 60 mg
  7. शतावरी Shatavari 15 mg
  8. गोखरू Gokshur 15 mg
  9. बला मूल Balamoola 15 mg
  10. आंवला Amalaki 10 mg
  11. अकरकरा Akarkarabh 10 mg
  12. जायफल Jatiphal 5 mg
  13. कपूर Karpoor 5 mg
  14. लताकस्तूरी Latakasturi beej 20 mg
  15. केवांच Kaunchbeej 90 mg
  16. मकध्वज Makardhwaj 10 mg
  17. स्वर्ण भस्म Suvarna Bhasma 1 mg
  18. मोती पिष्टी Mouktik Pishti 1 mg

शिलाप्रवंग के लाभ/फ़ायदे Benefits of Shilapravang

  1. यह दवा शक्तिवर्धक, ओज वर्धक और वाजीकारक है।
  2. यह पुरुषों के लिए सेक्सुअल टॉनिक है।
  3. शिलाप्रवंग (मौक्तिक युक्त) पेशाब सम्बन्धी रोगों में लाभकारी है। यह शुक्रवाहिनी स्रोतों पर काम करती है और शरीर को ठंडक देती है।
  4. शिलाप्रवंग स्पेशल में मकरध्वज, केवांच, अश्वगंधा आदि के होने से हर्बल वियाग्रा जैसे गुण हैं।
  5. शिलाप्रवंग स्पेशल वीर्यवर्धक है। यह इन्द्रिय की कमजोरी को दूर करने में सहयोगी है और नामर्दी को दूर करती है। यह प्रमेह की समस्या को दूर करती है। यह मानसिक तनाव, थकावट, आदि को दूर कर शरीर को ताकत देती है और सेक्स प्रदर्शन में सुधार लाती है।
  6. यह शीघ्रपतन, स्तंभन दोष, अनैच्छिक शुक्रपात, स्वप्नदोष में लाभप्रद है।

शिलाप्रवंग के चिकित्सीय उपयोग Uses of Shilapravang

शिलाप्रवंग (मौक्तिक युक्त) Shilapravang (Mouktikyukta)

  1. प्रमेह Prameha
  2. पेशाब में जलन Mootradaha
  3. मूत्रकृच्छ Mootrakrucchra
  4. शीघ्रपतन Premature ejaculation
  5. अष्ठीला Ashthila or enlargement of prostrate
  6. क्लैब्य, इसका अर्थ है शिश्न में हुई किसी व्याधि के कारण नपुंसकता Klaibya or Vandhyatva (Infertility / Impotency)
  7. दुर्बलता Dourbalya
  8. ओजक्षय Ojakshaya
  9. प्रमेह के कारण दिक्कतें complications of Prameha like burning sensation of hands & feet
  10. पौरष ग्रंथि का बढ़ जाना benign prostatitis

शिलाप्रवंग स्पेशल Shilapravang Special

  1. शुक्रक्षय Shukrakshaya (Decrease in Semen Quantity)
  2. शीघ्रपतन Premature ejaculation
  3. स्वप्नदोष Nocturnal emission
  4. इंद्री की शिथिलता Indriya Shaithilya (erectile dysfunction)
  5. दुर्बलता Dourbalya (Weakness) Manodourbalya / Dhatudourbalya
  6. क्लैब्य, Klaibya
  7. नामर्दी Purusha Vandhyatva

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Shilapravang

  • 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे दूध, पानी के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  2. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  4. यह दवा लम्बे समय तक नहीं ली जानी चाहिए।
  5. दवा को समान गुणों वाली हर्बल दवाओं के साथ संयोग में न लें।

जानिये वंग भस्म के लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव आदि के बारे में Vang Bhasma in Hindi

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वंग भस्म टिन अर्थात स्टेनम Stannum-Tin से बनती है। टिन को आयुर्वेद में दो तरह का माना गया है, हिरनखुरी या खुरक Pure tin (Kshuraka) और मिश्रक Impure tin (Mishraka meaning mixed)। हिरनखुरी बंग सफ़ेद, कोमल, स्निग्ध, जल्दी गलने वाला होता है। यह बंग भस्म बनाने के लिए उतम होता है। मिश्रक से भस्म नहीं बनाई जाती और इसे स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद माना गया है। बंग भस्म को आयुर्वेद में बताई गई विधि के द्वारा ही बनाया जाता है। भस्म निर्माण के लिए धातुओं का उत्तम तरीके से शोधन, मर्दन और मारण किया जाता है।

वंग भस्म का मुख्य प्रभाव मूत्र अंगों और जननांगों पर होता है। इसे पुरुषों और स्त्रियों के प्रजनन अंगों सम्बंधित रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह पुरुष की इन्द्रिय को ताकत देती है, शुक्र धारण में सहयोग करती है, वीर्य को गाढ़ा करती है तथा नामर्दी, शीघ्रपतन, पेशाब के साथ शुक्र जाना, स्वप्न में स्खलन, हस्तमैथुन आदि में रोगों को नष्ट करती है। इसे आयुर्वेद में शुक्रक्षय, स्वप्नमेह, शुक्र स्खलन, नपुंसकता की सर्वोत्तम औषधि माना गया है।

स्त्रियों में यह डिम्बकोशों को ताकत देती है, प्रदर की समस्या को ठीक करती है, और संतोपत्ति में सहायता करती है। बंग भस्म के सेवन से योनि और गर्भ से होने वाले, शरीर के किसी भी भाग से होने वाले आसामान्य स्राव रुकते हैं। इसके सेवन से शरीर में बल की वृद्धि होती है। यह वीर्य को बढ़ाती है। यह भूख को बढ़ाने वाली भस्म है। यह मूत्राशय की दुर्बलता को नष्ट करती है।

  • भस्म का नाम: वांग भस्म, बंग भस्म
  • वैज्ञानिक नाम: स्टेनम
  • रासयनिक चिन्ह: Sn

टिन के स्थानीय नाम

  • संस्कृत : Vanga, Ranga, Trapu
  • अंग्रेजी : Tin Pewter-calx
  • अरेबिक: Rasas, Abruz
  • पर्शिया: Urziz
  • हिंदी: Kathal, Ranga
  • बंगाली: Banga
  • गुजराती: Kalai
  • मराठी: Kaloi
  • तमिल: Tagaram
  • तेलुगु: Vendi

बंग भस्म के आयुर्वेदिक गुण और कर्म Ayurvedic Properties and Action of Vang Bhasma

वंग भस्म स्वाद में कड़वी, गुण में हल्की, रूखी है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।

यह तिक्त रस औषधि है। तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, जैसे की नीम, कुटकी। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है। यह कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत कफज रोगों का नाश करता है। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह पाक में लघु, बुद्धिवर्धक, रूक्ष और गले के विकारों का शोधक है। तिक्त रस के अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

  • रस (taste on tongue): तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रूक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
  • मूत्रकृच्छघ्न: द्रव्य जो मूत्रकृच्छ strangury को दूर करे।
  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए
  • बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
  • शुक्रल: द्रव्य जो शुक्र की वृद्धि करे।
  • पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
  • वाताघ्न: द्रव्य जो वात को कम करे।
  • शुक्रवर्धक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक

बंग भस्म के सेवन से होने वाले लाभ Health Benefits of Vanga Bhasma

  1. यह शरीर को पुष्ट करती है।
  2. यह अंगों को ताकत देती है।
  3. यह रूचि, पाचन, त्वचा की रंगत, बल आदि में वृद्धि करती है।
  4. यह रस, रक्त, ममसा, अस्थि और शुक्र धातु पर काम करती है।
  5. बंग को आयुर्वेद में हल्का, दस्तावर, और गर्म माना गया है।
  6. यह पित्तवर्धक है।
  7. यह कफ रोगों को नष्ट करती है।
  8. इसके सेवन से पेट के कृमि नष्ट होते हैं।
  9. यह खून की कमी अर्थात पांडू को दूर करती है।
  10. यह नेत्रों की ज्योति बढ़ाती है।
  11. यह मुख्य रूप से urinary organs, blood and lungs मूत्र – प्रजनन अंगों, रक्त और फेफड़ों सम्बंधित रोगों में लाभप्रद है।
  12. इसके सेवन से प्रमेह (पुराने जिद्दी पेशाब रोग, डायबिटीज आदि) दूर होते हैं।
  13. इसका मुख्य प्रभाव कफ दोष को कम करना है।
  14. यह दर्द निवारक है।
  15. यह गठिया में लाभकारी है।
  16. यह जीवाणुरोधी और रोगाणुरोधी है।
  17. यह सूजन को कम करने वाली द्व है।
  18. यह कामोद्दीपक है।
  19. यह पुरुषों के लिए प्रमेह, शुक्रमेह, धातुक्षीणता, वीर्यस्राव, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, नपुंसकता, क्षय आदि में लाभप्रद है।
  20. यह टेस्टिकल की सूजन को नष्ट करती है।
  21. यह इन्द्रिय को सख्ती देती है और वीर्य को गाढ़ा करती है।
  22. यह वातवाहिनी नसों, मांसपेशियों और इन्द्रिय की कमजोरी को दूर कर शुक्र के अनैच्छिक स्राव को रोकती है।
  23. यह स्त्रियों के लिए गर्भाशय के दोष, अधिक मासिक जाना, मासिक में दर्द, डिम्ब की कमजोरी आदि में लाभप्रद है।
  24. यह रक्त के दोषों को दूर करती है।

वंग भस्म निम्न रोगों में लाभप्रद है:

पुरुषों के रोग Male Disorders:

बीसों प्रकार के प्रमेह

  1. धातुक्षीणता
  2. पुरुषों का प्रमेह
  3. शुक्रमेह
  4. शीघ्रपतन
  5. स्वप्न दोष
  6. वीर्यस्राव
  7. किसी रोग के कारण शुक्रस्राव
  8. नपुंसकता
  9. गोनोरिया, सूजाक, उपदंश

स्त्रियों के रोग Female Disorders:

  1. स्त्रियों की प्रदर समस्या
  2. गर्भाशय के दोष
  3. मासिक की दिक्कतें
  4. संतानहीनता

पेशाब सम्बन्धी रोग Urinary Disorders:

  • बहुमूत्रता
  • पेशाब के साथ शुक्र जाना

अन्य रोग:

  • मोटापा
  • अस्थमा
  • अनीमिया
  • कास-श्वास, कोल्ड-कफ-खांसी
  • रक्त दोष
  • त्वचा दोष

बंग भस्म की औषधीय मात्रा Medicinal Doses of Vanga Bhasma

  • इस भस्म को लने की मात्रा 1 रत्ती = 125mg से लेकर 2 रत्ती = 250mg है।
  • इसे मुख्य रूप से अभ्रक भस्म और शिलाजीत के साथ अथवा गिलोय सत्त्व और शहद के साथ दिया जाता है।
  • रोगानुसार वंग भस्म का अनुपान भी भिन्न हो सकता है।

प्रमेह, शुक्रजन्य बहुमूत्रता, क्षीण शुक्र, अल्पशुक्र, शुष्कशुक्र, दुर्बल शुक्र, वीर्य की कमी आदि में में वंग भस्म को निरंतर एक महीने तक शिलाजीत चार रत्ती, गुडूची सत्व चार रत्ती में मिलाकर शहद के साथ चाटना चाहिए। अथवा

प्रमेह में एक रत्ती वंग भस्म को चार रत्ती हल्दी चूर्ण और एक रत्ती अभ्रक भस्म के साथ लेना चाहिए। अथवा

प्रमेह में एक रत्ती बंग भस्म को तुलसी के रस या पेस्ट के साथ के साथ लेना चाहिए।

  1. अनैच्छिक वीर्यस्राव, शुक्र का पतलापन, स्वप्नदोष, शुक्र की कमजोरी, आदि में वंग भस्म का सेवन मलाई के साथ करना चाहिए।
  2. स्वप्नदोष में वंग भस्म को इसबगोल की भूसी के साथ लेना चाहिए। अथवा एक रत्ती वंग भस्म को एक रत्ती प्रवाल पिष्टी, और चार रत्ती कबाब चीनी के चूर्ण में शहद मिलाकर लेना चाहिए।
  3. हस्त मैथुन, अप्राकृतिक मैथुन की आदत में वंग भस्म को प्रवालपिष्टी और स्वर्णमाक्षिक भस्म के साथ दिया जाता है।
  4. वीर्यस्तम्भन के लिए, एक रत्ती बंग भस्म को आधा रत्ती कस्तूरी के साथ देना चाहिए।
  5. सुजाक में इसे मोती पिष्टी, रुपया भस्म, इला और वंशलोचन के साथ दिया जाता है।
  6. नपुंसकता में एक रत्ती बंग भस्म को अपामार्ग चूर्ण के साथ लेना चाहिए।
  7. शुक्र धातु के पतलेपन में बंग भस्म को मूसली चूर्ण के एक महीने तक निरंतर सेवन करना चाहिए।
  8. स्त्रियों की सफ़ेद पानी की समस्या, डिम्ब की निर्बलता, इनफर्टिलिटी में इसे शृंग भस्म के साथ मिलाकर दिया जाता है।
  9. श्वेत प्रदर में बंग भस्म को लोह भस्म, शुक्ति भस्म के साथ दिया जाता है।
  10. रक्तपित्त में वंग भस्म को प्रवाल पिष्टी के साथ दिया जाता है।
  11. मानसिक कमजोरी में वंग भस्म को ब्राह्मी अवलेह और अभ्रक भस्म के साथ लेना चाहिए।
  12. अग्निमांद्य में इसे दो रत्ती पिप्पली चूर्ण और शहद के साथ लेना चाहिए।
  13. शरीर के बल को बढ़ाने के लिए इसे दो रत्ती जायफल के चूर्ण और शहद के साथ लेना चाहिए।
  14. पांडू रोग में एक रत्ती वंग भस्म को दो रत्ती मंडूर भस्म, त्रिफला और शहद के साथ लेना चाहिए। अथवा इसे गो घृत में मिलाकर खाना चाहिए।
  15. मुख पर झाइंयां होने पर, काले दागों पर बंग भस्म को हल्दी, केसर, और दूध में मिलाकर उबटन बना कर चेहरे पर लगाते हैं।

उपलब्धता Availability

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  • बैद्यनाथ Baidyanath Vanga Bhasma Price: 5gm @ Rs. 58.00
  • रसाश्रम Rasashram Bang Bhasma Price: 5gm @ Rs. 60.00 और 10gm @ 110.00
  • दिव्य फार्मेसी Divya Pharmacy वंग भस्म (र.त.सा.) 5gm @ ₹25.00
  • श्री धूतपापेश्वर SDL Vanga Bhasma 10 gm @ Rs 159.00
  • भारत आयुर्वेदिक वर्क्स Bharat Ayurvedic Work Bang Bhasma आदि।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  • इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  • इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  • यह हमेशा ध्यान रखें की जिन आयुर्वेदिक दवाओं में पारद, गंधक, खनिज आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।
  • इसका अधिक सेवन पेट में जलन कर सकता है क्योंकि यह कुछ पित्तवर्धक है।

एलारसिन बंगशील Alarsin Bangshil Tablets Detail and Uses in Hindi

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एलारसिन बंगशील टेबलेट में अलार्सिन द्वारा निर्मित एक आयुर्वेदिक दवाई है जिसमें प्रमुख घटक बंग भस्म और शिलाजीत है। इसके अतिरिक्त इसमें बहुत से अन्य महत्वपूर्ण घटक, जैसे की गुग्गुलु, स्वर्ण माक्षिक, काशीश भस्म, दालचीनी, तेजपत्ता, दंतिमूल, निशोथ, एला, त्रिफला, त्रिकटु, आदि भी है। यह दवाई यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, यूटीआई, जिसे पेशाब का इन्फेक्शन भी कहते हैं, में बहुत लाभकारी है। इसके अतिरिक्त यह पेशाब-मूत्रमार्ग सम्बन्धी अन्य समस्याओं और प्रोस्टेट बढ़ने में भी अच्छे परिणाम देती है।

पेशाब का इन्फेक्शन, वह स्थिति है जिसमें पेशाब करने पर जलन-दर्द, होता है, बुखार आता है और बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है। यह समस्या बड़े से लेकर बच्चों, सभी को कभी न कभी परेशान करती है। कुछ लोगों में यह समस्या बार-बार होती है। बंगशील का प्रयोग नए और पुराने, दोनों ही प्रकार के मूत्र के इन्फेक्शन में लाभप्रद है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Bangshil is a proprietary Ayurvedic medicine from Alarsin and it is effective medicine to treat acute or chronic cases of UTI.In acute cases it is given for 3-7 days and in chronic cases for three weeks.As this medicine contain mineral and metallic ingredients, therefore it should be taken in medical supervision.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: एलारसिन फार्मास्यूटिकल्स
  • मुख्य उपयोग: जेनिटोयुरनेरी – जननमूत्रीय पथ के रोग
  • मूल्य एलारसिन बंगशील गोलियाँ (100 टेबलेट्स): INR 212.00

एलारसिन बंगशिल के घटक Ingredients of Alarsin Bangshil Tablets

Each Tablet Contains (mg.)

  1. शिलाजीत Shllajit (Asphaltum) – 60.00
  2. बंग भस्म Bang Bhasma (S.Y.S.158) 7 Puta – 40.00
  3. गुग्गुल Guggul (Commlphora Mukul) – 40.00
  4. स्वर्णमाक्षिक Swarn Makshik Bhasma (A.F.I.157) 10 Puta – 30.00
  5. कसीस Kasis Bhasma (S.Y.S.163) 1Puta – 30.00
  6. दालचीनी Taj (Cinnamomum (Zeylanlcum) – 12.00
  7. तेजपत्ता Tamal Patra (Chnamomum Tamala) – 12.00
  8. दंतीमूल Dantimool (Baliospermum Montanum) – 12.00
  9. त्रिवृत Nishotar (Ipomoea Turpethum) – 12.00
  10. छोटी इलाइची Elaichi (Elettaria Cardamomum) – 9.00
  11. बांस Vanskapoor (Bambusa Arondlnacea) – 6.00
  12. चन्दन Chandan Tel (Santalum Album) – 3.00
  13. संचल Sanchal (Unaqua Sodlum Choride) – 3.00
  14. गिलोय Guduchi (Tinospora Cordifolla) – 3.00
  15. विडंग Vavding (Embelia Ribes) – 3.00
  16. गज पिप्पल Gaj Pipal (Sclndapsus Officinalls) – 3.00
  17. चव्य Chavak (Piper Chaba) – 3.00
  18. आंवला Amala (Embllca Officlnalls) – 3.00
  19. हरड़ Harde (Teminalla Chebula) – 3.00
  20. बहेड़ा Baheda (Teminalla Belerica) – 3.00
  21. सैन्धव Sindhav (Sodii Chloride) – 3.00
  22. सज्जिक्षार Sajikhar (Sodium Carbonate) – 3.00
  23. यवक्षार Javkhar (Potasil Carbonas) – 3.00
  24. पिप्पली Pipar (Piper Longum) – 3.00
  25. कालीमिर्च Kali Marich (Piper Nigrum) – 3.00
  26. सोंठ Sunth (Zingiber Officinale) – 3.00
  27. चित्रक Chltrak Mool (Plumbago Zeylanlca) – 3.00
  28. पिप्पली Ganthoda (Piper Longa) – 3.00
  29. हल्दी Haldi (Curcuma Longa) – 3.00
  30. दारूहल्दी Daru Haridra (Berberis Aristata) – 3.00
  31. अतिविष Ativishkali (Aconitum Heterophyllum) – 3.00
  32. देवदारु Devadaru (Cedrus Deodara) – 3.00
  33. नगर मोथा Nagar Moth (Cyperus Rotundus) – 3.00
  34. चिरायता Kariyattu (Swertia Chirata) – 3.00
  35. वच Vachha (Acorus Calamus) – 3.00
  36. करचूर Kachura (Curcuma Zedoarta) – 3.00
  37. भोल पथरी Bhol Pathari (launnaea Pinnatiflda) – 3.00
  38. श्वेत सरिवा Upersari (Hemidesmus Indicus) – 3.00
  39. चिभदा Chibhada Magaj (Cucumis Species) – 3.00
  40. वरुण Vayavarna Chhal (Crataeva nurvala) – 3.00
  41. सेमल Shimal Mool (Bomax Malabaricum) – 3.00
  42. रेणुका बीज Renuk Beej (Piper Cubeb) – 3.00
  43. मुलेठी Jeshtimadha (Glycyrrhiza Glabra) – 3.00
  44. गलिजिभी Galijibhi (Elephantopus Scaber) – 3.00
  45. कबाब चीनी Chinikabab (Piper Cubeb) – 3.00
  46. गोखरू Gokshura (Tribulus Terrestris) – 3.00
  47. भृंगराज Bhangra (Eclipta Alba) – 3.00
  48. सहजन की जड़ Sahianjana Mool (Moringa Olelfera) – 3.00
  49. Exciplents – q.s.

एलारसिन बंगशिल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Alarsin Bangshil Tablets

  1. यह पेशाब के इन्फेक्शन में 2-3 दिन में लक्षणों से राहत देता है और बैक्टीरिया को 2-3 सप्ताह के भीतर साफ करता है।
  2. यह जीवाणुओं के प्रति एंटीबायोटिक दवाओं की संवेदनशीलता में सुधार करता है।
  3. गंभीर मामलों में, इसे एलोपैथी की दवाइयों के साथ लिया जा सकता है।
  4. यह सामान्य स्वास्थ्य में सुधार करता है।
  5. यह लंबी अवधि के उपयोग के लिए सुरक्षित दवा है।
  6. एलारसिन बंगशिल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Alarsin Bangshil Tablets
  7. पेशाब में क्रिस्टल Crystalluria (crystals found in the urine)
  8. मूत्राशय की सूजन Cystitis (inflammation of the urinary bladder)
  9. बार बार पेशाब की इच्छा Frequent Micturition (frequent desire to urinate)
  10. मूत्र में ओक्सालिक एसिड Oxaluria (oxalic acid or oxalates, especially calcium oxalate, in the urine)
  11. मूत्र में फॉस्फेट Phosphaturia (phosphates in the urine)
  12. प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन Prostatitis (swelling and inflammation of the prostate gland)
  13. श्रोणि के सूजन Pyelitis (inflammation of the renal pelvis)
  14. जीवाणु संक्रमण के परिणामस्वरूप गुर्दे की सूजन Pyelonephritis (inflammation of the kidney as a result of bacterial infection)
  15. मूत्रमार्ग की सूजन Urethritis (inflammation of the urethra)
  16. यूटीआई, कम पेशाब, पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, पेशाब में दर्द-जलन (burning urination, scanty urination, pressure on lower abdomen, fever/chills, dark-smelly urine)
  17. महिलाओं में, पुराना योनिशोथ योनि स्राव, खुजली और दर्द In Females, Chronic vaginitis (inflammation of the vagina resulting in result in discharge, itching and pain), asymptomatic bacteriuria of pregnancy (occurrence of bacteria in the urine without causing symptoms), after instrumentation।
  18. Enlarged Prostate & Post-prostatectomy Syndrome: BANGSHIL + FORTEGE relieves hesitancy, frequency, urgency burning micturition

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Alarsin Bangshil Tablets

  • यह दवा डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में ही लें।
  • बड़े 2 गोली, हर आठ घंटे पर लें।
  • बच्चों (पांच साल से बड़े) को यह दवा 1 गोली की मात्रा में हर आठ घंटे पर दी सकती है।
  • इसे पानी के साथ लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  2. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  4. गर्भावस्था में बिना डॉक्टर की सलाह के इसे न लें।
  5. यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में खनिज, धातु आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

जानिये गुड़ के फायदे Jaggery (Gur or Gud) in Hindi

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गुड़ को तो हम सभी जानते हैं। भारतीय भोजन में कुछ दशक पहले तक इसका महत्वपूर्ण स्थान था। पहले तो सभी लोगों के घर में गुड़ मिल भी जाता था और बड़े चाव से खाया भी जाता था। आधुनिक समय में हम सभी पुरानी अच्छी वस्तुओं को छोड़, अहितकर वस्तुएं अपनाते जा रहें हैं। इसी श्रंखला में हमने अब गुड़ का सेवन भी लगभग छोड़ दिया है और इसके स्वास्थ्य लाभों को भी भूलते जा रहे हैं। यदि यह खाया भी जाता है तो सर्दियों में, पट्टी की तरह। अब हमारी रसोईं में चीनी ही एक मात्र मिठास से भरी वस्तु है। शायद इन्ही कारणों से हम डायबिटीज जैसे गंभीर और जटिल रोगों से भी घिरते जा रहें हैं। आज ज़रूरत है हम अपने प्राचीन ज्ञान की ओर देखे और उसे अपना कर फिर से अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं।

ईख जिसे गन्ना भी कहते हैं Saccharum Officinarum, का रस जब भली-भाँति पकाकर दृढ़ (गाढ़ा) कर दिया जाता है, गुड़ कहलाता है। संस्कृत यह गुड़, गुड़क, तथा रसाल कहलाता है।

gud ke aushadiy upyog
By Giridhar Appaji Nag Y (Flickr: 20071130_123242) [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons
आयुर्वेद में गुड़ को गुणों का भण्डार कहा गया है। यह वीर्यवर्धक, स्निग्ध, वातनाशक, मूत्र को शुद्ध करने वाला, और बलवर्धक है। इसमें बहुत से पोषक पदार्थ होते हैं। इसमें लोहा, गंधक, कैल्शियम, पोटैशियम, मैंगनीज, मैगनिशियम, विटामिन्स समेत कई खनिज भी विद्यमान होते है। गुड और चीनी दोनों ही गन्ने से बनते हैं, लेकिन चीनी के बनने के दौरान जहां पोषकता नष्ट हो जाती है वही गुड़ में उसकी मिठास के सस्थ पौष्टिकता भी बनी रहती है।

आयुर्वेद के अनुसार पुराना गुड़ अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है। आयुर्वेदिक के आसव-अरिष्ट बनाते समय गुड के घोल में ही किण्वन किया जाता है। इसलिए पढ़े, जाने और अपनाएँ गुणवर्धक गुड़ को अपने भोजन में।

गुड़ किससे और कैसे बनता है?

गुड़ गन्ने के रस को पका कर बनाया जाता है। सबसे पहले गन्नों को साफ़ किया जाता है। फिर इनकी पेराई करके रस निकाला जाता है। यह रस एक बर्तन में डाल कर भट्टी पर पकाया जाता है। उबलते हुए इसमें ऊपर झाग आता है जिसे अलग कर लेते हैं, इस प्रकार कुछ घंटे उबलने के बाद गुड़ बना जाता है।

गुड़ की चाय बनाने की विधि क्या है?

गुड़ वाली चाय बनाने के लिए आपको को चीनी की जगह बस गुड़ का प्रयोग करना है।

पानी को उबालें इसमें गुड़ डाल दें। साथ ही में ताज़ा अदरक ग्रेट करके या सूखा अदरक पाउडर जिसे सोंठ कहते हैं डाल दें। इसमें तुलसी के दस पत्ते, तेज पत्ता, काली मिर्च के कुछ दाने, तेज पत्ता, दालचीनी, छोटी इलाइची, आदि सभी कूट कर डाल दें और दस मिनट पका लें। इसमें फिर चाय की पत्तियां डाल दें और उबालें। अब दूध डाल लें और छान कर पियें। इअमें यदि चाहें तो चाय की पत्ती बहुत ही कम डालें।

स्थानीय नाम

  1. संस्कृत: गुड़, रसाल
  2. हिंदी, बंगाली: गुड़
  3. अंग्रेजी: Jaggery, Coarse Sugar, Guda, or Gura, Gur
  4. मराठी: गूल
  5. गुजराती: गोड
  6. कन्नड़: हेसुरु
  7. तमिल: Vellum
  8. तेलुगु: Bellam

आयुर्वेद में गुड़ का प्रयोग

आसव-अरिष्ट, लेह, मोदक आदि बनाने के लिए तथा वात-पित्त-कफ रोगों के उपचार में अनुपान की तरह

गुड़ के अन्य प्रकार

खजूर से बना गुड़, ताड़ के रस से बना गुड़

आयुर्वेद में बताये गुड़ के गुण

  • सामान्य गुण: मीठा, गरम, वीर्यवर्धक, भारी, स्निग्ध, वातनाशक, मूत्र शोधक, बलवर्धक तथा कफ, मेद और कृमिवर्धक।
  • पुराना गुड़: यह गुड़ एक वर्ष से अधिक पुराना होता है। औषधीय प्रयोजन के लिए पुराना गुड़ प्रयुक्त होता है। यह हल्का, पथ्य, अग्निवर्धक, पित्तनाशक, मधुर, वृष्य, वातशामक, और रक्त साफ़ करने वाला है।
  • नवीन गुड़: यह कफ, श्वास, खांसी, कृमि और अग्निवर्धक है।

अनुपान भेद से गुड़ के गुण

  • अदरक के साथ खाए जाने पर गुड़ कफनाशक है।
  • हरड़ के साथ खाया गुड़ पित्तनाशक है।
  • सोंठ के साथ खाया गुड़ सभी वातरोगों का नाशक है।
  • इसप्रकार यह वात-पित्त-कफ के कारण होने वाले रोगों में लाभप्रद है।

गुड़ खाने के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits of Jaggary in Hindi

  1. गुड़ स्वास्थ्य के लिए हितकारी है।
  2. यह तासीर में गर्म है।
  3. इसके सेवन से शरीर में कफ दोष कम होता है।
  4. यह शरीर को काम करने की ऊर्जा देता है।
  5. यह अस्थमा, कफ रोगों, गले के रोगों, पेट के अफारे आदि में लाभ करता है।
  6. यह खून की कमी को दूर करता है।
  7. यह थकान को दूर करता है।
  8. यह वीर्यवर्धक और पौष्टिक है।
  9. इसे खाने से भूख लगती है।
  10. यह अजीर्ण को दूर करता है।
  11. यह पेट में गैस बनने को रोकता है।
  12. यह हृदय को ताकत देता है।
  13. गुड़ पेशाब की रुकावटों को दूर करता है।
  14. यह हिचकी में आराम पहुंचता है।
  15. यह आयरन का अच्छा स्रोत है। खून की कमी हो तो इसका सेवन नियमित करें।
  16. इसमें कैल्शियम होता है जो बच्चों और महिलायों के लिए विशेष उपयोगी है।
  17. भोजन करने के उपरान्त नियमित गुड़ खाने से निम्न और उच्च दोनों ही रक्तचाप में लाभ होता है।
  18. यह रक्त की अम्लता को दूर करता है।
  19. यह हर मौसम में खाया जा सकता है।

गुड़ के औषधीय प्रयोग Medicinal uses of Jaggery

गुड़ का सेवन आप बहुत से रोगों में कर सकते है। दवा की तरह पुराने गुड़ का प्रयोग ही किया जाना चाहिए।

पीलिया

गुड़ को सोंठ के साथ खाने से लाभ होता है।

तिल्ली के बढ़ जाने में

गुड़ को हरीतकी के साथ खाने से लाभ होता है।

खट्टी डकारें

गुड़ को सेंधा नमक के साथ चाटने पर खट्टी डकार आना बंद होता है।

मासिक की समस्या

  1. गुड़ का सेवन मासिक के दौरान होने वाले दर्द को कम करता है।
  2. गुड़ के साथ सौंफ खाने से महिलाओं का मासिक धर्म नियमित होता है।

खून की कमी

गुड़ लोहे का अच्छा स्रोत है और खून की कमी को दूर करता है।

कफ, जोड़ों का दर्द

  1. गुड़ को अदरक के साथ खाने पर कफ कम होता है, तथा जोड़ों के दर्द से भी राहत मिलती है।
  2. गला यदि सूख जाता हो, खराश हो, गुड़, अदरक और घी मिलाकर सेवन करें।
  3. जुखाम हो जाए तो आधा कप पानी में आठ-दस काली मिर्च के दाने, चौथाई चम्मच जीरा पाउडर और गुड़ डाल कर गर्म करें और पी लें।
  4. गुड़ की चाय बनाकर पियें।

गले की खराश

गुड़ को चावल के साथ खाने से गला खुलता है।

अस्थमा

गुड़ और काले तिल के लड्डू के सेवन से जाड़ें में हुई अस्थमा की परेशानी दूर होती है। इसका सेवन शरीर को गर्मी देगा। यह अस्थमा, जुखाम-खांसी-कफ रोगों, थकावट आदि को भी दूर करेगा।

पाचन समस्याएं

  • गुड़ को भोजन के बाद खाने से गैस नहीं बनती। यदि भोजन के बाद गैस बनती है, पेट के विकार हैं, अजीर्ण है तो भोजन के बाद दस-बीस ग्राम गुड का सेवन अवश्य करें।
  • शरीर में यदि पित्त की अधिकता हो तो गुड़, घी और हरड़ चूर्ण का सेवन करना चाहिए।
  • पेट में अत्यधिक गैस हो, वायु गोला हो, अथवा कब्ज़ हो तो गुड़ और हरड़ सेवन लाभप्रद है।
  • भोजन पचने में दिक्कत हो तो खाने के बाद गुड़ को अजवाइन के चूर्ण के साथ खा लें।
  • कब्ज़ हो तो गिलोय के रस का सेवन गुड के साथ करे।

आधासीसी

यदि प्रायः माइग्रेन के दर्द से परेशान रहते हों, तो जब दर्द होने की सम्भावना हो तो सुबह उठ कर दस ग्राम गुड़ को पांच ग्राम देसी घी के साथ खाएं। अथवा गुड़ को सोंठ मिलाकर लें।

पेट में कीड़े

पेट में कीड़े होने पर, किसी भी कृमिनाशक दवा के सेवन के कुछ घंटे पहले दस ग्राम गुड खा लें। यह कृमियों को नष्ट करने में सहायक होगा।

पेशाब की दिक्कत

  • पेशाब कम आता हो, रुक-रुक कर आता हो, दर्द हो तो गिलास भर दूध में गुड़ मिलाकर तीन-चार दिन लें।
  • पेशाब बार-बार आता हो, गन्दा हो तो गुड़ को हल्दी के चूर्ण के साथ सेवन करें।
  • बहुमूत्रता हो तो तिल और गुड़ का लड्डू खाएं।

वात-पित्त रोग

गुड़ को हरड़, सोंठ / सेंधा नमक के साथ लेने पर वात और पित्त रोग दूर होते हैं, भूख और पाचन की वृद्धि होती है।

हिचकी

हिचकी अधिक आ रही हो तो गुड़ में हींग मिलाकर सेवन करें।

बवासीर

बवासीर की समस्या में गुड़ और हरड़ का सेवन करें।

बिस्तर गीला करना

बच्चे यदि बिस्तर गीला करते हो तो उन्हें गुड़ का सेवा अवश्य कराएं।

चमड़ी में कुछ धंस जाने पर

चमड़ी में काँटा, पत्थर, कांच आदि धंस गया हो, गुड़ और अजवाइन गर्म करके पुल्टिस बांधे।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. गुड़ का सेवन डायबिटीज में न करें। इसमें 60% सुक्रोज़ और 22% ग्लूकोस होता है।
  2. यदि डायबिटीज में शुगर लेवल कण्ट्रोल है, और आप कम चीनी वाली चाय पी सकते हों तो उसमें आप गुड डाल सकते हैं।
  3. यदि रक्तचाप की समस्या के साथ डायबिटीज है तो इसका सेवन न करे।
  4. गुड़ या मीठा खाने से पेट के कृमि बढ़ते हैं।
  5. यह मेदवर्धक है। ज्यादा समय तक लगातार इसका सेवन वज़न बढ़ाता है।
  6. अल्सरेटिव कोलाइटिस में गुड का सेवन न करें।
  7. शरीर में सूजन हो तो गुड का सेवन न करें।

मासिक के दर्द के लिए मेफ्टाल स्पास MEFTAL SPAS Detail and Uses in Hindi

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मेफ्टाल स्पास एक एलोपैथिक दवाई है जिसमें मेफेनेमिक एसिड और डाइसाईक्लोमीन होते हैं। यह दवा ब्लू क्रॉस द्वारा निर्मित है और ऑनलाइन तथा केमिस्ट दुकानों में सरलता से उपलब्ध है।

इस दवा में मेफेनेमिक एसिड और डाइसाईक्लोमीन का संयोजन है जो की आक्षेपनाशक antispasmodic और एनाल्जेसिक है। इसके सेवन से ऐंठन के साथ होने वाले दर्द में बहुत आराम होता है। यह मुख्य रूप से माहवारी में जब ऐंठन के साथ दर्द (spasmodic dysmenorrhea अकड़नेवाला कष्टार्तव) उठता है, तब लेने के लिए है। इसके अतिरिक्त इस दवा को आंतों में दर्द, पेट का दर्द, बाईलरी कोलिक और युरेटेरिक कोलिक ureteric colic (pain caused by the obstruction of the urinary tract by calculi) के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। इस दवा को अन्य दर्द वाली स्थितियों में चिकित्सक द्वारा निर्धारित मात्रा में लिया जा सकता है।

ब्लू क्रॉस द्वारा इसका प्रचार लड़कियों के कई स्कूलों में भी किया गया है जिससे वह जागरुक हो सकें और मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द से राहत पा सकें। कई लड़कियों और स्त्रियों में पीरियड्स के दौरान बहुत ही भयानक दर्द होता है जो की कई बार बर्दाशत के बाहर लगता है। उस समय वह किसी भी तरह का काम नहीं कर पाती और पूरे दिन परेशान रहती हैं। यदि ऐसे में इस दवा की वह एक गोली लेती हैं तो इस कष्ट में बहुत आराम हो जाता है।

Meftal Spas is allopathic medicine useful in treatment of pain during menstruation / spasmodic dysmenorrhea. It has antispasmodic and analgesic action and reduces the severity of pain.

Meftal Spas is combination of dicyclomine hydrochloride 10 mg and mefenamic acid 250 mg. Along with painful periods it is also given in other spasmodic pain conditions such as intestinal colic, biliary colic, and ureteric colic. This medicine may also be used to treat other conditions.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • दवा का प्रकार: एलोपैथिक दवाई ALLOPATHIC MEDICINE
  • ब्रांड का नाम : ब्लू क्रॉस
  • जेनरिक: Mefenamic Acid 250mg and the anti-spasmodic Dicyclomine 10mg
  • क्लास: एंटी-स्पासमोडिक

मूल्य

MEFTAL-SPAS 10 tablets: Rs. 29.00

MEFTAL-SPAS DS (डबल स्ट्रेंग्थ dicyclomine hydrochloride 20 mg, mefenamic acid 500 mg) 10 tablets: Rs. 32.00

मेफ्टाल स्पास की प्रेगनेंसी केटेगरी:

मेफेनेमिक एसिड Mefenamic Acid : केटेगरी सी C – पशु प्रजनन के अध्ययन से भ्रूण पर प्रतिकूलadverse प्रभाव दिखा। गर्भवती महिलाओं पर कोई पर्याप्त, नियंत्रित अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन संभावित लाभ तथा संभावित जोखिम को तौलते हुए इसको डॉक्टरों द्वारा गर्भावस्था में प्रयोग किया जा सकता है। और केटेगरी डी D – मानव भ्रूण पर इस दवा का प्रतिकूल असर positive evidence of human fetal risk होता है।

डाइसाईक्लोमीन Dicyclomine: केटेगरी बी B – गर्भवती महिलाओं पर कोई पर्याप्त, नियंत्रित अध्ययन नहीं किया गया है। पशु प्रजनन पर किये गए अध्ययन भ्रूण के लिए खतरा failed to demonstrate a risk to the fetus नहीं दिखा सके।

मेफ्टाल स्पास के घटक Ingredients of Meftal Spas tablet

Meftal Spas: Mefenamic Acid 250mg and the anti-spasmodic Dicyclomine 10mg

MEFTAL-SPAS DS डबल स्ट्रेंग्थ: dicyclomine hydrochloride 20 mg, mefenamic acid 500 mg

मेफेनेमिक एसिड Mefenamic Acid, दर्द और सूजन को दूर करने में प्रयोग की जाती है। यह एक नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी Nonsteroidal Anti-Inflammatory Drugs (NSAIDs) दवा है। इसे खाना खाने के बाद लिया जाता है। इसे Contraindications आँतों में सूजन, पेट के अल्सर, अस्थमा, रैशेज़, एलर्जी, आदि में नहीं लेना चाहिए।

डाइसाईक्लोमीन Dicyclomine पेट और आँतों में क्रेम्पिंग कम करती है। यह पेट की और आँतों की गतिशीलता को कम करती है और मांशपेशियों को आराम देती है जिससे ऐंठन में आराम होता है।

यह दवा शिशुओं को कभी नहीं दी जाती क्योंकि इसके गंभीर साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं।

मेफ्टाल स्पास के चिकित्सीय उपयोग Uses of Meftal Spas tablet

  1. यह दवा आँतों और पेट ( जिसे जठरांत्र अथवा गैसट्रोइनटेस्टाईनल ट्रैक्ट भी कहते हैं) की मांसपेशियों की ऐंठन से राहत देती है।
  2. दर्द, कोलिक Gastro-intestinal colic
  3. बाईलरी कोलिक Biliary colic
  4. युरेटेरिक कोलिक Ureteric colic
  5. पीरियड के दौरान होने वाली ऐंठन, दर्द Spasmodic dysmenorrhea, Dysmenorrhea

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Meftal Spas tablet

  1. इस दवा की एक गोली दिन में तीन बार लें अथवा मासिक के दर्द में ज़रूरत अनुसार लें।
  2. इसे पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के पहले/बाद लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. अन्य दवाओं की तरह, इसके भी कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
  2. लेकिन यह दुष्प्रभाव बहुत कम और अस्थायी होते हैं।
  3. इसके सेवन के बाद कुछ लोगों में चक्कर आना, थकान, शुष्क मुँह, धुंधला दिखना,उल्टी, सिर दर्द, और कब्ज हो सकता है।
  4. यह साइड इफेक्ट की पूरी सूची नहीं है।

इसे Intestinal obstruction, intestinal atony, myasthenia gravis, glaucoma reflux oesophagitis, lactation आँतों में रुकावट; आंतों की कमजोरी; मियासथीनिया ग्रेविस; ग्लूकोमा, और स्तनपान कराने के दौरान नहीं लें।

बच्चों की पहुच से दूर रखें।

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