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नारियल पानी Coconut Water in Hindi

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नारियल के पेड़ के कच्चे हरे फलों में जो पानी मिलता है उसे नारियल पानी या नारियल जूस Coconut water or coconut juice कहते है। यह पानी ही धीरे-धीरे सफ़ेद गिरी में बदल जाता है। गिरी के बनने से पहले कच्चे फल तोड़ देने पर यह तरल पदार्थ पीने के काम आता है। कच्चे नारियल आजकर पूरे देश में मिलते हैं। इनका पानी सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है। इन्हें काटने के बाद तुरंत ही पी लेना चाहिए।

coconut water

नारियल पानी तासीर में ठंडा cold in potency होता है। यह शरीर में वात और पित्त को कम करता है और कफ increases phlegm को बढ़ाता है। नारियल पानी का सेवन शरीर में एसिड की मात्रा को कम करता है। अपने एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण यह शरीर को कैंसर जैसे रोगों से बचाता है। इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ऐसे तो नारियल पानी 95.5 % पानी है लेकिन इसमें विटामिन्स, मिनरल्स, फायटो होर्मोनेस तथा अन्य उपयोगी घटकों की अच्छी मात्रा पायी जाती है। इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है।

तो आगे पढ़ें, इसके औषधीय गुणों, लाभदायक प्रभाव, कितना पियें और साइड-इफेक्ट्स के बारे में।

स्थानीय नाम

  1. Latin name: कोकस न्यूसीफेरा Cocos nucifera Linn।
  2. English: कोकोनट पाम Coconut Palm
  3. Ayurvedic: नारिकेला,नालिकेरा, लांगली, तुंगा Naarikela, Naalikera, Laangali, Tunga, Skandhaphala, Sadaaphala, Trnaraaja, Kuurchshirshaka, Trinaraja
  4. Unani: नारियल Naarjeel, Naariyal
  5. Siddha/Tamil: Thenkai Kopparai (kernel of ripe coconut)
  6. Kerala: Thengu, Nalikera
  7. Assamese: Khopra
  8. Bengali: Narikel, Narikel
  9. Gujrati: Naliar, Nariyel, Shriphal, Koprun
  10. Hindi: नारियल या गोला Nariyal, Gola
  11. Kannada: Khobbari, Tengnamara, Temgu, Thengu, Thenginamara
  12. Malayalam: Nalikeram, Ten, Thengu, Keram
  13. Marathi: Naral
  14. Oriya: Nariyal
  15. Punjabi: Narela, Khopra, Garigola
  16. Tamil: Tenkai, Kopparai
  17. Telugu: Narikelamu, Tenkay, Kobbari
  18. Urdu: Narjil, Narial

नारियल पानी में पाए जाने वाले पोषक पदार्थ

नारियल पानी में 95.5 पानी, चीनी, इलेक्ट्रोलाइट्स, खनिज, पौधे के होर्मोनेस, और एमिनो एसिड्स पाए जाते है। इसमें अन्य खुशबूदार तत्व भी पाए जाते हैं जो की इसे विशिष्ट स्वाद देते हैं। इसमें ट्रेस एलेमेंट्स जिंक, सेलेनियम, आयोडीन, सल्फर, मैंगनीज, बोरोन, मोलेबिडियम आदि भी होते हैं।

  1. प्रति 100 gram, में लगभग निम्न होते हैं:
  2. पानी Water 95.5 %
  3. पोटैशियम Potassium 312 mg
  4. क्लोरीन Chlorine 183 mg
  5. सोडियम Sodium 105.0 mg
  6. फॉस्फोरस Phosphorus 37 mg
  7. मैग्नीशियम Magnesium 30 mg
  8. कैल्शियम Calcium 29 mg
  9. सल्फर Sulphur 24 mg
  10. कार्बोहायड्रेट Carbohydrates 4.0 mg
  11. लोहा Iron 0.5 mg
  12. खनिज Mineral matter 0.4 mg
  13. वसा Fat 0.1 mg
  14. प्रोटीन Protein 0.1 mg
  15. कॉपर Copper 0.04
  16. कैल्शियम Calcium 0.02 mg
  17. फॉस्फोरस Phosphorus 0.01 mg

नारियल पानी के औषधीय गुण Medicinal Properties of Coconut Water

  1. कृमिनाशक anthelmintic ऐन्थेल्मिन्टिक
  2. विषहर antidote ऐन्टिडोट
  3. रोगाणुरोधी antimicrobial
  4. जीवाणुरोधी antibacterial
  5. मूत्रल diuretic
  6. विरेचक Laxative
  7. एंटीऑक्सीडेंट Antioxidant
  8. ज्वरनाशक Antipyretic/antifebrile
  9. शीत Cooling
  10. वाजीकारक Aphrodisiac

नारियल पानी पीने के लाभ

नारियल पानी पीने के ढेरों लाभ है। यह बुखार, पेचिश, हैजा, पेशाब के रोगों, हृदय के रोगों, गर्भावस्था आदि सभी में फायदेमंद है। किसी भी तरह के बुखार में इसका सेवन शरीर को ताकत देता है और पानी की कमी दूर करता है। ओआरएस ORS घोल की जगह इसका प्रयोग किया जा सकता है। गर्मी के मौसम में होने वाली आम बिमारियों जैसे की अधिक प्यास लगना, नकसीर फूटना, खून बहने के विकार, पेचिश, हाथ-पैर की जलन, नसें खिंचना आदि में इसका सेवन इन दिक्कतों को दूर करता है। नारियल पानी को मुहांसों पर भी लगा सकते है।

  1. यह एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल है।
  2. यह एंटीऑक्सीडेंट है और शरीर की फ्री सेल डैमेज से रक्षा करता है।
  3. इसका इलेक्ट्रोलाइट प्रोफाइल मनुष्य के प्लाज्मा human plasma की तरह है।
  4. यह शरीर में पानी की कमी को दूर करता है। उलटी, दस्त, अतिसार, लूज़ मोशन में इसका सेवन करना बहुत हितकर है।
  5. यह मूत्रल diuretic गुणों के कारण पथरी, पेशाब कम आना, पेशाब में प्रोटीन जाना, पेशाब का इन्फेक्शन आदि में लाभ करता है।
  6. पेशाब रोगों urinary diseases में यह एंटीसेप्टिक का काम करता है।
  7. यह शरीर को साफ़ करता है। इसके सेवन से एसिड की मात्रा शरीर में कम होती है और रक्त क्षारीय होता है।
  8. यह शरीर में इलेक्ट्रोलाइट की कमी को दूर करता है और बार-बार प्यास लगने को रोकता है।
  9. नारियल का पानी कॉलरा cholera रोग में फायदेमंद है क्योंकि इसमें पोटैशियम, सोडियम तथा एनी इलेक्ट्रोलाइट मौजूद है।
  10. इसमें पोटैशियम और क्लोरीन की अच्छी मात्रा होती है जिस कारण से यह हृदय, यकृत और गुर्दे के रोगों में विशेष रूप से लाभकारी है।
  11. पित्त की अधिकता से बुखार, डेंगू, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, शरीर में अधिक गर्मी, हरारत, आदि में इसका सेवन न केवल शरीर को ज़रूरी पानी और पोषक पदार्थ देता है अपितु शीत गुणों के कारण यह शरीर का तापक्रम भी कम करता है।
  12. इसमें वसा fat free नहीं होता।
  13. यह विरेचक diuretic गुणों के कारण कब्ज़ में राहत देता है।
  14. यह वीर्य sperms को बढ़ाता है। इसके सेवन से पुरषों-स्त्रियों में कामेच्छा libido बढ़ती है। यह फर्टिलिटी को बढ़ाता है।
  15. गर्भावस्था में इसका सेवन बहुत लाभ करता है। यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करता है। पैरों में बार-बार होने वाले क्रैम्प को रोकता है। इसके सेवन से शरीर में पानी की कमी नहीं होती। इसमें फोलेट और विटामिन बी है जो गर्भवस्था में विशेष रूप से ज़रूरी हैं। इसके सेवन से स्वस्थ्य सुन्दर संतान होती है।
  16. यह पेट के कीड़े नष्ट करता है।
  17. यह शरीर को ठंडा cooling रखता है।
  18. नकसीर epistaxis/nosebleed की समस्या, ब्लीडिंग डिसऑर्डर abnormal bleeding due to excessive pitta में, यह लाभप्रद है।
  19. यह शरीर को ताकत देता है।

एक दिन में कितना नारियल पानी पिए?

  1. आप एक नारियल का पानी, दिन में एक या दो बार पी सकते है।
  2. अधिक मात्रा में इसका सेवन शरीर पर दुष्प्रभाव डालता है।

साइड-इफेक्ट्स

  • नारियल पानी का सेवन स्वास्थ्य के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है।
  • इसका शरीर पर किसी भी तरह का टॉक्सिक प्रभाव नहीं होता।
  • लेकिन इसका अधिक मात्रा में सेवन शरीर पर कई प्रकार के बुरे असर कर सकता है।

नीचे नारियल पानी के अधिक सेवन के कारण शरीर पर होने वाले दुष्प्रभाव दिए गए है:

  1. मूत्रल गुण होने से, इसका ज्यादा सेवन ज्यादा पेशाब लायेगा।
  2. ज्यादा पेशाब होने से किडनी को ज्यादा काम करना पड़ेगा।
  3. विरेचक होने से, लूज़ मोशन हो सकते हैं।
  4. इसमें अच्छी मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट्स होने से, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन हो सकता है।
  5. तासीर में ठंडा होने से यह कफ अधिक बनाएगा।
  6. यह खून में शुगर की मात्रा बढ़ा सकता है।
  7. अधिक मात्रा में सेवन शरीर में पोटैशियम की मात्रा बढ़ा सकता है जिससे हृदय की धड़कन बढ़ सकती है, सुन्नता आती है, जी मिचलाना और उलटी आदि हो सकती है।
  8. ज्यादा मात्रा में सेवन वज़न भी बढ़ा सकता है।

पतंजलि हर्बल पॉवरवीटा Patanjali Herbal Power Vita Detail and Uses in Hindi

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हर्बल पॉवरवीटा पतंजलि द्वारा निर्मित एक हर्बल हेल्थ ड्रिंक या सप्लीमेंट है जो की आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें आयुर्वेद के जाने-माने रसायन जैसे की अश्वगंधा, शतावर, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, हैं। इसमें चना, गवार गम, और सोया है। इसके अतिरिक्त पॉवर वीटा में मोती पिष्टी और प्रवाल पिष्टी भी है। स्वाद के लिए इसमें दूध, कोको पाउडर, फ्लेवर और चोकलेट पाउडर डाला गया है।

इसकी एक सर्विंग करीब 20 ग्राम, की है जिसे दूध में मिलाकर लेना है। 20 gram की एक सर्विंग लेने से करीब, एनर्जी 17.37 kcal, प्रोटीन 1.3 g, कार्बोहायड्रेट 17.41 g, वसा 0.38 g, बायोटिन 5.44 mcg, विटामिन A 488 mcg, विटामिन D 1.73 mcg, फॉस्फोरस 60.75 mg, पोटैशियम 33.69 mg, कैल्शियम 22.21 mg और आयरन 9.57 mg मिलता है.

Patanjali Power vita is an herbal health drink. It is taken by adding in milk. It is suitable for both children and adults. As it contains sugar, it is not suitable for diabetic person. Daily intake of Power Vita can increase weight.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • निर्माता: पतंजलि
  • मूल्य Price / MRP: ₹ 205/500 grams

पतंजलि हर्बल पॉवरवीटा के घटक Ingredients of Patanjali Herbal Power Vita

Each 100 gram powder contains extracts of:

  1. अश्वगंधा Ashwagandha (Withania somnifera) Root 0.15 grams
  2. शतावर Shatavari Root (Asparagus racemosus) 0.25 grams
  3. शंखपुष्पी Shankhpushpi Whole plant Powder 2.0 grams
  4. ब्राह्मी Brahmi Powder Whole plant 0.15 grams
  5. सोया Soya Powder Seed 0.128
  6. चना Gram Powder Seed 0.15 grams
  7. कोको Coco Powder Seed 6.4
  8. गवार Guar Gum Powder Exudate 0.133
  9. चीनी Sugar Powder 38.15 gram
  10. दूध Milk Powder 6.92 grams
  11. समुद्री नमक Samudri Lavan Mineral Powder 0.0427 grams
  12. सज्जीकर Sajjkhar Mineral Powder 0.1 grams
  13. मोती पिष्टी Moti Pisti Classical Ayurvedic Formulation Powder 0.152 grams
  14. प्रवाल पिष्टी Praval Pishti Classical Ayurvedic Formulation Powder 0.152 grams
  15. माल्ट Liquid malt 42.7 grams
  16. GMS Glycerol monostearate Powder 0.38 grams
  17. MDP Maltodextrin Powder 0.982 grams
  18. EV Ethyl vanilin Powder 0.0023 grams
  19. चोकलेट Chocolate Powder 0.0087 grams
  20. चोकलेट Chocolate B Powder 0.0087 grams

पतंजलि हर्बल पॉवरवीटा के लाभ/फ़ायदे Benefits of Patanjali Herbal Power Vita

  1. यह हर्बल है।
  2. इसमें अश्वगंधा, शतावर, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि है।
  3. यह शरीर को ताकत देता है।
  4. इसके सेवन से वज़न बढ़ता है।
  5. इसमें बहुत से विटामिन्स और खनिज हैं।
  6. इसमें कैल्शियम, विटामिन D और फॉस्फोरस हैं जो की हड्डियों को ताकत देते हैं।
  7. इसमें विटामिन C और आयरन है जो की खून की कमी को दूर करते है।
  8. इसमें बी विटामिन्स भी है जो शरीर में एंजाइम्स के कोफैक्टर की तरह काम करते हैं।
  9. इसमें सेलेनियम, जिंक, कॉपर आदि भी हैं।
  10. पतंजलि हर्बल पॉवरवीटा के चिकित्सीय उपयोग Uses of Patanjali Herbal Power Vita
  11. यह एक हेल्थ ड्रिंक है जो की बढ़ते बच्चों को आवश्यक पोषक पदार्थ देता है।

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Patanjali Herbal Power Vita

  • इसे एक दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • करीब 20 gram पॉवर वीटा को ठन्डे या गर्म दूध में मिला कर लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

कठोर पानी Hard Water Information in Hindi

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जल या पानी, सभी प्रकार के जीवन के लिए आवश्यक है। पानी को दो प्रकार में बांटा जा सकता है, मृदु जल / सॉफ्ट वाटर (साबुन के साथ रगड़े जाने पर आसानी से अधिक झाग उत्पन्न करता है,) जैसे की वर्षा का जल और कठोर जल / हार्ड वाटर (साबुन के साथ रगड़े जाने पर झाग नहीं बनाता) जैसे की जमीन के अन्दर का जल।

यदि पानी में घुले मग्निसियम और कैल्शियम की मात्रा 0-61 mg प्रति लीटर है तो यह मृदु या सॉफ्ट वाटर है। लेकिन 60mg/l, से ऊपर होते ही पानी की कठोरता बढ़ती जाती है। 61-120 mg/l पर यह मध्य कठोर, 121-180 mg/l पर कठोर और >180 mg/l, पर यह बहुत कठोर जल कहलाता है।

कठोर जल, बर्तन, कूलर, पाइप्स, बाथरूम फिटिंग, शावर, आदि पर जम जाता है। पाइप्स पर जम जाने के कारण वे कुछ समय में जाम होने लगती है। जब उनमें बहुत सा मिनरल डिपोजिट हो जाता है तो उन्हें बदलने की ज़रूरत भी पड़ती है। यदि पानी हार्ड है तो साबुन की खपत भी बढ़ जाती है। नहाना, बाल धोना भी इससे मुश्किल होता है।

जल की कठोरता

पानी जिसमें क्लोराइड, सल्फाइड के लवण, कैल्शियम और मग्निशियम के कार्बोनेट और बाईकार्बोनेट, मौजूद होते हैं उसे कठोर जल या हार्ड वाटर कहते हैं। कार्बोनेट और बाईकार्बोनेट होने के कारण ही ऐसा जल साबुन के साथ झाग नहीं बनाता क्योंकि ये यौगिक साबुन के साथ नहीं घुलते। जल की कठोरता दो प्रकार की होती है, स्थायी और अस्थाई।

अस्थाई कठोरता: यह पानी में कैल्शियम और मग्निशियम के कार्बोनेट और बाईकार्बोनेट के घुले होने के कारण से होती है। इसे सरलता से उबाल कर या चूने का पानी मिलकर दूर किया जा सकता है।

स्थाई कठोरता: यह पानी में कैल्शियम और मग्निशियम के क्लोराइड, सल्फाइड के लवण के घुले होने के कारण से होती है। यह उबाल कर दूर नहीं की जा सकती।

कठोर पानी को खाना बनाने में प्रयोग नहीं करना चाहिए। बालों को इस पानी से धोने पर एक तो झाग नहीं बनता, दूसरा बाल कमजोर हो कर टूटने, झड़ने लगते है। उनकी चमक चली जाती है।

कठोर जल में यदि कपड़े धोते हैं तो, वे भी चमक खो देते हैं।

कठोर पानी का प्रभाव

जैसा की बताया जा चुका है, कठोर जल वह जल है जिसमें कैल्शियम और मग्निसियम आयन्स की अधिकता होती है। लेकिन इस तरह के जल में अन्य कई प्रकार के पदार्थ भी घुले हो सकते हैं। इसमें एल्युमीनियम, बेरियम, आयरन, जिंक, मैंगनीज आदि भी हो सकते हैं। भूमि की सतह पर पाए जाने वाले पानी में कम कठोरता होती है। जैसे जैसे पानी सतह से नीचे जाता है, इसमें कैल्शियम और मग्निसियम आदि घुल जाते हैं। इसलिए ग्राउंड वाटर अक्सर हार्ड वाटर होता है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव: हार्ड वाटर का स्वास्थ्य पर कोई विशेष बुरा प्रभाव नहीं होता। लेकिन अधिक साल्ट वाला पानी पीने से डायरिया, अपच आदि पाचन सम्बन्धी समस्याएं होती है।

बालों पर असर: कठोर जल से बाल धोने पर वह रूखे, बेजान हो जाते हैं। उनकी सही से सफाई न हो पाने से उनका झड़ना शुरू हो जाता है। बाल अनमनेजेबल हो जाते हैं।

कपड़ों पर असर: कठोर जल से कपड़े धोने पर, वे चमक खो देते हैं और कुछ समय में भद्दे हो जाते हैं।

कठोर जल का पेड़-पौधों पर प्रभाव

कठोर जल, पौधों के लिए भी अनपयुक्त है। यह पौधों को मार सकता है। पत्तों पर यदि यह पानी पड़ जाता है तो उनके छिद्र बंद हो जाते है। पत्ते आधे हरे-आधे सूखे से लगते है और धीरे-धीरे झड़ जाते हैं। पत्तों के नष्ट ही पूरा पौधा सूख जाता है। यदि पौधा जीवित भी रहता है तो उसकी ग्रोथ रुक जाती है। मिट्टी में पानी होते हुए भी यह पानी पौधों के लिए उपलब्ध नहीं होता क्योंकि यह कंपाउंड्स से जुड़ा होता है।

कठोर पानी के पेड़-पौधों पर दो प्रभाव होते हैं।

१. पानी में बहुत से साल्ट होने से, इस प्रकार का पानी पौधों द्वारा अवशोषण के लिए उपलब्ध नहीं रहता। पानी की कमी पौधों की वृद्धि को रोक देती है। पत्तों का रंग नीला-हरा सा हो जाता है।

२. यह पौधों पर सीधा टॉक्सिक प्रभाव डालता है। लवणों की अधिकता लीफ-बर्न के रूप में दिखाई देती है। मिट्टी में सोडियम और क्लोराइड की अधिकता पौधे या पेड़ को नष्ट कर देती है। मिट्टी में यदि घुलनशील साल्ट ज्यादा है तो इसमें अंकुरण ठीक से नहीं होता। अंकुरण होने पर सीडलिंग बढ़ता नहीं और नष्ट हो जाता है। ऐसी मिट्टी की पहचान है, उसका ग्रे सा रंग और भुरभुरा होना। मिट्टी के कण आपस में चिपकते नहीं हैं। लम्बे समय तक हार्ड वाटर का जमीन में प्रयोग उसे अनउपजाऊ कर देता है। ऐसा इसलिये होता है की पानी वाला भाग तो उड़ जाता है लेकिन साल्ट्स जमीन में ही रह जाते हैं।

पौधों के अच्छी वृद्धि के लिए मृदु या सॉफ्ट पानी ही उपयुक्त है।

कठोर जल में से अवांछनीय पदार्थों को निकालना ‘वाटर सोफ्टेनिंग’ कहलाता है। इसके लिए रिवर्स ओसमोसिस RO, आयन-एक्सचेंज रेसिन डिवाइस, डिस्टिलेशन, आदि प्रयोग किये जाते हैं।

पेट सफा Pet Saffa Natural Granules Detail and Uses in Hindi

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पेट सफा, दिविसा द्वारा निर्मित हर्बल आयुर्वेदिक गेंयूल्स है। इसका सेवन कब्ज़ से राहत पाने के लिए किया जाता है। यह एक ओटीसी दवा है।

पेट सफा में आयुर्वेद के जाने-माने विरेचक है जैसे की सनाय के पत्ते, त्रिफला, हरीतकी, अमलतास, एरंड का तेल आदि। सनाय दस्तावर, रेचक, कसैला, कड़वा, तीखा, गर्मी पैदा करने, जिगर टॉनिक और पित्त स्राव को बढ़ाने वाला है। अजवाइन गर्म, कड़वा, वातहर, भूख बढ़ाने वाला, और रेचक है।

अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है। शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

सज्जी क्षार, उल्टी, दस्त और पेट फूलना साथ, अपच में उपयोगी है। इसी तरह हर्रे, निशोथ आदि भी दस्तावर और रेचक है। काला नमक पेट में दर्द, पेट में ट्यूमर, पेट के कीड़े और कब्ज में फायदेमंद है।

Pet Saffa is an herbal proprietary medicine from Divisa. It is Laxative Powder containing Senna, ajwain, Ispaghula, Triphala, Svarjiksara, Haritaki, Amaltash, Saunf, Sonth, Nishoth, jeera and castor oil.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • निर्माता: दिविसा
  • मूल्य Price / MRP: ₹ 72 for 120 grams

पेट सफा के घटक Ingredients of Pet Saffa Natural Granules

Each 100 grams contains herbs:

  1. सनाय की पत्ती Senna leaves 35 grams
  2. काला नमक Kala namak 12 grams
  3. अजवाइन Ajwain 10 grams
  4. इसबगोल की भूसी Ispaghula 9 grams
  5. त्रिफला Triphala 9 grams
  6. सेंधा नमक sendha namak 5 grams
  7. सज्जीक्षार Svarjiksara 3 grams
  8. हरीतकी Haritaki 3 grams
  9. अमलतास Amaltash 3 grams
  10. सौंफ Saunf 3 grams
  11. सोंठ Sonth 3 grams
  12. निशोथ Nishoth 2.5 grams
  13. जीरा Jeera 2 grams
  14. अरंड का तेल Castor oil 2 grams
  15. Preservatives

सनाय को आयुर्वेद में मदनी और स्वर्णपत्री कहा जाता है। इसका लैटिन नाम केसिया अनगस्टीफोलिया Cassia angustifolia है। यह मटर कुल का पौधा है। यह एक छोटा क्षुप है जो की भारत में दक्षिण राज्यों में उगाया जाता है। इसके पत्तों में बहुत से फायटोकेमिकल (Anthraquinone, glucoside, flavonoids, steroids and resin) पाए जाते हैं।

सनाय के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

स्वाद में यह कटु, तिक्त और कषाय है। गुण में यह लघु, रूक्ष और तीक्ष्ण है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह कटु रस औषधि है। कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।

रस (taste on tongue): कटु, तिक्त, कषाय

गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण

वीर्य (Potency): उष्ण

विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

विरेचन

पेट सफा के लाभ/फ़ायदे Benefits of Pet Saffa Natural Granules

  1. यह आयुर्वेदिक है।
  2. यह पेट को साफ़ करता है।
  3. सनाय के पत्ते मुख्य रूप से एक्यूट कब्ज़ को दूर करने में लाभप्रद है।
  4. इसमें इसपगोल है जिसमें फाइबर होता है तथा स्टूल को बल्क देता है।
  5. इसमें त्रिफला है जो की गैस, अपच, आदि को दूर करता है।
  6. अजवाइन, सेंधा नमक, सोंठ, काला नमक, जीरा आदि सभी गैस को दूर करते है और पाचक रसों के स्र्रव को बढाते हैं।
  7. यह कब्ज़, पेट फूलना, गैस, कब्ज़ के कारण पेट में दर्द, आराम न मिलना आदि परेशानियों को दूर करता है।
  8. पेट सफा के चिकित्सीय उपयोग Uses of Pet Saffa Natural Granules
  9. जैसा नाम से पता चलता है, यह विशेष रूप से पेट को साफ़ करने की या कब्ज़ को दूर करने की दवा है।
  10. पुराना कब्ज constipation
  11. पेट की गैस Gas, bloating, flatulence
  12. सिरदर्द headache

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Pet Saffa Natural Granules

1-2 चम्मच चूर्ण (5-10 ग्राम) एक गिलास गुनगुने पानी के साथ रात को सोते समय यदि ज़रूरत है तो लें।

पेट साफ़ करने की दवाएं रात को सोने से पहले ली जाती है।

या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

इस दवा को ऑनलाइन या स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

सावधानियाँ

  1. ज्यादा मात्रा में दवा का सेवन पेट दर्द, दस्त और शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
  2. यह तासीर में गर्म है। गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान इसका प्रयोग न करें।
  3. 12 साल से कम उम्र के बच्चों को न दें।
  4. सनाय के पत्ते एक हैबिट फोर्मिंग लेक्सेटिव habit forming laxative: promote dependency on it for motion) है।
  5. इसमें नमक (काला नमक और सेंधा नमक) की अच्छी मात्रा है। इसलिए उच्च रक्तचाप तथा वे रोग जिनमें सोडियम का कम प्रयोग करने को कहा गया है, में इसका प्रयोग न करें।
  6. आयुर्वेद में नमक को चमड़ी के रोगों और ब्लीडिंग डिसऑर्डर में लेने की मनाही है। नमक पित्त और कफ दोष को बढ़ाता है लेकिन वात को कम करता है। कम मात्रा में नमक विरेचक है और अधिक मात्रा में उल्टी लाने वाला।
  7. इसमें सज्जीक्षार है। लंबी अवधि के लिए इसका नियमित उपयोग शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता कम कर सकता है।
  8. पेट में दर्द, में इसका प्रयोग न करें।
  9. दस्त में उपयोग न करें।
  10. चिकित्सक की सलाह के बिना लम्बे समय के प्रयोग से बचें।

    गर्भावस्था में बच्चे का लिंग Gender of Child in Pregnancy in Hindi

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    मनुष्यों में गर्भावस्था, या प्रेगनेंसी pregnancy वह स्थति है जिसमें पुरुष के शुक्र semen के लाखों शुक्र कीटों / शुक्राणु sperm में से एक स्त्री के डिम्ब या ओवा ova, egg से संयोग कर नए जीवन को शुरू करता है। स्त्री और पुरुष में प्रजनन अंग reproductive organs अलग होते है और जब ये दोनों एक होते है तभी एक नए जीवन की उत्त्पति होती है।

    पुरुष-स्त्री के प्रजनन अंग

    पुरुषों में अंडग्रंथि या टेस्टीज़ testes होती है। यह शुक्र ग्रंथि भी कहलाती है। इनकी संख्या दो होती है और अंडकोष / सैक्रोटम scrotum के दोनों तरह लटकी होती है। यह ग्रंथियां वीर्य seman बनाती हैं जो की शुक्राशय / सेमिनल वेसिकल्स seminal vesicles में इकठ्ठा होता रहता है।

    पुरुष के वीर्य को शुक्र या सीमन कहते है। यह सेक्स के दौरान शिश्न या पेनिस penis से बाहर निकालता है। यह गाढ़ा, सफ़ेद और बिना किसी गंध का तरल पदार्थ होता है। इसमें लाखों की संख्या में शुक्रकीट या शुक्राणु sperms पाए जाते है। शुक्राणुओं को इंग्लिश में स्पर्म या स्पर्मेटोज़ोआ कहते हैं। ये अत्यंत सूक्ष्म होते है। स्पर्म का छोटा अंडाकार सिर होता है और लम्बी धागे जैसी पूँछ होती है। स्पर्म जीवित होते है और लगातार गतिशील होते हैं। जीवन की उत्पति के लिए स्पर्म्स का लाखों की संख्या में होना, गतिशील होना और अच्छे स्वास्थ्य का होना अत्यंत ज़रूरी है।

    स्त्री में में दो डिम्ब ग्रंथि ovary होती हैं, गर्भाशय के दायीं और बायीं ओर। एक महीने में एक तरफ से एक डिम्ब या ओवा बाहर निकलता है। इस प्रक्रिया को ओवूलेशन Ovulation कहते है। यह अंडाणु फैलोपियन ट्यूब fallopian tube में कुछ घंटों तक निषेचन के लिए रहता है।

    गर्भ कैसे ठहरता है? How pregnancy occur in Hindi?

    गर्भ या बच्चा ठहरने के लिए मैथुन क्रिया sex, sexual intercourse, copulation अनिवार्य है। इसके बिना नया जीवन नहीं शुरू हो सकता। चुम्बन, kissing आलिंगन hugging, बाहरी स्पर्श external touch आदि से गर्भ नहीं होता।

    गर्भ तभी होता है जब स्त्री-पुरुष के अंडाणु और शुक्राणु आपस में मिलते हैं। मैथुन के समय पुरुष का सीमन जब स्त्री की योनि में जाता है तो उसमें से बहुत सा निकल जाता है लेकिन कुछ मात्रा में यह योनी में रह जाता है। सीमन में जो शुक्र कीट होते है वे बहुत तेज़ी से आगे आंतरिक प्रजनन अंगों में बढ़ते जाते है जहाँ पर ओवा मौजूद होता है। यह शुक्र कीट कुछ दिनों तक भी अंदर जीवित रह सकते हैं।

    जो स्पर्म सबसे मज़बूत होता है वो अंडाणु को निषेचित fertilize कर देता है। निषेचित अंडाणु में कोशिकायों का विभाजन cell division शुरू होता है और अब यह एम्ब्रियो या भ्रूण Embryo कहलाता है। भ्रूण ट्यूब से निकल कर गर्भाशय में अपने आप को स्थापित करता है जिसे इम्प्लांटेशन Implantation कहते है। कुछ महिलाओं में अब योनि से हल्का खून भी जा सकता है जिसे इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग Implantation bleeding कहते हैं।

    अब गर्भावस्था की शुरू हो जाती है जिसका पता गर्भवस्था के टेस्ट, मासिक के न आने से लग जाता है।

    बच्चे का लिंग Gender of Child

    गुणसूत्र या क्रोमोज़ोम (Chromosome) मानव शरीर की हर कोशिका में होते हैं। गुणसूत्र पर विशेष संरचना होती है जो की जींस कहलाती है। यही माता-पिता से बच्चे को ट्रान्सफर होती है और उसके गुणों, शक्ल, लम्बाई समेत अनेकों गुणों को निर्धारित करती है।

    प्रत्येक कोशिका में क्रोमोज़ोम की संख्या 46 (23 का जोड़ा) होती है लेकिन जो जनन कोशिका होती है, यानि की पुरुष के शुक्राणु और स्त्री के अंडाणु उनमें इनकी संख्या 23 की होती है। जब दोनों मिलते हैं तो यह संख्या फिर से 46 हो जाती है।

    गुणसूत्र या क्रोमोज़ोम के 22 जोड़े स्त्री और पुरुष दोनों में समान होते है। लेकिन 23 वां जोड़ा दोनों में अलग होता है। यह यौन गुणसूत्र Sex Chromosome कहलाता है। स्त्री में दोनों यौन गुणसूत्र समान होते हैं, XX. पुरुष में ये दोनों भिन्न होते हैं, XY. X क्रोमोज़ोम लम्बा होता है, जबकि Y क्रोमोज़ोम छोटा होता है। पुरुष के स्पर्म पर या तो X क्रोमोज़ोम हो सकता है या Y क्रोमोज़ोम।

    इसप्र कार, माता के अंडाणु पर केवल X क्रोमोज़ोम होते हैं और पिता के स्पर्म पर या तो X क्रोमोज़ोम होगा या Y क्रोमोज़ोम।

    तो जब निषेचन होगा, दो संभावनाएं हो सकती है।

    माता से X क्रोमोज़ोम और पिता का X क्रोमोज़ोम = XX, इस स्थिति में लड़की होगी।

    माता से X क्रोमोज़ोम और पिता का Y क्रोमोज़ोम = XY, इस स्थिति में लड़का होगा।

    इस प्रकार यह समझा जा सकता है, गर्भाधान के समय conception जब स्त्री के डिंब (अंडे) पुरुष के शुक्राणु से निषेचित हैं और उसी समय बच्चे का लिंग sex of child boy or girl और गुण निश्चित हो जाते हैं। महिलाओं में केवल XX तथा पुरुष स्पर्म में XY क्रोमोजोम होते हैं। यदि X क्रोमोजोम वाले स्पर्म से अंडाणु निषेचित होता है और लड़की Girl होती है और यदि यही Y क्रोमोजोम से हो तो लड़का Boy होता है।

    क्या बच्चे का लिंग माता के द्वारा निर्धारित होता है?

    इस प्रश्न का उत्तर है नहीं।

    बच्चे का लिंग, इस बात से निर्धारित होता है की अंडाणु का निषेचन पिता के X क्रोमोज़ोम से हुआ है या Y क्रोमोज़ोम से। तो लिंग या जेंडर का निर्धारण पिता की तरफ से होता है।

    क्या बच्चे का लिंग गर्भ में बदला जा सकता है?

    इस प्रश्न का उत्तर है नहीं।

    जेंडर निषेचन के समय ही निर्धारित हो जाता है। इसलिए यह संभव ही नहीं की बच्चे का लिंग, गर्भ में बदला जा सके।

    वीर्य की जांच Semen Analysis in Hindi

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    इनफर्टिलिटी या बांझपन infertility तब कहते हैं जब एक साल बिना किसी गर्भनिरोधक के प्रयोग के, यौन रूप से सक्रिय दम्पति के असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने पर भी बच्चा नही होता। करीब तीस प्रतिशत मामलों में यह इनफर्टिलिटी पति की तरफ से होती है। इसलिए जब कभी एक कपल की इनफर्टिलिटी के लिए जांच की जाती है तो पति-पत्नी दोनों की ही जांचे होती हैं। महिलाओं के लिए बहुत तरह की जांचे होती है पर पुरुषों के लिए वीर्य की जांच, जिसे सीमन एनालिसिस कहते हैं वह की जाती है।

    शोध दिखाते हैं सभी लैब्स के पास इस जांच को करने के साधन, उपकरण और विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं होते। इसलिए लैब टू लैब सीमन एनालिसिस के परिणाम भी भिन्न हो सकते हैं।

    पति की फर्टिलिटी की जांच, वीर्य की जांच / सीमन एनालिसिस से शुरू होती है। इसे आम आम भाषा में स्पर्म काउंट भी कहते हैं। इस जांच में सेमिनल फ्लूइड की जांच की जाती है और वीर्य की मात्रा, स्पर्म की संख्या, स्पर्म का शेप, गतिशीलता आदि को मापा जाता है।

    वीर्य Semen, पूरे सेमिनल फ्लूइड Seminal fluid को कहते हैं जबकि उसमें मौजूद अत्यंत सूक्ष्म शुक्र कीटों Shukra Keet को शुक्राणु कहते हैं। शुक्राणु जीवित होते है और लगातार गति करते हैं। वे करोड़ों की संख्या में होते हैं और सभी का एकमात्र लक्ष्य होता है, ओवा को निषेचित करना। इस काम में केवल एक ही स्पर्म सफल होता है।

    शुक्राणु Spermatozoa

    शुक्राणु, पुरुष की बीज कोशिकाएं Male Germ Cells हैं। जब तक शुक्राणु, पुरुष जनन पथ में रहते हैं इनमें गति नहीं होती। लेकिन स्खलन ejaculation के बाद यह आगे की ओर तेज़ी से बढ़ते हैं। अपनी गति के कारण ही यह शुक्राणु योनि से गर्भाशय की ग्रीवा और फिर नलिका में पहुँच जाते हैं। शुक्राणु महिला के जननमार्ग में केवल कुछ घंटे से लेकर १-२ दिन तक ही जीवित रह पाते हैं।

    शुक्राणु एक काशाभिक कोशिका Flagellated Cell है जिसमें शिर, ग्रीवा, मध्य भाग और पूँछ होती है।

    सिर Head: शुक्राणु का सिर वाला हिस्सा, एक सिरे पर अंडाकार और दूसरे सिरे चपटा होता है। अंडाकार सिरे की आगे की तरफ, ऐक्रोसोम हिस्सा होता है जो की एक प्रकार का एंजाइम छोड़ता है जिससे निषेचन हो सके। पिता की जेनेटिक जानकारी भी इसी हिस्से में होती है।

    मध्य भाग Mid Piece: यह स्पर्म का पॉवर हाउस है। इसमें माइटोकोनड्रीया होता है जो स्पर्म को तैरने के लिए ताकत देता है।

    पूँछ Tail: इसमें माइक्रोट्यूब्स होती है जो की स्पर्म को आगे की ओर धक्का देती हैं।

    वीर्य जांच क्या है?

    वीर्य जाँच या सीमन एनालिसिस, प्रयोगशाला परीक्षण के द्वारा ताज़ा निकले वीर्य की जांच को कहते है। माइक्रोस्कोप के द्वारा स्पर्म / शुक्राणुओं की संख्या, आकार और गतिशीलता को मापा जाता है। वीर्य विश्लेषण, पुरुष इनफर्टिलिटी की जांच के लिए होता है।

    वीर्य जांच कब की जाती है ?

    जब एक कपल बच्चे के लिए कोशिश कर रहा होता है और बच्चा नहीं ठहरता तो स्त्री-पुरुष दोनों की ही बहुत सी जांचे की जाती हैं। वीर्य विश्लेषण इसी का हिस्सा है।

    यह सफल पुरुष नसबंदी की पुष्टि करने के लिए भी की जाती है।

    वीर्य विश्लेषण कहां किया जाता है?

    यह एक विशेष प्रयोगशाला में विशेष उपकरणों और विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है।

    वीर्य परीक्षण के लिए कैसे संग्रहीत किया जाता है?

    वीर्य परीक्षण के लिए ताजे वीर्य का नमूना ( एक घंटे के अन्दर) प्रयोग किया जाता है।

    अच्छा सैंपल हस्तमैथुन के द्वारा स्खलन से प्राप्त किया जा सकता है जिसे स्टर्लाइज्ड कंटेनर / जार में इकठ्ठा किया जाता है। आम तौर पर लैब के प्राइवेट कमरे में यह किया जाता है। जब वीर्य का नमूना घर पर निकला गया हो तो यह बहुत आवश्यक है की इसे गर्म रखा जाये और प्रयोगशाला बहुत जल्दी एक घंटे के भीतर, पहुंचा दिया जाए।

    यह महत्वपूर्ण है कि जितना वीर्य निकला है, उस सारे को इकठ्ठा किया जाये। एजाकुलेशन के पहले पार्ट को लेना ज़रूरी है क्योंकि इसमें ज्यादा शुक्राणु होते हैं और इस हिस्से को न लेने पर फाल्स लो स्पर्म काउंट आ सकता है।

    सही जांच के लिए यह महत्वपूर्ण है की पुरुष ने कम से कम दो दिन तक किसी भी प्रकार (सम्भोग द्वारा या हस्तमैथुन) द्वारा वीर्य न निकाला हो। लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि यह वीर्य सात से ज्यादा न पुराना हो

    यदि वीर्य दो दिन से नया है तो इसमें स्पर्म काउंट कम हो सकता है, तथा साथ दिन से पुराने वीर्य में निर्जीव और असामान्य शुक्राणुओं की संख्या ज्यादा हो सकती है।

    एक पूरी तरह से फर्टाइल पुरुष में भी बीमारी, बुखार, इन्फेक्शन और शुक्राणु की संख्या को कम कर सकते हैं। शरीर में किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन से शुक्राणुओं की संख्या कई महीनो तक प्रभावित हो सकती है।

    इसलिए कम से कम दो वीर्य विश्लेषण, छह हफ्ते के अंतर पर लिए जा सकते हैं।

    शुक्राणु का आकार और बनावट प्रजनन क्षमता को कैसे प्रभावित करते हैं?

    शुक्राणु के आकार Shape में दोष उसकी गतिशीलता, और एग को निषेचित करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

    फर्टाइल पुरुषों में भी आदर्श शेप के स्पर्म कम मात्रा में हो सकते हैं। जब आदर्श आकार वाले शुक्राणुओं का अनुपात, कुल शुक्राणुओं का चार फीसदी से भी कम है तो पुरुष बाँझपन होने की संभावना बढ़ जाती है।

    वीर्य विश्लेषण के आधार पर दी गई कुछ टर्म्स

    Oligozoospermia – शुक्राणु की कम संख्या

    Teratozoospermia – सामान्य आकार, शेप के शुक्राणु की कम संख्या

    Asthenozoospermia– गतिशील शुक्राणु की कम संख्या

    Azoospermia– निल शुक्राणु / शुक्राणु का उपस्थित न होना

    क्या है वीर्य विश्लेषण के परिणाम का मतलब?

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (Who, 2010) ने स्पर्म एनालिसिस की सामान्य फर्टिलिटी के पुरुषों की जाँच, के हिसाब से रेफरेंस वैल्यू दी हैं।

    पदार्थ

    परिभाषा

    सामान्य रेंज

    वीर्य की मात्रा Semen volume

    मैथुन के दौरान पेनिस से निकलने वाले फ्लूइड की मात्रा

    ≥1.5 mL

    स्पर्म काउंट Sperm concentration / sperm count

    नापे गए वीर्य के एक मिलीलीटर में शुक्राणुओं की संख्या

    ≥15 million per mL

    टोटल स्पर्म काउंट Total sperm number (also known as ‘total sperm count’)

    पूरे वीर्य में स्पर्म की संख्या;

    वीर्य की मात्रा * स्पर्म काउंट

    ≥39 million

    स्पर्म मोटिलटी Sperm motility (the ability of sperm to swim or move forward)

    गतिशील स्पर्म और बिना गति के स्पर्म को माप; प्रतिशत में परिणाम

    ≥40% motile within 60 minutes of ejaculation

    स्पर्म वाईटिलटी Sperm vitality (‘live’ sperm)

    जीवित स्पर्म्स, टोटल स्पर्म्स में से प्रतिशत में

    ≥58%

    स्पर्म मोर्फोलोजी Sperm morphology (the shape of the sperm)

    सामान्य शेप के शुक्राणु और असामान्य शुक्राणु की तुलना कर,पू रे वॉल्यूम के प्रतिशत में परिणाम

    ≥4%

    वाइट ब्लड सेल्स White blood (inflammatory) cells

    वाइट ब्लड सेल्स अक्सर मिलती हैं. कुछ लोगों में यह बिना कारण होती हैं जबकि कुछ में यह प्रजनन अंगों का इन्फेक्शन दिखाती हैं

    <1 million per mL

    वीर्य का पीएच Semen pH

    सीमन एसिडिक है या बेसिक. नार्मल सीमन को बेसिक / एल्कलाइन होना चाहिए

    यदि सीमन कम मात्रा में है और एसिडिक है तो सीमन के फ्लो में ब्लोकेज हो सकता है

    ≥7.2

    स्पर्म एंटीबॉडीज Sperm antibodies

    कुछ ही लैब में उपलब्ध

    <50% motile sperm

    showing antibody

    activity

    यह जाँचे गए वीर्य विश्लेषण, के परिणाम की तुलना, सामान्य फर्टिलिटी के पुरुषो से करने के काम आती है। यह एक रेफरेंस guide की तरह से प्रयोग किया जाता है। कई पुरुष जिनकी यह रिपोर्ट्स ठीक नहीं भी थी वो भी नेचुरल तरीके से पिता बनने का सुख प्राप्त कर चुके हैं।

    तो अगर यह रिपोर्ट किसी पुरुष के लिए पूरी तरह से ठीक नहीं भी है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है की वह पिता नहीं बन सकता। रेफरेंस वैल्यूज आबादी के एक हिस्से को लेकर बनाई गई है, पूरी आबादी को लेकर नहीं।

    उदाहरण के लिए, स्पर्म काउंट की सामान्य रेंज, 15 करोड़ शुक्राणु प्रति मिलीलीटर है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है की जिनका स्पर्म काउंट 2 करोड़ शुक्राणु प्रति मिलीलीटर है वे पिता नहीं बन सकते। ऐसे करीब 30 प्रतिशत कपल्स के यहाँ अगले २-३ सालों में नेचुरल तरीके से गर्भ ठहर गया।

    एक बच्चा बनाने लिए केवल एक ही सफल शुक्राणु चाहिए

    वीर्य की गुणवत्ता, के अलावा अन्य कारक जो की गर्भ ठहरने की सम्भावन को प्रभावित करते हैं, वे है सेक्स करने की फ्रीक्वेंसी, महीने के किन दिनों में सेक्स किया गया, ठहराव, सेक्स पोजीशन, महिला की फर्टिलिटी, आदि।

    वीर्य को प्रभावित करने वाले कारक

    मनुष्य में एक पूरी तरह से स्वस्थ्य स्पर्म को बनने में करीब दो महीने (64 दिन) का समय लगता है। इस समय ऐसे बहुत से कारक हो सकते हैं जो की इस प्रोसेस को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे की

    1. धूम्रपान
    2. शराब का सेवन
    3. ड्रग्स की आदत
    4. कुछ सप्लीमेंट्स का सेवन
    5. केमिकल्स का एक्सपोज़र
    6. किसी भी तरह की बीमारी, इन्फेक्शन

    उपचार Treatment

    यदि वीर्य में कुछ दिक्कतें हैं भी तो कुछ उपाय हैं जो की अपना खुद का बच्चा कंसीव करने में मदद कर सकते हैं।

    इंट्रायूट्रीन इनसेमिनेशन Intrauterine Insemination, तब किया जाता है जब सीमन एनालिसिस लगभग नार्मल हो। इसमें स्वस्थ्य गतिशील शुक्राणुओं को गर्भाशय में डाला जाता है।

    आईवीएफ In Vitro Fertilisation (IVF), तब किया जाता है जब पुरुष इनफर्टिलिटी हल्की या मध्यम दर्जे की है। इसमें अंडाणुओं और शुक्राणुओं को लैब में मिलाकर निषेचन कराने की कोशिश की जाती है।

    इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन Intracytoplasmic Sperm Injection (ICSI), तब किया जाता है पुरुष फर्टिलिटी बुरी तरह से प्रभावित हो। इसमें एक सिंगल स्पर्म को एग को निषेचित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

    स्पर्म एस्पिरेशन Sperm Aspiration (Pesa, Tesa), में IVF और ICSI दोनों का प्रयोग करते हैं। यह निल शुक्राणु होने पर किया जाता है। इसमें अधिवृषण या वृषण ऊतक The Epididymis Or Testicular Tissue से स्पर्म सीधे प्राप्त करने की कोशिश होती है।

    वीर्य बढ़ाने के आहार Foods to improve Semen in Hindi

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     वीर्य को इंग्लिश में सीमन semen या सेमिनल फ्लूइड seminal fluid कहते हैं। यह शिश्न penis के अग्रभाग शिश्न मुंड glans penis से सेक्स के दौरान निकलता है। इस सफ़ेद, लुबावदार, चिपचिपे, घाढ़े द्रव्य में शुक्र कीट, तथा शुक्राशयों, पौरुष ग्रंथि (प्रोस्ट्रेट) और एपीडाईडीमस के स्राव भी मिले होते हैं।

    वीर्य शुक्राणुओं का पोषण करता है। यह एल्कलाइन होता है। वीर्य की एक बूँद में लाखों शुक्राणु पाए जाते है। शुक्राणुओं को शुक्र कीट और स्पर्म sperm भी कहते है। शुक्राणुओं का निर्माण दोनों टेस्ट्स / टेस्टिकल / वृषण testes में होता है जो की स्क्रोटम scrotum में शरीर से थोड़ी दूर पर लटके अवस्था में रहते हैं। स्क्रोटम का तापमान शरीर के तापमान से कम होता है जिससे स्पर्म का निर्माण हो सके।

    शुक्राणु अत्यंत `ही सूक्ष्म, जीवित पुरुष जनन कोशिकाएं हैं। यह माइक्रोस्कोप के द्वारा हिलते डुलते देखे जा सकते हैं। शुक्र कीट केवल एल्कलाइन / क्षारीय दशा में ही जीवित रह सकते हैं। अम्लता / एसिडिक, इन्हें नष्ट कर देती है। प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि से वीर्य में मिलने वाला पदार्थ, एल्कलाइन, चिकना और पतला होता है जिससे शुक्रकीट आसानी से चल सकें।

    शुक्राणु पुरुष के बीज है जो डिम्ब से मिलकर नए जीवन की शुरुआत करते हैं।

    आयुर्वेद के अनुसार खाये हुए भोजन का अन्तिम परिणाम वीर्य होता है और इसका निर्माण बहुत सीमित होता है। एक स्पर्म को बनके परिपक्व होने में करीब 64 दिन या दो महीने लगते है। भोजन से रक्त बनता है और रक्त से ही वीर्य। किसी भी तरह का रोग वीर्य बनने की प्रक्रिया को बाधित कर देता है। शरीर में किसी भी तरह के संक्रमण से वीर्य की गुणवत्ता पर कई महीनो तक प्रभाव रहता है।

    इसलिए आयुर्वेद में कुछ भोजनों और औषधीय वनस्पतियाँ बताई गई हैं जिनका सेवन सम्पूर्ण स्वास्थ्य को और विशेष रूप से संतानोंत्पत्ति की क्षमता को बढ़ाता है। यह सभी भोज्य पदार्थ शुक्रल अर्थात स्पर्म बढ़ाने वाले, वाजीकारक / कामेच्छा बढ़ाने वाले और रसायन (एंटीएजिंग, टॉनिक) हैं। इन भोजनों का सेवन शरीर को बल, उर्जा, शक्ति, और ओज देता है।

    शुक्र / वीर्य बढ़ाने वाले भोजन

    अच्छा आहार अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। यदि आहार अच्छा नहीं है तो रक्त कम बनेगा। जब रक्त कम बनेगा तो वीर्य भी कम बनेगा। वीर्य कम होने पर काम शक्ति भी कम होगी और कामेच्छा भी। शरीर में शक्ति की कमी होने से भी मस्तिष्क भी सही से काम नहीं करेगा।

    भोजन में निम्न पदार्थों का सेवन शरीर में वीर्य Semen improving को बढ़ाता है:

    1. मिश्री मिला गाय का दूध
    2. गाय का धारोष्ण दूध
    3. मक्खन, घी
    4. चावल व दूध की खीर
    5. उड़द की दाल
    6. तुलसी के बीज
    7. बादाम का हलवा
    8. मीठा अनार
    9. प्याज, प्याज का रस घी-शहद के साथ
    10. तालमखाना
    11. खजूर
    12. बादाम

    वीर्य को गाढ़ा करने का भोजन semen thickening food

    1. मोचरस
    2. सफ़ेद मुसली
    3. काली मुसली
    4. बबूल का गोंद
    5. काले तिल

    कामेच्छा बढ़ाने वाला भोजन libido improving food

    1. छुहारे को दूध में पकाकर खाना
    2. अंडे
    3. गाय का घी
    4. पिस्ता-बादाम, चिलगोजे
    5. कस्तूरी
    6. केवांच के बीज का चूर्ण
    7. अकरकरा
    8. सालम मिश्री
    9. सोंठ
    10. नारियल
    11. खीर
    12. बादाम का हलवा
    13. पिस्ते की बर्फी
    14. अनार का रस

    ऊपर दिए गए सभी पदार्थ, मीठे, चिकने, बलवर्धक, शक्तिवर्धक, ओज वर्धक, वृष्य और पुष्टिवर्धक हैं। इनका सेवन शरीर को बलवान करता है और वज़न भी बढ़ाता है।

    आयुर्वेद की वीर्यवर्धक दवाएं Semen/sperm increasing Ayurvedic medicines

    1. अश्वगंधा चूर्ण Ashwagandha Churna
    2. अश्वागंधादि लेहम Ashwagandhadi Lehyam
    3. अश्वगंधा घृत Ashwagandha Ghrita
    4. अश्वगंधा पाक Asgandh pak
    5. अश्वगंधारिष्ट Ashwagandharishta
    6. अभ्रक भस्म Abhrak Bhasma
    7. बादाम पाक Badam Pak
    8. चंद्रप्रभा वटी Chandraprabha vati
    9. धातुपौष्टिक चूर्ण Dhatupaushtik Churna
    10. दशमूलारिष्ट Dasamularistam
    11. द्राक्षरिस्ट Draksharishta
    12. कल्याणक घी Kalyanaka Ghrita
    13. शिलाजीत रसायन Shilajeet Rasayan
    14. सुकुमार घी Sukumara ghritam
    15. स्वर्ण भस्म Swarna bhasma
    16. शतावरी घी Shatavaryadi Churna
    17. मूसली पाक Musli pak
    18. केवांच चूर्ण Kevanch beej Churna

    वीर्य बढ़ाने के लिए पानी का सेवन भी उचित मात्रा में करना चाहिए। पानी शरीर को ज़रूरी तरल तो देता ही है अपितु पसीने, मूत्र आदि के माध्यम से शरीर से गंदगी को भी दूर करता है। पानी वीर्य को भी बढाता है।

    अर्जुन वृक्ष जानकारी और प्रयोग Arjun Tree in Hindi

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    अर्जुनाख्य, वीर, वीरवृक्ष, धवल, ककुभ, नदीसर्ज, इंद्रदु ये सभी अर्जुन वृक्ष के नाम है। इसके अतिरिक्त वीर योद्धा कुन्तीपुत्र, गांडीवधारी अर्जुन के सभी १२ नाम भी इस वृक्ष के हैं। हिंदी में इसे कोह, कौह, अर्जुन और लैटिन में टर्मिनेलिया अर्जुन कहते हैं।

    यह एक औषधीय वृक्ष है और आयुर्वेद में हृदय रोगों में प्रयुक्त औषधियों में प्रमुख है। अर्जुन का वृक्ष आयुर्वेद में प्राचीन समय से हृदय रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जा रहा है। औषधि की तरह, पेड़ की छाल को चूर्ण, काढा, क्षीर पाक, अरिष्ट आदि की तरह लिया जाता है।

    Arjun tree medicinal uses

    सातवीं शताब्दी में वागभट्ट के ग्रंथों में इसके प्रयोगों के बारे में विस्तार से लिखा गया है। उन्होंने कफ के कारण होने वाले हृदय रोगों में इसके लाभ के बारे में बताया है। पित्तज हृदय रोग में अर्जुन की छाल को दूध में पीने को कहा गया है। बांगसेन के अनुसार, अर्जुन की छाल के चूर्ण और गेंहू के चूर्ण को बराबर मात्रा में गाय के दूध में उबाल कर लेना चाहिए।

    अर्जुन की छाल से बनी दवा अर्जुनारिष्ट तो बहुत ही प्रसिद्ध है। यह हृदय रोगों में अत्यंत लाभकारी है। इसके सेवन दिल की अनियमित धड़कन में आराम पहुँचता है और उच्च रक्चाप भी कम होता है। अर्जुन क्षीर पाक का सेवन हृदय को पोषण देता है और उसकी रक्षा करता है। यह उसे बल देता है तथा रक्त को भी शुद्ध करता है।

    सामान्य जानकारी

    • अर्जुन का अर्थ होता है चांदी की तरह और इस वृक्ष की छाल बाहर से चमकीली और सफ़ेद सी लगती है तथा यह ताकत देता है, और संभवतः इसलिए इसे अर्जुन नाम दिया गया है।
    • यह एक बड़ा वृक्ष है। इसकी उंचाई 60-80 फुट हो सकती है। इसका तना मोटा और शाखाएं फैली हुई होती हैं।
    • इसके पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह देखने में होते हैं। वे 10-15 सेमी लम्बे 4-7 सेमी चौड़े और विपरीत क्रम में होते हैं। पत्ते ऊपर से चिकने और पिच्छे से खुरदरे होते हैं। इसके फल 1-2 इंच लम्बे होते हैं। फलों में उभार होते हैं।
    • अर्जुन का वृक्ष, उत्तर प्रदेश, बिहार, दक्कन, समेत पूरे भारत में पाया जाता है। इसकी लगभग 15 किस्में हैं। यह मुख्य रूप से नदी-नालों के के किनारे पैदा होता है। अर्जुन के पेड़ पर एक प्रकार का गोंद भी लगता है जो खाने के काम आता है।
    • प्राप्ति स्थान: पूरे भारतवर्ष में विशेषतः हिमालय की तराई, छोटा नागपुर, मध्य भारत, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, चेन्नई के जंगलों में, सड़क के किनारे, नदी के समीप
    • उत्पत्ति: भारत
    • त्वक छाल: चिकनी और हल्के सफ़ेद रंग की
    • पुष्पकाल: बैशाख, जेठ और कभी-कभी आषाढ़
    • पुष्प: बहुत छोटे, हरे रंग के जिनपर सफेद मंजरी होती है
    • फल: अगहन, पौष में पकता है।
    • फल का आकार: कमरख की तरह, कंगूरेदार लम्बे और उभार युक्त ।
    • औषधीय हिस्से: त्वक/ छाल, पत्ते, और फल
    • छाल की वीर्यकाल अवधि: दो साल

    आयुर्वेद में प्रमुख प्रयोग:

    हृदय रोग irregular heartbeat, abnormal heart rhythms, tremors, angina pectoris

    वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

    • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
    • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
    • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
    • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
    • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
    • सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
    • आर्डर Order: मायरटेल्स Myrtales
    • परिवार Family: कोम्ब्रीटेसिएई Combretaceae – बादाम परिवार
    • जीनस Genus: टर्मिनेलिया Terminalia
    • प्रजाति Species: टर्मिनेलिया अर्जुन Terminalia arjuna

    नाम / पर्याय

    • Sanskrit: Kakubha, Partha, Shvetavahan
    • Assamese: Arjun
    • Bengali: Arjuna
    • English: Arjuna myrobalan
    • Gujrati: Sadad, Arjuna, Sajada
    • Hindi: Arjuna
    • Kannada: Matti, Bilimatti, Neermatti, Mathichakke, Kudare Kivimase
    • Malayalam: Nirmasuthu, Vellamaruthi, Kellemasuthu, Mattimora, Torematti
    • Marathi: Arjuna, Sadada
    • Oriya: Arjuna
    • Punjabi: Arjon
    • Tamil: Marudam, Attumarutu, Nirmarutu, Vellaimarutu, Marutu
    • Telugu: Maddi
    • Urdu: Arjun

    टर्मिनेलिया अर्जुन के संघटक Phytochemicals

    अर्जुन की छाल में करीब 20-24% टैनिन पाया जाता है। छाल में बीटा-सिटोस्टिरोल, इलेजिक एसिड, ट्राईहाइड्रोक्सी – ट्राईटरपीन मोनो कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड, आदि भी पाए जाते हैं। इसमें ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और अर्जुनोलीन भी इसमें पाया जाता है। पेड़ की छाल में पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनिशियम के साल्ट भी पाए जाते हैं।

    • टैनिन
    • फेनोलिक एसिड, इलेजिक एसिड एंड गेलिक एसिड
    • ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और अर्जुनोलीन
    • बीटा-सिटोस्टिरोल

    अर्जुन के औषधीय उपयोग

    1. अर्जुन की छाल, ज्वरनाशक, मूत्रल, और अतिसार नष्ट करने वाली होती है। यह उच्च रक्तचाप को कम करती है। जब चोट पर नील पड़ जाए तो इसकी छाल का सेवन दूध के साथ करना चाहिए।
    2. लीवर सिरोसिस में इसे टोनिक की तरह प्रयोग किया जाता है।
    3. मानसिक तनाव, दिल की अनियमित धड़कन, उच्च रक्चाप में इसका सेवन लाभदायक है।
    4. मासिक में अधिक रक्स्राव हो रहा हो तो, अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण को एक कप दूध में उबालें। जब दूध आधा रह जाए तो थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलकर, दिन में तीन बार सेवन करें।
    5. इसका काढ़ा बनाकर छाले, घाव, अल्सर, आदि धोते हैं। ulcers, acne, skin disorders, Bleeding
    6. कान के दर्द में इसके पत्तों का रस टपकाते हैं। ब्लीडिंग डिसऑर्डर / रक्त पित्त तथा पुराने बुखार में इसका सेवन लाभदायक है।
    7. टूटी हड्डी bone fractures पर इसका लेप लगाने से लाभ होता है।
    8. इसका सेवन शरीर को शीतलता देता है। शरीर में पित्त बढ़ा हुआ हो तो इसका सेवन करें।
    9. अर्जुन के छाल का काढ़ा पीने से पेशाब रोगों में लाभ होता है। यह मूत्रल है।
    10. छाल का सेवन शरीर को बल देता है।
    11. अर्जुन की छाल को रात भर पानी में भिगो, सुबह मसलकर छान कर पीते हैं। ऐसा एक महीने तक करने से उच्च रक्तचाप, चमड़ी के रोग, यौन रोग, अस्थमा, पेचिश, मासिक में ज्यादा खून जाना और पाचन में लाभ होता है। Skin and sexual diseases, hypertension, asthma, dysentery, to aid digestion
    12. शरीर में विष होने पर छाल का काढ़ा लाभप्रद है।
    13. यह रक्त पित्त में बहुत उपयोगी है।
    14. अर्जुन छाल के हृदय के लिए लाभ
    15. यह सभी प्रकार के हृदय रोगों में फायदेमंद है।
    16. यह अनियमित धड़कन, संकुचन को दूर करता है। regulates heart beat
    17. यह हृदय की सूजन को दूर करता है।
    18. यह हृदय को ताकत देने वाली औषध है। nourishes heart muscle, prevents arterial clogging
    19. यह स्ट्रोक के खतरे को कम करता है। reduces blood clots, reverses hardening of the blood vessels
    20. यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
    21. यह उच्च रक्तचाप को कम करता है।
    22. यह लिपिड, ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करता है।
    23. इसका सेवन एनजाइना के दर्द को धीरे-धीरे कम करता है। prevents and helps in the recovery from angina
    24. यह वज़न को कम करता है।
    25. यह ब्लड वेसल को फैला देता है।
    26. यह रक्त प्रवाह के अवरोध को दूर करता है।
    27. यह हृदय के अत्यंत लाभकारी है। prevents congestive heart failure, ischemic, heals heart tissue scars after surgery
    28. यह दिल की मांसपेशियों को मज़बूत करता है।
    29. यह हृदय के ब्लॉकेज में लाभदायक है।
    30. यह कार्डियोटॉनिक है। cardiac tonic and stimulant
    31. हृदय रोगों में अर्जुनारिष्ट का सेवन या अर्जुन की छाल का चूर्ण दिन में दो बार पानी या दूध के साथ करना चाहिए।

    अर्जुन की छाल का चूर्ण, cardiac diseases, hypertension, heaviness in the chest में करना चाहिए। यह cardio protective and cardio-tonic है।

    अर्जुन के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

    अर्जुन के पेड़ की छाल को मुख्य रूप से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह कषाय, शीतवीर्य, दर्द दूर करने वाली, कफ, पित्त को कम करने वाली औषध है। यह मेद को कम करती है। यह हृदय के लिए अत्यंत हितकारी है। यह कान्तिजनक और बलदायक औषध है। अर्जुन की छाल हृदय रोग, विषबाधा, रक्त विकार, कफ-पित्त दोष, और बहुत भूख और प्यास लगने के रोग में प्रयोग की जाती है।

    स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और लघु है। स्वभाव से यह शीतल है और कटु विपाक है। यह कटु रस औषधि है। यह कफ-पित्त रोगों में बहुत लाभप्रद होता है।

    • रस (taste on tongue): कषाय
    • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
    • वीर्य (Potency): शीत
    • विपाक (transformed state after digestion): कटु

    कर्म:

    • हृदय: हृदय के लिए लाभकारी
    • रक्त्त स्तंभक, रक्तपित्त शामक, प्रमेहनाशक
    • कफहर पित्तहर विषहर
    • प्रभाव: हृदय के लिए टॉनिक

    प्रमुख आयुर्वेदिक दवाएं

    1. अर्जुनारिष्ट (इसे Parthadyarishta भी कहते हैं)
    2. अर्जुन घृत Arjuna Ghrita
    3. अर्जुन क्षीर पाक
    4. ककुभादि चूर्ण
    5. अर्जुन क्षीर पाक
    6. अर्जुन घन सत्व

    औषधीय मात्रा

    1. छाल का काढ़ा: 50-100 ml
    2. छाल का चूर्ण: 3-6 gram
    3. क्षीर पाक में: 6-12 grams
    4. घन सत्व: 30-60 बूंदे

    सावधानी

    1. अर्जुन आयुर्वेद की एक निरापद औषध है।
    2. इसका प्रयोग किसी भी तरह के साइड-इफेक्ट पैदा नहीं करता।
    3. लम्बे समय तक इसका प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित है।
    4. यह टॉक्सिक नहीं है।
    5. इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।

    वीर्य पौष्टिक चूर्ण Veerya Paushtik Churna Detail and Uses in Hindi

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    वीर्य पौष्टिक चूर्ण एक आयुर्वेदिक दवाई है। इस चूर्ण में बलवर्धक, धातुवर्धक, रसायन, शुक्रल और वाजीकारक घटक हैं। यह द्रव्य शरीर को ताकत देते हैं और वीर्य को बढ़ाते हैं। जैसा की दवा के नाम से ही पता चलता है इसके सेवन से वीर्य की वृद्धि होती है। वीर्य में शुक्र भी होता है। इस चूर्ण का सेवन शुक्र धातु को बढ़ाता है और शुक्राणुओं के बनने में सहायता करता है। यह पौष्टिक चूर्ण है जो पूरे स्वास्थ्य तथा रक्त को सुधारता है क्योंकि रक्त से ही वीर्य का निर्माण होता है।

    Virya Paushtik Churn, is an herbal medicine used to boost stamina, strength, vigour, vitality and fertility in men. It is combination of natural ingredients which improves overall physical and mental health.

    Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

    वीर्य पौष्टिक चूर्ण के घटक Ingredients of Veerya Paushtik Churna

    इस दवा का कम्पोज़िशन निर्माता पर निर्भर करता है। लेकिन सभी वीर्य पौष्टिक चूर्ण आयुर्वेद के वाजीकारक, रसायन, बलवर्धक, रक्तवर्धक और जोशवर्धक द्रव्यों से बने होते हैं।

    एस पी वीर्य पौष्टिक चूर्ण के घटक (प्रति 100 gram)

    1. लौह भस्म Loh bhasma (ferrum pure) 3gm
    2. त्रिवंग भस्म Trivang bhasma (Tin, lead & Zinc ) 3gm
    3. शतावर Shatavar (Asparagus racemosus) 5gm
    4. सैलब पंजा Salab panja (Orchis latifolia) 5gm
    5. बंग भस्म Bhang bhasm (stannum puri) 3gm
    6. सफ़ेद मुस्ली Musli safed (Asparagus adscendens) 5gm
    7. केवांच बीज Kaunch beej (Mucuna pruriens) 5gm
    8. सैलब मिश्री Salab mishri (Orchis mascula) 5gm
    9. छोटी इलाइची Choti elachi (Elettarria cardamomum) 4gm
    10. प्रवाल पिष्टी Prawal pishti (Corallium rubrum) 3gm
    11. तालमखाना Talamakhana (Hygrophila spinosa) 5gm
    12. कर्पूर Kapoor (Cinnamomum camphora) 2gm
    13. इमली गिरी Imli giri (Tamarindus indica) 5gm
    14. मिश्री Mishri (Mishri) 47gm

    वीर्य पौष्टिक चूर्ण के लाभ/फ़ायदे Benefits of Veerya Paushtik Churna

    यह पुष्टिकारक है।

    यह रसायन है।

    1. यह धातुवर्धक और शुक्र धातु को पुष्ट करता है।
    2. इसके सेवन से ताकत, बल और उर्जा में बढ़ोतरी होती है।
    3. यह स्पर्मेटोजेनिसिस को बढ़ाता है।
    4. इसके सेवन से स्पर्म काउंट बढ़ता है।
    5. यह पुरुष होरमोन, टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बढ़ाता है।
    6. यह स्पर्म की गुणवत्ता को सुधारता है।
    7. यह वाजीकारक है और सेक्स करने की इच्छा को बढ़ाता है।
    8. यह वीर्य को गाढ़ा करता है।
    9. वीर्य पौष्टिक चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग Uses of Veerya Paushtik Churna
    10. वीर्य के दोष semen disorders
    11. वीर्य का पतलापन watery semen
    12. स्पर्म / शुक्राणुओं की कमी Low sperm count
    13. स्तम्भन दोष / इरेक्टाइल डिसफंक्शन ED
    14. कामेच्छा की कमी low libido
    15. ताकत की कमी loss of strength
    16. शरीर में बल, ओज की कमी low energy level
    17. सेक्स करने की क्षमता में कमी, मेल सेक्सुअल वीकनेस sexual weakness
    18. शीघ्रपतन premature ejaculation
    19. स्वपन दोष nocturnal emission / nightfall
    20. धात गिरना spermatorrhoea

    सेवन विधि और मात्रा Dosage of Veerya Paushtik Churna

    1. आधा से एक चम्मच, दिन में दो बार लें। इसे दूध के साथ लेना चाहिए।
    2. इस चूर्ण के सेवन के समय दूध, घी, मक्खन, केला, खजूर आदि वीर्यवर्धक आहारों का सेवन अवश्य करें।
    3. जंक फ़ूड न खाएं।
    4. तले, भुने, खट्टे, मसालेदार भोजन न खाएं।
    5. खूब पानी पियें।
    6. एक्सरसाइज करें।

    निर्माता

    1. Amar Pharmaceuticals Shahi Veerya Paushtik Churan
    2. Anmol Veerya Paushtic Churan
    3. Amrit Life Veerya Paushtik Churan
    4. Cura Veerya Paushtik Churan
    5. Lokopkarak Pharmacuetical Works Veerya Paushtic Chooran
    6. Maqs Natural Veerya Energy Churan (Veerya Paustic)
    7. SP Veerya Paushtik Churan

    कुट्टू का आटा Kuttu Atta in Hindi

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    कुट्टू का आटा भारतवर्ष में व्रतों में प्रयोग किया जाता है। कुट्टू के आटे की पूरी, पकौड़े समेत कई व्यंजन बनते हैं। किसी भी तरह के व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता लेकिन फलों का सेवन किया जा सकता है। कुट्टू को सेवन भी इसलिए किया जा सकता है क्योंकि यह अन्न नहीं है बल्कि एक पौधे का फल है।

    कुट्टू का आटा

    कुट्टू का इंलिश में नाम बकवीट Buckwheat है, लेकिन यह किसी भी तरह से गेंहू से सम्बंधित नहीं है। गेंहू, अनाज है और घास कुल का पौधा है जबकि कुट्टू यानि कि बकवीट का लैटिन नाम फैगोपाईरम एस्कूलेंटम Fagopyrum esculentum है और यह पोलीगोनेसिएइ परिवार का पौधा है।

    बकवीट का पौधा, ज्यादा बड़ा नहीं होता है। इसमें गुच्छों में फूल और फल आते हैं। भारत में यह बहुत ही कम जगहों पर उगाया जाता है। मुख्य रूप से यह हिमालय के हिस्सों, जैसे की जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड, दक्षिण में नीलगिरी में और नार्थईस्ट राज्यों में उगाया जाता है। भारत में तो इसका मुख्य प्रयोग केवल व्रतों में ही होता है।

    पूरी दुनिया में बकवीट की सबसे ज्यादा फसल, रूस, कज़ाकिस्तान, यूक्रेन, और चीन में होती है। बकवीट पौधे से प्राप्त फल तिकोने आकार के होता है। इसको पीस कर जो आटे जैसा पाउडर बनता है उसे बकवीट फ्लोर या कुट्टू का आटा कहते है।

    बकवीट को जापान में नूडल्स बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चीन में इसका सिरका बनता है। अमेरिका और यूरोप में बकवीट के केक, बिस्किट, पैनकेक आदि बनाए जाते है।

    Rutin

    इसमें विटामिन पी, फ्लावोनोइड रूटिन Rutin होता है। करीब 100 ग्राम बकवीट के बीजो से 0.48mg to 4.97mg Rutin मिलता है। बाज़ार में रूटिन के 500 mg के एक्सट्रेक्ट Rutin 500 mg tablets उपलब्ध है। रूटीन को बहुत से रोगों के इलाज और उनके होने के रिस्क को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। रूटिन को त्वचा पर आसनी से नील पड़ने, पाइल्स, हृदय के रोग, वेरिकोज़ वेंस, स्किन एलर्जी, मधुमेह आदि में प्रयोग किया जाता है।

    स्थानीय नाम

    1. Scientific name: Fagopyrum esculentum
    2. Ayurvedic: Kotu
    3. Folk: Kutu, Phapar
    4. India: Doron, Kadda Godhi, Kaiyuk, Akli Indrayan, Kathu, Kotu, Kuttu, Ogal (Kumaon), Oggal, Ogla, Olgo, Phapar, Suel, Tyat
    5. Hindi: Kaspat
    6. Maharashtra: Kutu
    7. English: Buckwheat, Common Buckwheat
    8. China: Qiao mai, Chiao mai, Wu Mai, Hua Chiao
    9. Japan: Soba, Buckwheat noddles
    10. Tibetan: Rgya bra
    11. Russia: Grechevnaya, groats, Krupa

    कुट्टू के आटे के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits of Kuttu Atta in Hindi

    1. कुट्टू का आटा सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। इसको खाने के अनेकों लाभ है। इसमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
    2. इसे गेंहू के विकल्प की तरह प्रयोग किया जा सकता है।
    3. इसमें ग्लूटेन नहीं होता इसलिए जिन्हें सिलियक डिसीज़ celiac disease है वे भी इसका सेवन कर सकते हैं।
    4. यह शरीर में पित्त को बढ़ाता है और कफ को कम करता है।
    5. यह पाचन में सहयोगी है।
    6. इसमें उच्च कोटि का प्रोटीन होता है।
    7. इसमें 8 ज़रूरी एमिनो एसिड्स होते हैं जो शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
    8. इसमें बी काम्प्लेक्स विटामिन्स B2, B2 भी हैं।
    9. यह मैंगनीज, मैगनिशियम, कॉपर, फॉस्फोरस Manganese, copper, Magnesium and phosphorus का अच्छा स्रोत है।
    10. यह हृदय के लिए कई तरीकों से लाभप्रद है।
    11. यह बुरे कोलेस्ट्रोल low-density lipoprotein cholesterol (LDL) को कम करता है, रक्त के दौरे को सुधारता है, तथा वेइन्स veins की इलास्टिसिटी को ठीक करता है।
    12. यह मधुमेह में भी लाभप्रद है।
    13. इसका सेवन मधुमेह होने के खतरे को कम करता है।
    14. इसका ग्लाईसीमिक इंडेक्स कम है जिस कारण यह खून में शुगर को धीरे रिलीज़ करता है।
    15. यह मैगनिशियम magnesium का अच्छा स्रोत है। मैगनिशियम शरीर के लिए अत्यंत ज़रूरी है। यह बहुत सारे एंजाइम का कोफैक्टर है और उनकी क्रिया के लिए ज़रूरी है। यह मेटाबोलिज्म, दिल की सेहत, मांसपेशियों के सही काम के लिए समेत अनेकों फंक्शन में भाग लेता है। कुट्टू के आते का सेवन इसकी कमी को दूर रखने में सहायक है।

    सावधानियां

    1. कुट्टू के आटे को १-३ महीने के भीतर ही प्रयोग करना चाहिए।
    2. पुराना कुट्टू का आटा स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिप्रद है। पिछले कुछ सालों में, पुराने कुट्टू के आटे के सेवन के कारण फ़ूड-पोइजनिंग के मामले देखे गए है। दुकानदार लालचवश पुराना कुट्टू का आटा बेच देते है। लेने से पहले आटे की मैन्युफैक्चरिंग डेट अवश्य चेक करें।
    3. कुट्टू के आटे को फ्रिज में रखें।
    4. यह शरीर में पित्त और गर्मी को बढ़ाता है।
    5. आयुर्वेद में इसे स्वभाव से बहुत गर्म और रूक्ष (drying) माना गया है। इसका सेवन पित्त और वात / गैस को बढ़ाता है लेकिन कफ को कम करता है।
    6. इसे बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग न करें।

    अतिबला (कंघी) Indian Mallow (Abutilon indicum) in Hindi

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    कंघनी, कंघी, कंकतिका, ककही, कंकहिया, ऋष्याप्रोक्ता आदि अतिबला के नाम हैं। इंग्लिश में इसे इंडियन मेलो और लैटिन में अबूटीलन इंडिकम कहते हैं। यह एक औषधीय वनस्पति है, जिसके गुण बला की ही तरह हैं। गर्भवती स्त्रियों में इसे गर्भस्राव रोकने के लिए दिया जाता है। यह ज्वरनिवारक, कृमिनाशक, विषनाशक, मूत्रल diuretic, पौष्टिक और रसायन है। यह पेशाब सम्बन्धी रोगों में विशेष लाभकारी है। इसके सेवन से बार-बार पेशाब आना ठीक होता है. इसके बीजों का सेवन शरीर को शीतलता देता है और कामेच्छा बढ़ाता है। यह वीर्यवर्धक, शुक्रल, बलकारक, वात-पित्त नाशक और कामोद्दीपक है।

    अतिबला (कंघी) एक छोटा क्षुप है जो की उष्ण और समशीतोष्ण प्रदेशों में पाया जाता है। इसके पौधे पर सुन्दर पीले फूल आते है जो की देखने में इसी के कुल के एक और पौधे, भिन्डी जैसे कुछ-कुछ दिखते हैं। कंघी का पौधा 5-6 फुट तक हो सकता है। इसकी पत्तियां ३ इंच तक लम्बी और पान के पत्ते के आकार की चौड़ी, अधिक नुकीली, और रोयेंदार होती है। इसके पीले फूलों की पांच पंखुड़ियाँ और एकल पुष्पदंड होता है। जब फूल झड़ जाते हैं तो चक्र / मुकुट के आकार के फल लगते हैं। कच्चे फल पीले-हरे होते हैं जबकि पकने पर यह काले-भूरे चिकने हो जाते है। फलों में 15-20 खड़ी-खड़ी फांके होती जो पक जाने पर प्रत्येक कमरखी या फांक से काले-काले दाने निकलते हैं जो छोटे और चपटे होते हैं। यह बीज, बीजबंद कहलाते हैं। इन बीजों से लुआब निकलता है। अतिबला या कंघी के पौधे में फूल और फल सर्दी में आते हैं। चक्र आकृति के फल पूरे साल देखे जा सकते हैं।

    सामान्य जानकारी

    • वानस्पतिक नाम: अबूटीलन इंडिकम
    • कुल (Family): मॉलवेसिएई
    • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, पत्ते, बीज, और पंचांग
    • पौधे का प्रकार: क्षुप
    • वितरण: पूरे भारत भर में
    • पर्यावास: उष्ण और समशीतोष्ण प्रदेश
    • संग्रह: सर्दी में फल आने के बाद इसके औषधीय हीसों को छाया में सुखाकर और एयर टाइट डिब्बों में रखा जाता है।
    • वीर्यकालअवधि: एक वर्ष

    स्थानीय नाम / Synonyms

    1. Scientific name: Abutilon indicum, Sweet ssp. Indicum
    2. Sanskrit: Atibala, Balika, Balya, Bhuribala, Ghanta, Rishiprokta, Shita, Shitapushpa, Vikantaka, Vatyapushpika, Vrishyagandha, Vrishyagandhika
    3. Siddha: Thuthi
    4. Unani: Kanghi, Kangahi, Kakahiya, Kakahi, Beejband surkh, siyah
    5. Hindi: Kanghi
    6. Assamese: Jayavandha, Jayapateri
    7. Bengali: Badela
    8. Kannada: Shrimudrigida, Mudragida, Turube
    9. Kashmiri: Kath
    10. Malayalam: Uram, Katuvan, Urubam, Urabam, Vankuruntott, Oorpam, Tutti
    11. Marathi: Chakrabhendi, Petari, Mudra
    12. Maharashtra: Peeli booti, karandi
    13. Oriya: Pedipidika
    14. Punjabi: Kangi, Kangibooti
    15. Rajasthan: Tara-Kanchi, Kanghi, Debi, Jhili, Itwari
    16. Tamil: Nallatutti, Paniyarattutti, Perundutti, Tutti, Vaddattutti
    17. Folk: Kanghi, Kakahi, Kakahiyaa
    18. Arabic: Musht-ul-ghoul
    19. Sinhalese: Anoda
    20. English: Country Mallow, Flowering Maples, Chinese Bell-flowers, Indian mallow

    वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

    • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
    • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
    • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
    • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
    • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
    • आर्डर Order: माल्वेल्स Malvales
    • परिवार Family: मॉलवेसिएई – कपास कुल
    • जीनस Genus: एबूटिलन Abutilon
    • प्रजाति Species: एबूटिलन इंडिकम Abutilon indicum

    कंघी के संघटक Phytochemicals

    अतिबला (कंघी) में काफी मात्रा में लुआब / म्यूसिलेज पाया जाता है। इसमें कम मात्रा में टैनिन, और एस्पेरेगिन भी होता है। इसमें कुछ लवण भी पाए जाते हैं।

    अतिबला के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

    कंघी या अतिबला के पौधे के विभिन्न हिस्सों को शीतल, मधुर, बल, कान्तिकर, स्निग्ध, ग्राही, माना गया है। यह वातपित्त, रक्तपित्त, रूधिर विकार नाशक है। यह क्षयनाशक है।

    इसकी जड़ का शर्करा के साथ सेवन मूत्रातिसार (पेशाब का बार-बार आना, पोलीयूरिया) को नष्ट करता है। यह आयुर्वेद का एक अनुभूत योग है।

    • रस (taste on tongue): मधुर
    • गुण (Pharmacological Action): स्निग्ध
    • वीर्य (Potency): शीत
    • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

    कर्म:

    • रसायन
    • वातअनुलोमानक

    प्रतिनिधि: आंवले का मुरब्बा और आलू बुखारे का शर्बत।

    हानिनिवारण: शहद और काली मिर्च

    अतिबला मधुर विपाक है।

    विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।

    मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं। यह एनाबोलिक होते हैं।

    औषधीय मात्रा

    1. पत्ते: 5-7 grams
    2. मूल चूर्ण / जड़ का पाउडर: 1-3 grams
    3. जड़ का काढ़ा: 30-50 ml

    सावधनियाँ

    1. यह कफ को बढ़ाती है।
    2. यह पित्त को कम करती है।
    3. बहुत दुर्बल व्यक्तियों द्वारा इसका सेवन अहितकर है।

    खून की कमी और बालों का झड़ना Hair fall and Anemia in Hindi

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    बालों का झड़ना एक आम समस्या है। हम सभी कभी न कभी इससे परेशान होते हैं। कई लोगों में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है। यदि आप कुछ महीने से बाल के झड़ने से लगातार परेशान हैं तो आपको अनीमिया हो सकता है।

    खून की कमी और बालों का जड़ना, ये दोनों आपस में सम्बंधित हैं। यदि आप शाकाहारी हैं तो खून की कमी होना बहुत ही कॉमन है। इसके अलावा महिलायें भी एनीमिया की ज्यादा शिकार होती हैं क्योंकि हर महीने महावरी में खून जाता है जिसकी यदि अच्छे भोजन द्वारा भरपाई न की जाए तो शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसी प्रकार लोग जो की वजन कम करने के लिए डाइटिंग का सहारा लेते हैं वे भी कुपोषित हो जाते हैं जिसका सीधा प्रभाव उनके बालों पर पड़ता है।

    अनीमिया, Anemia शरीर में लोहे की कमी के लिए मेडिकल टर्म है। इसमें शरीर में हिमोग्लोबिन लेवल कम हो जाता है। लोहा या आयरन, शरीर के लिए अत्यंत ही जरुरी है। यह शरीर की कोशिकायों के जीवित रहने और पूरे शरीर में ऑक्सीजन को पहुंचाने जैसा महत्वपूर्ण काम करता है।

    Symptoms of Iron deficiency

    लोहे की कमी के बहुत सारे लक्षण हैं। जिसमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:

    1. हमेशा रहने वाली थकावट chronic fatigue

    2. जीभ tongue में कुछ लक्षण दिखाई देना जैसे की जीभ का सूज जाना, रंग बदल जाना गुलाबी न होक पीला या सफेद सा दिखना, बोलने में दिक्कत, दर्द आदि

    3. नाखून nails सफ़ेद दिखना

    4. भूख न लगना low appetite

    5. हमेशा सिर का भारी रहना, सिर में दर्द होना headaches

    6. याददाश्त की कमी memory loss

    7. चिड़चिड़ापन irritability

    लोहे की कमी के बालों में लक्षण

    लोहे की कमी बालों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है। इसकी कमी से बालों की जड़ों में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं पहुँच पाती। इसके अतिरिक्त बालों के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी एंजाइम सही ढंग से काम नहीं कर पाते। तो आप बालों के लिए किसी भी प्रकार का बाहरी ट्रीटमेंट कर लें, जैसे की तेल, शैम्पू बदला कर, आपके बालों का गिरना या उनकी खराब ग्रोथ ठीक नहीं होगी। ज़रूरी है समस्या के सही कारण पर काम करने की।

    1. बालों की चमक चले जाना और उनका दो मुहें हो जाना loss of shine and split ends

    2. बालों का न बढ़ना poor growth

    3. बालों का बहुत अधिक गिरना excessive hair loss

    अच्छी बात यह है की कुछ महीने के अनीमिया के ट्रीटमेंट से आपके बालों का रुकना कम होते-होते ठीक ही जाएगा।

    आगे पढ़ें कौन से भोजन हैं जो की आयरन के अच्छे स्रोत हैं।

    लोहे के स्रोत Source of Dietary Iron

    शाकाहारी भोजन की तुलना में मांसाहारी भोजन में अधिक आयरन पाया जाता है। मांसाहारी भोजन में मौजूद शरीर में आसानी से अवशोषित भी हो जाता है। शाकाहारी भोजन से आयरन का अवशोषण कम ही होता है।

    लोहे के शाकाहारी स्रोत Vegetarian Source

    • अनार
    • पालक, पुदीना, सरसों, चौलाई, हरा धनिया समेत अन्य पत्तेदार सब्जियां
    • सूखे मेवे (अंजीर, बादाम, किशमिश, मुनक्का)
    • बीन्स, सोया बीन
    • होल ग्रेन (ज्वार, बाजरा, गेहूं)
    • चने, तिल, दालें
    • केले
    • अंकुरित अनाज

    लोहे के मांसाहारी स्रोत Non-vegetarian Source

    1. मीट
    2. लीवर
    3. अंडे
    4. मछली
    5. चिकन

    Iron Supplements

    आयरन की कमी दूर होने में कुछ महीने तक लग जाते है। इसलिए ज़रूरी हो तो आयरन का सप्लीमेंट लें। लोहे की कमी को दूर करने के लिए आयुर्वेदिक सप्लीमेंट्स भी उपलब्ध है। इनका सेवन कब्ज़ नहीं करता। लोहे की कमी को दूर करने वाली कुछ क्लासिकल दवाएं हैं:

    1. लोहासव Lohasava
    2. नवयस चूर्ण/ लौह Navyasa Lauha
    3. धात्री लौह Dhatri Lauha
    4. लौह भस्म Lauha Bhasma
    5. मंडूर भस्म Mandura Bhasma
    6. स्वर्णमाक्षिक भस्म Swarnmakshik Bhasma
    7. पुनर्नावादि मंडूर Punarnavadi Mandura
    8. मंडूर वटक Mandura Vataka
    9. द्राक्षावलेह Drakshvaleha

    एलोपैथिक सप्लीमेंट लेते समय यह ध्यान रखने योग्य बात है की आयरन का सप्लीमेंट कभी भी खाली पेट न लें और पानी के साथ निगला कर लें न की चबा के। हो सकता है इसके सेवन से कब्ज़ हो जाए। ऐसे में सलाद आदि का सेवन करें और दिन भर में थोड़ा – थोड़ा कर पर्याप्त मात्रा में पानी पियें।

    अनीमिया का कुछ महीने तक लगातार इलाज कर इसे ठीक किया जा सकता है। इसके ठीक होने पर बालों का स्वास्थ्य भी सुधर जाता है।

    क्रेनबेरी Cranberry Juice in Hindi

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    क्रेनबेरी का पौधा, उत्तरी गोलार्ध की ठंडी और नम जलवायु में पाया जाता है। यह मूलतः अमेरिका और यूरेशिया का निवासी है। अमेरिका में बहुत ही कम नेटिव फल पाए जाते हैं और क्रेनबेरी उनमें से एक है। क्रेनबेरी को पुराने समय में वहां के मूल निवासी, रेड इंडियन भोजन और दवा की तरह प्रयोग करते थे।

    cranberry

    क्रेनबेरी, एक बेरी है जो लाल रंग की होती है और एक झाड़ी से मिलती है। इसे अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोपियन देशों में कच्चे रूप में, जैम, जेली आदि की तरह खाया जाता है। क्रेनबेरी फलों का जूस निकाल कर भी पीया जाता है।

    आजकल जब दुनिया ग्लोबल विलेज बन गई है, भारत में भी क्रेनबेरी का जूस मिलने लगा है। बहुत से लोग इसके बारे में बहुत अधिक नहीं जानते। इसे कुछ लोग करौंदा भी कहते है।

    क्रेनबेरी का नाम संभवतः इसलिए पड़ा क्योंकि यह पानी के आस-पास नम गीली जगहों पर मिलता है जहाँ पर इसका क्रेन या सारस इसका खूब सेवन करते हैं। क्योंकि क्रेन ने इसे खूब खाया यह क्रेनबेरी कहलाया। कुछ थ्योरी यह भी कहती हैं की इसके पतले तने और नीचे लटकते फूलों के कारण यह इंग्लिश क्रेन ही तरह लगता है और इसलिए इसे क्रेन बेरी कहते हैं।

    क्रेन बेरी में पोषकता

    Nutrient Daily Required Value
    Manganese 18%
    Vitamin C 18%
    Fiber 18%
    Vitamin E 8%
    Copper 7%
    Vitamin K 6%
    Pantothenic Acid 6%

    क्रेन बेरी के जूस पीने के लाभ Health Benefits of Cranberry Juice

    1. क्रेनबेरी एक पौष्टिक फल है। करीब सौ ग्राम क्रेन बेरी के सेवन से दैनिक की ज़रूरत का 18% विटामिन सी, 18% मैंगनीज, 18% फाइबर और 8 % विटामिन ई मिलता है। यह खट्टा होता है और यह विटामिन सी का समृद्ध स्रोत है। विटामिन सी के सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन सी, लोहे के अवशोषण में भी सहायक है।
    2. विटामिन सी और ई अच्छे एंटीऑक्सीडेंट हैं। एंटीऑक्सीडेंट वे पदार्थ हैं जो की शरीर की सेल्स को फ्री ऑक्सीजन (फ्री रेडिकल) के हानिकारक प्रभावों से बचाते है। शरीर में नहीं तो फ्री रेडिकल ऑक्सीडेटिव डैमेज करते है और बुढ़ापा तथा बिमारियों को बढ़ाते हैं।
    3. क्रेनबेरी में कुछ बक्टेरिया के प्रति एंटी-ऐडहेशन anti-adhesion गुण हैं जिस कारण यह उन्हें शरीर में चिपकने नहीं देता। क्रेनबेरी जूस को पीने से यूरिनरी ट्रैक्ट में मौजूद बक्टेरिया पेशाब के रास्ते निकल जाते है। इसी प्रकार मुंह के अन्दर भी यह बैक्टीरिया नहीं पनपने देता जिससे दांतों की सड़न और मसूड़ों के इन्फेक्शन से बचाव होता है।
    4. क्रेनबेरी पेशाब के रोगों में बहुत लाभकारी है। यह मूत्रल है। क्रेनबेरी जूस पीने से बार-बार होने वाला यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन यूटीआई रुकता है। ऐसा इसलिए है की एक तो यह पेशाब को एसिडिक कर देता है जिससे बक्टेरिया के लिए सही मीडियम नहीं रहता, दूसरा यह एंटी-ऐडहेशन गुण के कारण उन्हें शरीर से दूर करता है। तो जिन्हें यूटीआई अक्सर हो जाता है वे एक कप से लेकर एक गिलास का जूस रोजाना दिन में एक से दो बार २ महीने तक करें।
    5. क्रेनबेरी शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है और हृदय के लिए भी टॉनिक है। इसके सेवन से धमनियों में वसा, कोलेस्ट्रोल और कैल्शियम के जमाव से उनका पतले होने का रिस्क कम होता है।
    6. क्रेनबेरी में फाइबर भी होता है। क्रेनबेरी पेशाब के रोगों, बार-बार होने वाले यूटीआई, जुखाम-खांस, श्वसन रोगों, आदि में बहुत लाभप्रद है।
    7. यह दांतों को मजबूती देता है। यह बैक्टीरियल इन्फेक्शन में बहुत लाभप्रद है। यह विटामिन C की कमी को डोर करता है। यह फेफड़ों की सूजन में लाभप्रद है। यह एंटी-एजिंग है। त्वचा के लिए इसका सेवन फायदेमंद है। यह कील मुहांसों को दूर करता है। यह तासीर में गर्म और कफ को ढीला करता है।

    सावधानी Caution

    1. जो लोग खून पतला blood thinning करने की दवाएं लेते हों, उन्हें लम्बे समय तक क्रेनबेरी जूस का प्रयोग करने में सावधानी रखनी चाहिए। क्रेनबेरी का जूस दवा के प्रभाव efficacy और सेफ्टी को पर असर डालता है।
    2. जिन लोगों को एस्पिरिन और खून पतला करने की दवाएं लेने की सलाह है वे क्रेनबेरी जूस ज्यादा मात्रा में न पियें।
    3. क्रेनबेरी जूस में सेलसाईलिक एसिड होता है जो एस्पिरिन में भी होता है।
    4. मधुमेह में क्रेनबेरी का जूस लाभप्रद है। लेकिन बाज़ार में मिलने वाले जूस में ज्यादा मात्रा में चीनी मिली होती है। इसलिए ऐसे जूस न पिए।
    5. इसमें कैल्शियम और ऑक्ज़लेट calcium and oxalate होते हैं। जिन्हें स्टोंस oxalate stones का रिस्क है वे भी इसका सेवन बहुत ज्यादा मात्रा में न करें।
    6. क्रेनबेरी जूस, जिसमें सौ प्रतिशत क्रेनबेरी हो वही पियें। जिन जूसों में ज्यादा मात्रा में चीनी और प्रीज़रवेटिव हैं उनको अधिक मात्रा में पीने से लाभ नहीं बल्कि हानि है। उदाहरण के लिए, ट्रोपिकाना का क्रेनबेरी डिलाइट नाम से एक जूस उपलब्ध है।

    Tropicana Cranberry Delight Fruit Juice , 1liter (Fruit juice content 21.8%; Water, Sugar 14 grams, Red Grape juice 2.7%, Apple juice 1.1%, Cranberry juice 0.05%)

    इस जूस में करीब 21 % ही जूस है और वो भी सेब, अंगूर और सबसे कम मात्रा में क्रेनबेरी का। इस जूस को यदि आप क्रेन बेरी के हेल्थ बेनिफिट के लिए पीना चाहते हैं तो न पियें क्योंकि इसके सेवन से कोई विशेष लाभ तो होगा नहीं पर एक लीटर में 14 gram चीनी ज़रूर पी लेंगे।

    रौप्य भस्म Raupya Bhasma (Rajat Bhasma) in Hindi

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    रुप्यक, रजत, कुष्ठ, तार, श्वेत, वसूत्तमम, रौप्य, चन्द्रहास आदि चाँदी के संस्कृत नाम है। इंग्लिश में इसे सिल्वर कहा जाता है। चांदी प्रायः सोने के साथ मिलती है। चांदी की सबसे ज्यादा खदानें अमेरिका, चीन और श्रीलंका में हैं। चांदी का प्रयोग भारत में आभूषण, मूर्तियाँ, बर्तन आदि के लिय किया जाता रहा है। सोने के बाद आम लोगों द्वारा यह सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली धातु है।

    आयुर्वेद में चांदी को औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है और उत्तम प्रकार की चांदी के नौ गुण बताये गए हैं। यह भारी, नर्म, तपाने और तोड़ने पर सफ़ेद, स्निग्ध, चमकदार, लचीली और देखने में अच्छी लगती है। दवाई की तरह प्रयोग करने के लिए चांदी की भस्म बनाई जाती है। भस्म बनाने के लिए पहले चांदी का शोधन और फिर मारण किया जाता है। शोधन के लिए चांदी के पत्रों को आग में तपाया जाता है और घी-तेल, गौमूत्र, छाछ, कांजी, और कुल्थी के काढ़े में अलग-अलग तीन बार बुझाया जाता है। शोधन और फिर मारण, दोनों ही विधियाँ आयुर्वेदिक तरीके से की जाती हैं।

    रजत भस्म आयुर्वेद की रसायन औषधि है। यह विभिन्न रोगों को नष्ट करने वाली दवाई है। यह मुख्य रूप से वात शामक है। इसका मुख्य कार्य गुर्दों, तंत्रिकाओं nerves और मस्तिष्क पर होता है। बीसों प्रकार के प्रमेह, वात रोगों, पित्त प्रकोप, नेत्र रोग, प्लीहा वृद्धि, यकृत वृद्धि, धातु कमजोरी, मूत्र के रोगों में इसका प्रयोग उत्तम परिणाम देता है।

    यह उत्तम वृष्य और रसायन है। रजत भस्म को स्मृति हानि, चक्कर आना dizziness, बहुत अधिक प्यास लगना, प्रमेह आदि में प्रयोग करते हैं।

    • पर्याय synonyms: Roupya Bhasma, Raupya Bhasma, Chandi Bhasma, Rajata Bhasma, Rajatha Bhasmam
    • दवा का प्रकार: आयुर्वेदिक धातु भस्म
    • प्रमुख प्रयोग: वात और कफ रोग, मस्तिष्क सम्बंधित दोष, मधुमेह, प्रमेह
    • प्रमुख गुण: बलवर्धक, लेखन, गर्भाशय शोधन, कांतिवर्धक, आयुष्य
    • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।


    चांदी के स्थानीय नाम

    1. Latin: Argentum
    2. Hindi: Chandi, Rupa
    3. English: Silver
    4. Bengali: Rupa
    5. Gujarati: Rupum, Chandi
    6. Marathi: Chandi, Rupe
    7. Telugu: Vendi

    चांदी के भौतिक गुण

    • प्रकार: कोमल और लचीली धातु
    • रंग: रजत सफेद, ऑक्सीडेशन होने पर ग्रे
    • स्ट्रीक: व्हाइट
    • तोड़ने पर: दांतेदार
    • चमक: धातुई
    • पारदर्शिता: अपारदर्शी
    • कठोरता: 2.5 से 3.0
    • स्पेसिफिक ग्रेविटी: 10.1से 11.1

    Rajata or Raupya or Chandi Bhasma is Ayurvedic preparation of metal silver. It is incinerated silver and used therapeutically. It is aphrodisiac, anti-ageing, scraping (Lekhana), and immunomodulatory. It gives strength, glow, longevity and intellect. It improves fertility in both gender.

    Raupya Bhasma is indicated in Ayurveda for all twenty types of Prameha, vitiligo, tuberculosis, diseases of eyes, cough, piles, excessive thirst, emaciation / Shosh, poisoning and infertility.

    Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

    रौप्य भस्म के घटक Ingredients of Raupya Bhasma

    शोधन के लिए:

    1. चांदी पत्र Rajata patra 1 भाग
    2. तिल तेल Taila (Tila) (Ol.) Q.S. for nirvapana
    3. तक्र Takra Q.S. for nirvapana
    4. कांजी Kanjika Q.S. for nirvapana
    5. गौमूत्र Gomutra Q.S. for nirvapana
    6. कुल्थी काढ़ा Kulattha- kashaya (Sd.) Q.S. for nirvapana

    Marana (First method)

    1. चांदी Tara (Rajata) 24 g
    2. पारद Raseshvara (Parada) शुद्ध 24 g
    3. नींबू रस Nimbuka (Nimbu) svarasa (Fr.) QS for मर्दन के लिए
    4. गंधक Saugandhika (Gandhaka) शुद्ध 24 g
    5. हरताल Haratala शुद्ध 24 g

    Marana (Second method)

    1. चांदी Tara patra kana (Rajata) शुद्ध 1 भाग
    2. हिंगुल Hingula शुद्ध 2 भागs
    3. नींबू रस Nimbuka (nimbu) svarasa Q.S. for मर्दन के लिए

    रजत भस्म के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

    रजत भस्म स्वाद में मधुर, अम्ल, कषाय है। स्वभाव से यह शीतल है और मधुर विपाक है।

    विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।

    मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

    1. रस (taste on tongue): मधुर, अम्ल, कषाय
    2. गुण (Pharmacological Action): शीतल, सारक, स्निग्ध
    3. वीर्य (Potency): शीत
    4. विपाक (transformed state after digestion): मधुर

    कर्म:

    1. त्वचा के लिए उत्तम
    2. वात हर और कफ हर
    3. बलवर्धक
    4. स्मृति बढ़ाने वाली
    5. ओज वर्धक
    6. कान्तिवर्धक
    7. पित्तहर
    8. आयुष्य

    रौप्य भस्म के लाभ/फ़ायदे Benefits of Raupya Bhasma

    1. यह ओज और कान्ति वर्धक है।
    2. यह शरीर को शीतलता देती है।
    3. इसके सेवन से अधिक पित्त के कारण होने वाले विकारों में लाभ होता है।
    4. यह त्वचा की रंगत को सुधारती है।
    5. इसमें एंटी-एजिंग गुण हैं।
    6. यह मस्तिष्क के विकारों, जैसे की अनिद्रा, मेमोरी लॉस, चक्कर आना, मिर्गी आदि को दूर करती है।
    7. इसके सेवन से अत्यधिक प्यास लगना ठीक होता है।
    8. यह प्रमेह में लाभप्रद है।
    9. यह नाड़ी शूल और अपस्मार की उत्तम दवा है।

    रौप्य भस्म के चिकित्सीय उपयोग Uses of Raupya Bhasma

    1. शोष Shosha (Cachexia)
    2. धातु क्षय Dhatu Kshaya (Tissue wasting)
    3. प्रमेह Prameha (Urinary disorders),
    4. शराब की लत Madatyaya (Alcoholism)
    5. जहर Visha (Poison)
    6. पित्त रोग Pitta Roga (Disease due to Pitta Dosha)
    7. तिल्ली के रोग Pliha Roga (Splenic disease)
    8. मंदबुद्धि Buddhimandya (Low intelligence)
    9. गर्भाशय के रोग Garbhashaya Dosha (Uterine disorder)
    10. मिर्गी Apasmara (Epilepsy)
    11. अर्श piles

    सेवन विधि और मात्रा Dosage of Raupya Bhasma

    1. 30 mg से लेकर 125 mg (एक चौथाई से एक रत्ती) तक, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
    2. इसे शहद, दूध, घी, मक्खन, मलाई, मिश्री आदि अथवा रोग अनुसार अनुपान के साथ लें।
    3. इसे भोजन करने के बाद लें।
    4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

    अनुपान

    1. रजत भस्म, को उपदंश / सूजाक के कारण हुई नपुंसकता में शिलाजीत के साथ लेते हैं।
    2. स्त्रियों के बाँझपन में इसे अश्वगंधा चूर्ण अथवा शिवलिंगी के बीज के साथ लेते हैं।
    3. वीर्य वृद्धि के लिये, वंशलोचन, छोटी इलाइची, केशर, मोती भस्म (प्रत्येक 1 रत्ती ~ 125 मिलीग्राम) को दो रत्ती चांदी भस्म + शहद, के साथ लेते हैं।
    4. काम शक्ति, मैथुन आनंद बढाने के लिए इसे शहद के साथ चाट कर लेते हैं।
    5. सभी प्रकार के प्रमेहों में रजत भस्म को मक्खन, मलाई के साथ चाट कर लेते हैं और शिलाजीत का सेवन करते हैं ऐसा तीन सप्ताह तक लगातार करते हैं।
    6. मस्तिष्क की कमजोरी, बल की कमजोरी, में रजत भस्म को अश्वगंधा चूर्ण के साथ लेते हैं।
    7. मस्तिष्क विकारों (मिर्गी, पागलपन) में इसे बच के चूर्ण, ब्राह्मी चूर्ण और घी के साथ लेना चाहिए।
    8. वात-पित्त रोगों में, इसे त्रिफला चूर्ण के साथ लेते हैं।
    9. पित्त प्रकोप में रजत भस्म को आंवले के मुरब्बे अथवा गुलकंद के साथ लेते हैं।
    10. पाइल्स में इसे इसबगोल भूसी के साथ लें।।
    11. पांडू रोग में इसे त्रिकटु चूर्ण के साथ लेना चाहिए।
    12. आँखों के रोग में रजत भस्म को त्रिफला घृत के साथ लिया जाता है।
    13. सूखी खांसी में इसे मक्खन के साथ लेते हैं।
    14. यकृत-प्लीहा वृद्धि में इसे मंडूर भस्म के साथ लेना चाहिए।

    उपलब्धता

    1. इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है.
    2. बैद्यनाथ Baidyanath (Raupya Bhasma) मूल्य price 2.5 gm for Rs 435.00
    3. डाबर Dabur (Rajat (Chandi) Bhasma) मूल्य price 2.5 gm for Rs 445.00
    4. झंडू Zandu (Raupya Bhasma) मूल्य price 1 gram for Rs 160.20
    5. पतंजलि Patanjali Divya Pharmacy (Rajat Bhasma A.S.S)
    6. श्री धूतपापेश्वर Shree Dhootapapeshwar Limited (Rajata Bhasma) and many other Ayurvedic pharmacies.

    सावधानियां

    1. अधिक मात्रा में इसका सेवन आँतों और गुदा को नुकसांन पहुंचाता है। इसके निवारण के लिए कतीरा, शहद, का प्रयोग करते हैं।
    2. सही प्रकार से बनी रजत भस्म का ही सेवन करे।
    3. अशुद्ध / कच्ची रजत भस्म से शरीर पर बहुत से हानिप्रद प्रभाव, जैसे की धातु की कमी, कब्ज़, खुजली, बुखार, खून की कमी, कमजोरी, सिर का दर्द, फर्टिलिटी की कमी आदि, होते हैं।
    4. इसके सेवन से मल का रंग बदल सकता है पर इसका कोई नुकसान नहीं है।
    5. इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।

      स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma Detail and Uses in Hindi

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      सुवर्ण, कनक, हेम, हाटकं, ब्रह्मकंचन, चामिकरा, शतकुम्भ, तपनीय, रुक्कम जाबूनद हिरण्य, सुरल, व जातरूपकम आदि सभी सोने अर्थात स्वर्ण के नाम हैं। स्वर्ण को इंग्लिश में गोल्ड कहते है।

      सोना कम मात्रा में पाया जाता है और इस कारण यह एक मूल्यवान धातु है। इसे चट्टानों, नदी के तलछट और खदानों से बहुत मुश्किल से निकाला जाता है। यह लोगों समेत दुनिया के अमीर देशों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। यह केवल प्राकृतिक रूप से मिलता है और इसे बनाया नहीं जा सकता। यह बहुत ही आकर्षक, मुलायम, और नॉन-रियक्टिव धातु है। इसके पतले तार खींचे जा सकते है और आसानी से आकार दिया जा सकता है।

      सोने को भारत में आज से नहीं अपितु बहुत ही प्राचीन समय से प्रयोग किया जाता रहा है। वैदिक काल से ही सोना धन-संपत्ति का पर्याय है। सोने के आभूषण, सिक्के, मूर्तियाँ, बर्तन आदि हमेशा से भारत में प्रचलन में रही हैं। इसके गहने तो सभी को आकर्षित करते हैं। भारत में सभी के शरीर पर कुछ न कुछ स्वर्ण आभूषण तो हमेशा ही रहते हैं। भारत में इतना सोना हुआ करता था की इसे सोने की चिड़िया भी कहते थे। सोना धरती के साथ ही बना है और माना जाता है की दुनिया भर में सबसे ज्यादा सोने का भण्डार भारत और अफ्रीका में है। भारत में कर्नाटक की कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स जो की गोल्ड माइन है, से अंग्रेजों ने 75 वर्ष तक सोना निकाला। आजकल तो यह बंद कर दी गई है।

      स्वर्ण को आभूषण बनाने के अतिरिक्त एक औषधि की तरह भी आयुर्वेद में हजारों साल से प्रयोग कर रहे हैं। आयुर्वेद में स्वर्ण जैसी मूल्यवान धातु की रासयनिक विधि से भस्म बनाई जाती है जो की सोने की ही तरह बहुत मूल्यवान है। सोने की भस्म को स्वर्ण भस्म कहते हैं।

      आयुर्वेद ने अशुद्ध और बिना मारे स्वर्ण का आन्तरिक प्रयोग के लिए निषेध किया है। अशुद्ध स्वर्ण का सेवन वीर्य, बल को नाश करता है और रोगों का कारण बनता है।

      चरक, शुश्रुत, कश्यप सभी ने स्वर्ण भस्म के लिए अत्यंत हितकर बताया है। छोटे बच्चों को स्वर्ण प्राशन, Swarna Bindu Prashana कराने की भी परम्परा रही है जो की आज भी जारी है। महाराष्ट्र, गोवा, कर्णाटक में नवजात शिशु से लेकर 16 वर्ष की आयु के बच्चों को स्वर्ण का प्राशन कराया जाता है।

      स्वर्ण की भस्म में सोना बहुत ही सूक्ष्म रूप में (नैनो मीटर 10-9) विभक्त होता है। इसके अतिरिक्त इसके शोधन और मारण में बहुत सी वनस्पतियाँ प्रयोग की जाती हैं। इन कारणों से स्वर्ण की भस्म शरीर की कोशिकायों में सरलता से प्रवेश कर जाती हैं और इस प्रकार यह शरीर का हिस्सा बन जाती हैं।

      आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म का विशेष स्थान है। यह शारीरिक और मानसिक शक्ति में सुधार करने वाली औषध है। यह हृदय और मस्तिष्क को विशेष रूप से बल देने वाली है। आयुर्वेद में हृदय रोगों और मस्तिष्क की निर्बलता में स्वर्ण भस्म को सर्वोत्तम माना गया है।

      स्वर्ण भस्म को बल (शारीरिक, मानसिक, यौन) बढ़ाने के लिए एक टॉनिक की तरह दिया जाता रहा है। यह रसायन, बल्य, ओजवर्धक, और जीर्ण व्याधि को दूर करने में उपयोगी है। स्वर्ण भस्म का सेवन पुराने रोगों को दूर करता है। यह जीर्ण ज्वर, खांसी, दमा, मूत्र विकार, अनिद्रा, कमजोर पाचन, मांसपेशियों की कमजोरी, तपेदिक, प्रमेह, रक्ताल्पता, सूजन, अपस्मार, त्वचा रोग, सामान्य दुर्बलता, अस्थमा समेत अनेक रोगों में उपयोगी है।

      यह एक टॉनिक है जिसका सेवन यौन शक्ति को बढ़ाता है। स्वर्ण भस्म शरीर से खून की कमी को दूर करता है, पित्त की अधिकता को कम करता है, हृदय और मस्तिष्क को बल देता है और पुराने रोगों को नष्ट करता है।

      स्वर्ण भस्म का वृद्धावस्था में प्रयोग शरीर के सभी अंगों को ताकत देता है।

      स्वर्ण भस्म आयुष्य है और बुढ़ापे को दूर करती है। यह भय, शोक, चिंता, मानसिक क्षोभ के कारण हुई वातिक दुर्बलता को दूर करती है। बुढ़ापे के प्रभाव को दूर करने के लिए स्वर्ण भस्म को मकरध्वज के साथ दिया जाता है।

      हृदय की दुर्बलता में स्वर्ण भस्म का सेवन आंवले के रस अथवा आंवले और अर्जुन की छाल के काढ़े अथवा मक्खन दूध के साथ किया जाता है।

      स्वर्ण भस्म से बनी दवाएं पुराने अतिसार, ग्रहणी, खून की कमी में बहुत लाभदायक है। शरीर में बहुत तेज बुखार और संक्रामक ज्वरों के बाद होने वाली विकृति को इसके सेवन से नष्ट किया जा सकता है। यदि शरीर में किसी भी प्रकार का विष चला गया हो तो स्वर्ण भस्म को को मधु अथवा आंवले के साथ दिया जाना चाहिए।

      प्रमुख गुण: बुद्धिवर्धक, वीर्यवर्धक, ओजवर्धक, कांतिवर्धक

      प्रमुख उपयोग: यौन दुर्बलता, धातुक्षीणता, नपुंसकता, प्रमेह, स्नायु दुर्बलता, यक्ष्मा/तपेदिक, जीर्ण ज्वर, जीर्ण कास-श्वास, मस्तिष्क दुर्बलता, उन्माद, त्रिदोषज रोग, पित्त रोग

      Swarna Bhasma is incinerated gold. It is Madhur (Sweet) and Shital (cold in potency). It is a Rasayana (rejuvenator) and alleviates diseases.

      Here is given more about Swarna Bhasma, such as indication/therapeutic uses, benefits, and dosage in Hindi language.

      स्वर्ण भस्म के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

      स्वर्ण भस्म, स्वाद में यह मधुर, तिक्त, कषाय, गुण में लघु और स्निग्ध है। बहुत से लोग समझते हैं की स्वर्ण भस्म स्वभाव से गर्म / उष्ण है। लेकिन यह सत्य नहीं है।

      स्वभाव से स्वर्ण भस्म शीतल है और मधुर विपाक है।

      विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।

      मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

      • रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
      • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
      • वीर्य (Potency): शीत
      • विपाक (transformed state after digestion): मधुर
      • कर्म:

      • वाजीकारक aphrodisiac
      • वीर्यवर्धक improves semen
      • हृदय cardiac stimulant
      • रसायन immunomodulator
      • कान्तिकारक complexion improving
      • आयुषकर longevity
      • मेद्य intellect promoting
      • विष नाशना antidote

      स्वर्ण भस्म के घटक Ingredients of Swarna Bhasma

      स्वर्ण भस्म को आयुर्वेद (रसतरंगिणी) में बताये विस्तृत विवरण अनुसार ही बनाया जाता है। स्वर्ण भस्म को शुद्ध सोने से शोधन और मारण प्रक्रिया के द्वारा बनाया जाता है।

      स्वर्ण के शोधन के लिए: तिल तेल, तक्र, कांजी, गो मूत्र और कुल्थी के काढ़े का प्रयोग किया जाता है।

      स्वर्ण के मारण के लिए: पारद, गंधक अथवा मल्ल, कचनार और तुलसी को मर्दन के लिए प्रयोग किया जाता है।

      स्वर्ण भस्म के लाभ/फ़ायदे Benefits of Swarna Bhasma

      1. स्वर्ण की भस्म, स्निग्ध, मेद्य, विषविकारहर, और उत्तम वृष्य है। यह तपेदिक, उन्माद शिजोफ्रेनिया, मस्तिष्क की कमजोरी, व शारीरिक बल की कमी में विशेष लाभप्रद है। आयुर्वेद में इसे शरीर के सभी रोगों को नष्ट करने वाली औषधि बताया गया है।
      2. स्वर्ण भस्म बुद्धि, मेधा, स्मरण शक्ति को पुष्ट करती है। यह शीतल, सुखदायक, तथा त्रिदोष के कारण उत्पन्न रोगों को नष्ट करती है। यह रुचिकारक, अग्निदीपक, वात पीड़ा शामक और विषहर है।
      3. यह खून की कमी को दूर करती है और शरीर में खून की कमी से होने वाले प्रभावों को नष्ट करती है।
      4. यह शरीर में हार्मोनल संतुलन करती है ।
      5. यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं के दोषों को दूर करती है।
      6. यह शरीर की सहज शरीर प्रतिक्रियाओं में सुधार लाती है।
      7. यह शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करती है।
      8. यह प्रक्रियाओं को उत्तेजित करती है।
      9. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को ठीक करती है।
      10. यह एनीमिया, और जीर्ण ज्वर के इलाज में उत्कृष्ट है।
      11. यह त्वचा की रंगत में सुधार लाती है।
      12. पुराने रोगों में इसका सेवन विशेष लाभप्रद है।
      13. यह क्षय रोग के इलाज के लिए उत्कृष्ट है।
      14. यह यौन शक्ति को बढ़ाती है।
      15. यह एंटीएजिंग है और बुढ़ापा दूर रखती है।
      16. यह झुर्रियों, त्वचा के ढीलेपन, सुस्ती, दुर्बलता, थकान, आदि में फायेमंद है।
      17. यह जोश, ऊर्जा और शक्ति को बनाए रखने में अत्यधिक प्रभावी है।

      स्वर्ण भस्म के चिकित्सीय उपयोग Uses of Swarna Bhasma

      1. अवसाद
      2. अस्थमा, श्वास, कास
      3. अस्थिक्षय, अस्थि शोथ, अस्थि विकृति
      4. असाध्य रोग
      5. अरुचि
      6. कृमि रोग
      7. बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए
      8. विष का प्रभाव
      9. तंत्रिका तंत्र के रोग
      10. मनोवैज्ञानिक विकार, उन्माद, शिजोफ्रेनिया
      11. मिर्गी
      12. शरीर में कमजोरी कम करने के लिए
      13. रुमेटी गठिया
      14. यौन दुर्बलता, वीर्य की कमी, इरेक्टाइल डिसफंक्शन
      15. यक्ष्मा / तपेदिक

      सेवन विधि और मात्रा Dosage of Swarna Bhasma

      1. स्वर्ण भस्म को बहुत ही कम मात्रा में चिकित्सक की देख-रेख में लिया जाना चाहिए।
      2. सेवन की मात्रा 15-30 मिली ग्राम, दिन में दो बार है।
      3. इसे दूध, शहद, घी, आंवले के चूर्ण, वच के चूर्ण या रोग के अनुसार बताये अनुपान के साथ लेना चाहिए।

      बाज़ार में उपलब्धता Availability

      • बैद्यनाथ Baidyanath (Swarna Bhasma), price Rs. 1,297.00 for 125 mg; Rs. 4,490.00 for 500 mg; Rs. 8,746.00 for 1 gram.
      • डाबर Dabur (Swarna Bhasma), price Rs. 1,275.00 for 125 milligrams.
      • धूतपापेश्वर Shri Dhootapapeshwar Limited (Suvarna Bhasma), price approx. Rs. 2,013.00 for 200mg; 10 tabs for Rs. 1,750.00; 30 tabs for Rs. 5,017.00 and 1 gram at Rs. 9,618.00.
      • झंडू Zandu (SUVARNA BHASMA), price Rs 4,200.00 for 500 mg.
      • कोट्टकल Kottakkal Arya Vaidya Sala (Swarna Bhasmam Capsules) Price Rs. 3456.00 for 50 mg.
      • and many other Ayurvedic pharmacies.

        कहरवा पिष्टी Kaharwa Pishti Detail and Uses in Hindi

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        कहरवा पिष्टी को एक और नाम तृणकान्तमणि से भी जाना जाता है। दोनों ही नाम पर्याय है। इसे एक प्रकार के गोंद, जो चमकदार और रंग में पीला होता है, से बनाया जाता है। यदि इसे कपड़े के साथ रगड़ कर तृण अर्थात तिनके के पास रखा जाए तो यह उसे खींच लेता है और इसलिए इसे उर्दू में कहरुवाइया कहते है, और इसी से इसका नाम कहरवा है। यह एक आयुर्वेदिक और यूनानी दवा है।

        कहरवा कड़ा, साफ़, और सोने के सामान पीला होता है। इसे हाथ से रगड़ने पर यह गर्म हो जाता है। यह एक नींबू जैसी गंध भी छोड़ता है।

        कहरवा पिष्टी बनाने के लिए कहरवा को गुलाब जल की भावना देकर बनाते हैं. इसे बिना आग का प्रयोग किये बनाने पर इसमें इसके औषधीय गुण विद्यमान रहते है। यह तासीर में भी ठंडा रहता है। इसके सेवन से शरीर में अधिक गर्मी के कारण होने वाले रोग नष्ट होते हैं।

        पिष्टी और भस्म

        यह एक पिष्टी है। पिष्टी का शाब्दिक अर्थ पीस कर बनाया चूर्ण। पिष्टी के निर्माण के लिए जिस पदार्थ की पिष्टी बनानी होती है उसे सर्वप्रथम शोधित या साफ़ किया जाता है। फिर इसे गुलाब जल की भावना देकर सूर्य अथवा चाँद की रौशनी में सुखाया जाता है। भावना दे कर सुखाने का क्रम सात दिन या उससे ज्यादा दिन तक किया जाता है जब तक की उसे पीसने से एकदम बारीक चूर्ण या पाउडर न बन जाए। क्योंकि इसके निर्माण में अग्नि का प्रयोग बिलकुल ही नहीं किया जाता इस कारण से पिष्टी को अनअग्नितप्त भस्म भी कहा जाता है।

        भस्म और पिष्टी दोनों ही खनिजों, धातुओं आदि के बहुत ही बारीक औषधीय चूर्ण ही हैं लेकिन दोनों के निर्माण में अंतर है। जहाँ भस्म को आग में तपाया जाता है, पिष्टी में यह नहीं किया जाता। पिष्टियाँ इसलिए स्वभाव में, भस्म से मृदु होती है।

        Kaharwa Pishti is also known as Trinkant Mani Pishti. It is used in both, Ayurvedic and Unani medicine. It has Rakt-stambhak, Pitta shamak, Amashay kriya vardhak, hridya, Vrana-shodhak properties. It is indicated to stop Bleeding both internally and externally. Intake of Kaharva Pishti reduces the heat inside body and gives relief in abnormal bleeding from various organs such as nose, vagina, mouth, urethra etc. It is ducted on wounds to stop bleeding.

        Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

        • पर्याय Synonym: Kaharuba Pishti, Trinkantmani, Trinkant Mani Pishti
        • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
        • दवाई का प्रकार: पिष्टी, आयुर्वेदिक और यूनानी दवा
        • मुख्य उपयोग: शरीर में पित्त की अधिकता होने के कारण रोग जैसे की अंगों से असामान्य खून गिरना
        • मुख्य गुण: बढ़े पित्त को कम करना, हृदय को ताकत देना
        • औषधीय गुण: संकोचक, रक्त को रोकना, पित्तहर

        कहरवा पिष्टी के घटक Ingredients of Kaharwa Pishti

        Trinakantamani 1 Part

        Gulab arka distilled rose water QS for mardana

        कहरवा पिष्टी के लाभ/फ़ायदे Benefits of Kaharwa Pishti

        1. यह पित्त प्रकोप से उत्पन्न रोगों को नष्ट करती है।
        2. यह पित्त शामक है।
        3. यह हृदय को शक्ति देती है।
        4. यह हृदय की आसामान्य धड़कन को नियमित करती है।
        5. यह पेचिश, अतिसार आदि में लाभप्रद है।
        6. यह शीतल है।
        7. यह रक्त निरोधक है।
        8. कहरवा पिष्टी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Kaharwa Pishti
        9. रक्तस्राव के साथ डायरिया (Diarrhea with Bleeding )
        10. खूनी पेचिश (Bacillary dysentery)
        11. रक्तपित्त (Bleeding disorder)
        12. पित्त विकार (Disorder of Pitta Dosha)
        13. रक्त प्रदर, योनि मार्ग से असामान्य खून जाना (Menorrhagia or Metrorrhagia or both)
        14. नकसीर फूटना epistaxis
        15. मूत्र रुक जाना urine retention
        16. चक्कर आना dizziness
        17. ज्यादा प्यास लगना excessive thirst
        18. पसीना ज्यादा आना excessive sweat
        19. घाव पर छिडकने के लिए external wounds
        20. मस्तिष्क में कीड़े पड़ जाना, सिर का कीड़ों के कारण दर्द होना headache due to worms in brain

        सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kaharwa Pishti

        • 250 mg – 500 mg दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
        • इसे शहद, दूध, मक्खन आदि के साथ लें।
        • पेशाब के साथ खून आने और ब्लीडिंग पाइल्स में इसे दूर्वा के रस के साथ लें।
        • पित्त विकारों में इसे २ रत्ती प्रवाल पिष्टी मिलाकर, आंवले के मुरब्बे के साथ लें।
        • हृदय की कमजोरी में अर्जुनारिष्ट के साथ लें।
        • खूनी अतिसार में कुटजारिष्ट के साथ लें।
        • रक्त प्रदर में अशोकारिष्ट के साथ लें।
        • पेचिश और पाइल्स में ईसबगोल की भूसी के साथ लें।
        • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
        • पथ्य: ठंडा दूध, दलिया, मूंग की दाल, ठन्डे पदार्थ

        उपलब्धता

        इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

        बैद्यनाथ Baidyanath (Kaharwa Pishti Trinkantmani) Price: Rs. 57.00 For 2.5 g

        पतंजलि Patanjali Divya Pharmacy (Kaharava Pishti) Price: ₹ 40.00 for 5 g.

        श्री धन्वन्तरी हर्बल्स Shree Dhanwantri Herbals (Kaharwa Pishti) Price: Rs. 90.00 For 2.5 g

        डाबर Dabur (Kaharva Pishti (TrinKant Mani)) Price: Rs. 87.00 For 2.5 g and many other Ayurvedic pharmacies.

        आयुर्वेद के छः रस Six Tastes in Ayurveda

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        औषधि, वनस्पतियाँ अथवा द्रव्यों के रस का अर्थ है उनका स्वाद या टेस्ट। आयुर्वेद में द्रव्यों के छः रस माने गए है जिनके नाम हैं, मधुर sweet, अम्ल sour, लवण saline, कटु pungent, कषाय astringent, और तिक्त bitter।

        मधुर रस Madhura (Sweet)

        मधुर रस, मुख में रखते ही प्रसन्न करता है। यह रस धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, शरीर को शीतलता देता है गुरु (देर से पचने वाला) है।

        1. रस (taste on tongue): मधुर
        2. गुण (Pharmacological Action): गुरु
        3. वीर्य (Potency): शीतल
        4. विपाक (transformed state after digestion): मधुर
        5. कर्म: शीतल, स्तन्य, चक्षुश्य

        त्रिदोष पर प्रभाव: यह वात-पित्त-विष शामक है। यह सामान्य रूप से कफ कारक है लेकिन पुराना शालिधान्य, जौ, मूंग, गेंहू, मधु, सफ़ेद मिश्री आदि इसके अपवाद हैं। x

        औषधीय मात्रा: 3-30 ग्राम

        अधिक सेवन का दुष्प्रभाव

        1. मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है।
        2. ज्यादा मात्रा ने इसका सेवन बुखार, अस्थमा, गोइटर, गुल्म, अग्निमांद्य, प्रमेह, डायबिटीज, मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।
        3. यह शरीर में मल पदार्थों को ज्यादा बनाता है और कृमि करता है।

        मधुर रस द्रव्यों के उदाहरण:

        1. घी, सोना, गुड़, अखरोट, केला
        2. चोच (दालचीनी, नारियल, तालफल)
        3. फालसा, शतावरी, काकोली, चिरौंजी, कटहल
        4. बलात्रय (बला, अतिबला, नागबला)
        5. दो मेदा (मेदा, महामेदा)
        6. चार पर्णी (शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, माषपर्णी, मुद्गपर्णी)
        7. जीवंती, जीवक, ऋषभक, महुआ
        8. मुलेठी, बिम्बी/कुंदुरु, विदारी कंद
        9. दो क्षीरणी (छोटी, और बड़ी दूधी)
        10. दूध, चीनी, मधु, मुनक्का आदि।
        11. लवण रस Lavan (Saline)
        12. लवण रस, नमकीन होता है। इसे खाने से लार बहती है और जलन होती है। यह पित्त को बढ़ाता है। यह पसीना लाता है रुचिकारक है। यह मल भेदक और मांस का छेदक है।
        13. कर्म: शोधक, रुच्य, पाचन, लार अधिक बनाना, मुंह-गले में जलन।
        14. त्रिदोष पर प्रभाव: पित्त-कफ वर्धक, वात शामक
        15. औषधीय मात्रा: 1-3 gram

        अधिक सेवन का दुष्प्रभाव

        लवण का अधिक सेवन, गठिया, गंजापन/ खलित, पलित/बालों का सफेद होना, वली/ झुर्रियां, प्यास, कुष्ठ, विष, वीसर्प आदि रोगों को पैदा करता है और बल को क्षीण करता है। रक्त विकारों में लवण का सेवन नहीं करना चाहिए। सेंधा नमक छोड़ कर सभी नमक नेत्रों के लिए अहितकर हैं।

        • लवण रस द्रव्यों के उदाहरण:
        • सेंधा नमक, सोंचर नमक
        • काला नमक, समुद्री नमक
        • विडलवण / नौसादर
        • रोमक / सांभर नमक
        • सीसा धातु
        • सभी प्रकार के क्षार

        कषाय रस Kashaya (Astringent)

        कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है।

        त्रिदोष पर प्रभाव: कफ-पित्त शामक, वात वर्धक

        औषधीय मात्रा:1-10 gram

        अधिक सेवन का दुष्प्रभाव

        इसका अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।

        यह रोपण, ग्राही, और शरीर में रूक्षता करता है।

        कषाय रस द्रव्यों के उदाहरण:

        • हरीतकी, बहेड़ा
        • शिरीष, खादिर, कदम्ब गूलर
        • मोती, मूंगा, अंजन, गेरू
        • कच्चा कैथा, कच्चा खजूर, कमलकन्द


        कटु रस Katu (Pungent)

        कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि।

        कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है।

        यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। यह दूध के स्राव, मोटापे को कम करता है। यह दीपन, पाचन और रुच्य है।

        त्रिदोष पर प्रभाव: पित्तवर्धक, कफ-वात शामक

        औषधीय मात्रा: 1-15 gram

        अधिक सेवन का दुष्प्रभाव

        इसका अधिक सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।


        कटु रस द्रव्यों के उदाहरण:

        1. हींग, वायविडंग
        2. त्रिकटु (सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली)
        3. पञ्चकोल (पिप्पली, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, नागर/सोंठ)
        4. हरीतकी, गोमूत्र, भिलावा
        5. तिक्त रस Tikta (Bitter)
        6. तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, जैसे की नीम, कुटकी। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है।
        7. तिक्त रस कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह पाक में लघु, बुद्धिवर्धक, शीतवीर्य, रूक्ष, दूध को शुद्ध करने वाला और गले के विकारों का शोधक है।
        8. त्रिदोष पर प्रभाव: कफ-पित्त शामक, वात वर्धक
        9. औषधीय मात्रा: 1-15 gram

        अधिक सेवन का दुष्प्रभाव

        इसके अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं। यह सिर में दर्द, थकावट, दर्द, ट्रेमर, बेहोशी, आदि करता है। यह शुक्र और बल को कम करता है।

        • तिक्त रस द्रव्यों के उदाहरण:
        • तीता परवल, नीम, कुटकी, कुटज
        • दो हल्दी (हल्दी और दारू हल्दी)
        • खस, नागरमोथा, मूर्वा, अडूसा
        • पाठा, अपामार्ग, कांस्यधातु, लौहधातु
        • गिलोय, धमासा, बृहत्पञ्चमूल (अरणी, पाढ़ल, बिल्व, सोनपाठा, गंभारी)
        • अतीस, वनभांटा, विशाला / इन्द्रायण

        अम्ल रस Amla (Sour)

        अम्ल रस, खट्टा होने के कारण मुख को मानो अन्दर से धो डालता है। इसे खाने से दन्त हर्ष हो जाता है, आँखे-भौहें सिकुड़ जाती है और खाने में रोमांच होता है, जैसे की नींबू, इमली आदि।

        अम्लरस अग्निवर्धक, उष्णवीर्य, स्पर्श में शीतल, तृप्तिकारक/ प्रीणन, क्लेद कारक और पाक में लघु है। यह कफ-पित्त को बढ़ाता है और वात का अनुलोमन करता है।

        कर्म: पाचन, रुच्य, पित्तज, स्लेषमन, लेखन causes scraping, क्लेदक promotor of stickiness, यह शुक्र को कम करता है।

        औषधीय मात्रा: 1-10 gram

        अधिक सेवन का दुष्प्रभाव

        इसका अधिक सेवन शरीर में शिथिलता, नेत्र रोग, खुजली, शोफ / सूजन, विस्फोट / फोड़े, प्यास लगना, भ्रम, और बुखार करता है।

        त्रिदोष पर प्रभाव: यह वात शामक है। यह पित्तवर्धक और कफवर्धक है, लेकिन अनार और आंवला को छोड़कर।

        अम्ल रस द्रव्यों के उदाहरण:

        • आंवला, इमली,
        • मातुलिंग ( सभी प्रकार के नींबू)
        • अम्लवेत, दाड़िम / अनार
        • रजत / चाँदी, तक्र / मट्ठा
        • दही, आम, आमड़ा, कमरख
        • कैथा, करौंदा / करमदर्क

        युनिएंजाइम टेबलेट्स Unienzyme Tablets (Unichem) in Hindi

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        युनिएंजाइम टेबलेट्स युनीकेम द्वारा निर्मित एक दवा है जिसमें फंगल डियाज़टेज़, पपाइन और एक्टिवेटिड चारकोल हैं। इस दवा का प्रयोग मुख्य रूप से खाना खाने के बाद अधिक गैस बनना, डकार आना, की समस्या में किया जाता है। युनिएंजाइम को अन्य पेट की समस्याओं जैसे की अपच, दस्त, पोइज़निंग आदि में भी दिया जाता है।

        फंगल डियाज़टेज़ एक एंजाइम है जिसको एक फंगस से बनाया जाता है। इसके सेवन से स्टार्च का पाचन होता है और वह सिंपल शुगर में बदल जाता है।

        पपाइन को कच्चे पपीते के लेटेक्स या दूध से बनाते है और यह भी एक पाचक एंजाइम है। पपाइन प्रोटीन का पाचन करता है।

        एक्टिवेटिड चारकोल (सक्रिय कार्बन) एक काले रंग का गंधहीन और स्वादहीन पदार्थ है जिसे लकड़ी या अन्य सामग्री को वायुहीन वातावरण में बहुत उच्च तापमान पर बनाया जाता है। इस प्रकार के कोयले को बाद में ओक्सिडाइजिंग गैस या दूसरे केमिकलमें री-हीट किया जाता है जिससे यह बहुत बारीक पाउडर में टूट जाता है और तब यह सक्रिय या एक्टिवेटिड हो जाता है। एक्टिवेट करने से इसकी अवशोषण की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। यह शुद्ध कार्बन है और शरीर में यह टोक्सिंस, विषैले पदार्थों और पाचन तंत्र में गैस को सोख लेता है। इसमें सोखने की क्षमता है इसलिए गैस या दस्त के इलाज के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है।

        Unienzyme Tablets (Unichem) is an allopathic medicine indicated in gas/ bloating/belching/flatulence. It supports better digestion by supplying the enzymes and gives relief in gas due to presence of activated charcoal.

        Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

        • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
        • दवाई का प्रकार: एलोपैथिक
        • मुख्य उपयोग: गैस अधिक बनना, अपच
        • मुख्य गुण: गैस को दूर करना, पाचन में सहयोग करना

        युनिएंजाइम के घटक Ingredients of Unienzyme

        1. फंगल डियाज़टेज़ Fungal Diastase 100 mg
        2. पपाइन Papain 60 mg
        3. एक्टिवेटिड चारकोल Activated Charcoal 75 mg

        युनिएंजाइम के लाभ/फ़ायदे Benefits of Unienzyme

        • इसमें एंजाइम हैं जो की पाचन में सहयोगी हैं।
        • इसके सेवन से गैस कम होती है।
        • यह टोक्सिंस को दूर करता है।
        • यह प्रोटीन के पाचन को सही करता है।
        • इसके साइड-इफेक्ट्स न के बराबर हैं। जो थोड़े हैं भी, वे गंभीर नहीं हैं।
        • इसका सेवन लम्बे समय तक किया जा सकता है।

        युनिएंजाइम के चिकित्सीय उपयोग Uses of Unienzyme

        गैस, अफारा, आध्य्मान, पेट फूलना intestinal gas, Flatulence

        अपच indigestion

        सेवन विधि और मात्रा Dosage of Unienzyme

        • युनिएंजाइम की 1 से 2 गोली, दिन में दो-तीन बार, लंच या डिनर के बाद लें।
        • इसे पानी के साथ लें।
        • इसे भोजन करने के बाद लें।
        • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

        Side-effects, Caution and Warnings

        1. इसके सेवन से स्टूल का रंग काला हो जाता है।
        2. इसमें पपीते का लेटेक्स है, इसलिए इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।
        3. इसके सेवन से कब्ज़, पेशाब में जलन, खुजली, जी मिचलाना आदि हो सकता है।

          युनिएंजाइम टेबलेट्स Unienzyme Tablets (Unichem) in Hindi

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          युनिएंजाइम टेबलेट्स युनीकेम द्वारा निर्मित एक दवा है जिसमें फंगल डियाज़टेज़, पपाइन और एक्टिवेटिड चारकोल हैं। इस दवा का प्रयोग मुख्य रूप से खाना खाने के बाद अधिक गैस बनना, डकार आना, की समस्या में किया जाता है। युनिएंजाइम को अन्य पेट की समस्याओं जैसे की अपच, दस्त, पोइज़निंग आदि में भी दिया जाता है।

          फंगल डियाज़टेज़ एक एंजाइम है जिसको एक फंगस से बनाया जाता है। इसके सेवन से स्टार्च का पाचन होता है और वह सिंपल शुगर में बदल जाता है।

          पपाइन को कच्चे पपीते के लेटेक्स या दूध से बनाते है और यह भी एक पाचक एंजाइम है। पपाइन प्रोटीन का पाचन करता है।

          एक्टिवेटिड चारकोल (सक्रिय कार्बन) एक काले रंग का गंधहीन और स्वादहीन पदार्थ है जिसे लकड़ी या अन्य सामग्री को वायुहीन वातावरण में बहुत उच्च तापमान पर बनाया जाता है। इस प्रकार के कोयले को बाद में ओक्सिडाइजिंग गैस या दूसरे केमिकलमें री-हीट किया जाता है जिससे यह बहुत बारीक पाउडर में टूट जाता है और तब यह सक्रिय या एक्टिवेटिड हो जाता है। एक्टिवेट करने से इसकी अवशोषण की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। यह शुद्ध कार्बन है और शरीर में यह टोक्सिंस, विषैले पदार्थों और पाचन तंत्र में गैस को सोख लेता है। इसमें सोखने की क्षमता है इसलिए गैस या दस्त के इलाज के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है।

          Unienzyme Tablets (Unichem) is an allopathic medicine indicated in gas/ bloating/belching/flatulence. It supports better digestion by supplying the enzymes and gives relief in gas due to presence of activated charcoal.

          Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

          • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
          • दवाई का प्रकार: एलोपैथिक
          • मुख्य उपयोग: गैस अधिक बनना, अपच
          • मुख्य गुण: गैस को दूर करना, पाचन में सहयोग करना

          युनिएंजाइम के घटक Ingredients of Unienzyme

          1. फंगल डियाज़टेज़ Fungal Diastase 100 mg
          2. पपाइन Papain 60 mg
          3. एक्टिवेटिड चारकोल Activated Charcoal 75 mg

          युनिएंजाइम के लाभ/फ़ायदे Benefits of Unienzyme

          1. इसमें एंजाइम हैं जो की पाचन में सहयोगी हैं।
          2. इसके सेवन से गैस कम होती है।
          3. यह टोक्सिंस को दूर करता है।
          4. यह प्रोटीन के पाचन को सही करता है।
          5. इसके साइड-इफेक्ट्स न के बराबर हैं। जो थोड़े हैं भी, वे गंभीर नहीं हैं।
          6. इसका सेवन लम्बे समय तक किया जा सकता है।
          7. युनिएंजाइम के चिकित्सीय उपयोग Uses of Unienzyme
          8. गैस, अफारा, आध्य्मान, पेट फूलना intestinal gas, Flatulence
          9. अपच indigestion

          सेवन विधि और मात्रा Dosage of Unienzyme

          • युनिएंजाइम की 1 से 2 गोली, दिन में दो-तीन बार, लंच या डिनर के बाद लें।
          • इसे पानी के साथ लें।
          • इसे भोजन करने के बाद लें।
          • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

          Side-effects, Caution and Warnings

          1. इसके सेवन से स्टूल का रंग काला हो जाता है।
          2. इसमें पपीते का लेटेक्स है, इसलिए इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।
          3. इसके सेवन से कब्ज़, पेशाब में जलन, खुजली, जी मिचलाना आदि हो सकता है।

          सुहागा टंकण Borax in Hindi

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          टंकण, टंकन, टैंक, टंगन, द्रावक, टंकणक्षार, रंगक्षार, रंग, रंगद, सौभाग्य, धातुद्रावक, क्षारराज आदि सभी सुहागे या बोरेक्स के नाम हैं। यह क्योंकि धातुओं के शोधन में प्रयोग होता है इसे स्वर्णशोधन, ,स्वर्णदात्रक, लोहशोधन, लोहदात्री भी कहा जाता है।

          सुहागा नेपाल में बहुत मात्रा में पाया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल के रूप में मिलता है।

          सुहागा रंग में सफ़ेद, गंधरहित और रवेदार होता है। स्वाद में यह खारा होता है। सुहागे के बहुत से उपयोग हैं। यह धातुओं की मेटलर्जी में फ्लक्स flux के रूप में प्रयोग होता है। फ्लक्स का काम धातुओं को पिघलाने में मदद करने और उनके अन्दर मौजूद अशुद्धियों को स्लैग बनाकर निकालने का होता है। इसे कीटनाशक की तरह और कोक्रोचों को दूर रखने के लिए प्रयोग किया जाता है।

          आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, एलोपैथी, होमियोपैथी चिकित्सा पद्यति में इसे दवाई की तरह भी प्रयोग किया जाता है। सुहागे में मूत्रल, संकोचक, एंटासिड, और एंटीसेप्टिक गुण हैं।

          आयुर्वेद में सुहागे को बहुत प्राचीन समय से दवा की तरह आंतरिक और बाह्य रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसे स्वभाव से गर्म माना गया है। यह पित्तवर्धक और कफनाशक है। सुहागा अग्निवर्धक, विष, ज्वर, गुल्म, आम, शूल, और कासनाशक है। यह भेदक, कामोद्दीपक, पित्तजनक है। यह वमन, वातरक्त, और खांसी को दूर करने वाला है।

          आयुर्वेदिक दवाओं, जैसे की रजःप्रवर्तिनी वटी, लक्ष्मीविलास रस, में सुहागा भी एक घटक है। गर्भनिरोधक की तरह पिप्पली, विडंग और शुद्ध टंकण को बराबर मात्रा में मिलाकर दूध के साथ दिया जाता था। टंकण भस्म को वत्सनाभ के हानिप्रद प्रभावों antidote of Vatsanabha को दूर करने के लिए दिया जाता है।

          एलोपैथी में बोरेक्स का प्रयोग आँख के रोगों में होता है। गले में जलन, के लिए बोरेक्स को शहद के साथ प्रयोग करते हैं।

          होमियोपैथी में, स्त्रियों के रोगों, मुंह में हुए अल्सर, छाले, लिकोरिया, वूपिंग कफ, आवाज़ का बैठ जाना, आदि के लिए बोरेक्स का प्रयोग किया जाता है।

          यूनानी दवा, जैस की हब्ब-ऐ-नौशादारी HABB-E-KABID NAUSHADARI, हब्ब-ए-टंकर HABB-E-TANKAR, आदि में भी सुहागे को डाला जाता है। सुहागे की खील, नौशादर, फिटकरी, और कलमी शोरे के बारीक चूर्ण को मिलाकर पानी के साथ लेने से पीलिया / जांडिस में लाभ होता है।

          सुहागा क्या है?

          सुहागा, सोडियम टेट्राबोरेट, या डाईसोडियम टेट्राबोरेट है। यह एक खनिज है और बोरिक एसिड का लवण है।

          • केमिकल नाम Chemical name: Sodium Tetraborate, Na2B4O7.10H2O (Contains not less than 99.0% and not more than the equivalent of 103.0 % , Na2B4O7.10H2O)
          • विवरण Description: Transparent, colorless crystals, or a white, crystalline powder, odorless, taste saline and alkaline. Effloresces in dry air, and on ignition, loses all its water of crystallization.
          • घुलनशीलता Solubility: Soluble in water, practically insoluble in alcohol
          • कठोरता Hardness : 2 to 2।5
          • स्पेसिफिक ग्रेविटी Sp. Gr.: 1।65 to 1।7
          • स्वाद Taste: Sweetish alkaline

          स्थानीय नाम

          1. Sanskrit: Tankana, Tunkana, Rasashodhan
          2. Hindi: Suhagaa, Tinkal, Tincal
          3. English: Tincal, Borax, Sodium biborate, Biborate of Soda Borax, Biborate of Sodium
          4. Bengali: Sohaga
          5. Gujarati: Tankana Khara, Khadiyo Khara
          6. Kannada: Biligāra, Belgar
          7. Malayalam: Pongaaram
          8. Marathi: Tankana Khara
          9. Punjabi: Sohaga
          10. Tamil: Venkaram
          11. Telugu: Veligaram
          12. Urdu: Tankar, Suhaga
          13. Arabic: Buraekes-saghah
          14. Persian: Tinkar-tankar

          सुहागे की खील Tankar biryani

          सुहागे को पीस कर उसका चूर्ण बनाया जाता है। इसको एक साफ़ कढ़ाही में डाल कर चम्मच से चलाया जाता है। जब सुहागे का जलीय भाग dehydrated borax नष्ट हो जाता है तब यह खील की तरह फूल जाता है। यही सुहागे की खील या शुद्ध टंकण है। Pieces of borax are to be heated on frying pan on low flame to get white fluffy masses। इसे पीस लेते हैं और छन्नी से छान कर रख लेते हैं।

          आंतरिक प्रयोग के लिए इस तरह से भुने/फुलाए/निर्जलीय/डीहाइड्रेटेड सुहागे का प्रयोग होता है।

          आयुर्वेदिक गुण और कर्म

          सुहागा स्वाद में कटु, गुण में रूखा करने वाला, उष्ण, भारी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।

          यह कटु रस औषधि है। इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। इसका अधिक सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।

          यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

          विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

          • रस (taste on tongue): कटु
          • गुण (Pharmacological Action): रुक्ष, उष्ण, तीक्ष्ण, सारक
          • वीर्य (Potency): उष्ण
          • विपाक (transformed state after digestion): कटु

          सुहागे को कास/कफ, श्वास/अस्थमा, वात रोग, विष, अफारा और व्रण/घाव आदि में प्रयोग किया जाता है।

          औषधीय मात्रा: 125 – 250 mg

          सुहागे के फायदे Benefits of Suhaga / Borax

          • सुहागा या टंकण रस में कटु, गुण में उष्ण, तीक्ष्ण, रूक्ष और सारक है। यह अग्नि को उत्पन्न करता है। यह कफनाशक है व पित्त वर्धक है।
          • यह कफ को निकालता है।
          • यह कास और श्वास रोगों में बहुत लाभप्रद है।
          • यह वातरोगों को नष्ट करता है।
          • यह पाचक अग्नि को बढ़ाता है।
          • यह यकृत की क्रिया को तेज़ करता है।
          • यह गैस/अफारा को दूर करता है।
          • यह गर्भाशय में संकुचन पैदा करता है जिससे मासिक खुल कर आता है।
          • यह मूढ़ गर्भ को निकालने के काम आता है।
          • यह घावों पर बाहरी रूप से लगाया जाता है।
          • यह पित्त को उत्तेजित करता है।

          सुहागे के चिकित्सीय उपयोग Medicinal Uses of Borax

          1. कफ को पतला expectorant करने के लिए, टंकण को त्रिकटु कायफल, वासा और जवाखार के साथ प्रयोग किया जाता है।
          2. जुखाम coryza में, सुहागे को तवे पर गर्म करके पीस लेते हैं। इस पाउडर की चुटकी भर मात्रा को पानी में घोलकर पीते हैं। ऐसा दिन में चार बार करते हैं।
          3. विरेचन laxative के लिए, इसे त्रिकटु और जमालगोटा के साथ प्रयोग करते हैं।
          4. पायरिया, मसूड़ों के घाव, सूजन, gum problems आदि में इसे बोलचूर्ण के साथ दांतों पर मलते हैं।
          5. बहुत अधिक गैस बनने पर gas, फुलाए टंकण के चुटकी भर चूर्ण को त्रिकटु के साथ मिला कर शहद के साथ चाटा जाता है।
          6. पाचन की कमजोरी, अजीर्ण में, indigestion सुहागे की खील का चूर्ण चुटकी भर की मात्रा में लेते हैं।
          7. बढ़ी हुई तिल्ली में enlarged spleen, भुना हुआ सुहागा (30 ग्राम) + राई (100 ग्राम) के बारीक चूर्ण को मिलाकर छन्नी से छानकर अच्छे से मिला कर रख लेते हैं। इसे आधे चम्मच की मात्रा में फंकी की तरह दिन में दो बार दो महीने तक लेने से तिल्ली सामान्य हो जाती है। यह प्रयोग भूख बढ़ाता है और शरीर को बल देने सहयोग करता है।
          8. मजबूत दांतों के लिए, फुलाए हुए सुहागे के चूर्ण को मिश्री के साथ मिलकर दांतों पर मलते हैं।
          9. गले के बैठ जाने, आवाज़ बंद होने पर hoarseness of voice सुहागे के चुटकी भर चूर्ण को मुंह में रख कर acts magically in restoring the voice चूसा जाता है।
          10. चोट से खून बहने पर, bleeding टंकण के चूर्ण को उस पर छिडकने से खून का बहना रुक जाता है।
          11. मुखपाक stomatitis में, सुहागे की खील का शहद के साथ मिलाकर मुख के अन्दर लेप किया जाता है।
          12. योनी vagina में यदि घाव, फोड़े, फुंसी आदि हो तो इसके पानी से धोने से आराम होता है।
          13. पसीने की बदबू, अधिक पसीना आने में, स्नान के आखिर में सुहागे को पानी में घोल कर बाहरी रूप से प्रयोग करते हैं।
          14. वार्ट और कॉर्न पर सुहागे को पपीते के साथ लगाते हैं।

          सावधानी

          1. इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।
          2. इसके सेवन से मासिक स्राव ज्यादा हो सकता है।
          3. इसे 500 mg से ज्यादा मात्रा में नहीं लेना चाहिए।
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