अग्निशिखा, अग्निमुखी, गर्भघातिनी, गर्भपतिनी, हरिप्रिया, लंगालाकी, लंगालिका आदि कलियारी के संस्कृत नाम हैं। इसे इंग्लिश में क्लाइम्बिंग लिली, ग्लोरी लिली, व मालाबार ग्लोरी लिली भी कहा जाता है।
यह एक लिली परिवार की लता जाति की औषधीय वनस्पति है। इसके पुष्प सुन्दर होते हैं और इसलिए इसे बाड़ की तरह भी लगाया जाता है। यह एक विषैला पौधा है और आयुर्वेद के उपविष वर्ग के सात पौधों (आक, सेहुंड, कनेर, रत्ती, अफीम, धतूरा, और कलिहारी) में से एक है। दवा की तरह इसकी जड़ तथा पत्तों का प्रयोग किया जाता है।
कलियारी या कलिहारी को आयुर्वेद में सांप के विष के लिए, भगंदर, जोड़ों के दर्द, रक्त विकार आदि में प्रयोग करते हैं। इसका बाहरी प्रयोग जल्दी प्रसव कराने के लिए भी किया जाता है।
क्योंकि यह विषैला है इसलिए इसकी जड़ को आंतरिक प्रयोग करने से पहले शुद्ध किया जाता है। इसकी कंद को सात दिनों तक छाछ में भिगोने से यह शुद्ध हो जाती है। शुद्ध की हुई जड़ को बहुत ही कम मात्रा में आंतरिक रूप से प्रयोग किया जाता है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: Gloriosa superba
- कुल (Family): लिली कुल
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज, पत्ते और कन्द
- पौधे का प्रकार: लता
- वितरण: पूरे भारत में
- पर्यावास: ट्रॉपिकल हिस्से
स्थानीय नाम / Synonyms
- Latin name: Gloriosa superba
- Ayurvedic: Langali, Langaliki, Langalaki, Langlahva, Indrapushpi, Agnishikha, Ananta, Vishalya,
- Visalya, Halini, Sirikrama, Shukrapushpika, Vahnimukhi, Garbhapatani, Kalihari, Kalikari,
- Shakrapushpi, Garbhaghatini
- Siddha: Kalappaik Kizhangu
- English: Glory Lily, Super Lily, Tiger’s Claws, Climbing Lily
- Bengali: Bisalanguli, Bishalanguli
- Gujarati: Khadiyanag, Dudhiya vachnag
- Hindi: Kalihari
- Kannada: Kolikutumana Gade, Nangulika
- Malayalam: Mathonni, Menthonni
- Marathi: Karianag
- Oriya: Dangogahana
- Punjabi: Kariyari, Kariari
- Tamil: Kalappoi Kizhangu, Akkinichilam
- Telugu: Potthidumpa, Adavinabhi
- Myanmar: Si mee dauk
- वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: लिलीडे Liliidae
- आर्डर Order: लिलियल्स Liliales
- परिवार Family: लिलिएसए Liliaceae
- जीनस Genus: ग्लोरिओसा Gloriosa
- प्रजाति Species: ग्लोरिओसा सुपर्बा – फ्लेम लिली Gloriosa superba L। – flame lily
लांगली की जड़/कन्द के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
लांगली की जड़, स्वाद में कटु, तिक्त और कषाय गुण में सार और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।
आयुर्वेद में इसे कुष्ठ, शोष, अर्श, घाव, दर्द, कृमि बस्ती में दर्द, गर्भ शल्य और वातव्याधि में प्रयोग किया जाता है।
- रस (taste on tongue):कटु, तिक्त, कषाय
- गुण (Pharmacological Action): सार, तीक्ष्ण
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
- कर्म: कफहर, वातहर और गर्भपतन
यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
कलियारी के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Gloriosa superba in Hindi
- आंतरिक प्रयोग करने के लिए कंद को सात दिनों तक छाछ में भिगोया जाता है।
- कंद के पेस्ट को त्वचा रोग, सांप के काटने और पागलपन के लिए सिर पर लगाया जाता है।
- जड़ का एक सूखा टुकड़ा 4 – 5 दिन के लिए नमकीन छाछ में भिगो, कोबरा के काटने के लिए आंतरिक रूप से लिया जाता है।
- शोधित जड़ के पेस्ट को संधिशोथ और जोड़ों के दर्द के लिए प्रयोग किया जाता है। कलियारी की जड़, अफीम, अश्वगंधा, तमाखू, सोंठ और जायफल सभी की बराबर मात्रा लेकर पेस्ट बनाकर, चार गुना तिल का तेल और तेल से चार गुना पानी मिलाकर में पकाएं। जब तेल ही बचे तो उसे छान लें। इस तेल को जोड़ों की मालिश के लिए प्रयोग करें। यह जोड़ों के दर्द को दूर करेगा।
- रूमेटिक दर्द में पत्ते के पेस्ट को भी बाहरी रूप से लगाएं।
- जड़ के पेस्ट को फोड़ों पर बाह्य रूप से लगाया जाता है।
- यह अत्यधिक अबोरटिव abortive है। रूट पेस्ट को लेबर पेन शुरू करने के लिए गर्भवती स्त्री के नाभि क्षेत्र पर लगाया जाता है।
- कंद जिसे बिना किसी भी लोहे के उपकरण का उपयोग कर के एकत्र किया जाता है उसे प्रसव के दौरान दीमक के आश्रय की मिट्टी के साथ मिलाकर सिर के केंद्र पर लगाया जाता है जिससे बिना अधिक कष्ट के डीलिवेरी हो सके।
- कंद का पेस्ट, धतूरा के पत्तों के रस के साथ मिलाकर फिस्टुला के लिए लगाया जाता है।
- कंद और मदार की जड़ को बकरी के मूत्र में पीस कर यौन रोगों पर बाह्य रूप से प्रयोग किया जाता है।
- कलियारी के पत्तों को कूट कर रस निकाल कर, एक चम्मच की मात्रा में एक सप्ताह तक देने से खून और वायु के विकारों में लाभ होता है।
- इसके कन्द के पेस्ट में शहद और काला नामक मिलाकर, योनि पर लगाने से रुका हुआ मासिक धर्म, स्राव में कठिनाई, अनियमितता आदि दूर होते हैं।
- सिर में जुएँ होने पर इसके पत्तों का रस बालों में लगाते हैं।
शोधित किए हुए कन्द की आंतरिक रूप से लेने की औषधीय मात्रा 125-250 मिली ग्राम है। इससे अधिक मात्रा का सेवन हानिकारक है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह विष है।
- इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।