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दवाएं जो मासिक को कुछ दिन टाल देती हैं Allopathic Medicines to Delay Periods in Hindi

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माहवारी चक्र (माहवारी पीरियड्स, मासिक धर्म, मेंसेस, रजोधर्म Menstrual cycle) सामान्यतः हर महीने 28 से 32 दिनों के अंतर पर में हर किशोर लड़की और महिला को होता है। कई बार कुछ स्थितियां हो जाती हैं जब उन्हें अपने पीरियड्स की एक्सपेक्टेड डेट को आगे बढ़ाने की ज़रूरत महसूस होती है, जैसे वे कही घूमने गई हैं, या शादी है, या कोई अन्य कारण। इस पेज कुछ ऐसी ही दवाओं के नाम और जानकारी देने की कोशिश की गई है जो की मासिक धर्म की डेट को आगे बढ़ा देती हैं।

इस पेज पर एलोपैथिक दवा के बारे बताया गया है जो की केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है।

क्योंकि यह एलोपैथिक दवाई है, इसलिए इसके बहुत से साइड इफेक्ट्स भी है।

इस जानकारी का प्रयोग सेल्फ-मेडिकेशन के लिए न करें।

प्रिस्क्रिप्शन ड्रग: ℞ निशान का मतलब है "प्रिस्क्रिप्शन"। यह सिंबल लैटिन भाषा में प्रयोग किये जाने शब्द recipere का संक्षिप्त नाम है जिसका शाब्दिक मतलब है "लेने के लिए" या "इस प्रकार लें"।

Norethisterone is available in market as generic medicine and also from many pharmaceutical companies. Norethisterone 5mg, is used mainly in case of menstrual problems. It is also indicated to delay periods for maximum upto 17 days. After stopping the medicine periods occur after 2-3 days. Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

जेनरिक: नॉरथिस्टेरॉन / नोरथिस्टेरॉन

नॉरथिस्टेरॉन, महिलाओं में स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले महिला सेक्स हार्मोन प्रोजेस्टेरोन का एक सिंथेटिक रूप है । यह मासिक धर्म संबंधी विकारों प्रयोग किया जाता है। कई ब्रांड और एक जेनेरिक दवा के रूप में यानी बिना ब्रांड नाम के भी यह दवाई उपलब्ध है।

नीचे कुछ दवाओं के नाम दिए गए हैं, जो की पीरियड्स को निश्चित डेट पर आने से रोकती हैं और इसे कुछ दिनों के लिए आगे बढ़ा देती हैं। इन सभी दवाओं का नाम और ब्रांड अलग है, लेकिन सभी का सक्रिय घटक केवल एक नोरथिस्टेरॉन (Norethisterone) है। इस दवा का जेनेरिक नाम नोरथिस्टेरॉन है। इनमें से कोई भी एक दवा ली जा सकती है। पहले निर्माता का नाम दिया गया है और फिर उसका स्पेसिफिक नाम।

हर दवा का सक्रिय संघटक / कम्पोजीशन: नॉरथिस्टेरॉन / नोरथिस्टेरॉन 5mg

Norethisterone 5 mg as generic medicine

  1. Accilex PRIMACCI-N
  2. Alpic Biotech NORPIC
  3. Altar ALTRON
  4. Archicare DUBNOR
  5. Auriga POLWAT
  6. Bal Pharma AMENOVA
  7. Bewell PERLUTAL
  8. Biomiicron MENSIL-N
  9. Blubell REGBEL
  10. Cipla GYNUT-N
  11. Cipla NORLUT-N
  12. Corona Aarush NOSTRA
  13. Cronus CRONER
  14. Dewcare NORATE
  15. Dewcare NORATE-A
  16. East West POSTPON
  17. Fitwel PRIMOFIT-N
  18. Glenmark NORGLEN
  19. Intas PREVENT-N
  20. Intra Intra Life NORDART
  21. Intra Labs NORFAST
  22. Invision GYNEROL-N
  23. Lincoln PROLIN-N
  24. Mankind Discovery GYNASET
  25. Micro Nova NORGEST
  26. Novartis REGESTRONE
  27. Novo Nordisk NORDIROPIN SIMPLEX
  28. Obsurge DUB-5
  29. Olcare Evacare MENOR-N
  30. Sayona PRIMONA-N ZHPL
  31. Shinto Biotec TERON
  32. Solitaire Euro THEGEST-N
  33. Solitaire PREGFAST-N
  34. Speciality Meditech STERNIL
  35. Systopic SYSRON-N
  36. Treatwell NORTON
  37. Triton COROLUT-N
  38. Walter Bushnell MARTINOR
  39. West-Coast NYNA
  40. Xeno ENSCRAP-CR
  41. Zee Lab TRITO N
  42. Zota PRIMZED-N
  43. Zydus G.Rem RELICALFIN DS
  44. Zydus PRIMOLUT-N प्रिमोलुट एन
  45. Zydus STYPTIN

नॉरथिस्टेरॉन की प्रेगनेंसी केटेगरी:

केटेगरी एक्स X – मानव तथा पशुओं में किये गए अध्ययन, होने वाले बच्चों में असामान्यताओं fetal abnormalities को दिखाते है। इसका प्रयोग गर्भावस्था में वर्जित है।

नॉरथिस्टेरॉन के चिकित्सीय उपयोग Uses of Norethisteronetablet

1. पीरियड को आगे बढ़ाने के लिए 5 mg दिन में तीन बार 3 times/day, पीरियड की एक्सपेक्टेड डेट से तीन दिन पहले से लेना शुरू करें।

2. पीएमएस Premenstrual syndrome such as headache, migraine, breast discomfort, water retention or changed behavior before a period is due में इसे दिन में तीन बार मासिक धर्म के 16-25 दिन पर लिया जाता है।

3. पीरियड में अधिक खून जाना Menorrhagia or abnormal, heavy or continuous bleeding from the uterus (womb) not related to a period. यदि पीरियड में अधिक मात्रा में खून जा रहा हो या बहुत लम्बे समय तक हो रहा है तो इस दवा का सेवन, दिन में तीन बार, दस दिन तक करने से ब्लीडिंग १-२ दिन में रुक जाती है।

4. एंडोमिट्रियोसिस endometriosis (a painful condition in which the type of tissue lining of the womb also occurs outside the womb)

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Norethisterone tablet

नोट: यह प्रिस्क्रिप्शन ड्रग है।

  1. दिन में तीन बार, सुबह, दोपहर और शाम लें।
  2. इसे पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के पहले/बाद लें।
  4. इसे तब तक लेना है जब तक की पीरियड को डिले करना है।
  5. इसे अधिकतम 17 दिन तक लिया जा सकता है ।
  6. दवा का सेवन छोड़ने के बाद २-३ दिन में पीरियड हो जाते हैं।
  7. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यदि गर्भावस्था होने की शंका हो तो इसका सेवन कभी न करें।
  2. स्तनपान के दौरान इसका सेवन न करें।
  3. इसे न लें यदि ब्लड क्लॉट हों या उनके होने की सम्भावना है।
  4. इसे गंभीर यकृत रोग, योनि से खून बहने के अज्ञात कारण, पोरफाइरिया, थ्रामोएम्बाल्जिम, Severe hepatic dysfunction, undiagnosed vaginal bleeding, porphyria, pregnancy, previous idiopathic or current thromboembolism, thromboembolic disease आदि में न लें।
  5. इसे उच्च रक्तचाप, यकृत के सही काम न करने, मिर्गी, स्तनपान, माइग्रेन सिरदर्द, दमा, गुर्दे की दुर्बलता, अवसाद आदि में डॉक्टर की सलाह से ही लें।
  6. यदि किसी को दवा से रिएक्शन हो तो उसमें मानसिक अवसाद, पीलिया, पोरफाइरिया, मिर्गी, माइग्रेन, सिरदर्द, स्तन में दर्द, चक्कर आना, मतली और उल्टी, कामेच्छा की कमी, भूख और वजन में परिवर्तन, मासिक धर्म न आना amenorrhoea, सूजन, लाल चकत्ते, मुँहासे , पित्ती, अनिद्रा, थ्रोम्बोटिक, ऑप्टिक न्युरैटिस, और लिपिड प्रोफाइल में बदलाव आदि हो सकते है।
  7. नॉरथिस्टेरॉन, महिला सेक्स हार्मोन प्रोजेस्टेरोन का एक सिंथेटिक रूप है जो आंशिक रूप से एस्ट्रोजन में बदल जाता है। कुछ गर्भनिरोधक गोलियों में प्रोजेस्ट्रोजन और एस्ट्रोजन होते Combination Pills है और ऐसे में इस दवा का सेवन शरीर में प्रोजेस्टेरोन के स्तर को बढ़ा देता है जिससे नसों और धमनियों में होने वाली रक्त के थक्के / ब्लड क्लॉट के होने का कुछ रिस्क बढ़ जाता है।
  8. यह साइड इफेक्ट की पूरी सूची नहीं है।
  9. यदि कोई मेडिकल कंडीशन है, किसी दवा का सेवन करते हैं, गर्भनिरोधक गोली लेते हैं तो इस दवा के सेवन से पहले डॉक्टर / फार्मसिस्ट को अवश्य बताएं।

उपलब्धता Availability

यह ऑनलाइन या केमिस्ट शॉप्स पर उपलब्ध है।


सुपर सॉनिक कैप्सूल Super Sonic Capsules Detail and Uses in Hindi

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सुपर सॉनिक कैप्सूल, रेनोविज़न एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड REPL (Renovision Exports Pvt. Ltd. द्वारा निर्मित दवाई है। यह दवा एक सेक्स टॉनिक है और केवल पुरुषों के लिए है। इस दवा के पैक के अनुसार इसमें कई वाजीकारक जड़ी-बूटियाँ जैसे की केवांच, अश्वगंधा, विधारा, समेत स्वर्ण भस्म, रौप्य भस्म, लौह भस्म, वंग भस्म आदि है। इसलिए दवा का मूल्य भी अधिक है। चार गोली के पैक की कीमत 325. 00 रुपये है। इसकी एक गोली वियाग्रा की तरह सेक्स करने से 1-2 घंटे पहले लेनी है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य केवल और केवल इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Super Sonic Capsules is an herbal Viagra type medicine from REPL. It contains herbs, metals and minerals formulations. It taken 1-2 hours before sexual intercourse for better performance. This medicine is only for men.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्ब्स और धातु-खनिजों युक्त आयुर्वेदिक दवा
  • मुख्य उपयोग: सेक्स टॉनिक
  • मुख्य गुण: ताकत देना, वाजीकारक
  • यह दवा केवल पुरुषों के लिए है।

सुपर सॉनिक कैप्सूल के घटक Ingredients of Super Sonic Capsules

प्रत्येक कैप्सूल में:

  1. अश्वगंधा Aswagandha 60 mg
  2. सफ़ेद मुस्ली Safed Musli 60 mg
  3. केवांच Kaunch Beej 60 mg
  4. शतावर Shatawari 60 mg
  5. विधारा Suddha Vidhra 25 mg
  6. कुचला Suddha Kuchala 25 mg
  7. लौह भस्म Lauh Bhasam 34।49 mg
  8. बंग भस्म Bang Vasam 25 mg
  9. अभ्रक भस्म Abharak Bhasam 15 mg
  10. रजत भस्म Rajat Bhasam 10 mg
  11. स्वर्ण भस्म Swarna Bhasam 0।01 mg
  12. शिलाजीत Suddha Shilajit 75 mg
  13. प्रवाल भस्म Parwal Bhasam 7 mg
  14. Sura Sar Dust 0|5 mg

अश्वगंधा आयुर्वेद की जानी मानी टॉनिक औषधि है। यह नसों को ताकत दने वाली और सूजन को दूर करने वाली दवा है।

कौंच / केवांच में वीर्यवर्धन, स्तम्भन, कामोद्दीपन आदि गुण हैं। यह धातुवर्धक और शक्तिवर्धक है। इसका पुरुषों के रोगों में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। यह नामर्दी, नपुंसकता, नसों की कमजोरी, क्लैव्य, कमजोरी आदि में विशेषतः लाभप्रद है। इसके सेवन से कामेच्छा बढ़ती है। यह उत्तम वाजीकारक है।

विधारा को आयुर्वेद में नसों के लिए टॉनिक, वाजीकारक, कफ-वातहर, टॉनिक, बल्य, माना गया है।

सफ़ेद मुस्ली शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, कामोद्दीपक और नपुंसकता को दूर करने वाली दवा है। यह पुरुषों में होने वाली यौन समस्याओं में प्रभावशाली है। यह वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या की कमी, नपुंसकता की शिकायत, स्वप्नदोष, ताकत-जोश की कमी सभी में दी जाती है।

शतावरी में अल्सर ठीक करने के, इम्युनिटी बढ़ाने के और टॉनिक गुण हैं। यह आँतों को साफ़ करती है और पेचिश को अपने संकोचक गुण से रोकती है। शतावर के सेवन से शरीर में अम्लपित्त की शिकायत दूर होती है।

शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।

शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है।

वंग या बंग भस्म, स्टेनम या टिन की भस्म है। इसे आयुर्वेद में हल्का, दस्तावर, रूखा, गर्म, पित्तकारक माना गया है। इसे मुख्य रूप से प्रमेह, कफ, कृमि, पांडू, श्वास रोगों में प्रयोग कियाजाता है। शुद्ध वांग को सम्पूर्ण प्राकर के प्रमेहों को नष्ट करने वाला कहा गया है। बंग भस्म का सेवन शरीर को बल देता है, इन्द्रियों को शक्ति देता है और पुरुषों के सभी अंगों को ताकत से भरता है तथा पुरुष होर्मोन का भी अधिक स्राव कराता है। यह मुख्य रूप से प्रजनन अंगों के लिए ही उपयोगी है। बंग भस्म वाजीकारक भी है।

लौह भस्म आयरन का ऑक्साइड है और आयुर्वेद बहुत अधिक प्रयोग होता है। इसे क्रोनिक बिमारियों के इलाज़ के लिए प्रयोग किया जाता है। यह पांडू रोग या अनीमिया को नष्ट करता है।

कुचला को विषतुंडीका Nux-vornica, Poison nut कहा जाता है। इसे यह नाम इसके जहरीले गुणों के कारण दिया गया है। यह एक शक्तिशाली जहर है। आयुर्वेद में कुचला को उपविष वर्ग में रखा गया है। इसके बीज को आयुर्वेद में उचित शोधन के बाद ही इस्तेमाल किया जाता है। शुद्ध बीजों का उपयोग बहुत ही कम मात्रा में गठिया, स्नायु दर्द, तंत्रिका दर्द आदि के उपचार में होता है।

सुपर सॉनिक कैप्सूल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Super Sonic Capsules

  1. यह दवा शक्तिवर्धक और वाजीकारक है।
  2. यह पुरुषों के लिए सेक्सुअल टॉनिक है।
  3. केवांच, अश्वगंधा, बंग भस्म, विधारा आदि के होने से इसमें हर्बल वियाग्रा जैसे गुण हैं।
  4. यह शीघ्रपतन, स्तंभन दोष, अनैच्छिक शुक्रपात, स्वप्नदोष में लाभप्रद है।
  5. सुपर सॉनिक कैप्सूल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Super Sonic Capsules
  6. शीघ्रपतन Premature ejaculation
  7. स्वप्नदोष Nocturnal emission
  8. इंद्री की शिथिलता Indriya Shaithilya (erectile dysfunction)
  9. दुर्बलता Dourbalya (Weakness) Manodourbalya / Dhatudourbalya
  10. नामर्दी Purusha Vandhyatva

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Super Sonic Capsules

  • 1 गोली, सेक्स करने से 1-2 घंटे पहले लें।
  • इसे दूध, पानी के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
  1. सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  2. यदि इस दवा के सेवन के बाद किसी भी प्रकार के साइड-इफेक्ट्स हो तो इसे आगे से न लें। याद रखें यदि इसका शरीर पर कुछ प्रभाव हो रहा है तो कई दुष्प्रभाव भी हो सकते है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य समेत बहुत से कारकों पर निर्भर करते है।
  3. शरीर में किसी भी प्रकार की व्याधि हो, कोई दवा ले रहे हों, तो डॉक्टर का परामर्श अवश्य लें।
  4. उच्च रक्तचाप में इसे न लें।
  5. एक दिन में एक कैप्सूल से ज्यादा न लें।
  6. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  7. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  8. यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में खनिज, विष वाली जड़ी-बूटियाँ, जैसे इसमें कपिलू / कुचला Strychnos nuxvomica आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।
  9. क्योंकि इस दवा में कुचला है इसलिए, इसे केवल प्रत्यक्ष चिकित्सक के पर्यवेक्षण में ही लें।

जानिए लोध के बारे में Lodhra Medicinal Tree in Hindi

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लोध्र एक औषधीय वनस्पति है। इसे संस्कृत में लोध्र, तिल, तिरीटक शाबर, मालव, गाल्व, हस्ती, हेमपुष्पक आदि नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे लोध, बंगाली में लोधकाष्ठ, मराठी में लोध, गुजरती में लोदर, पठानीलोध, और लैटिन में सिम्प्लेकोस रेसीमोसा कहते हैं।

लोध्र वृक्ष की छाल को औषधीय प्रयाजनों के लिए मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है। छाल को आयुर्वेद में कषाय रस और बल्य माना गया है। यह अकेले ही या अन्य द्रव्यों के साथ दवाई के रूप में प्रयोग की जानेवाली औषध है। इसे आंतरिक और बाह्य दोनों की तरह से प्रयोग करते हैं। बाह्य प्रयोग में यह संकोचक, रक्तस्तंभक, वर्णरोपण, शोथहर है। आंतरिक प्रयोग में यह स्तंभक, रक्तस्तंभक, शोथहर, गर्भाशयस्राव और गर्भाशयशोथनाशक है। यह अतिसारनाशक और कुष्ठघ्न भी है।

lodhara medicinal uses
By Vinayaraj (Own work) [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons
अतिसार, आम अथवा रक्तअतिसार, रक्त प्रदर तथा श्वेतप्रदर के उपचार में यह बहुत लाभप्रद है। आयुर्वेद की स्त्री रोगों के लिए जानी-मानी क्लासिकल और पेटेंटेड दवाओं में लोध्र अवश्य डाला जाता है।

लोध्र पार्वतीय प्रदेश की वनस्पति है। इसके वृक्ष बंगाल, आसाम, हिमालय, तथा खसिया पहाड़ियों में पाए जाते हैं। इसके वृक्ष छोटी जाति के होते है और पत्ते बड़े, कंगूरेदार, अंडाकृति के और लम्बे होते हैं। पुष्पों का रंग सफ़ेद-पीला-लाल मिश्रित होता है। वृक्ष पर अंडाकृति का आधा इंच लम्बा फल लगता है जिसके अन्दर गुठली होती है। यह फल पकने पर बैंगनी होता है। गुठली के अन्दर दो बीज होते हैं। इसकी छाल मुलायम और गेरुए रंग की होती है। लोध की छाल में रंजक होता है और यह रंगने के भी काम आती है।

आयुर्वेद में लोध को ग्राही, हल्का, शित्रल, नेत्रों के लिए हितकार, कसैला, कफ तथा पित्तहर बताया गया है। यह रक्तपित्त, रुधिरविकार, ज्वर, ज्वारातिसार, और शोथ को हरने वाली प्रभावी औषध है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: सिम्प्लेकोस रेसीमोसा
  • कुल (Family): सिम्प्लोकेसीऐई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पेड़ की छाल
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष

लोध्र के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. वैज्ञानिक नाम: लोध्र racemosa
  2. संस्कृत: Balabadhra, Balipriya, Bhillataru, Bhilli, Galava, Hastilodhraka, Hemapushpak, Kandakilaka, Kandanila, Laktakarma, Lodhra, Lodhraka, Lodhravriksha, Mahalodhra, Marjana, Rodhra, Shahara, Shaharalodhra, Shambara, Shavaraka, शुक्ला, तिलक, Tririta, Tritaka, Vanarajhata
  3. असमिया: Mugam, Bhomroti, Kaviang
  4. बंगाली: लोढ़ा, Lodhra, लोध
  5. दार्जिलिंग: Kaidai, Khoidai, Sungen
  6. अंग्रेज़ी: लोध्र की छाल, लोध ट्री, कुनैन, चीन नोरा
  7. गुजराती: Lodhar, Lodar
  8. हिन्दी: लोढ़ा, लोध
  9. कन्नड़: Lodhra
  10. कुमाऊं: लोध
  11. मलयालम: Pachotti
  12. मराठी: लोढ़ा, Lodhra, Hura, लोध
  13. नेपाल: Chamlani
  14. पंजाबी: Lodhar
  15. सिद्ध: Velli-lethi।
  16. सिंहली: Lothsumbula
  17. तमिल: Vellilathi, Vellilothram
  18. तेलुगु: Lodhuga
  19. यूनानी: लोध Pathaani, Lodapathani
  20. उर्दू: लोध, Lodhpathani

लोध्र का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: डिलेनीडाए Dilleniidae
  • आर्डर Order: एबेनेल्स Ebenales
  • परिवार Family: सिम्प्लोकेसीऐई Symplocaceae
  • जीनस Genus: सिम्प्लोकोस Symplocos
  • प्रजाति Species: सिम्प्लोकोस रेसमोस रॉक्सब। Symplocos racemosa Roxb।

लोध्र के संघटक Phytochemicals

लोध्र में तीन प्रकार के क्षारीय पदार्थ होते हैं:

  1. लोटुराइन
  2. कोलोटूराइन
  3. लोटोरिडाइन

इसमें कुछ मात्रा में कार्बोनेट ऑफ़ सोडा भी पाया जाता है।

लोध्र के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

लोध स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाली और हल्की है। स्वभाव से यह शीतल है और कटु विपाक है।

यह एक काषाय रस औषधि है। कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।

  1. रस (taste on tongue): कषाय astringent
  2. गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष light and drying
  3. वीर्य (Potency): शीत Cooling
  4. विपाक (transformed state after digestion): कटु Pungent

यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं।

कर्म Principle Action

  1. पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो।
  2. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  3. शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
  4. शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
  5. ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
  6. रक्तस्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
  7. चक्षुष्य: नेत्रों के लिए लाभप्रद।
  8. वर्ण्य: रंग निखारने के गुण।
  9. व्रणरोपण: घाव ठीक करने के गुण।
  10. गर्भाशयस्रावनाशक:गर्भाशय के स्राव को रोकने वाला।

रोग जिनमें लोध का प्रयोग लाभप्रद है

  1. गर्भपात, गर्भाशयस्राव
  2. मासिकधर्म की विकृति, लम्बा मासिक धर्म, खून अधिक जाना
  3. रक्तपित्त
  4. रक्तप्रदर तथा श्वेतप्रदर / सफ़ेद पानी की समस्या
  5. अतिसार, रक्तातिसार
  6. कुष्ठ, त्वचा रोग आदि।

महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक दवाएं

  1. लोध्रासव
  2. पुष्यानुग चूर्ण
  3. बृहत् गंगाधर चूर्ण

ईवकेयर, स्टिपलोन एम-२ टोन, हेमपुष्पा समेत बहुत से स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए बनी दवाएं

लोध्र के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Lodhra in Hindi

  1. लोध की छाल कसैली, कडवी और स्वभाव से शीतल होती है। यह आसानी से पच जाती है और कामोद्दीपक होती है।
  2. यह ऋतुस्राव / मासिक धर्म को नियमित करती है तथा रक्तपित्त और योनि से हो रहे आसामान्य रक्तस्राव को रोकती है।
  3. लोध्र मुख्य रूप से महिलाओं के लिए बनी आयुर्वेदिक दवाओं में डाली जाती है।
  4. यह पित्त की अधिकता के कारण होने वाले हाथ-पैर की जलन, नाक से खून गिरना तथा अन्य पित्तरोगों में लाभ करती है।
  5. यह गर्भाशय की सूजन को अपने शोथहर गुण से दूर करती है।
  6. यदि गर्भाशय की सूजन हो, स्राव हो रहा हो, रक्त प्रदर या श्वेत प्रदर की समस्या हो तो लोध्रासव का सेवन करें।
  7. यह आसामान्य रक्त के बहने को रोकने वाली वनस्पति है। यदि किसी को मासिक बहुत दिनों से अधिक मात्रा में हो रहा हो तो उसे २ ग्राम की मात्रा में लोध्र की छाल के चूर्ण का सेवन चीनी के साथ दिन में 3-4 बार करने से बहुत लाभ होता है।
  8. यह ज्वरनाशक है और शरीर में पित्त की अधिकता को कम करती है।
  9. इसके अतिरिक्त इसे अतिसार, गर्भाशय से होने वाले स्राव, नेत्र रोग, प्रदर रोग, रक्त पित्त, सफ़ेद पानी की समस्या, सूजन, और मुहांसों के ईलाज के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  10. यह आँतों का संकुचन कराती है और अतिसार में लाभप्रद है।
  11. आँखों के रोगों, आँखों का दुखना, पानी बहना, सूजन। लाली सभी में इसे प्रयोग किया जाता है। आँखों की सूजन और लाली होने पर इसका लेप पलकों पर किया जाता है।
  12. रक्तपित्त जोकि नाक, गुदा, योनि आदि से आसामान्य रक्तस्राव को कहते हैं, उसमें यह अपने पित्तहर और शीतल गुण के कारण फायदा करती है।

लोध्र की औषधीय मात्रा

  • औषधीय रूप में लोध की छाल का प्रयोग किया जाता है।
  • इसे 3-5 ग्राम की मात्रा में लेते हैं।
  • इसके बने काढ़े को 50-100 ml की मात्रा में पिया जाता है।
  • बीजों के चूर्ण को लेने की मात्रा 1-3 gram है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह हॉर्मोन पर काम करने वाली औषध है।
  2. इसे निर्धारित मात्रा में लें।
  3. आयुर्वेद में यह स्त्री रोगों की प्रमुख औषधि है। इसके सेवन से पुरुष होरमोन कम होता है। इसलिए पुरुष इसे न ही लें तो बेहतर है।
  4. यह टेस्टोंस्टेरोन का स्तर कम करती है।
  5. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  6. इसे खाली पेट न लें।
  7. काढ़े को तुरंत बनाकर प्रयोग करें।

पतंजलि गिलोय घनवटी Patanjali Giloy Ghanvati Detail and Uses in Hindi

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गिलोय घनवटी, गिलोय के तने से तैयार एक आयुर्वेदिक दवाई है जो की पतंजलि द्वारा निर्मित है। इस दवा में एकमात्र घटक गिलोय है। ऐसे तो इसे विविध रोगों में प्रयोग किया जा सकता है लेकिन इसका मुख्य प्रयोग बैक्टीरिया और वायरस जनित बुखारों में है। जहाँ पर हम गिलोय का काढ़ा देते हों उन सभी जगह पर इस घन वटी का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन जो प्रभाव ताजे काढ़े का होता है वह शायद इसका न हो। इसलिए यदि आपको ताज़ी बेल से तना मिल जाता हो उसी का काढ़ा बना कर लें।

जिन लोगों को गिलोय न मिल पाती हो वे इसका प्रयोग गिलोय की जगह पर कर सकते हैं।

 

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Patanjali Giloy Ghanvati is an herbal preparation of Giloy or Tinospora cordifolia. It is mainly indicated in treatment of fever, low immunity, liver diseases, skin diseases and after chronic illness. Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: ज्वर, कम रोगप्रतिरोधक क्षमता, कमजोरी
  • मुख्य गुण: रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना, एंटीऑक्सीडेंट, और टॉनिक
  • मूल्य MRP: Giloy Ghan Vati 40grams @ Rs. 90.00

गिलोय घनवटी के घटक Ingredients of Giloy Ghanvati

गिलोय घन वटी का एकमात्र घटक गिलोय है.

प्रत्येक गोली में:

गिलोय टिनोस्पोरा कोरडीफ़ोलिया 500mg

गिलोय (टिनोस्पोरा कोर्डिफोलिया)

गिलोय आयुर्वेद की बहुत ही मानी हुई औषध है। इसे गुडूची, गुर्च, मधु]पर्णी, टिनोस्पोरा, तंत्रिका, गुडिच आदि नामों से जाना जाता है। यह एक बेल है जो सहारे पर कुंडली मार कर आगे बढती जाती है। इसे इसके गुणों के कारण ही अमृता कहा गया है। यह जीवनीय है और शक्ति की वृद्धि करती है। इसे जीवन्तिका भी कहा जाता है।

दवा के रूप में गिलोय के अंगुली भर की मोटाई के तने का प्रयोग किया जाता है। जो गिलोय नीम के पेड़ पर चढ़ कर बढती है उसे और भी अधिक उत्तम माना जाता है। इसे सुखा कर या ताज़ा ही प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ा गिलोय को चबा कर लिया जा सकता है, कूंच कर रात भर पानी में भिगो कर सुबह लिया जा सकता है अथवा इसका काढ़ा बना कर ले सकते है। गिलोय को सुखा कर, कूट कर, उबाल कर और फिर जो पदार्थ नीचे बैठ जाए उसे सुखा कर जो प्राप्त होता है उसे घन सत्व कहते हैं और इसे एक-दो ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं।

गिलोय वात-पित्त और कफ का संतुलन करने वाली दवाई है। यह रक्त से दूषित पदार्थो को नष्ट करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह एक बहुत ही अच्छी ज्वरघ्न है और वायरस-बैक्टीरिया जनित बुखारों में अत्यंत लाभप्रद है। गिलोय के तने का काढ़ा दिन में तीन बार नियमित रूप से तीन से पांच दिन या आवश्कता हो तो उससे अधिक दिन पर लेने से ज्वर नष्ट होता है। किसी भी प्रकार के बुखार में लीवर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में गिलोय का सवेन लीवर की रक्षा करता है।

मलेरिया के बुखार में इसके सेवन से बुखार आने का चक्र टूटता है।

यदि रक्त विकार हो, पुराना बुखार हो, यकृत की कमजोरी हो, प्रमेह हो, तो इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

इसके अतिरित गिलोय को टाइफाइड, कालाजार, कफ रोगों, तथा स्वाइन फ्लू में भी इसके प्रयोग से आशातीत लाभ होता है।

गिलोय के अनुपान:

  1. गिलोय को वात रोगों में घी के साथ, पित्त रोगों में शक्कर / चीनी / गुड़ के साथ और कफ रोगों में शहद के साथ लेना चाहिए।
  2. नेत्र रोगों में गिलोय को आंवले के रस के साथ लिया जाता है।
  3. आमवात में इसे सोंठ के साथ लेना चाहिए।
  4. प्लेटलेट की कमी में इसे एलोवरा के जूस के साथ लेते हैं।
  5. स्वाइन फ्लुए में इसे तुलसी के रस के साथ लेना चाहिए।

गिलोय घनवटी के लाभ/फ़ायदे Benefits of Giloy Ghanvati

गिलोय घनवटी को बहुत से रोगों के उपचार में प्रयोग किया जा सकता है। यदि डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि में ताज़ा गिलोय काढ़ा बनाने के लिए न उपलब्ध हो तो आप इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसका सेवन शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यह बार-बार होने वाले इन्फेक्शन में लाभ करती है।

  1. गिलोय घन वटी को लेना सरल है।
  2. इसमें गिलोय के गुण हैं।
  3. यह यकृत की रक्षा करती है।
  4. यह इम्युनिटी को बढ़ाती है।
  5. यह रक्त में शर्करा के स्तर को कम करती है।
  6. यह बैक्टीरिया / वायरस / इन्फेक्शन के कारण तथा अन्य कारणों से होने वाले बुखार में बहुत प्रभावशाली है।
  7. यह बार-बार आने वाले, पुराने, या निश्चित समय पर आने वाले बुखार को नष्ट करने की दवा है।
  8. यह बुखार में लीवर की रक्षा करती है।
  9. यह अपने मूत्रल और सूजन दूर करने के गुणों के कारण शरीर में सूजन को कम करती है।
  10. यह शरीर से विषैले पदार्थों को नष्ट करती है।
  11. यह जीवनीय, रसायन है।

गिलोय घनवटी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Giloy Ghanvati

  1. पुराना बुखार
  2. बार – बार निश्चित समय पर आने वाला बुखार
  3. मच्छर जनित बुखार (डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया)
  4. स्वाइन फ्लू
  5. प्रमेह, कमजोरी, धातु का पतला होना, सुजाक
  6. शारीरिक, मानसिक कमजोरी
  7. हाथ-पैर में जलन
  8. बौद्धिक भ्रम
  9. यकृत रोग
  10. यकृत कमजोरी
  11. रक्त शर्करा का बढ़ा स्तर
  12. गठिया, यूरिक एसिड का बढ़ जाना

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Giloy Ghanvati

  1. व्यस्क, गिलोय घन वटी की 1 से 2 गोली, दिन में दो बार अथवा तीन बार लें।
  2. 5-12 वर्ष के बच्चों को आधा गोली दी जा सकती है।
  3. बहुत छोटे बच्चों को बिना डॉक्टर के परामर्श के इसे न दें।
  4. इसे शहद, पानी के साथ लें।
  5. इसे खाली पेट लें।
  6. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
  7. उपलब्धता
  8. इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. निर्धारित मात्रा में लेने पर इस दवा के कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं देखे गए हैं।
  2. इसे कुछ महीनों तक लिया जा सकता है।
  3. गिलोय संग्राही है और कब्ज़ कर सकती है।
  4. इसके मूत्रल गुण है।
  5. यह रक्त में शर्करा के स्तर को कम करती है। इसलिए डायबिटीज में लेते समय शर्करा स्तर की अक्सर जांच करवाते रहें।
  6. सर्जरी से दो सप्ताह पहले गिलोय का सेवन न करें।
  7. गर्भावस्था में किसी भी हर्बल दवा का सेवन बिना डॉक्टर के परामर्श के न करें।
  8. यदि आपको ताज़ा गिलोय उपलब्ध हो जाती हो तो उसे काढ़ा बना कर लें।

जायफल के औषधीय प्रयोग और दुष्प्रभाव Nutmeg in Hindi

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जायफल या जातीफल एक प्रसिद्ध मसाला है। यह मिरिस्टिका फ्रेगरेंस वृक्ष के फल में पाए जाने वाले बीज की सुखाई हुई गिरी है। जायफल और जावित्री दोनों एक ही बीज से प्राप्त होते हैं। जायफल की बाहरी खोल outer covering या एरिल को जावित्री Mace कहते है और इसे भी मसाले की तरह प्रयोग किया जाता है। भारत में जायफल के वृक्ष तमिलनाडु में और कुछ संख्या में केरल, आंध्र प्रदेश, निलगिरी की पहाड़ियों में पाए जाते है।

जायफल Nutmeg भारतीय रसोई में प्रमुखता से प्रयोग किया जाने वाला गर्म मसाला Garam Masala है। इसके अतिरिक्त इसे घरेलू उपचार में भी अधिकता से प्रयोग किया जाता है। यह कटु pungent, तिक्त bitter, तीक्ष्ण sharp और उष्ण hot potency है इसलिए इसमें कफनिःसारक, कफघ्न गुण हैं और यह कफ रोगों में लाभप्रद है। यह फेफड़ों से अवलम्बक कफ को दूर करता है।

nutmeg benefits

पित्तवर्धक, रुचिकारक, दीपन, अनुलोमन होने से इसे पाचन की कमजोरी में भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे वायु और कफ रोगों में अकेले ही यह अन्य द्रव्यों के साथ प्रयोग करते हैं।

जायफल को बाजिकारक aphrodisiac दवाओं और तेल को तिलाओं में डाला जाता है। यह पुरुषों की इनफर्टिलिटी, नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculationकी दवाओं में भी डाला जाता है। यह इरेक्शन को बढ़ाता है लेकिन स्खलन को रोकता है। यह शुक्र धातु को बढ़ाता है। यह बार-बार मूत्र आने की शिकायत को दूर करता है तथा वात-कफ को कम करता है।

सामान्य जानकारी

जयफल के वृक्ष ऊँचे होते हैं। इसका तना चिकना और शाखाएं नीचे झुकी हुईं होती हैं। इसके पत्ते दो इंच से लेकर चार इंच तक लम्बे होते हैं। यह देखने में कुछ-कुछ जामुन के पत्तों जैसे दीखते हैं पर सुगन्धित होते हैं। पुष्प पीले और छोटे होते हैं। वृक्ष पर जो फल आते हैं वे देखने में अमरूद जैसे होते हैं।

पके फल लाल रंग लिए हुए पीले होते हैं। जब फल फटते हैं तो बीज बाहर आता है जिस पर लाल रंग का जालीदार बीज-बाह्यवृद्धि या एरिल चढ़ा होता है। यह मेस या जावित्री है। जावित्री को अलग करने पर बीज मिलता है।

बीज के आवरण को तोड़ कर अन्दर की गुठली निकाल ली जाती है। इसे सुखा लिया जाता है और यही जायफल है। इसप्रकार जायफल बीज की मज्जा या गिरी है और जावित्री बीज पर लगा हुआ एरिल है। जायफल जितना बड़ा होता है उतना ही उत्तम होता है ।

जायफल के आसवन steam distillation द्वारा एक तेल प्राप्त होता है। यह तेल हल्का पीला रंग लिए हुए या रंगहीन होता है। इसका स्वाद और गंध जायफल जैसा ही होता है। यह जायफल का तेल Nutmeg oil है।

  • वानस्पतिक नाम: मिरिस्टिका फ्रेगरेंस
  • कुल (Family): मायरिसटेकेसेआई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज की बाहरी खोल, बीज की मज्जा, तेल
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष
  • वितरण: मलय, सुमात्रा, श्री लंका। भारत में दक्षिण के समुद्रतटीय क्षेत्रों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में।

जायफल के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Ghatastha, Jaiphala, Jati, Jatikosha, Jatiphala, Jatishasga, Kosha, Koshaka, Madashaunda, Majjasara, Malatiphala, Phala, Puta, Rajabhogya, Shakula, Sumanaphala
  2. असमिया: Jaiphal, Kanivish
  3. बंगाली: Jaiphala, Jaitri
  4. अंग्रेज़ी: नटमेग
  5. गुजराती: Jaiphala, Jayfar
  6. हिन्दी: Jaiphal
  7. कन्नड़: Jadikai, Jaykai, Jaidikai
  8. कश्मीरी: Jafal
  9. मलयालम: Jatika
  10. मराठी: Jaiphal
  11. उड़िया: Jaiphal
  12. पंजाबी: Jaiphal
  13. सिद्ध: Masikkai, Chathikkay
  14. तमिल: Sathikkai, Jathikkai, Jatikkai, Jadhikai, Jadhikkai
  15. तेलुगु: Jajikaya
  16. उर्दू: Jauzbuwa, Jaiphal (seed), Bisbaasaa (Mace)

जायफल का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta– Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: मैग्नोलिडेएइ Magnoliidae
  7. आर्डर Order: मैग्नोलिएल्स Magnoliales
  8. परिवार Family: मायरिसटेकेसेआई Myristicaceae
  9. जीनस Genus: मायरिस्टिका ग्रोनोव Myristica Gronov
  10. प्रजाति Species:मायरिस्टिका फ्रैगरैंस Myristica fragrans– नटमग

पर्याय:

मायरिस्टिका ओफिसिनेलिस Myristica officinalis

जायफल के संघटक Phytochemicals

जायफल में 5-15% सुंगंधित उड़नशील तेल और 24% स्थिर तेल पाया जाता है। सुंगंधित उड़नशील तेल में मुख्य रूप से युजिनोल होता है। स्थिर तेल में मायरिस्टिक एसिड 61% मुख्य होता है। Dimeric phenylpropanoids I-VI, myricetin, essential oil and fixed oil।

जायफल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

जायफल और जावित्री दोनों ही स्वाद में कटु, तिक्त, गुण में लघु और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

कर्म:

  • वातशामक: द्रव्य जो वातदोष को कम कर दे।
  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • उष्ण: यह प्यास, जलन, मूर्छा करता है और घाव पकाता है।
  • ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  • वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
  • अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  • बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
  • वेदनास्थापन: दर्द निवारक।
  • मुखदुर्गन्धनाशक: मुख की दुर्गन्ध दूर करने वाला।
  • यकृतउत्तेजक: लीवर को उत्तेजित करने वाला।
  • हृदयोत्तेजक: हृदय को उत्तेजना देने वाला।
  • आर्त्तवजनन: मासिक लाने वाला।

आयुर्वेद की प्रमुख औषधियाँ

जातिफलादी चूर्ण

आयुर्वेद में जातिफल को इन रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है:

  1. अतिसार
  2. जीर्ण अतिसार
  3. ग्रहणी
  4. छर्दी
  5. मुख रोग
  6. पिनासा, कास, श्वास

जायफल के तेल को निम्न रोगों में प्रयोग करते हैं:

  1. अफारा
  2. शूल
  3. आमवात
  4. व्रण के रोग
  5. पुराना अतिसार

जायफल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Nutmeg in Hindi

जायफल कफ रोगों और पाचन रोगों में बहुत लाभप्रद है। जयफल वायुनाशक carminative, उत्तेजक, पौष्टिक, पाचक और भूख बढ़ाने वाला है। यह दीपन, पाचन और ग्राही है। जायफल का सेवन भूख बढ़ाता है, अफारा, ग्रहणी और शूल को दूर करता है। पाचन में वृद्धि करता है और अतिसार, रक्तअतिसार आदि को नष्ट करता है। जायफल अधिक कफ को नष्ट करता है।

1- अतिसार, दस्त diarrhea

  • जायफल का चूर्ण आधा से एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार तक्र के साथ लें।
  • जायफल और सोंठ को पानी में घिस कर २-३ बार लेने से अतिसार दूर होता है।

2- अधिक प्यास excessive thirst

जायफल का टुकड़ा मुंह में रख कर चूसने से अधिक प्यास लगने की समस्या दूर होती है।

3- अफारा flatulence

जायफल घिसकर, सरसों के तेल में मिलाकर नाभि के पास मालिश करने से गैस में आराम होता है।

4- कम रक्तचाप / लो ब्लड प्रेशर low blood pressure

जायफल का चूर्ण 250-500 mg की मात्रा में शहद के साथ सुबह चाट कर लेना चाहिए।

5- कफ रोग, सर्दी, खांसी, गला ख़राब excessive phlegm

जायफल का चूर्ण 250-500 mg की मात्रा में शहद के साथ चाट कर लेना चाहिए।

6- दांत में दर्द tooth ache

जायफल का चूर्ण दांतों पर मलने से आराम होता है।

7- सिर का दर्द headache

  • जायफल का चूर्ण दूध में उबालकर सेवन करें।
  • जायफल को घिस कर माथे पर लगाया जाता है।

8- बच्चों को सर्दी लग जाने पर, खांसी, कफ, जुखाम, निमोनिया, सर्दी का बुखार

जायफल को पत्थर में घिस कर, शहद के साथ मिलाकर, दिन में तीन बार बच्चों को चटाना चाहिए।

9- मुहांसे acne

जायफल को घिस कर चेहरे पर लागाया जाता है।

10- पेट दर्द abdominal pain

जायफल को घी के साथ लें।

11- नींद न आना insomnia

इनसोम्निया में जायफल के पाउडर को रात को सोने से पहले गर्म दूध के साथ लें।

12- छर्दी, उल्टी, हिचकी nausea, vomiting

जायफल को घिसकर चावल के धोवन के साथ मिलाकर लेने से उल्टी रुकती है।

13- उत्तेजना की कमी, धातु की कमजोरी

जायफल का चूर्ण 250-500 mg की मात्रा में दूध / मलाई / मक्खन में मिलाकर चाट कर लेना चाहिए।

14- जायफल की औषधीय मात्रा Therapeutic dose of Nutmeg

  • जायफल और जावित्री को लेने की औषधीय मात्रा चार रत्ती (1 रत्ती=125 mg) से लेकर एक ग्राम तक की है।
  • तेल को एक बूँद से लेकर तीन बूँद तक प्रयोग किया जाता है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. जायफल को बताई गई मात्रा से ज्यादा मात्रा में सेवन न करें।
  2. अधिक मात्रा में इसका सेवन नुकसान करता है।
  3. यह मस्तिष्क पर मादक असर intoxicating, causing hallucinations, headaches, dizziness, heart palpitations करता है।
  4. यह मूढ़ता और प्रलाप पैदा करता है।
  5. अधिक सेवन से सिर चकराता है।
  6. यह हृदय को उत्तेजित करता है।
  7. लम्बे समय तक प्रयोग वीर्य में उष्णता लाता है और इसे पतला करता है।
  8. यह पित्त बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  9. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  10. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  11. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  12. Drug interactions अवसाद की दवा, हाई ब्लड प्रेशर की दवा या कोई सेडेटिव ले रहे हैं, तो इसका सेवन सावधानी से करें।
  13. यह मलरोधक है।
  14. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें। Unsafe in pregnancy
  15. तेल को बुखार, उच्च रक्तचाप, शरीर में जलन आदि में प्रयोग न करें।
  16. तेल का अतिमात्रा में सेवन मदकारक intoxicating है।

बैद्यनाथ स्वप्नदोषहारी टेबलेट्स Baidyanath Swapn Doshhari Tablets Detail and Uses in Hindi

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स्वप्नदोषहारी टेबलेट्स श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित एक दवाई है जिसके घटक चंद्रप्रभा बटी, कबाबचीनी, वंग भस्म और कपूर हैं। जैसा की नाम से ही पता चलता है, यह दवा स्वप्नदोष के इलाज के लिए है।

स्वप्नदोष को नोक्टर्नल एमिशन, नाईट फॉल आदि नामों से भी जानते हैं। इस स्थिति में नींद में ही वीर्यपात हो जाता है। यह यह कोई बहुत गंभीर स्थिति नहीं है। किशोरों में इसके होने का अर्थ है की अब वह युवा हो रहा है और उसकी पौरुष ग्रंथि सक्रिय हो गयी है। वीर्य पात होने का यह अर्थ भी है की शुक्रकोष में वीर्य की मात्रा अधिक हो गयी है और और यह शुक्रकोष में नहीं समा रहा। इसप्रकार स्वप्नदोष एक स्वस्थ्य और स्वाभाविक प्रक्रिया है जो हर पुरुष के साथ कबी न कभी होती है। स्वप्नदोष जड से शादी के बाद ही जाता है।

यदि यह हर सप्ताह में २-३ बार हो रहा है तो कोई समस्या नहीं लेकिन व्यक्ति को यदि रोज ही स्वप्नदोष होता हो तो ज़रूर ही इसका इलाज़ किया जाना चाहिए।

स्वप्नदोष की चिकित्सा के लिए आवश्यक है विचारों को पवित्र रखना और इतना परिश्रम करना की गहरी नींद आ सके। जिन कारणों से यह हो रहा है उनको जान कर उन्हें दूर करने की चेष्टा करनी चाहिए। दैनिक कोई न कोई व्यायाम करना चाहिए। प्राणायाम करना चाहिए। रात का भोजन हल्का करना चाहिए। रात को सोने से पहले दूध-मलाई या गरिष्ठ भोजन का सेवन भी स्वप्नदोष को बढ़ा सकता है।

यदि कब्ज़ रहती हो तो पहले उसका उपचार अवश्य करना चाहिए। इसके लिए इसबगोल की भूसी को रात में सोने से पहले पर्याप्त मात्रा में पानी के साथ लेना चाहिए। अथवा नियमित रूप से त्रिफला चूर्ण का सेवन गर्म जल के साथ करना चाहिए।

आयुर्वेद में बहुत से लोग इसे प्रमेह का तो कुछ लोग निद्रा का दोष मानते हैं। जो लोग इसे प्रमेह का रोग मान भांग अथवा अफीम युक्त दवाओं के सेवन से इसे दूर करना चाहते हैं उन्हें यह भली भांति जानना चाहिए की इस प्रकार की दवाएं कुछ दिन तक तो शायद अच्छे परिणाम से दें लेकिन बाद में यह रोग को और अधिक जटिल बना देती है और साथ ही अफीम युक्त दवाएं मनुष्य के पूरे स्वास्थ्य को ही नष्ट कर देती हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्यति में वंग भस्म और कबाबचीनी को स्वप्न दोष में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। बंग भस्म का कुछ दिन सेवन ही स्वप्न दोष में अत्यंत लाभकारी है। इसी प्रकार कबाब चीनी का 5 gram चूर्ण दिन में दो बार दूध के साथ लेने पर भी स्वप्नदोष और प्रमेह दोनों में ही लाभ होता है। इस दवाई में यह दोनों ही है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Baidyanath Tablets Swapn Doshhari Tablets is a proprietary Ayurvedic medicine, manufactured by Baidyanath Ayurved Bhawan. It is used in the treatment of Night fall.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • निर्माता: श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड
  • दवाई का प्रकार: जड़ी बूटी खनिज युक्त आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: स्वप्नदोष
  • मुख्य गुण: वीर्यपात को रोकना

मूल्य MRP Baidyanath Swapn Dosh Hari Tab (60tab): Rs. 133.00

बैद्यनाथ स्वप्नदोषहारी के घटक Ingredients of Baidyanath Swapn Doshhari

  1. कपूर Kapoor 9 mg
  2. बंग भस्म Vang Bhasm 27 mg
  3. कबाब चीनी Kabab Chini 144 mg
  4. चंद्रप्रभा वटी Chandraprabha Bati 180 mg
  5. एक्ससीपियंट QS

1- चन्द्रप्रभा वटी Chandraprabha Bati, इस दवा का मुख्य घटक है। यह आयुर्वेद को एक जानी-मानी दवा है। चन्द्रप्रभा के मुख्य घटक भीमसेनी कपूर, बच, नागरमोथा, चिरायता, त्रिफला, त्रिकटु, पांच लवण, दालचीनी, शिलाजीत, गुग्गुलु, लोहा भस्म, और स्वर्ण माक्षिक भस्म हैं।

यह आयुर्वेद में प्रमेह रोगों में प्रमुखता से प्रयोग की जाती है। यह रसायन, शक्तिवर्धक, रक्तशोधक, त्रिदोष संतुलित करने वाली, मूत्रल, मूत्रशोधक, स्वेदक, दीपन, पाचन और प्रमेहनाशक है।

चन्द्रप्रभा को अनैच्छिक वीर्यपात, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात, सूजाक, गुर्दे की पथरी, खून की कमी, पेट के रोगों, लम्बागो, बवासीर, फिश्चूला, स्प्लीन के बढ़ जाने, आमवात, समेत बहुत से रोगों में दिया जाता है। पुरुषों में नामर्दी, शीघ्रपतन, वीर्यपात, स्वप्न दोष आदि में यह अच्छे परिणाम देती है।

चन्द्रप्रभा वटी / बटी त्रिदोष का संतुलन करती है। लेकिन अधिकता में इसका सेवन पित्त को बढ़ाता है। यह प्रजनन अंगों, मूत्र अंगों और शरीर में पानी पर काम करती है।

2- कबाबचीनी Piper cubeba शीतल चीनी, क्यूबेब एक मसाला और दवाई है। इसमें मूत्रल, कफनिःसारक, दर्दनिवारक, सूजन कम करने के, और पाचन को बढ़ाने के गुण हैं। यह मुख्य रूप से अपने मूत्रल गुण से शरीर में पानी के अवधारण को कम करती है। यदि किडनी में सूजन हो तो कबाबची का सेवन नहीं करना चाहिए।

3- वंग या बंग भस्म, स्टेनम या टिन की भस्म है। इसे आयुर्वेद में हल्का, दस्तावर, रूखा, गर्म, पित्तकारक माना गया है। इसे मुख्य रूप से प्रमेह, कफ, कृमि, पांडू, श्वास रोगों में प्रयोग कियाजाता है। शुद्ध वांग को सम्पूर्ण प्रकार के प्रमेहों को नष्ट करने वाला कहा गया है। बंग भस्म का सेवन शरीर को बल देता है, इन्द्रियों को शक्ति देता है और पुरुषों के सभी अंगों को ताकत से भरता है तथा पुरुष होर्मोन का भी अधिक स्राव कराता है। यह मुख्य रूप से प्रजनन अंगों के लिए ही उपयोगी है। बंग भस्म वाजीकारक भी है।

बैद्यनाथ स्वप्नदोषहारी के लाभ/फ़ायदे Benefits of Baidyanath Swapn Doshhari Tablets

  1. यह मूत्रल है।
  2. यह शरीर में पानी के अवधारण को कम करती है।
  3. यह रसायन औषधि है।
  4. यह पुष्टिकारक है।
  5. यह स्वप्नदोषनाशक है।
  6. यह वीर्य को पुष्ट बनाने वाली दवा है।
  7. यह श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन के द्वारा निर्मित है।

बैद्यनाथ स्वप्नदोषहारी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Baidyanath Swapn Doshhari

  1. रसायन Anabolic tonic
  2. वीर्यपात Spermatorrhoea
  3. स्वप्नदोष Nocturnal emission
  4. वीर्य सम्बंधित दिक्कतें Semen problem

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Baidyanath Swapn Doshhari Tablets

  1. 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  2. इसे दूध, पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के बाद लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. अगर किडनी का रोग हो तो इसका सेवन न करें, डॉक्टर का परामर्श लें।
  2. इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  3. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  4. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।

यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में खनिज आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।

उपलब्धता Availability

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

बैद्यनाथ दिमाग दोषहारी टेबलेट्स Baidyanath Dimag Doshahari Detail and Uses in Hindi

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दिमाग दोषहारी टेबलेट्स, श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित एक दवाई है जिसके प्रमुख घटक ब्राह्मी काढ़ा, जटामांसी काढ़ा, सर्पगंधा, मकरध्वज, आदि जैसे द्रव्य हैं। जैसा की नाम से ही पता चलता है, यह दवा दिमाग के दोषों के इलाज के लिए है। यह उच्च रक्तचाप, नींद न आना, स्मृति ह्रास आदि में लाभप्रद है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें। याद रखे, दवा का यदि शरीर पर प्रभाव हो रहा है तो इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। यह दवा हृदय और दिमाग के लिए है, इसलिए इसे लेते समय और भी सावधानी की आवश्यकता है।

Baidyanath Dimag Doshahari is a herbomineral Ayurvedic formulation from Shree Ayurved Bhawan and indicated in mental disorders.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • निर्माता: श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड
  • दवाई का प्रकार: जड़ी बूटी खनिज युक्त आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: नींद न आना, उच्च रक्तचाप
  • मुख्य गुण: एंग्जायटी और रक्तचाप कम करना, शरीर को बल देना
  • मूल्य MRP Baidyanath Dimag Doshahari Tablets: Rs. 148.00

बैद्यनाथ दिमाग दोषहारी टेबलेट्स के घटक Ingredients of Baidyanath Dimag Doshahari

  1. ब्राह्मी काढ़ा
  2. जटामांसी काढ़ा
  3. प्रवाल भस्म
  4. सर्पगंधा
  5. स्वर्ण माक्षिक भस्म
  6. मकरध्वज

बैद्यनाथ दिमाग दोषहारी टेबलेट्स के लाभ/फ़ायदे Benefits of Baidyanath Dimag Doshahari

  1. यह मस्तिष्क रोगों में लाभ करती है।
  2. यह दिमाग को शांत करने में सहायक है।
  3. इसके सेवन से नींद न आने की समस्या में लाभ होता है।
  4. यह रक्तचाप को कम करती है।
  5. यह दिमाग और शरीर को बल देती है।
  6. यह एक टॉनिक है।
  7. यह शरीर में वात और पित्त का संतुलन करती है।

बैद्यनाथ दिमाग दोषहारी टेबलेट्स के चिकित्सीय उपयोग Uses of Baidyanath Dimag Doshahari

  1. नींद न आना
  2. उच्च रक्तचाप
  3. याददाश्त की कमी

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Baidyanath Dimag Doshahari

  • 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे दूध, पानी के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. यह दवा बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए उचित नहीं है।
  2. इसमें सर्पगंधा है जो की अवसादक है और रक्तचाप को कम करता है। जिन्हें डिप्रेशन की समस्या हो उन्हें सर्पगंधा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  3. जिन्हें पहले ही कम रक्तचाप हो उन्हें यह दवा लेते समय सावधानी की आवश्यकता है।
  4. इसमें मकरध्वज है जो की पारद और गंधक के कंपाउंड से बनता है और जिसे लम्बे समय तक नहीं लिया जाना चाहिए।
  5. इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  6. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  7. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  8. यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में पारद, खनिज आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

डाबर हनीटस मधुवाणी Dabur Honitus Madhuvaani Detail and Uses in Hindi

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हनीटस मधुवाणी, डाबर इण्डिया लिमिटेड द्वारा निर्मित एक आयुर्वेदिक हर्बल दवा है जिसे की जुखाम, खांसी, गले की खराश, सर्दी तथा सर्दी सम्बंधित रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह आयुर्वेद के सिंद्धांतों पर बनाई गई दवा है।

डाबर हनीटस मधुवाणी के सेवन से कफ दोष संतुलित होता है। यह शरीर में बढे हुए कफ को कम करती है। यह कफ को ढीला कर उसे बाहर निकालने में भी सहयोगी है। डाबर हनीटस मधुवाणी एंटी-एलर्जी है और जकड़न में राहत देती है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Honitus Madhuvaani is a proprietary medicine from Dabur India Ltd. It is an anti-cough medicine and helps in cold, cough and related problems.

Dabur Honitus Madhuvaani is combination of Sitopaladi + Sugar + Honey + Bamboo manna + Green cardamom And Cinnamon.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता: डाबर इण्डिया लिमिटेड
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: कफ रोगों में
  • मुख्य गुण: एंटीकफ
  • मूल्य MRP: Honitus Madhuvaani (Ayurvedic Cough Remedy With Honey) 150gm @ Rs. 78.00

डाबर हनीटस मधुवाणी के घटक Ingredients of Dabur Honitus Madhuvaani

  1. सितोपलादि Sitopaladi churna (Basis Sharangdhar Samhita) – 28.00 g
  2. शर्करा Sharkara – 25.50 g
  3. शहद Madhu – 20।00 g
  4. वंशलोचन Vanslochan (Bambusa arundinacia) – 770.00 mg
  5. एला Elaichi (Elettaria cardamomum) – 500.00 mg
  6. दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) – 390.00 mg
  7. जेल बेस Gel base – QS

प्रधान कर्म

  • कफनिःसारक: द्रव्य जो श्वासनलिका, फेफड़ों, गले से लगे कफ को बलपूर्वक बाहर निकाल दे।
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • श्लेष्महर: द्रव्य जो चिपचिपे पदार्थ, कफ को दूर करे।
  • कफहर: द्रव्य जो कफदोष निवारक हो।
  • वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।

डाबर हनीटस मधुवाणी के लाभ/फ़ायदे Benefits of Dabur Honitus Madhuvaani

  1. यह अधिक कफ को दूर करती है।
  2. यह गले की खराश को कम करती है।
  3. इसमें आयुर्वेद के जाने माने सितोपलादि चूर्ण और शहद की अच्छाई है।
  4. यह एंटीऑक्सीडेंट है।
  5. यह एंटीएलर्जिक है।
  6. यह शरीर में वात और कफ दोष दोनों को संतुलित करती है।
  7. यह पाचन को बढ़ाती है।
  8. यह बारह वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को भी दी सकती है।

डाबर हनीटस मधुवाणी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Dabur Honitus Madhuvaani

डाबर हनीटस मधुवाणी एक एंटीकफ फार्मूला है। इसके सेवन से शरीर में वात व कफ दोषों की अधिकता दूर होती है।

इसे मुख्य रूप से सर्दी-खांसी-जुखाम आदि में लिया आ सकता है। इसे शरीर में कफ की अधिकता में लेने से लाभ होता है।

  1. सर्दी जुखाम, कफ Common cold, cough
  2. जकड़न Congestion
  3. सूखी खांसी Non- productive cough
  4. बलगम वाली खांसी Productive cough

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Dabur Honitus Madhuvaani

  • व्यस्क, इसे एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो या तीन बार ले सकते है।
  • बारह साल से अधिक आयु के बच्चों को यह चौथाई से आधा टीस्पून की मात्रा में देनी चाहिए।
  • बारह साल से कम आयु के बच्चों को यह न दें।
  • इसे शहद, दूध के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इसमें चीनी है, इसलिए यह डायबिटिक लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है।
  2. इसे निर्धारित मात्रा में लें।
  3. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  4. अधिक मात्रा में सेवन से कुछ हल्के साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं।
  5. गर्भावस्था में किसी भी प्रकार की दवा लेने से पहले डॉक्टर से अवश्य परामर्श करें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।


एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (अस्थानिक गर्भावस्था) Ectopic Pregnancy FAQs in Hindi

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सामान्य प्रेगनेंसी या गर्भावस्था में शिशु का विकास गर्भाशय में होता है। ओवरी से निकलने वाला अंडाणु फैलोपियन ट्यूब में निषेचित होकर गर्भाशय की और चला जाता है और फिर गर्भाशय में स्थापित होकर नौ महीने में स्वस्थ्य शिशु बन जन्म लेता है।

लेकिन किन्ही कारणों से निषेचित भ्रूण गर्भाशय छोड़ कर कहीं ओर विकसित होने लगता है इसे ही एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहते हैं।

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी या अस्थानिक गर्भावस्था वह गर्भावस्था है जिसमें गर्भ (गर्भाशय) के बाहर ठहर जाता है। इस प्रकार की गर्भावस्था माँ के जीवन को खतरे में डाल सकती है। एक हजार में से करीब पांच गर्भावास्थायें एक्टोपिक हो सकती हैं।

इस तरह की गर्भावस्था को चलने नहीं दिया जा सकता और भ्रूण को नष्ट कर दिया जाता है।

पर्याय: Tubal pregnancy, Cervical pregnancy, ectopic pregnancy अस्थानिक गर्भावस्था

एक्टोपिक प्रेगनेंसी क्या है?

वह स्थिति जिसमें निषेचित अंडा, गर्भाशय में नही जा पाता और एक फैलोपियन ट्यूब में ही बढ़ने लगता है। इसके लक्षण में शामिल हैं, पेल्विस में एक साइड तेज़ दर्द और ब्लीडिंग।

क्या एक्टोपिक प्रेगनेंसी से बचा जा सकता है?

नहीं, आप इस विषय में कुछ नहीं कर सकते। कुछ रिस्क फैक्टर्स को आप कम कर सकते है।

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के क्या कारण हैं?

सामान्य गर्भावस्था में गर्भधारण के लिए निषेचित अंडा गर्भाशय में स्थापित होने के लिए, फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से यात्रा करते हुए गर्भाशय में जाता है। लेकिन यदि फैलोपियन ट्यूब में अंडे की मूवमेंट किसी भी कारण से अवरुद्ध है या धीमी है, तो यह एक अस्थानिक गर्भावस्था का कारण बन जाता है।

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के भिन्न कारणों में शामिल है:

  1. फैलोपियन ट्यूब में जन्मजात दोष
  2. अपेंडिक्स के कारण चोट
  3. एन्डोमेट्रीओसिस (गर्भाशय के टिश्यू गर्भाशय की बाहरी परत में विकसित) endometriosis
  4. पहले हुई अस्थानिक गर्भावस्था
  5. पहले हुआ प्रजनन अंगों का संक्रमण या सर्जरी से चोट

निम्नलिखित कारणों से भी अस्थानिक गर्भावस्था के खतरे बढ़ जाते हैं

  1. महिला की उम्र 35 से अधिक
  2. अंतर्गर्भाशयी डिवाइस (आईयूडी) IUD लगे होने पर गर्भावस्था
  3. हॉर्मोन निकालने वाली आईयूडी
  4. प्रोजेस्टोजन वाली या मिनी पिल लेने से
  5. नसबंदी के लिए फैलोपियन ट्यूब का ऑपरेशन कराने के बाद
  6. सर्जरी द्वारा फैलोपियन ट्यूब को खोलने के बाद
  7. बांझपन के उपचार के बाद
  8. अज्ञात कारणों से

अस्थानिक गर्भावस्था फैलोपियन ट्यूब के भीतर है हो सकती है लेकिन कई मामलों में यह अंडाशय, पेट, या गर्भाशय ग्रीवा में हो सकती है।

एक्टोपिक प्रेगनेंसी के क्या लक्षण है?

इस तरह की गर्भावस्था में भी गर्भावस्था के सामान्य लक्षण होते हैं। शुरूवात में तो यह प्रेगनेंसी भी सामान्य लगती है, लेकिन जैसे-जैसे भ्रूण विकसित होता जाता है और उसका आकार बढ़ने लगता है, ट्यूब के क्षति होने की संभावना बढ़ जाती है। योनि से खून आता है जो की मिसकैरिज जैसा लगता है। इसके अतिरिक्त इसमें निम्न लक्षण भी होते हैं:

  1. योनि से असामान्य खून बहना
  2. कमर दर्द
  3. पेल्विस के एक तरफ हल्की ऐंठन
  4. निचले पेट या श्रोणि क्षेत्र में दर्द

यदि अस्थानिक गर्भावस्था में, किसी भी प्रकार की क्षति होती हैं तो निम्न लक्षण भी हो सकते हैं:

  1. बेहोशी होना
  2. मलाशय में तीव्र दबाव
  3. कम रक्त दबाव
  4. कंधे क्षेत्र में दर्द
  5. पेट के निचले हिस्से में, गंभीर तेज, और अचानक दर्द

एक्टोपिक प्रेगनेंसी के लिए परीक्षा और परीक्षण कौन से हैं?

गर्भावस्था की परीक्षण के लिए यूरिन टेस्ट और योनि अल्ट्रासाउंड किया जाता है। यदि एचसीजी हार्मोन काफी तेजी से नहीं बढ़ रहा है, तो अस्थानिक गर्भावस्था हो सकती है।

  1. पेल्विस का एग्जामिनेशन
  2. ब्लड टेस्ट
  3. अल्ट्रासाउंड
  4. लेप्रोस्कोपी

किस प्रकार पता करें एक्टोपिक प्रेगनेंसी का?

अल्ट्रासाउंड के अतिरिक्त कोई तरीका नहीं है जिससे इस प्रकार की गर्भावस्था का सटीक पता लग सके।

यदि एचसीजी human chorionic gonadotropin, or hCG का लेवल तो बढ़ रहा हो लेकिन गर्भाशय में कोई भ्रूण न हो तो एक्टोपिक प्रेगनेंसी होती है।

एक्टोपिक प्रेगनेंसी का इलाज क्या है?

अस्थानिक गर्भावस्था से माँ की जान को खतरा रहता है। ध्यान दें, यह गर्भावस्था फुल टर्म नहीं हो सकती। अस्थानिक गर्भावस्था को जारी रहने नहीं दिया जा सकता और सर्जरी के माध्यम से इसे हटा दिया ही जाता है। ट्यूब के फट जाने पर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की जाती है। यदि यह पहले ही पता लग जाए और इमरजेंसी की स्थिति न हो तो दवाओं के द्वारा भी इसे हटाया जा सकता है।

जिन महिलायों में एक बार एक्टोपिक प्रेगनेंसी हो जाती है उनमे दुबारा यह प्रेगनेंसी होने के असार बढ़ जाते हैं। कुछ मामलों में महिला दुबारा गर्भधारण नहीं होता।

क्या होगा यदि एक्टोपिक प्रेगनेंसी को न हटाया जाए?

यदि इस प्रकार की गर्भावस्था को न हटाया जाए तो फैलोपियन ट्यूब फट सकती हैं, महिला को बहुत अधिक दर्द और ब्लीडिंग होती है और तब उपचार अधिक जटिल होता है। इसमें फैलोपियन ट्यूब को हटा दिया जाता है। इसलिए जैसे ही पता चले, अल्ट्रासाउंड द्वारा भ्रूण की जगह का ज़रूर पता करें।

रजोनिवृत्ति Menopause in Hindi

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मासिक धर्म के स्थायी रूप से बंद हो जाने को रजोनिवृत्ति(Menopause) कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में मेनोपाज़ कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है, मासिक (मेनो) का रुक जाना (पाज़)। रजोनिवृत्ति हो जाने के बाद स्त्रियों में गर्भधारण होना संभव नहीं होता।

मेनोपाज़ होने के कुछ वर्ष पहले से ही स्त्रियों के शरीर में बदलाव आने शुरू हो जाते है। ऐसा उनमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन के स्तर के बदलने से होता है। जब मासिक एक वर्ष तक नहीं आता तो यह माना जा सकता है की मेनोपाज हो चुका है। मासिक धर्म आना किशोरावस्था में शुरू होता है और पचास वर्ष की आयु के आस-पास और कुछ महिलाओं में चालीस वर्ष की आयु के बाद हो सकता है। मेनोपौज़ होने की औसत आयु इक्यावन वर्ष मानी गयी है।

कुछ कारणों से रजोनिवृत्ति जल्दी भी हो सकती है। उदाहरण के लिए यदि महिला का ऑपरेशन कर ओवरी/डिम्बाशय, गर्भाशय हटा दिया गया है तो भी माहवारी आना रुक जाता है। इसी प्रकार यदि महिला धूम्रपान करती है, तो मेनोपॉज़ जल्दी भी हो सकता है।

पर्याय:

  1. Climacteric
  2. Menopause
  3. Midlife crisis

रजोनिवृत्ति क्या है? Definition

रजोनिवृत्ति, वह स्थिति है जब स्त्रियों में मासिकधर्म होना बंद हो जाता है।

You can also read Ayurvedic management of menopausal syndrome

कब माने रजोनिवृत्ति हो गयी?

यदि एक वर्ष तक मासिक धर्म न हो तो माना जा सकता है, रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज़ हो गया।

किस उम्र तक मेनोपौज़ होता है? Age of Menopause

यूँ तो मासिक धर्म बंद होना बहुत से कारकों पर निर्भर है, जैसे की स्वास्थ्य, किसी तरह का प्रजनन अंगों का रोग, जेनेटिक कारण आदि लेकिन अधिकाँश मामलों में यह महिलायों के जीवन के माध्काल अर्थात चालीस से पचपन की उम्र के बीच होता है।

रजोनिवृत्ति क्यों होती है? Reason for Menopause

रजोधर्म बंद हो जाने का मतलब है, अब ओवरी से अंडाणु का निकलना बंद हो चुका है।

हर महिला अंडाशय (ओवरी) में सीमित संख्या के अंडाणुओं (एग्स) साथ पैदा होती है। अंडाशय से ही एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन भी बनाए जाते हैं, जो माहवारी और नियंत्रित करते हैं। रजोधर्म शुरू होने के बाद से हर महीने एक अंडाणु ओवरी से निकलता है।

जब अंडाशय से सभी अंडाणु निकल जाते हैं और उसमें कोई अंडाणु नहीं रह जाता तो, मासिक धर्म आना बंद हो जाता है। यही रजोनिवृत्ति कहलाता है।

रजोनिवृत्ति 40 साल की उम्र के बाद होना पूरी तरह से सामान्य है।

प्राकृतिक रूप से रजोनिवृत्ति कैसे होती है? Natural Process of Maenopause

प्राकृतिक रजोनिवृत्ति जो की बिना किसी अन्य मेडिकल के कारण है, वह क्रमिक होती है और मुख्य रूप से तीन में बांटी जा सकती है,

पेरीमेनोपॉज़ Perimenopause: यह आमतौर पर रजोनिवृत्ति होने से कई साल पहले शुरू होता है, जब अंडाशय से निकलने वाले एस्ट्रोजन का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है। यह समय रजोनिवृत्ति हो जाने तक कहा जा सकता है।

मेनोपौज़ जब होने वाला होता है, तो एस्ट्रोजन में गिरावट ज्यादा हो जाती है और तब कई महिलाओं में रजोनिवृत्ति के लक्षण दिखने लगते है।

रजोनिवृत्ति Menopause: यह वह समय है जब ओवरी ने एस्ट्रोजन का निर्माण बंद कर दिया है और महिला को मासिक धर्म आये हुए एक वर्ष हो चुका है।

मेनोपॉज़ के बाद Postmenopause: यह रजोनिवृत्ति के बाद का समय है। इस समय महिलाओं को मेनोपौज़ल लक्षण तो नहीं होते लेकिन एस्ट्रोजन के न बनने से बहुत सी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

रजोनिवृत्ति के लक्षण क्या हैं? Sign and Symptoms of Menopause

  1. महिलाओं में रजोनिवृत्ति के विभिन्न संकेत या लक्षण देखे जा सकते है।
  2. मासिक के आने में कुछ बदलाव
  3. मासिक का अनियमित होना irregular
 periods
  4. मासिक का कुछ समय तक, जैसे की 2-4 महीने न आना और फिर होने लगना
  5. मासिक का बहुत दिनों तक होना excessive, longer periods
  6. योनि में सूखापन vaginal
dryness, vaginal 
atrophy
(thinning
 of
the
vaginal 
tissue
  7. हॉट फ्लैशेस या अचानक से बहुत पसीना आ जाना sweating/hot
flashes
  8. रात को बहुत पसीना आना night sweat
  9. नींद की समस्या insomnia
  10. मूड में चिड़चिड़ापन anxiety,
nervousness 
and 
depression
  11. एकाग्रता में कमी loss of focus
  12. बालों का झड़ना hair loss
  13. वज़न बढ़ जाना weight gain
  14. धीमा मेटाबोलिज्म slow metabolism
  15. त्वचा का रूखा होना skin dryness
  16. स्तनों का ढीला और सिकुड़ जाना sore 
breasts
  17. जोड़ों का दर्द joint
 pain
  18. पेशाब न रोक पाना bladder 
incontinence

रजोनिवृत्ति के बाद किन रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है? Risk factor

रजोनिवृत्ति के बाद शरीर में स्त्री हॉर्मोन की कमी हो जाती है जिससे कुछ रोगों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है। शरीर में महिला हॉर्मोन के कम होने से कोलेस्ट्रोल लेवल बढ़ जाता है जिसके कारण हृदय रोग हो सकता है। हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है। स्त्री होरमोन न होने से योनि में सूखापन हो जाता है। कुछ महिलायों में चेहरे पर बाल भी उग जाते हैं।

  1. हृदय रोग cardiovascular disease
  2. हड्डियों का कमज़ोर होना Osteoporosis
  3. पेशाब को न रोक पाना Urinary incontinence
  4. सेक्स के दौरान सूखापन Sexual function
  5. वज़न बढ़ना Weight gain

कौन से टेस्ट हैं जो की मेनोपॉज़ होने से पहले किये जाते हैं? Tests for Menopausal symptoms

कई बार महिलाओं में मेनोपॉज़ होने के कई वर्ष पहले मासिक सम्बन्धी दिक्कतें होने लगती है। ऐसे में डॉक्टर से परमर्श लिया जाता है। डॉक्टर कुछ टेस्ट करवाते हैं जिससे यह निश्चित तौर पर जाना जा सके यह पेरीमेनोपौज़ लक्षण है और पूरी तरह से सामान्य है अथवा शरीर में अन्य किसी प्रकार का प्रजनन अंग सम्बन्धी रोग है:

1- फोलिकल स्टीमुलेटिंग होरमोन Follicle-stimulating hormone (FSH): फोलिकल स्टीमुलेटिंग होरमोन का स्तर बढ़ जाता है।

2- एस्ट्रोजन estrogen (estradiol): एस्ट्रोजेन का स्तर कम हो जाता है।

3- टीएसएच Thyroid-stimulating hormone (TSH): थायराइड उत्तेजक हार्मोन (टीएसएच), का टेस्ट इसलिए किया जाता है क्योंकि underactive थायराइड (हाइपोथायरायडिज्म) भी रजोनिवृत्ति जैसे ही लक्षण पैदा कर सकता है।

रजोनिवृत्ति के लक्षणों को कम करने के लिए कौन सी एलोपैथिक दवाएं हैं? Allopathic medicines

  • एस्ट्रोजन थेरेपी Hormone therapy
  • कम मात्रा में एंटीडेप्रेसंट Low-dose antidepressants
  • ओस्टोपोरेसिस osteoporosis को रोकने वाली दवाएं

पौधे जिनमें फाइटोएस्ट्रोजन पाए जाते हैं? Phytoestrogen containing medicine

  1. Aloe barbadensis Mill.एलोवेरा
  2. Asparagus racemosus शतावरी
  3. Balasmodendron myrrha Nees. बोल
  4. Calendula officina lisL कैलेंडुला
  5. Crocus sativus Linn। केशर
  6. Cyperus rotundus Linn. मोथा
  7. Foenicum vulgare Mill. सौंफ
  8. Gymnema sylvestre गंभारी
  9. Nigella sativa कलोंजी
  10. Ocimum Sanctum तुलसी
  11. Phoenix sylvestris Roxb खजूर
  12. Pimpinella anisum Linn. एनिस
  13. Pueraria tuberosa विदारीकन्द
  14. Rubia cordifolia Linn. मंजिष्ठ

रजोनिवृत्ति के लिये कौन सी आयुर्वेदिक दवाएं लाभदायक हैं? Ayurvedic Medicines for Menopause

आयुर्वेद में रजोनिवृत्ति के लक्षणों से राहत पाने के लिए उन दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिनमे फाइटोएस्ट्रोजन यानिकी पादप में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन होते हैं। इन दवाओं के सेवन से शरीर को बल मिलता है।

  1. अशोकारिष्ट Ashokarishta
  2. अश्वगंधा चूर्ण Ashwagandha churna
  3. प्रवाल पिष्टी Pravel Pishti
  4. मेनोकेयर MenoCare
  5. दश्मूलारिष्ट Dashmularishta
  6. पुष्यानुग चूर्ण Pushyanug Churna
  7. सुपारी पाक Supari Pak
  8. ओवोटोलाइन फोर्ट Zandu Ovoutoline Forte (for Pre-menopausal symptoms)
  9. हेमपुष्पा Hempushpa

कुछ लाभदायक टिप्स Some Useful Tips

  1. ऐसे भोजन का सेवन करें जो की शरीर में वात कम करे।
  2. यदि वात-दोष बढ़ा है जिसके कारण निद्रा की समस्या है, अवसाद है, एंग्जायटी है तो वात / वायु बढ़ाने वाले भोजन का सेवन न करें।
  3. यदि पित्त बढ़ा है जिसके कारण क्रोध, चिड़चिड़ापन, हॉट फ्लैशेज हैं, पसीना आता है, तो पित्त कम करने वाले भोजन का सेवन करें।
  4. यदि कफ बढ़ा है जिसके कारण, शरीर में भारीपन है, मोटापा है, थकावट रहती है, तो कफ कम करने वाले भोजन का सेवन करें।
  5. मेनोपौज़ के दौरान दूध,फल, हरी सब्जियां, मोटा अनाज खाना चाहिए। दैनिक निर्धारित कैल्शियम की मात्रा को ज़रूर लें।
  6. नियमित रूप से व्यायाम करें।

आरोग्य वटी Patanjali Arogya Vati Detail and Uses in Hindi

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आरोग्य वटी, स्वामी रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी में निर्मित आयुर्वेदिक दवा है। क्योंकि यह आरोग्य (बिना रोग) करने वाली गोली है इसलिए आरोग्य वटी कहलाती है।

इस दवा में केवल तीन हर्ब हैं, गिलोय, नीम और तुलसी। इस दवा का सेवन मुख्य रूप से शरीर की इम्युनिटी / रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

गिलोय, नीम और तुलसी जैसे मजबूत एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण यह दवाई शरीर के सही काम करने में मदद करती है। इसके सेवन से ज्वर, कफ, त्वचा रोगों, प्रमेह आदि में लाभ होता है। नीम का रक्त साफ़ करने का गुण तो सर्वविदित है। नीम को तो सर्वरोगनिवारिण भी कहा जाता है। इसी प्रकार गिलोय आयुर्वेद की प्रमुख रसायन औषधि है। इसके सेवन से लीवर की रक्षा होती है और लीवर फंक्शन ठीक होता है। डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि जैसे मच्छर जनित बुखारों में नीम और गिलोय के सेवन से अत्यंत लाभ होता देखा गया है। तुलसी भी अनेकों रोगों में लाभप्रद है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Patanjali Arogya Vati is completely herbal Ayurvedic medicine from Divya Pharmacy. This medicine is herbal combination of Giloy, Neem and Tulsi. It is mainly indicated in low immunity. Arogya Vati helps to boost immunity and helps to prevent recurrent infections.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता / ब्रांड: पतंजलि दिव्य फार्मेसी
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना
  • मुख्य गुण: एंटीऑक्सीडेंट, रसायन और इम्युनिटी बूस्टर
  • दवा का अनुपान: गर्म जल
  • दवा को लेने का समय: दिन में दो बार, प्रातः और सायं
  • दवा को लेने की अवधि: कुछ महीने
  • मूल्य MRP: Arogya Vati 40 gm @ Rs. 60.00

आरोग्य वटी के घटक Ingredients of Patanjali Arogya Vati

  1. गिलोय Giloy extract 250 mg
  2. नीम Neem 125 mg
  3. तुलसी Tulsi 125 mg
  4. Excpients –q.s.

जानिए दवा के घटकों के बारे में

1- गिलोय टिनोस्पोरा कोरडीफ़ोलिया

गिलोय आयुर्वेद की बहुत ही मानी हुई औषध है। इसे गुडूची, गुर्च, मधु]पर्णी, टिनोस्पोरा, तंत्रिका, गुडिच आदि नामों से जाना जाता है। यह एक बेल है जो सहारे पर कुंडली मार कर आगे बढती जाती है। इसे इसके गुणों के कारण ही अमृता कहा गया है। यह जीवनीय है और शक्ति की वृद्धि करती है। इसे जीवन्तिका भी कहा जाता है।

दवा के रूप में गिलोय के अंगुली भर की मोटाई के तने का प्रयोग किया जाता है। जो गिलोय नीम के पेड़ पर चढ़ कर बढती है उसे और भी अधिक उत्तम माना जाता है। इसे सुखा कर या ताज़ा ही प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ा गिलोय को चबा कर लिया जा सकता है, कूंच कर रात भर पानी में भिगो कर सुबह लिया जा सकता है अथवा इसका काढ़ा बना कर ले सकते है। गिलोय को सुखा कर, कूट कर, उबाल कर और फिर जो पदार्थ नीचे बैठ जाए उसे सुखा कर जो प्राप्त होता है उसे घन सत्व कहते हैं और इसे एक-दो ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं।

गिलोय वात-पित्त और कफ का संतुलन करने वाली दवाई है। यह रक्त से दूषित पदार्थो को नष्ट करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह एक बहुत ही अच्छी ज्वरघ्न है और वायरस-बैक्टीरिया जनित बुखारों में अत्यंत लाभप्रद है। गिलोय के तने का काढ़ा दिन में तीन बार नियमित रूप से तीन से पांच दिन या आवश्कता हो तो उससे अधिक दिन पर लेने से ज्वर नष्ट होता है। किसी भी प्रकार के बुखार में लीवर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में गिलोय का सवेन लीवर की रक्षा करता है।

  • मलेरिया के बुखार में इसके सेवन से बुखार आने का चक्र टूटता है।
  • यदि रक्त विकार हो, पुराना बुखार हो, यकृत की कमजोरी हो, प्रमेह हो, तो इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
  • इसके अतिरित गिलोय को टाइफाइड, कालाजार, कफ रोगों, तथा स्वाइन फ्लू में भी इसके प्रयोग से आशातीत लाभ होता है।

2- नीम अजादिरीक्टा इंडिका

नीम को आयुर्वेद में निम्ब, पिचुमर्द, पिचुमंद, तिक्तक, अरिष्ट, पारिभद्र, हिंगू, तथा हिंगुनिर्यास कहा जाता है। इंग्लिश में इसे मार्गोसा और इंडियन लीलैक, बंगाली में निमगाछ निम्ब, गुजराती में लिंबडो, और हिंदी में नीम कहा जाता है। नीम को फ़ारसी में आज़ाद दरख्त कहा जाता है। नीम का लैटिन नाम मेलिया अजाडीरीक्टा या अजाडीरीक्टा इंडिका है।

नीम शीत वीर्य/स्वभाव में ठंडा (बीज, तेल छोड़ कर), कड़वा, पित्त और कफशामक, और प्रमेह नाशक है। यह खांसी, अधिक कफ, अधिक पित्त, कृमि, त्वचा विकारों, अरुचि, व्रण आदि में लाभकारी है। नीम के पत्ते, आँखों के लिए हितकारी, वात-कारक, पाक में चरपरे, हर तरह की अरुचि, कोढ़, कृमि पित्त और विष नाशक हैं।

3- तुलसी ओसिमम संकटम

तुलसी की पत्तियों के स्वास्थ्य लाभ के बारे में तो सभी को पता है। यह गुणों की खान है और इसके फायदों के बारे में तो पूरी- पूरी किताबें लिखी जा सकती है। तुलसी के पत्तो के सेवन से सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, इम्युनिटी की कमी, तथा अनेकों तरह के रोग दूर होते हैं। यह मन को शांत रखते हैं और अवसाद तथा तनाव को दूर करते हैं। तुलसी के पत्तों का सेवन उर्जा देता है, हार्मोन का संतुलन करता है, संक्रमण से बचाता है, और तनाव को दूर करता है।

तुलसी एक प्रबल antihistaminic है जो bronchospasms पराग-प्रेरित अस्थमा को रोकने में बहुत उपयोगी है | पवित्र तुलसी में नाइट्रिक ऑक्साइड पाया जाता है, जो की एक बहुत अच्छा antioxidant है | यह एलर्जी श्वसन विकारों के उपचार में उपयोगी है।

आरोग्य वटी के लाभ / फ़ायदे Benefits of Patanjali Arogya Vati

  1. यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
  2. यह लीवर फंक्शन को सही करती है इसके सेवन से कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लिसराइड लेवल, LDL लेवल कम होता है।
  3. यह आंतों से विषाक्तता बाहर करती है।
  4. यह यकृत को स्वस्थ करती है।
  5. यह रसायन, दीपन, पाचन, शरीर से गन्दगी निकलने वाली, और मल को साफ़ करने वाली दवा है।
  6. यह वात और कफ दोष को संतुलित करती है।
  7. यह शरीर में फ्री रेडिकल का बनना कम करती है।
  8. यह लीवर फंक्शन को सही करती है।
  9. यह लीवर की रक्षा करती है।
  10. इसके सेवन से आरोग्य आता है।

आरोग्य वटी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Patanjali Arogya Vati

  1. पुराना बुखार / क्रोनिक फीवर Jirna jvara (Chronic fever)
  2. वात-पित्त-कफ दोषों के कारण उत्पन्न बुखार
  3. इन्फेक्शन जो की इम्युनिटी की कमी के कारण बार-बार होते हैं
  4. चमड़ी के रोग
  5. इम्युनिटी की कमी
  6. मच्छर जनित बुखार (डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया)
  7. स्वाइन फ्लू
  8. शारीरिक, मानसिक कमजोरी
  9. यकृत रोग
  10. यकृत कमजोरी
  11. रक्त शर्करा का बढ़ा स्तर
  12. गठिया, यूरिक एसिड का बढ़ जाना

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Patanjali Arogya Vati

  1. 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  2. इसे पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के बाद लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इस दवा में गिलोय, नीम और तुलसी हैं जिन्हें लेना पूरी तरह से सुरक्षित है।
  2. इसे लम्बे समय तक लिया जा सकता है।
  3. इसके सेवन का कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं है।
  4. दवाई के स्थान पर आप गिलोय के तने, नीम और तुलसी के पत्ते को पानी मन उबाल कर काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं।
  5. यदि बुखार के लिए इसका सेवन कर रहे हो तो काढ़े का सेवन अच्छे परिणाम देगा।
  6. स्तनपान के दौरान इसका सेवन करने से कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
  7. गर्भावस्था में किसी भी दवा का सीवन बिना डॉक्टर की सलाह पर न करें।

विटामिन डी के मार्किट में उपलब्ध सप्लीमेंट Vitamin D Supplementation in Hindi

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विटामिन डी, एक बहुत ही सुलभ लेकिन महत्वपूर्ण विटामिन है जो हमारे शरीर के सही रूप से काम करने के लिए आवश्यक है. यह एक ऐसा विटामिन है जो हमारे शरीर में सूरज की रोशनी या धूप में उत्पादित होता है। यह वसा में घुलनशील विटामिन है और शरीर के वसा या फैट में संग्रहीत किया जाता है।

यह विटामिन हमारे शरीर में तब बनता है जब हमारी त्वचा सूरज की पराबैंगनी बी (UVB) ultraviolet B (UVB) किरणों के संपक में आती है। यह यकृत को भेजा जाता है, जहां यह 25(OH) D या, 25-हाइड्रोक्सी-डी, 25-hydroxy vitamin D में बदल दिया जाता है यहाँ से, यह केमिकल सारे शरीर में भेजा जाता है और सक्रिय विटामिन डी में बदल जाता है।

25-हाइड्रोक्सी-डी, जो रक्त में होता है उसे ही विटामिन डी के स्तर को पता करने के लिए ब्लड-टेस्ट द्वारा मापा जाता है। निम्न स्तर विटामिन की कमी को दिखाता है इसका मतलब है की इंजेक्शन या सप्लीमेंट का सेवन कर इस कमी को दूर किया जाए क्योंकि विटामिन डी की शरीर में कमी बहुत से रोगों का कारण बन सकती है।आजकल विटामिन डी की कमी को पूरे करने के लिए मार्किट में विभिन्न फार्मसी द्वारा निर्मित सप्लीमेंट उपलब्ध हैं. इन सप्लीमेंट में विटामिन डी 3 होता है और सप्ताह में एक बार दूध में मिलाकर सेवन करने से विटामिन डी की कमी को दूर करने में मदद होती है.

विटामिन डी की कमी Vitamin D deficiency

  1. शरीर में विटामिन डी के स्तर को मापने के लिए 25-hydroxy विटामिन डी रक्त परीक्षण किया जाता है।30 nmol/L (12 ng/mL) से कम स्तर नीचे शरीर में विटामिन डी की कमी दर्शाता है।
  2. 125 nmol/L (50 ng/mL) का स्तर शरीर में इसकी अधिकता दर्शाता है।
  3. 50 nmol/L or above (20 ng/mL or above) ज्यादातर लोगों के लिए पर्याप्त हैं।

विटामिन डी की कमी के लक्षण Symptoms of deficiency

विटामिन डी की कमी के कोई विशेष लक्षण नहीं होते है। कई लोगों में कोई लक्षण नहीं है। लेकिन गंभीर और क्रोनिक मामलों में फ्रैक्चर और हड्डियों की विकृति हो जाते हैं।

विटामिन डी की कमी के कुछ लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं

बच्चों में:

  1. मांसपेशियों में ऐंठन, चिड़चिड़ापन
  2. नरम खोपड़ी या कमजोर घुमावदार पैर bow-legged धनुष की तरह मुड़े पैर
  3. रिकेट्स, विकास और ऊंचाई में कमी
  4. देर से खड़ा होना और चलना
  5. सांस लेने कठिनाइयों
  6. बार-बार संक्रमण

वयस्कों में

  1. हड्डियों में दर्द, आमतौर पर पसलियों, कूल्हों, श्रोणि, जांघों और पैरों में
  2. मांसपेशियों में दर्द
  3. मांसपेशियों की कमजोरी
  4. थकान, सामान्य दर्द और दर्द
  5. बहुत ज्यादा पसीना आना, सिर का पसीने में भीग जाना, बेचैनी
  6. मांसपेशियों का फड़फड़ाना twitching/स्थानीय, अनैच्छिक मांसपेशी का संकुचन और विश्राम जो त्वचा के नीचे दिखाई दे सकता है)
  7. कठिनाई में चलने, सीढ़ियाँ चढ़ने में दिक्कत
  8. सिर दर्द, माइग्रेन, मस्तिष्क संबंधी विकार, मूड विकार, अवसाद
  9. एकाग्रता का अभाव, मनोभ्रंश, स्मृति विकार
  10. चिंता, मनोबल कम होना
  11. बालों का झड़ना, पैच में गंज
  12. कमजोर दांत, कैविटी होना, दर्द
  13. चक्कर आना
  14. कलाई, एड़ियों, का फूला दिखना
  15. सोरायसिस, मधुमेह
  16. उच्च रक्तचाप, हृदय रोग
  17. बार-बार श्वसन संक्रमण
  18. कब्ज या दस्त

विटामिन डी के मार्किट में उपलब्ध सप्लीमेंट

Following are calcium supplements available in market

  1. 3C Healthcare BONESOL-K2
  2. Abbott D3 SHOT
  3. Aden Healthcare D3 ADEN
  4. AHPL D3UP
  5. Alde Medi ALD-3
  6. Alde Medi AL-D3
  7. Alde Medi ALDONATE
  8. Ancalima ANCA-D3
  9. Aronex AROCAL-D
  10. Athens CALLON-D3
  11. Bestochem CALCIBEST SACHET
  12. Beulah CCF-D3
  13. Bionet CALCINET POWD
  14. Bioplasma BIOCITAL
  15. Bioplasma BIOCITAL-SG
  16. Bioplasma D3 DPS
  17. Blue Cross BLUVIT-D3
  18. Brio Bliss BRIOCAL-D3
  19. Cadila CALCIROL
  20. Centaur (Sankalp) DBOOST
  21. Cipla D-SOL
  22. Corona (Xmex) D3-HD
  23. Cronus CALNUS-C
  24. Cross Berry BONBERRY
  25. Elder D-360
  26. Emcure CELOL-D3 PWD
  27. Eris CALSHINE-P
  28. Eris CAROL
  29. Eris TAYO-60K
  30. Glenmark BON-DK
  31. Indchemie OVIN-D3
  32. Intas CALCITAS
  33. Intas CALCITAS-D3
  34. Intra Labs BIOCITRAL-D
  35. Intra Labs BIOCITRAL SACHET
  36. Invision BIOFEROL-D3
  37. Jainik D3-MAX
  38. Jaiwik CITROJ-D3
  39. Lifekyor CALIK-D3
  40. Lupin CALOTEC-D3
  41. Macleods (Procare AHT) D3-EXTRA
  42. Mankind D3-MUST DPS
  43. Mankind D3-MUST
  44. Mankind (Discovery) CALCIKIND SACHET
  45. Mankind CALDIKIND
  46. Medivolks CALVOLK-D3
  47. Merck DVION
  48. Meyer ULTRA-D3
  49. MNC Healthcare BONES-UP D3
  50. Novaduo DEVITA
  51. Novartis (Sandoz) BRIGETA
  52. Pharmatech HC DELCAL-S
  53. Pulse DEKSEL
  54. Raptakos ARBIVIT-3
  55. Serum Institute D-BUILD
  56. Shinto Biotec (Gross Klin) CALSO-D3
  57. Systemic CALCIMED-D3
  58. Systopic DAILYSHINE
  59. Talent TALCIROL
  60. Unichem D3-HIGH
  61. Walton D3 CHEWS
  62. Wezen CALWEZ
  63. Xieon (Critocare) CRIVIT-D3
  64. Zydus (Synovia) NU-D3

कैडिला कैल्सीरोल Cadila Calcirol in Hindi

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कैल्सीरोल, कैडिला द्वारा निर्मित एक एलोपैथिक सप्लीमेंट हैं जिसके एक सैशे में 60,000 IU कोलेकैल्सिफेरोल विटामिन डी 3 होता है। इस सप्लीमेंट का सेवन शरीर में विटामिन डी की कमी को दूर करता है और इसके सामान्य स्तर को बनाये रखने में मदद करता है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

is allopathic supplement containing Cholecalciferol, (Cholecalciferol D3, Colecalciferol) and helps in vitamin D deficiency.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता / ब्रांड: Cadila Pharmaceuticals Limited
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: एलोपैथिक
  • मुख्य उपयोग: विटामिन डी की कमी को दूर करना
  • मूल्य MRP (दवा का मूल्य बदलता रहता है): Calcirol Sachet 1gm @ Rs. 31.00

कैल्सीरोल के घटक Ingredients of Calcirol

  • विटामिन डी 3 / कोलेकैल्सिफेरोल
  • एक ग्राम के सैशे में 60,000 IU

कैल्सीरोल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Calcirol

  1. यह विटामिन डी की कमी और उसके सामान्य स्तर को बनाये रखने में मदद करता है।
  2. विटामिन डी की कमी से होने वाली परेशानियाँ इसके सेवन से दूर होती हैं।
  3. यह दांतों को मजबूती देता है।
  4. इसके सेवन से कैल्शियम के अवशोषण में सहायता होती है।
  5. यह इम्मुनोमोडुलेटरी है।

कैल्सीरोल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Calcirol

  1. विटामिन डी की कमी Vitamin D deficiency
  2. रिकेट्स Rickets
  3. ओस्टियोमलेशिया Osteomalacia

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Calcirol

सप्ताह में एक बार, चौथाई या एक पूरा सैशे को गिलासभर दूध में मिलाकर सेवन करें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इसे हाइपरकैलकेमिया hypercalcaemia में न लें।
  2. इसे किडनी डिसऑर्डर पथरी और हृदय रोगों में सावधानी से लें।
  3. यह दवा थाईज़ाइड डाईयुरेटिक के साथ इंटरैक्ट करती है।
  4. अधिक मात्रा में सेवन न करें।
  5. अधिक मात्रा में लेने से शरीर में कैल्शियम का स्तर बढ़ सकता है जो की पथरी और सॉफ्ट टिश्यू का कैल्सीफिकेशन कर सकता है।
  6. गर्भावस्था में इसका सेवन बिना डॉक्टर के परामर्श के न करें। डॉक्टर रक्त की जांच के बाद ही इसे लेने का परामर्श देते हैं।

कैल्शाइन पी ड्रॉप्स Calshine P in Hindi

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विटामिन डी, सभी के लिए अत्यंत ज़रूरी विटामिन है। बच्चों के लिए यह विशेष रूप से आवश्यक है। बच्चों में सही शारीरिक और मानसिक विकास के लिए कैल्शियम के साथ-साथ यह विटामिन भी दैनिक उपलब्ध होना चाहिए।

विटामिन डी एक ऐसा विटामिन है जो हमारे शरीर में सूरज की रोशनी या धूप में उत्पादित होता है। यह वसा में घुलनशील विटामिन है और शरीर के वसा या फैट में संग्रहीत किया जाता है।

विटामिन डी की कमी के लक्षण Symptoms of deficiency

बच्चों को यदि विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में न मिले तो उनमें सही विकास नहीं होता। कुछ लक्षणों को देख कर उनमें विटामिन डी की कमी है या नहीं ये समझा जा सकता है। नीचे कुछ ऐसे ही लक्षण दिए गए हैं:

  1. मांसपेशियों में ऐंठन
  2. चिड़चिड़ापन
  3. नरम खोपड़ी या कमजोर घुमावदार पैर bow-legged धनुष की तरह मुड़े पैर
  4. रिकेट्स, विकास और ऊंचाई में कमी
  5. देर से खड़ा होना और चलना
  6. सांस लेने कठिनाइयों
  7. बार-बार संक्रमण
  8. दांत सही समय पर निकलना
  9. दांतों का गलना

विटामिन डी की कमी को दूर करने के लिए रोजाना 1000 IU, तीन महीने तक और विटामिन डी की कमी न हो, इसके लिए रोजाना 400 IU दें जब तक शिशु बारह महीने का न हो जाए।

CalShine P oral solution एक लिक्विड दवा है जो की बच्चों को नियमित दी जा सकती है जिससे उनमें इस विटामिन की कमी न हो और वे स्वस्थ्य रहें।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Calshine P is paediatric oral drops for Cholecalciferol or Vitamin D3 supplementation. It is manufactured by Eris Life science Pvt Ltd. In each ml of CalShine drops, there is 800 IU of Vitamin D3. The exact dosage is dependent on age of child and prescribed by physician.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • दवाई का नाम: Calshine P (paediatric oral drops)
  • निर्माता / ब्रांड: Eris Life science Pvt Ltd.
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: एलोपैथिक सप्लीमेंट
  • मुख्य उपयोग: विटामिन डी की कमी को न होना देना, विटामिन डी की कमी दूर करना
  • मूल्य MRP (दवा के दाम बदलते रहते हैं):
  • CALSHINE P 15ml DROPS @ Rs. 65.00
  • CALSHINE P 30ML DROPS @ Rs. 110.00

कैल्शाइन पी के घटक Ingredients of Calshine P

800 IU/ml of Vitamin D3 कोलेकैल्सीफेरोल

कैल्शाइन पी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Calshine P

  • विटामिन डी की कमी दूर करना
  • विटामिन डी के स्वस्थ्य स्तर को बनाए रखना

बच्चों में विटामिन डी की दैनिक ज़रूरत

  • जन्म से 12 महीने: 400 आइयू (इंटरनेशनल यूनिट)
  • बच्चे 1 – 13 साल: 600 आइयू

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Calshine P

यह ड्राप के रूप में दी जाने वाली दवाई है।

बच्चे को जन्म के बाद एक वर्ष की उम्र तक, दिन में एक बार यह ड्राप आधा मिलीलीटर की मात्रा में दें।

इसी प्रकार की अन्य दवाएं / उपलब्ध विकल्प

  1. BC FERROL Drops (BIO WARRIORS)
  2. DVION Drops (MERCK PHARMA)
  3. D LIQ Drops (DELCURE LIFESCIENCES LTD)
  4. ESD3 Drops (VILBERRY HEALTH CARE)
  5. JUSDEE SUSPENSION (STEDMAN PHARMA)
  6. JUSDEE 800IU SUSPENSION (STEDMAN PHARMA)
  7. KIDRICH D3 Drops (DR REDDYS)
  8. MACBRITE D3 800IU Drops (MACLEODS)
  9. OSTA D3 Drops (RAVENBHEL PHARMACEUTICALS)
  10. SOLIS D3 Drops (VASU ORGANICS)
  11. SWIN D3 Drops (INDO SWISS REMEDIES)
  12. VITANOVA D3 Drops (ZUVENTUS HEALTHCARE LTD)

करकादि चूर्ण Karkadi Churna Detail and Uses in Hindi

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करकादि चूर्ण, एक आयुर्वेदिक हर्बल चूर्ण है जिसे पाचन सम्बन्धी परेशानियों में प्रयोग किया जाता है। सनाय के प्रमुखता होने से इसका का मुख्य गुण विरेचन है और इसलिए यह कब्ज़ में लाभप्रद है। सनाय के अतिरिक्त इसमें करक (अर्थात अनार), जीरा, त्रिफला आदि द्रव्य भी है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता / ब्रांड: Sethi Rasayan Shala
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: विबंध
  • मुख्य गुण: विरेचक

करकादि चूर्ण के घटक Ingredients of Karkadi Churna

  1. करक / अनार के बीज
  2. सफ़ेद जीरा 1 तोला
  3. काला नमक 1 तोला
  4. सूखा पुदीना 1 तोला
  5. आंवला 1 तोला
  6. हरद 1 तोला
  7. बहेड़ा 1 तोला
  8. सेंधा नमक 1 तोला
  9. साम्भर नमक 1 तोला
  10. शुंठी 1 तोला
  11. सनाय 10 तोला

बनाने की विधि

  1. सभी घटक द्रव्यों को निर्धारित मात्रा में लें।
  2. इनका कपड़छन चूर्ण बना लें।
  3. चूर्ण को मिला लें और एक शीशी में भर कर रख लें।
  4. इस प्रकार तैयार चूर्ण को करकादि चूर्ण कहते हैं।

जानिये प्रयुक्त जड़ी-बूटियों के बारे में

1- अनार को आयुर्वेद में करक, दाडिम्ब, सुफल, वृत्तफल, कुचफूल, मणिबीज और शुकादन आदि नामों से जानते है। अनार के सूखे बीजों को अनारदाना कहते है और यह एक मसाले की तरह प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से भूख बढ़ती है।

2- सनाय का लैटिन नाम या वानस्पतिक नाम केसिया अंगस्टीफोलिया है और यह लेगुमिनेसी कुल का बहुवर्षीय पौधा है। इसे हिन्दी में सनाय, अंग्रेजी में इंडियन सेन्ना, राजस्थानी में सोनामुखी कहते हैं। सनाय का पौधा काँटे रहित व झाड़ीनुमा होता है जिसकी ऊँचाई 2 से 4 फुट तथा शाखायें टेढ़ी मेढ़ी होती हैं। शीतकाल में चमकीले पीले रंग के फूल खिलते हैं। इसकी फली हल्के रंग की होती है व पकने पर गहरे भूरे रंग की हो जाती है। बीज भी भूरे रंग के होते हैं।

यह बंजर भूमि में उगता है तथा इसके पौधे को कोई पशु नहीं खाता। एक बार लगा दिए जाने पर कई वर्षों तक इसका औषधीय प्रयोग किया जा सकता है।

सनाय मुख्य रूप से रेचक और दस्तावर है और इसलिए इसे प्रमुखता से विबंध / कब्ज़ को दूर करने के दवाओं के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसे अन्य बहुत से रोगों जिए की चर्म रोगों, पीलिया, अस्थमा, मलेरिया, बुखार, अपच आदि में भी प्रयोग किया जा रहा है।

3- त्रिफला तीन प्राकृतिक जड़ी बूटियों (आवला, हरड और बहेड़ा) का एक कॉम्बिनेशन है। इसके सेवन से immunity बढती है तथा पाचन ठीक रहता है। यह रसायन होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छा विरेचक, दस्तावर भी है। इसके सेवन से पेट सही से साफ़ होता है, शरीर से गंदगी दूर होती है और पाचन सही होता है। यह पित्त और कफ दोनों ही रोगों में लाभप्रद है। त्रिफला प्रमेह, कब्ज़, और अधिक पित्त नाशक है। यह पूरे शरीर को साफ़ करता है और फर्टिलिटी को बढाता है।

4- अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।

शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

करकादि चूर्ण के लाभ/फ़ायदे Benefits of Karkadi Churna

यह मलावरोध को दूर करता है। मलावरोध प्रायः लीवर के ठीक से काम न करने, पाचन की कमजोरी, या किसी अन्य कारण से हो सकता है। मलावरोध के कारण अन्य बहुत से लक्षण उत्पन्न हो जाते है जैसे की अफारा, भूख न लगना, सही से पदार्थों का अवशोषण न होना आदि। ऐसे में इस चूर्ण के सेवन से लाभ होता है।

  1. यह आँतों की सफाई करता है।
  2. मलावरोध के दूर होने से लीवर रोगों में लाभ होता है।
  3. यह शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करता है।

करकादि चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग Uses of Karkadi Churna

इस चूर्ण के सेवन से कब्ज़ दूर होता है तथा पेट साफ़ होता है। यह यकृत जिसे अंग्रेजी में लीवर कहते हैं, के रोगों में भी लाभप्रद है।

विबंध / कब्ज़ / मलावरोध

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Karkadi Churna

  1. इस चूर्ण को लेने की मात्रा एक से तीन माशा अथवा एक से तीन ग्राम है।
  2. इसे रात्रि में एक बार सोने से पहले ही लेना है।
  3. इस दवा के लिए अनुपान उष्ण / गर्म पानी है।
  4. इसे भोजन करने के बाद लें।

सावधनियाँ / साइड-इफेक्ट्स / कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

इस दवा का मुख्य घटक सनाय है। सनाय को आंत्र रुकावट, पेट में अज्ञात कारणों के दर्द, पथरी, कोलाइटिस, Crohn’s disease, IBS, बवासीर, नेफ्रोपैथी, प्रेगनेंसी और १२ वर्ष से छोटे बच्चों में न प्रयोग करे।

  1. अधिक मात्रा में प्रयोग से दस्त हो सकते हैं।
  2. दस्त होने पर इसे इस्तेमाल न करें।
  3. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  4. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  5. इसमें लवण हैं इसलिए इसका सेवन वे लोग न करें जिन्हें उच्च रक्तचाप है या कम नमक के सेवन की सलाह दी गई है।
  6. यह उष्ण वीर्य है इसलिए इसका सेवन गर्भवस्था में न करें।

कम्पवातारि रस Kampvatari Ras Detail and Uses in Hindi

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कम्पवातारि रस एक आयुर्वेदिक रस-औषधि है जिसमें रस, पारा है। पारे को ही आयुर्वेद में रस या पारद कहा जाता है और बहुत सी दवाओं के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। रस औषधियां शरीर पर शीघ्र प्रभाव डालती हैं। इन्हें डॉक्टर की देख-रेख में ही लेना सही रहता है।

रस औषधियों के निर्माण में शुद्ध पारे और शुद्ध गंधक को मिलाकर पहले कज्जली बनायी जाती है जो की काले रंग की होती है। रासायनिक रूप से कज्जली, ब्लैक सल्फाइड ऑफ़ मरक्युरी है। कज्जली को रसायन माना गया है जो की त्रिदोष को संतुलित करती है। यदि इसे अन्य उपयुक्त घटकों के साथ मिलाकर दवा बनाई जाती है तो यह लगभग हर रोग को दूर कर सकती है। कज्जली वाजीकारक, रसायन, योगवाही है। इस दवाई का प्रमुख घटक रस सिन्दूर है जो की कज्जली से ही निर्मित किया जाता है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Kampvatari Ras is Ras Aushdhi of Ayurveda. It contains Tamra Bhasma and Rasa Sindur processed in Katuka (Synonyms: Picrorhiza kurroa, Tikta, Tiktarohi, Kutki, Katuka rohini, Katuku rohini, Kadugurohini) juice. This medicine is a prescription drug used in Parkinsonism, Shaking Palsy, Convulsion, Chorea and Neurological Disorders.

It is highly recommended to take this medicine with due caution.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता / ब्रांड: Nagarjun, KAMPVATARI RAS TABLETS, 20 Tablets
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: आयुर्वेद की रस (मरक्युरी और सल्फर ) औषधि
  • मुख्य उपयोग: Parkinson’s Disease (Kampa vata)

कम्पवातारि रस के घटक Ingredients of Kampvatari Ras

  • ताम्र भस्म 2 तोला
  • रस सिन्दूर 2 तोला (अभाव में शुद्ध हिंगुल)
  • मर्दन के लिए: कुटकी का रस

बनाने की विधि

ताम्र भस्म और रस सिन्दूर का एक साथ मर्दन कर, कुटकी के रस की 21 भावना दें। प्रत्येक भावना में तीन घंटे मर्दन करें। इसके पश्चात 1 रत्ती / 125 मिलीग्राम की गोलियां बना, छाया में सुखा लें।

रस सिन्दूर क्या है?

रस सिंदूर, केमिकली मरक्यूरिक सल्फाइड है। यह रस अर्थात पारे से बना होता है और रंग में लाल होता है इसलिए रस सिन्दूर कहलाता है। रस सिंदूर को बनाने की कई विधियाँ आयुर्वेद में वर्णित हैं।

इसमें गंधक करीब 14 और मर्करी 86 प्रतिशत पाया जाता है। यह एक कूपीपक्व रसायन है जो की कज्जली को कांच की शीशी में सैंड बाथ या बालुका यंत्र में पका कर बनता है। तैयार होने पर जब शीशी सैंडबाथ में स्वांग शीतल हो जाती है तो उसे तोड़ कर गलप्रदेश पर चिपके रक्तवर्ण के रस सिन्दूर को एकत्र कर लिया जाता है।

रस सिंदूर को ज्वर, प्रमेह, प्रदर, अर्श, अपस्मार, उन्माद, श्वास, यकृत रोग, पाचन रोग, विस्फोट, स्वप्न दोष, समेत पुराने आमवात, शिरः कम्प, कम्पवात आदि अभी में दिया जाता है।

यह उष्णवीर्य रसायन है जिसकी मात्रा बहुत से कारकों पर निर्भर है। यह उत्तेजक है, रक्त की गति को तेज करता है, कफ नष्ट करता है, स्नायु को बल देता है और फेफड़ों के रोगों को दूर करता है। यह मुख्य रूप से कफ को दूर करता है और नाड़ियों को बल देता है।

रस सिंदूर क्योंकि एक रस औषधि है इसलिए इसे लम्बे समय तक लेना सुरक्षित नहीं है। इसे एक महीने से ज्यादा की अवधि तक लेने से कई दुष्परिणाम होते है। रस सिंदूर का अधिक सेवन किडनी फेल भी कर सकता है।

कम्पवातारि रस के चिकित्सीय उपयोग Uses of Kampvatari Ras

  1. कम्पवात /पार्किंसनिज़्म / पार्किन्‍सन
  2. सर्वांगवात (डायप्लेजिया)
  3. पाल्सी, ऐंठन,
  4. मस्तिष्क संबंधी विकार

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kampvatari Ras

  1. 1 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  2. इसे अदरक के रस / पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के बाद लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  2. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।

यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में पारद, गंधक, खनिज आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।

यह एक उष्ण वीर्य दवाई है। अधिक मात्रा में सेवन शरीर में जलन, गर्मी, पित्त की अधिकता आदि कर सकता है।

यह दवा के सभी साइड – इफेक्ट्स की सूची नहीं है।

त्रिफला रसायन Triphala Rasayana in Hindi

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त्रिफला (फलत्रिक, वरा) आयुर्वेद का सुप्रसिद्ध टॉनिक है। यह लगभग हर प्रकार के रोग में लाभदायक है। यह वात, पित्त और कफ को संतुलित करने, शरीर से गंदगी निकालने, आमपाचक गुण के कारण सर्वरोगनाशक माना गया है। यह दृष्टिवर्धक, रक्तवर्धक, और स्वास्थ्यवर्धक है। इसका सेवन रोगों को दूर भगाता है और निरोग देता है। अगर आप को कोई रोग नहीं भी है तो भी आप इसका सेवन कर सकते है।

त्रिफला आंवला, हर्र, बहेड़ा को बराबर मात्रा में मिलाकर बनता है। यह रसायन होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छा विरेचक, दस्तावर भी है। इसके सेवन से पेट सही से साफ़ होता है, शरीर से गंदगी दूर होती है और पाचन सही होता है। यह पित्त और कफ दोनों ही रोगों में लाभप्रद है। त्रिफला प्रमेह, कब्ज़, और अधिक पित्त नाशक है। इसके सेवन से immunity बढती है तथा पाचन ठीक रहता है।

त्रिफला के अन्य नाम: फलत्रिक, वरा (संस्कृत में) इत्रिफल (यूनानी नाम)

गुण: प्रमेह, कफ, पित्त, को दूर करने वाला, कुष्ठ हरने वाला, मृदु विरेचक, रुचिवर्धक, और विषमज्वर नाशक है।

मुख्य घटक: टैनिन, अल्कलोइद्स, विटामिन सी, फ़्लेवेनोइड्स , गेलिक एसिड, चीबुलिनिक एसिड आदि।

त्रिफला के आयुर्वेदिक गुण

त्रिफला का सेवन शरीर में वात, पित्त और कफ तीनो को संतुलित करता है। यह पेशाब के रोगों / मेह को तथा पुराने चमड़ी के रोगों में लाभदायक है। यह भूख, पाचन और अवशोषण को बढ़ाता है। यह मलेरिया के बुखार / विषम ज्वर में भी लाभप्रद है। डेंगू में हेमरेज / रक्तस्राव को रोकने के लिए भी त्रिफला दिया जाता है। यह स्रोतों को साफ़ करता है।

  • रस (taste on tongue): मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त, कषाय (लवण छोड़ कर बाकी सभी पांच रस)
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

कर्म:

  • अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • चक्षुष्य: नेत्रों के लिए लाभप्रद।
  • रसायन: द्रव्य जो शरीर की बीमारियों से रक्षा करे और वृद्धवस्था को दूर रखे।
  • शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
  • विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
  • पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए। यह सप्त धातुओं को पोषित करता है।

चरक संहिता में त्रिफला को एक रसायन की तरह लेने की कई विधियाँ बताई गई हैं। इसे अन्य कई द्रव्यों के साथ, एक वर्ष तक निरंतर लेने से यह व्याधियों को दूर करता है, बल-शक्ति की वृद्धि करता है और निरोगी जीवन देता है।

How to use Triphala Rasayan and Recipe ?

१- त्रिफला रसायन

भोजन के पच जाने पर हरड़ का चूर्ण (अथवा एक हरड़ का गूदा ), भोजन के पहले बहेड़े का चूर्ण (अथवा दो बहेड़े का गूदा) और भोजन करने के पश्चात आंवले का चूर्ण (अथवा चार आंवले का गूदा) मधु और घी के साथ एक वर्ष तक प्रयोग करने से रोग दूर होते है और मनुष्य को आयुष्य मिलता है।

२- त्रिफला रसायन

त्रिफला को पीसकर कल्क / पेस्ट बना कर, नए लोहे के बर्तन में लेप लगाकर दिन-रात छोड़ दें। उसके बाद उसे उतार कर मधु और जल में घोलकर शर्बत बना प्रातःकाल एक बार सेवन करें। ऐसा निरंतर एक वर्ष तक करने से मनुष्य रोग रहित होता है। यह ताकत, बल और आयुष्य देता है।

३- त्रिफला रसायन

त्रिफला का चूर्ण एक सेर, मुलेठी एक पाव, वंशलोचन एक पाँव, पीपर एक पाव और मिश्री एक पाव- इन सभी का कपड़छन सूक्ष्म चूर्ण मिलाकर रख लेंवें। इस चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा में मधु और शहद (विषम भाग) में दिन में एक बार सेवन करें। ऐसा निरन्तर एक वर्ष तक करें। यह दीर्घायु,स्मृति, बुद्धि, तथा बल देगा। यह रसायन जनित गुणों से युक्त है।

४- त्रिफला रसायन

लौह भस्म, सुवर्ण भस्म, रौप्य भस्म, ताम्र भस्म, वंग भस्म, यशद भस्म, नाग भस्म, मीठावच चूर्ण, मधु घृत, वायविडंग, पिप्पली, और सेंधा नमक के साथ त्रिफला का एक वर्ष तक सेवन मेधा, स्मरणशक्ति और बल देता है। यह रोग दूर करने वाला उत्तम रसायन है।

अन्य त्रिफला रसायन

  1. त्रिफला को मिश्री, मधु-घी के साथ एक वर्ष तक लें।
  2. त्रिफला को विडंग और पिप्पली, मधु-घी के साथ एक वर्ष तक लें।
  3. त्रिफला को लवण, मधु-घी के साथ एक वर्ष तक लें।

Triphala churna side effects in Hindi

  1. इसको प्रेगनेंसी और स्तनपान के दौरान न ले।
  2. कुछ लोगों में त्रिफला मूत्रल गुण दिखाता है। वे लोग रात में इसे न लें क्योंकि यह नींद डिस्टर्ब कर सकता है।
  3. कुछ लोगों में इसका सेवन ज्यादा नींद लाता है।
  4. 6 साल से छोटे बच्चों को त्रिफला न दें।
  5. लम्बे समय तक लेने के लिए इसे कम मात्रा में और छोटी अवधि के लिए ज्यादा मात्रा में लिया जा सकता है.

वासावलेह Vasavaleha Benefits, Uses and Price in Hindi

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वासावलेह (Vasawaleh), आयुर्वेद के एक जानी-मानी औषधि है। इसके सेवन से खांसी और कफज रोग दूर होते हैं। यह क्षयजन्य खांसी के लिए अत्यंत लाभप्रद है। इसके सेवन से कास, शाव, और पुरानी खांसी में बहुत लाभ होता है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Vasavaleha is a semisolid avaleha preparation of Ayurveda prescribed for asthma, chronic cold, rhinitis and similar respiratory tract infections and other diseases like tuberculosis, pain abdomen, bleeding disorders and fever etc. Main ingredient of this medicine is Vasa (Malabar Nut).

malabar-nut
By H. Zell (Own work) [GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html)
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है
  • दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक क्लासिकल हर्बल दवाई
  • मुख्य उपयोग: कफज रोग
  • मुख्य गुण: कफ की अधिकता को दूर करना
  • अनुपान: दूध अथवा पानी और शहद

मूल्य MRP:

  1. Rs. 32.00 for 60 gm (Baidynath)
  2. Rs. 137.00 for 250 gm (Dabur)
  3. Rs. 240.00 for 250 gm (VHCA Ayurveda)

वासावलेह के घटक Ingredients of Vasavaleha

  1. वासा Vasaka (Vasa) svarasa Adhatoda vasica Lf. (Fresh) 768 ग्राम
  2. मिश्री Sita Sugar candy 384 ग्राम
  3. सर्पी Sarpi (Go ghrita) Clarified butter from cow’s milk 96 ग्राम
  4. पिप्पली Pippali Piper longum Fr. 96 ग्राम
  5. शहद Madhu Honey 384 ग्राम

बनाने की विधि

वासावलेह बनाने के लिए सर्वप्रथम, वासा के पत्तों को धो-साफ़ कर उनका रस निकाला जाता है। फिर इस रस में मिश्री के पाउडर को डाल मंद आंच पर पकाया जाता है। इसे लगातार चलाया जाता है और पूरी तरह से तरल हो जाने पर कपड़े से छान लिया जाता है। छनने के बाद में इसमें घी और पिप्पली को डाल कर मिलाते हैं और धीमी आंच पर पकाते हैं। पकने पर इसमें शहद मिला देते हैं।

वासावलेह के लाभ/फ़ायदे Benefits of Vasavaleha

  1. यह श्वसन तंत्र respiratory tract के विभिन्न रोगों जैसे की अस्थमा (vasavaleha asthma), ब्रोंकाइटिस, पुरानी खांसी, कफ आदि में अत्यंत लाभप्रद है।
  2. इस दवाई का मुख्य घटक अरुसा या वासा है जो की कास-श्वास और रक्तपित्त के उपचार में वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है।
  3. इस दवा में कफःनिस्सारक expectorant गुण है इसलिए यह कफ को ढीला कर उसे आसानी से निकालने में मदद करती है।
  4. यह गले की सूजन को कम करती है।

वासावलेह के चिकित्सीय उपयोग Uses of Vasavaleha

  1. कास Kasa (cough)
  2. श्वास shvasa (Dyspnoea)
  3. ज्वर Jvara (Fever)
  4. रक्तपित्त Raktapitta (bleeding disorders)
  5. टी।बी। Rajayakshma (Tuberculosis);
  6. पार्श्वशूल Parshvashula (intercostal neuralgia andpleurodynia)
  7. सीने में दर्द Hritshula (Angina pectoris)

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Vasavaleha

इसे दिन में दो बार लिया जाता है।

इसे लेने की निर्धारित मात्रा 6 से 12 ग्राम, वयस्कों के लिए, 5 ग्राम पांच से लेकर बारह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए और पांच साल से कम आयु के बच्चों को उनके वज़न के अनुसार या 1-2 ग्राम है।

दवा को दूध, पानी और शहद के साथ लेना चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

इसमें मधु और मिश्री है इसलिए डायबिटीज में इसे सावधानी से प्रयोग करें। यदि अनियंत्रित शुगर है तो इसका सेवन न करें। यदि शुगर नियंत्रण में है और कुछ मात्रा में मीठे का प्रयोग कर सकते है तो इसे भी लिया जा सकता है।

  1. इसके कुछ घटक उष्णवीर्य हैं, इसलिए अधिकता में सेवन पित्त बढ़ा सकता है जिससे पेट में जलन हो सकती है।
  2. निर्धारित मात्रा में निर्धारित समय तक लेने से इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
  3. बहुत से फार्मसी इसमें ऊपर दिए द्रव्यों के अतिरिक्त कई अन्य जड़ी-बूटियाँ भी डालती है।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  1. बैद्यनाथ Baidyanath Vasawaleh
  2. डाबर Dabur Vasavaleha
  3. झंडू Zandu Vasavaleha
  4. सन्डू Sandu Vasavaleha.

IME-9 Kudos Ayurveda IME-9 Detail and Uses in Hindi

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आईएमई 9, एक आयुर्वेदिक दवा है जो की सेंट्रल कौंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज (CCRAS) द्वारा बनाई गयी है। यह डिपार्टमेंट ऑफ़ आयुर्वेद, योग और नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी यानिकी आयुष द्वरा एप्रूव्ड है।

यह दवा डायबिटीज में शुगर लेवल को कण्ट्रोल करती है। यह बहुत अधिक प्यास लगना, भूख लगना, अधिक पेशाब आना आदि लक्षणों में लाभ करती है। यह एंटीऑक्सीडेंट है और सेल्स को फ्री सेल डैमेज से बचाती है। इस औषध के सभी घटक हर्बल होने से यह लम्बे समय तक लेने के लिए सुरक्षित है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

IME-9 is an herbal Ayurvedic medicine marketed by Kudos Laboratories India, GMP and ISO 9001:2008 Company, Shimla and researched by Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (C.C.R.A.S.).b It is approved by AYUSH.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • रिसर्च: Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (C.C.R.A.S.)
  • निर्माता / मार्केटिंग: Kudos Laboratories India, GMP and ISO 9001:2008 Company, शिमला
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक
  • मुख्य उपयोग: डायबिटीज
  • मुख्य गुण: ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करना
  • दवा का अनुपान: गुनगुना जल
  • दवा को लेने का उचित समय: सुबह खाली पेट और शाम को भोजन से आधा – एक घंटे पहले

IME-9 के घटक Ingredients of Kudos Ayurveda IME-9

  • करेला Karela (Momordica charantia Linn) 625mg
  • गुडमार Gudmar (Gymnema sylvestre) 625mg
  • जामुन Jamun (Syzygium cumini (Linn.) Skeels) 625mg
  • आम की गुठली Amra (Mangifera indica Linn) 625mg
  • शुद्ध शिलाजीत Shuddha Shilajit (Asphaltum) 0.1665g
  • सोडियम मिथाइल पेराबेन Sodium methyl paraben
  • सोडियम प्रोपाइल पेराबेन Sodium propyl paraben
  • Excipients Q.S.

जानिए घटक द्रव्यों को

1- Karela Momordica charantia

करेला बहुत ही जाना माना मधुमेह नाशक है। करेले के पौधे का फल है जिसे हम सब्जी की तरह खाते हैं और पत्ते सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह स्वाद में अत्यंत कड़वा लेकिन गुणों में अत्यंत हितकारी है। करेले में पाए जाने वाले पदार्थ हाइपोग्लाईसिमिक और रक्त में शुगर लेवल को कम करने वाले होते हैं।

करेला आसानी से पचने वाला और रूक्ष है।

करेला रस में कटु, तिक्त है। गुण में लघु और रूक्ष है। तासीर में यह गर्म और कटु विपाक है। कर्म में यह भेदी, दीपन, हृदय, कफाहर, वातदोषहर और रक्तदोषहर है।

करेले को ज्यादा मात्रा में खाने से कई नुकसान भी हैं। जैसे की यह पेट में दर्द Enteralgia और लूज़ मोशन कर सकता है। यह हाइपोग्लाईसिमिक दवाओं के असर को और बढ़ा देता है।

2- गुड़मार को मधुनाशनी के नाम से जाना जाता है गुड़मार का शाब्दिक अर्थ है वह जो चीनी को नष्ट करे। गुड़मार के पत्ते मुख्य रूप से औषधीय प्रयोजन के लिए उपयोग किये जाते है।

 

3- जामुन गुठली, मधुमेह में अत्यंत प्रभावशाली है। यह सूजन दूर करने वाली और हाइपोग्लाईसिमिक दवा है। इसमें टैनिन होने से यह संकोचक है। यह मूत्रल है और मूत्र के स्राव को बढ़ाता है।

जामुन वातल, पित्तहर, कफहर, विषतम्भी और ग्राही है।

4- शिलाजीत

शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।

शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है। शिलाजीत को हजारों साल से लगभग हर बीमारी के उपचार में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में यह कहा गया है की कोई भी ऐसा साध्य रोग नहीं है जो की शिलाजतु के प्रयोग से नियंत्रित या ठीक नहीं किया जा सकता। शिलाजीत प्रमेह रोगों की उत्तम दवा है।

IME-9 के लाभ/फ़ायदे Benefits of Kudos Ayurveda IME-9

  1. यह हर्बल आयुर्वेदिक दवाई है।
  2. यह एंटीऑक्सीडेंट है।
  3. यह ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करती है।
  4. यह इन्सुलिन के प्रति रेसिस्टेंट को कम करती है।
  5. यह इन्सुलिन के स्राव को बढ़ाती है।
  6. यह आँतों से ग्लूकोस के अवशोषण को देर से होने देती है।

IME-9 के चिकित्सीय उपयोग Uses of Kudos Ayurveda IME-9

यह दवा मधुमेह या डायबिटीज में शर्करा के बढ़े हुए स्तर को कम करने और डायबिटीज सम्बंधित जटिलताओं को कम करने में सहायक है।

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kudos Ayurveda IME-9

  1. इस दवा की २ गोली, दिन में तीन बार लिया जाना चाहिए।
  2. इसे भोजन के आधा घंटे पहले लेना चाहिए।
  3. इसे पानी के साथ लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इस दवा के सेवन के दौरान ब्लड शुगर लेवल की बराबर जांच करते रहें।
  2. इसे आप एलोपैथी की दवा के सेवन के दौरान भी ले सकते हैं।
  3. जब शर्करा स्तर नियंत्रित हो जाए अलोपथिक दवा की मात्रा कम कर दें। दवा का काम ब्लड शुगर को कम करना है, इसलिए इसका सेवन केवल निर्धारित मात्रा में ही करें।
  4. गर्भावस्था में किसी भी दवा का सेवन बिना डॉक्टर की सलाह के न करें।
  5. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  6. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  7. निर्धारित मात्रा में लेने से इसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है।

इस दवा के मिक्स्ड रिव्यु हैं। कुछ लोगों में लाभप्रद है और कुछ में नहीं। इसलिए दवा के सेवन के दौरान कृपया नियमित ब्लड शुगर की जांच करें। यदि यह आपको सूट करे तो निश्चित ही इसे लें। लेकिन यदि इसके सेवन से आपको किसी भी प्रकार की दिक्कत हो, ब्लड शुगर घटने के बजाये बढ़ जाए तो इसे न लें।

  1. डायबिटीज में दवा के सेवन के साथ जीवनशैली / लाइफस्टाइल में ज़रूरी परिवर्तन लायें।
  2. ताज़े फल खाएं, नॉन-स्टार्ची भोजन करें। भोजन बहुत ज्यादा न करें।
  3. रोजाना सैर पर जाएँ। व्यायाम करें। खुश रहें।

हिमालया गोक्षुरा Himalaya Gokshura Detail and Uses in Hindi

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हिमालया गोक्षुरा, हिमालया ड्रग कम्पनी द्वारा निर्मित दवाई है जिसमें गोखरू का प्यूर हर्बल एक्सट्रेक्ट है। यह दवा मुख्य रूप से पुरुषों के लिए है और उनके यौन स्वास्थ्य को बेहतर करती है।

इस दवा का एकमात्र घटक गोखरू है जो उत्तम वाजीकारक, बृहण, वृष्य, शक्तिवर्धक, बलवर्धक, अग्निदीपक, मधुर, स्वादु, शीतल और रसायन है। गोखरू बढ़े वात-पित्त-कफ को दूर करता है। यह प्रमेहरोग नाशक है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Himalaya Gokshura contains pure extract of Tribulus terrestris and is indicated in erectile dysfunction, urinary problems and as an aphrodisiac.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता / ब्रांड: हिमालया ड्रग कंपनी
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल
  • मुख्य उपयोग: इरेक्टाइल डिसफंक्शन
  • मुख्य गुण: मूत्रल, वाजीकारक, वृष्य

मूल्य MRP: Himalaya Herbals Gokshura – 60 Capsules @ Rs.150.00 (दवा के दाम बदल सकते हैं)

हिमालया गोक्षुरा के घटक Ingredients of Himalaya Gokshura

प्रत्येक गोली में गोखरू (Tribulus terrestris) के फल के एक्सट्रेक्ट – 250mg

गोखरू आयुर्वेद की एक प्रमुख औषधि है। इस मुख्य रूप से पेशाब रोगों और पुरुषों में यौन कमजोरी के लिए प्रयोग किया जाता है।

गोखरू दो प्रकार का होता है, छोटा और बड़ा। छोटे गोखरू का वानस्पतिक नाम ट्राईब्यूलस टेरेस्ट्रिस है। इसके पत्ते देखने में एकदम चने के पत्ते जैसे लगते है तथा इस पर पीले पुष्प आते हैं। इसके फल कांटे दार होते है और इन्हें त्रिकंटक भी कहा जाता है। क्योंकि यह फल कांटेदार होने के कारण गौ के खुरों में फंस जाते हैं इसलिए यह गोखरू कहलाते हैं।

गोखरू आयुर्वेद में मुख्य रूप से पुरुषों के लिए प्रयोग की जाने वाली औषधि है। इसके सेवन से मांसपेशियां बनती हैं, मज़बूत होती हैं, शक्ति-बल की वृद्धि होती है, टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ता है जिससे कामेच्छा बढ़ती है, वीर्य -शुक्र विकार दूर होते हैं और व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट होता है।

गोखरू शीतल, मूत्रशोधक, मूत्रवर्धक, वीर्यवर्धक, और शक्तिवर्धक है। यह पथरी, पुरुषों के प्रमेह, सांस की तकलीफों, शरीर में वायु दोष के कारण होने वाले रोगों, हृदयरोग और प्रजनन अंगों सम्बन्धी रोगों की उत्तम दवा है। यह वाजीकारक है और पुरुषों के यौन प्रदर्शन में सुधार करता है।

गोखरू का प्रयोग यौन शक्ति को बढ़ाने में बहुत लाभकारी माना गया है। यह नपुंसकता, किडनी/गुर्दे के विकारों, प्रजनन अंगों की कमजोरी-संक्रमण, आदि को दूर करता है।

गोखरू के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

यह मधुर रस औषधि है। मुख में रखते ही प्रसन्न करता है। यह रस धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीयआयुष्य है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात-पित्त-विष शामक है।

यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

  • रस (taste on tongue): मधुर
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। यह मधुर रस और मधुर विपाक है।

मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

कर्म Principle Action

  1. मूत्रल : द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये।
  2. मूत्रकृच्छघ्न: द्रव्य जो मूत्रकृच्छ strangury को दूर करे।
  3. शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
  4. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  5. शुक्रकर: द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे।
  6. बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
  7. वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
  8. अश्मरीघ्न: द्रव्य जो पथरी नष्ट करे।
  9. बल्य: द्रव्य जो बल दे।
  10. रक्तशोधन: द्रव्य जो खून साफ़ करे।
  11. शुक्रशोधन: द्रव्य जो शुक्र क शोधन करे।
  12. बस्तीशोधन: द्रव्य जो मूत्रल अंगों को साफ़ करे।
  13. वातहर: द्रव्य जो वायु दोष दूर करे।

हिमालया गोक्षुरा के लाभ/फ़ायदे Benefits of Himalaya Gokshura

  1. यह शरीर को ठंडक देता है।
  2. यह मूत्रल है।
  3. इसके सेवन से पेशाब सम्बन्धी रोगों में लाभ होता है।
  4. यह टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बढ़ाता है।
  5. यह प्रजनन अंगों के सही काम करने में मदद करता है।
  6. यह मांसपेशियों के विकास में मदद करता है।
  7. यह स्टैमिना, एनर्जी को बढ़ाता है।
  8. इसके सेवन से सेक्सुल प्रदर्शन में सुधार होता है।
  9. यह वाजीकारक है और कामेच्छा को बढ़ाता है।
  10. यह शरीर को मज़बूत बनाता है।

हिमालया गोक्षुरा के चिकित्सीय उपयोग Uses of Himalaya Gokshura

  1. स्तम्भन दोष ED, performance problem
  2. कम एनर्जी, कम कामेच्छा Low energy, vigour
  3. पेशाब रोग Urinary tract infection UTI
  4. वीर्य दोष Semen disorders (too few sperms / oligospermia or no sperms azoospermia or defects in sperm quality)

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Himalaya Gokshura

  • इस दवा की 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे पानी के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  2. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  3. गोखरू का मूत्रल गुण है जिससे पेशाब ज्यादा आता है।
  4. दवा के सेवन का असर कुछ सप्ताह के प्रयोग के बाद आता है।
  5. दवा के किसी भी दुष्प्रभाव के बारे में ज्ञात नहीं है।
  6. यदि आपको इसके सेवन के दौरान किसी भी प्रकार का साइड-इफेक्ट लगे या यह आपको सूट न करे तो कृपया इसे न लें।
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