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कलियारी Langali (Gloriosa superba) in Hindi

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अग्निशिखा, अग्निमुखी, गर्भघातिनी, गर्भपतिनी, हरिप्रिया, लंगालाकी, लंगालिका आदि कलियारी के संस्कृत नाम हैं। इसे इंग्लिश में क्लाइम्बिंग लिली, ग्लोरी लिली, व मालाबार ग्लोरी लिली भी कहा जाता है।

यह एक लिली परिवार की लता जाति की औषधीय वनस्पति है। इसके पुष्प सुन्दर होते हैं और इसलिए इसे बाड़ की तरह भी लगाया जाता है। यह एक विषैला पौधा है और आयुर्वेद के उपविष वर्ग के सात पौधों (आक, सेहुंड, कनेर, रत्ती, अफीम, धतूरा, और कलिहारी) में से एक है। दवा की तरह इसकी जड़ तथा पत्तों का प्रयोग किया जाता है।

gloriosa-superba

कलियारी या कलिहारी को आयुर्वेद में सांप के विष के लिए, भगंदर, जोड़ों के दर्द, रक्त विकार आदि में प्रयोग करते हैं। इसका बाहरी प्रयोग जल्दी प्रसव कराने के लिए भी किया जाता है।

क्योंकि यह विषैला है इसलिए इसकी जड़ को आंतरिक प्रयोग करने से पहले शुद्ध किया जाता है। इसकी कंद को सात दिनों तक छाछ में भिगोने से यह शुद्ध हो जाती है। शुद्ध की हुई जड़ को बहुत ही कम मात्रा में आंतरिक रूप से प्रयोग किया जाता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: Gloriosa superba
  • कुल (Family): लिली कुल
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज, पत्ते और कन्द
  • पौधे का प्रकार: लता
  • वितरण: पूरे भारत में
  • पर्यावास: ट्रॉपिकल हिस्से

स्थानीय नाम / Synonyms

  1. Latin name: Gloriosa superba
  2. Ayurvedic: Langali, Langaliki, Langalaki, Langlahva, Indrapushpi, Agnishikha, Ananta, Vishalya,
  3. Visalya, Halini, Sirikrama, Shukrapushpika, Vahnimukhi, Garbhapatani, Kalihari, Kalikari,
  4. Shakrapushpi, Garbhaghatini
  5. Siddha: Kalappaik Kizhangu
  6. English: Glory Lily, Super Lily, Tiger’s Claws, Climbing Lily
  7. Bengali: Bisalanguli, Bishalanguli
  8. Gujarati: Khadiyanag, Dudhiya vachnag
  9. Hindi: Kalihari
  10. Kannada: Kolikutumana Gade, Nangulika
  11. Malayalam: Mathonni, Menthonni
  12. Marathi: Karianag
  13. Oriya: Dangogahana
  14. Punjabi: Kariyari, Kariari
  15. Tamil: Kalappoi Kizhangu, Akkinichilam
  16. Telugu: Potthidumpa, Adavinabhi
  17. Myanmar: Si ­ mee ­ dauk
  18. वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: लिलीडे Liliidae
  • आर्डर Order: लिलियल्स Liliales
  • परिवार Family: लिलिएसए Liliaceae
  • जीनस Genus: ग्लोरिओसा Gloriosa
  • प्रजाति Species: ग्लोरिओसा सुपर्बा – फ्लेम लिली Gloriosa superba L। – flame lily

लांगली की जड़/कन्द के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

लांगली की जड़, स्वाद में कटु, तिक्त और कषाय गुण में सार और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।

आयुर्वेद में इसे कुष्ठ, शोष, अर्श, घाव, दर्द, कृमि बस्ती में दर्द, गर्भ शल्य और वातव्याधि में प्रयोग किया जाता है।

  • रस (taste on tongue):कटु, तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): सार, तीक्ष्ण
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • कर्म: कफहर, वातहर और गर्भपतन

यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

कलियारी के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Gloriosa superba in Hindi

  1. आंतरिक प्रयोग करने के लिए कंद को सात दिनों तक छाछ में भिगोया जाता है।
  2. कंद के पेस्ट को त्वचा रोग, सांप के काटने और पागलपन के लिए सिर पर लगाया जाता है।
  3. जड़ का एक सूखा टुकड़ा 4 – 5 दिन के लिए नमकीन छाछ में भिगो, कोबरा के काटने के लिए आंतरिक रूप से लिया जाता है।
  4. शोधित जड़ के पेस्ट को संधिशोथ और जोड़ों के दर्द के लिए प्रयोग किया जाता है। कलियारी की जड़, अफीम, अश्वगंधा, तमाखू, सोंठ और जायफल सभी की बराबर मात्रा लेकर पेस्ट बनाकर, चार गुना तिल का तेल और तेल से चार गुना पानी मिलाकर में पकाएं। जब तेल ही बचे तो उसे छान लें। इस तेल को जोड़ों की मालिश के लिए प्रयोग करें। यह जोड़ों के दर्द को दूर करेगा।
  5. रूमेटिक दर्द में पत्ते के पेस्ट को भी बाहरी रूप से लगाएं।
  6. जड़ के पेस्ट को फोड़ों पर बाह्य रूप से लगाया जाता है।
  7. यह अत्यधिक अबोरटिव abortive है। रूट पेस्ट को लेबर पेन शुरू करने के लिए गर्भवती स्त्री के नाभि क्षेत्र पर लगाया जाता है।
  8. कंद जिसे बिना किसी भी लोहे के उपकरण का उपयोग कर के एकत्र किया जाता है उसे प्रसव के दौरान दीमक के आश्रय की मिट्टी के साथ मिलाकर सिर के केंद्र पर लगाया जाता है जिससे बिना अधिक कष्ट के डीलिवेरी हो सके।
  9. कंद का पेस्ट, धतूरा के पत्तों के रस के साथ मिलाकर फिस्टुला के लिए लगाया जाता है।
  10. कंद और मदार की जड़ को बकरी के मूत्र में पीस कर यौन रोगों पर बाह्य रूप से प्रयोग किया जाता है।
  11. कलियारी के पत्तों को कूट कर रस निकाल कर, एक चम्मच की मात्रा में एक सप्ताह तक देने से खून और वायु के विकारों में लाभ होता है।
  12. इसके कन्द के पेस्ट में शहद और काला नामक मिलाकर, योनि पर लगाने से रुका हुआ मासिक धर्म, स्राव में कठिनाई, अनियमितता आदि दूर होते हैं।
  13. सिर में जुएँ होने पर इसके पत्तों का रस बालों में लगाते हैं।

शोधित किए हुए कन्द की आंतरिक रूप से लेने की औषधीय मात्रा 125-250 मिली ग्राम है। इससे अधिक मात्रा का सेवन हानिकारक है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह विष है।
  2. इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।

भिन्डी Bhindi-Okra Information and Medicinal Uses in Hindi

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भिन्डी गर्मियों में मिलने वाली आम हरीसब्जी है। यह एबलमोस्चस एसक्यूलेन्टस पौधे के कच्चे फल Immature pods होते है। इसे इंग्लिश में ओकरा या लेडी फिंगर भी कहते है। हिंदी में भिन्डी, रामतुरई, राम्तुरी, संस्कृत में भेंडा, भिंडा, अश्रपत्रक, चतुष्पदा, दारिवका, गंधमूला, पिच्छिला, वृतबीजा, इत्यादी कहते हैं।

Bhindi

यह पूरे भारत भर में एक सब्जी की तरह पका कर खायी जाती है। भिन्डी की सूखी सब्जी बनाने के लिए, पहले इसे पानी से अच्छे से धुला जाता है, फिर इसे बारीक काट लिया जाता है। आलू को भी पतला काट कर इसमें डाला जा सकता है। पैन में तेल गर्म कर, जीरा, लहसुन का तड़का लगाया जाता है। अब इसमें भिन्डी, अमचूर पाउडर और नमक डाल कर अच्छे से मिला कर ढक कर पकाते है। बीच – बीच में चलाते रहते हैं और कुछ देर में सब्जी पक जाती है। इसे रोटी या चावल के साथ खाया जाता है।

भिन्डी एक औषधीय वनस्पति भी है। भिन्डी के फल, पत्ते, जड़, बीज सभी औषधि रूप से प्रयोग किये जाते रहे है। भिन्डी के फल मधुमेह में लाभप्रद है। इसके पत्ते पीस कर सूजन आदि पर लागाये जाते हैं। जड़ को रह्यूमैटिस्म में प्रयोग किया जाता है। भिन्डी के फल स्निग्‍धकारी demulcent और ठंडक देने वाले emollient होते है। भिन्डी का सेवन शरीर में गर्मी को कम करता है और जलन आदि में आराम देता है।

भोजन, और दवा के अतिरिक्त, भिन्डी के पौधे को पेपर बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: Hibiscus esculentus, Abelmoschus esculentus (L.) Moench
  • कुल (Family): मालवेल्सिएइ – मैलो फॅमिली
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
  • पौधे का प्रकार: हर्ब
  • वितरण और पर्यावास: सब्जी की तरह पूरे भारत में इसकी खेती की जाती है

नाम / Synonyms

  • English: Gumbo, Lady Finger, Lady’s finger, Okra
  • Sanskrit: Tindisa, Gandha-mula, Bhaandi, Bhindaka, Bhendaa
  • Arab: Bamiya
  • Hindi: Bhindi ram-turai
  • Bengali: Dhenras, ram-torai
  • Marathi: Bhenda
  • Gujarati: Bhindu
  • Tamil: Vendaik-kay, vendi
  • Telugu: Pencla, benda-kaya
  • Unani: Baamiyaa

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: डिलेनीडेएई Dilleniidae
  • आर्डर Order: मालवेल्स Malvales
  • परिवार Family: मालवेल्सिएइ – मैलो फॅमिली Malvaceae – Mallow family
  • जीनस Genus: एबलमोस्चस – ओकरा Abelmoschus Medik. – okra
  • प्रजाति Species: एबलमोस्चस अथवा हेबिस्कस एसक्यूलेन्टस Abelmoschus esculentus (L. ) Moench – okra

भिन्डी के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Okra/Lady Finger/Bhindi

भिन्डी बहुत ही लुआबदार slimy और स्वाद में मीठी sweet और फीकी होती है। यह तासीर में ठण्डी cool in potency और रुचिकारक, पौष्टिक, कामोद्दीपक aphrodisiac, खून बढ़ाने वाली, पित्त विकार दूर करने वाली और कफ-वात बढ़ाने वाली मानी गई है। यह मूत्रल diuretic है और पेशाब लाती है। इसके सेवन से सुजाक, अनैच्छिक वीर्यस्राव involuntary ejaculation, पेशाब की जलन burning urination, पेशाब सम्बन्धी विकार, bronchitis cough, diseases of the intestinal and genito-urinary organs आदि में लाभ होता है।

1) डायबिटीज, उच्च रक्तचाप diabetes and hypertension, antidiabetic

भिन्डी मधुमेह या डायबिटीज में लाभकारी है। यह रक्त में बढ़े हुए शर्करा के स्तर को कम करने में hypoglycemic असरदार है।

मधुमेह में भिन्डी को प्रयोग करने के लिए पांच-सात भिन्डियों को धो कर चॉप कर लें। इन टुकड़ों को रात में पानी में भिगो दें। अगली सुबह टुकड़ों को अच्छे से भिगोये गए पानी में दबाएँ जिससे उनका म्यूसिलेज पानी में चला जाए। इस पानी को सुबह खाली पेट पी लें तथा टुकड़ों को खा लें। इस प्रयोग को नियमित रूप से कम से कम एक महीना करें।

2) वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता, यौन शक्ति बढ़ाने के लिए to increase the quality and quantity of semen and sexual vigour

भिन्डी के फल को मिश्री के साथ सुबह खाली पेट चबा कर खाने से वीर्य मात्रा और गुणवत्ता में सुधार होता है। यह प्रयोग रोजाना सुबह एक – दो महीने या उससे ज्यादा दिन तक किया जाना चाहिए।

3) पुरुष बाँझपन Male sterility

भिन्डी, निर्गुन्डी, सेमल, घुइयाँ (सभी की जड़) तथा आंवले के पाउडर Vitex negundo, Bombax ceiba, Colocasia esculenta, Abelmoschus esculentus, Emblica officinalis को मिला कर बनाये पाउडर को पांच ग्राम की मात्रा में एक गिलास दूध के साथ दिन में दो बार लेने से पुरुषों के बांझपन में लाभ होता है।

4) इरेक्टाइल डिसफंक्शन Erectile Dysfunction

20mg भिन्डी की जड़ का पाउडर मिश्री और ठन्डे दूध के साथ किया जाता है।

5) सोराइसिस, जलने पर Psoriasis, Burns

भिन्डियों को पीस लें और इस लुआबदार पेस को प्रभावित जगह पर लागएं। इसे कुछ घंटे लगा रहने दें। ऐसा आधे महीने तक करें।

6) कफ cough

भिन्डी को दूध में उबाल कर प्रयोग किया जाता है।

7) कब्ज़ Constipation

कब्ज़ होने पर भिन्डी का सेवन राहत देता है।

8) पेशाब की रूकावट gonorrhea, painful micturition and dysuria

भिन्डी के काढ़े का सेवन पेशाब की रूकावट को दूर करता है। काढ़े का सेवन पेशाब की जलन, सुजाक और पथरी में भी लाभदायक है।

भिन्डी के म्युसिलेज को पानी में निकाल कर पीने से पेशाब रोगों में लाभ होता है।

9) सूजन swelling

पत्तों और फलों के पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाएं।

10) लिकोरिया leucorrhoea

रूट पाउडर या पेस्ट को दूध के साथ लिया जाता है।

2 ml जड़ से निकाला जूस मिश्री के साथ दिन में दो बार, पांच दिन तक सेवन करने से लाभ होता है।

जानिये हिमालयन वियाग्रा –यार्सागुम्बा के बारे में Himalayan Viagra – Yarsagumba in Hindi

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यार्सागुम्बा, चीन, तिब्बत व कोरिया के मेडिसिन सिस्टम में प्रयोग की जाने वाली एक पदार्थ है जो की कीड़े के कैटरपिलर और फंगस का एक दुर्लभ संयोग है। यह प्राकृतिक रूप से हिमालय में 4,500 मीटर की अधिक उंचाई पर पायी जाती है। क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ है इसलिये अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में इसकी कीमत बहुत अधिक है। हिमालयी क्षेत्रों में यार्सागुम्बा को अकेले ही या दूसरे घटकों के साथ विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है। सिक्किम में इसे हर रोग की दवा कहा जाता है।

cordyceps
By The original uploader was Rafti Institute at English Wikipedia [Attribution or CC BY 2.5 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.5)], via Wikimedia Commons
यार्सागुम्बा को कोर्डिसेप्स साईनेंसिस Cordyceps sinensis, केटरपिलर फंगस, कीड़ा जड़ी, कीड़ा घास समेत बहुत से स्थानीय नामों से जाना जाता है। इसे अप्रैल से अगस्त में इकठ्ठा किया जाता है। यह जड़ी केवल समुद्र तल से 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सर्द, घास वाले हिमालय के पहाड़ों के अल्पाइन घास के मैदान क्षेत्रों में ही पाई जाती है।

यार्सागुम्बा, का नाम तिब्बती भाषा के शब्द, यार्सा (yarsa=winter) और गुंबा/गोंबा (gumba=summer) से लिया गया है। नेपाल में इसे कीरा झार कहते हैं। उत्तरी सिक्किम के लाचुंग और लाचेन क्षेत्र में यह बहुत लोकप्रिय है और इसे बहुमूल्य दीर्घायु देने वाली जड़ी बूटी की प्रतिष्ठा प्राप्त है।

यार्सागुम्बा को हिमालयन वियाग्रा कहते हैं और इसकी कीमत बहुत ज्यादा है। केवल एक यार्सागुम्बा की कीमत करीब 7 डॉलर तक हो सकती है। एक किलो की मात्रा की कीमत तो लाखों रूपये तक हो सकती है।

ऐसा माना जाता है यार्सागुम्बा improves energy, appetite, stamina, libido, endurance, and sleeping patterns का सेवन ताकत, भूख, कार्य क्षमता, कामेच्छा, समेत बहुत से रोगों में लाभ कारी है। इसे मुख्य रूप से यौन क्षमता बढ़ाने के लिए पुरुषों के द्वारा खाया जाता है।

यार्सागुम्बा के बनने की प्रक्रिया How Yarsagumba is formed?

यार्सागुम्बा में दो जीव हैं, एक तो फंगस / कवक और दूसरा एक कीड़े का लार्वा।

कोर्डीसेप्स साइनेसिस, कवक/फंगस/मशरूम fungus Cordyceps sinensis है और कीड़ा घोस्ट मोथ Ghost moth है।

कोर्डीसेप्स साइनेसिस एक परजीवी मशरूम है और जीवित रहने के लिए घोस्ट मोथ Ghost moth (Hepialus humuli), कीड़े के लार्वा में रहती है।

घोस्ट मोथ केवल ठंडी जगहों पर पायी जाती है। इसके लार्वे मैगेट maggot like की तरह होते हैं और जमीन के अन्दर पौधों की जड़ों का खाते है। कीड़ों के जीवन चक्र में मुख्य पांच स्टेज या अवस्थाएं होती हैं। सबसे पहले तो उनके अंडे होते हैं जिससे लार्वा विकसित होते हैं। यह लार्वा फिर केटरपिलर में बदल जाते है। केटरपिलर से कूकोन बनते है फिर प्यूपा और सबसे बाद में पूर्ण विकसित कीड़ा। इसी प्रकार जब घोस्ट मोथ Ghost moth विकसित हो रहा होता है तो यह लार्वा larva की स्टेज पर परजीवी फंगस से इन्फेक्ट हो जाता है।

गर्मियों और पतझड़ के मौसम में व्यस्क परजीवी फंगस के एस्कोस्पोर ascospores हवा में निकलते है और घोस्ट मोथ के लार्वा जो की भूमिगत हैं, को इन्फेक्ट कर देते हैं। इन्फेक्शन के बाद फंगस उस जीवित कीड़े में उग जाते हैं। फंगस की सेल्स पूरे लार्वा में परिसंचरण तंत्र circulatory system के माध्यम से फ़ैल जाते है।

क्योंकि यह लार्वा भूमिगत होता है इसलिए यह लगातार जमीन खोदता रहता है और खड़ी सीधी अवस्था में आ जाता है। सर्दी आने तक फंगस कीड़े के सभी अंगों को खा जाती और कीड़े का केवा बाहरी कवच exoskeleton ही शेष रहता है।

इसके बाद फंगल कोशिकायें कीड़े के शरीर में कॉम्पैक्ट सफेद पदार्थ में बदल जाती हैं जिसे ऐंडोस्कीलेरोटियम endosclerotium कहते हैं। इसके बाद परजीवी फंगस सुप्त / डोरमेंट dormant हो जाती है जिससे यह बहुत कम तापमान में अपने को बचा सके।

जब बाहरी तापमान धीरे-धीरे वसंत में बढ़ने लगता है तो फंगस का ऐंडोस्कीलेरोटियम उगने germinate लगता है और मृत हो चुके लार्वा के सिर के हिस्से से धरती के बाहर निकल कर दिखने लगता है। यह हिस्सा स्ट्रोमा stroma कहलाता है तथा यह गर्मी के मौसम तक पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है। फिर इस परिपक्व फंगस के रीप्रोडूस reproduce होने के लिए एस्कोस्पोर ascospores fruiting bodies रिलीज होते है, जो की क्षेत्र के घोस्ट लार्वा के मोथ को फिर से इन्फेक्ट करते हैं और इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक साल का समय लग जाता है।

इस प्रक्रिया से जो बनता है वही यार्सागुम्बा है जो की जमीन की सतह के लगभग 6 इंच अन्दर मिलता है। इसका औसत वजन लगभग 300-500 मिलीग्राम है। इसे अप्रैल से अगस्त के महीने में स्थानीय लोगों के द्वारा इकठ्ठा कर लिया जाता है।

Synonyms

  • Local: Yarsa gumba, Yarcha Gumpa
  • Nepali: Keera Jhar, Jeevan Buti, Kida Ghass, Chyou Kira
  • Chinese: Dong Chong xi cao
  • Japanese: Tocheikasa
  • Latin: Cordyseps sinesis
  • English: Caterpillar fungus, Corsyseps mushroom

Health Benefits of Yarsagumba in Hindi

  1. यारसागुम्बा एनर्जी के मेटाबोलिज्म को प्रेरित करती है और liver सिरोसिस को रोकती है।
  2. यह पेशाब के साथ खून जाना या प्रोटीन जाना को रोकती है।
  3. यह प्लेटलेट को चिपकने से रोकती है।
  4. यह एंटीट्यूमर है और कैंसर में लाभप्रद है।
  5. यह इम्यून सिस्टम के काम को सही करती है।
  6. इसमें विटामिन्स, प्रोटीन, ट्रेस एलिमेंट समेत बहुत से पोषक पदार्थ होते हैं।
  7. यह किडनी, लीवर और फेफड़ो को ताकत देती है।
  8. यह यौन रोगों, यौन दुर्बलता, इरेक्टाइल डिसफंक्शन आदि को दूर करती है।
  9. यह इम्पोटेंस में फायदेमंद है।
  10. कमजोरी के दौरान इसका सेवन शरीर में ताकत, उर्जा देता है।
  11. यारसागुम्बा को विभिन्न रोगों जैसे की cancer, bronchial asthma, bronchitis, TB, diabetes, cough and cold, erectile dysfunction, BHP, jaundice, alcoholic hepatitis आदि में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। यह लीवर, किडनी और हृदय रोगों hepatic, renal, and cardiovascular में फायदा करती है।
  12. नेपाल, गंगटोक के स्थानीय लोगों के द्वारा यार्सागुम्बा का एक पीस एक कप दूध के साथ सेक्सुअल पोटेंसी और कामेच्छा को बढ़ाने के लिए दिया जाता है।
  13. भूटिया लोग एक यार्सागुम्बा को पानी या चांग (लोकल अल्कोहल) में रात में भिगोकर अगली सुबह टॉनिक के रूप में लेते हैं। डायबिटीज और पुराने रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

सावधानियां Caution

  1. कुछ लोगों में इसका प्रयोग सांस लेने की तकलीफ, सीने में जकड़न, छाती में दर्द, त्वचा पर रैश और अन्य एलर्जी के लक्षण पैदा कर सकता है।
  2. यह रक्त में शुगर लेवल को कम कर सकती है।
  3. यह पेट की गड़बड़ी कर सकती है।

पौरुष जीवन कैप्सूल Paurush Jiwan Capsule Detail and Uses in Hindi

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पौरूष जीवन कैप्सूल, देव फार्मेसी नॉएडा द्वारा न्र्मित एक आयुर्वेदिक दवाई है। जैसा नाम से पता चलता है, यह पुरुषों के लिए एक आयुर्वेदिक हेल्थ सप्लीमेंट है। इसके सेवन से शरीर में ताकत आती है और कमजोरी, थकावट, आदि दूर होते हैं। इसमें आयुर्वेद में प्रयोग किये जाने वाले उत्तम वाजीकरण द्रव्य शामिल है, अश्वगंधा, शतावरी, , केशर, आंवला, केवांच, शिलाजीत, मूसली, आदि।

इसमें शतावरी और अश्वगंधा हैं, इसलिए इसके सेवन से शरीर में चर्बी बढती है और पतलापन दूर होता है। केवांच होने से यह मूड को अच्छा करने में सहयोगी है। केवांच जिसे कौंच, मर्कटी, कपिकच्छु, आदि नामों से जाना जाता है पुरुषों के लिए उत्तम वाज़िकारक है। केवांच तासीर में ठंडा होता है और यह भारी, चिकना, और पचने पर भी मधुर है। यह शरीर में नसों की कमजोरी को दूर करता है। केवांच का चूर्ण विशेष रूप से पुरुषों में सेक्सुल फंक्शन को ठीक करने, सीमन या वीर्य की गुणवत्ता तथा कामेच्छा को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह स्ट्रेस/तनाव को भी कम करता है।

अश्वगंधा और सफ़ेद मुस्ली भी उत्तम रसायन या टॉनिक हैं। इन्हें इंडियन जिन्सेंग भी कहा जाता है यह वज़न को बढ़ाती है और डिप्रेशन/अवसाद को दूर करती हैं।

शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।

शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है।

मुलेठी खांसी, गले में खराश, सांस की समस्याओं, पेट दर्द औरअम्लपित्त आदि में उपयोगी है। पिप्पली, उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है। शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं।

 

Paurush Jiwan (Jeevan) Capsule, is a proprietary medicine from Dev Pharmacy. It is a health supplement for males and contains Ashwagandha, Shatavari, Kevanch, Safed Musli, Shilajeet etc. along with other herbal ingredients. It is completely herbal and safe to be taken for months. Paurush Jeevan tablets supports better digestion and absorption. It improves appetite and metabolism. It improves overall health.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • ब्रांड: देव फार्मेसी
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हेल्थ सप्लीमेंट
  • मुख्य उपयोग: पुरुषों में ताकत, जोश आदि को बढ़ाना
  • मुख्य गुण: टॉनिक
  • मूल्य Price: Rs. 190.00

पौरुष जीवन कैप्सूल के घटक Ingredients of Paurush Jiwan Capsule

  • शतावरी Asparagus racemosa Willd 50 mg
  • अश्वगंधा Withania somnifera Dunal 50 mg
  • भृंगराज Eclipta Alba Hassk 40 mg
  • अर्जुन Terminalia arjuna Linn 40 mg
  • केवांच Mucuna pruriens 30 mg
  • हरीतकी Terminalia chebula Retz 30 mg
  • मुलेठी Glycyrrhiza Glabra Linn 30 mg
  • सफ़ेद मुस्ली Asparagus adscendens Roxb 30 mg
  • जायफल Myristica fragrans 30 mg
  • पिप्पली Piper Longum Linn 30 mg
  • जीरा Cuminum cyminum Linn 20 mg
  • झावुक Tamarix troupii Hole 20 mg
  • केशर Crocus sativus Linn 10 mg
  • आंवला Emblica officinalis 10 mg
  • लौंग Syzgium Aromaticum Linn 10 mg
  • सोंठ Zingiber officinal 10 mg
  • शिलाजीत Shilajeet 20 mg
  • चित्रक Plumbago Zeylanica Linn 10 mg
  • कुटज Holarrhena antidysenterica Linn 10 mg
  • मकोय Solanum nigrum Linn 10 mg
  • लौह भस्म Loh Bhasma 04 mg
  • वंग भस्म Bang Bhasma 06 mg
  • पौरुष जीवन कैप्सूल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Paurush Jiwan Capsule
  • यह दवा शरीर की उर्जा, ताकत को बढ़ाती है।
  • यह दवा कमजोरी, थकावट, उर्जा की कमी को दूर करती है।
  • यह दवा टॉनिक और वाजीकारक है।
  • इसके सेवन से कामेच्छा बढ़ती है।
  • यह दवा स्ट्रेस और डिप्रेशन को कम करती है।
  • यह दवा भूख और पाचन को बढ़ाती है।
  • इसमें शिलाजीत, लोह भस्म और बंग भस्म है।
  • यह दवा शरीर में विटामिन्स, मिनरल्स, और लोहे की कमी को दूर करती है।
  • इसमें कुटज, जीरा, चित्रक, हरीतकी आदि हैं जो की पेट रोगों को दूर करते है।
  • पौरुष जीवन कैप्सूल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Paurush Jiwan Capsule
  • शरीर को स्वस्थ, ऊर्जावान, सक्रिय और फिट बनाने के लिए
  • शारीरिक और मानसिक थकावट
  • कमजोरी, पतलापन, शक्ति की कमी
  • स्किन ड्राईनेस, आँखों के पास काले घेरे, वज़न का कम होना
  • कमजोरी से चक्कर आना, धुंधला दिखना आदि
  • हेपेटाइटिस, अपच, पेट में दर्द, पेट फूलना, भूख न लगना
  • पाचन की कमजोरी, पोषक पदार्थो की कमी, लिबिडो कम होना आदि

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Paurush Jiwan Capsule

  1. इस दवा की 1 गोली, दिन में दो या तीन बार लें।
  2. इसे पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के बाद लें।
  4. इसे २-३ महीनों तक लगातार लें। परिणाम १-२ सप्ताह में दिखने लगते है।
  5. तीन महीने तक लगातार लेने के बाद इसका सेवन बंद कर दें। यदि ज़रूरत हो तो कुछ सप्ताह बाद फिर से लें। लेकिन दवा के सेवन में ब्रेक ज़रूरी है।
  6. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

Contraindications, Interactions, Side-effects and Warnings

  1. बच्चे, गर्भवती महिलायें, स्तनपान कराने वाली माताएं इसका सेवन न करें।
  2. इसके सेवन से वज़न बढ़ सकता है।
  3. यदि इसमें प्रयोग किये गए किसी भी घटक से एलर्जी हो तो इसका सेवन न करें।
  4. सेवन से यदि किसी तरह की एलर्जी के लक्षण दीखते हो तो इसका सेवन न करे।
  5. सेवन के दौरान खट्टे पदार्थों, जंक फूड्स, मिठाई आदि न लें।
  6. पौष्टिक और पाचन में हल्के पदार्थों का सेवन करें।
  7. इसमें मुलेठी है।
  8. मुलेठी का सेवन उच्च रक्तचाप, द्रव प्रतिधारण, मधुमेह और कुछ अन्य स्थितियों में नहीं किया जाना चाहिए।

आयुर्विन नुट्रीगेन Ayurwin Nutrigain Detail and Uses in Hindi

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आयुरविन नुट्रीगेन, एक हर्बल हेल्थ सप्लीमेंट है। इसके सेवन से शरीर का वज़न बढ़ता है और पतलापन दूर होता है। यह भूख, पाचन और मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है जिससे वज़न बढ़ता है। यह उन लोगों के लिए टॉनिक है जो की दुबलेपन की शिकायत से परेशान है। नुट्रीगेन में आयुर्वेद के जाने माने घटक है जैसे की अश्वगंधा, शतावरी, मुस्ली, इला, आंवला, त्रिकटु आदि। इसके सेवन से शरीर में भूख बढ़ती है और पित्त का अधिक स्राव होता है, जिससे पाचन बेहतर होता है। यह सभी फैक्टर वेट गेन में सहयोगी है। यह पूरी तरह से हर्बल है।

Ayurwin Nutrigain is completely herbal medicine for Emaciation (Karshya), General Debility (Samanya Dourbalya) and auto immune diseases. It increases appetite, digestion and assimilation. All these factor contributes to gain weight.

It is suitable for both male and female. But as it contains few ingredients which works on hormones, therefore it must not be given to children below the age of 15 years. It is also important to do exercise daily for at least half an hour for visible results.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • ब्रांड: आयुर्विन Ayurwin Pharma Pvt. Ltd.
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हेल्थ सप्लीमेंट फॉर यूनिसेक्स (महिला और पुरुष दोनों के लिए)
  • मुख्य उपयोग: वज़न बढ़ाना

रेंज:

Ayurwin Nutrigain Plus Granules / Powder

Ayurwin Nutrigain capsules

MRP: रूपये 655.00 / 500 gram, 60 capsules for Rs. 497.00

नुट्रीगेन के घटक Ingredients of Nutrigain

Ayurwin Nutrigain Plus Granules / Powder

100 gram में,

  • कार्बोहायड्रेट Carbohydrate 74 grams
  • प्रोटीन Protein 15 grams
  • फैट Fat 5 grams
  • द्राक्षा Grapes extract 1 gram
  • खजूर Dates extract 1 gram
  • सारिवा Sariva extract 0.8 gram
  • अश्वगंधा Ashwagandha extract 0.5 gram
  • गोखरू Gokshura extract 0.5 gram
  • जीरक Jeeraka extract 0.5 gram
  • पिप्पली Pippali extract 0.1 gram
  • मरिचा Maricha extract 0.1 gram
  • शुण्ठी Shunti extract 0.1 gram
  • आमलकी Amalaki extract 0.1 gram
  • शतावरी Shatavari extract 0.1 gram
  • मुस्ली Mushali extract 0.1 gram
  • इलाइची Ela extract 0.1 gram
  • शहद Madhu (honey) 0.5 gram

Ayurwin Nutrigain capsules

हर कैप्सूल में,

  1. अश्वगंधा Ashwagandha 50mg
  2. शतावर Shatavari 50mg
  3. मुस्ली Mushali 50mg
  4. आंवला Amalaki 40mg
  5. गोखरू Gokshura 50mg
  6. पिप्पली Pippali 50mg
  7. मारीचा Maricha 50mg
  8. शुण्ठी Shunti 50mg
  9. छोटी इलाइची Ela 50mg
  10. जीरा Jeeraka 50mg

इसमें शतावरी और अश्वगंधा हैं, इसलिए इसके सेवन से शरीर में चर्बी बढती है और पतलापन दूर होता है।

अश्वगंधा और सफ़ेद मुस्ली भी उत्तम रसायन या टॉनिक हैं। इन्हें इंडियन जिन्सेंग भी कहा जाता है यह वज़न को बढ़ाती है और डिप्रेशन/अवसाद को दूर करती हैं।

इला / इलायची, के बीज त्रिदोषहर, पाचक, वातहर, पोषक, विरेचक और कफ को ढीला करने वाला है। यह मूत्रवर्धक है और मूत्र विकारों में राहत देता है। इलाइची के बीज अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गले के विकार, बवासीर, गैस, उल्टी, पाचन विकार और खाँसी में उपयोगी होते हैं।

त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और कब्ज करता है। यह यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है।

पिप्पली, उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।

मरिच या मरिचा, काली मिर्च को कहते हैं। इसके अन्य नाम ब्लैक पेपर, गोल मिर्च आदि हैं। यह एक पौधे से प्राप्त बिना पके फल हैं। यह स्वाद में कटु, गुण में गर्म और कटु विपाक है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।

अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।

आयुरविन नुट्रीगेन के लाभ/फ़ायदे Benefits of Ayurwin Nutrigain

  1. यह वज़न / चर्बी को बढ़ाता है।
  2. इसके सेवन से ज्यादा एनर्जी मिलती है।
  3. यह एक्टिव रखने में सहयोगी है।
  4. यह शरीर में पित्त बढ़ाता है।
  5. यह आम दोष दूर करता है।

आयुरविन नुट्रीगेन के चिकित्सीय उपयोग Uses of Ayurwin Nutrigain

  1. कम वज़न underweight
  2. बॉडी बिल्डिंग muscles building
  3. फिटनेस के लिए maintaining fitness
  4. वज़न बढ़ाने के लिए to gain weight
  5. भूख, पाचन और अवशोषण को बढ़ाने के लिए

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Ayurwin Nutrigain

  1. करीब 25 gm (2 scoops) Nutrigain को 50 ml गर्म दूध में डालें और मिलायें। इसमें 150 ml दूध और मिलाएं। अगर ज़रूरत हो तो चीनी मिला लें। इसे दिन में एक या दो बार खाने के बाद लें।
  2. १-२ कैप्सूल दिन में दो बार लें।
  3. अगर लैक्टोस इन्टोलेरेंस हो तो पानी में मिलाकर लें।
  4. इसे सुबह और शाम लें।
  5. इसे भोजन करने के बाद लें।
  6. इसके सेवन के दौरान कम से कम आधे-एक घंटे का व्यायाम ज़रूरी है।
  7. पानी पर्याप्त मात्रा में पियें। लस्सी, छाछ का सेवन करें।
  8. परिमाण कुछ महीने में दिखते हैं। रिजल्ट्स सभी के लिए एक जैसे नहीं हो सकते।
  9. इसे ठंडी, सूखी जगह पर रखें।
  10. प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश से दूर रखें।
  11. फ्रिज में न रखें।
  12. हर प्रयोग के बाद जार कसकर बंद करें।
  13. कंटेनर खोलने के बाद 1 महीने से डेढ़ महीने के भीतर का प्रयोग करें। कैप्सूल और ग्रेन्युल का एक साथ प्रयोग, 3-6 महीने तक, मांसपेशियों को ताकत देता है।

Contraindications, Interactions, Side-effects and Warnings

  1. इसमें त्रिकटु या त्रिकुटा है जो की तासीर में गर्म है। यदि शरीर में पित्त रोग हैं, अधिक गर्मी है,ब्लीडिंग डिसऑर्डर-a ulcers है तो इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. इसे अधिक मात्रा में न खाएं। ज्यादा मात्रा में सेवन पेट दर्द, लूज़ मोशन, उलटी, एसिडिटी कर सकता है।
  3. गर्भवती महिलायें, स्तनपान कराने वाली माताएं और मधुमेह के रोगी इसका सेवन न करें।
  4. सेवन की मात्रा और दवा खाने के परिणाम, पाचन, उम्र तथा अन्य कारकों पर निर्भर हैं।
  5. यह 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सेवन के लिए नहीं है।

आयुरस्लिम Himalaya Ayur Slim Detail and Uses in Hindi

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आयुर स्लिम हिमालया ड्रग कंपनी द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवा है। AyurSlim को वजन को कम करने और लिपिड प्रोफाइल को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। AyurSlim में गार्सीनिया है जो की शरीर में फैट प्रोडक्शन को कम करता है और इस तरह वज़न कम करने में सहयोगी है।

इसके अतिरिक्त इसमें गुड़मार है जो की मीठा खाने की इच्छा को कम करता है। गुग्गल, कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा और ट्राइग्लिसराइड के स्तर कम करता है। प्राकृतिक जड़ी बूटियों का यह संयोजन भूख को नियंत्रित करता है जिससे कम कैलोरी का सेवन होता है।

आगे इस पेज पर इस दवा के बारे में ज्यादा जानकारी दी गयी है जो की निर्माता के द्वारा बताई गयी है। यह पेज, दावा नहीं करता की आप इसके सेवन से निश्चित ही वज़न कम कर सकेंगे।

Himalaya AyurSlim is a proprietary Ayurvedic medicine from Himalaya Drug Company. This medicine is an herbal formulation for weight loss.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: सप्लीमेंट
  • मुख्य उपयोग: वज़न कम करना

मूल्य Price: Rs. 225.00 for 60 capsules

आयुरस्लिम के घटक Ingredients of Himalaya AyurSlim

  1. गार्सीनिया 300 mg
  2. हरीतकी 10 mg
  3. मेथी 10 mg
  4. गुड़मार 10 mg
  5. गुग्गुलु 70 mg

गार्सीनिया शरीर में वसा को कम स्टोर होने देता है। यह खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले अधिक वसा को शरीर में संग्रहित नहीं होने देता है। यह शरीर में फैट बनने को भी कम करता है।

गुग्गल सूजन और वजन कम करने के लिए प्रसिद्ध है। यह इम्युनिटी को मजबूत करता है और लिपिड के स्तर को नियंत्रित करता है। यह कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का स्तर कम करने के लिए जाना जाता है।

गुडमार ग्लूकोस के अवशोषण को कम करता है और इन्सुलिन के प्रोडक्शन को बढ़ाता है।

हरड़ शरीर को अन्दर से साफ़ करता है।

मेथी दाने शुगर को नियंत्रित करते हैं।

आयुरस्लिम के लाभ/फ़ायदे Benefits of Himalaya AyurSlim

  1. यह दवा वज़न को कम करती है।
  2. यह लिपिड प्रोफाइल को कम करती है।
  3. यह कोलेस्ट्रोल को कम करने में सहयोगी है।
  4. यह शरीर में फैट के जमाव को रोकती है।
  5. यह दिल की बिमारी होने के खतरे से बचाती है।

आयुरस्लिम के चिकित्सीय उपयोग Uses of Himalaya AyurSlim

  1. मोटापा / अधिक वज़न
  2. कोलेस्ट्रोल का ज्यादा स्तर
  3. मीठा खाने की ज्यादा इच्छा करना
  4. सेवन विधि और मात्रा Dosage of Himalaya AyurSlim
  5. 2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  6. इसे पानी के साथ लें।
  7. इसे भोजन करने के बाद लें।
  8. इसे 6 महीने तक नियमित लें।
  9. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
  10. इस दवा के सेवन के दौरान वज़न को कम करने के लिए कम कैलोरी वाले आहार का सेवन करें।
  11. यह भी ज़रूरी है की रोजाना कम से कम आधे घंटे का व्यायाम किया जाए।
  12. परिणाम एक-डेढ़ महीने बाद दिखाई देते हैं।

Contraindications, Interactions, Side-effects and Warnings

  1. गर्भवती महिलायें और स्तनपान कराने वाली माताएं इसका सेवन न करें।
  2. प्रसव बाद रक्तस्राव बंद हो जाने पर इसका सेवन किया जा सकता है।
  3. पीलिया और गुर्दे की विफलता में इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
  4. मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियों और उच्च रक्तचाप के मामलों में, इसे चिकित्सक की देखरेख में ही लें।
  5. इसे अधिक मात्रा में न खाएं। ज्यादा मात्रा में सेवन पेट दर्द, लूज़ मोशन, उलटी, एसिडिटी कर सकता है।
  6. सेवन की मात्रा और दवा खाने के परिणाम पाचन, उम्र तथा अन्य कारकों पर निर्भर हैं।

वज़न कम करने का कोइ शॉर्टकट तरीका नहीं है। दवा का प्रभाव तभी देखा जा सकता है यदि इसे लेने के साथ नियमित व्यायाम किया जाए और भोजन की मात्रा, कलोरी और प्रकार को नियंत्रित किया जाए। ऐसा भी देखा गया गया है कुछ लोगों में इसके सेवन से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ।

दमबेल Tylophora asthmatica Remedy for Asthma

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दमबेल, दमबूटी का लैटिन में नाम टाईलोफेरा इंडिका या टाईलोफेरा अस्थ्मेटिका है। भारत भर में यह दमे, कफ और श्वशन रोगों के लिए for respiratory tract diseases प्रयोग की जाने वाली बूटी है। दमे या अस्थमा के लिए तो इसे अत्यंत उत्तम औषधि माना गया है। इसमें मौजूद अल्कलोइड इम्यून सिस्टम को दबाते हैं जिस कारण यह उन रोगों में भी प्रयोग की जाती है जहाँ शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने की आवश्यकता हो।

By Satheesan.vn (Own work) [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons
By Satheesan.vn (Own work) [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons
देश के कुछ हिस्सों में इसकी जड़ को रास्ना नाम से भी बेचा जाता है। इसके अन्य भी कई नाम हैं, जैसे की पित्तमारी, अंतमल, तथा अन्तमूल। दमबेल, एक नरम लता है जो मैदानी इलाकों में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है। इसकी जड़ें रस से भरी और घनी होती हैं। इसके पुष्प छाते जैसे दिखते हैं। पुष्पकोष बाहर से रोयेंदार होते हैं। बीज कुछ चकोर आकार और लम्बे होते हैं तथा इनका रंग हरा कुछ पीला लिए होता है।

दवा की तरह लता के पत्तों और जड़ों दोनों का प्रयोग किया जाता है। पौधे की हरी जड़, सूखी जड़ से ज्यादा प्रभाव करती है तथा पत्ते जड़ों की अपेक्षा अधिक गुणकारी हैं। यह स्वाद में यह फीकी और कड़वी होती है। यह उल्टी कराने वाली, ज्वर नाशक, तथा कफ निस्सारक औषधि है।

दमबेल के मुख्य प्रयोग Chief Indications

  1. ब्रोंकाइटिस, अस्थमा
  2. एलर्जी, कफ, साईनोसाईटिस
  3. हे फीवर, नाक-आँख से पानी आना, आँखे लाल हो जाना, कफ बनना
  4. अमीबी पेचिश और दस्त
  5. गठिया
  6. बुखार
  7. उलटी लाने के लिए

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: Tylophora indica सिननिम Tylophora asthmatica
  • कुल (Family): एसक्लेपियाडेसिऐइ
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते और जड़, ताज़े अथवा सूखे
  • पौधे का प्रकार: लता वनस्पति
  • वितरण: पूरे भारत में
  • पर्यावास: Eastern India, Bengal, Assam, Kaehar, Chittagong, Deccan

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: Asteridae एसटेरिडेई
  • आर्डर Order: Gentianales जेंटियानेल्स
  • परिवार Family: Asclepiadaceae एसक्लेपियाडेसिऐइ
  • जीनस Genus: Tylophora टाईलोफोरा
  • प्रजाति Species: Tylophora indica (Burm। f।) Merr। टाईलोफोरा इंडिका
  • स्थानीय नाम / Synonyms
  • वानस्पतिक नाम:: Tylophora indica
  • हिन्दी: janglipikvam, antamul
  • संस्कृत: Antamul, Mulini, Arkaparni
  • सिद्ध: अस्वीकार Palai, Nangilaippiratti
  • बंगाली: antamul, anantamul
  • गुजराती: Damnivel
  • कन्नड़: adumutadhagida
  • मराठी: khodiki, Raasna, Atkari
  • तमिल: Nachchuruppam, nanjamurichchaaan, nayppalai, peyppalai, kondachani
  • तेलुगु: Verripaala, vettipaala, kaakpaala, kukkapala, tellayadala, tellavedavela, neelataapiri।
  • उड़िया: Mendi, Mulini
  • मलयालम: Vallipaala
  • अंग्रेज़ी: Emetic Swallow Wort, Indian or Country Ipecacuanha
  • ट्रेड नाम: Indian ipecacuanha, Emetic swallow­ wort
  • महत्वपूर्ण औषधीय गुण Biomedical Action
  • ज्वरनाशक Antipyretic
  • आक्षेपनाशक Antispasmodic
  • एंटी एलर्जी Anti-allergic
  • अर्बुदरोधी Antitumour
  • वमनकारी Emetic
  • एक्सपेटोरेंट Expectorant
  • इम्मुनोसप्रेसेंट Immunosuppressant

दमबेल के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Dam Bel / Dam Buti / Antamula in Hindi

दमबूटी मुख्य रूप से सांस के रोगों जैसे की ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, रायनाइटिस, हे फीवर, श्वसन तंत्र की एलर्जी और कफ dysentery, diarrhea, respiratory affections, (bronchitis, whooping cough, asthma), syphilitic rheumatism, gout, impurity of blood and gouty pains में उपयोगी है। इसे घरेलू उपचार की तरह दमे समेत कई रोगों में प्रयोग किया जा सकता है।

दमबेल का प्रयोग उन सांस रोगों में लाभदायक है जिनमें खॉँसी के साथ बलगम productive or wet cough भी जाता हो। यह अपने कफनिस्सारक गुण के कारण अधिक कफ को दूर करता है। इसलिए यदि आपको अधिक कफ से परेशानी है, सांस लेने में दिक्कत है, कफ के कारण बुखार है तो अवश्य इसका प्रयोग करके देखें। यह एंटीबैक्टीरियल है, कफ को ढीला करती है और फेफड़ों के इन्फेक्शन को दूर करती है।

दवाई की तरह आप ताज़े पत्तों को साफ़ कर चबा कर खा भी सकते है। बड़ों को एक पत्ता लेने चाहिए और बच्चों को चौथाई पत्ता दिया जा सकता है। ज्यादा मात्रा में तथा ज्यादा दिन तक इसका सेवन नुकसान दायक है। यदि दम बूटी के ताजे पत्ते न उपलब्ध हों तो जब पत्ते मिलें उन्हें सुखा कर, चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को 250 मग से आधा ग्राम की मात्रा तक शहद के साथ सेवन करें।

नीचे इसके कुछ औषधीय प्रयोग दिए गए हैं जो की सरलता से घर पर किये जा सकते हैं।

कुक्कुर खांसी early stages of whooping cough

इसकी जड़ के चूर्ण अथवा पत्तों के चूर्ण / रस को मुलेठी व पानी के साथ लेने पर लाभ होता है।

अस्थमा / दमा, कफ रोग, साईनोसाईटिस Asthma, Sinusitis

अस्थमा में दमबेल के एक पत्ते को धो कर साफ़ कर लें। इसे चबा कर या हाथ से मसल कर गोली की शेप दे कर गुनगुने पानी के साथ निगल जाएँ।

ऐसा दिन में तीन बार, तीन दिन तक करें।

बच्चों में श्वशन रोग, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस Respiratory infections in children

इसके एक चौथाई पत्ते को कूट कर रस निकाल लें और शहद मिला कर दें।

सर्दी लग जाने पर, कफ Cold-cough, fever due to cough

दम बेल के १-२ पते, लौंग, अदरक को एक गिलास पानी में उबालें जब पानी आधा रह जाए तो इसे छान कर दिन दो-तीन बार पियें।

अथवा दमबेल के २-३ पत्ते लेकर पानी में चाय Dambel Tea की तरह उबाल लें और कुछ मिनट तक छोड़ दें तथा फिर छान लें। इसे ऐसे ही या शहद डाल कर पी लें।

उल्टी कराने के लिए Inducing vomiting

पत्तों का थोड़ी ज्यादा मात्रा में सेवन उलटी लाता है।

पेचिश, अतिसार diarrhea, dysentery

पत्तों का सेवन कम मात्रा में इन पेट रोगों में लाभप्रद है।

अधिक वात के कारण सिर में दर्द Headache due to excessive Vata

इसकी जड़ को घिस कर माथे पर लेप किया जाता है।

औषधीय मात्रा Therapeutic Dosage

250 मिलीग्राम दिन में एक से तीन बार या प्रति दिन 1-2 मिलीलीटर tincture टिंकचर।

यह लंबे समय तक इस्तेमाल के लिए उपयुक्त नहीं है।

इसे लगातार दस दिनों से अधिक समय के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  2. यह वमनकारी है। इसके सेवन से उल्टी हो सकती है।
  3. यह दवा लम्बे समय के प्रयाग के उपयुक्त नहीं है।
  4. एक महीने में इसे दस दिनों से ज्यादा प्रयोग न करें।
  5. अधिक मात्रा में सेवन पाचन की दिक्कत, लूज़ मोशन, उलटी, मुख की सूजन, टेस्ट न आना आदि समस्याएं कर सकता है।

पुत्रजीवक Putranjiva roxburghii in Hindi

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पुत्रजीवक का लैटिन में मान पुत्रन्जिवा रोक्सबरगी है। हिंदी में इसे पुत्रजिया, जियापोता, कहते हैं। आयुर्वेद में पुत्रजीवक के साथ कई अन्य नामों जैसे की जीव, पवित्रा, गर्भदा, गर्भकर आदि से जाना जाता है।

यह आयुर्वेद की एक जानी-मानी प्रभावी औषधि है और इसे मुख्य रूप से गर्भ ठहरने के लिए प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे हजारों वर्षों से संतानोपत्ति के लिए उत्तम औषध माना गया है। क्योंकि की सन्तानहीनों को संतान देने में मदद करता है और इसलिए इसे पुत्रजीवक का नाम दिया गया है। आयुर्वेद में यहाँ तक कहा गया है इसके बीजों से बनी माला का धारण करने से स्वस्थ्य और सुन्दर संतान होती है। औषधि की तरह बीज, मज्जा, छाल और पत्ते प्रयोग होते हैं।

By Forestowlet (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
By Forestowlet (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
पुत्रजीवक का पेड़ पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से मिलता है। यह एक सदाहरित वृक्ष है और हमेशा हरा रहता है। इसके तने पर फीके रंग की छाल होती है। पत्ते के किनारे कटे से होते हैं और इनका रंग गहरा होता है। इसके पुष्प पीले-हरे रंग और गुच्छों में होते हैं। इसके फल लम्बे-गोल और तीखे नोक वाले होते हैं।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: पुत्रन्जिवा रोक्सबरगी Putranjiva roxburghii सिननिम Drypetes roxburghii (Wall।) Hurusawa
  • कुल (Family): Euphorbiaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज, पत्ते, छाल, जड़
  • पौधे का प्रकार: पेड़
  • पर्यावास और वितरण: सदाहरित जंगल, पूरे भारत में

स्थानीय नाम / Synonyms

  • संस्कृत: Aksaphala, Kumarabeeja, Putrajivah, Putranjivah
  • हिंदी: Jiaputa, joti, putr-jiva
  • बंगाली: Putranjiva, jiaputa
  • अंग्रेज़ी: Officinal Drypetes
  • कन्नड़: Putranjeeva, Putranjeevi
  • मलयालम: Pongalam, Ekkoli, Poothilanji, Ponkulam, Puthrajeevi
  • मराठी: Puta-jan, putra-jiva, jiv-putrak, jiwan-putr
  • तमिल: Karupali
  • तेलुगु: Kadrajuvi, kudrajinie, mahaputra jivi yarala, kuduru juvir

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

पुत्रजीवक रस में कटु, लवण, तथा गुण में रूक्ष और गुरु है। यह शीत वीर्य और मधुर विपाक है। इसमें गर्भस्थापक, वात कफहर, विषघ्न, शोथाघ्न और तृषाहर गुण हैं।

  • रस (taste on tongue): कटु, लवण
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर
  • कर्म: गर्भस्थापक, वात कफहर, विषघ्न, शोथाघ्न और तृषाहर गुण

यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने वीर्य को मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होता है।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।

मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

पुत्रजीवक के औषधीय प्रयोग

पुत्रजीवक के बीज मधुर, कसैले, ठंडक देने वाले, विरेचक, मूत्रल होते हैं। यह वात और पित्त को कम करते हैं। बीजों का सेवन शरीर में अधिक गर्मी को कम करता है और इस तरह से गर्मी के कारण होने वाले रोगों जैसे की ब्लीडिंग डिसऑर्डर में लाभ करता है। बीजों का प्रयोग मुख्य रूप से महिलाओं की इनफर्टिलिटी और बार-बार होने वाले मिसकैरिज को दूर करने में होता है।

आयुर्वेद में गर्भधारण के लिए दवा बनाने के लिए, पुत्रजीवक के फल की मज्जा, पारस पीपल के बीज, नाग्कोश, अश्वगंधा की जड़, सरपंखा की जड़, हरीतकी, विभिताकी, आमलकी, देवदारु, उलटकम्बल की जड़, कमल गट्टा, बल के बीज, सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, दारु हल्दी, वंश लोचन, तथा भस्में (लौह भस्म, बंग भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म) को बराबर मात्रा में लिया जाता है। प्रत्येक औषधि को कूट-पीस लिया जाता और अच्छे से मिला लेते हैं। इसमें फिर भौरंगिनी के काढ़े, अशोक छाल के काढ़े की, और शतावरी के रस की एक -एक भावना दी जाती है। इसके बाद इसकी 6 रत्ती की गोलियां बना ली जाती हैं और सुखा ली जाती है। इस दवा का सेवन कम मासिक आने, मासिक में दर, गर्भ न ठहर पाना, गर्भ का बार-बार गिर जाना, बाँझपन, आदि में किया जाता है। इसको चार गोली की मात्रा में सुबह और शाम दूध के साथ लिया जाता है। दवा के सेवन के दौरान तेल, खटाई, मिर्च, मसाले तथा गर्म तासीर के भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

  • गर्भधारण के लिए बीज की गिरी को दूध के साथ मासिक के दिनों में लिया जाता है।
  • पुत्रजीवक की जड़ को दूध में घिसकर पीने से गर्भ ठहरने के आसार बढ़ते हैं।
  • पुत्रजीवक पेड़ की छाल, बिल्व Aegle marmelos की जड़ और मालकांगणी Celastrus paniculatus की जड़ को पानी में पीस कर दिन एक बार, २-३ सप्ताह तक लेने से गर्भवती महिला के गर्भ से होने वाला असामान्य रक्तस्राव रुकता है।
  • सभी प्रकार के मासिक रोगों के लिए, बीज का गूदा और जीरा दूध में पीस कर सुबह मासिक के चौथे दिन से लेते हैं।
  • सफ़ेद पानी की समस्या (प्रदर) में पुत्रजीवक के फल का गूदा पानी और गुड़ के साथ लेते हैं।
  • गर्दन में सूजन और दर्द के लिए इस पेड़ की छाल को पानी में घिस कर लगाते हैं।
  • पत्तों और फलों का काढ़ा जुखाम और बुखार में दिया जाता है।
  • छाल के काढ़े को शरीर में बहुत गर्मी, बांझपन, उल्टी, कफ, मतली, बुखार, लिम्फ नोड की सूजन आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।

औषधीय मात्रा

पत्तों का रस १०-२० मिलीलीटर और बीजों का चूर्ण ३-६ ग्राम तक लिया जा सकता है।


बृहती Brihati (Solanum indicum) in Hindi

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बृहती एक औषधीय वनस्पति है। वार्ताकी, क्षुद्राभंटाकी, महती, कुली, हिंगुली, राष्ट्रिका, सिंही, महोष्ट्री, दुष्प्रधर्षणी, बड़ी कटेरी, वनभंटा आदि इसके संस्कृत पर्याय हैं। हिंदी में इसे बड़ी कटेरी, बड़ी भटकटैया, बड़ी कंटेली, बंगाली में भांटा, तिक्त बेगन, मराठी में मोठी डोलरी, गुजराती में डभीभोटीत्रिणी, तामिल में चेरुचुंट और लैटिन में सोलेनम इंडिकम कहते हैं।

आयुर्वेद में वृहती को बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। यह दशमूल Dashmula में प्रयोग की जाने वाली दस जड़ों में से एक है। यह लघु पञ्च मूल LaghuPancha Mula में आती है जिसमें अन्य चार जड़ें हैं, शालपर्णी, पृश्नीपर्णी, छोटी कटेरी और गोखरू। दशमूल शरीर में सूजन और वात-व्याधि के उपचार में प्रयोग की जाने वाली एक बहुत ही उत्तम दवा है। इसमें ज्वर/बुखार और सूजन को कम करने के गुण हैं। दशमूल खांसी, गैस, भूख न लगना, थकावट, ख़राब पाचन, बार-बार होने वाला सिरदर्द, पार्किन्सन, पीठ दर्द, साइटिका, सूखी खांसी, आदि में भी बहुत ही उपयोगी है।

Arayilpdas at ml.wikipedia [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0) or GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html)], via Wikimedia Commons
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बड़ी कटेरी, आलू और बैंगन के कुल का पौधा है। यह न केवल भारत में बल्कि श्री लंका, मलेशिया, चीन तथा फिलिपाइन्स में भी मिलती है। यह एल उष्ण जलवायु का पौधा है और बीजों से उगता है। बड़ी कटेरी के पुष्प नीले-बैंगनी होते हैं। इसके फल, बेरी होते हैं व कच्चे में हरे और सफ़ेद धारियों से युक्त होते हैं। पौधे में बहुत से कांटे होते है।

वृहती पौधे के फल और जड़ में वैक्स फैटी एसिड्स तथा अल्कालॉयड सोलामाइन और सोलानीडीन पाए जाते हैं। आयुर्वेद में अकेले इसका उपयोग प्रसव बाद कमजोरी, उलटी, अस्थमा, कफ आदि में किया जाता है। यह शोथ हर है और शरीर की सूजन को दूर करती है। मूत्रल होने से इसका प्रयोग मूत्र रोगों में होता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: सोलेनम इंडिकम
  • कुल (Family): सोलेनेसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: मुख्य रूप से जड़ें और फल
  • पौधे का प्रकार: झाड़ी
  • वितरण: पूरे भारत में
  • पर्यावास: गर्म, सूखे और रेतीली मिट्टी में

स्थानीय नाम Vernacular names / Synonyms

  1. वैज्ञानिक नाम: सोलेनम इंडिकम
  2. संस्कृत: Akranta, Asprasi, Bahupatri, Bhantaki, Brahati, Brihatika, Dovadi, Dusparsa, Hinguli, Kshudrabhanta, Kshudrabhantaki, Kshudravartaki, कुली, Mahati, Mahatikranta,
  3. Mahotika, Sinhi, Sinhika, Tprani, Vanavrintaki, Vartaki, Vyaghri
  4. असमिया: Tilabhakuri
  5. बंगाली: Byakud, Byakura, Brihati Begun, Baikur, Byakur, Gurkamai, Phutki, Phutki Begoon, Tit Begun
  6. अंग्रेज़ी: भारतीय नाइट शेड, Poison Berry, सोलेनम
  7. गुजराती: Umimuyaringani, Ubhibharingani, Ubhibhuyaringa, Ubhi-ringan
  8. गारो: Titbahal
  9. हिन्दी:Vanabharata, Badikateri, Jangli bhata, Bari-khatai, Birhatta, Barhanta
  10. कन्नड़: Kirugullia, Heggulla, Gulla
  11. मलयालम: चेरू Vazhuthina, Putirichunda, Cheruchunta
  12. मराठी: Dorli, Chichuriti, Dorale, Dorh, Mothi-ringani
  13. उड़िया: Dengabheji
  14. पंजाबी: Kandiarivaddi
  15. तमिल: Chiru vazhuthalai, Papparamulli, Mullamkatti, Mulli, Pappara-mulli
  16. त्रिपुरा: Khanka
  17. व्यापार नाम: Bari kateri
  18. तेलुगु: Tella Mulaka, Tellamulaka
  19. उर्दू: Kateli
  20. यूनानी: Kateli

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
  • आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asteridae
  • परिवार Family: सोलेनेसिएई Solanaceae
  • जीनस Genus: सोलेनम Solanum
  • प्रजाति Species: सोलेनम इंडिकम Solanum indicum

बृहती के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

बृहती स्वाद में कटु और तिक्त है।

कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि। तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, जैसे की नीम, कुटकी। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है। यह कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है। इस रस के अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • कर्म: दीपन, हृदय, अनुलोमना, वातशामक, कफशामक, शोथहर

यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत।

उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाकशरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

बृहती के औषधीय प्रयोग

  1. बृहती मुख्य रूप से सांस सम्बन्धी रोगों, कफ, वात, अरुचि, सूजन और अग्निमांद्य रोगों की दवा है। यह हृदय के लिए हितकारी, गर्म, पाचक, कडवी और दर्द में आराम देने वाली है। इसके सेवन से खून साफ़ होता है और पेशाब की मात्रा बढती है।
  2. बृहती के बीजों का सेवन बाजीकारक और गर्भाशय को संकोचन कराने वाला है। यह कंठ के लिए अच्छी औषधि है और हिक्का को दूर करती है।
  3. यह कफघ्न, ज्वरघ्न, कुष्ठघ्न, और कफ-वात शामक है।
  4. इसकी जड़ का काढ़ा बना कर मुश्किल प्रसव, प्रसव बाद टॉनिक के रूप में, पेशाब रोगों जैसे की पेशाब में दर्द, रुक-रुक के पेशाब आना, कफ तथा सांस रोगों में अच्छे परिणाम देता है।
  5. काढ़ा बनाने के लिए इसकी जड़ का सूखा मोटा-मोटा पाउडर पंसारी के यहाँ से खरीद लें। इस पाउडर को 5-6 ग्राम की मात्रा में लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें जब तक पानी आधा कप हो जाए तो इसे छान कर पियें।
  6. दवा की तरह निश्चित मात्रा में लेने से इसका कोई हानिप्रद असर नहीं होता।

औषधीय मात्रा

  • 5-6 gram जड़ का काढ़ा बनाकर औषधि के रूप में लिया जाता है।
  • जड़ के चूर्ण अथवा फल के चूर्ण को 1-2 gram की मात्रा में खा सकते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  2. यह मूत्रल है और इसका सेवन पेशाब अधिक लाता है।
  3. यह शरीर में कफ को कम करता है और रूक्षता लाता है।
  4. इसे ३-४ महीने तक प्रयोग कर सकते है।
  5. यह तासीर में उष्ण / गर्म है।

सेब Apple के फायदे और इसे खाने से सम्बंधित सावधानियां

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सेब का फल बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। यह पूरे साल उपलब्ध रहता है और सभी के द्वारा बहुत चाव से खाया जाता है। इसके ताज़े फल, जैम, जेली सभी कुछ बनाये जाते हैं।

इसका सेवन सेहत के लिए बहुत लाभप्रद है। अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘ एन एप्पल ए डे कीप्स डॉक्टर अवे’, जो की सेब के स्वास्थ्यप्रद गुणों के कारण ही बनी है। कहते भी हैं, सेब खाने से गाल सेब जैसे लाल होते हैं। सेब खनिज, लवण और और विटामिनों का समृद्ध स्रोत है इसलिए इसके सेवन से शरीर की कमजोरी, खून की कमी, थकावट और दिमागी कमजोरी दूर होती है। यह भूलने की बिमारी और हमेशा रहने वाले सर्द को ठीक करता है। इसमें फाइबर होता है जो कब्ज़ को दूर रखता है। सेब में पेक्टिन होने से यह लूज़ मोशन में भी फायदा करता है।

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सेब मैलिक एसिड का भी अच्छा स्रोत है। मैलिक एसिड एक कार्बनिक यौगिक है व सभी जीवों में पाया जाता है। बहुत से अन्य फलों में भी यह पाया जाता है लेकिन सेब में इसकी मात्रा ज्यादा होती है। मैलिक एसिड का सेवन उन लोगों के लिए अत्यंत फायदेमंद है जिन्हें फाइब्रोमाएल्जिया है। फाइब्रोमाएल्जिया Fibromyalgia वह सिंड्रोम है जिसमें शरीर की मांसपेशियों और सॉफ्ट टिश्यूज में हमेशा दर्द बना रहता है। इसकी वजह से व्यक्ति को हमेशा थकान रहती है, नींद की समस्या हो जाती है, और याददाश्त कम हो जाती और मूड भी बिगड़ा रहता है। इस बीमारी का कोई इलाज़ तो नहीं है पर आवश्यक बदलाव से इसे कम किया जा सकता है। सेब ऐसे ही कुछ आहारों में शामिल हैं जिसके सेवन से आप फाइब्रोमाएल्जिया के असर को कम कर सकते हैं।

मैलिक एसिड न केवल दर्द कम करता हैं बल्कि शरीर को अधिक ऑक्सीजन और एनर्जी भी देता है। यह एक ऐसा एसिड है जो शरीर में यूरिक एसिड के लेवल को कम करता है और इसलिए सेब के सेवन से यूरिक एसिड की अधिकता से होने वाले रोग जैसे की गाउट, आर्थराइटिस, किडनी की पथरी आदि के होने के खतरे कम होते हैं।

सेब खाने के स्वास्थ्य लाभ

  1. सेब वात और पित्त शामक है। यह पुष्टिकारक, कफकारक, भारी, और रूचि कारक है। तासीर में यह ठंडा है और शरीर को शीतलता देता है। सेब को खाने के अनगिनत फायदे हैं और इनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
  2. यह बहुत पौष्टिक, एंटीऐजिंग, और एंटीऑक्सीडेंट होता है।
  3. यह किसी को बहुत समय से सिर का दर्द होता है तो उसे नियमित रूप से सुबह सेब काट कर उस पर नमक लगाकर खाना चाहिए।
  4. सेब का नियमित सेवन दिल, दिमाग और रक्त के लिए लाभदायक है।
  5. सेब को खाने से शरीर को अधिक एनर्जी और टिशूज को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है।
  6. यह दिमाग की कमजोरी को दूर करता है।
  7. यह फाइबर से भरपूर होता है और कब्ज़ को दूर करता है।
  8. इसमें पेक्टिन होता है जिस कारण यह पेचिश में भी लाभ करता है।
  9. पेक्टिन कोलेस्ट्रोल, ट्राईग्लीसराइड्स, रक्त में शर्करा के स्तर, को कम करने में भी सहायक है।
  10. यह पाचन को बेहतर बनाता है।
  11. सेब को चबा कर खाने से लार बनती है और मुंह में बैक्टीरिया कम पनपते हैं जिससे कैविटी होने का खतरा कम होता है।
  12. इसके सेवन से डायबिटीज होने का खतरा कम होता है।
  13. यह शरीर में यूरिक एसिड को मात्रा को कम करता है।
  14. इसके सेवन से यूरिक एसिड से बनने वाले किडनी स्टोन बनने का खतरा कम होता है।
  15. इसके सेवन से अवसाद कम होता है।
  16. यह खून की कमी को दूर करता है।

सेब खाने में सावधानियां

  1. सेब को हर कोई खा सकता है। लेकिन कुछ लोगों को इसके सेवन से बहुत गैस बनती है। ऐसे में शुरू में इसकी कम मात्रा लें फिर बाद में मात्रा बढ़ा सकते हैं।
  2. डायबिटीज में थोड़े हरे और छोटे सेब खाए जा सकते हैं जो अधिक मीठे न हों। डायबिटीज में बहुत अधिक पके, मीठे और बड़े सेब नहीं खाने चाहिए।
  3. इसे शाम को या रात को न खाएं। ऐसा करने के कई कारण हैं जैसे की इसमें पेक्टिन होता है और यह पचने में भारी है। शाम को खाने से यह कफ अधिक बनाएगा। इसे खाने का सही समय सुबह है। अगर गैस बनती हो तो खाने के एक घंटे बाद खाएं।
  4. सेब के बीजों को नही खाना चाहिए। यह खाने योग्य नहीं होते।
  5. बहुत ज्यादा सेब न खाएं।
  6. बहुत चमकदार सेब न खरीदें। खाने से पहले सेब बहुत अच्छे से धो लें।

जिमीकंद सूरन Suran Medicinal Uses in Hindi

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जिमीकन्द, सूरण, कन्द, ओल, ओला, कांदल, अर्शोघ्न Sooran, Zamikand, Jimikand आदि सूरन के नाम हैं। पूरे भारत में इसे एक सब्जी के रूप पकाकर खाया जाता है। सूरन को केवल धो-काट कर नहीं पकाया जाता अपितु इसे काटने के बाद नींबू, इमली, फिटकिरी या सिरके के पानी में उबाल कर ही छिल कर फिर इसकी सब्जी को बनाते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि इस कन्द में कैल्शियम ऑक्सालेट तथा एक कड़वा जूस होता है जो खट्टे पानी में उबालने पर ही दूर होता है। यदि ऐसा न किया जाये तो यह खाने पर मुंह और गले में तेज़ जलन करता है।

भारत में सूरन का आचार भी बनता है। आचार का सेवन पित्त को बढ़ाता है और वायु को कम करता है। यह फाइबर युक्त होता है और पुराने कब्ज़ और पाइल्स में लाभ करता है। आयुर्वेद में तो इसे अर्शोघ्न नाम दिया गया है जिसका अर्थ होता है, अर्श अथवा पाइल्स को नष्ट करने वाला।

By Aruna at Malayalam Wikipedia (Own work) [GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html), CC-BY-SA-3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0/) or CC BY-SA 2.5-2.0-1.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.5-2.0-1.0)], via Wikimedia Commons
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बवासीर के अतिरिक्त इसे ब्रोंकाइटिस, दमा, खांसी, अपच, पेट में दर्द, फ़ीलपाँव, त्वचा और रक्त रोग, नालव्रण, गर्दन की ग्रंथियों में सूजन, मूत्र रोगों और जलोदर के उपचार में एक दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है।

यह यकृत रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है। पुरानी कब्ज और बवासीर के रोगियों के लिए यह एक अच्छी सब्जी है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: एमोरफोफैलस कैमपैनुलेटस
  • कुल (Family): लिली परिवार
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: कन्द
  • पौधे का प्रकार: छोटा पौधा
  • वितरण: पूरे भारत में इसकी खेती होती है
  • पर्यावास: गर्म, नम क्षेत्र
  • स्थानीय नाम / Synonyms
  • वैज्ञानिक नाम: Amorphophallus campanulatus
  • संस्कृत: Soorana, Kandula, Arshoghna, Kandayak, Gudaamaya-hara, Kandala, Suranah
  • बंगाली: ओले Ole
  • अंग्रेज़ी: Elephant-foot Yam, Elephant Yam, Cheeky yam, Corpse flower, Corpse plant, Telinga Potato, Voodo lily
  • गुजराती: सुरण
  • हिन्दी: सूरन, सूरण
  • कन्नड़: Suvarna gadde
  • मलयालम: Chena, Kattuchena, Kattuchenai
  • सिद्ध: Karnsa
  • तमिल: Karunai Kizhangu
  • तेलुगु: Mancai Kanda Durada Gadda
  • यूनानी: Soorana, Zamin-qand, Zamikand
  • अरबी: Batata el-feel
  • बांग्लादेश: Ol
  • चीन: Bai Ban Mo
  • म्यांमार: Wa

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: लिलीओप्सीडा Liliopsida
  • सबक्लास Subclass: ऐरेसीडीएई Arecidae
  • आर्डर Order: ऐरेल्स Arales
  • परिवार Family: ऐरेसिऐइ Araceae
  • जीनस Genus: एमोरफोफैलस Amorphophallus
  • प्रजाति Species:एमोरफोफैलस कैमपैनुलेटस Amorphophallus campanulatus

पोषण प्रति 100 ग्राम सूरन में

  1. ऊर्जा 70 किलोजूल
  2. पानी 80 ग्राम
  3. प्रोटीन 1.2 ग्राम
  4. फैट 0.1 ग्राम
  5. फाइबर 0.8 ग्राम
  6. कार्बोहाइड्रेट 18.4 ग्राम
  7. ओक्सालिक एसिड 1.3 ग्राम
  8. खनिज 0.8 ग्राम
  9. कैल्शियम 50.0 मिलीग्राम
  10. फास्फोरस 34.0 मिलीग्राम
  11. आयरन 0.6 मिलीग्राम
  12. थायमिन 0.06 मिलीग्राम
  13. राइबोफ्लेविन 0.07 मिलीग्राम
  14. नियासिन 0.7 मिलीग्राम
  15. कैरोटीन 260 मिलीग्राम
  16. विटामिन ए 434 I.U.

सूरन के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

सूरन स्वाद में कटु, तिक्त गुण में रूखा करने वाला और हल्का है।

कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है, क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है और अधिकता में सेवन करने से शुक्र धातु को नष्ट करता है।

तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता तथा इसके अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

  • कृमिघ्न: कृमि नष्ट करने वाला
  • अर्शोघ्न: [पाइल्स नष्ट करने वाला
  • रुच्य: भोजन में रूचि बढ़ाने वाला
  • वेदनाहर: दर्द दूर करने वाला
  • पित्तकर: पित्त बढ़ाने वाला
  • कफहर: कफ नष्ट करने वाला
  • दीपन: पाचन को अच्छा करने वाला
  • रक्तपित्तकर: ब्लीडिंग डिसऑर्डर करने वाला
  • दाद्रुकर: दाद करने वाला

सूरन प्लीहा और गुल्म को नष्ट करता है। यह बवासीर में पथ्य है। आयुर्वेद में सभी शाकों में इसे श्रेष्ट माना गया है।

रोग जिसमें सूरण का सेवन लाभप्रद है:

  1. बवासीर/अर्श/पाइल्स
  2. पेट के रोग
  3. अस्थमा, ब्रोंकाइटिस
  4. लीवर के रोग
  5. स्प्लीन का बढ़ जाना

सूरन की औषधीय मात्रा

सूरन को सब्जी की तरह खाया जा सकता है। औषधि की तरह प्रयोग करने के लिए इसके पाउडर का प्रयोग अधिक करते हैं।

पाउडर बनाने से पहले इसे शोधित करना ज़रूरी है। इसके लिए सूरन को इमली, नींबू युक्त पानी में उबाला जाता है। उबले हुए सूरन को पानी से निकाल कर छिल लिया जाता है और छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर धूप में सुखा लेते हैं। पूरी तरह से सूख जाने पर इसका चूर्ण बना लेते हैं।

इस चूर्ण को 5-10 ग्राम की मात्रा में औषधि की तरह प्रयोग कर सकते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  6. इसे दाद, कोढ़, रक्त पित्त में नहीं खाना चाहिए।

पथरचट्टा Kalanchoe pinnata के बारे में जानकारी और उपयोग

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पथरचट्टा, पथरचूर, पर्णबीज, पाथरकूची, आदि केलेंचोए पिन्नाटा पौधे के नाम हैं। इसे कुछ लोग पाषाण भेद के नाम से भी जानते है। पाषाणभेद PashanBheda पौधे की सही पहचान संदिग्ध है और बहुत से पौधे जो की अश्मरी Stones अथवा पथरी के उपचार में प्रयोग होते हैं, पाषाणभेद कह दिए जाते है। क्योंकि पथरचट्टा में अश्मरीघ्न गुण हैं तथा यह मूत्रल diuretic भी है इसलिए इसे भी पाषाणभेद की ही तह पथरी के उपचार में प्रयोग किया जाता है।

पथरचट्टा के पत्तों में बहुत से औषधीय गुण विद्यमान हैं जिस कारण इसे आंतरिक आर बाह्य दोनों ही प्रकार से प्रयोग किया जाता है। बाहरी रूप से लगाने से खून का बहना, घाव, जलना आदि में यह लाभ करता है। पत्तों का सेवन मुख्य रूप से पथरी तथा मूत्र रोगों urinary disorders के उपचार में होता है।

Read in English Here Medicinal use of Patharchatta or Kalanchoe Pinnata

patharchatta medicinal uses
Forest & Kim Starr [CC BY 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/3.0)], via Wikimedia Commons
पथरी के अतिरिक्त इसे पेचिश, गैस बनना, फोड़े, फुंसी, घाव, कटना, जलना, अल्सर, बालों में रूसी, कान के दर्द, सर में दर्द, सूजन, पीलिया, लिकोरिया, आदि में भी प्रयोग किया जाता है। यह तासीर में ठंडा होता है। इसे अश्मरीभेदक, मूत्रल, वात-पित्त-कफ शामक, रक्तपित्तशामक, और दर्द निवारक माना गया है। लोक चिकित्सा में इसे उच्च रक्तचाप और गाउट की समस्या में भी प्रयोग किया जाता है। यह शरीर को ठंडक देने वाला cooling और किडनी-लीवर की रक्षा करने वाला पौधा है।

पथरचट्टा का पौधा कैसे लगायें

पथरचट्टा के पौधे को उगाना बहुत ही आसान है। यह बहुत देखभाल वाला पौधा नहीं है और छाया में भी लगाया जा सकता है। पथरचट्टा पौधा बहुत ऊँचा नहीं होता और गमले में भी बहुत सरलता से लग जाता है और बढ़ता है। यदि एक बार यह पौधा लग जाता है तो स्वतः ही आस-पास की जमींन या गमलों में, जहाँ भी इसके पत्ते गिरते हैं, फ़ैल जाता है। इस पौधे में बीज नहीं होते और पत्तों से ही नए पौधे उगते हैं। यही कारण है इसे पर्णबीज के नाम से भी जाना जाता है। पत्तों को यदि पानी में या जमीन में डाल दे तो कुछ ही दिनों में पत्तों के मार्जिन से धागे की तरह जड़ें निकलने लगती है। धीरे-धीरे बहुत से जड़ें निकलती है और फिर छोटी-छोटी पत्तियां निकलती हैं। एक ही पत्ते से कई पौधे पैदा हो जाते है। पौधे को लगाने के लिए मिट्टी इस प्रकार की हो जिसमें बहुत पानी न रुके.

पथरचट्टा को रोज़ पानी देने की आवश्यकता नहीं है. तीन से चार दिन के गैप पर इसमें पानी डालें।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: Kalanchoe pinnata
  • कुल (Family): क्रेसुलेसीएइ
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते
  • पौधे का प्रकार: क्षुप
  • वितरण: भारत के गर्म और नम भागों में खासकर के पश्चिम बंगाल में प्रचुर मात्रा में। एशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज, गैलापागोस, मेलानेशिया, पोलिनेशिया और हवाई के अन्य शीतोष्ण क्षेत्रों में
  • पर्यावास: नम, गर्म और छायादार स्थान

स्थानीय नाम / Synonyms

  1. वैज्ञानिक नाम: Kalanchoe Pinnata
  2. संस्कृत नाम: Parn beej, hemsagar, Asthibhaksha, Parnabija, Parnabijah पर्ण बीज, हेमसागर
  3. अंग्रेजी: Air plant, Good luck leaf, Hawaiian air plant, Life plant, American Life Plant, Floppers, Cathedral Bells, Air Plant, Life Plant, Miracle Leaf, Goethe Plant, Wonder of the World, Mother of Thousands
  4. हिन्दी: Patharchattam, Patharchur, Pather Chat, Paan-futti पत्थरचूर
  5. बंगाली: Koppat, Patharkuchi, Gatrapuri, Kaphpata, Koppata, Pathorkuchi
  6. मलयालम: Elachedi, Elamulachi, Ilamarunnu, Ilamulachi
  7. तेलुगु: Ranapala
  8. तमिल: Runa Kalli
  9. यूनानी: Zakhm-hayaat, Zakhm-e-Hayaat, Pattharchoor, Pattharchat ज़ख्म हयात, ज़ख्मे-हयात
  10. सिद्ध: Ranakkalli
  11. चकमा: Jeos, Jeus, Patharkuchi, Roah-Kapanghey
  12. त्रिपुरा: Jeos, Naproking, Pathorkuchi

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सब क्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  • आर्डर Order: रोज़ेल्स Rosales
  • परिवार Family: क्रेसुलेसीएइ Crassulaceae (Stonecrop family)
  • जीनस Genus: केलेंचोए Kalanchoe
  • प्रजाति Species: क्लांचोए पिन्नाटा Kalanchoe pinnata

इस प्रजाति के और भी लैटिन नाम हैं,

  1. ब्रायोफिलम पिनाटम Bryophyllum pinnatum (Lam.) Oken
  2. ब्रायोफिलम कैलीसिनम Bryophyllum calycinum Salisb.
  3. कॉटीलीडोन पिनाटा Cotyledon pinnata Lam.

पथरचट्टा के पत्तों के औषधीय गुण

  • अश्मरीघ्न antiurolithiatic: किडनी, ब्लैडर, युरेटर में स्टोंस घुला देना या बनने न देना
  • मूत्रवर्धक diuretic: उत्सर्जित मूत्र की मात्रा बढ़ना
  • एसट्रिनजेंट Astringent: चोट, कट आदि पर लगाने से खून के बहने को रोक देना
  • एनाल्जेसिक analgesic: दर्द में राहत
  • एंटीडाइरिअल anti-diarrheal: राहत या पेचिश रोकना
  • एंटीइन्फ्लेमेटरी Anti-inflammatory: सूजन को कम करना
  • एंटीसेप्टिक antiseptic: संक्रामक एजेंटों के विकास में बाधा कर संक्रमण से बचाना
  • आक्षेपनाशक antispasmodic: अनैच्छिक पेशी की ऐंठन से राहत देना
  • कीटाणुनाशकantibacterial: बैक्टीरिया को नष्ट करना
  • इम्यूनोमॉड्यूलेटरी immunomodulatory: प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया या प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज को संशोधित करना

पथरचट्टा के पत्तों के औषधीय प्रयोग

पथरचट्टी के पौधे में अल्कालोइड्स, फेनोल्स, फ्लावोनोइड्स, टैंनिंस, एंथोसायनिन्स, ग्लाइकोसाइड्स, बुफडीएनओलिडस, सैपोनिन्स, कूमैरिन्स, सिटोस्टेरोल्स, क्विनिन्स, कैरोटेनॉयड्स, टोकोफ़ेरॉल, लेक्टिंस आदि हैं जो इसे एंटीकैंसर, एंटीऑक्सीडेंट इम्मुनोमोड्यूलेटिंग, एन्टीबॅक्टेरियाल, ऐनथेलमेन्टिक, एन्टीप्रोटोज़ोअल, न्यूरोलॉजिक (सेडेटिव एन्टीकवुलसेंट), एंटी -इंफ्लेमेटरी, एनाल्जेसिक, डियूरेसिस, एंटीयूरोलिथितिक, नेफ्रोप्रोटेक्टिवे, हेपेटोप्रोटेक्टिव,एंटी पेप्टिक अलसर, हाइपोटेन्सिव, एंटीडियाबेटिक और वुंड हीलिंग गुण देते हैं।

  1. पथरचट्टा पथरी की समस्या stone problems में बहुत लाभकारी है। जिन लोगों को बार-बार पथरी होने की शिकायत रहती है, वे इसका नियमित प्रयोग कर सकते हैं। यह पौधा, पथरी में फायदा करता है क्योंकि इसमें मूत्र की मात्रा को बढ़ाने और पत्थर को घुलाने के गुण है।
  2. यह किडनी और मूत्र मार्ग kidney and urinary stones के स्टोंस में फायदेमंद है क्योंकि जब पथरी का आकर छोटा हो या इसके नियमित सेवन से वह छोटी हो गयी हो तो मूत्र के माध्यम से यह शरीर के बाहर निकल जायेगी। लेकिन गाल-ब्लैडर की पथरी में ऐसी कोई संभावना नहीं है।
  3. गालब्लैडर gall bladder से पथरी के बाहर निकलने वाला कोई मार्ग नहीं है। इसलिए गाल ब्लैडर की पथरी में ज्यादातर मामलों में ओपरेशन की ही ज़रूरत पड़ती है। अच्छा तो ही यही होता है जैसे ही आपको इसका पता लगे उसे डॉक्टर को दिखा कर निकलवा लें। नहीं तो यदि यह वहां से निकल गई तो फिर मामला गंभीर हो जाएगा। यह गाल ब्लैडर से निकल कर आगे पतले रास्ते में फंस जायेगी और तब पीलिया, लीवर का इन्फेक्शन आदि हो जाएगा और तब किया जाने वाला ओपरेशन भी बड़ा होगा।
  4. पथरचट्टा मूत्रल है इसलिए मूत्र सम्बन्धी रोगों जैसे की कम पेशाब आना, रुक-रुक के आना, पेशाब का रुक जाना, पेशाब में जलन, आदि में इसका सेवन लाभकारी है। शरीर में यदि पानी की मात्रा अधिक हो water retention, सूजन हो, प्रोस्ट्रेट समस्या हो तो भी इसका प्रयोग करके देखें।
  5. स्त्रियों में प्रदर की समस्या leucorrhoea/white discharge, पेचिश, उलटी, पेट में जलन, शरीर में अधिक गर्मी, पित्त के रोग, रक्तपित्त bleeding disorder, पीलिया jaundice, बुखार, में भी इसे प्रयोग कर सकते हैं।
  6. पेट के अल्सर gastric ulcer में भी इन पत्तों का सेवन लाभ करता है। बाहरी रूप से पत्तों को पीस का पेस्ट के रूप में फोड़े, फुंसी, घाव, जलना, कतना, छिलना, आदि पर लगाते हैं।

पथरचट्टा के सेवन से शरीर पर कोई भी हानिकरक प्रभाव side-effects नहीं होते। इसे प्रयोग करना भी अत्यंत सरल है। दवा की तरह प्रयोग करने के लिए, सुबह व शाम इसके दो से तीन पत्ते चबा कर खाएं। यदि इसमें दिक्कत हो तो पत्तों को पीस लें और निकले रस को पी लें।

पथरचट्टा के कुछ पत्तों का रोजाना सेवन लम्बे समय तक किया जा सकता है। यह शरीर पर किसी भी प्रकार का हानिकारक प्रभाव नहीं डालता। चूहों पर किये एक अध्ययन ने दिखाया पथरचट्टा का प्रयोग गर्भावस्था में बच्चे के विकास पर किसी तरह का बुरा प्रभाव नहीं डालता। प्रयोग के दौरान देखा गया की जिन फीमेल चूहों को यह दिया गया था उनका वज़न गर्भवस्था में अधिक बढ़ा।

पालक Spinach information, benefits and Medicinal Uses in Hindi

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पलक्या, वास्तुकाकारा, छुरिका, मधुरा, और चीरितच्छदा पालक के संस्कृत नाम है। इसे हिंदी में पालक का शाक, पालकी, सागपालक, इस्फंज, बंगाली में पालंड़ शाक, फ़ारसी में अस्पनाख, और इंग्लिश में स्पाईनेज spinach और लैटिन में स्पिनेसिया ओलेरेसिऐइ कहते है।

पालक का साग पूरे भारतवर्ष में खाया जाता है। इसकी आलू – बैंगन के साथ सब्जी बनती है जो बहुत ही पौष्टिक होती है। आलू भंटा साग, बनाना भी बहुत सरल है। बनाने के लिए, २-३ आलू, एक बैगन और एक गड्डी पालक को अच्छे से साफ़ कर लिया जाता है। आलू और बैंगन को पतला-पतला काट लेते है। पालक को भी अच्छे से चोप chop कर लेते हैं। कढ़ाही में सरसों का तेल २-३ चम्मच की मात्रा में डाल कर गर्म करते हैं। इसमें जीरा, लाल मिर्च का तड़का लगते हैं। फिर बारीक कटा लहसुन डाल कर भूरा होने तक तलते हैं। अब आलू, पालक और बैंगन सभी को कढ़ाही में डाल, स्वादानुसार नमक डाल कर चालते है और तब तक पकाते हैं जब तक आलू गल न जाए। कुछ मिनट में ही सब्जी तैयार हो जाती है।

Palak ke fayade

चना दाल या अरहर ही दाल में भी पालक डाल कर पालक की दाल बनायी जाती है। पालक की दाल बनाने के लिए, पालक को बारीक़ काट लेते है। कुकर में दाल धो लेते लें इसमें आवश्यकता अनुसार पानी डालते है, लहसुन-अदरक को कुचल कर डालते है और थोड़ी सी हींग भी डालते है। कटा कुआ पालक डालते है और एक सिटी आने के बाद 5-10 मिनट तक पकाते है। दाल पाक जाने पर लहसुन और जीरा का तड़का लगाते है।

पालक को उगाना भी बहुत सरल है और आप इसे घर पर गमलों में भी उगा सकते हैं। उगाने के लिए गमले में मिट्टी इस प्रकार ही होनी चाहिए जिसमें पानी न रुके नहीं तो पालक के पौधे गल जायेंगे। बीजों को लोकल नर्सरी या पूसा केन्द्रों से खरीद सकते हैं। वहां पर एक पैकेट जिसमें 50-100 बीज होते हैं दस-बीस रुपये में मिल जायेंगे। बीजों को गमले में तब डालें जब तापमान 25 डिग्री से कम हो। पालक के बीजों को जमीन में बहुत अन्दर नहीं दबाना चाहिए। बस मिट्टी पर रख हाथों से बिखेर दें और थोड़ी से मिट्टी से ढक दें। तीन से दस दिनों में पौधे उग जायेंगे। जब पत्ते बड़े हो जाए तो पत्तों को काटें पर पूरे पौधे को न उखाड़ें। आप इन पौधे से पूरी सर्दी पत्ते ले सकते हैं। पालक के पौधे में ज्यादा तापक्रम होने पर बोल्टिंग, बीज निकलना, हो जाती है और तब यह खाने योग्य नहीं रहता।

आयुर्वेद में पालक को शाक वर्ग में रखा गया है और इसे वातकारक, शीतल, श्लेष्मवर्धक, दस्तावर, भारी, आध्य्मानकारक माना गया है। यह मद, श्वास, पित्त, रक्त तथा पित्त के विकारों से होने वाले रोगों को दूर करने वाला है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: स्पिनेसिया ओलेरेसा Spinacia oleracea Synonym Spinacia tetrandra Roxb.
  • कुल (Family): चेनोपोडिऐसिए Chenopodiaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते
  • पौधे का प्रकार: हर्ब
  • वितरण: यह पूरी दुनिया में सब्जी की तरह खाए जाने के लिए उगाया जाता है। पालक को पर्शिया native to Persia का पौधा माना जाता है।
  • पर्यावास: यह ठंडी जलवायु का पौधा है।

स्थानीय नाम / Synonyms

  • English: Garden Spinach
  • Ayurvedic: Palankikaa, Palankya, Palakya
  • Unani: Paalak
  • Siddha: Vasaiyila-keerai

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: कैरयोफीलीडए Caryophyllidae
  • आर्डर Order: कैरयोफिलेल्स Caryophyllales
  • परिवार Family: चेनोपोडिऐसिए – गूज़फुट फॅमिली Chenopodiaceae
  • जीनस Genus: स्पिनेसिया Spinacia
  • प्रजाति Species: स्पिनेसिया ओलेरेसा L। – स्पिनच Spinacia oleracea

पालक में पाए जाने वाले यौगिक

पालक के पत्तों में करीब 80-90% पानी, नाइट्रोजनअस पदार्थ 4%, फैट 0.5%, और फाइबर 1% पाया जाता है।

  • ट्रिटेरपेन सैपोनिन्स: स्पिनच सैपोनिन्स A and बी और दूसरे सैपोनिन्स
  • ऑक्जेलिक एसिड: नयी पत्तों में 6-8%, और पुराने पत्तों में 16% तक
  • हिस्टामिन: 140 mg/100 gm तक
  • फ्लावोनोइड्स : पटलेटिन , स्पिनॅसटिन ,स्पिनॅटोसिड तथा दूसरे फ्लावोनोइड्स
  • क्लोरोफिल: 0.3-1.0%
  • विटामिन्स : एस्कॉर्बिक एसिड (vitamin C, 40-155 mg/100 g)
  • नाइट्रेट्स: फ़र्टिलाइज़र के हिसाब से 0.3-0.6%

रोग जिनमे पालक खाना लाभदायक है

  1. अनीमिया anemia
  2. अस्थमा asthma
  3. उच्च रक्तचाप high blood pressure
  4. डायबिटीज diabetes
  5. दिखाई कम देना eyes sight weakness
  6. कम इम्युनिटी low immunity
  7. टोक्सिंस toxins
  8. पेट के रोग indigestion

पालक खाने के फायदे

  1. यह एक सुपर फ़ूड है।
  2. इसमें प्रोटीन होता है और मसल्स बिल्डिंग में मदद करता है।
  3. यह रोचक है और जलन में आराम देता है।
  4. यह तासीर में ठंडा है और शरीर में अधिक गर्मी को कम करता है।
  5. यह शरीर में पित्त को कम करने वाली सब्जी है।
  6. अधिक पित्त के कारण होने वाली बिमारियों जैसे की एसिडिटी, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, नकसीर फूटना, गुदा से खून गिरना आदि में इसके सेवन से लाभ होता है।
  7. यह जल्दी पच जाता है।
  8. इसमें लोहा, विटामिन सी, और विटामिन A, E, K प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  9. यह खून को साफ़ detoxify करता है।
  10. यह शरीर को ताकत देता है।
  11. यह अन्दर की रूक्षता internal dryness को कम करता है।
  12. इसमें फाइबर होता है जिस कारण यह कब्ज़ दूर करता है।
  13. यह फोलिक एसिड folic acid का अच्छा स्रोत है।
  14. यह शरीर में एसिडिटी कम करता है और एल्कलाइनिटी alkalinity को बढ़ाता है।
  15. इसमें Lutein and zeaxanthin एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो आँखों को डैमेज से बचाता है।

पालक के औषधीय उपयोग

  1. यह सुपाच्य और पौष्टिक सब्जियों में से एक है।
  2. पालक का सेवन शरीर में हिमोग्लोबिन के लेवल को बढ़ाता है।
  3. पालक के काढ़े को ज्वर, फेफड़ों या आंत की सूजन में दिया जाता है।
  4. सुबह-सुबह ताज़ी पालक को कुचल के उसका रस पीने से पेट साफ होता है।
  5. पालक के बीज विरेचक और ठंडक cooling and laxative देने वाले होते हैं।
  6. पालक के बीजों का सेवन पीलिया, लीवर की सूजन, और साँस लेने की दिक्कत में किया जाता है।
  7. गले में यदि जलन हो रही हो तो इसके रस से कुल्ले करना चाहिए।
  8. पत्तों का रस मूत्रवर्धक diuretic है।
  9. आतों के रोगों gastrointestinal tract diseases में पालक की सब्जी खाने से लाभ होता है।
  10. ततैया के काटे पर पालक का रस लगाना चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. पालक के सेवन का स्वास्थ्य पर हानिप्रद प्रभाव नहीं होता।
  2. चार महीने तक के शिशु को पालक न दें।
  3. इसमें ओक्सालिक एसिड oxalic acid है जो की कैल्शियम के अवशोषण को कम करता है.
  4. ओक्सालिक एसिड होने के कारण किडनी को ज्यादा काम करना पड़ता है। कुछ रोगों जैसे की किडनी स्टोंस, आर्थराइटिस,रूमेटिज्म गाउट में ओक्सालिक एसिड को न लेने या कम मात्रा में लेना चाहिए।
  5. जिन लोगों को कम ओक्सालिक एसिड लेने की सलाह हो वे इसका कम मात्रा में सेवन करें।
  6. पालक में नाइट्रेट high nitrate content की मात्रा अधिक होती है।
  7. बहुत देर तक पालक को स्टोर न nitrates may be converted to nitrites करें।
  8. पालक का सेवन गैस ज्यादा बनाता है.

हल्दी वाला दूध Turmeric Milk Information, Benefits and Medicinal Uses in Hindi

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हल्दी वाला दूध, जैसा की नाम से ही पता चलता है, हल्दी और दूध से तैयार होता है। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभप्रद है। इसको पीने से शरीर में ताकत आती है और कफ, कंजेशन, खून में गंदगी, दर्द, गैस, और सूजन आदि नष्ट होते हैं। शरीर में दर्द होने पर इसके सेवन से बहुत आराम पहुँचता है।

हल्दी वाला दूध एंटीऑक्सीडेंट, एंटीसेप्टिक, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी वायरल होता है। यह शरीर की इम्युनिटी को बढ़ा शरीर की विभिन्न रोगों से रक्षा करता है। यह लीवर के फंक्शन को ठीक करने में मदद करता है। इसे हर मौसम में लिया जा सकता है, लेकिन सर्दी में इसके सेवन से विशेष लाभ मिलते हैं क्योंकि उस समय हल्दी वाला दूध शरीर में गर्माहट लाता है सर्दी की समस्याओं को दूर करता है। सबसे बड़ी बात यह है की इसे लेने के अनेकों लाभ हैं लेकिन कोई नुकसान नहीं है।

बनाने की विधि Recipe for Haldi Vaala Doodh / Turmeric milk in Hindi

हल्दी वाला दूध, बनाने के लिए दूध और हल्दी चाहिए।

  1. दूध milk 1 गिलास
  2. हल्दी turmeric चौथाई से आधा टी स्पून, या आधा से दो ग्राम
  3. Optional: काली मिर्च black pepper (२-३ कुटी हुई), दालचीनी cinnamon,

हल्दी वाला दूध बनाने की बिधि

  • दूध को पतीले में लें। इसमें हल्दी और काली मिर्च डालें। काली मिर्च डालने से करक्यूमिन curcumin का अवशोषण बढ़ता है।
  • इसे धीमी आंच पर पकने दें। उबाल आने पर 5 मिनट तक और पकाएं। हल्दी वाला दूध तैयार है।

इसे सहता हुआ गर्म पियें। दिन में इसे दिन में 1-3 बार पिया जा सकता है। आप इसमें शहद भी डाल सकते हैं लेकिन इसे बहुत अधिक गर्म दूध में न डालें। आयुर्वेद में माना गया है शहद को गर्म करने से यह हानिकारक हो जाता है।

यदि स्वास्थ्य लाभ के लिए पीना चाहते हैं तो दिन में एक बार पियें।

यदि खांसी, जुखाम, अधिक कफ की समस्या से परेशान है तो दिन में तीन बार तक पी सकते है।

ज्यादा मात्रा में ज्यादा दिन तक न पियें।

हल्दी शरीर में रूक्षता drying करती है और कफ को सुखाती है। यह पित्त को बढ़ाती है और शरीर में गर्मी करती है।

रोग जिनमें हल्दी वाला दूध लाभप्रद है

  1. अस्थमा Asthma
  2. मोच, घाव, चोट Bruise, sprain, wound
  3. कफ cough, cough related problems and sore throat
  4. कब्ज़ constipation, piles
  5. जोड़ों का दर्द Joint Pain, arthritis, rheumatism
  6. प्रतिरक्षा की कमी Low immunity
  7. मोटापा Obesity
  8. शरीर में दर्द Pain in body
  9. सूजन Swelling in any part of body
  10. एलर्जी Urticaria, Seasonal skin allergy
  11. खांसी, इन्फेक्शन Whopping cough

हल्दी वाले दूध को पीने के लाभ Health Benefits of Turmeric Milk

  1. यह शरीर को गर्मी देता है।
  2. यह लिपिड लेवल को कम करता है।
  3. यह भूख न लगना और पाचन की कमजोरी में लाभकारी है।
  4. यह पाचन को ठीक impaired digestion करता है।
  5. यह हड्डियों को मजबूत करता है।
  6. जब शरीर में कफ excessive cough बढ़ जाता है, सर्दी-खांसी-कफ के कारण बुखार होता जाता है उस समय हल्दी वाले दूध को पीने से ये सभी समस्याएं दूर होती है।
  7. यदि रात में अधिक कफ परेशान करे, सांस लेने में दिक्कत होती हो, हल्का बुखार हो जाता हो तो इसका सेवन करके देखें।
  8. यदि आप मौसम के बदलाव पर होने वाले शीतपित्त/ पित्ती उछलना urticaria से परेशान हैं तो रोज़ नियम से सुबह हल्दी वाला दूध कुछ महीने तक लगातार पियें। यह आपकी बार-बार एलर्जी निकलने की समस्या को दूर कर देगा।
  9. यह आपके शरीर के टोक्सिंस toxins को दूर कर देगा और उसके सही काम करने में मदद करेगा।
  10. जोड़ों के दर्द, अंदरूनी सूजन, दर्द, मांसपेशियों के ऐंठन में इसे ज़रूर पिये। आपको बहुत आराम मिलेगा।
  11. मांसपेशियों में अनऐच्छिक ऐंठन, जैसे की पिरिड्स में इसे पीने बहुत लाभ होता है। यह दर्द और ऐंठन anti-spasmodic को दूर करता है।
  12. हल्दी का रोजाना सेवन कैंसर जैसे भयानक रोग से रक्षा करता है।
  13. सोने से पहले हल्दी वाला दूध पीने से अच्छी नींद आती है।
  14. प्रसव बाद इसके सेवन से शरीर की गंदगी दूर होती है, सूजन कम होती और घाव जल्दी भर जाते है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह दवा है और दवा की ही तरह लें। कोई भी चीज़ आवश्यता से अधिक लेने पर नुकसान करती है।
  2. इसमें हल्दी है जो कफ को कम करती है लेकिन अधिक मात्रा में ली जाए तो पित्त और वात दोनों को ही बढ़ाती है।
  3. अधिक मात्रा में ज्यादा दिन तक न पियें। यह शरीर में रूक्षता करेगा जिससे खुजली और स्किन ड्राईनेस हो जायेगी।
  4. यह शरीर में गर्माहट लाता है।
  5. हल्दी स्वभाव से उष्ण है और आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है।
  6. यदि पित्ताशय की पथरी gallstones है तो इसका सेवन न करें क्योंकि हल्दी पित्त के स्राव को उत्तेजित करती है।
  7. यदि बाइल डक्ट में रुकावट biliary obstruction है तो भी इसका सेवन न करें।
  8. इसका सेवन midazolam का अवशोषण बढ़ाता है।
  9. यह एंटी-प्लेटलेट है। इसलिए जो लोग एंटीप्लेटलेट या एंटीकोगुलेंट antiplatelet or anticoagulant दवा लेते हों उन्हें यह अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए।
  10. एसिडिटी, पित्त के रोगों, ब्लीडिंग डिसऑर्डर में इसका सेवन न करें।

गुड़हल Hibiscus rosa-sinensis Information, Medicinal Uses and Side-effects in Hindi

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जपापुष्प, जपा, त्रिसंधा औंड्रपुष्प, आदि गुड़हल के आयुर्वेदिक नाम है। हिंदी में इसे ओडहल, गुलहल, जवा, गुडहर और गुड़हल कहते हैं। बंगाली में इसे जपा फुलेर गाँछ और गुजराती में जासुदें और तमिल में इसे मंदार पुष्प कहते हैं। इसका अंग्रेजी में नाम शूफ्लावर और लैटिन में हिबिस्कस रोज़ासाईनेंसिस है।

गुड़हल एक औषधीय वनस्पति भी है। आयुर्वेद में इसे ग्राही dry the fluids of the body, केशों के लिए हितकारी बताया गया है। जपापुष्प स्निग्ध smooth, शीत cool in potency, व पिच्छिल slimy होता है। इसका काढ़ा ज्वर और कास में लाभप्रद है। सूजाक में इसे दूध, चीनी और जीरा के साथ दिया जाता है। जब मासिक में अधिक खून जाता हो तो इसे सेमल की जड़ के रस के साथ दिया जाता है।

gudhal medicinal uses

गुड़हल का पेड़ प्रायः उद्यानों में लागाया जाता है। यह पुष्पों के रंगों के अनुसार कई प्रकार का होता है। इसके पत्ते शहतूत जैसे होते हैं। पुष्प खिलने का समय वर्षा और ग्रीष्म है। यह हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है और पीली मिट्टी में अधिक मिलता है। दवाई की तरह पुष्पों, कलियों और पत्तों का प्रयोग किया जाता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: हिबिस्कस रोज़ा-साईनेंसिस
  • कुल (Family): मॉलवेसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पुष्प, कलियाँ और पत्ते
  • पौधे का प्रकार: झाड़ी
  • वितरण: बगीचों में

स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Japa, Japapushpa, Raktapushpi, Japakusuma
  2. हिंदी: Jasut, Jasun, Gudhal
  3. अंग्रजी: Chinese hibiscus, Chinese rose, Rose of China
  4. बंगाली: Joba
  5. गुजराती: Jasuva
  6. कन्नड़: Daasavala, Kempu daasavala, Kempu pundrike
  7. मलयालम: Ayamparathi, Chembarathi
  8. तेलुगु: Java pushapamu, Dasana
  9. तमिल: Separuti
  10. उड़िया: Mondaro
  11. असाम: Joba
  12. पंजाबी: Jasun

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • आर्डर Order: माल्वेल्स Malvales
  • परिवार Family: मॉलवेसिएई
  • जीनस Genus: हिबिस्कस Hibiscus
  • प्रजाति Species: हिबिस्कस रोज़ा-साईनेंसिस Hibiscus rosa-sinensis

हिबिस्कस रोज़ा-साईनेंसिस के संघटक Phytochemicals

एंथोस्यानिंस, फ्लावोनोइड्स, सायनिडिन-3,5-डाईग्लुकोसिड, सायनिडिन-3-सोफोरोसइड-5-ग्लुकोसिड, क्वर्सेटिन-3,7-डाईग्लूकोसिड, क्वर्सेटिन-3-डीग्लूकोसिड, सायक्लोपेप्टिडे अल्कलॉइड, सायनिडिन क्लोराइड, क्वर्सेटिन, राइबोफ्लेविन, एस्कॉर्बिक एसिड, थियामिन

औषधीय गुण Biomedical Action

  1. गर्भस्रावक Abortifacient
  2. गर्भनिरोधी Antifertility
  3. दर्दनाशक Analgesic
  4. एपिलेप्सीरोधी Anticonvulsive
  5. एस्ट्रोजनरोधी Antiestrogenic
  6. आरोपणरोधी Anti-implantation
  7. शोथरोधी Anti-inflammatory
  8. आक्षेपनाशक Antispasmodic
  9. ओवुलेशन रोधी Antiovulatory
  10. फंगलरोधी Antifungal
  11. वाइरस रोधी Antiviral
  12. डायबिटिक रोधी Antidiabetic
  13. गर्भनिरोधक Contraceptive
  14. सेंट्रल नर्वस सिस्टम को दबाना CNS depressant
  15. शांतिदायक Demulcent
  16. मूत्रवध॔क Diuretic
  17. आर्तवजनक Emmenagogue
  18. रक्तचाप कम करना Hypotensive
  19. तापक्रम कम करना Hypothermic

गुड़हल का प्रयोग निम्न रोगों में विशेष रूप से लाभप्रद है

  1. गर्भपात Abortion
  2. रक्त प्रदर Menorrhagia
  3. कफ वाली खांसी Bronchitis
  4. कफ Cough
  5. दस्त Diarrhoea
  6. बाल बढ़ाने के लिए Hair Growth

गुड़हल के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Shoe flower / Gudhal/ Hibiscus in Hindi

गुड़हल का आयुर्वेद में विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों, कलियों और पुष्पों का प्रयोग स्त्री रोगों, त्वचा रोगों और बालों सम्बन्धी समस्याओं में फायदेमंद है।

यदि कई महीने तक गुडहल की कलियों और पुष्पों का सेवन किया जाए तो स्त्री और पुरुषों दोनों में ही फर्टिलिटी anti-fertility कम हो जाती है। जहाँ इसकी कलियों और पुष्पों के सेवन से पुरुषों में शुक्राणुओं low sperm count की संख्या कम हो जाती है वहीं महिलाओं में ओवरी से अंडाणु निकलना ovulation रुकता है, निषेचित होने पर आरोपण नहीं anti-implantation होता और यदि आरोपण हो गया हो तो गर्भ गिर abortion/miscarriage जाता है। कुछ शोध भी इस बात को सही सिद्ध करते है। भारत में कई जन जातियां भी इसे गर्भस्राव कराने, प्रसव बाद प्लेसेंटा निकालने और प्रसव शुरू करने के लिए इसे उपयोग करते हैं।

गुड़हल का बालों की देखबाल में भी प्रयोग किया जाता है। इसे बालों में डेंड्रफ, गंजापन, बालों का बहुत अधिक गिरना आदि में बाहरी रूप से तेल में पका कर लागाते हैं।

स्त्री रोग gynecological problems

  1. पुष्पों का काढ़ा पीरियड की शिकायत को दूर करने के लिए किया जाता है।
  2. इसे प्रसव के बाद प्लेसेंटा को निकालने के लिए दिया जाता है।
  3. स्त्रियों में, यदि पुष्पों का सेवन पूरे महीने किया जाए तो गर्भ नहीं ठहरता।
  4. 5 ग्राम फूलों के पेस्ट को 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर, खाली पेट तीन दिन लेने से गर्भ गिर abortifacient जाता है।
  5. मासिक न आने पर कुछ पुष्पों का सेवन किया जाता है।
  6. लिकोरिया में पत्तों का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार लें।

रक्त प्रदर (Abnormal uterine bleeding

  1. रक्त प्रदर Rakta Pradara (Abnormal uterine bleeding) उस रोग को कहा जाता है जिसमें गर्भाशय uterus से असामान्य रक्तस्राव bleeding होता है तथा शरीर में कमजोरीweakness, एनीमिया anemia और पीठ दर्द pain in lower back आदि की शिकायतें होती हैं। रक्त प्रदर में गर्भाशय से उत्पन्न रक्तस्राव योनि vagina द्वारा होता है।
  2. रक्त प्रदर को मेडिकल टर्म में मेट्रोरेजिया Metrorrhagia के नाम से जाना जाता है। ग्रीक भाषा का शब्द मेट्रोरेजिया, दो शब्दों से मिल कर बना है, मेट्रा=गर्भाशय और रेजिया= अधिक मात्रा में स्राव; मेट्रोरेजिया का अर्थ है गर्भ से अधिक स्राव। रक्त प्रदर में मेट्रोरेजिया के अतिरिक्त शामिल है, मासिक का बहुत दिनों तक जारी रहना prolonged flow of blood और मासिक में बहुत अधिक रक्त बहना excessive blood flow जिसे मेडिकल टर्म में मेनोरेजिया menorrhagia कहा जाता है। असल में रक्त प्रदर वह रोग है जिसमें गर्भाशय से असामान्य रूप से खून का स्राव होता है।
  3. 5-10 ग्राम कलियों का पेस्ट दूध के साथ दिन में दो बार लिया जाता है।
  4. लाल गुडहल के पांच फूल पानी के साथ पीस के लेने से अधिक रक्तस्राव में लाभ होता है।

हर्बल कॉण्ट्रासेप्टिव natural contraceptive

  1. यदि इसकी 10 कलियाँ पूरे महीने नियमित रूप से महिला के द्वारा खा ली जाएँ तो बच्चा नही ठहरता।
  2. यदि बच्चा ठहर गया हो तो भी एबॉर्शन हो जाता है।

बालों का गिरना, डेंड्रफ hair problems

  1. पुष्पों-कलियों/ पत्तों का पेस्ट नहाने से एक घंटा पहले पीस कर बालों में लगाते हैं। अथवा
  2. गंजेपन में, बालों को लम्बा करने के लिए, पत्तों का रस निकाल कर नारियल तेल में उबालें। जब सारा पानी उड़ जाए और केवल तेल बचे तो इसे छान लें और रख लें। इसे बालों में नियमित लागायें। अथवा
  3. पुष्पों की पंखुड़ियों को सुखा कर नारियल के तेल में पका लें और इस तेल को रोजाना बालों में लगाएं।

सेक्सुअल डिसऑर्डर sexual disorders

कलियों का रस + लवंग, के साथ दिया जाता है।

पाइल्स piles

कलियों का पेस्ट प्रभावित स्थान पर लगायें।

पेट के कीड़े intestinal parasites

पत्तों का पेस्ट सेवन किया जाता है।

खून साफ़ करने के लिए, फोड़े-फुंसी, रक्त विकार के कारण होने वाले स्किन डिसीज

रोजाना दस कलियाँ एक महीने तक खाएं।

कार्बंगकल carbuncles

पत्तों का पेस्ट नींबू के रस मिलाकर बाहरी रूप से लगाया जाता है।

पेशाब में जलन burning urination

पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।

पाचन के रोग digestive disorder

  • रोजाना २ लाल फूल खाएं।
  • पत्तों का रस + चीनी के साथ लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह तासीर में ठण्डा है तथापि इसका सेवन गर्भावस्था में न करें। यह गर्भ नष्ट कर देगा।
  2. पुष्पों का सेवन स्त्री-पुरुष दोनों में, फर्टिलिटी को कम करता है।
  3. इनका नियमित सेवन गर्भनिरोधन contraceptive करता है।
  4. पुरुषों में यह स्पर्म को बनने से रोकता anti-spermatogenic है।
  5. स्त्रियों मे यह एम्ब्रोय को आरोपित strong anti-implantation नहीं होने देता।

यवक्षार Yavakshara Carbonate of Potash information, Uses, Caution and More in Hindi

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यवक्षार को आयुर्वेद में बहुत से नामों, जैसे की पाक्यक्षार, याबशूल, यवाग्रज आदि नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे जवाक्षार, यवक्षार, जौखार तथा इंग्लिश में कार्बोनेट ऑफ़ पोटाश, पोटैशियम कार्बोनेट कहते हैं। यह आयुर्वेद में वर्णित क्षार है (कभी-कभी शोरा भी कहते हैं) जिसे यव अर्थात जौ को जलाकर Alkali preparation of Barley बनाया जाता है। क्षार, कास्टिक caustic (able to burn or corrode organic tissue by chemical action) होते हैं।

यवक्षार बनाने की विधि Preparation of Yavakshara

आयुर्वेद में क्षारों को अत्यंत पुराने समय से औषधि की तरह प्रयोग किया जाता रहा है। इनका वर्णन चरक संहिता में भी मिलता है।

यवक्षार बनाने के लिए यव अर्थात जौ जिसे बार्ली Hordeum vulgare भी कहते हैं, के पौधे का प्रयोग किया जाता है।

जब जौ के पौधे के दाने पुष्ट हो जाते हैं तथा बाल और पौधे हरे रहते हैं तो उस समय उसे उखाड़ लेते हैं। इसे अच्छी तरह से सुखाया जाता है। सुखाने के बाद इसे जलाकर पानी में भिगो देते है। इससे क्षार का भाग पानी में घुल जाता है और बाकी अलग रहता है।

इसे छानते हैं और जो मिलता है उसे दो बार बिना पानी डाले, फिर छानते है। इसे आग पर या धूप में सुखा देते हैं। यही यवक्षार है।

स्थानीय नाम

  • संस्कृत: Yavakshara, Darulawana
  • अंग्रेजी: Impure or factitious carbonate of Potash, Impure potash carbonate: Potash carbonate impure, Salt of Tartar,
  • हिंदी: Javakhar, Khar
  • गुजराती: Kharo

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

यवक्षार स्वाद में कटु और नमकीन है, गुण में रूखा करने वाला, लघु और तेज है। स्वभाव से गर्म है और कटु विपाक है।

  • रस (taste on tongue): कटु, लवण
  • गुण (Pharmacological Action): तीक्ष्ण, लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

आयुर्वेद में यवक्षार को मुख्य रूप से कफ रोगों, जलोदर ascites, पथरी, पेशाब में जलन, प्लीहा-यकृत रोगों, हृदय के लिए टॉनिक और रक्त पित्त में प्रयोग किया जाता है।

यवक्षार के गुण Biomedical Action

  1. एंटासिड antacid
  2. भूख बढ़ानेवाला, आमाशय सम्बन्धी stomachic
  3. विरेचक laxative
  4. मूत्रवर्धक diuretic
  5. शोथहर resolvent
  6. परिवर्तनकारी alterative

रोग जिनमें यवक्षार उपयोगी है Diseases in which Yavakshara is Beneficial

  1. मूत्र रोग Urinary diseases
  2. पेट सम्बन्धी रोग, गैस, कब्ज़, पेचिश, संग्रहणी, गुल्म Abdominal diseases
  3. अस्थमा, कफ, सांस -गले सम्बन्धी रोग Respiratory ailments
  4. पांडु रोग, बवासीर Anemia, piles
  5. पथरी stones
  6. ग्लैंड्स की वृद्धि enlargement of glands
  7. प्रोस्ट्रेट की वृद्धि Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
  8. टेस्टिकल / ब्रेस्ट की वृद्धि tactical / breast enlargement
  9. प्लीहा / यकृत की वृद्धि spleen / liver enlargement
  10. यूरिक एसिड के रोग, वात रोग Uric acid
  11. हृदय रोग heart disease
  12. जलोदर ascites

यवक्षार के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Yavakshar

यवक्षार तासीर में गर्म है तथा कफ, गैस, स्रोतों की रुकावट, मूत्र रोगों, पेट क दर्द, पाचन की कमजोरी आदि में दिया जाता है। ज्यादातर तो इसे अन्य घटकों के साथ ही प्रयोग करते हैं।

यह पेशाब के रोगों, यूरिक एसिड, लिम्फ नोडों के बढ़ जाने, गग्लैंड्स के बढ़ जाने, ब्रेस्ट-टेस्टिकल की वृद्धि, प्लीहा-यकृत की वृद्दि, कोलिक, गैस, एसिड, आदि मे उपयोगी है। यह उन लोगों को भी दिया जाता है जो बहुत अधिक भोजन करते हैं।

यवक्षार की औषधीय मात्रा 125 ग्राम से लेकर आधा ग्राम तक की है। यह बहुत ही कटु, गर्म है और इसलिए इसका बहुत अधिक प्रयोग न करें।

ब्रोंकाइटिस bronchitis

  • यवक्षार आधा ग्राम + वासा के पत्तों का रस दस बूँद + लवंग का चूर्ण चौथाई ग्राम, को मिलाकर, पान के पत्तों के साथ दिया जाता है।
  • बवासीर, पेचिश, पेट में दर्द abdominal diseases
  • यवक्षार + सेंधा नमक + शुण्ठी (प्रत्येक 5 parts) + हरीतकी (10 parts), को मिलाकर आधा ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ लें।

अश्मरी stones

  • अश्मरी में वरुणादि क्वाथ (वरुण की छाल, कुल्थी, पाषण भेद, सोंठ, और गोखरू) में यवक्षार आधाग्राम मिलाकर दिया जाता है। अथवा
  • अश्मरी के लिए ही, यवक्षार आधा ग्राम को गोखरू चूर्ण 4 gram के साथ मिलाकर दिन में एक बार दिया जाता है अथवा गोक्षुर के काढ़े में यवक्षार मिलाकर देते हैं। अथवा
  • अश्मरी से होने वाले मूत्र कृच्छू में यवक्षार को मिश्री के साथ मिलाकर देते हैं।

कास cough

पञ्चकोल चूर्ण 3-4 gram में यवक्षार 1/2-1 gram मिलाकर दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लेते हैं।

खांसी

यवक्षार, अतीस, पिप्पली और करकट श्रृंगी को समान मात्रा में मिलाकर 250mg-500mg मात्रा में देते हैं।

गले में सूजन

यवक्षार, दारुहल्दी, रसोंत, पिप्पली, मालकांगनी को बराबर मात्रा में शहद के साथ मिलाकर गोली बनाकर मुंह में रखने से लाभ होता है।

गैस, डकार

यवक्षार आधा ग्राम को पेपरमिनट / कपूर के साथ मिलाकर लिया जाता है।

Benign Prostatic Hyperplasia

यवक्षार 1/2 ग्राम, दिन में दो बार खाने के पहले गर्म पानी के साथ लें।

मोटापा obesity

यवक्षार आधा ग्राम + करेले का रस + नींबू का रस, मिलाकर पियें।

पायरिया

यवक्षार + त्रिफला+ त्रिकटु+त्रिलवण + मीठा सोडा (प्रत्येक 10 gram) + अजवाइन (50 gram) का बारीक चूर्ण बनाकर रख लिया जाता है। इसे तीन ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम लेने से मुख रोगों में लाभ होता है।

यकृत की वृद्धि

यवक्षार 1ग्राम + पिप्पली 2 ग्राम+ हरीतकी 3 ग्राम, मिलाकर दिन में दो बार लें।

उच्च रक्तचाप

यवक्षार + खुरासानी अजवाइन + गिलोय का सत (प्रत्येक 250 मिलीग्राम), को मिलाकर दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।

अस्थमा

यवक्षार + पुष्कर्मूल चूर्ण + काली मिर्च को बराबर मात्रा में मिलाकर, 2-4 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ, सुबह और शाम लें।

बाहरी रूप से, यवक्षार को पुराने त्वचा रोगों में बाहरी रूप से लगाया जाता है। तिल के तेल के साथ मिलाकर इसे बढ़ी हुई ग्लांड्स पर भी लगाया जाता है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  • यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  • अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  • जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  • आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  • छोटे बच्चों को यह न दें।
  • जिन पुरुषों में वीर्य की समस्या हो, वे इसका प्रयोग न करें।
  • जो लोग कमजोर हैं, पतले-दुबले है, वे भी इसका प्रयोग न करें।

अगस्त –अगस्तिया Agastya (Sesbania Grandiflora) Tree in Hindi

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अगस्त, अगस्त्य, अगति, मुनिद्रुम, मुनिवृक्ष, मुनिपुष्प, वंगसेन, आदि अगस्तिये के संस्कृत नाम हैं। इसे हिंदी में हथिया, अगथिया या अगस्त कहते है। इसे बंगाली में बक, गुजराती में अगथियो, तेलुगु में अनीसे, अविसी, तमिल में अगस्ति और सिंहली में कुतुरमुरंग, अंग्रेजी में सेस्बेन और लैटिन में सेस्बानिया ग्रांडीफ्लोरा के नाम से जाना जाता है।

कुछ पाश्चत्य विशेषज्ञों का कथन है, यह भारत वर्ष का नहीं है अपितु बाहर के देशों से लाया गया वृक्ष है। किन्तु यह बात सत्य नहीं लगती। ऐसा इसलिए है की वैदिक ऋषि अगस्त्य इसी पेड़ के नीचे बैठ के तपस्या करते थे और इसी कारण इसे अगस्त्य नाम मिला। सुश्रुत ने भी इसका वर्णन किया है। इसलिये ऐसा मानना की यह वृक्ष कहीं बाहर से लाया गया है, गलत है।

agastya

अगस्त पूरे भारत में उगाया जाता है। यह मुख्य रूप से नम और गर्म जगहों में पाया जाना वाला पेड़ है और बंगाल में काफी संख्या में पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से यह तराई -भावर वाले वनों में मिल जाएगा। यह बहुत अधिक पानी वाले इलाकों में भी आराम से रहता है। इसकी अतिरिक्त जड़ें इसे पानी में खड़े रहने में मदद करती है। यह बाड़ वाले इलाकों में भी पनप जाता है।

अगस्त एक औषधीय वृक्ष है। औषधीय प्रयोजन हेतु इसके पत्ते, जड़, फल, बीज, छाल सभी कुछ प्रयोग किया जाता है। इसकी छाल में टैनिन और लाल रंग का राल निकलता है। इसके पत्तियों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, विटामिन A, B और C होता है। पुष्पों में भी विटामिन B और C पाया जाता है। बीजों में 70% प्रोटीन और एक तेल पाया जाता है।

अगस्त शीतल, रूक्ष, वातकारक, कड़वा होता है। यह स्वाद में फीका होता है। यह पित्त, कफ और विषम ज्वर नाशक है। इसके सेवन से प्रतिश्याय / खांसी-जुकाम दूर होता है। यह खून को साफ़ करता है और मिर्गी का नाशक है। यह कफ को दूर करने वाली औषध है। इसकी छाल कसैली, चरपरी, तथा बल कारक है। इसके पत्तों और फूलों के नस्य लेने से माथे का कफ के कारण भारीपन, सिर में दर्द, और जुखाम नष्ट होता है। कफ की अधिकता होने पर इसे शहद अथवा मूली के रस के साथ लिया जाता है।

बाहरी रूप से, अगस्त के पत्तों और धतूरे के पत्ते बराबर मात्रा में पीस कर सूजन पर बांधते हैं।

सामान्य जानकारी

अगस्त के पेड़ बहुत अधिक बड़े नहीं होते। इसकी डालियाँ घनी होती है। इसका तना सीधा होता है। पत्तियां इमली की पत्तें जैसी होती है। जब यह वृक्ष छोटे होते हैं तभी से इन पर फूल आने लगते हैं।

पेड़ पर अगस्त के महीने से पुष्प आते हैं। पुष्प चन्द्र की तरह मुड़े हुए होते हैं। आयुर्वेद में लाल, सफ़ेद, पीले और नीले रंग के पुष्प वाले अगस्त के पेड़ वर्णित हैं। ज्यादातर तो इसके सफ़ेद और लाल प्रकार ही देखे जाते हैं। पुष्प निकलने के कुछ समय बाद फल आते हैं। फल शिम्बी / फली रूप में होते हैं और उनमें दस-पंद्रह की संख्या में बीज होते हैं।

  • पत्तों, फूलों, मुलायम शाखों और फलियों का साग बनाया जाता है।
  • वानस्पतिक नाम: सेस्बेनिया ग्रांडीफ्लोरा
  • कुल (Family): मटर कुल
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरे वृक्ष
  • पौधे का प्रकार: पेड़
  • वितरण: पूरे भारतवर्ष में
  • पर्यावास: गर्म तथा प्रचुर मात्रा में जल वाले क्षेत्र

स्थानीय नाम

  • लैटिन: Sesbania grandiflora
  • संस्कृत: आगस्त्य, मुनिद्रुम, अगाती, अगस्त्य, दीर्घफलक, दीर्घशिम्बि, कनाली, खरध्वंसी, मुनिद्रुम, मुनीप्रिय, मुनिपुष्प, मुनितरु, पवित्र, रक्तपुष्प, शीघ्रपुष्प, शुक्लपुष्प, स्थूलपुष्प ,सुरप्रिय, वक, वक्रपुष्प
  • हिंदी: अगस्तिया, अगस्त, गति, बसना
  • इंग्लिश: Sesbane, Hummingbird Tree, Agathi, Sesban, Swamp pea
  • गुजराती: Augthiyo
  • मलयालम: Agathicheera, Agathi
  • मराठी: Augse gida, Hadga
  • कन्नड़: Agastya
  • तमिल: Agati, Acham, Agatti, Akatti-keerai, Kariram, Muni, Peragatti, Sewagatti
  • तेलुगु: Agise, Agase
  • म्यांमार: Pauk-pan-phyu, Pauk-pan-ni
  • सिन्हलीज: Katuru-murunga

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सब क्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  • आर्डर Order: फेबेल्स Fabales
  • परिवार Family: फेबेसिऐइ Fabaceae ⁄ Leguminosae
  • जीनस Genus: सेस्बेनिया Sesbania
  • प्रजाति Species: सेस्बेनिया ग्रांडीफ्लोरा Sesbania grandiflora

अगस्त के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Agastya in Hindi

अगस्त के पुष्प पित्तनाशक, कफनाशक और ज्वरनाशक होते हैं। इनका सेवन शरीर में वात को बढ़ाता है। यह तासीर में ठंडा है और शरीर में रूक्षता पैदा करता है। इसके सेवन से कफ, खांसी जुखाम आदि नष्ट होते हैं। पुष्पों का सेवन बुखार, रतौंधी, और प्रतिश्याय में लाभकारी है।

अगस्त के पत्ते कड़वे, कसैले, तासीर में कुछ गर्म, पचने में भारी होते हैं। पत्ते मुख्य रूप से कफ रोगों, खुजली, विष और जुखाम आदि में आंतरिक रूप से प्रयोग किये जाते हैं।

अगस्त की फली, विरेचक, रुचिकारक, मस्तिष्क के लिए अच्छी, सूजन नष्ट करने वाली और गुल्म नाशक है। वृक्ष की छाल संकोचक, पाचक और टॉनिक है। छाल को मुक्य रूप से काढ़ा बनाकर प्रयोग किया जाता है।

रात को न दिखाई देना, रतौंधी, आँखों के रोग night blindness, eye disorders

  • अगस्त के पत्तों और फूलों से बने साग का सेवन हितकारी है। अथवा
  • पुष्पों का रस, 2-3 बूँद की मात्रा में नाक में टपकायें। अथवा
  • पत्तों को पीस लें। अब पत्तों से चार गुना गाय का घी लेकर उसमें पकाएं। जब घी सिद्ध हो जाए तो छान कर रख लें। इस घी को 1-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम खाएं।

मिर्गी epilepsy

इसके फूलों + काली मिर्च + गो मूत्र, को लेने से लाभ मिलता है।

सफ़ेद पानी की समस्या leucorrhoea

इसके पत्तों का रस योनि के आस-पास लगाने से श्वेत प्रदर की समस्या दूर होती है।

मोच, चोट sprain, wound

इसके पत्तों की पुल्टिस बना कर लगायें।

माइग्रेन / आधासीसी migraine

सिर के जिस तरफ दर्द हो रहा हो, उसके दूसरे तरफ वाले नाक के छिद्र में इसके पत्तों / फूलों के रस की कुछ बूंदे टपकानी चाहिए।

सूजन swelling

अगस्त के पत्ते + धतूरे के पत्ते, बराबर मात्रा में पिस्स्कर सूजन वाली जगह पर बंधाना चाहिए।

माथे में कफ के कारण भारीपण, जुखाम-खांसी, नजला congestion

  • नाक में इसके पत्तों के रस की 2-4 बूंदे टपकाने से लाभ मिलता है। अथवा
  • इसकी जड़ के रस को 10-20 gram की मात्रा में शहद के साथ चाट कर दिन में 3-4 बार लें।

कब्ज़ constipation

  • पत्तों की सब्जी बना कर खाएं। अथवा
  • पत्तों का काढ़ा बनाकर पियें। करीब 20 ग्राम पत्ते लेकर डेढ़ गिलास पानी में उबालें। जब एक कप पानी बचे उसे छान लें और पियें।

बुद्धिवर्धक improving memory

बीजों के चूर्ण को दूध के साथ दिन में दो बार लें।

बुखार fever

पत्तों के रस 2-3 चम्मच की मात्रा में शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।

औषधीय मात्रा Dosage of Agastya

  • छाल का काढ़ा: 25-100 ml तक लिया जा सकता है।
  • पत्तों का रस: 2-3 चम्मच, पत्तों का पेस्ट: 5-10 ग्राम और बीजों का चूर्ण 1-3gram तक लिया जाता है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  • यह पित्त को कम करता है।
  • यह वातवर्धक है इसलिए वात प्रवृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।

अकरकरा Pellitory Root – Akarkara Information, Benefits, Uses, Side-effects in Hindi

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आकारकरभ, अकरकरा, करकरा आदि एनासाइक्लस पायरेथम के संस्कृत नाम हैं। इसका अरेबिक नाम आकिरकिर्हा, ऊदुलकई और फ़ारसी में तर्खून कोही है। इंग्लिश में इसे पाइरेथ्रम रूट, पेलेटरी रूट, स्पेनिश पेलिटरी Pellitory Root आदि नामों से जानते हैं।

एनासाइक्लस पायरेथम, जो की पूरी दुनिया में पेलिटरी रूट के नाम से मशहूर है अफ्रीका का पौधा है। इसका वर्णन आयुर्वेद के बहुत प्राचीन ग्रंधों में नहीं मिलता। किसी संहिता में इसके बारे में नहीं लिखा गया है। लेकिन बाद के ग्रंथों में, जो दवाएं यूनानी पद्यति से लिए गए उनमें अकरकरा का वर्णन मिलता है। अकरकरा नाम भी अरेबिक नाम आकिरकिर्हा से आया है। आकिरकिर्हा, अरबी के अकर (काटना) और तकरीह (जख्म डालना) से बना है। भारत में यह जड़ी -बूटी मुख्यतः अलजीरिया से आयात की जाती है।

अकरकरा, जिसका बोटानिकल नाम एनासाइक्लस पायरेथम Anacyclus pyrethrum है, वह उत्तरी अफ्रीका, अलजीरिया और अरब में पायी जाने वाली वनस्पति है। भारत में उत्पन्न एक अन्य वनस्पति स्पाईलेंथस पेनीकुलेटा Spilanthes paniculata को देसी अकरकरा कहते है। ये दोनों ही वनस्पतियाँ बिलकुल भिन्न है पर दोनों को ही मुख और दन्त रोगों में प्रयोग किया जाता है। दवा की तरह दोनों, देशी और विदेशी अकरकरा प्रयोग किये जाते हैं लेकिन विदेशी अकरकरा अधिक वीर्यवान, उत्तम है तथा गुणों में देसी अकरकरा से श्रेष्ठ है। विदेशी अकरकरा महंगा मिलता है। देसी अकरकरा के पुष्प गोल छत्री के आकार के और पीले रंग के होते हैं।

दवा की तरह विदेशी अकरकरा की जड़ों का प्रयोग किया जाता है। यह जड़ें लम्बी और धुरी के आकार fusiform की होती हैं। इसके पुष्प सफ़ेद रंग की पंखुड़ियों वाले और बीच से पीले-हरे से होते हैं। देखने में यह डेज़ी फ्लावर जैसे होते हैं। इसके बीज सोआ जैसे होते हैं। असली अकरकरा की जड़ों में कीड़े लगने की संभावना बहुत रहती है। इसलिए भंडारण के समय इसे बिना नमी वाले और ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए। इसे सीधे प्रकाश में नहीं रखना चाहिए।

अकरकरा एक औषधीय वनस्पति है। यह मुख्य रूप से मुख रोगों, दांत में दर्द, गले की दिक्कतों, मुंह के लकवे, मिर्गी, कमजोर नाड़ी, लार न बहने, पित्त की कमजोरी, कफ की अधिकता आदि में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे पित्त वर्धक और कफ नाशक माना गया है। यूनानी में इसे तीसरे दर्जे का रुक्ष और गर्म माना गया है। अकरकरा की जड़ का मुख्य सक्रिय तत्व पेलिटोरिन है अथवा पारेथ्रिन है। यह अकरकरा को तीक्ष्ण और लार बहाने के गुण देता है। यह स्वाद व स्वभाव में कुछ-कुछ काली मिर्च के पिपरिन जैसा है।

यह काम शक्ति को बढ़ाने और वाजीकारक की तरह, आंतरिक और बाहरी, दोनों ही तरह से प्रयोग किया जाता है। बाहरी रूप से इसका लेप (तिला के रूप में) और आंतरिक रूप से इसे चूर्ण की तरह प्रयोग किया जाता है। इसका सेवन उत्तेजना लाता है और इन्द्रिय को अधिक खून की सप्लाई करता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: एनासाइक्लस पायरेथम Anacyclus pyrethrum
  • कुल (Family): मुण्डी कुल
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: मुख्य रूप से जड़ें
  • पौधे का प्रकार: छोटा पौधा
  • वितरण: उत्तरी अफ्रीका के देशों में प्राकृतिक रूप से मिलता है। भारत में इसकी खेती हिमालय के कुछ हिस्सों में की जा रही है।
  • पर्यावास: यह अच्छी तरह से पानी निकल जाने वाली, उर्वरक युक्त, लोमी मिट्टी में अच्छे से पैदा होता है।

स्थानीय नाम / Synonyms

  • साइंटिफिक नाम : Anacyclus pyrethrum
  • संस्कृत : Akallaka, Akallaka, Akarakarabha
  • असामीज : Kulekhara
  • बंगाली : Akarakara
  • इंग्लिश : Pellitory, Pellitory of Spain, Pyrethre, Pyrethrum, Roman Pellitory, Spanish Camomile,
  • गुजराती : Akkalkaro, Akkalgaro
  • हिंदी : Akalkara
  • कन्नड़ : Akkallakara, Akallakara, Akalakarabha, Akkallaka Hommugulu
  • मलयालम : Akikaruka, Akravu
  • मराठी : Akkalakara, Akkalakada
  • उड़िया : Akarakara
  • पंजाबी : Akarakarabh, Akarakara
  • तमिल : Akkaraka, Akkarakaram
  • तेलुगु : Akkalakarra
  • उर्दू : Aqaraqarha
  • अरेबिक : Aaqarqarha, Aquarqarha, Audulqarha, Udalqarha
  • पर्शियन : Kakra, kalu, kalua, kazdam, akalawa, Beekhe Tarkhoon

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: Asteridae
  • आर्डर Order: Asterales
  • परिवार Family: Asteraceae
  • जीनस Genus: Anacyclus
  • प्रजाति Species: Anacyclus pyrethrum

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

अकरकरा एक कटु रस औषधि है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है। कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। इसका अधिकता में सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।

यह उष्ण स्वभाव की औषध है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue):कटु
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

कर्म:

  • वातशामक
  • कफनाशक
  • पौष्टिक
  • लारस्रावजनक
  • नाड़ीबल्य
  • कामोद्दीपक
  • वीर्यवर्धक

अकरकरा के लाभ Health Benefits of Akarkara

  1. यह मुख रोगों, हकलाना, तुतलाना, दांत-दर्द, लकवा, कफ आदि की अच्छी दवाई है।
  2. इसके सेवन से शरीर में पित्त की कमी के कारण होने वाले पाच, मन्दाग्नि में लाभ होता है।
  3. यदि शरीर में कफ अधिक बढ़ गया हो तो अकरकरा का सेवन कफ को सुखाता है और शरीर में गर्मी लाता है। यह सर्दी, खांसी, कफ आदि में लाभप्रद है।
  4. यह बुद्धिवर्धक है।
  5. यह नसों को ताकत देने वाली औषध है।
  6. इसका सेवन कामेच्छा को बढ़ाता है, नामर्दी दूर करता है, सेक्सुअल ऑर्गन को ताकत देता है और शीघ्रपतन को दूर करता है।

अकरकरा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Akarkara – Anacyclus pyrethrum

अकरकरा में मूत्रल, वाजीकारक, बुद्धिवर्धक, कफनाशक, उत्तेजक और पित्तवर्धक गुण पाए जाते हैं। क्योंकि इसका सेवन शरीर में गर्मी लाता है इसलिए यह पाचन की कमजोरी और कफ की अधिकता में लाभप्रद है। अकरकरा का सेवन कफ को सुखाता है और शरीर में रूक्षता लाता है।

अकरकरा की जड़ को बहुत ही कम मात्रा में लेना चाहिए। अधिक मात्रा लाभ के स्थान पर हानि करती है। कतीरा, मुनक्का आदि को इसका दर्प नाशक माना गया है। बाह्य रूप से लगाने पर भी यह बुखार, इन्द्रिय की कमजोरी, लकवा आदि में अच्छे परिणाम देता है।

नामर्दी, शीघ्रपतन

अकरकरा की जड़ + अश्वगंधा + केवांच बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण का सेवन दिन में दो बार आधा से लेकर एक टीस्पून तक सेवन करें।

यौन इन्द्रिय दुर्बलता

जड़ का रस अथवा तेल की यौन इन्द्रिय पर मालिश करके पान के पत्ते के साथ इन्द्रिय पर दो घंटा बाँधने से यौन इन्द्रिय मज़बूत और पुष्ट होती है।

पुरुषों में कामेच्छा को बढ़ाने के लिए

अकरकरा का सेवन शरीर में गर्मी और उत्तेजना लाता है।

अकरकरा चूर्ण + अश्वगंधा + सफ़ेद मुस्ली, बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण का सेवन दिन में दो बार आधा से लेकर एक टीस्पून तक सेवन करें।

मिर्गी Epilepsy

  • अकरकरा की जड़ का चूर्ण आधा ग्राम को शहद के साथ लें। चूर्ण को नस्य के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अथवा
  • सिरके में अकरकरा कप पीस कर शहद के साथ 5-10 ml की मात्रा में लें। अथवा
  • अकरकरा की जड़ का काढ़ा, ब्राह्मी के साथ मिलाकर लें।

अर्धांगवात Hemiplegia

अकरकरा की जड़ का चूर्ण + राई का चूर्ण को शहद में मिलाकर जीभ पर लगाते हैं।

स्नायु रोग, लकवा, पक्षाघात Muscle disease, paralysis

  • अकरकरा की जड़ का चूर्ण दो ग्राम + सोंठ एक ग्राम + मुलेठी दो ग्राम, को लेकर काढ़ा बनाकर, एक महीने तक पीने से आराम मिलता है। अथवा अकरकरा की जड़ का चूर्ण आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाट कर लें।
  • अकरकरा की जड़ को महुए के तेल के साथ मिलाकर मालिश करें।

साईटिका

अकरकरा की जड़ का चूर्ण + अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करें।

दांत में दर्द

अकरकरा की जड़ को पीस कर प्रभावित दांत की जड़ के नीचे रखना चाहिए।

हकलाना, तुतलाना

अकरकरा की जड़ का चूर्ण एक रत्ती, काली मिर्च चूर्ण एक रत्ती को शहद एक चम्मच, में मिलाकर जीभ पर पांच मालिश करें। यह प्रयोग २-३ महीने तक करें। (1 Ratti=125mg)

आवाज़ मधुर करने के लिए

चौथाई से लेकर आधे ग्राम की मात्रामें अकरकरा की जड़ के चूर्ण की फंकी लें।

गले का बैठ जाना

  • अकरकरा की जड़ के टुकड़े को चूसना चाहिए। अथवा
  • इसकी जड़ के काढ़े से कुल्ले करने चाहिए।

हिचकी

अकरकरा की जड़ का चूर्ण + शहद लें।

अधिक लार के लिए

अकरकरा की जड़ चूसने से अधिक लार बनती है।

खांसी, कफ

जड़ का काढा बनाकर पीने से लाभ होता है।

गैस, अपच, मन्दाग्नि

अकरकरा की जड़ का चूर्ण 1 ग्राम + सोंठ एक ग्राम, को खाने से पाचन की कमजोरी दूर होती है।

सिर का दर्द

अकरकरा की जड़ कप पीस कर माथे पर लेप करने से सिर के दर्द में आराम होता है।

akarkara medicinal uses
By JerryFriedman (Own work) [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0) or GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html)], via Wikimedia Commons
सिन्दूर का विष दूर करने के लिए

अकरकरा की जड़ को गिस कर पानी के साथ दिया जाता है।

बुद्धि को बढाने के लिए

अकरकरा की जड़ का चूर्ण + ब्राह्मी, बराबर मात्रा में पीस कर रख लें। इसे आधा टीस्पून की मात्रा में लें।

बुखार

जड़ को तेल में पका कर तेल को मालिश के लिए प्रयोग करते हैं।

अकरकरा की औषधीय मात्रा Dosage of Akarkara

अकरकरा को लेने की औषधीय मात्रा आधा से एक ग्राम है। काढ़ा बनाने के लिए करीब दो से तीन ग्राम जड़ का चूर्ण लेकर एक कप पानी में उबालें जब तक पानी चौथाई न रह जाए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. कुछ लोगों में पौधे को छूने के बाद डेर्मेटाइटिस हो सकता है।
  2. इसे बहुत अधिक मात्रा (एक – दो ग्राम से ज्यादा) में और बहुत लम्बे समय (एक – दो महिना से ज्यादा) तक प्रयोग न करें।
  3. अधिक मात्रा में इसका सेवन आतों को नुकसान पहुंचता है जिससे आँतों से खून निकल सकता है, टिटनेस-तरह की ऐंठन होती है और बेहोशी भी हो सकती है।
  4. अधिकता में किये गए सेवन से खूनी दस्त हो सकती है।
  5. यह फेफड़ों के लिए अहितकर माना गया है।
  6. यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  7. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  8. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  9. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  10. अकरकरा के साइड-इफेक्ट्स को दूर करने के लिए गोंद कतीरा, गोंद बबूल, मुनक्का अथवा मुलेठी का प्रयोग करना चाहिए।

ऊँटकटारा Brahmadandi – Oont Katara (Echinops echinatus)

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एकिनोप्स एकिनाटस को संस्कृत में कटालु, उताति, ब्रम्हडंडी, हिंदी में ऊँटकटारा, मराठी में उटकटारी, काँटेचुम्बक, बंगला में छागसहाड़ी, वामनहांडी, और अंग्रेजी में ग्लोब-थीस्ल, कैमल्स थीस्ल कहते हैं। यह एक औषधीय वनस्पति है जो की रेतीले प्रदेशों, बंजर खेतों मैदानों में पायी जाती है।

यह सूरजमुखी कुल का, सीधे तने वाला, काँटों से भरा हुआ, १-२ फुट की ऊँचाई वाला पौधा है। इसकी पत्तियां सत्यानाशी के पौधे जैसे ही फैली हुए और कांटेदार होती हैं। यह बहुशाखीय है ऊँटकटारा के ढोढे होते हैं जिनपर कांटे होते हैं। इस पर नीले-बैंगनी रंग के छोटे-छोटे फूल गुच्छों में आते हैं। इसकी मूसला जड़ भूमि में बहुत अन्दर तक धंसी रहती हैं।

Oont Katara
By Yercaud-elango (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
आयुर्वेद में ऊँटकटारा को बल देने वाले, मधुमेह नाशक, वीर्य स्तंभक, पुष्टिकारक, दर्द-निवारक, प्रमेहनाशक माना गया है। इसे कामशक्तिवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: एकिनोप्स एकिनाटस Echinops echinatus
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते, जड़, छाल, फल
  • पौधे का प्रकार: झाड़ी
  • वितरण: मध्य भारत, मारवाड़, दक्षिणी प्रान्त
  • पर्यावास: यह उष्ण प्रदेशों की वनस्पति है।

ऊँटकटारा के स्थानीय नाम / Synonyms

  • संस्कृत: Kantalu, Kantaphala, Utati, Utkantaka, Karabhadana, Sringalshunkashana
  • हिंदी: Untakatara, Uthkanta, Utakatira
  • अंग्रेजी: Indian globe thistle, Camel’s thistle
  • गुजराती: Utkanto, Utkato, Shuliyo
  • कन्नड़: Brahmadande
  • तेलुगु: Brahmadandi
  • अन्य: Oont kantalo, Modokanto, Oontkantalo, Oont-Kanti, Utkali

ऊँटकटारा का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
  • आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asteridae
  • परिवार Family: Asteraceae – Aster family
  • जीनस Genus: एकिनोप्स Echinops
  • प्रजाति Species: एकिनोप्स एकिनाटस Echinops echinatus

ऊँटकटारा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

ऊँटकटारा स्वाद में कटु,तिक्त, गुण में रूखा करने वाला है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।

यह तासीर में गर्म है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

ऊँटकटारा का प्रयोग निम्न रोगों में लाभदायक है

  • मूत्रकृच्छ (dysuria)
  • मधुमेह (diabetes)
  • तृष्णा (thirst)
  • हृद्रोग (cardiac diseases)
  • अश्मरी (urolithiasis)
  • ज्वर (fever)

ऊँटकटारा के गुण

  1. यह अग्निवर्धक है और पाचन को बढ़ाता है।
  2. यह ज्वर को नष्ट करने वाली औषध है।
  3. यह उत्तेजक और भूख बढ़ाने वाला है।
  4. यह कामोद्दीपक, पौष्टिक और बल्य है।
  5. यह मूत्रवर्धक और स्नायु को बल देता है।

ऊँटकटारा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Echinops echinatus in Hindi

ऊँटकटारा में कई अल्कालॉयड, ट्राईटरपेन, फ्लावोनोइड, Alkaloids, triterpene, flavonoids, स्टेरॉयड, लिपिड पाए जाते है। इसमें मूत्रल, टॉनिक और कामोद्दीपक गुण है। इसे पशुओं के रोगों में भी प्रयोग किया जाता है।

तपेदिक Tuberculosis

Echinops echinatus बीज + Antidesma acidum जड़ + Solanum surattense जड़, का काढ़ा बनाकर शहद के साथ दिन में दो बार, आधे महीने तक दिया जाता है।

प्रमेह

  • ऊँटकटारा की छाल का चूर्ण शहद / मिश्री के साथ देते हैं। अथवा
  • ऊँटकटारा की जड़ की छाल तीन ग्राम + गोखरू तीन ग्राम + मिश्री छः ग्राम, के बारीक़ चूर्ण को मिलाकर दिन में दो बार, सुबह-शाम दूध के साथ लेना चाहिए।

अधिक पसीना आना

ऊँटकटारा की जड़ों का चूर्ण दिन में एक से लेकर तीन बार तक दिया जाता है।

पाचन की कमजोरी

ऊँटकटारा की जड़ की छाल + छुहारे की गुठली का चूर्ण, तीन ग्राम की मात्रा में लेते हैं।

खांसी

ऊँटकटारा की जड़ की छाल को पान में रखकर खाते हैं।

मूत्रकृच्छ

तालमखाना + ऊँटकटारा की जड़ की छाल की फंकी लेते हैं।

कफ, अपच, वीर्य की कमजोरी

पौधे को पानी में भिगा कर infusion of plants सेवन किया जाता है।

स्त्रियों में बाँझपन

पत्ते और पुष्पक्रम का अर्क infusion of leaves and inflorescence, सात दिनों तक सुबह,सात दिनों तक देने से गर्भ ठहरने के आसार बढ़ते हैं।

कामशक्ति बढ़ाने के लिये, सेक्सुल पॉवर बढ़ाना

  • ऊँटकटारा की जड़ की छाल 12 ग्राम, को कुचल कर पोटली में बाँध देते हैं। फिर इसे आधा लीटर गाय के दूध + एक लीटर पानी में उबालते हैं। जब केवल दूध बचे तो दूध पी लें।
  • जड़ की छाल का पेस्ट इन्द्रिय पर सेक्स से एक घंटा पहले लगाते हैं।

राउंड वर्म, पेट के कीड़े

पत्तों का रस, शहद के साथ देते हैं।

गर्भाशय की सूजन

पत्तों की चटनी को ऊँटनी के दूध में पकाकर, कपड़े में लगाकर पेडू पर बांधते हैं।

प्रसव कराने के लिए

ऊँटकटारा की जड़ों से बना काढ़ा जल्दी और आसान प्रसव के लिए नाभि के आस-पास लगाया जाता है।

बुखार

रूट पेस्ट को शरीर पर लगाते हैं।

चमड़ी के रोग, जोड़ों का दर्द, रूमेटिक सूजन, खुजली, एक्जिमा

पत्तों का अथवा जड़ का पेस्ट लगाते हैं।

सांप-बिच्छू के काटने पर

जड़ को पानी में पीसकर प्रभावित जगह पर लगाते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. गर्भावस्था में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह एबॉर्शन करता है। बहुत कष्टकारी और लम्बे प्रसव के लिए ही इसका प्रयोग करते हैं और वह भी बहुत सावधानी से।

सूरजमुखी Sunflower Helianthus annuus in Hindi

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सूरजमुखी को हिंदी में हुरहुल, संस्कृत में सूर्यमुखी, सूर्य्यवितं, सुवन्चला तथा अंग्रेजी में सनफ्लावर कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम हेलिएन्थस एनस Helianthus annuus है और यह कंपोजिटी परिवार का पौधा है।

सूरजमुखी का पौधा अपने बड़े पीले पुष्पों के लिए उद्यानों में लगाया जाता है। इसकी बड़े पैमाने पर खेती इसके बीजों के लिए की जाती है। बीजों का सेवन स्नैक्स की तरह किया जाता है लेकिन इन्हें मुख्य रूप से तेल निकालने के लिए ही प्रयोग करते है। सूरजमुखी का तेल भोजन बनाने में कुकिंग आयल की तरह और सौंदर्य तेल, साबुन आदि में भी किया जाता है। सूरजमुखी का तेल हल्का होता है और इसमें लिनोलेइक एसिड, ओलिक एसिड, और पामिटिक एसिड पाए जाते हैं। इसमें उच्च मात्रा में विटामिन E, A और D भी होते हैं। यह खून में कोलेस्ट्रोल को बढ़ने से रोकता है।

sunflower medicinal uses

सूरजमुखी एक औषधीय वनस्पति भी है। इसके पत्ते, बीज, पुष्प सभी का औषधीय प्रयोग किया जाता है। यह स्वभाव से उष्ण और स्वाद में चरपरा माना गया है। यह ज्वरनाशक, कृमिनाशक, कफ विकार, चमड़ी के रोगों, पथरी, पेशाब के रोगों, कब्ज़, आदि में लाभप्रद है। इसके बीज पौष्टिक होते हैं और शरीर को ताकत देते है। बीजों में लोहा, कैल्शियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस और जिंक पाया जाता है। इनको स्नैक की तरह खाया जाता है। वज़न कम करने के लिए बीजों को डाइट में शामिल किया जाता है क्योंकि यह फाइबर और प्रोटीन युक्त है तथा शरीर में आवश्यक पोषक पदार्थों की कमी नहीं होने देते। बीजों से जो तेल निकालता है उसे भी दवाई की तरह प्रयोग किया जाता है। पुष्प और कलियों में जिंक, विटामिन E, बीटाकैरोटीन, बी विटामिन (B1, B2, B3, B6),मैगनिशियम, मैंगनीज और क्रोमियम पाया जाता है।

सूरजमुखी को आंतरिक प्रयोगों के साथ-साथ बाह्य रूप से लगाया जाता है।

सामान्य जानकारी

सूरजमुखी का पौधा मध्य – दक्षिणी अमेरिका का मूल निवासी है। पेरू में इसकी खेती करीब ३००० हज़ार साल पहले सेकी जाती रही है। प्राचीन पेरू में इसे सूर्य का प्रतीक माना गया। इसे मेरीगोल्ड ऑफ़ पेरू भी कहा जाता है।

सूरजमुखी एक वार्षिक पौधा है तथा इसकी उंचाई एक से तीन मीटर हो सकती है। इनका तना सीधा होता है। पत्ते खुरदरे और रोयेंदार होते हैं। भारत में सूरजमुखी की बुवाई फरवरी के दूसरे सप्ताह में की जाती है। इसकी खेती के लिए अच्छी तरह की निकासी वाली और उर्वरक भूमि चाहिए। खेती के समय प्रत्येक हेक्टेयर में 80kg नाइट्रोजन, 60kg फोस्फोरस और 40kg पोटाश डाला जाता है। इसे बढ़ने के लिए पूरे दिन धूप की ज़रूरत है। बीजों की बुवाई के बीस-पच्चीस दिन बाद पहली सिंचाई की जाती है। बाद में फूल और बीज होते समय प्रयाप्त मात्रा में सिंचाई ज़रूरी है।

भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक सूरजमुखी की खेती की जाती है।

  • वानस्पतिक नाम: हेलिएन्थस एनस
  • कुल (Family): कम्पोजिटी
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते, बीज, तेल
  • पौधे का प्रकार: झाड़ी
  • वितरण: पूरे भारत में इसे उगाया जाता है।
  • पर्यावास: गर्म प्रदेश
  • सूरजमुखी के स्थानीय नाम / Synonyms
  • वैज्ञानिक : Helianthus annuus
  • संस्कृत : Adityabhakta, Suryamukhi, Suvarchala
  • इंग्लिश : Sunflower, Common sunflower, Annual sunflower, wild sunflower
  • कन्नड़ : Sooryamukhi, Sooryakanthi
  • मलयालम : Sooryakanthi
  • तमिल : Suryakanti

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
  • आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asterales
  • परिवार Family: ऐस्टेरेसिएई Asteraceae ⁄ Compositae – Aster family
  • जीनस Genus: हेलिएन्थस Helianthus
  • प्रजाति Species: हेलिएन्थस एनस Helianthus annuus

सूरजमुखी के बीज के लाभ Benefits and Nutrition of Sunflower Seeds

सूरज मुखी के बीजों में बीस से तीस प्रतिशत प्रोटीन और करीब चालीस प्रतिशत फैट होता है। इसमें लोहा, बी विटामिन, ऐ विटामिन, कैल्शियम, कॉपर और फॉस्फोरस भी पाए जाते हैं। सूरजमुखी के बीजों के सेवन से शरीर में ताकत आती है और इम्युनिटी बढ़ती है। बीजों का सेवन अनीमिया को दूर करता है और शरीर के लिए ज़रूरी फैटी एसिड्स देता है।

सूरजमुखी के बीज की मज्जा, पोषण प्रति 100 ग्राम

ऊर्जा 2385 किलो जूल (570 किलो कैलोरी)

कार्बोहाइड्रेट 18.76 ग्राम

– शुगर्स 2.62 ग्राम

– आहार फाइबर 10.5 ग्राम

फैट 49.57 ग्राम

– संतृप्त 5.20 ग्राम

– मोनोअनसैचुरेटेड 9.46 ग्राम

– पॉलीअनसेचुरेटेड 32.74 ग्राम

  1. प्रोटीन 22.78 ग्राम
  2. थाईमिन (विटामिन बी 1) 2.29 मिलीग्राम (199%)
  3. राइबोफ्लेविन (विटामिन बी 2) 0.25 मिलीग्राम (21%)
  4. नियासिन (विटामिन बी 3) 4.5 मिलीग्राम (30%)
  5. पैंटोथिनिक एसिड (बी 5) 6.75 मिलीग्राम (135%)
  6. विटामिन बी 6 0.77 मिलीग्राम (59%)
  7. फोलेट (विटामिन B9) 227 माइक्रोग्राम (57%)
  8. विटामिन सी 1.4 मिलीग्राम (2%)
  9. विटामिन ई 34.50 मिलीग्राम (230%)
  10. कैल्शियम 116 मिलीग्राम (12%)
  11. आयरन 6.77 मिलीग्राम (52%)
  12. मैग्नीशियम 354 मिलीग्राम (100%)
  13. मैंगनीज 2.02 मिलीग्राम (96%)
  14. फास्फोरस 705 मिलीग्राम (101%)
  15. पोटेशियम 689 मिलीग्राम (15%)
  16. सोडियम 3 मिलीग्राम (0%)
  17. जिंक 5.06 मिलीग्राम (53%)

सूरजमुखी के तेल के लाभ Benefits of Sunflower Oil

  1. यह खाद्य तेल उच्च तापमान पर भी खराब नहीं होता।
  2. इसे सलाद पर भी डाला जा सकता है।
  3. सूरजमुखी खाद्य तेल में विटामिन ई की अच्छी मात्रा है।
  4. इसमें लेसिथिन, टोकोफेरोल, कैरोटेनोइड और वैक्स होता है।
  5. इसमें असंतृप्त वसा होती है। इस तेल का सेवन कोरोनरी धमनी रोग के खतरे को कम करता है।
  6. यह सीरम और यकृत कोलेस्ट्रॉल को कम करती है।
  7. इसके सेवन से आंतरिक रूक्षता नष्ट होती है और कब्ज़ दूर होती है।
  8. इसको मालिश के लिए इस्तेमाल किया जाने पर यह त्वचा के छिद्रों को बंद नहीं करता।
  9. त्वचा पर बाहरी रूप से लगाने पर यह त्वचा को पोषण देता है, नमी को खोने से रोकता है और इन्फेक्शन से बचाता है।
  10. यह तिल के तेल की अपेक्षा कम गर्म होता है और गर्मी में भी प्रयोग किया जा सकता है।

सूरजमुखी के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Sunflower in Hindi

सूरजमुखी के बहुत से औषधीय प्रयोग हैं। इसके बीजों में मूत्रल और कफ को नष्ट करने के गुण हैं। बीजों को दस ग्राम की मात्रा तक खाने से विष उतर जाता है। पुष्प कामोद्दीपक, पौष्टिक और सूजन को दूर करने के प्रयोग में लाये जाते हैं। पत्तों का लेप लीवर और फेफड़ों की सूजन में किया जाता है। गलगंड में इसके पत्ते और लहसुन को पीस कर बाह्य रूप से लगाते हैं। बवासीर में बीजों के चूर्ण को तीन से छः ग्राम की मात्रा में शक्कर मिलाकर लिया जाता है। पत्तों के रस और बीजों का लेप माथे पर माइग्रेन को दूर करने के लिए किया जाता है।

कान में कीड़ा

कान में यदि कोई कीड़ा घुस जाए, तो सूरज मुखी के तेल में लहसुन की कुछ कलियाँ डाल कर गर्म करें। जब यह तेल ठंडा हो जाए तो कान में इसकी कुछ बूँदें डालें।

कांच निकलने पर

तीन दिनों तक फूलों का रस गुदाद्वार पर लगाया जाता है।

कमज़ोरी

पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीने से कमजोरी दूर होती है। सूरजमुखी की पांच पत्तियां लेकर करब एक कप पानी में उबालें। जब आधा कप पानी बचे इसे छान लें और सेवन करें।

पाइल्स में बाहरी उपयोग

सूरजमुखी की पत्तियों का पेस्ट + सूरजमुखी का तेल, मिलाकर बाह्य रूप से लगाया जाता है।

पेट की गड़बड़ी, कब्ज़, अपच

दूध में सूरजमुखी की कुछ बूँदें डाल का सेवन करें।

दस्त लाने के लिए

तेल की कुछ बूँदें नाभि पर लागाई जाती हैं।

चमड़ी की देखभाल, दाग-धब्बे, एक्जिमा, सोराइसिस, मालिश

सूरजमुखी का तेल लेकर रोज हल्की मालिश करें।

उच्च रक्तचाप

सूरजमुखी का तेल हल्का होता है। यह बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करता है। इसका सेवन उच्च रक्तचाप को कम करता है। इसलिए सूरजमुखी के तेल को खाना बनाने के लिए प्रयोग करें।

मलेरिया का बुखार

आधा कप पत्तों को दो कप पानी में उबालें। इसे छान कर दिन में कई बार पियें।

पत्तों का रस शरीर पर बाह्य रूप से लगाया जाता है।

उलटी, जी मिचलाना

सूरजमुखी के तेल की दो बूँदें नाक में डालें।

बिच्छू के काटने पर

पत्तों को पीस कर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए और पत्तों की कुछ बूँदें नाक में टपकानी चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. बाज़ार में मिलने वाले रोस्टेड नमकीन सनफ्लावर सीड्स खाने से शरीर में ज़रूरत से ज्यादा नमक का सेवन हो सकता है।
  2. कुछ लोगों को सूरजमुखी परिवार Asteraceae ⁄ Compositae के पौधों से एलर्जी होती है, वे इसका प्रयोग सावधानी से करें।
  3. पुराने बीजों का सेवन पेट में जलन, गैस, लूज़ मोशन कर सकता है।
  4. बहुत अधिक मात्रा में सेवन हानिप्रद है। यह वज़न और बुरे कोलेस्ट्रोल LDL cholestrol को बढ़ा सकता है।
  5. अगर आप बहुत अधिक मात्रा में इन्हें खाते हैं, तो शरीर में आवश्यकता से अधिक सेलेनियम, फॉस्फोरस, आदि मिलते हैं जो लाभ की अपेक्षा नुकसान अधिक करता है।
  6. बीजों में फाइबर होता है, इसलिए अधिक मात्रा में सेवन गैस, पेट में दर्द कर सकता है।
  7. इसमें कुछ मात्रा में ऑक्सालेट भी पाये जाते हैं।
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