गर्भ में शिशु करीब 38 सप्ताह रहता है, लेकिन गर्भावस्था (गर्भ) का औसत समय 40 सप्ताह गिना जाता है। इसका कारण यह है गर्भावस्था को मासिक न आने वाले महीने के पहले दिन से गिना जाता हैं जबकि गर्भाधान conception पीरियड के बीच में (दो हफ्ते बाद) होता है। पहली तिमाही सप्ताह 9-12 तक रहती है और उसके बाद दूसरी तिमाही शुरू हो जाती है। गर्भावस्था के चौथा महीना 13 सप्ताह से शुरू हो जाता है।
गर्भावस्था को तीन ट्राइमेस्टर में बांटा जा सकता है: Pregnancy is divided into three trimesters
पहली तिमाही First trimester: गर्भाधान से 12 सप्ताह (conception to 12 weeks / 1-3 months)
दूसरी तिमाही Second trimester: 13 से 26 सप्ताह (12 to 26 weeks / 3-6 months)
तीसरी तिमाही Third trimester: 27 से 40 सप्ताह (27 to 40 weeks / 6-9 months or till delivery)
Fourth month of pregnancy (13-16 weeks)
13 से 16 सप्ताह का समय गर्भावस्था का चौथा महिना होता है। इस समय मोर्निंग सिकनेस, जी मिचलाना आदि समस्या नहीं रहती और एनर्जी लेवल पहले से बेहतर होता है। गर्भ में शिशु की भौंहें, पलकें, और नाखून बन जाते हैं। बच्चा अब हाथ और पैर को फैला सकता है। बाहरी प्रजनन अंग का गठन हो रहा होता है तथा प्लेसेंटा/ नाल पूरी तरह से बन चुकी होती है। बाहरी कान भी विकसित होने लगते है। शिशु अब निगल सकता है और सुन भी सकता है। सकते हैं। गर्दन बन जाती है। गुर्दे काम करने लगते हैं और मूत्र का उत्पादन शुरू हो चूका है।
सप्ताह 13
बच्चे में अब इंसुलिन हार्मोन बनने लगा है जो की उसके रक्त में ग्लूकोज को नियंत्रित करता है।
शिशु अब 3 इंच लंबा है और करीब 30 ग्राम का है।
बच्चे की नाक और ठुड्डी बन गयी है।
बच्चा अपना मुंह खोल और बंद कर सकता है।
बच्चा अब लगातार हाथ और पैर हिलाता रहता है।
बच्चे के बाहरी जनन अंग बन चुके हैं।
अब बच्चे के सभी महत्वपूर्ण अंगों का तेज़ी से विकास हो रहा है।
सप्ताह 14
शिशु अब 3.42 इंच लम्बा है और करीब 43 ग्राम का है।
बच्चे की त्वचा अभी पारदर्शी है।
आंखे धीरे-धीरे अपनी जगह पर आ रही हैं।
नाक और अधिक स्पष्ट है।
कान पूरी तरह से विकसित हैं।
पहले बाल दिखाई देने लगे है।
गुर्दे मूत्र का उत्पादन कर रहे हैं।
लड़कियों में, अंडाशय श्रोणि की ओर नीचे जा रहे हैं।
लड़कों में, प्रोस्टेट ग्रंथि विकसित का विकास हो रहा है।
गर्भाशय और प्लेसेंटा बढ़ रहे हैं।
गर्भाशय का वज़न अब करीब 250 ग्राम है।
गर्भाशय नाभि के करीब ३ इंच नीचे तक पहुँच चुका है।
सप्ताह 15
शिशु अब 4 इंच (10 सेमी) इंच लम्बा है और करीब 75 ग्राम का है।
वह हाथों और पैरों को हिला सकता है।
बच्चे की त्वचा अभी भी बहुत पतली है।
मध्य कान का विकास हो रहा है।
बच्चे में टेस्ट बड्स काम करने लगे हैं और बच्चा समान के भोजन का स्वाद ले सकता है।
सप्ताह 16
शिशु अब 5 इंच (12 सेमी) इंच लम्बा है और करीब 100 ग्राम का है।
त्वचा के नीचे वसा का जमाव शुरू होने लगा है।
बच्चा अब सांस ले सकता है, सोता है, जगता है और बाहरी आवाजें सुन सकता है।
माँ का वज़न अब बढता है और पैरों में दर्द हो सकता है। इस समय से हर २-३ घंटे पर कुछ न कुछ पौष्टिक जैसे की फल, दूध, नारियल पानी आदि खाएं। कब्ज़ को दूर रहने के लिए पानी पियें, इसबगोल की भूसी भी ले सकती हैं। सप्ताह 16-20 के बीच आप बच्चे की हलचल, पैर मारना आदि महसूस कर सकती हैं।
प्रसूति / प्रसव, जिसे इंग्लिश में लेबर कहते हैं, वो प्रक्रिया है जिसके द्वारा गर्भ में पल रहा शिशु, जिसने शुरुआत डिम्ब और शुक्राणु से की थी, जन्म लेता है। इस प्रक्रिया के द्वारा न केवल बच्चे बल्कि एक माँ का जन्म भी होता है क्योंकि बच्चा जनने के बाद ही एक स्त्री, माँ कहलाती है।
गर्भाशय जो शिशु को नौ महीनों अपने तरल में रखता है, वह एक मांसपेशीय अंग है। इसमें होने वाले संकुचन बच्चे को बाहर धकेलते हैं। जब गर्भाशय ग्रीवा यानि की गर्भाशय की गर्दन खुल जाती और तब योनि के माध्यम से बच्चा बाहर आता है। कुछ ही देर में बच्चे को पोषण दने वाला प्लेसेंटा (नाल) भी बाहर आ जाता है और लेबर की प्रक्रिया पूरी होती है। पूरे लेबर में बहुत ही दर्द होता है और घंटों का समय लगता है।
पहले बच्चे के समय प्रसव में औसतन 12 से 18 घंटे लगते हैं जबकि दूसरे बच्चे में यह समय 7 घंटे माना जाता है। किन्तु यह याद रखना भी ज़रूरी है की हर प्रेगनेंसी अलग होती है और ज़रूरी नहीं जैसा एक प्रसव में हुआ है वैसा दूसरे में भी हो।
प्रसूति / प्रसव प्रक्रिया के तीन चरण Three Stages of Labor in Hindi
प्रथम चरण First Stage:
जिस अवधि के दौरान गर्भाशय ग्रीवा खुलती है और 0-10 सेंटीमीटर फैल जाती है।
सर्विक्स के फैलाव / dilatation के अनुसार लेबर को अर्ली लेबर, एक्टिव लेबर और ट्रांजीशन लेबर में बांटा गया है।
1. अर्ली लेबर Early labor: फैलाव 0-4 सेंटीमीटर, गर्भाशय ग्रीवा के खुलने की शुरुआत। संकुचन हर 5 से 30 मिनट पर और करीब 30 सेकंड के लिए।
2. एक्टिव लेबर Active labor: फैलाव 4-8 सेंटीमीटर, संकुचन हर 3 से 5 मिनट पर और करीब 45-60 सेकंड लिए।
3. ट्रांजीशन लेबर Transition: फैलाव 8-10 सेंटीमीटर, संकुचन हर 2 से 3 मिनट पर और करीब एक से डेढ़ मिनट लम्बे। 10 सेंटीमीटर से पूरा फैलाव जिससे नवजात बाहर आ सके।
दूसरा चरण Second Stage:
धक्के द्वारा बच्चे को बर्थ कैनाल में आगे बढ़ाने की अवधि जिससे योनि से होकर बच्चा जन्म ले सके।
गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से गर्भाशय में चली जाती है जिससे गर्भाशय और बर्थ कैनाल एक हो सकें।
सर्विक्स अब पूरी तरह से खुल चुला है।
संकुचन हर 2 से 5 मिनट पर आते है और करीब 2 मिनट तक रहते है। हर पुश / धक्के के साथ बच्चा बर्थ कैनाल में आगे बढ़ता है। प्रत्येक संकुचन बच्चे को धक्का दे कर आगे बढ़ाता है।
बच्चा प्यूबिक बोन के नीचे जाता है जहाँ से सिर दिखने लगता है। अब पुश करने को रोकने को कहा जाता है और डॉक्टर पेरिनियम पर काम कर उसे पीछे हटाते हैं और बच्चा निकाल लिया जाता है। गर्भनाल काट सी जाती है।
तीसरा चरण Third Stage:
नाल / प्लेसेंटा placenta का निष्कासन।
प्लेसेंटा गर्भाशय से अलग हो जाता है और योनि से डार्क ब्लड के साथ बाहर आ जाता है।
प्रसव शुरू होने के संकेत Signs of labor
यदि आप गर्भवती हैं और गर्भावस्था के किसी ही समय आपको निम्न लक्षण हो तो भी तुरंत हॉस्पिटल में जा कर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। किसी भी तरह की दिक्कत में हॉस्पिटल में बिना समय गवाएं आप का सही ट्रीटमेंट हो सकेगा। अगर गर्भ के पहले 28 सप्ताह पर योनि से पानी या खून जाने लगे तो यह संभावित गर्भपात के लक्षण है।
गर्भावस्था के अंत में या 9वें महीने में ब्रेक्सटन हिक्स संकुचन में वृद्धि हो जाती है। ब्रेक्सटन हिक्स कॉन्ट्रैक्शन वे संकुचन हैं जो पूरी गर्भावस्था में रुक-रुक का आते रहते है। इनमे दर्द नहीं होता। लेकिन लेबर शुरू होने में इसमें दर्द भी होता है। प्रसव के लक्षणों में शामिल है:
बच्चे का हिलना-डुलना कम हो जाना या बंद हो जाना
झिल्ली का फट जाना (कई मामलों में ऐसा नहीं होता)
योनि से खून जाना, खून जाने से पहले सफ़ेद डिस्चार्ज
नियमित अंतराल पर संकुचन, इन कॉन्ट्रैक्शन के आने का अंतराल छोटा होता जाता है
ऐंठन, पेट दर्द, मासिक जैसे दर्द
पीठ में दर्द का होना
पैर में दर्द होना, क्रैम्प आना
बेचैनी होना, पसीना अना
सर्विक्स / गर्भाशय की गर्दन का फ़ैलना
बहुत अधिक दर्द होना
यदि ऐसे लक्षण हों तो तुरंत ही हॉस्पिटल जा कर गाइनाकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए। गाइनाकोलॉजिस्ट, योनि की फिंगर जांच के द्वारा यह पता लगाते हैं की बच्चा नीचे की तरफ आ रहा है की नहीं और योनी का डाईलेशन कितना है। यदि लेबर शुरू हो चुका हो तो तुरंत ही हॉस्पिटल में एडमिट हो जाएँ जिससे बच्चे का जन्म सही से डॉक्टरों की देख-रेख में हो सके।
लिम्सी एक ऐलोपथिक विटामिन सी का सप्लीमेंट है जो की ओवर द काउंटर OTC ड्रग (बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के) उपलब्ध है। इसके सेवन से विटामिन सी की दैनिक ज़रूरत पोरी हो जाती है।
इस पेज पर इस दवा के बारे बताया गया है जो की केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है।
Limcee is an allopathic supplement for preventing and curing deficiency of vitamin c in body.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
विटामिन सी की कमी के लक्षणों में शामिल हैं, थकान, कमजोरी, मसूड़े की सूजन, मसूड़ों से खून आना, त्वचा पर छोटे लाल या बैंगनी रंग के धब्बे, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में दर्द, एनीमिया, घाव न भरना आदि।
लिम्सी के स्वास्थ्य लाभ
यह एंटीऑक्सीडेंट है और फ्री रेडिकल के हानिकारक प्रभावों से बचाता है।
यह कोलेजन के संश्लेषण, न्यूरोट्रांसमीटर और carnitine के लिए आवश्यक है।
यह पाचन तंत्र से लोहे के अवशोषण के लिए जरूरी है।
यह इम्युनिटी को बढ़ा देता है और बार-बार होने वाले आम सर्दी से बचाता है।
यह केशिकाओं, हड्डियों, दांतों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
लिम्सी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Limcee tablet
विटामिन सी की कमी को रोकने और अगर की है तो उसे दूर करने के लिए
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Limcee tablet
इसे दिन में एक बार चबा के लें। इसे दिन में कभी भी ले सकते हैं।
दुष्प्रभाव
निर्धारित मात्रा में लना पूरी तरह से सुरक्षित है।
ज्यादा मात्रा में सेवन स्त, मतली, और पेट में ऐंठन का कारण हो सकता है।
बादाम Almonds को तो सभी जानते है। यह एक सूखा मेवा / ड्राई फ्रूट dry fruit है। यह बहुत ही पौष्टिक होता है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करता है। इसमें प्रोटीन, वसा, लोहा, कैल्शियम, फोस्फोरस और कैल्शियम होता है। बच्चे, बड़े सभी के लिए यह बहुत लाभप्रद है।
बादाम का वैज्ञानिक नाम प्रूनस अमाईगडैलस Prunus amygdalus या अमाईगडैलस कम्युनिस Amygdalus communis है और यह गुलाब-कुल का पेड़ है। बादाम ठंडी जगहों पर उगता है। इसका पेड़ आड़ू के पेड़ जैसा होता है। यह कभी कभी 12.2 मीटर की ऊंचाई का भी हो सकता है। बादाम के कच्चे फल, अपरिपक्व आड़ू जैसे दिखते है और समूहों में पाये जाते है। बादाम शीतोष्ण क्षेत्र जहाँ शुष्क गर्मी पड़ती हैं का एक पेड़ है। इसकी कश्मीर (भारत), बलूचिस्तान (पाकिस्तान), अफगानिस्तान, ईरान, साइप्रस, तुर्की, स्पेन और कैलिफोर्निया (यूएसए) में खेती की जाती है।
चरक और सुश्रुत ने वाताम नाम से इसका वर्णन किया है और इसे अकेले ही या अन्य घटक के साथ आंतरिक दुर्बलता debility, एनीमिया anemia कमजोरी weakness को दूर करने के लिए और शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया। बादाम का सेवन शक्ति और वीर्य को बढ़ाता है। यह अत्यधिक पौष्टिक, शांतिदायक और टॉनिक है। यह मूत्रवर्धक माना जाता है। इसे आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने जैसे की अमृतप्राश घी, में भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक विद्वानों के अनुसार बादाम ईरान से आना वाला बादाम सबसे अच्छा माना है।
बादाम की दो प्रजातियाँ होती है, मीठे बादाम sweet almond और कड़वे बादाम bitter almond। दोनों के पेड़ों को अंतर नहीं होता। मीठे बादाम को ही खाने के लिए प्रयोग किया जाता है। कड़वे बादाम में साईनोजेनिक ग्लाइकोसाइड- अमाईगडेलिन amygdalin पाया जाता है, जिस कारण यह जहरीला होता है। कडवे बादाम का पेस्ट बालों में लगाने से जुएँ मर जाती हैं। कड़वे बादाम को केवल बाहरी प्रयोग के लिए प्रयोग किया जाता है।
बादाम का तेल, बादाम से कोल्ड प्रेस cold press oil of almond kernel, kernel oil करके निकाला जाता है। इसका रंग हल्का पीला होता है। इसकी गंध अच्छी होती है और स्वाद फीका नटी होता है। इसमें Vit B1, B2, B3, E, वसा और मिनरल्स होते हैं।
यूनानी में बादाम के तेल को रोग़न बादाम शीरीन Roghan Badam और इंग्लिश में इसे आलमंड आयल कहते हैं। बादाम के तेल को पीने से शरीर मजबूत होता है। यह शरीर की आंतरिक रुक्षता internal dryness को भी दूर करता है। इसकी कुछ बूंदों को नाक में डाल देने से रुक्षता के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर होता है। बादाम का तेल सभी प्रकार के दर्द और कोलिक में फायदा करता है। यह नर्व्स के लिए एक टॉनिक Nervine tonic है।
बादाम के तेल में निम्नलिखित मुख्य गुण पाए जाते हैं:
बैक्टीरिया को न बढ़ने देना Antibacterial
जलन, सूजन से राहत देने वाला Demulcent
मुलायम करने वाला Emollient
विरेचक Laxative
बादाम का तेल निम्न रोगों में लाभप्रद है:
ब्रोन्कियल रोग bronchial diseases
कफ cough
आवाज़ बैठना hoarseness
कब्ज़ Constipation
ज्यादा कोलेस्ट्रोल High Cholesterol
बाहरी रूप से त्वचा का रूखापन, मालिश के लिए, आँखों के नीचे काले घेरे
नस्य की तरह नाक में सिर के दर्द के लिए
बादाम का तेल पौष्टिक, वाजीकारक, कामेच्छा को बढ़ाने वाला, हल्का विरेचक, और सिर के दर्द को दूर करने वाला होता है।
बादाम का तेल 3-5 ml मात्रा में लिए जाता है।
बादाम खाने के लाभ Health Benefits of Badam in Hindi
यह शरीर को पोषण और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
यह पित्त और वात को रोकता है।
यह दिमाग और नर्वस सिस्टम के लिए बहुत ही अच्छा भोजन है।
बादाम स्वास्थ्य के लिए एक टॉनिक है
यह दर्द और सूजन को दूर करता है।
यह वज़न और इम्युनिटी को बढ़ाता है।
यह लीवर की रक्षा करता है।
इसमें करीब 60 % वसा, 21 % प्रोटीन, बी विटामिन और 3 % मिनरल्स (मुख्यतः आयरन, फॉस्फोरस और कैल्शियम) होते हैं। इसमें ओक्सालिक एसिड भी पाया जाता है।
यह विटामिन ई Vitamin E का बहुत समृद्ध स्रोत है।
यह कब्ज़ को दूर करता है।
इसके सेवन से त्वचा की रंगत साफ़ होती है।
Medicinal Uses of Sweet Almond in Hindi
बादाम स्वास्थ्य के लिए बड़े फायदेमंद है. लेकिन इन्हें पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति चाहिए। इसको सुपाच्य करने के लिए, खाने से पहले इसे रात भर पानी में भिगो दें। सुबह बाहरी भूरा छिलका हटा दें और पत्थर पर घिस कर इसका सेवन करें। शुरू में बादाम का पेस्ट करीब आधा चम्मच की मात्रा में, दिन में दो बार दूध के साथ लें। धीरे धीरे मात्रा को बढ़ाएं।
पुरुष बादाम के पेस्ट के साथ पांच ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण Ashwagandha Powder लें और महिलायें पांच ग्राम शतावर का चूर्ण Shatavari Churna ले सकती हैं।
१. शीघ्र पतन में premature ejaculation
बादाम के पेस्ट में 4-5 काली मिर्च black pepper, दो ग्राम सोंठ dry ginger और मिश्री मिलाकर चाटें। ऐसा २-३ महीने करें।
बादाम के पेस्ट के साथ पांच ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण और पिप्पली Piper longum, दूध, व मिश्री के साथ लें।
२. वज़न बढाने के लिए, दुबलापन, कम वज़न
बादाम के पेस्ट को मक्खन के साथ कुछ महीने खाएं।
३. पीठ में दर्द, सफ़ेद पानी, कमजोरी
पांच से छः बादाम पत्थर पर घिस कर लें।
४. बच्चों की मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए, याददाश्त की कमी, दिमागी कमजोरी
पांच से छः बादाम पत्थर पर घिस कर लें।
बादाम + सौंफ + मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर लें।
५. सिर का दर्द, माइग्रेन
कुछ बादाम चबा कर खाएं।
नाक में बादाम के तेल की कुछ बूँदें डालें।
६. मुहांसे, रंगत सुधारना
बादाम को घिस कर दूध के साथ मिलाकर लगायें।
बादाम पेस्ट + हल्दी पाउडर चुटकी भर + पपीते का पेस्ट, मिलाकर लगायें।
बादाम को रात में भिगो दें, सुबह दूध में पेस्ट बनाकर लागएं।
७. जले पर, रूखी त्वचा पर
बादाम का तेल लगायें।
८. पेप्टिक अल्सर
बादाम भिगो कर खाएं।
९. पेशाब की जलन, कम पेशाब होना
रात को 5-6 बादाम पानी में भिगो दें और सुबह छील कर छोटी इलाइची के पाउडर और मिश्री के साथ खाएं।
१०. तुतलाना, हकलाना
रात को 5-6 बादाम पानी में भिगो दें और सुबह छील कर मक्खन के साथ खाएं।
११. सूखी खांसी
बादाम मुंह में रख कर चूसें।
१२. सुजाक
बादाम की गिरियाँ 6 + चन्दन का बुरादा 3 ग्राम + मिश्री 10 ग्राम को पत्थर पर रगड़ें और दिन में दो बार, सुबह-शाम खाएं।
१४. चक्कर आना
रात को 5-6 बादाम पानी में भिगो दें और सुबह छील लें। इसमें तीन छोटी इलाइची + तीन काली मिर्च मिलाकर दूध के साथ लें।
Cautions / Side-effects
आयुर्वेद के अनुसार, बादाम में तेल होता है और यह कफ को बढाता है।
बादाम का सेवन पाचन शक्ति के अनुसार ही किया जाना चाहिए ।
इसके सेवन से यदि भूख लगना कम हो या पाचन में किसी भी तरह की दिक्कत हो तो मात्रा को कम करें।
बादाम को गर्भावस्था में ज्यादा मात्रा में नहीं खाना चाहिए।
कड़वे बादाम में हाइड्रोसाइनिक एसिड hydrocyanic acid होता है। इसे नहीं खाना चाहिए।
बादाम पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति चाहिए। इसको सुपाच्य करने के लिए, खाने से पहले इसे रात भर पानी में भिगो दें। सुबह बाहरी भूरा छिलका हटा दें और पत्थर पर घिस कर इसका सेवन करें।
एस्पिरिन, ऐसिटाईल सैलिसिलिक एसिड acetylsalicylic acid compound यौगिक / कंपाउंड का आम भाषा में प्रयोग किया जाना वाला नाम है। यह एलोपैथिक दवाई है जो शरीर में बुखार, दर्द और सूजन दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसमें दर्द निवारक analgesic, सूजन दूर करने anti-inflammatory के और बुखार कम करने के antipyretic गुण हैं। Aspirin is the common name for the acetylsalicylic acid. It has anti-inflammatory, analgesic and antipyretic agent.
एस्पिरिन और सैलिसिलिक एसिड का प्रयोग दवा के रूप में हजारों साल से होता आया है। लगभग 2400 साल पहले, हिप्पोक्रेट्स, प्राचीन यूनानी चिकित्सक, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा का जनक माना जाता है, ने विलो पेड़ की छाल को नेत्र रोगों और दर्द के इलाज़ के लिए प्रयोग किया। विलो पेड़ों की छाल में सैलिसिलिक एसिड होता है तथा सैलिसिलिक शब्द को भी विलो पेड़ों के जीनस सेलिक्स Salix, से लिया गया है।
एस्पिरिन तैयार करने के लिए, सैलिसिलिक एसिड को एसिटिक एनहाइड्राइड acetic anhydride से रियक्त कराया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी स्ट्रांग एसिड की कम मात्रा में एक उत्प्रेरक catalyst की तरह (जो प्रतिक्रिया को तेज़ करता है) प्रयोग किया जाता है। प्रतिक्रिया में एसिटिक एसिड व एस्पिरिन उत्पाद बनता है। एस्पिरिन उत्पाद क्योंकि पानी में बहुत घुलनशील नहीं है इसलिए यह नीचे बैठ जाता है और चूंकि एसिटिक एसिड पानी में बहुत घुलनशील है, तो इसे बहुत सरलता से अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार बनी एस्पिरिन अभी अशुद्ध crude aspirin है। इसे शुद्ध करने के लिए गर्म इथेनॉल में इस कच्चे उत्पाद का रीक्रिस्टलाइज़ेशन किया जाता है।
तीसरी तिमाही में प्रेगनेंसी केटेगरी (when taken in full dose):
केटेगरी डी Category D – मानव भ्रूण पर इस दवा का प्रतिकूल असर positive evidence of human fetal risk होता है।
एस्पिरिन के चिकित्सीय प्रयोग
दर्द Mild to moderate pain
जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द Joint or muscular pain
माइग्रेन Migraine
बुखार Fever
सूजन Swelling
खून को पतला करने के लिए Blood thinning
कम मात्रा में इसका प्रयोग हृदय रोगों, खून का थक्का न बने आदि में किया जाता है।
इकोस्प्रिन ७५ Ecosprin-75 में एस्पिरिन की मात्रा 75 mg की होती है। Ecosprin AV 75/10 and 75/20, में एस्पिरिन 75 mg के साथ एटोरवास्टेटिन atorvastatin क्रमशः 10 mg और 20 mg की मात्रा में होता है।
इसी प्रकार से उपलब्ध दवा Ecosprin AV 150/20 mg में एस्पिरिन 150 mg और एटोरवास्टेटिन atorvastatin 20 mg की मात्रा में होता है। ये दवाएं एंटीप्लेटलेट होती है और खून का थक्का बनने से रोकती हैं। इन्हें स्ट्रोक के खतरे, स्टंट लगने पर, दर्द और सूजन से राहत के लिए तथा बुखार में डॉक्टर के निर्देश से लिए जाता है।
एस्पिरिन की सेवन मात्रा
एस्पिरिन या ऐसिटाईलसैलिसिलिक एसिड, 75 mg, 100 mg, 300 mg, 500 mg की टेबलेट के रूप में उपलब्ध है।
वयस्क इसकी 3 से 6 ग्राम की मात्रा एक दिन में, चार खुराकें कर के, ले सकते है।
बच्चे, जिनका वज़न 20 kg से ज्यादा है को, इसकी 25 to 1000 mg/kg/day in 4 divided doses दी जा सकती है।
बुखार में इसका सेवन १-३ दिन तक किया जाता है। इसकी 325-650 mg की गोली हर 4-6 घंटे पर ली जाती है। एक दिन में 4 ग्राम से ज्यादा की मात्रा बुखार के दौरान नहीं ली जानी चाहिए।
जोड़ों के विकारों में musculoskeletal and joint disorders इसकी शुरू में 2.4-3.6 ग्राम की मात्रा / दिन और रखरखाव के लिए 3.6-5.4 ग्राम / दिन दी जाती है।
माइग्रेन में इसकी 300-500 mg की गोली ली जा सकती है।
एक दिन में ली जा सकने वाली मात्रा
बड़ों के लिए इसकी एक दिन में ली जाने वाली अधिकतम मात्रा 6 gram और बच्चों के लिए वज़न के अनुसार, 100 mg / kg /day है।
Contraindications, Precautions and Side effects
जिन्हें एस्पिरिन से एलर्जी हो, पेप्टिक अल्सर हो, हेमरेज की समस्या हो वे इसका सेवन न करें।
जिन्हें अस्थमा की शिकायत हो, वे इसका सावधानी से प्रयोग करें।
एस्पिरिन शिशुओं को नहीं दी जाती।
इसे अतिसंवेदनशीलता, सक्रिय पेप्टिक अल्सर, अस्थमा, पित्ती, गर्भावस्था की तीसरी तिमाही,12 वर्ष से छोटे बच्चे, हीमोफीलिया या रक्तस्रावी रोग, गठिया, गंभीर गुर्दे या यकृत रोग, आदि में प्रयोग नहीं करना है।
निर्देशित मात्रा से ज्यादा का सेवन हानिकारक है। यह एलर्जी, पेट में दर्द, अल्सर, हेमरेज, चक्कर आना, कान में आवाज़ आना आदि दिक्कतें पैदा करता है।
डेंगू के मौसम में बुखार के लिए एस्पिरिन का प्रयोग बिलकुल न करें। डेंगू के बुखार में हेमरेज हो सकता है। एस्पिरिन का सेवन खून को पतला करता है, थक्का नही जमने देता और इसलिए यह रक्तस्राव की संभावना को बढ़ा देता है।
इसे दूसरी एंटीकोगुलेंट, और सूजन दूर करने वाली दवाओं के साथ न लें।
इसे खाली पेट न लें।
इसे बहुत सारे पानी के साथ लें।
इसे फुल डोज़ में गर्भावस्था न लेने की सलाह है। कुछ मामलों में कम मात्रा में इसे डॉक्टर दे सकते हैं।
एप्पल साइडर विनेगर या सेब का सिरका, सेब के किण्वन fermentation द्वारा बनाया जाता है। फर्मंटेशन प्रक्रिया fermentation के दौरान, सेब में मौजूद चीनी बैक्टीरिया और यीस्ट के द्वारा पहले अल्कोहल और फिर सिरका में बदल दी जाती है। इस सिरका में एसिटिक एसिड व कुछ मात्रा में लैक्टिक, साइट्रिक और मैलिक एसिड होता है। सेब का सिरका विविध रोगों में लाभप्रद है।
By Phongnguyen1410 (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commonsसेब के सिरके को बहुत ही प्राचीन समय से मिस्त्र, ग्रीस और रोमन के द्वारा प्रयोग किया जाता रहा है। सेब का सिरका शरीर में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाता है। यह शरीर में एसिड-एल्कलाइन / अम्ल-क्षार acid-alkaline balance के संतुलन को बनाये रखने में मदद करता है। सेब का सिरका स्वाद में खट्टा होता है। इसमें एसिटिक एसिड की मात्रा अधिक होती है जिस कारण यह शरीर में खनिजों का अवशोषण mineral absorption बढ़ा देता है। ऐसे तो यह स्वाद में एसिडक acidic होता है पर यह पाचन के बाद क्षारीय alkaline हो जाता है और शरीर में अम्लता को कम करता है। स्वस्थ्य शरीर के लिए शरीर में एसिड की मात्रा कम व क्षार की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।
यह शरीर में वात को कम करता है। यह पित्त के स्राव को बढ़ाता है। इसका सेवन मोटापा कम करता है, खून को साफ़ करता है, पाचन को सही करता है और शरीर की गंदगी को निकालने में मदद कर त्वचा को सुन्दर बनाता है।
इसे आप सलाद की ड्रेसिंग की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जो सिरका फिल्टर्ड filtered होता है वह एकदम साफ़ सा दिखता है जबकि बिना फ़िल्टर unfiltered किया हुआ सिरका भूरा होता है और इसमें कुछ तैरता हुआ सा भी दीखता है। तैरने वाला पदार्थ सेब में पाए जाने वाले पेक्टिन व अन्य पदार्थ होते हैं। बिना किसी प्रोसेसिंग और बिना फ़िल्टर किया हुआ सिरका ही स्वास्थ्य के बेहतर है क्योंकि इसमें मिनरल्स, एमिनो एसिड्स और विटामिन्स पाए जाते हैं।
सेब का सिरका क्यों फायदेमंद है? Why Apple Cider Vinegar is Beneficial?
एप्पल सीडर विनेगर में ऐसे बहुत से पदार्थ पाए जाते हैं जो इसे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद बनाते हैं। इसमें कैल्शियम, लोहा, पोटैशियम, मिनरल्स आदि होते हैं। इसके मुख्य घटकों में शामिल हैं:
पोटैशियम
एसिटिक एसिड
मैलिक एसिड
पेक्टिन
सेब का सिरका एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसमें बीटा कैरोटीन, विटामिन A, B1, B2, B6, C और E पाया जाता है। इसमें मिनरल्स कैल्शियम, मैगनिशियम, फॉस्फोरस, सल्फर कॉपर, सिलिका, आदि पाए जाते हैं। इसमें पेक्टिन होने के कारण यह पाचन को ठीक करता है, कोलेस्ट्रोल को कम करता है और शरीर से टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है। क्योंकि यह एक सिरका है यह यूरिक एसिड uric acid को कम करता है जो की जोड़ों में जमा रहता है।
क्योंकि यह मिनरल्स का अवशोषण कराने में सहायक है यह नाखूनों के टूटने में सहायक है।
सेब के सिरके के लाभ Health Benefits of Apple Cider Vinegar
यह शरीर के pH को सही करता है।
यह उलटी, एसिडिटी, और पाचन की कमजोरी में लाभ प्रद है।
यह जोड़ों के दर्द में आराम देता है।
यह मधुमेह में ग्लूकोस के लेवल को कम करता है।
यह रक्तचाप को कम करता है।
यह सिर दर्द में राहत देता है।
यह कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करता है।
यह कैंसर सेल्स की ग्रोथ को रोकता है।
यह सूजन और दर्द में राहत देता है।
यह फंगस, यीस्ट, और बक्टेरिया की ग्रोथ को रोकता है।
यह रूसी को दूर करता है और बालों को चमक देता है।
यह मेटाबोलिज्म को तेज़ कर, वज़न को कम करता है।
यह खून को साफ़ करता है।
यह खून को बहुत गाढ़ा और चिपचिपा नहीं होने देता।
यह शरीर के महत्वपूर्ण अंगों गुर्दे, मूत्राशय, यकृत आदि के सही तरीके से काम करने में मदद करता है।
यह इम्युनिटी को ठाक करता है।
यह कब्ज़ के लक्षणों में राहत देता है।
सेब के सिरके के प्रयोग Medicinal Uses of Apple Cider Vinegar
1.पाचन की कमजोरी, लीवर को डीटोक्स करना Detoxifying liver
सेब का सिरका पाचक रसों के स्राव को बढ़ाता है और लीवर से जहरीले पदार्थों को दूर करने में मदद करता है। एक चम्मच सेब का सिरका और १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पियें।
2. मोटापा, कोलेस्ट्रोल का बढ़ जाना, बढ़ा हुआ ट्राइग्लिसराइड, पेट पर चर्बी Obesity
सुबह उठ के सेब के सिरके को पानी में मिला कर पीने ने से शरीर में जमी अतिरिक्त चर्बी कम होती है। यह कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है। इसे आप शाम को भी पानी में मिलाकर पी सकते हैं।
3. डायबिटीज
सोने से पहले २ टेबलस्पून सिरका को पानी में मिलाकर लें।
4. उच्च रक्तचाप
हाई ब्लड प्रेशर में सेब के सिरके और शहद को एक कप गर्म पानी में मिलाकर पीने से वैसोडायलेटेशन होता है जिससे रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद होती है।
सुबह शाम खाने से १० मिनट पहले १ गिलास पानी में ५-१० मिली मिला कर रोजाना पियें|
6. पाइल्स Piles
एक चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में मिलाकर खाना खाने से पहले लें।
7. हिचकी Hiccups
एक चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में मिलाकर बिना रुके पियें।
8. योनिशोथ vaginitis, यीस्ट इन्फेक्शन
४ चम्मच सिरका २ कप पानी में मिलाकर प्रभावित हिस्से को धोएं।
9. बालों का सफ़ेद होना, गिरना Hair care
एक चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में मिलाकर लें। गंजेपन से प्रभावित हिस्से पर लगायें।
10. बालों की देखभाल
यह बालों के लिए अच्छा कंडीशनर है। यह बालों को साफ़ करता और जर्म्स को भी नष्ट करता है। इसे पानी में मिलाकर बालों पर प्रयोग किया जा सकता है।
11. रूसी Dandruff
एक छोटा चम्मच सेब का सिरका लेकर हल्के हाथों से सिर की त्वचा पर मालिश करें।
1/4 कप सिरके को इतने ही पानी में मिलाकर स्प्रे बोतल में भर लें और सिर पर स्प्रे करें। फिर एक साफ़ तौलिया लपेट लें। और १५ मिनट से १ घंटा तक छोड़ दें। फिर बालों को पानी से धो लें ऐसा सप्ताह में २ बार करें।
12. पेशाब का इन्फेक्शन Urinary Tract Infection
एक गिलास पानी में २ चम्मच सिरका और शहद मिलाकर पियें।
13. आर्थराइटिस, जोड़ों का दर्द Joint Pain
एक गिलास पानी में 1 टेबलस्पून सिरका मिलाकर दिन में तीन बार पियें, यह आर्थराइटिस के दर्द में आराम देगा।
14. नकसीर, एक्जिमा Nose bleed, Eczema
कुछ दिनों तक एक गिलास पानी में 1 चम्मच सिरका मिलाकर दिन में तीन बार पियें।
पानी में मिलाकर सिरके को प्रभावित जगह पर लगाएं। नमक का सेवन न करें।
15. वैरीकोस वेंस Varicose Veins
एक कपडे में सिरका लगाकर प्रभावित जगह पर लगायें। गर्म पानी में सिरका मिलकर पियें।
16. शरीर से गंदगी बाहर निकालने के लिए Blood purification
सेब का सिरका २ चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार लें।
17. फंगल इन्फेक्शन Fungal infection
सेब का सिरका पानी में मिलके प्रभावित जगह पर लगायें।
18. फेफड़े और गले में संक्रमण, खांसी, कफ Respiratory Ailments
लहसुन की ५-१० कलियाँ लेकर काट कर एक कप सिरके में रात भर दाल कर छोड़ दें। सुबह इसमें स्वाद अनुसार शहद मिलाएं। दिन में कई बार एक चम्मच की मात्राम में इसका सेवन करें।
ज्यादातर लोग सिरके को एक टीस्पून या एक टेबलस्पून की मात्रा में दिन १ से ३ बार ले सकते हैं। इसे सलाद में भी डाल सकते हैं। इसे पानी में मिलाकर ही लेना चाहिए। इसमें शहद भी डाला जा सकता है।
सावधानियां
सिरके को हमेशा पानी में मिलाकर ही पियें क्योंकि यह एसिडिक होता है और दांत के एनामल और मुंह के टिश्यू को नुकसान पहुंचा सकता है।
लम्बे समय तक ज्यादा मात्रा में इसका सेवन शरीर में पोटासियम की मात्रा blood potassium levels (hypokalemia) को व बोन डेंसिटी bonemineral density को कम कर सकता है।
जिन्हें सेब से एलर्जी हो वे इसका सेवन न करें।
यह मूत्रल, डायबिटीज हृदय रोग और विरेचक दवाओं के असर को प्रभावित कर सकता है।
इसका ज्यादा मात्रा में सेवन पेट, ड्यूडनम और लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है।
निशोथ एक औषधीय लता है। यह प्रायः उद्यानों, जंगलों में पायी जाती है तथा औषधीय प्रयोजनों के लिए उगाई जाती है। इसे आयुर्वेद में मुख्य रूप से एक विरेचक laxative के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अधिक मात्रा में प्रयोग से बहुत अधिक विरेचन purgation होता है। भारत में पाये जाने वाले निशोथ को इंडियन जलापा Indian Jalapa भी कहते है। इसके गुणधर्म, संघटक ट्रू जलापा True Jalapa जैसे ही है। ट्रू जलापा, मेक्सिको में पाये जाने लता की जड़ है। यह जलापा का सही और अच्छा विकल्प है।
By J.M.Garg – Own work, GFDL, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=5706086
निशोथ की लता, नम भूमि में पायी जाती है। वर्ष ऋतु में इसमें सफ़ेद फूल आने लगते है। फूलों का आकार घंटे के आकार जैसा होता है। इसकी बेल की लकड़ी में तीन धारें होती है। इसके फल गोल- गोल होते हैं। इसकी जड़ें काष्ठगर्भा होती है। मूल को तोड़ने पर सफ़ेद दूध निकलता है। स्वाद में यह पहले मीठा फिर कटु होता है। इसकी अपनी एक गंध होती है। निशोथ के लता, पुष्प और जड़ों के आधार पर इनके श्वेत, कृष व रक्त भेद माने गए हैं। काले निशोथ की बेल, सफ़ेद निशोथ जैसी ही होती है अपर इसके फूल काले, पत्ते और फल कुछ छोटे होते हैं।
निशोथ की मुख्य जड़ को ही औषधीय प्रयोग के लिए लेना चाहिए।
अंग्रेज़ी: Indian Jalap, Turpeth, Terpeth Root, False Jalap जैलाप
शरीर पर मुख्य प्रभाव
गर्भान्तक abortifacient/ induces abortion
रोगाणुरोधी antimicrobial
वमनकारी emetic
कफ निकालने वाला expectorant
हिपटोप्रोटेक्टिव protects liver
विरेचक और दस्तावर laxative and purgative
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
रस (taste on tongue): मधुर, कटु, तिक्त, कषाय
गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण
वीर्य (Potency): उष्ण
विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म:
विरेचक: रेचन करने वाला
कफहर: कफ दूर करने वाला
पित्तहर: पित्त कम करने वाला
वातल: शरीर में वात बढ़ाने वाला
ज्वरहर: बुखार दूर करने वाला
भेदनीय: शरीर में जमे मल और कफ को निकालने वाला
निशोथ की प्रजातियाँ
निशोथ की दो मुख्य प्रजातियाँ हैं, श्वेत और श्यामा। श्वेत त्रिवृत की जड़ें सफ़ेद या कुछ लाल से रंग की होती हैं जबकि काले त्रिवृत की जड़ों का रंग काला होता है।
सफ़ेद त्रिवृत को आयुर्वेद में श्वेता, अरुणा, अरुणाभ, त्रिवृत्ता, त्रिपुता, सर्वानुभूति, सरला, निशोथा, रेचनि कहते है। हिंदी में इसे सफ़ेद निशोथ, बंगाली में श्वेत तेऊडी, मराठी में निशोतर, गुजराती में धोली नसोतर, फ़ारसी में तुखुद, कन्नड़ में तिगडे, इंग्लिश में टरबीथ रूट तथा लैटिन में आइपोमिया टरपेथम के नाम से जानते हैं।
काले त्रिवृत का लैटिन में नाम कनवोलवुस टरपेथम है। इसे आयुर्वेद श्यामा, कृष्ण त्रिवृत, अर्ध्रचंद्र, पालिंदी, मसूरविद्ला, कोलकैषिका, कालमेषिका, कहते हैं।
श्वेत निशोथ, विरेचक, मधुर, गर्म, रूक्ष, होता है। यह ज्वर, कफ, सूजन, कब्ज़ तथा उदर रोगों का नाशक माना गया है।
श्यामा त्रिवृत, सफ़ेद त्रिवृत से अधिक दस्तावर होता है। इसे बेहोशी, जलन, मद, भ्रम, तथा कंठ को खराब करने वाला माना गया है।
औषधीय मात्रा
निशोथ की औषधीय मात्रा 1-3 ग्राम है।
दवाई की तरह सफ़ेद निशोथ का प्रयोग ही किया जाना चाहिए।
औषधीय उपयोग
निशोथ मूल का प्रधान कर्म विरेचक और दस्तावर का है। इसे अकेले ही या अन्य औषधीय द्रव्यों के साथ प्रयोग किया जाता है।
इसे हरीतकी के साथ आमवात, पक्षाघात, मनोविकार, वातशोध, तथा कुष्ठ रोगों में प्रयोग किया जाता है।
इसे काबुली हरड़ के साथ मिलाकर देने से पागलपन, उन्माद, मिर्गी जैसे रोगों में लाभ होता है।
सोंठ के साथ २-३ ग्राम की मात्रा देने पर खांसी, कफ, दूर होता है। इससे कफ ढीला होकर बाहर निकल जाता है।
जोंडिस / पीलिया में इसे ३ ग्राम की मात्रा में मिश्री के साथ लेना चाहिए।
सावधानी
यह तासीर में गर्म है।
इसे गर्भावस्था में प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह गर्भपात का कारण बन सकती है।
इसे १२ साल से छोटे बच्चों में प्रयोह नहीं किया जाना चाहिए।
यह विरेचक है। इसका अधिक मात्रा में प्रयोग स्वास्थ्य ]के लिए हानिप्रद है।
यह वात को बढ़ाती है।
अधिक मात्रा में इसका सेवन दस्त, गुदा से खून आना, उलटी, पेट में दर्द, सीने में दर्द, पानी की कमी, चक्कर आना और बेहोशी कर सकता है।
जिंक सल्फेट को दस्त में ओरएस ORS घोल के साथ प्रयोग किया जाता है। यदि खूनी दस्त हो तो भी इसे एंटीबायोटिक के साथ दिया जाता है। इसका सेवन शरीर में जिंक की कमी दूर होती है। जिंक का प्रयोग बच्चों में बार-बार होने वाले दस्त / डायरिया की दर को करीब २५ प्रतिशत तक कम करता है। इसके सेवन पर दस्त जल्द ठीक होने में मदद होती है। इसके अतिरिक्त दस्त होने हर इसका प्रयोग शरीर में जिंक की कमी नहीं होने देता।
जिंक या जस्ता बच्चे के समग्र स्वास्थ्य और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। दस्त के दौरान बहुत सा जिंक शरीर से निकल जाता है। जिंक शरीर में बहुत से महत्वपूर्ण काम करता है। यह बढ़वार, इम्युनिटी, प्रोटीन संश्लेषण, और घाव के ठीक होने मदद करता है।इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं और शरीर को भिन्न रोगों से बचाता है।
उपचारात्मक कार्रवाई
सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक की कमी दूर करना
चिकित्सीय प्रयोग
5 वर्ष की उम्र से छोटे बच्चों में डायरिया होने की स्थिति में मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा oral rehydration therapy के साथ जिंक सल्फेट का प्रयोग जिंक की कमी को तथा दस्त के उपचार में सहायक है।
जिंक का प्रयोग स्टूल की मात्रा को भी कम करता है। यह लगातार दस्त रहने की अवधि और गंभीरता को कम करता है।
उपलब्धता
20 मिलीग्राम की गोली
20 मिलीग्राम / 5 मिलीलीटर का सिरप
खुराक और अवधि
6 महीने से छोटे बच्चे: 10 मिलीग्राम दिन में एक बार (1/2 गोली या 1/2 छोटा चम्मच एक बार रोज़ ) 10 दिनों के लिए
6 महीने से 5 साल तक के बच्चे: 20 मिलीग्राम दिन में एक बार (1 गोली या 1 चम्मच एक बार) 10 दिनों के लिए
एक चम्मच में आधा गोली या पूरी गोली को एक चम्मच या कटोरी में रख के घुला दें और बच्चे को दें।
सावधानियों
निर्धारित मात्रा में प्रयोग पर इसका कोई साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।
यदि सेवन के 30 मिनट के भीतर उल्टी हो जाए तो जिंक फिर से दें।
इसे आयरन के सप्लीमेंट के साथ न दें। दोनों को देने में करीब 2 घंटे का अंतर रखें।
चिरायता को संस्कृत में किराततिक्त, किरात, कटूतिक्त, किरातक, काण्डतिक्त, अनार्यतिक्त, भूनिम्ब, रामसेनक आदि नामों से जाना जाता है। चिरायते को बंगाली में चीरता, चीरता, नेपाली नीम, मराठी में किराइत, गुजराती में कटीयातुं, और इंग्लिश में चिरेता कहते हैं। लैटिन भाषा में इसका नाम स्वर्शिया चिरेटा है।
By Satheesan.vn (Own work)[ CC-BY-SA-3.0 or GFDL], via Wikimedia Commonsयह स्वाद में कटु और तिक्त होता है। नेपाल में पाया जाने वाला चिरायता अर्धतिक्त कहलाता है क्योंकि इसकी तिक्ता कुछ कम होती है।
चिरायता को बहुत पुराने समय से आयुर्वेद में दवाई की तरह प्रयोग किया जाता रहा है। चरक और सुश्रुत में पूरे पौधे का पेस्ट / काढ़ा, रक्त साफ़ करने के लिए, विष के उपचार में, पुराने चमड़ी के रोगों, सूजन, बुखार, खांसी, आंतरिक रक्तस्राव, और पेशाब के रोगों में प्रयोग किया। इसका सेवन माँ के दूध से गंदगी को दूर करता है। बुखार में इसे धनिया की पत्तियों के साथ लिया जाता है। पुराने बुखार, खून की कमी, जोड़ों की दिक्कत, फोड़े, फुंसी, चक्खते, यकृत रोगों, अपच, भूख न लगना, मलेरिया, आदि में इसका प्रयोग रोग को नष्ट करता है।
सामान्य जानकारी
चिरायता एक वर्षीया पौधा है तथा इसके पौधे 2-3 फुट तक ऊँचे हो सकते हैं। इसके पत्ते भालाकर, लम्बे और छोटे होते है। नीचे की पत्तियां बड़ी और उपरी पत्तियां छोटी होती हैं। फल सफ़ेद रंग के होते हैं। औषधीय प्रयोग के लिए पूरे पौधे का प्रयोग किया जाता है।
वानस्पतिक नाम: स्वर्शिया चिरेटा Swertia chirata
कुल (Family): जेंटीऐनेसिऐइ
औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
पौधे का प्रकार: गुल्म / क्षुप
वितरण: प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में, हिमालय, दक्षिण और कोंकण व नेपाल में
पर्यावास: शीतोष्ण हिमालय, कश्मीर से भूटान, 1200-3000 मीटर के बीच ऊंचाई पर और मेघालय में खासी हिल्स
जेनथॉन्स, जेनथॉन्स ग्लाइकोसाइड and मैंगिफेरिने (फ्लैवोनॉइड) Xanthones, xanthone glycoside and mangiferine (Flavonoid)
इसमें दो बहुत ही कडवे पदार्थ चिरेटिन और ओफेलिक एसिड chiratin and ophelic acid पाए जाते हैं। चिरायता में टैनिन, वैक्स, रेसिं और चीनी भी पायी जाती है।
औषधीय मात्रा:
1-3 ग्राम पौधे का पाउडर, 20-30 ग्राम काढ़ा बनाने के लिए
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
आयुर्वेद में चिरायता को मलनिःसारक, शीतल, कडवा, हल्का, रूखा, माना गया है। इसे बुखार, खांसी, कफ, पित्त, खून के विकारों, चमड़ी के रोगों, जलन, खांसी, सूजन, अधिक प्यास लग्न, कुष्ठ, घाव और कृमि रोगों में प्रयोग किया जाता है।
शरीफे को ट्रॉपिकल अमेरिका और वेस्ट इंडीज का मूल निवासी माना जाता है। इसे भारत में तथा अन्य एशियाई देशों में इसके मीठे फलों के लिए बहुतायत से उगाया जाता है। यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला छोटा पेड़ है। शरीफे का पेड़ छोटे आकार, अधिक से अधिक 6 मीटर लंबा, और बहुशाखीय होता है। यह बीजों से उगाया जाता है। इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग और लम्बी होती हैं। फल पकने पर हरा होता है। फल का गूदा सफ़ेद और रस भरा होता है। फल के अन्दर सारे काले रंग के बीज होते हैं। बीज गूदे के अन्दर होते हैं। शरीफे के पके फल स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं।
custart-apple
शरीफे के पेड़ के न केवल फलों बल्कि इसके पत्तों, बीजों और जड़ों का प्रयोग दुनिया के बहुत से देशों में दवाई की तरह होता है। शरीफे के पत्तों और बीजों में अल्कालॉयड alkaloid, रेसिन, और तेल होता है। इसमें पाया जाने वाला तेल विष है।
इसके बीजों को कीटनाशक के रूप प्रयोग किया जाता है। पिसे हुए बीज आँखों के लिए बहुत हानिप्रद irritant to the conjunctiva होते हैं। एक मामले में एक आदमी द्वारा बीजों का चूर्ण आँखों में लगाने से कोर्निया नष्ट हो गया जिससे वह व्यक्ति पूरी तरह से अंधा हो गया। इसी प्रकार गर्भाशय ग्रीवा पर लगाने या बीजों के सेवन से से गर्भ नष्ट हो जाता है।
इंग्लिश: कस्टर्ड एप्पल, Custard Apple, Sweetsop or Sugar Apple
तमिल: Atta, Sitapalam
अरेबिक: Saripha, Sharifa
फूल आने का समय: मई से जुलाई
शरीफे के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Custard Apple Tree
1. कच्चे फल, पत्ते, और बीजों में कीटनाशी गुण insecticide पाए जाते हैं। पत्तों को पानी में कुचल के डाल तथा बीजो के चूर्ण को इन्सेक्टीसाइड के तरह प्रयोग किया जाता है।
2. बीजों का पानी के साथ पेस्ट बना कर सिर में जूँ मारने ने के लिए व एक गर्भान्तक abortifacient के रूप में (ओएस ग्रीवा os uteri पर लगाने से) इस्तेमाल किया जाता है।
3. बीजों की गिरी १-३ ग्राम की मात्रा खाने पर गर्भ नष्ट हो जाता है। बीजों का सेवन गर्भावस्था में बिलकुल न करें।
4. मेलिगेंट ट्यूमर malignant tumors पर पत्ते या पके फल को नमक के साथ लगाया जाता है।
5. फोड़ों पर पत्तों का लेप लगाने से लाभ होता है।
6. कच्चा फल दस्त, पेचिश और निर्बल अपच atonic dyspepsia के लिए दिया जाता है।
7. जड़ और छाल जुलाब strong purgatives हैं और मोशन लाते हैं।
8. करीब १-३ ग्राम जड़ कप पीस के खाने से कब्ज़ दूर होती है।
9. पके फल को ऐसे ही कच्चा खाया जाता है।
10. पत्तों को कुचल कर अल्सर और आर्थराइटिस प्रभावित हिस्सों पर लगाया जाता है।
शरीफे का फल के फायदे Health Benefits of Custard Apple Fruits
1. शरीफे के फल को एक टॉनिक माना गया है।
2. यह शक्ति, पुरुषत्व, को बढाते हैं।
3. विटामिन C होने के कारण यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
4. फल में 1.6% प्रोटीन, 0.4% वसा, 3.1% फाइबर, 23.5% कार्बोहाइड्रेट और खनिज 0.9 / 100 ग्राम होते हैं। इसके अलावा इसमें फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा, थाईमिन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी मौजूद होता है। फलों के गूदे में करीब 20% चीनी होती है और इसे शर्बत, जेली और रस बनाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
5. इसमें पाया जाने वाला विटामिन A त्वचा और बालों को सुन्दर बनाता है।
6. इनमें पोटैशियम और मैगनिशीयम की अच्छी मात्रा पाया जाती है और इसलिए ये हृदय के लिए लाभप्रद हैं। हृदय रोगों, जैसे की धड़कन, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की कमजोरी, आदि में इसे खाना चाहिए।
7. यह मांसपेशियों को मज़बूत बनाते हैं।
8. यह मीठे और तृप्तिदायक होते हैं। भस्मक रोग जिसमें भूख नहीं मिटती उसमें फलों को खाने से लाभ होता है।
9. पूरे शरीर में होने वाली जलन में इसका सेवन लाभप्रद है।
10. यह शरीर में पित्त को कम करते हैं इसलिए ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसे की नकसीर, रक्तपित्त आदि में फायदा करता है।
11. यह शरीर को ठंडक देते हैं।
12. यह एंटी-ऑक्सीडेंट हैं और शरीर को फ्री रेडिकल डैमेज से बचाते हैं।
13. इसमें चीनी की मात्रा और कैलोरी काफी होती है, इसलिए जो लोग वज़न बढ़ाना चाहते हों वे इसका सेवन करके लाभ उठा सकते हैं।
14. इसमें पाया जाने वाला फाइबर कब्ज़ को दूर करने में मदद करता है।
कोकम सूप दस्त, दिल, सूजन, पाईल्स और पेट के कीड़ो की समस्या में बहुत उपयोगी होता है। इसे त्वचा पर दानों से आराम पाने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है क्यों की यह anti alergic की तरह भी काम करता है. आयुर्वेद के अनुसार अगर कोई १ कप से ज्यादा न पिए तो यह कफ और पित्त भी नहीं बढ़ाता है। कोकम आप आसानी से किसी भी साउथ इंडियन स्टोर पर खरीद सकते हैं।
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कोकम सूप बनाने की बिधि(How to make Kokam soup)
कोकम सूप बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी
कोकम के फलों को पानी से धोकर १०-२० मिनट के लिए भीगा दें। इसके बाद फलों को कई बार इस पानी में निचोड़ कर पल्प/जूस निकाल लेंऔर पानी से अलग कर लें। अब धीमी आंच पर एक भगौना गरम करें और उसमे घी डालें। अब इसमे जीरा, तेजपत्ता, करीपत्ता का तदाका लगायें। अब इसमे कोकम वाला पानी मिलाएं और २ कप अलग से पानी मिलाएं। एक कप पानी में अलग से बेसन अच्छी तरह मिलाये और उसे भगोने में डालें। अब इसमे दालचीनी, कालीमिर्च, लौंग, नमक एंड गुड मिलाएं। इसे ५ मिनट तक चलते रहें। अब इसे कटे हुए धनिये से सजाएं।
लीजिये कोकम सूप तैयार है। इसे कांच या स्टेनलेस स्टील में ही रखे नहीं तो कोकम का एसिडिक जूस मेटल से रिएक्शन कर सकता है और सूप का स्वाद बीगल सकता है।
इसे १ कप खाने से पहले लेने पर यह भूख बढ़ता है और एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है और अगर आप खाने के बाद पियेंगे तो यह पाचन में सहायक है। इसे नास्ते में न पियें।
वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त, बैद्यनाथ फार्मेसी द्वारा निर्मित दवाई है। इसमें शुद्ध शिलाजीत, मकरध्वज, अश्वगंधा, केवांच, अभ्रक भस्म, बंग भस्म, लौह भस्म, और स्वर्ण भस्म जैसे आयुर्वेद के जाने माने घटक है। यह दवा एक रसायन है जो की शरीर में ओज, तेज, और शक्ति की वृद्धि करती है। यह दवा पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को सही करने और यौन कमजोरी को दूर करने में उपयोगी है। इसका २-३ महीने तक लगातार प्रयोग करने से वजन बढता है, शरीर में ताकत आती है और यौन कमजोरी दूर होती है। यह कामोत्तेजक है और सेक्स की इच्छा को बढाने वाली दवा है।
Baidyanath Vita-Ex Gold is a herbo-mineral proprietary ayurvedic medicine in form of Capsules. It is indicated in loss of libido, sexual debility, poor and unsatisfactory sexual intercourse, sex related stress, anxiety etc. The ingredients used in this medicine have aphrodisiac, rejuvenative, anti-stress, vitalizing, properties. This medicine helps in erectile dysfunction, premature ejaculation and functional impotence.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
बैद्यनाथ वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त के घटक Ingredients of Baidyanath Vita-Ex Gold Capsules
फिटकरी को संस्कृत में स्फटिका, हिंदी में फिटकरी, इंग्लिश में पोटाश एलम कहते है। कांक्षी, तुवरी, स्फटिका, सौराष्ट्री, शुभ्रा, स्फुटिका आदि इसके अन्य संस्कृत पर्याय हैं। यह एक रंगहीन, क्रिस्टलीय पदार्थ है। साधारण फिटकरी का रासायनिक नाम ‘पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट‘ KAl(SO4)2.12H2O होता है। देखने में यह प्राकृतिक नमक के ढेले जैसी होती है।
By Miansari66 (Own work) [Public domain], via Wikimedia Commonsफिटकरी सफेद, पीले, लाल और काली रंग की हो सकती है। सफ़ेद रंग की फिटकरी को सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है।
फिटकरी के बारे में भारतीयों को जानकारी बहुत ही प्राचीन समय से थी। भारत में चिकित्सा के लिए इसका प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता रहा है। चरक संहिता में भी इसके प्रयोग का वर्णन पाया जाता है। रत्न समुच्चय ग्रन्थ में इसे तुवरी कहा गया है। रसतरंगिणी में इसे पित्त-कफ नाशक, ज्वरनाशक, आँखों के रोगों में लाभप्रद, खूनके बहने को रोकने वाली, मुख के रोगों, कान रोगों और नाक से खून बहने से रोकने वाली माना गया है।
फिटकरी एल्युमीनियम और पोटेशियम सल्फेट का संयोग है। फिटकरी को एक प्रकार की खनिज मिट्टी जिसे रोल (हिंदी) या एलम शोल (इंग्लिश) से बनाया जाता है। जहाँ भूमि में एल्युमीनियम और सल्फर ज्यादा मात्रा में पाया जाता है वहां की ऊपरी मिट्टी में फिटकरी की थोड़ी मात्रा में प्राकृतिक रूप से मिलती है। इसका निर्माण कृत्रिम रूप से सौराष्ट्र की मिट्टी को सत्वपातित करके किया जाता था। आजकल तो इसे रासयनिक तरीके से काफी मात्रा में बनाया जाता है।
चिकित्सा के लिए फिटकरी का प्रयोग खून के बहने / रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जाता है। शुद्ध फिटकरी या इसकी भस्म को सुजाक, रक्तप्रदर, खांसी, निमोनिया, खून की उलटी, विष विकार, मूत्रकृच्छ, त्रिदोष के रोगों, घाव, कोढ़ आदि में आंतरिक प्रयोग भी किया जाता है।
इसे पानी को साफ करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे रंग पक्का करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
इंग्लिश: एलम Sulphate of Alumina and Potash, Sulphate of Aluminium and Ammonium, Aluminous Sulphate
उर्दू: फिटकिरी Phitkari
सिन्धी: पटकी
तमिल: Patikaram, Padikharam, Shinacarum
फिटकरी के गुण
यह कसैली, गर्म, योनि संकोचक Vaginal contractive है।
यह वातपित्त, कफ, घाव, कोढ़, और विसर्प नाशक है।
यह तासीर में गर्म है।
यह रक्तस्राव को रोकती है।
यह एसट्रिनजेंट / संकोचक है।
फिटकरी की भस्म का सेवन छाती में जमे कफ को निकालती है।
यह विष नाशक है। सांप काटने पर तुरंत ही, फिटकरी की भस्म (1 gram) को घी (60 gram) में मिलाकर लेने से ज़हर का आगे बढ़ना रुक जाता है।
फिटकरी के चिकित्सीय प्रयोग
फिटकरी को बाहरी तथा आंतरिक दोनों तरह से प्रयोग किया जाता है। बाहरी रूप से पानी में डुबा कर खून बहने वाली जगह पर मल लेने से खून का बहना रुक जाता है। फिटकरी को लगाने से संक्रमण भी नहीं होता।
खाने या आंतरिक प्रयोग के लिए फिटकरी की बहुत कम मात्रा प्रयोग की जाती है। आंतरिक प्रयोग के लिए हमेशा शुद्ध फिटकरी ही प्रयोग की जानी चाहिए। आग में फुला देने से फिटकरी शुद्ध हो जाती है। इसे तवे पर रख कर फुला कर, खील बना कर, महीन पीस लेने के बाद आंतरिक प्रयोग में ला सकते हैं।
१. नाक से खून आना nose bleed, naksir
गाय के दूध में थोड़ी सी फिटकरी घोल कर नाक में कुछ बूंदे टपकाने से नाक से खून बहना रुकता है।
२. चोट लगने से खून बहना, कटने से खून बहना Bleeding from cut
फिटकरी का टुकड़ा या चूरा प्रभावित जगह पर लगायें।
३. योनि की शिथिलता, फ़ैल जाना slackness of vagina
२ ग्राम फिटकरी को पानी में १०० मिलीलीटर पानी में घुला कर, रोज़ योनि माग का प्रक्षालन करने से योनि मार्ग को सिकोड़ने में मदद होती है।
फिटकरी को १२५ मिलीग्राम की मात्रा में ३ ग्राम चीनी के साथ मिला कर खाने से लाभ होता है।
५. आँखों से पानी आना, लाली, कीचड़, पकना, दुखना, सूजन diseases of eyes
50 ml गुलाब जल में 500-600 mg, फिटकरी घोलकर रख लें। इसे कुछ बूंदों में आँखों में डालने से लाभ होता है।
६. मजबूत दांत strengthening teeth
फिटकरी के चूरे को मौलश्री छल के चूर्ण में मिलाकर दांतों पर मलने से दांत मजबूत होते हैं।
७. दांत दर्द, दांत में मवाद, मुंह में लिसलिसापन tooth ache, stickiness in mouth
सेंधा नमक और फिटकरी के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर दांतों पर रगड़ने से दांत मजबूत होते है, दांत दर्द से राहत मिलती है।
८. दांतों के रोग dental diseases
सरसों तेल में फिटकरी चूर्ण मिलाकर दांतों की मालिश करें।
९. दन्त मंजन tooth powder
दन्त मंजन बनाने के लिए फुलाई हुई फिटकरी + हल्दी + सेंधा नमक + त्रिफला + नीम की पत्तियां + बबूल की छाल (प्रत्येक 100 gram) तथा 20 ग्राम लौंग का पाउडर मिला लें। इसे दिन में दो बार प्रयोग करने से पायरिया, मुंह की दुर्गध, दांतों का दर्द, कमजोरी, सेंसिटिवटी आदि दूर होते हैं।
१०. शीतपित्त urticaria
शुद्ध फिटकरी का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दूध या पानी के साथ लें।
११. दाढ़ी बनाते समय कट जाना cut in shaving
फिटकरी को कट पर पानी लगाकर लगाने से कट से खून निकलना बंद होता है।
फुलाई फिटकरी को 500 mg-1 gram की मात्रा में दिन में तीन बार लेने से कफ, खांसी दूर होते हैं।
फिटकरी को आमतौर पर बाहरी प्रयोग के लिए ही प्रयोग किया जाता है। बाहरी प्रयोग से किसी भी तरह की हानि नहीं है। लेकिन आंतरिक प्रयोग में सावधानी रखने की ज़रूरत है। आंतरिक प्रयोग के लिए केवल उपयुक्त फिटकरी (शुद्ध या भस्म) ही प्रयोग की जानी चाहिए और वो भी बहुत ही कम मात्रा में। अधिक मात्रा में प्रयोग फेफड़े, आँतों और पेट के लिए नुकसानदायक है।
व्योषादि गुग्गुलु को नवक गुग्गुलु के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गुग्गुल्कल्प है जिसमें गुग्गुल की मात्रा अन्य सभी घटकों से अधिक है। इस दवाई का प्रयोग मुख्य रूप से मेदोरोग, मोटापे को कम करने और वात के रोगों में होता है।
व्योषादि गुग्गुलु की तासीर गर्म है और इस गुण के कारण यह कफ, कोलेस्ट्रोल, लिपिड और ट्राईग्लीसिराइड्स को कम करता है। अपने रूक्ष और हल्के गुण के कारण यह शरीर में फैट को कम करता है। यह वात-कफ को कम करता है और पित्त को बढ़ाता है। इस दवाई का मुख्य घटक व्योष है। व्योष, त्रिकटु को कहते है।
Navak, Navaka or Vyoshadi Guggulu is a polyherbal ayurvedic medicine with antiobesity, antihyperlipidic, antiinflammatory, and carminative properties. It is helpful in improving digestion, metabolism bowel movement and clearing the obstruction and congestion. It increases Pitta, and reduces Vata and Kapha. This helps in weight reduction and Vata Vyadhi such as arthritis, joint swelling, gout etc.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) के घटक Ingredients of Navaka Guggulu
गुग्गुल Guggulu- Shuddha Commiphora wightii O.R. 9 Parts
त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और कब्ज करता है। यह यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है।
त्रिफला, हरीतकी, विभितकी और आमलकी का बराबर मात्रा में मिश्रण है। यह शरीर में वात विकार को शांत करता है। यह आँतों की सफाई करता है और कब्ज़ को दूर करता है। यह एक टॉनिक है। इसमें सूजन को दूर करने के, रक्त परिसंचरण को सही करने के और अच्छा पाचन और विरेचन कराने के गुण हैं। यह विषाक्त पदार्थों को शरीर से दूर करता है और पाचन से लेकर विरेचन में सहयोगी है। यह त्रिदोष का संतुलन करने वाली औषध है।
गुग्गुलु एक पेड़ से प्राप्त निर्यास या गोंद है। इसका प्रयोग धूप की तरह भी किया जाता है। आयुर्वेद में गुग्गुल को मुख्य रूप से वात रोगों के उपचार और मोटापे को दूर करने के लिए किया जाता है। यह गुण में लघु, रुक्ष, विशद, और सुगन्धित होता है। यह रस में तिक्त और कटु है। वीर्य में उष्ण और कटु विपाक है। प्रकृति में गर्म होने से यह वात को दूर करता है और चयापचय / मेटाबोलिज्म को तेज़ करता है। यह सभी वात शामक द्रव्यों में प्रमुख है।
व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) के लाभ/फ़ायदे Benefits of Navaka Guggulu
यह शरीर में वात और कफ को कम करता है।
यह पित्त को बढ़ाता है।
यह मेटाबोलिज्म को सही करता है।
यह पेट को साफ़ करने में मदद करता है।
इसके सेवन से स्रोतों से रूकावट हटती है, वात का बहाव नीचे की तरफ होता है।
यह आम-पाचक है और शरीर से आम दोष को दूर करता है। आम दोष, शरीर में पाचन की कमजोरी के कारण बनने वाले दूषित पदार्थ है जो की तीनों दोषों को असंतुलित कर देते हैं और अनेकों रोगों के कारण हैं।
यह कोलेस्ट्रोल और लिपिड को कम करता है।
यह बुरे कोलेस्ट्रोल को कम लेकिन अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढाने में सहायक है।
इसके सेवन से वज़न कम होता है।
व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) के चिकित्सीय उपयोग Uses of Navaka Guggulu
मेदो रोग, मोटापा, शरीर में ज्यादा फैट
वात व कफ रोग
फैटी लीवर
मोटापे से सम्बंधित शिकायतें
आमवात
रुमेटिज्म
सूजन, मांसपेशियों में दर्द
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Navaka Guggulu
2-3 गोली, दिन में दो या तीन बार, लें।
इसे पानी के साथ लें।
इसे भोजन करने के पहले लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
ऐसे तो इस दवा को विशेष साइड इफ़ेक्ट नहीं है लेकिन यह शरीर में पित्त को बढ़ाती है। इसलिए कुछ लोगों में यह एसिडिटी, पेट में जलन को बढ़ा सकती है।
इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।
This medicine is manufactured by Dabur (Dabur Vyoshadi Vati), Shree Baidyanath Ayurved Bhawan (Baidyanath Vyoshadi Bati) Vaidyaratnam Oushadhasala (Vyoshadi Gulgulu Tablets) and some other pharmacies.
अपशोक, अशोक, चिर, दोहली, दोषहारी, गन्धपुष्प, हेमपुष्पा, कंकाली, कंकेली, कंटाचरणदोहडा, कर्णपुरा, कर्णपूरक, केलिक, क्रिमिकारक, मधुपुष्प, पल्लदरु, पिंडपुष्प, परपल्लव, रक्तपल्लव, रमा, रोगितारू, शहय, सुभग, ताम्रपल्लव, वामनघरिघटक, वामनकायतना, विचित्र, विशोक, वीताशोक आदि अशोक के वृक्ष के संस्कृत पर्याय हैं। अशोक का वृक्ष हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है। कामदेव, जो की प्रेम के देवता हैं, के पांच पुष्पों से सुसज्जित बाणों में इसके पुष्प भी एक हैं। यह वृक्ष पवित्र, आदरणीय और औषधीय है।
By Varun Pabrai (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commonsयह अशोक (बिना शोक के) है क्योंकि यह रोगों को हर, शरीर से दुःख दूर करता है। इसके नीचे बैठने से शोक नहीं होता। प्राचीन समय में इसकी वाटिकाएं बनायीं जाती थी जो की हमेशा हरी रहती थी और अपने सुगन्धित पुष्पों से सभी का मन प्रसन्न कर देती थीं।
अशोक एक औषधीय पेड़ है। इसका दवा की तरह प्रयोग हजारों साल से होता आया है। यह मुख्य रूप से स्त्री रोगों, रक्त बहने के विकारों और मूत्र रोगों में लाभकारी है। यह रक्त के असामान्य बहाव को अपने संकोचक गुण के कारण रोकता है। अशोक की छाल कसैली, रूखी, और स्वभाव से ठंडी होती है। यह स्त्री रोगों में बहुत उपयोगी है। यह गर्भाशय की कमजोरी, बाँझपन, श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर सभी को नष्ट करता है। यह मूत्रल गुणों के कारण पेशाब के रोगों में भी लाभकारी है।
अशोक के पेड़ के पत्ते लम्बे होते है। शुरू में पत्ते ताम्बे के रंग के होते हैं, इसलिए इसे ताम्रपत्र भी कहते है। इसमें सुन्दर और सुगन्धित पुष्प आते हैं जो की पहले पीले होते हैं और फिर नारंगी हो हुए लाल हो जाते हैं। फल, फलियों के रूप में होते हैं। फलियाँ करीब आठ-दस इंच लम्बी होती हैं। फलियों के अन्दर चार से दस बीज होते हैं। दवाई की तरह अशोक की छाल, पत्तों, फूलों और बीजों का प्रयोग होता है।
दवा की तरह, अशोक की छाल का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। छाल में टैनिन, कैटीकाल, उड़नशील तेल, कीटोस्टेरोल, ग्लाइकोसाइड, सेपोनिन, कैल्शियम और आयरन यौगिक होते हैं। बीजों का चूर्ण पथरी और मूत्रकृच्छ में फायदा देते हैं।
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
अशोक, शिम्बी कुल का पेड़ है। इसका उपकुल कंटकीकरंज / सीजलपिनोयडी है।
अशोक की छाल को आयुर्वेद में प्रमुखता से स्त्री रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह स्वभाव से शीत होती और प्रजनन तथा मूत्र अंगों पर विशेष रूप से काम करती है। यह गर्भाशय की कमजोरी और योनी की शिथिलता को दूर करती है। यह संकोचक, कडवा, ग्राही, रंग को सुधारने वाला, सूजन दूर करने वाला और रक्त विकारों को नष्ट करने वाला है।
अशोक स्त्री रोगों में बहुत ही फायदा करता है। इसके सेवन से बाँझपन नष्ट होता है और राजोविकर दूर होते है। यह दर्द, सूजन, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, दर्द, अतिसार, पथरी, पेशाब में दर्द, आदि में लाभप्रद है।
अशोक की छाल को अशोकारिष्ट और अशोक घृत बनाने में प्रयोग किया जाता है। यह दोनों ही दवाएं स्त्री-रोगों में प्रभाकारी हैं।
1. मासिक में बहुत खून जाना Excessive bleeding in periods
अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर, दिन भर में कई बार कुछ-कुछ देर पर दिन में कई बार पियें।
अशोक के पेड़ की 8 कोपलें और कलियाँ तोड़ कर, साफ़ करके रोज़ सुबह खाएं।
2. मासिक की अनियमितता Period irregularities
असोक की छाल का काढ़ा बनाकर पियें।
3. रक्त प्रदर, योनि से असामान्य खून जाना, पेशाब के रोग Bleeding disorders, urinary disorders
अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पियें।
4. बाँझपन, गर्भाशय की कमजोरी, होर्मोन का असंतुलन, मासिक की परेशानियाँ, पेट के रोग, पेडू का दर्द Infertility
अशोकारिष्ट Ashokarishta का सेवन करें।
5. सफ़ेद पानी आना, लिकोरिया या श्वेत प्रदर Leucorrhoea
अशोक की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार, गाय के दूध के साथ लें।
6. अंडकोष की सूजन Swelling of the testicles
अशोक छाल का काढ़ा दिन में दो बार, एक सप्ताह तक पियें।
7. पेट में दर्द, पेशाब रोग Painful urination
अशोक की छाल को पानी में उबालकर काढा बनाकर दिन में दो बार पियें।
8. पथरी Urinary stones
अशोक की फली से बीज निकालकर पीस लें। इसे पांच-दस ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ फंकी लें।
9. सांस रोग, श्वास Respiratory disorders
अशोक के बीजों का चूर्ण थोड़ी सी मात्रा (65mg) में पान के बीड़े में रख कर सेवन करें।
10. हड्डी टूटना Bone fracture
हड्डी के टूटने पर अशोक की छाल का चूर्ण पांच से दस ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करें।
11. खूनी पेचिश Bloody dysentery
अशोक के पुष्पों को 3-4 gram की मात्रा में पीस के पीने से लाभ होता हैं।
12. खूनी बवासीर Bleeding piles
अशोक की छाल 5 gram और इतनी ही मात्रा में इसके पुष्प ले कर रात में पानी में भिगो दें। सुबह इसे छान कर पी लें। इसी प्रकार सुबह भिगो कर शाम को पियें।
13. योनि का ढीलापन Vaginal Sag
अशोक की छाल + बबूल छाल + गूलर छाल + माजूफल + फिटकरी, समान भाग में मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से छान कर इसका कपड़छन पाउडर बना लें। इस चूर्ण की सौ ग्राम की मात्रा एक लीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई रह जाए तो स्टोव से उतार कर ठंडा कर लें। इसे योनि के अन्दर रात को डालें। यह प्रयोग कुछ दिन तक लगातार करें।
औषधीय मात्रा
काढ़ा: 20-50 ml
बीज चूर्ण: 1-3 grams
पुष्प चूर्ण: 3-6 grams
अशोक के सेवन का दवा की मात्रा में प्रयोग शरीर पर कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं डालता। यह ग्राही है और इसका सेवन कब्ज़ कर सकता है। कब्ज़ को दूर त्रिफला चूर्ण के सेवन से किया जा सकता है।
अनवांटेड-21, मैनकाइंड द्वारा निर्मित रेगुलर गर्भनिरोधक गोली है Regular contraceptive pill from Mankind Pharmaceuticals जो बच्चा रोकने के लिए रोजाना 21 दिन तक प्रयोग की जाती है।
यह गर्भ को रोकने और बच्चों में अंतर रखने के प्रयोग की जाती है। यह एक हार्मोनल गर्भनिरोधक गोली है। यह शरीर के होरमोन सिस्टम को प्रभावित करती है। इसमें हार्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन हैं जो की कृत्रिम रूप से बनाए गए है। ये दोनों हार्मोन शरीर में महिला प्रजनन अंगों पर कई तरह से काम करते हैं। यह अंडाशय यानि कि ओवरी से अंडाणु के निकलने ovulation को रोकते है, निषेचन fertilization को मुश्किल करते हैं तथा निषेचन होने पर उसके गर्भाशय में स्थापन implant को रोकते हैं।
जो भी हार्मोनल कॉण्ट्रासेप्टिव पिल्स होती हैं उनकी एक गोली रोज़, 21 दिन तक ली जाती है। फिर 7 दिनों तक कोई गोली नहीं ली जाती।
यदि सही ढंग से लिया जाए तो यह गोली गर्भावस्था को रोकने में 99% से अधिक कारगर है।
Unwanted-21 is a combined hormonal contraceptive pill for preventing pregnancy. It directly affects hormones in body and hence should be taken after consulting doctor. For example it is not suitable for women above the age of 35. It should not be taken while breastfeeding. There are many medical conditions in which intake of these pills can worsen the condition. Once you stop taking the pills it may take few months to gain normal fertility as it induces temporary infertility.
ब्रांड का नाम : मैनकाइंड
जेनरिक: लेवोनॉरजस्ट्रेल Levonorgestrel और एथिनायलोएस्ट्राडिओल Ethinyloestradiol टैब
यह हर महीने होने वाले ओवूलेशन (ओवेरी से अंडा निकलना) Ovulation को रोकती है।
यह गर्भाशयग्रीवा के म्यूकस cervical mucous को गाढ़ा करती है जिससे स्पर्म sperm, एग egg / ova तक न पहुँच पायें।
यह गर्भाशय की लाइनिंग को पतला करती thins uterus lining है जिसिसे निषेचन fertilization हो जाने पर भी, गर्भ में निषेचित अंडाणु न आरोपित implantation हो पाए।
अनवांटेड-21 के चिकित्सीय उपयोग Uses of Unwanted-21
गर्भ को न ठहरने देना, बच्चों में गैप रखने के लिए
इसे निम्न दिक्कतों में भी दिया जाता है:
पीरियड में होने वाला दर्द, तकलीफ दूर करने के लिए painful periods
मासिक के बीच में योनि से खून जाना dysfunctional bleeding
मस्तिष्कीय रक्तस्राव brain hemorrhage
पित्ताशय की थैली के रोग gallbladder diseases
रेटिना थ्रोम्बोसिस retina thrombosis
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण gastrointestinal symptoms
अस्थाई बांझपन temporary infertility in woman
एडेमा / द्रव प्रतिधारण edema
मासिक स्राव में परिवर्तन change in periods
एलर्जी allergy
अवसाद सहित मनोदशा में बदलाव
Vaginitis, कैंडिडिआसिस candidiasis
कॉन्टेक्ट लेंस लगाने पर परेशानी difficulty in using contact lenses
सीरम फोलेट स्तर में कमी आदि decrease in serum folate etc.
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Unwanted-21
इसकी 21 गोलियां हैं।
मासिक के पहले दिन से गोली लेना शुरू करें।
अगले 21 दिन लगातार गोली लें।
7 दिनों का गैप रखें।
8वें दिन से नया पैक लेना शुरू करें।
इस गोली को रोज़ एक ही समय पर लिया जाना चाहिए।
दवा के सेवन के बाद २ घंटे पर उल्टी हो जाने पर, गंभीर दस्त (एक दिन में 6-8 बार) आदि होने पर गर्भावस्था हो सकती है। ऐसे में कंडोम का प्रयोग करें और गोली लेना भी जारी रखें।
उलटी हो जाने पर दूसरी गोली लें।
Who should not take the pill?
गर्भावस्था में
35 वर्ष से अधिक महिला
धूम्रपान करने वाली महिला
अधिक वज़न में
थ्रोम्बोसिस (खून का थक्का)
हृदय रोग, उच्च रक्तचाप
गंभीर सिरदर्द, माईग्रेन
स्तन कैंसर
या लीवर की या पित्ताशय की थैली की बीमारी
मधुमेह
बच्चा होने के बाद
बच्चा होने के बाद यदि आप स्तनपान नहीं करा रही तो जन्म के बाद 21 दिन पर गोली शुरू कर सकती हैं
स्तनपान कराते समय इसका सेवन न करें
गर्भपात के बाद
या जिन्हें किसी तरह की अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हों, के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
यह गोली यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) के खिलाफ की रक्षा नहीं करती।
अनवांटेड-21 को कैसे लें?
अनवांटेड-21 का एक पैक, एक महीने के लिए है। इसमें 21 पिल्स हैं। मासिक होने के पहले दिन से इसे लेना शुरू करें। जब सभी 21 गोलियां ले ली गई हों, तो 7 दिन तक इसे नहीं लेना है। फिर आठवें दिन से नया पैक शुरू करें।
ऐसे तो इसे महीने के किसी भी दिन से लेना शुरू किया जा सकता है लेकिन यदि इसे पीरियड के पहले दिन से लेते हैं तो यह अनचाहे गर्भ को करीब 99 प्रतिशत तक रोकती है। लेकिन यदि महीने के किसी भी दिन से लेना शुरू किया जाए तो यह उतनी इफेक्टिव नहीं होती और गर्भ ठहर सकता है। इसलिए ऐसे में कंडोम आदि का प्रयोग करना चाहिए।
What to do if you miss a pill?
गोली को लेना भूल जाना, इसकी गर्भनिरोधन की क्षमता को कम करता है। ऐसे में गर्भ ठहर सकता है।
यदि आप एक गोली लेना भूली हैं और गोली लेने में 24 घंटे से ज्यादा हो गए हैं, तो जब याद आये तो भूली वाली गोली और उस दिन की गोली, यानि कि दो गोली लें।
यदि २ या ज्यादा दिन तक गोली नहीं लीं हैं, या नया पैक दो दिन से ज्यादा के अंतर पर शुरू किया है, तो ऐसे में इस गर्भावस्था होने के चांसेस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं क्योंकि ओवरी से एग निकल सकता है और उसका निषेचन भी हो सकता है। ऐसे में २ गोली लें और फिर रोजाना की एक गोली लेते रहें।
अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। सोंठ को भोजन में मसाले और दवा, दोनों की ही तरह प्रयोग किया जाता है। अदरक Ginger से तो सभी परिचित हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप का ही पौधा है। इसका भारतीय भोजन को स्वादिष्ट और पाचक बनाने में इसका विशेष योगदान है। करी, पकौड़े, सब्जियां सभी में अदरक और लहसुन का पेस्ट पड़ता है। इसका सुखा कर बनाया गया पाउडर कई व्यंजनों में किया जाता है।
By Miansari66 (Own work) [Public domain], via Wikimedia Commonsसोंठ का प्रयोग आयुर्वेद में प्राचीन समय से पाचन और सांस के रोगों में किया जाता रहा है। आयुर्वेद में इसे शुंठी, विश्वा, विश्व, नागर, विश्वभेषज, ऊषण, कटुभद्र, शृंगवेर, और महौषधि आदि नामों से जाना जाता है।
इसमें एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।
एक शोध दिखाता है, एक दिन में करीब 1 ग्राम सोंठ (दिन में कई अंतराल पर लेने से) का सेवन मोशन सिकनेस motion sickness को दूर करता है।
इसके कुछ बहुत ही सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग हैं, जैसे की त्रिकटु Trikatu, सौभाग्य शुण्ठी पाक Saubhagya Shunthi Pak, पञ्चकोल Panchkol, पंचसम चूर्ण Panchsum Churna आदि।
अदरक पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। इसका पौधा रेत मिश्रित और उर्वरक ज़मीन में पाया जाता है। यह कुछ फुट ऊँचा और लम्बे पत्तों युक्त होता है। इसके जमीन के नीचे कंद होते हैं जो की पौधे के तने ginger is stem होते हैं। कन्द को जड़ नहीं समझना चाहिए।
सोंठ बनाने के लिए ताज़ी अदरक को सुखा लिया जाता है। फिर इसे सीधे या चूर्ण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
अदरक के कंद में कटु पदार्थ होते है, जिंजरोन zingerone और शोगोल shogaol।
इसकी खुशबु कैम्फ़ेन, फेललैंडरेन, जिंजीबेरिन, सीनोल और बोरनिओल camphene, phellandrene, zingiberene, cineol and borneol के कारण होती है।
इसमे पीले रंग का कटु पदार्थ, ओले रेज़िन, और जींजरीन भी पाया जाता है।
मुख्य गुण
वातहर, गैस हर
कफहर
उत्तेजक
स्वेदजनक
पाचक
प्रमुख प्रयोग
अपच, पेट फूलना, पेट का दर्द, उल्टी, पेट और आंत में दर्द
जुकाम, खांसी और बुखार
आमवात, वातव्याधि
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
अदरक के ताज़े कन्द आद्रकम और सूखे रूप को आयुर्वेद में शुण्ठी या सोंठ कहते हैं। जनवरी-फरवरी के महीने में अदरक को खोद कर जमीन में से निकलते हैं। फिर इन्हें पानी में रात भर भिगोते हैं। इसकी फिर परत उतार कर सुखा लेते हैं।
शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।
वात कम करने के कारण इसे आमवात, पुराना गठिया, गैस, सायटिका, वातव्याधियों में प्रयोग किया जाता है।
यह रोग प्रतिरोधक क्षमता immunity को बढ़ाता है।
यह कफ को कम करता है।
कफ कम करने के गुण के कारण इसे खांसी, जुखाम, जकड़न आदि में प्रयोग किया जाता है।
यह पित्त वर्धक है।
इसके सेवन से पित्त स्राव बढ़ता है और पाचन सही करता है।
यह भूख न लगना, जी मिचलाना, पाचन की कमजोरी, अजीर्ण में लाभ देता है।
यह सर्दी के मौसम में बहुत लाभकारी है क्योंकि यह वात-व्याधियों और कफ दोनों में ही राहत देता है।
यह नाड़ी संस्थान के लिए उत्तेजक है।
प्रसव के बाद इसके सेवन शरीर की कमजोरी, बुखार आना, आदि दिक्कतों को दूर करता है।
यह दिल के लिए टॉनिक है।
यह कोलेस्ट्रोल के लेवल को कम करता है।
यह माइग्रेन के अटैक को कम करता है।
सौंठ के औषधीय प्रयोग
सोंठ, रुचिकारक, आमवात नाशक, पाचक, चटपटी, वात-कफ नाशक, वीर्यवर्धक, आवाज़ को मधुर बनाने वाला, खांसी, हृदय रोग, उदर रोगों में लाभप्रद है। यह मलबंध को तोड़ तो सकता है लेकिन उसको शरीर से बाहर नहीं कर सकता। इसलिए कब्ज़ आदि में इसे विरेचक के साथ दिया जाता है।
1-3 gram सोंठ का चूर्ण, दिन में 2-3 बार पानी या छाछ के साथ लेने से दस्त रुक जाते हैं।
गैस flatulence
त्रिफला 15 g+ मिश्री 10 g+ शुण्ठी 5 g,मिलाकर रख लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में लेने से गैस दूर होती है।
मन्दाग्नि digestive weakness
सोंठ को 1-3 ग्राम की मात्रा में गुड के साथ मिलकर कुछ दिन खाएं।
शीघ्रपतन premature ejaculation
बादाम को रात में पानी में भिगो दें। सुबह इसका छिलका निकाल कर, पत्थर पर घिस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट में 4-5 काली मिर्च, 2 ग्राम सोंठ और मिश्री का बारीक पेस्ट मिला दें। इसको चाट कर लें और फिर दूध पी लें। ऐसा २ महीने तक लगातार करें।
पुरुषों में यौन कमजोरी sexual weakness
बराबर मात्रा में आमला, हरड़, बहेड़ा, सोंठ, पिप्पली, काली मिर्च, तिल के पाउडर को मिला दें। इस हुए पाउडर को अच्छे से मिला दें और 1-4 ग्राम की मात्रा में लें।
संग्रहणी, भूख न लगना, आमदोष digestive disorders
सोंठ + मोथा + अतीस + गिलोय, को बराबर मात्रा में मिला दें। इसे पानी में उबाल लें और कुछ मिनट पकाएं। इसे 20-30 ml की मात्रा में सुबह और शाम पियें।
1-3 ग्राम की मात्रा में सोंठ का सेवन शहद के साथ करें।
सूजन, दर्द, कफ, कम पित्त के कारण पाचन की कमजोरी, गैस
बराबर मात्रा में सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च के चूर्ण को मिला दें।
यह तीन कटु मसालों का संयोग, आयुर्वेद में त्रिकटु Trikatu चूर्ण कहलाता है।
त्रिकटु के प्रयोग: यह पाचन और कफ रोगों, दोनों में ही लाभकारी है। इसे जुखाम colds, छीकें आना rhinitis, कफ cough, सांस लेने में दिक्कत breathlessness, अस्थमा asthma, पाचन विकृति dyspepsia, Obesity और मोटापे में लिया जा सकता है।
त्रिकटु की औषधीय मात्रा: इसे बड़े 2 ग्राम की मात्रा में और बच्चे 125 mg से 500 mg की मात्रा में दिन में तीन बार ले सकते हैं।
गला सूखना, खांसी और घरघराहट dry throats, coughs and wheezing
सोंठ की चाय बनाकर पियें।
अपच indigestion
सुबह सोंठ को सेंधा नमक के साथ लें।
औषधीय मात्रा Therapeutic dosage of Dry Ginger Powder
शुण्ठी को प्रयोग करने की औषधीय मात्रा 1-3 gram है।
सावधानियां Cautions for using Dry ginger
यह प्रकृति में उष्ण hot in potency है। आयुर्वेद के मत अनुसार गर्भावस्था में उष्ण चीजों का सेवन बहुत स्सव्धानी से किया जाना चाहिए।
यह पित्त को बढ़ाता है।
जिसे पेशाब में जलन, पेट में जलन, शरीर में जलन, पित्त रोगों में न लें।
ज्यादा मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी कर सकता है।
निर्धारित मात्रा में लेने किसी भी तरह का गंभीर साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।
चिकनगुनिया, एक वायरल रोग है जो की संक्रमित मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है। इस रोग को सबसे पहले, तंज़ानिया Tanzania, मारकोंड प्लेटू Markonde Plateau, मोजाम्बिक Mozambique और टनगानिका Tanganyika पर 1952 में फैलते देखा गया था। चिकनगुनिया वायरस जनित रोग है और इस रोग का वेक्टर एडीज एजिप्टी मच्छर है जो डेंगू बुखार और येलो फीवर का भी वेक्टर है। हाल ही में पेरिस के पाश्चर संस्थान ने दावा किया है कि इस वायरस में अब म्युटेशन हो गए हैं और यह वायरस अब टाइगर मच्छर के द्वारा भी फैलाया जा रहा है।
“चिकनगुनिया” शब्द मारकोंड प्लेटू के भाषा के एक शब्द Kungunyala से लिया गया है जिसका मतलब होता है to become contorted मुड़ जाना / झुक जाना, ऐंठ जाना या बिगड़ जाना। यह शब्द इस रोग के शरीर पर देखे प्रभाव के कारण दिया गया क्योंकि इस रोग में शरीर में आर्थराइटिस जैसी स्थिति हो जाती है।
चिकनगुनिया होने पर आम तौर पर देखे जाने वाले लक्षणों में शामिल हैं, बुखार, ठंड लगना, सिर दर्द, मतली, उल्टी और जोड़ों में दर्द। जोड़ों में सूजन हो भी सकती है और नहीं भी। इसके साथ ही शरीर पर और दाने भी देखे जा सकते हैं। डेंगू के विपरीत इसमें रक्तस्राव या शॉक सिंड्रोम नहीं होता है।
पहले यह रोग भारत में नहीं देखा जाता था। यह मुख्यतः ईस्ट अफ़्रीकी देशों में ही फैलता था। लेकिन अब यह भारतीय उपमहाद्वीप पर बहुत ज्यादा फैलता देखा गया है। इसका एपीडेमिक की तरह विस्तार, भारत में 1963 (कोलकाता), 1965 (पांडिचेरी और चेन्नई तमिलनाडु, राजमुंदरी में,विशाखापत्तनम और आंध्र प्रदेश में काकीनाडा; मध्य प्रदेश में सागर; और नागपुर में महाराष्ट्र) और 1973 (महाराष्ट्र में बरसी) में देखा गया। इसके बाद इसके छिटपुट मामले जारी रहे 1983 और 2000 के दौरान महाराष्ट्र राज्य में विशेष रूप से इसके कई मामले दर्ज किये गए। वर्ष 2005 और 2006 से, भारत में चिकनगुनिया का एक बड़ा प्रकोप देखा जा रहा है। इससे प्रभावित राज्यों में शामिल हैं, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, गोवा, पांडिचेरी, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, अंडमान एवं निकोबार और दिल्ली। आजकर डेंगू की ही तरह, भारत भर में फ़ैल गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अभी इसके बहुत से नए केस देखे जा रहे है।
Chikungunya is a mosquito-borne viral disease transmitted to humans by bite of infected mosquitoes. It causes fever and severe joint pain. Other symptoms include muscle pain, headache, nausea, fatigue and rash. This diseases is spread in Africa, Asia and the Indian subcontinent. In recent decades mosquito vectors of chikungunya have spread to Europe and the Americas. It was first described during an outbreak in southern Tanzania, other neighboring areas in 1952 (arthralgia).
There is no cure for the disease. Its treatment is focused on relieving the symptoms. No specific antiviral drug is available for chikungunya. Treatment is done to relieve the symptoms, using anti-pyretic, analgesics and fluids. There is no commercial chikungunya vaccine.
चिकनगुनिया के लक्षण Chikungunya Symptoms
चिकनगुनिया का इन्क्यूबेशन पीरियड 2-12 दिनों का है, लेकिन आम तौर पर यह 3-7 दिनों में हो सकता है। इन्क्यूबेशन पीरियड के बाद अचानक तेज़ बुखार होता है (> 40 डिग्री सेल्सियस या 104 ° F)।
ठंड लगना, जोड़ों का दर्द या गठिया, व्यग्रता, मतली, उल्टी, सिरदर्द, हल्का फोटोफोबिया भी होता है। हाथ पैरों के जोड़ों में सूजन और दर्द होता है। कुछ रोगियों को अशक्त कर देने वाला जोड़ों का दर्द या गठिया भी हो जाता है जो कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक परेशान कर सकता है। एक्यूट चिकनगुनिया का बुखार कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ़्ते तक रह सकता है। इससे होने वाली दिक्कतें जैसे की जोड़ों की सूजन, दर्द, गठिया आदि कुछ महीनो या वर्षों तक मरीज़ को परेशान कर सकती है। चिकनगुनिया की डाइगनोसिस प्रायः तब की जाती है जब यह महामारी की तरह फैला हो तथा शरीर में तेज़ बुखार, दाने और आमवाती लक्षण हों।
बुखार जिसमें जोड़ों का दर्द हो
मांसपेशियों में दर्द, सिर दर्द, उल्टी, थकान और शरीर पर दाने
जोड़ों का दर्द आम तौर पर कुछ दिनों से लकर हफ्तों तक रह सकता है। लेकिन कुछ मामलों में जोड़ों के दर्द कई महीनों, या वर्षों के लिए रह सकता है।
एलोपैथिक उपचार
चिकनगुनिया का कोई विशेष उपचार एलोपैथी में नहीं है।
इसकी कोई वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है।
उपचार के तरीको में शामिल हैं, इंट्रावीनस फ्लुइड्स देना, ज्वरनाशक दवाई देना, सूजन कम करने की और एनाल्जेसिक दवाओं द्वारा दर्द कम करना।
क्लोरोक्विन फास्फेट (250 मिलीग्राम) Chloroquine Phosphate (250 mg) दिन में एक बार दैनिक देने से से चिकनगुनिया से पीड़ित लोगों में लाभ देखा गया है।
आयुर्वेदिक या हर्बल उपचार Ayurvedic or Herbal Treatment of Chikungunya
आयुर्वेद में चिकनगुनिया का उपचार उस बुखार की तरह किया जाता है जिसमें शरीर में बुखार के साथ आर्थराइटिस की समस्या भी हो। इस प्रकार के ज्वरों में वात-पित्त ज्वर, वात-कफ ज्वर और संधिगत सन्निपात ज्वर आते है। चिकनगुनिया जानलेवा तो नहीं है किन्तु शरीर को बहुत ही कष्ट देने वाला रोग है।
नीम की चाय, गिलोय का काढ़ा, त्रिफला का काढ़ा, तुलसी, सोंठ, अदरक का रस आदि का प्रयोग घरेलू उपचार की तरह किया जा सकता है।
तुलसी और नीम शरीर की इम्युनिटी को भी बढ़ाते है। यह शरीर में वात-कफ को कम करते हैं।
गिलोय लीवर की रक्षा करने वाली और वायरस जनित ज्वारों को नष्ट करने वाली उत्तम औषध है। गिलोय का काली मिर्च और तुलसी के पत्तों से बना काढ़ा डेंगू के साथ-साथ इसमें भी उपयोगी है। ताज़ी गिलोय न उपलब्ध होने पर, गिलोय घन वटी का प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ी गिलोय का काढ़ा गिलोय घन वटी से अधिक प्रभावशाली है।
स्वास्थ्यवर्धक वनस्पतियाँ:
आंवले, अश्वगंधा, गिलोय और मुलेठी का सेवन करने से शरीर में बल आता है। ये सभी आयुर्वेद की रसायन या टॉनिक औषधियां हैं।
आयुर्वेदिक दवाएं:
चिकनगुनिया के उपचार के लिए उपयोगी दवाएं
नीचे दी गई दवाओं को २ सप्ताह तक, गर्म पानी के साथ लें। सटीक दवा शरीर में देखे जा रहे लक्षणों, दवा के प्रभाव पर तय की जाती है।
संजीवनी वटी (100 mg) दिन में दो बार।
सुदर्शन घन वटी 500mg 1 गोली दिन में तीन बार।
अमृतारिष्ट 15-30 ml दिन में दो बार।
अथवा
संजीवनी वटी (100 mg) दिन में दो बार।
त्रयोदशांग गुग्गुलु 500mg दिन में तीन बार।
महारस्नादी क्वाथ 45 ml दिन में दो बार।
लक्षणों के आधार पर इनका सेवन करें:
बुखार और दर्द: दशमूल काढ़ा का सेवन करें।
बुखार के लिए: पटोलादि क्वाथ अथवा पञ्च तिक्त क्वाथ अथवा सुदर्शन चूर्ण का सेवन करें।
बुखार जिसमें कफ की अधिकता हो: निम्बादी क्वाथ
आमवात, गठिया, आर्थराइटिस जैसी स्थिति: रस्नादी क्वाथ अथवा महारास्नादि क्वाथ अथवा महा योगराज गुग्गुलु अथवा योगराज गुग्गुलु अथवा रसना सप्तक क्वाथ का सेवन करें।
पुराने बुखार में: आरोग्यवर्धिनी गुटिका का सेवन करें।
त्वचा पर दाने/रैशेस: गुडूच्यादी क्वाथ अथवा बिल्वादी गुटिका अथवा हरिद्रा खण्ड का सेवन करें।
चिकनगुनिया में गुग्गुलु का सेवन
गुग्गुलु क्योंकि शरीर में सूजन को दूर करते हैं इसलिए चिकनगुनिया में विशेष रूप से उपयोगी है। जब बुखार ठीक भी हो जाता है तो श्री में जोड़ों की दिकात रह जाती है। ऐसे में निम्न से किसी एक गुग्गुलु का सेवन शरीर में दर्द सूजन में राहत देता है:
सिद्ध की एक हर्बल दवा Nilavembu kudineer chooranam भी चिकनगुनिया में लाभकारी है। इसमें बुखार दूर करने के antipyretic, सूजन नष्ट करने के anti-inflammatory और दर्द निवारक analgesic गुण है।
अन्य सुझाव
पर्याप्त आराम करें।
पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों, ओआरएस, फलों का रस, संतरे का रस, अनार का रस और अन्य तरल पदार्थ का सेवन करें।
शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स और पानी की कमी न होने दें।
दूध, फलों का रस, इलेक्ट्रोलाइट समाधान (ओआरएस) और जौ/चावल का पानी का सेवन करें।
गेंहू के जवारे का २०-२५ मल जूस सुबह पीने से शरीर में इलेक्ट्रोलाइट की आपूर्ति होती है और ताकत मिलती है।
विटामिन सी का सेवन करें यह इम्युनिटी को बढ़ता है और आयरन के अवशोषण में भी मदद करता है।
नारियल पानी पियें।
पथ्य What to eat
जब तक शरीर का तापक्रम सामान्य न हो जाये, रोगी को तरल आहार ही दें। दूध और फलों के रस के सेवन से शरीर में कमजोरी कम करने में साहयता होगी और ज़रूरी पोषक पदार्थों की आपूर्ति भी होती रहेगी।
रोकथाम और नियंत्रण
चिकनगुनिया की रोकथाम के लिए सबसे ज़रूरी है मच्छर के काटने से बचा जाए।
त्वचा पर ओडोमोस, DEET युक्त मोसक्युटो रेपलेंट क्रीम लगायें।
सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
पूरी बांह के कपड़े, फुल पेंट पहनें।
अगर आस-पास में किसी को यह संक्रमण है तो विशेष सावधानी बरते।
इसका नियंत्रण करने के लिए मच्छरों के ब्रीडिंग स्थानों को नष्ट करना होगा। कूलर, A/C, चिड़ियों के लिए रखे पानी, गमले में रुके पानी को साफ़ कर दें। घर के आसपास पानी न इकठ्ठा होने दें।
त्रिकटु चूर्ण Trikatu, एक बहुत ही प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। त्रिकटु चूर्ण, को तीन (त्रि) कटु पिप्पली long pepper, काली मिर्च Black pepper और सोंठ dry ginger बराबर मात्रा में मिला कर बनाया जाता है। त्रिकटु पाचन और श्वास सम्बन्धी समस्याओं में लाभकारी है।
Trikatu
त्रिकटु आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है। यह यकृत liver को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म hot in potency है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है।
पर्याय Synonyms: Trikatu Choornam, Three Pungent and Trikuta त्रिकुटा चूर्ण, व्योष, The Three Spices Formula, Tri Ushna
दोषों पर प्रभाव Effect on Tridosha: वात तथा कफ को कम करना, पित्त को बढ़ाना Vata and Kapha reducing and Pitta increases
त्रिकटु चूर्ण के घटक Ingredients of Trikatu Powder
बराबर मात्रा में
Piper nigrum पाइपर निग्रम Black Pepper
Piper longum पाइपर लोंगम Long Pepper
Zingiber officinale जिंजिबर ओफीशिनेल Dry Ginger
पिप्पली, उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।
मरिच या मरिचा, काली मिर्च को कहते हैं। इसके अन्य नाम ब्लैक पेपर, गोल मिर्च आदि हैं। यह एक पौधे से प्राप्त बिना पके फल हैं। यह स्वाद में कटु, गुण में गर्म और कटु विपाक है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वशन और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।
अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।
शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।
त्रिकटु या त्रिकुटा के तीनो ही घटक आम पाचक हैं अर्थात यह आम दोष का पाचन कर शरीर में इसकी विषैली मात्रा को कम करते हैं। आमदोष, पाचन की कमजोरी के कारण शरीर में बिना पचे खाने की सडन से बनने वाले विशले तत्व है। आम दोष अनेकों रोगों का कारण है।
त्रिकटु घर पर कैसे बनायें?
घर पर यह चूर्ण बनाने के लिए आपके पास पिप्पली, काली मिर्च और सोंठ (सूखा अदरक) का होना ज़रुरी है।
इन्हें अलग-अलग बारीक पीस, बराबर मात्रा में अच्छे से मिला दें। इस चूर्ण को कपड़े से छान लें और किसी एयर-टाइट कंटेनर में रख लें।
त्रिकटु के फाइटोकेमिकल्स Phytochemicals
पिपेरीन (पाइपर निग्रम और पाइपर लोंगम से)
जिंजरोल्स (जिंजिबर ओफीशिनेल से)
त्रिकटु के औषधीय गुण Medicinal Properties
एंटी-वायरल Anti-viral: वायरस के खिलाफ प्रभावी
एंटी-इन्फ्लेमेटोरी Anti-inflammatory: सूजन को कम करने वाला
कफ निकालने वाला expectorant
वातहर Carminative
कफहर Phlegm reducing
एंटीहाइपरग्लैसिमिक Anti-hyperglycemic: रक्त में ग्लूकोज को कम करता है
वमनरोधी Anti-emetic: उलटी रोकने वाला
एंटीहिस्टामिन Anti-histamine
त्रिकटु के सेवन के लाभ Benefits of Trikatu Powder
त्रिकटु लीवर / यकृत liver को उत्तेजित stimulates कर बाइल bile का स्राव recreation कराता है जो की पाचन के लिए आवश्यक है।
त्रिकटु का सेवन पाचक अग्नि को बढ़ाता है जिससे पाचन बेहतर होता है।
यह वातहर है।
यह फेट फूलना, डकार आना आदि परेशानियों को दूर करता है।
यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को भी दूर करने में सहयोगी है।
यह मेटाबोलिज्म metabolism को बढ़ाता है जिससे वज़न कम करने में सहयोग होता है।
यह पोषक तत्वों की शरीर में अवशोषण के लिए उपलब्धता को बढ़ा शरीर को बल देने में मदद करता है।
यह कफहर है।
यह कफ दोष के कारण बढे उच्च रक्तचाप Kapha based hypertension में लाभ करता है।
यह उष्ण प्रकृति hot potency के कारण कफ का नाश करता है और फेफड़ों को स्वस्थ्य करता है।
यह शरीर से आम दोष Ama Dosha को नष्ट करता है।
यह लिपिड लेवल Lipid level को कम करता है।
यह शरीर से वसा fat को कम करता है।
यह बुरे कोलेस्ट्रोल LDLsऔर ट्राइग्लिसराइड triglyceridesलेवल को कम करता है।
यह हिस्टामिन का बनना रोकता है इसलिए एलर्जी में लाभप्रद है।
त्रिकटु चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग Uses of Trikatu Powder
त्रिकुटा का सेवन मुख्य रूप से पाचन और श्वास अंगों के रोगों में किया जाता है। यह तासीर में गर्म है और पित्त को बढ़ाता है तथा कफ को साफ़ करता है।
त्रिकुटा का सेवन मेटाबोलिज्म तेज़ करता है, इसलिए इसे वज़न कम करने के लिए भी खाया जाता है। इसे अनेकों आयुर्वेदिक दवाओं में भी डाला जाता है क्योकि यह दवा के अच्छे अवशोषण में मदद करता है bioavailability of other drugs। इसके अतिरिक्त यह वात-कफ हर भी है।
मक्के का सूप स्वस्थ शारीर के लिए बहुत लाभकर होता है। अगर इसे बिना घी/तेल के पकाया जाये तो यह कोलेस्ट्रॉल को घटने में बहुत मदद करता है और वजन कम करने में भी बहुत ही असरकारी है। कॉर्न सूप को सुबह नसते में खाना ज्यादा लाभदायक होता है।
कॉर्न सूप बनाने की बिधि
4 कप ताज़ा मक्का
5 कप पानी
1 चम्मच कटा धनिया
1 इंच अदरक बारीक कटा हुआ
2 tbs घी
1 चाय का चम्मच जीरा
1/4 चाय का चम्मच काली मिर्च
1 चुटकी नमक
बनाने की बिधि
कॉर्न को २ कप पानी मिला कर मिक्सी में पीस ले और एक तरफ रख दें। अब अदरक और धनिया को 1/4 कप पानी मिला कर अच्छे से पीस लें।
अब एक सूप पैन में घी गरम करें और जीरा का तदाका लगायें।अब इसमे पिसा हुआ मक्का, अदरक और धनिया का पेस्ट और काली मिर्च मिलाएं और २ कप पानी मिलाएं। अब इसे धीमी आंच पर १५ मिनट तक पकायें। इसे बीच बीच में हिलाते रहें।
लीजिये आप का कॉर्न सूप तैयार है परोसने से पहले १ चुटकी नमक स्वादानुसार डालें।
अगर आप इसे और हेल्दी बनाना चाहते हैं तो घी बहुत थोडा डालें।
इस सूप को नसते में खाएं यह आप के cholesterol और weight कम करने में बहुत सहायता करेगा।