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गर्भावस्था का चौथा महीना Fourth Month of Pregnancy in Hindi

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गर्भ में शिशु करीब 38 सप्ताह रहता है, लेकिन गर्भावस्था (गर्भ) का औसत समय 40 सप्ताह गिना जाता है। इसका कारण यह है गर्भावस्था को मासिक न आने वाले महीने के पहले दिन से गिना जाता हैं जबकि गर्भाधान conception पीरियड के बीच में (दो हफ्ते बाद) होता है। पहली तिमाही सप्ताह 9-12 तक रहती है और उसके बाद दूसरी तिमाही शुरू हो जाती है। गर्भावस्था के चौथा महीना 13 सप्ताह से शुरू हो जाता है।

गर्भावस्था को तीन ट्राइमेस्टर में बांटा जा सकता है: Pregnancy is divided into three trimesters

  • पहली तिमाही First trimester: गर्भाधान से 12 सप्ताह (conception to 12 weeks / 1-3 months)
  • दूसरी तिमाही Second trimester: 13 से 26 सप्ताह (12 to 26 weeks / 3-6 months)
  • तीसरी तिमाही Third trimester: 27 से 40 सप्ताह (27 to 40 weeks / 6-9 months or till delivery)

Fourth month of pregnancy (13-16 weeks)

13 से 16 सप्ताह का समय गर्भावस्था का चौथा महिना होता है। इस समय मोर्निंग सिकनेस, जी मिचलाना आदि समस्या नहीं रहती और एनर्जी लेवल पहले से बेहतर होता है। गर्भ में शिशु की भौंहें, पलकें, और नाखून बन जाते हैं। बच्चा अब हाथ और पैर को फैला सकता है। बाहरी प्रजनन अंग का गठन हो रहा होता है तथा प्लेसेंटा/ नाल पूरी तरह से बन चुकी होती है। बाहरी कान भी विकसित होने लगते है। शिशु अब निगल सकता है और सुन भी सकता है। सकते हैं। गर्दन बन जाती है। गुर्दे काम करने लगते हैं और मूत्र का उत्पादन शुरू हो चूका है।

सप्ताह 13

  1. बच्चे में अब इंसुलिन हार्मोन बनने लगा है जो की उसके रक्त में ग्लूकोज को नियंत्रित करता है।
  2. शिशु अब 3 इंच लंबा है और करीब 30 ग्राम का है।
  3. बच्चे की नाक और ठुड्डी बन गयी है।
  4. बच्चा अपना मुंह खोल और बंद कर सकता है।
  5. बच्चा अब लगातार हाथ और पैर हिलाता रहता है।
  6. बच्चे के बाहरी जनन अंग बन चुके हैं।
  7. अब बच्चे के सभी महत्वपूर्ण अंगों का तेज़ी से विकास हो रहा है।

सप्ताह 14

  1. शिशु अब 3.42 इंच लम्बा है और करीब 43 ग्राम का है।
  2. बच्चे की त्वचा अभी पारदर्शी है।
  3. आंखे धीरे-धीरे अपनी जगह पर आ रही हैं।
  4. नाक और अधिक स्पष्ट है।
  5. कान पूरी तरह से विकसित हैं।
  6. पहले बाल दिखाई देने लगे है।
  7. गुर्दे मूत्र का उत्पादन कर रहे हैं।
  8. लड़कियों में, अंडाशय श्रोणि की ओर नीचे जा रहे हैं।
  9. लड़कों में, प्रोस्टेट ग्रंथि विकसित का विकास हो रहा है।
  10. गर्भाशय और प्लेसेंटा बढ़ रहे हैं।
  11. गर्भाशय का वज़न अब करीब 250 ग्राम है।
  12. गर्भाशय नाभि के करीब ३ इंच नीचे तक पहुँच चुका है।

सप्ताह 15

  1. शिशु अब 4 इंच (10 सेमी) इंच लम्बा है और करीब 75 ग्राम का है।
  2. वह हाथों और पैरों को हिला सकता है।
  3. बच्चे की त्वचा अभी भी बहुत पतली है।
  4. मध्य कान का विकास हो रहा है।
  5. बच्चे में टेस्ट बड्स काम करने लगे हैं और बच्चा समान के भोजन का स्वाद ले सकता है।

सप्ताह 16

  1. शिशु अब 5 इंच (12 सेमी) इंच लम्बा है और करीब 100 ग्राम का है।
  2. त्वचा के नीचे वसा का जमाव शुरू होने लगा है।
  3. बच्चा अब सांस ले सकता है, सोता है, जगता है और बाहरी आवाजें सुन सकता है।

माँ का वज़न अब बढता है और पैरों में दर्द हो सकता है। इस समय से हर २-३ घंटे पर कुछ न कुछ पौष्टिक जैसे की फल, दूध, नारियल पानी आदि खाएं। कब्ज़ को दूर रहने के लिए पानी पियें, इसबगोल की भूसी भी ले सकती हैं। सप्ताह 16-20 के बीच आप बच्चे की हलचल, पैर मारना आदि महसूस कर सकती हैं।


प्रसव के लक्षण Signs of labor in Hindi

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प्रसूति / प्रसव, जिसे इंग्लिश में लेबर कहते हैं, वो प्रक्रिया है जिसके द्वारा गर्भ में पल रहा शिशु, जिसने शुरुआत डिम्ब और शुक्राणु से की थी, जन्म लेता है। इस प्रक्रिया के द्वारा न केवल बच्चे बल्कि एक माँ का जन्म भी होता है क्योंकि बच्चा जनने के बाद ही एक स्त्री, माँ कहलाती है।

गर्भाशय जो शिशु को नौ महीनों अपने तरल में रखता है, वह एक मांसपेशीय अंग है। इसमें होने वाले संकुचन बच्चे को बाहर धकेलते हैं। जब गर्भाशय ग्रीवा यानि की गर्भाशय की गर्दन खुल जाती और तब योनि के माध्यम से बच्चा बाहर आता है। कुछ ही देर में बच्चे को पोषण दने वाला प्लेसेंटा (नाल) भी बाहर आ जाता है और लेबर की प्रक्रिया पूरी होती है। पूरे लेबर में बहुत ही दर्द होता है और घंटों का समय लगता है।

पहले बच्चे के समय प्रसव में औसतन 12 से 18 घंटे लगते हैं जबकि दूसरे बच्चे में यह समय 7 घंटे माना जाता है। किन्तु यह याद रखना भी ज़रूरी है की हर प्रेगनेंसी अलग होती है और ज़रूरी नहीं जैसा एक प्रसव में हुआ है वैसा दूसरे में भी हो।

प्रसूति / प्रसव प्रक्रिया के तीन चरण Three Stages of Labor in Hindi

प्रथम चरण First Stage:

जिस अवधि के दौरान गर्भाशय ग्रीवा खुलती है और 0-10 सेंटीमीटर फैल जाती है।

सर्विक्स के फैलाव / dilatation के अनुसार लेबर को अर्ली लेबर, एक्टिव लेबर और ट्रांजीशन लेबर में बांटा गया है।

1. अर्ली लेबर Early labor: फैलाव 0-4 सेंटीमीटर, गर्भाशय ग्रीवा के खुलने की शुरुआत। संकुचन हर 5 से 30 मिनट पर और करीब 30 सेकंड के लिए।

2. एक्टिव लेबर Active labor: फैलाव 4-8 सेंटीमीटर, संकुचन हर 3 से 5 मिनट पर और करीब 45-60 सेकंड लिए।

3. ट्रांजीशन लेबर Transition: फैलाव 8-10 सेंटीमीटर, संकुचन हर 2 से 3 मिनट पर और करीब एक से डेढ़ मिनट लम्बे। 10 सेंटीमीटर से पूरा फैलाव जिससे नवजात बाहर आ सके।

दूसरा चरण Second Stage:

  1. धक्के द्वारा बच्चे को बर्थ कैनाल में आगे बढ़ाने की अवधि जिससे योनि से होकर बच्चा जन्म ले सके।
  2. गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से गर्भाशय में चली जाती है जिससे गर्भाशय और बर्थ कैनाल एक हो सकें।
  3. सर्विक्स अब पूरी तरह से खुल चुला है।
  4. संकुचन हर 2 से 5 मिनट पर आते है और करीब 2 मिनट तक रहते है। हर पुश / धक्के के साथ बच्चा बर्थ कैनाल में आगे बढ़ता है। प्रत्येक संकुचन बच्चे को धक्का दे कर आगे बढ़ाता है।
  5. बच्चा प्यूबिक बोन के नीचे जाता है जहाँ से सिर दिखने लगता है। अब पुश करने को रोकने को कहा जाता है और डॉक्टर पेरिनियम पर काम कर उसे पीछे हटाते हैं और बच्चा निकाल लिया जाता है। गर्भनाल काट सी जाती है।

तीसरा चरण Third Stage:

  1. नाल / प्लेसेंटा placenta का निष्कासन।
  2. प्लेसेंटा गर्भाशय से अलग हो जाता है और योनि से डार्क ब्लड के साथ बाहर आ जाता है।

प्रसव शुरू होने के संकेत Signs of labor

यदि आप गर्भवती हैं और गर्भावस्था के किसी ही समय आपको निम्न लक्षण हो तो भी तुरंत हॉस्पिटल में जा कर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। किसी भी तरह की दिक्कत में हॉस्पिटल में बिना समय गवाएं आप का सही ट्रीटमेंट हो सकेगा। अगर गर्भ के पहले 28 सप्ताह पर योनि से पानी या खून जाने लगे तो यह संभावित गर्भपात के लक्षण है।

  1. गर्भावस्था के अंत में या 9वें महीने में ब्रेक्सटन हिक्स संकुचन में वृद्धि हो जाती है। ब्रेक्सटन हिक्स कॉन्ट्रैक्शन वे संकुचन हैं जो पूरी गर्भावस्था में रुक-रुक का आते रहते है। इनमे दर्द नहीं होता। लेकिन लेबर शुरू होने में इसमें दर्द भी होता है। प्रसव के लक्षणों में शामिल है:
  2. बच्चे का हिलना-डुलना कम हो जाना या बंद हो जाना
  3. झिल्ली का फट जाना (कई मामलों में ऐसा नहीं होता)
  4. योनि से खून जाना, खून जाने से पहले सफ़ेद डिस्चार्ज
  5. नियमित अंतराल पर संकुचन, इन कॉन्ट्रैक्शन के आने का अंतराल छोटा होता जाता है
  6. ऐंठन, पेट दर्द, मासिक जैसे दर्द
  7. पीठ में दर्द का होना
  8. पैर में दर्द होना, क्रैम्प आना
  9. बेचैनी होना, पसीना अना
  10. सर्विक्स / गर्भाशय की गर्दन का फ़ैलना
  11. बहुत अधिक दर्द होना

यदि ऐसे लक्षण हों तो तुरंत ही हॉस्पिटल जा कर गाइनाकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए। गाइनाकोलॉजिस्ट, योनि की फिंगर जांच के द्वारा यह पता लगाते हैं की बच्चा नीचे की तरफ आ रहा है की नहीं और योनी का डाईलेशन कितना है। यदि लेबर शुरू हो चुका हो तो तुरंत ही हॉस्पिटल में एडमिट हो जाएँ जिससे बच्चे का जन्म सही से डॉक्टरों की देख-रेख में हो सके।

लिम्सी Limcee tablet Detail and Uses in Hindi

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लिम्सी एक ऐलोपथिक विटामिन सी का सप्लीमेंट है जो की ओवर द काउंटर OTC ड्रग (बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के) उपलब्ध है। इसके सेवन से विटामिन सी की दैनिक ज़रूरत पोरी हो जाती है।

इस पेज पर इस दवा के बारे बताया गया है जो की केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है।

Limcee is an allopathic supplement for preventing and curing deficiency of vitamin c in body.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

ब्रांड का नाम: AHPL

जेनरिक: एस्कॉर्बिक एसिड 100 मिलीग्राम, सोडियम एस्कोरबेट 450 मिलीग्राम

प्रकार: Over the counter ओटीसी

अवशोषण: विटामिन सी का अवशोषण छोटी आंत में होता है।

उत्सर्जन: विटामिन सी और विटामिन सी के चयापचय से बने पदार्थ मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं।

लिम्सी के घटक Ingredients of Limcee tablet

एस्कॉर्बिक एसिड 100 मिलीग्राम, सोडियम एस्कोरबेट 450 मिलीग्राम

विटामिन सी की कमी के लक्षण

विटामिन सी की कमी से स्कर्वी सिंड्रोम होता है।

विटामिन सी की कमी के लक्षणों में शामिल हैं, थकान, कमजोरी, मसूड़े की सूजन, मसूड़ों से खून आना, त्वचा पर छोटे लाल या बैंगनी रंग के धब्बे, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में दर्द, एनीमिया, घाव न भरना आदि।

लिम्सी के स्वास्थ्य लाभ

  1. यह एंटीऑक्सीडेंट है और फ्री रेडिकल के हानिकारक प्रभावों से बचाता है।
  2. यह कोलेजन के संश्लेषण, न्यूरोट्रांसमीटर और carnitine के लिए आवश्यक है।
  3. यह पाचन तंत्र से लोहे के अवशोषण के लिए जरूरी है।
  4. यह इम्युनिटी को बढ़ा देता है और बार-बार होने वाले आम सर्दी से बचाता है।
  5. यह केशिकाओं, हड्डियों, दांतों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

लिम्सी के चिकित्सीय उपयोग Uses of Limcee tablet

विटामिन सी की कमी को रोकने और अगर की है तो उसे दूर करने के लिए

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Limcee tablet

इसे दिन में एक बार चबा के लें। इसे दिन में कभी भी ले सकते हैं।

दुष्प्रभाव

निर्धारित मात्रा में लना पूरी तरह से सुरक्षित है।

ज्यादा मात्रा में सेवन स्त, मतली, और पेट में ऐंठन का कारण हो सकता है।

विटामिन सी ओक्ज़लेट बनाता है।

बादाम Sweet almonds in Hindi

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बादाम Almonds को तो सभी जानते है। यह एक सूखा मेवा / ड्राई फ्रूट dry fruit है। यह बहुत ही पौष्टिक होता है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करता है। इसमें प्रोटीन, वसा, लोहा, कैल्शियम, फोस्फोरस और कैल्शियम होता है। बच्चे, बड़े सभी के लिए यह बहुत लाभप्रद है।

Sweet Almond

बादाम का वैज्ञानिक नाम प्रूनस अमाईगडैलस Prunus amygdalus या अमाईगडैलस कम्युनिस Amygdalus communis है और यह गुलाब-कुल का पेड़ है। बादाम ठंडी जगहों पर उगता है। इसका पेड़ आड़ू के पेड़ जैसा होता है। यह कभी कभी 12.2 मीटर की ऊंचाई का भी हो सकता है। बादाम के कच्चे फल, अपरिपक्व आड़ू जैसे दिखते है और समूहों में पाये जाते है। बादाम शीतोष्ण क्षेत्र जहाँ शुष्क गर्मी पड़ती हैं का एक पेड़ है। इसकी कश्मीर (भारत), बलूचिस्तान (पाकिस्तान), अफगानिस्तान, ईरान, साइप्रस, तुर्की, स्पेन और कैलिफोर्निया (यूएसए) में खेती की जाती है।

चरक और सुश्रुत ने वाताम नाम से इसका वर्णन किया है और इसे अकेले ही या अन्य घटक के साथ आंतरिक दुर्बलता debility, एनीमिया anemia कमजोरी weakness को दूर करने के लिए और शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया। बादाम का सेवन शक्ति और वीर्य को बढ़ाता है। यह अत्यधिक पौष्टिक, शांतिदायक और टॉनिक है। यह मूत्रवर्धक माना जाता है। इसे आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने जैसे की अमृतप्राश घी, में भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक विद्वानों के अनुसार बादाम ईरान से आना वाला बादाम सबसे अच्छा माना है।

बादाम की दो प्रजातियाँ होती है, मीठे बादाम sweet almond और कड़वे बादाम bitter almond। दोनों के पेड़ों को अंतर नहीं होता। मीठे बादाम को ही खाने के लिए प्रयोग किया जाता है। कड़वे बादाम में साईनोजेनिक ग्लाइकोसाइड- अमाईगडेलिन amygdalin पाया जाता है, जिस कारण यह जहरीला होता है। कडवे बादाम का पेस्ट बालों में लगाने से जुएँ मर जाती हैं। कड़वे बादाम को केवल बाहरी प्रयोग के लिए प्रयोग किया जाता है।

स्थानीय नाम

  1. आयुर्वेदिक: वाताम
  2. यूनानी: बादाम शीरीन
  3. इंग्लिश: स्वीट आलमंड
  4. अरबी : Louz, Lujaalhulu
  5. बांग्ला : Badam, Bilati badam
  6. गुज़राती : Badam
  7. हिन्दी : Badam
  8. कोंकणी : Amend, Amendi
  9. मलयालम: Badam, Vadam: kotta
  10. मराठी : Badam
  11. पर्शियन् : Badam
  12. पंजाब : Badam
  13. तमिल : Parsi: vadumai, Vaclam: kottai, Vadumai
  14. तेलुगू : Badamamu, Badamn
  15. पारसी : badami

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सब क्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  • आर्डर Order: रोज़ेल्स Rosales
  • परिवार Family: रोज़ेसीआई Rosaceae – गुलाब कुल
  • जीनस Genus: प्रूनस Rosaceae – प्लम
  • प्रजाति Species: Prunus dulcis प्रूनस डलचिस

पर्यावास और वितरण: उष्णकटिबंधीय, शीतोष्ण क्षेत्रों में

खाद्य भाग: परिपक्व बादाम

बादाम का तेल Almond Oil / Rogan Badam Shirin

बादाम का तेल, बादाम से कोल्ड प्रेस cold press oil of almond kernel, kernel oil करके निकाला जाता है। इसका रंग हल्का पीला होता है। इसकी गंध अच्छी होती है और स्वाद फीका नटी होता है। इसमें Vit B1, B2, B3, E, वसा और मिनरल्स होते हैं।

यूनानी में बादाम के तेल को रोग़न बादाम शीरीन Roghan Badam और इंग्लिश में इसे आलमंड आयल कहते हैं। बादाम के तेल को पीने से शरीर मजबूत होता है। यह शरीर की आंतरिक रुक्षता internal dryness को भी दूर करता है। इसकी कुछ बूंदों को नाक में डाल देने से रुक्षता के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर होता है। बादाम का तेल सभी प्रकार के दर्द और कोलिक में फायदा करता है। यह नर्व्स के लिए एक टॉनिक Nervine tonic है।

बादाम के तेल में निम्नलिखित मुख्य गुण पाए जाते हैं:

  1. बैक्टीरिया को न बढ़ने देना Antibacterial
  2. जलन, सूजन से राहत देने वाला Demulcent
  3. मुलायम करने वाला Emollient
  4. विरेचक Laxative

बादाम का तेल निम्न रोगों में लाभप्रद है:

  1. ब्रोन्कियल रोग bronchial diseases
  2. कफ cough
  3. आवाज़ बैठना hoarseness
  4. कब्ज़ Constipation
  5. ज्यादा कोलेस्ट्रोल High Cholesterol
  6. बाहरी रूप से त्वचा का रूखापन, मालिश के लिए, आँखों के नीचे काले घेरे
  7. नस्य की तरह नाक में सिर के दर्द के लिए
  8. बादाम का तेल पौष्टिक, वाजीकारक, कामेच्छा को बढ़ाने वाला, हल्का विरेचक, और सिर के दर्द को दूर करने वाला होता है।
  9. बादाम का तेल 3-5 ml मात्रा में लिए जाता है।
  10. बादाम खाने के लाभ Health Benefits of Badam in Hindi
  11. यह शरीर को पोषण और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  12. यह पित्त और वात को रोकता है।
  13. यह दिमाग और नर्वस सिस्टम के लिए बहुत ही अच्छा भोजन है।
  14. बादाम स्वास्थ्य के लिए एक टॉनिक है
  15. यह दर्द और सूजन को दूर करता है।
  16. यह वज़न और इम्युनिटी को बढ़ाता है।
  17. यह लीवर की रक्षा करता है।
  18. इसमें करीब 60 % वसा, 21 % प्रोटीन, बी विटामिन और 3 % मिनरल्स (मुख्यतः आयरन, फॉस्फोरस और कैल्शियम) होते हैं। इसमें ओक्सालिक एसिड भी पाया जाता है।
  19. यह विटामिन ई Vitamin E का बहुत समृद्ध स्रोत है।
  20. यह कब्ज़ को दूर करता है।
  21. इसके सेवन से त्वचा की रंगत साफ़ होती है।

Medicinal Uses of Sweet Almond in Hindi

बादाम स्वास्थ्य के लिए बड़े फायदेमंद है. लेकिन इन्हें पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति चाहिए। इसको सुपाच्य करने के लिए, खाने से पहले इसे रात भर पानी में भिगो दें। सुबह बाहरी भूरा छिलका हटा दें और पत्थर पर घिस कर इसका सेवन करें। शुरू में बादाम का पेस्ट करीब आधा चम्मच की मात्रा में, दिन में दो बार दूध के साथ लें। धीरे धीरे मात्रा को बढ़ाएं।

पुरुष बादाम के पेस्ट के साथ पांच ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण Ashwagandha Powder लें और महिलायें पांच ग्राम शतावर का चूर्ण Shatavari Churna ले सकती हैं।

१. शीघ्र पतन में premature ejaculation

बादाम के पेस्ट में 4-5 काली मिर्च black pepper, दो ग्राम सोंठ dry ginger और मिश्री मिलाकर चाटें। ऐसा २-३ महीने करें।

बादाम के पेस्ट के साथ पांच ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण और पिप्पली Piper longum, दूध, व मिश्री के साथ लें।

२. वज़न बढाने के लिए, दुबलापन, कम वज़न

बादाम के पेस्ट को मक्खन के साथ कुछ महीने खाएं।

३. पीठ में दर्द, सफ़ेद पानी, कमजोरी

पांच से छः बादाम पत्थर पर घिस कर लें।

४. बच्चों की मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए, याददाश्त की कमी, दिमागी कमजोरी

पांच से छः बादाम पत्थर पर घिस कर लें।

बादाम + सौंफ + मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर लें।

५. सिर का दर्द, माइग्रेन

कुछ बादाम चबा कर खाएं।

नाक में बादाम के तेल की कुछ बूँदें डालें।

६. मुहांसे, रंगत सुधारना

बादाम को घिस कर दूध के साथ मिलाकर लगायें।

बादाम पेस्ट + हल्दी पाउडर चुटकी भर + पपीते का पेस्ट, मिलाकर लगायें।

बादाम को रात में भिगो दें, सुबह दूध में पेस्ट बनाकर लागएं।

७. जले पर, रूखी त्वचा पर

बादाम का तेल लगायें।

८. पेप्टिक अल्सर

बादाम भिगो कर खाएं।

९. पेशाब की जलन, कम पेशाब होना

रात को 5-6 बादाम पानी में भिगो दें और सुबह छील कर छोटी इलाइची के पाउडर और मिश्री के साथ खाएं।

१०. तुतलाना, हकलाना

रात को 5-6 बादाम पानी में भिगो दें और सुबह छील कर मक्खन के साथ खाएं।

११. सूखी खांसी

बादाम मुंह में रख कर चूसें।

१२. सुजाक

बादाम की गिरियाँ 6 + चन्दन का बुरादा 3 ग्राम + मिश्री 10 ग्राम को पत्थर पर रगड़ें और दिन में दो बार, सुबह-शाम खाएं।

१४. चक्कर आना

रात को 5-6 बादाम पानी में भिगो दें और सुबह छील लें। इसमें तीन छोटी इलाइची + तीन काली मिर्च मिलाकर दूध के साथ लें।

Cautions / Side-effects

  1. आयुर्वेद के अनुसार, बादाम में तेल होता है और यह कफ को बढाता है।
  2. बादाम का सेवन पाचन शक्ति के अनुसार ही किया जाना चाहिए ।
  3. इसके सेवन से यदि भूख लगना कम हो या पाचन में किसी भी तरह की दिक्कत हो तो मात्रा को कम करें।
  4. बादाम को गर्भावस्था में ज्यादा मात्रा में नहीं खाना चाहिए।
  5. कड़वे बादाम में हाइड्रोसाइनिक एसिड hydrocyanic acid होता है। इसे नहीं खाना चाहिए।
  6. बादाम पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति चाहिए। इसको सुपाच्य करने के लिए, खाने से पहले इसे रात भर पानी में भिगो दें। सुबह बाहरी भूरा छिलका हटा दें और पत्थर पर घिस कर इसका सेवन करें।

एस्पिरिन Aspirin Detail in Hindi

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एस्पिरिन, ऐसिटाईल सैलिसिलिक एसिड acetylsalicylic acid compound यौगिक / कंपाउंड का आम भाषा में प्रयोग किया जाना वाला नाम है। यह एलोपैथिक दवाई है जो शरीर में बुखार, दर्द और सूजन दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसमें दर्द निवारक analgesic, सूजन दूर करने anti-inflammatory के और बुखार कम करने के antipyretic गुण हैं। Aspirin is the common name for the acetylsalicylic acid. It has anti-inflammatory, analgesic and antipyretic agent.

एस्पिरिन और सैलिसिलिक एसिड का प्रयोग दवा के रूप में हजारों साल से होता आया है। लगभग 2400 साल पहले, हिप्पोक्रेट्स, प्राचीन यूनानी चिकित्सक, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा का जनक माना जाता है, ने विलो पेड़ की छाल को नेत्र रोगों और दर्द के इलाज़ के लिए प्रयोग किया। विलो पेड़ों की छाल में सैलिसिलिक एसिड होता है तथा सैलिसिलिक शब्द को भी विलो पेड़ों के जीनस सेलिक्स Salix, से लिया गया है।

एस्पिरिन तैयार करने के लिए, सैलिसिलिक एसिड को एसिटिक एनहाइड्राइड acetic anhydride से रियक्त कराया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी स्ट्रांग एसिड की कम मात्रा में एक उत्प्रेरक catalyst की तरह (जो प्रतिक्रिया को तेज़ करता है) प्रयोग किया जाता है। प्रतिक्रिया में एसिटिक एसिड व एस्पिरिन उत्पाद बनता है। एस्पिरिन उत्पाद क्योंकि पानी में बहुत घुलनशील नहीं है इसलिए यह नीचे बैठ जाता है और चूंकि एसिटिक एसिड पानी में बहुत घुलनशील है, तो इसे बहुत सरलता से अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार बनी एस्पिरिन अभी अशुद्ध crude aspirin है। इसे शुद्ध करने के लिए गर्म इथेनॉल में इस कच्चे उत्पाद का रीक्रिस्टलाइज़ेशन किया जाता है।

जेनरिक नाम: ऐसिटाईलसैलिसिलिक एसिड acetylsalicylic acid

क्लास: Anticoagulants, Anti platelets & Fibrinolytics (Thrombolytics) / Nonsteroidal Anti-Inflammatory Drugs (NSAIDs)

तीसरी तिमाही में प्रेगनेंसी केटेगरी (when taken in full dose):

केटेगरी डी Category D – मानव भ्रूण पर इस दवा का प्रतिकूल असर positive evidence of human fetal risk होता है।

एस्पिरिन के चिकित्सीय प्रयोग

  • दर्द Mild to moderate pain
  • जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द Joint or muscular pain
  • माइग्रेन Migraine
  • बुखार Fever
  • सूजन Swelling
  • खून को पतला करने के लिए Blood thinning

कम मात्रा में इसका प्रयोग हृदय रोगों, खून का थक्का न बने आदि में किया जाता है।

इकोस्प्रिन ७५ Ecosprin-75 में एस्पिरिन की मात्रा 75 mg की होती है। Ecosprin AV 75/10 and 75/20, में एस्पिरिन 75 mg के साथ एटोरवास्टेटिन atorvastatin क्रमशः 10 mg और 20 mg की मात्रा में होता है।

इसी प्रकार से उपलब्ध दवा Ecosprin AV 150/20 mg में एस्पिरिन 150 mg और एटोरवास्टेटिन atorvastatin 20 mg की मात्रा में होता है। ये दवाएं एंटीप्लेटलेट होती है और खून का थक्का बनने से रोकती हैं। इन्हें स्ट्रोक के खतरे, स्टंट लगने पर, दर्द और सूजन से राहत के लिए तथा बुखार में डॉक्टर के निर्देश से लिए जाता है।

एस्पिरिन की सेवन मात्रा

  • एस्पिरिन या ऐसिटाईलसैलिसिलिक एसिड, 75 mg, 100 mg, 300 mg, 500 mg की टेबलेट के रूप में उपलब्ध है।
  • वयस्क इसकी 3 से 6 ग्राम की मात्रा एक दिन में, चार खुराकें कर के, ले सकते है।
  • बच्चे, जिनका वज़न 20 kg से ज्यादा है को, इसकी 25 to 1000 mg/kg/day in 4 divided doses दी जा सकती है।
  • बुखार में इसका सेवन १-३ दिन तक किया जाता है। इसकी 325-650 mg की गोली हर 4-6 घंटे पर ली जाती है। एक दिन में 4 ग्राम से ज्यादा की मात्रा बुखार के दौरान नहीं ली जानी चाहिए।
  • जोड़ों के विकारों में musculoskeletal and joint disorders इसकी शुरू में 2.4-3.6 ग्राम की मात्रा / दिन और रखरखाव के लिए 3.6-5.4 ग्राम / दिन दी जाती है।
  • माइग्रेन में इसकी 300-500 mg की गोली ली जा सकती है।

एक दिन में ली जा सकने वाली मात्रा

बड़ों के लिए इसकी एक दिन में ली जाने वाली अधिकतम मात्रा 6 gram और बच्चों के लिए वज़न के अनुसार, 100 mg / kg /day है।

Contraindications, Precautions and Side effects

  1. जिन्हें एस्पिरिन से एलर्जी हो, पेप्टिक अल्सर हो, हेमरेज की समस्या हो वे इसका सेवन न करें।
  2. जिन्हें अस्थमा की शिकायत हो, वे इसका सावधानी से प्रयोग करें।
  3. एस्पिरिन शिशुओं को नहीं दी जाती।
  4. इसे अतिसंवेदनशीलता, सक्रिय पेप्टिक अल्सर, अस्थमा, पित्ती, गर्भावस्था की तीसरी तिमाही,12 वर्ष से छोटे बच्चे, हीमोफीलिया या रक्तस्रावी रोग, गठिया, गंभीर गुर्दे या यकृत रोग, आदि में प्रयोग नहीं करना है।
  5. निर्देशित मात्रा से ज्यादा का सेवन हानिकारक है। यह एलर्जी, पेट में दर्द, अल्सर, हेमरेज, चक्कर आना, कान में आवाज़ आना आदि दिक्कतें पैदा करता है।
  6. डेंगू के मौसम में बुखार के लिए एस्पिरिन का प्रयोग बिलकुल न करें। डेंगू के बुखार में हेमरेज हो सकता है। एस्पिरिन का सेवन खून को पतला करता है, थक्का नही जमने देता और इसलिए यह रक्तस्राव की संभावना को बढ़ा देता है।
  7. इसे दूसरी एंटीकोगुलेंट, और सूजन दूर करने वाली दवाओं के साथ न लें।
  8. इसे खाली पेट न लें।
  9. इसे बहुत सारे पानी के साथ लें।
  10. इसे फुल डोज़ में गर्भावस्था न लेने की सलाह है। कुछ मामलों में कम मात्रा में इसे डॉक्टर दे सकते हैं।
  11. स्तनपान के दौरान इसे न लें।

सेब का सिरका Apple Cider Vinegar in Hindi

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एप्पल साइडर विनेगर या सेब का सिरका, सेब के किण्वन fermentation द्वारा बनाया जाता है। फर्मंटेशन प्रक्रिया fermentation के दौरान, सेब में मौजूद चीनी बैक्टीरिया और यीस्ट के द्वारा पहले अल्कोहल और फिर सिरका में बदल दी जाती है। इस सिरका में एसिटिक एसिड व कुछ मात्रा में लैक्टिक, साइट्रिक और मैलिक एसिड होता है। सेब का सिरका विविध रोगों में लाभप्रद है।

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By Phongnguyen1410 (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
सेब के सिरके को बहुत ही प्राचीन समय से मिस्त्र, ग्रीस और रोमन के द्वारा प्रयोग किया जाता रहा है। सेब का सिरका शरीर में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाता है। यह शरीर में एसिड-एल्कलाइन / अम्ल-क्षार acid-alkaline balance के संतुलन को बनाये रखने में मदद करता है। सेब का सिरका स्वाद में खट्टा होता है। इसमें एसिटिक एसिड की मात्रा अधिक होती है जिस कारण यह शरीर में खनिजों का अवशोषण mineral absorption बढ़ा देता है। ऐसे तो यह स्वाद में एसिडक acidic होता है पर यह पाचन के बाद क्षारीय alkaline हो जाता है और शरीर में अम्लता को कम करता है। स्वस्थ्य शरीर के लिए शरीर में एसिड की मात्रा कम व क्षार की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।

यह शरीर में वात को कम करता है। यह पित्त के स्राव को बढ़ाता है। इसका सेवन मोटापा कम करता है, खून को साफ़ करता है, पाचन को सही करता है और शरीर की गंदगी को निकालने में मदद कर त्वचा को सुन्दर बनाता है।

इसे आप सलाद की ड्रेसिंग की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जो सिरका फिल्टर्ड filtered होता है वह एकदम साफ़ सा दिखता है जबकि बिना फ़िल्टर unfiltered किया हुआ सिरका भूरा होता है और इसमें कुछ तैरता हुआ सा भी दीखता है। तैरने वाला पदार्थ सेब में पाए जाने वाले पेक्टिन व अन्य पदार्थ होते हैं। बिना किसी प्रोसेसिंग और बिना फ़िल्टर किया हुआ सिरका ही स्वास्थ्य के बेहतर है क्योंकि इसमें मिनरल्स, एमिनो एसिड्स और विटामिन्स पाए जाते हैं।

सेब का सिरका क्यों फायदेमंद है? Why Apple Cider Vinegar is Beneficial?

एप्पल सीडर विनेगर में ऐसे बहुत से पदार्थ पाए जाते हैं जो इसे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद बनाते हैं। इसमें कैल्शियम, लोहा, पोटैशियम, मिनरल्स आदि होते हैं। इसके मुख्य घटकों में शामिल हैं:

  1. पोटैशियम
  2. एसिटिक एसिड
  3. मैलिक एसिड
  4. पेक्टिन

सेब का सिरका एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसमें बीटा कैरोटीन, विटामिन A, B1, B2, B6, C और E पाया जाता है। इसमें मिनरल्स कैल्शियम, मैगनिशियम, फॉस्फोरस, सल्फर कॉपर, सिलिका, आदि पाए जाते हैं। इसमें पेक्टिन होने के कारण यह पाचन को ठीक करता है, कोलेस्ट्रोल को कम करता है और शरीर से टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है। क्योंकि यह एक सिरका है यह यूरिक एसिड uric acid को कम करता है जो की जोड़ों में जमा रहता है।

क्योंकि यह मिनरल्स का अवशोषण कराने में सहायक है यह नाखूनों के टूटने में सहायक है।

सेब के सिरके के लाभ Health Benefits of Apple Cider Vinegar

  1. यह शरीर के pH को सही करता है।
  2. यह उलटी, एसिडिटी, और पाचन की कमजोरी में लाभ प्रद है।
  3. यह जोड़ों के दर्द में आराम देता है।
  4. यह मधुमेह में ग्लूकोस के लेवल को कम करता है।
  5. यह रक्तचाप को कम करता है।
  6. यह सिर दर्द में राहत देता है।
  7. यह कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करता है।
  8. यह कैंसर सेल्स की ग्रोथ को रोकता है।
  9. यह सूजन और दर्द में राहत देता है।
  10. यह फंगस, यीस्ट, और बक्टेरिया की ग्रोथ को रोकता है।
  11. यह रूसी को दूर करता है और बालों को चमक देता है।
  12. यह मेटाबोलिज्म को तेज़ कर, वज़न को कम करता है।
  13. यह खून को साफ़ करता है।
  14. यह खून को बहुत गाढ़ा और चिपचिपा नहीं होने देता।
  15. यह शरीर के महत्वपूर्ण अंगों गुर्दे, मूत्राशय, यकृत आदि के सही तरीके से काम करने में मदद करता है।
  16. यह इम्युनिटी को ठाक करता है।
  17. यह कब्ज़ के लक्षणों में राहत देता है।

सेब के सिरके के प्रयोग Medicinal Uses of Apple Cider Vinegar

1.पाचन की कमजोरी, लीवर को डीटोक्स करना Detoxifying liver

सेब का सिरका पाचक रसों के स्राव को बढ़ाता है और लीवर से जहरीले पदार्थों को दूर करने में मदद करता है। एक चम्मच सेब का सिरका और १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पियें।

2. मोटापा, कोलेस्ट्रोल का बढ़ जाना, बढ़ा हुआ ट्राइग्लिसराइड, पेट पर चर्बी Obesity

सुबह उठ के सेब के सिरके को पानी में मिला कर पीने ने से शरीर में जमी अतिरिक्त चर्बी कम होती है। यह कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है। इसे आप शाम को भी पानी में मिलाकर पी सकते हैं।

3. डायबिटीज

सोने से पहले २ टेबलस्पून सिरका को पानी में मिलाकर लें।

4. उच्च रक्तचाप

हाई ब्लड प्रेशर में सेब के सिरके और शहद को एक कप गर्म पानी में मिलाकर पीने से वैसोडायलेटेशन होता है जिससे रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद होती है।

5. Gout(गठिया), बढ़ा यूरिक एसिड High Uric Acid

सुबह शाम खाने से १० मिनट पहले १ गिलास पानी में ५-१० मिली मिला कर रोजाना पियें|

6. पाइल्स Piles

एक चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में मिलाकर खाना खाने से पहले लें।

7. हिचकी Hiccups

एक चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में मिलाकर बिना रुके पियें।

8. योनिशोथ vaginitis, यीस्ट इन्फेक्शन

४ चम्मच सिरका २ कप पानी में मिलाकर प्रभावित हिस्से को धोएं।

9. बालों का सफ़ेद होना, गिरना Hair care

एक चम्मच सेब का सिरका एक कप पानी में मिलाकर लें। गंजेपन से प्रभावित हिस्से पर लगायें।

10. बालों की देखभाल

यह बालों के लिए अच्छा कंडीशनर है। यह बालों को साफ़ करता और जर्म्स को भी नष्ट करता है। इसे पानी में मिलाकर बालों पर प्रयोग किया जा सकता है।

11. रूसी Dandruff

एक छोटा चम्मच सेब का सिरका लेकर हल्के हाथों से सिर की त्वचा पर मालिश करें।

1/4 कप सिरके को इतने ही पानी में मिलाकर स्प्रे बोतल में भर लें और सिर पर स्प्रे करें। फिर एक साफ़ तौलिया लपेट लें। और १५ मिनट से १ घंटा तक छोड़ दें। फिर बालों को पानी से धो लें ऐसा सप्ताह में २ बार करें।

12. पेशाब का इन्फेक्शन Urinary Tract Infection

एक गिलास पानी में २ चम्मच सिरका और शहद मिलाकर पियें।

13. आर्थराइटिस, जोड़ों का दर्द Joint Pain

एक गिलास पानी में 1 टेबलस्पून सिरका मिलाकर दिन में तीन बार पियें, यह आर्थराइटिस के दर्द में आराम देगा।

14. नकसीर, एक्जिमा Nose bleed, Eczema

कुछ दिनों तक एक गिलास पानी में 1 चम्मच सिरका मिलाकर दिन में तीन बार पियें।

पानी में मिलाकर सिरके को प्रभावित जगह पर लगाएं। नमक का सेवन न करें।

15. वैरीकोस वेंस Varicose Veins

एक कपडे में सिरका लगाकर प्रभावित जगह पर लगायें। गर्म पानी में सिरका मिलकर पियें।

16. शरीर से गंदगी बाहर निकालने के लिए Blood purification

सेब का सिरका २ चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार लें।

17. फंगल इन्फेक्शन Fungal infection

सेब का सिरका पानी में मिलके प्रभावित जगह पर लगायें।

18. फेफड़े और गले में संक्रमण, खांसी, कफ Respiratory Ailments

लहसुन की ५-१० कलियाँ लेकर काट कर एक कप सिरके में रात भर दाल कर छोड़ दें। सुबह इसमें स्वाद अनुसार शहद मिलाएं। दिन में कई बार एक चम्मच की मात्राम में इसका सेवन करें।

ज्यादातर लोग सिरके को एक टीस्पून या एक टेबलस्पून की मात्रा में दिन १ से ३ बार ले सकते हैं। इसे सलाद में भी डाल सकते हैं। इसे पानी में मिलाकर ही लेना चाहिए। इसमें शहद भी डाला जा सकता है।

सावधानियां

  1. सिरके को हमेशा पानी में मिलाकर ही पियें क्योंकि यह एसिडिक होता है और दांत के एनामल और मुंह के टिश्यू को नुकसान पहुंचा सकता है।
  2. लम्बे समय तक ज्यादा मात्रा में इसका सेवन शरीर में पोटासियम की मात्रा blood potassium levels (hypokalemia) को व बोन डेंसिटी bonemineral density को कम कर सकता है।
  3. जिन्हें सेब से एलर्जी हो वे इसका सेवन न करें।
  4. यह मूत्रल, डायबिटीज हृदय रोग और विरेचक दवाओं के असर को प्रभावित कर सकता है।
  5. इसका ज्यादा मात्रा में सेवन पेट, ड्यूडनम और लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है।

निशोथ / त्रिवृत Nishoth (Ipomoea turpethum) in Hindi

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निशोथ एक औषधीय लता है। यह प्रायः उद्यानों, जंगलों में पायी जाती है तथा औषधीय प्रयोजनों के लिए उगाई जाती है। इसे आयुर्वेद में मुख्य रूप से एक विरेचक laxative के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अधिक मात्रा में प्रयोग से बहुत अधिक विरेचन purgation होता है। भारत में पाये जाने वाले निशोथ को इंडियन जलापा Indian Jalapa भी कहते है। इसके गुणधर्म, संघटक ट्रू जलापा True Jalapa जैसे ही है। ट्रू जलापा, मेक्सिको में पाये जाने लता की जड़ है। यह जलापा का सही और अच्छा विकल्प है।

nishoth
By J.M.Garg – Own work, GFDL, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=5706086

निशोथ की लता, नम भूमि में पायी जाती है। वर्ष ऋतु में इसमें सफ़ेद फूल आने लगते है। फूलों का आकार घंटे के आकार जैसा होता है। इसकी बेल की लकड़ी में तीन धारें होती है। इसके फल गोल- गोल होते हैं। इसकी जड़ें काष्ठगर्भा होती है। मूल को तोड़ने पर सफ़ेद दूध निकलता है। स्वाद में यह पहले मीठा फिर कटु होता है। इसकी अपनी एक गंध होती है। निशोथ के लता, पुष्प और जड़ों के आधार पर इनके श्वेत, कृष व रक्त भेद माने गए हैं। काले निशोथ की बेल, सफ़ेद निशोथ जैसी ही होती है अपर इसके फूल काले, पत्ते और फल कुछ छोटे होते हैं।

निशोथ की मुख्य जड़ को ही औषधीय प्रयोग के लिए लेना चाहिए।

सामान्य जानकारी

वानस्पतिक नाम: आइपोमिया टरपेथम (सफ़ेद त्रिवृत), कनवोलवुस टरपेथम (कृष्णा त्रिवृत)

  • कुल (Family): कॉन्वॉल्वुलसए
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़
  • पौधे का प्रकार: लता
  • वितरण: पूरे भारत में 1000 m की ऊंचाई तक
  • पर्यावास: आद्र क्षेत्र

वैज्ञानिक वर्गीकरण

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सब क्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
  • आर्डर Order: सोलनलेस Solanales
  • परिवार Family: कॉन्वॉल्वुलसए Convolvulaceae
  • जीनस Genus: ओपरक्युलिन सिल्वा मनसो Operculina Silva Manso – मोर्निंग ग्लोरी परिवार
  • प्रजाति Species: ओपरक्युलिन टरपेथम (L.) सिल्वा मनसो Operculina turpethum (L.) Silva Manso
  • Variety: ओपरक्युलिन टरपेथम (L.) सिल्वा मनसो वार। टरपेथम

समानार्थक Synonyms

आइपोमिया टरपेथम आर बीआर। Ipomoea turpethum R. Br.

मेररेमिया टरपेथम (एल) शाह और भट्ट Merremia turpethum (L.) Shah & Bhat

स्थानीय नाम / Synonyms

  1. वैज्ञानिक नाम: Operculina turpethum (Linn.) Silva Manso
  2. संस्कृत: Ardhachandra, अरुणा, Kalameshi, Kalaparni, काली, Kalingika, Kumbhadhatri, Laghurochani, मालविका, Masuravidala, Masuri, Nandi, Paripakini, Rechani, Rochani, साहा, सारा, Sarana, Sarasa, Sarata, Sarvanubhuti, श्यामा, Susheni, Suvaha, Tribhandi, Triputa, Trivela, Trivrit, Trivrittika, Vidala
  3. हिन्दी: Nishothra, Nisotar, Nisoth, Nukpatar, Pitohri, Trivrut, Tarbal, Tarbud, Trabal
  4. बंगाली: Teudi, Tvuri, Dhdhakalami
  5. गुजराती: Kala Nasottara
  6. कन्नड़: Vili Tigade
  7. मलयालम: Trikolpokanna
  8. मराठी: Nisottar
  9. उड़िया: Dudholomo
  10. पंजाबी: Nisoth
  11. तमिल: Karum Sivadai, Adimbu, Kumbam, Kumbanjan, Kunagandi, Paganrai, Samaran, Saralam, Sivadai
  12. तेलुगु: Tella, Tegada
  13. उर्दू: Turbud, Nishoth
  14. अंग्रेज़ी: Indian Jalap, Turpeth, Terpeth Root, False Jalap जैलाप

शरीर पर मुख्य प्रभाव

  1. गर्भान्तक abortifacient/ induces abortion
  2. रोगाणुरोधी antimicrobial
  3. वमनकारी emetic
  4. कफ निकालने वाला expectorant
  5. हिपटोप्रोटेक्टिव protects liver
  6. विरेचक और दस्तावर laxative and purgative

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

रस (taste on tongue): मधुर, कटु, तिक्त, कषाय

गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण

वीर्य (Potency): उष्ण

विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

  • विरेचक: रेचन करने वाला
  • कफहर: कफ दूर करने वाला
  • पित्तहर: पित्त कम करने वाला
  • वातल: शरीर में वात बढ़ाने वाला
  • ज्वरहर: बुखार दूर करने वाला
  • भेदनीय: शरीर में जमे मल और कफ को निकालने वाला

निशोथ की प्रजातियाँ

  1. निशोथ की दो मुख्य प्रजातियाँ हैं, श्वेत और श्यामा। श्वेत त्रिवृत की जड़ें सफ़ेद या कुछ लाल से रंग की होती हैं जबकि काले त्रिवृत की जड़ों का रंग काला होता है।
  2. सफ़ेद त्रिवृत को आयुर्वेद में श्वेता, अरुणा, अरुणाभ, त्रिवृत्ता, त्रिपुता, सर्वानुभूति, सरला, निशोथा, रेचनि कहते है। हिंदी में इसे सफ़ेद निशोथ, बंगाली में श्वेत तेऊडी, मराठी में निशोतर, गुजराती में धोली नसोतर, फ़ारसी में तुखुद, कन्नड़ में तिगडे, इंग्लिश में टरबीथ रूट तथा लैटिन में आइपोमिया टरपेथम के नाम से जानते हैं।
  3. काले त्रिवृत का लैटिन में नाम कनवोलवुस टरपेथम है। इसे आयुर्वेद श्यामा, कृष्ण त्रिवृत, अर्ध्रचंद्र, पालिंदी, मसूरविद्ला, कोलकैषिका, कालमेषिका, कहते हैं।
  4. श्वेत निशोथ, विरेचक, मधुर, गर्म, रूक्ष, होता है। यह ज्वर, कफ, सूजन, कब्ज़ तथा उदर रोगों का नाशक माना गया है।
  5. श्यामा त्रिवृत, सफ़ेद त्रिवृत से अधिक दस्तावर होता है। इसे बेहोशी, जलन, मद, भ्रम, तथा कंठ को खराब करने वाला माना गया है।

औषधीय मात्रा

  1. निशोथ की औषधीय मात्रा 1-3 ग्राम है।
  2. दवाई की तरह सफ़ेद निशोथ का प्रयोग ही किया जाना चाहिए।

औषधीय उपयोग

  1. निशोथ मूल का प्रधान कर्म विरेचक और दस्तावर का है। इसे अकेले ही या अन्य औषधीय द्रव्यों के साथ प्रयोग किया जाता है।
  2. इसे हरीतकी के साथ आमवात, पक्षाघात, मनोविकार, वातशोध, तथा कुष्ठ रोगों में प्रयोग किया जाता है।
  3. इसे काबुली हरड़ के साथ मिलाकर देने से पागलपन, उन्माद, मिर्गी जैसे रोगों में लाभ होता है।
  4. सोंठ के साथ २-३ ग्राम की मात्रा देने पर खांसी, कफ, दूर होता है। इससे कफ ढीला होकर बाहर निकल जाता है।
  5. जोंडिस / पीलिया में इसे ३ ग्राम की मात्रा में मिश्री के साथ लेना चाहिए।

सावधानी

  1. यह तासीर में गर्म है।
  2. इसे गर्भावस्था में प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह गर्भपात का कारण बन सकती है।
  3. इसे १२ साल से छोटे बच्चों में प्रयोह नहीं किया जाना चाहिए।
  4. यह विरेचक है। इसका अधिक मात्रा में प्रयोग स्वास्थ्य ]के लिए हानिप्रद है।
  5. यह वात को बढ़ाती है।
  6. अधिक मात्रा में इसका सेवन दस्त, गुदा से खून आना, उलटी, पेट में दर्द, सीने में दर्द, पानी की कमी, चक्कर आना और बेहोशी कर सकता है।

जिंक सल्फेट Zinc Sulfate in Hindi

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जिंक सल्फेट को दस्त में ओरएस ORS घोल के साथ प्रयोग किया जाता है। यदि खूनी दस्त हो तो भी इसे एंटीबायोटिक के साथ दिया जाता है। इसका सेवन शरीर में जिंक की कमी दूर होती है। जिंक का प्रयोग बच्चों में बार-बार होने वाले दस्त / डायरिया की दर को करीब २५ प्रतिशत तक कम करता है। इसके सेवन पर दस्त जल्द ठीक होने में मदद होती है। इसके अतिरिक्त दस्त होने हर इसका प्रयोग शरीर में जिंक की कमी नहीं होने देता।

जिंक या जस्ता बच्चे के समग्र स्वास्थ्य और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। दस्त के दौरान बहुत सा जिंक शरीर से निकल जाता है। जिंक शरीर में बहुत से महत्वपूर्ण काम करता है। यह बढ़वार, इम्युनिटी, प्रोटीन संश्लेषण, और घाव के ठीक होने मदद करता है।इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं और शरीर को भिन्न रोगों से बचाता है।

उपचारात्मक कार्रवाई

सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक की कमी दूर करना

चिकित्सीय प्रयोग

5 वर्ष की उम्र से छोटे बच्चों में डायरिया होने की स्थिति में मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा oral rehydration therapy के साथ जिंक सल्फेट का प्रयोग जिंक की कमी को तथा दस्त के उपचार में सहायक है।

जिंक का प्रयोग स्टूल की मात्रा को भी कम करता है। यह लगातार दस्त रहने की अवधि और गंभीरता को कम करता है।

उपलब्धता

  1. 20 मिलीग्राम की गोली
  2. 20 मिलीग्राम / 5 मिलीलीटर का सिरप

खुराक और अवधि

  1. 6 महीने से छोटे बच्चे: 10 मिलीग्राम दिन में एक बार (1/2 गोली या 1/2 छोटा चम्मच एक बार रोज़ ) 10 दिनों के लिए
  2. 6 महीने से 5 साल तक के बच्चे: 20 मिलीग्राम दिन में एक बार (1 गोली या 1 चम्मच एक बार) 10 दिनों के लिए
  3. एक चम्मच में आधा गोली या पूरी गोली को एक चम्मच या कटोरी में रख के घुला दें और बच्चे को दें।

सावधानियों

  1. निर्धारित मात्रा में प्रयोग पर इसका कोई साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।
  2. यदि सेवन के 30 मिनट के भीतर उल्टी हो जाए तो जिंक फिर से दें।
  3. इसे आयरन के सप्लीमेंट के साथ न दें। दोनों को देने में करीब 2 घंटे का अंतर रखें।

चिरायता Chirata Herb (Swertia Chirata) in Hindi

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चिरायता को संस्कृत में किराततिक्त, किरात, कटूतिक्त, किरातक, काण्डतिक्त, अनार्यतिक्त, भूनिम्ब, रामसेनक आदि नामों से जाना जाता है। चिरायते को बंगाली में चीरता, चीरता, नेपाली नीम, मराठी में किराइत, गुजराती में कटीयातुं, और इंग्लिश में चिरेता कहते हैं। लैटिन भाषा में इसका नाम स्वर्शिया चिरेटा है।

chirayata
By Satheesan.vn (Own work)[ CC-BY-SA-3.0 or GFDL], via Wikimedia Commons
यह स्वाद में कटु और तिक्त होता है। नेपाल में पाया जाने वाला चिरायता अर्धतिक्त कहलाता है क्योंकि इसकी तिक्ता कुछ कम होती है।

चिरायता को बहुत पुराने समय से आयुर्वेद में दवाई की तरह प्रयोग किया जाता रहा है। चरक और सुश्रुत में पूरे पौधे का पेस्ट / काढ़ा, रक्त साफ़ करने के लिए, विष के उपचार में, पुराने चमड़ी के रोगों, सूजन, बुखार, खांसी, आंतरिक रक्तस्राव, और पेशाब के रोगों में प्रयोग किया। इसका सेवन माँ के दूध से गंदगी को दूर करता है। बुखार में इसे धनिया की पत्तियों के साथ लिया जाता है। पुराने बुखार, खून की कमी, जोड़ों की दिक्कत, फोड़े, फुंसी, चक्खते, यकृत रोगों, अपच, भूख न लगना, मलेरिया, आदि में इसका प्रयोग रोग को नष्ट करता है।

सामान्य जानकारी

चिरायता एक वर्षीया पौधा है तथा इसके पौधे 2-3 फुट तक ऊँचे हो सकते हैं। इसके पत्ते भालाकर, लम्बे और छोटे होते है। नीचे की पत्तियां बड़ी और उपरी पत्तियां छोटी होती हैं। फल सफ़ेद रंग के होते हैं। औषधीय प्रयोग के लिए पूरे पौधे का प्रयोग किया जाता है।

  • वानस्पतिक नाम: स्वर्शिया चिरेटा Swertia chirata
  • कुल (Family): जेंटीऐनेसिऐइ
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
  • पौधे का प्रकार: गुल्म / क्षुप
  • वितरण: प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में, हिमालय, दक्षिण और कोंकण व नेपाल में
  • पर्यावास: शीतोष्ण हिमालय, कश्मीर से भूटान, 1200-3000 मीटर के बीच ऊंचाई पर और मेघालय में खासी हिल्स

वैज्ञानिक वर्गीकरण

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी: Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta: संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा: बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
  • आर्डर Order: जेंटीनालेस Gentianales
  • परिवार Family: जेंटीऐनेसिऐइ Gentianaceae– Gentian family किरात
  • जीनस Genus: स्वर्शिया Swertia L। – felwort
  • प्रजाति Species: स्वर्शिया चिरेटा Swertia chirata। N।O। Gentianaceae

स्थानीय नाम / Synonyms

संस्कृत: किराततिक्त, किरात, कटूतिक्त, किरातक, काण्डतिक्त, अनार्यतिक्त, भूनिम्ब, रामसेनक

  • इंग्लिश : Brown Chirata, Chirayta, Griseb
  • असमिया: Chirta
  • बंगाली: Chirata
  • अंग्रेज़ी: Chireta
  • गुजराती: Kariyatu, Kariyatun
  • हिन्दी: Chirayata
  • कन्नड़: Nalebevu, Chirata Kaddi, Chirayat
  • कश्मीरी: खो, Chiraita
  • मलयालम: Nelaveppu, Kirayathu, Nilamakanjiram
  • मराठी: Kiraita, Kaduchiraita
  • उड़िया: Chireita
  • पंजाबी: चिरायता, Chiraita
  • तमिल: Nilavembu
  • तेलुगु: Nelavemu
  • उर्दू: Chiraita

चिरायते के संघटक

जेनथॉन्स, जेनथॉन्स ग्लाइकोसाइड and मैंगिफेरिने (फ्लैवोनॉइड) Xanthones, xanthone glycoside and mangiferine (Flavonoid)

इसमें दो बहुत ही कडवे पदार्थ चिरेटिन और ओफेलिक एसिड chiratin and ophelic acid पाए जाते हैं। चिरायता में टैनिन, वैक्स, रेसिं और चीनी भी पायी जाती है।

औषधीय मात्रा:

1-3 ग्राम पौधे का पाउडर, 20-30 ग्राम काढ़ा बनाने के लिए

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

आयुर्वेद में चिरायता को मलनिःसारक, शीतल, कडवा, हल्का, रूखा, माना गया है। इसे बुखार, खांसी, कफ, पित्त, खून के विकारों, चमड़ी के रोगों, जलन, खांसी, सूजन, अधिक प्यास लग्न, कुष्ठ, घाव और कृमि रोगों में प्रयोग किया जाता है।

रस (taste on tongue): तिक्त

गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष

वीर्य (Potency): शीत

विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

कफहर, पित्तहर, रक्तशोधक, व्रणशोधक, ज्वरहर, तृष्णाहर

यह शक्तिवर्धन के लिए के टॉनिक की तरह प्रयोग किया जता है। इसका सेवन ज्वरहर है। यह रक्तशोधक है और बहुत सी खून साफ़ करने वाई दवाओं का एक प्रमुख घटक है।

चिरायते के औषधीय प्रयोग

  1. मलेरिया के बुखार में तथा अन्य बुखारों में इसका काढ़ा पीने से राहत मिलती है।
  2. चिरायता पेट और लीवर के लिए बहुत अच्छा है। यह इनकी कार्य शक्ति को बढ़ाता है। अपच में इसका सेवन लाभदायक है।
  3. यह एक टॉनिक है और इसका सेवन शरीर को ताकत देता है।
  4. खून के विकारों में इसका प्रयोग खून को साफ़ करता है।
  5. इसको आँख में लगाने, आँखों की रौशनी बढती है।
  6. काढ़े या पौधे के अर्क को एक टॉनिक, भूख और ज्वरनाशक के रूप में लिया जाता है।
  7. यह कृमिनाशक, विरेचक है और त्वचा रोगों के लिए उपयोगी है।
  8. यह लीवर / यकृत रोगों, हैजा आदि में टॉनिक के रूप में लिया जाता है।

शरीफा Medicinal Uses and Health Benefits of Custard Apple or Sharifa

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शरीफे को ट्रॉपिकल अमेरिका और वेस्ट इंडीज का मूल निवासी माना जाता है। इसे भारत में तथा अन्य एशियाई देशों में इसके मीठे फलों के लिए बहुतायत से उगाया जाता है। यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला छोटा पेड़ है। शरीफे का पेड़ छोटे आकार, अधिक से अधिक 6 मीटर लंबा, और बहुशाखीय होता है। यह बीजों से उगाया जाता है। इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग और लम्बी होती हैं। फल पकने पर हरा होता है। फल का गूदा सफ़ेद और रस भरा होता है। फल के अन्दर सारे काले रंग के बीज होते हैं। बीज गूदे के अन्दर होते हैं। शरीफे के पके फल स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं।

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शरीफे के पेड़ के न केवल फलों बल्कि इसके पत्तों, बीजों और जड़ों का प्रयोग दुनिया के बहुत से देशों में दवाई की तरह होता है। शरीफे के पत्तों और बीजों में अल्कालॉयड alkaloid, रेसिन, और तेल होता है। इसमें पाया जाने वाला तेल विष है।

इसके बीजों को कीटनाशक के रूप प्रयोग किया जाता है। पिसे हुए बीज आँखों के लिए बहुत हानिप्रद irritant to the conjunctiva होते हैं। एक मामले में एक आदमी द्वारा बीजों का चूर्ण आँखों में लगाने से कोर्निया नष्ट हो गया जिससे वह व्यक्ति पूरी तरह से अंधा हो गया। इसी प्रकार गर्भाशय ग्रीवा पर लगाने या बीजों के सेवन से से गर्भ नष्ट हो जाता है।

स्थानीय नाम

  • लैटिन: ऐनोना स्कवेमोसा
  • संस्कृत: सीताफल, कृष्णा बीज Agrimakhya, Atripya, Bahubijaka,Gandagatra, Krishnnbija, Sitaphala, Subha, Suda, Vaidehivallabha
  • हिंदी: शरीफा Atasitaphal। Shariphal, Sitaphal
  • इंग्लिश: कस्टर्ड एप्पल, Custard Apple, Sweetsop or Sugar Apple
  • तमिल: Atta, Sitapalam
  • अरेबिक: Saripha, Sharifa
  • फूल आने का समय: मई से जुलाई

शरीफे के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Custard Apple Tree

1. कच्चे फल, पत्ते, और बीजों में कीटनाशी गुण insecticide पाए जाते हैं। पत्तों को पानी में कुचल के डाल तथा बीजो के चूर्ण को इन्सेक्टीसाइड के तरह प्रयोग किया जाता है।

2. बीजों का पानी के साथ पेस्ट बना कर सिर में जूँ मारने ने के लिए व एक गर्भान्तक abortifacient के रूप में (ओएस ग्रीवा os uteri पर लगाने से) इस्तेमाल किया जाता है।

3. बीजों की गिरी १-३ ग्राम की मात्रा खाने पर गर्भ नष्ट हो जाता है। बीजों का सेवन गर्भावस्था में बिलकुल न करें।

4. मेलिगेंट ट्यूमर malignant tumors पर पत्ते या पके फल को नमक के साथ लगाया जाता है।

5. फोड़ों पर पत्तों का लेप लगाने से लाभ होता है।

6. कच्चा फल दस्त, पेचिश और निर्बल अपच atonic dyspepsia के लिए दिया जाता है।

7. जड़ और छाल जुलाब strong purgatives हैं और मोशन लाते हैं।

8. करीब १-३ ग्राम जड़ कप पीस के खाने से कब्ज़ दूर होती है।

9. पके फल को ऐसे ही कच्चा खाया जाता है।

10. पत्तों को कुचल कर अल्सर और आर्थराइटिस प्रभावित हिस्सों पर लगाया जाता है।

शरीफे का फल के फायदे Health Benefits of Custard Apple Fruits

1. शरीफे के फल को एक टॉनिक माना गया है।

2. यह शक्ति, पुरुषत्व, को बढाते हैं।

3. विटामिन C होने के कारण यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

4. फल में 1.6% प्रोटीन, 0.4% वसा, 3.1% फाइबर, 23.5% कार्बोहाइड्रेट और खनिज 0.9 / 100 ग्राम होते हैं। इसके अलावा इसमें फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा, थाईमिन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी मौजूद होता है। फलों के गूदे में करीब 20% चीनी होती है और इसे शर्बत, जेली और रस बनाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

5. इसमें पाया जाने वाला विटामिन A त्वचा और बालों को सुन्दर बनाता है।

6. इनमें पोटैशियम और मैगनिशीयम की अच्छी मात्रा पाया जाती है और इसलिए ये हृदय के लिए लाभप्रद हैं। हृदय रोगों, जैसे की धड़कन, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की कमजोरी, आदि में इसे खाना चाहिए।

7. यह मांसपेशियों को मज़बूत बनाते हैं।

8. यह मीठे और तृप्तिदायक होते हैं। भस्मक रोग जिसमें भूख नहीं मिटती उसमें फलों को खाने से लाभ होता है।

9. पूरे शरीर में होने वाली जलन में इसका सेवन लाभप्रद है।

10. यह शरीर में पित्त को कम करते हैं इसलिए ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसे की नकसीर, रक्तपित्त आदि में फायदा करता है।

11. यह शरीर को ठंडक देते हैं।

12. यह एंटी-ऑक्सीडेंट हैं और शरीर को फ्री रेडिकल डैमेज से बचाते हैं।

13. इसमें चीनी की मात्रा और कैलोरी काफी होती है, इसलिए जो लोग वज़न बढ़ाना चाहते हों वे इसका सेवन करके लाभ उठा सकते हैं।

14. इसमें पाया जाने वाला फाइबर कब्ज़ को दूर करने में मदद करता है।

Kokam Soup जानिये कोकम सूप के फायदे

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कोकम सूप दस्त, दिल, सूजन, पाईल्स और पेट के कीड़ो की समस्या में बहुत उपयोगी होता है। इसे त्वचा पर दानों से आराम पाने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है क्यों की यह anti alergic की तरह भी काम करता है. आयुर्वेद के अनुसार अगर कोई १ कप से ज्यादा न पिए तो यह कफ और पित्त भी नहीं बढ़ाता है। कोकम आप आसानी से किसी भी साउथ इंडियन स्टोर पर खरीद सकते हैं।

By Subray Hegde - Wikipedia:Contact us/Photo submission, CC BY 1.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=4244569
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कोकम सूप बनाने की बिधि(How to make Kokam soup)

कोकम सूप बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी

  1. 9 dried Kokam fruits कोकम के सूखे फल
  2. 4 cups water पानी
  3. 4 curry leaves fresh or dried कड़ी पत्ता
  4. 1 tablespoon fresh cilantro leaves chopped बारीक कटा धनिया
  5. 2 bay leaves तेजपत्ता
  6. 2 tablespoons chickpea flour बेसन
  7. 1/4 teaspoon ground cloves पीसी हुई लौंग
  8. 1/4 teaspoon salt नमक
  9. 1 tablespoon jaggary (or Sucanat) sugar गुड़
  10. 2 tablespoons ghee देशी घी
  11. 1/2 teaspoon cumin seeds जीरा
  12. /4 teaspoon cinnamon दालचीनी
  13. 2 black pepper कालीमिर्च

बनाने की बिधि

कोकम के फलों को पानी से धोकर १०-२० मिनट के लिए भीगा दें। इसके बाद फलों को कई बार इस पानी में निचोड़ कर पल्प/जूस निकाल लेंऔर पानी से अलग कर लें। अब धीमी आंच पर एक भगौना गरम करें और उसमे घी डालें। अब इसमे जीरा, तेजपत्ता, करीपत्ता का तदाका लगायें। अब इसमे कोकम वाला पानी मिलाएं और २ कप अलग से पानी मिलाएं। एक कप पानी में अलग से बेसन अच्छी तरह मिलाये और उसे भगोने में डालें। अब इसमे दालचीनी, कालीमिर्च, लौंग, नमक एंड गुड मिलाएं। इसे ५ मिनट तक चलते रहें। अब इसे कटे हुए धनिये से सजाएं।

लीजिये कोकम सूप तैयार है। इसे कांच या स्टेनलेस स्टील में ही रखे नहीं तो कोकम का एसिडिक जूस मेटल से रिएक्शन कर सकता है और सूप का स्वाद बीगल सकता है।

इसे १ कप खाने से पहले लेने पर यह भूख बढ़ता है और एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है और अगर आप खाने के बाद पियेंगे तो यह पाचन में सहायक है। इसे नास्ते में न पियें।

बैद्यनाथ वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त Baidyanath Vita-Ex Gold Capsules Detail and Uses in Hindi

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वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त, बैद्यनाथ फार्मेसी द्वारा निर्मित दवाई है। इसमें शुद्ध शिलाजीत, मकरध्वज, अश्वगंधा, केवांच, अभ्रक भस्म, बंग भस्म, लौह भस्म, और स्वर्ण भस्म जैसे आयुर्वेद के जाने माने घटक है। यह दवा एक रसायन है जो की शरीर में ओज, तेज, और शक्ति की वृद्धि करती है। यह दवा पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को सही करने और यौन कमजोरी को दूर करने में उपयोगी है। इसका २-३ महीने तक लगातार प्रयोग करने से वजन बढता है, शरीर में ताकत आती है और यौन कमजोरी दूर होती है। यह कामोत्तेजक है और सेक्स की इच्छा को बढाने वाली दवा है।

Baidyanath Vita-Ex Gold is a herbo-mineral proprietary ayurvedic medicine in form of Capsules. It is indicated in loss of libido, sexual debility, poor and unsatisfactory sexual intercourse, sex related stress, anxiety etc. The ingredients used in this medicine have aphrodisiac, rejuvenative, anti-stress, vitalizing, properties. This medicine helps in erectile dysfunction, premature ejaculation and functional impotence.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

बैद्यनाथ वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त के घटक Ingredients of Baidyanath Vita-Ex Gold Capsules

  • शुद्ध शिलाजीत Shuddha Shilajit 30mg
  • अश्वगंधा Ashwagandha 20 mg
  • अकरकरा Akarkara 10 mg
  • सफ़ेद मूसली Safed musli 30 mg
  • स्वर्ण बंग भस्म Swarn Bang 15 mg
  • मकरध्वज Makardhwaj 15 mg
  • बंग भस्म Bang Bhasma 15 mg
  • अभ्रक भस्म Abhrak Bhasma 15 mg
  • स्वर्ण भस्म Swarn Bhasma 2 mg
  • काँटा लौह भस्म Kant Loh Bhasma 6 mg
  • जायफल Jaiphal 15 mg
  • जावित्री Javitri 15 mg
  • लौंग Laung 10 mg
  • केसर Keshar 6 mg
  • केवांच Kaunch beej 120 mg
  • शुद्ध कुचला Shuddha Kuchla 20 mg
  • दालचीनी Dalchini 20 mg
  • समुद्र शोष Samudra Shosh 20 mg
  • सालम मिश्री Salam Mishri 20 mg
  • भावना द्रव्य Bhavna dravya: सेमल की छाल Semal Bark, शतावरी Satavari, ब्राह्मी Brahmi, सफ़ेद चन्दन Safed Chandan, मुलेठी Mulethi, पान का रस Pan ka ras

बैद्यनाथ वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त के लाभ/फ़ायदे Benefits of Baidyanath Vita-Ex Gold Capsules

  1. यह शरीर को ताकत देती है।
  2. यह स्ट्रेस, एंग्जायटी, और अवसाद को दूर करने में सहायक है।
  3. इसके सेवन से शरीर उर्जा में और तेज़ आता है।
  4. यह सेक्स अंगों को मजबूत करने वाली है।
  5. इसके कुछ घटक आयुर्वेद में विशेष रूप से नसों की कमजोरी को दूर करने में प्रयोग किये जाते है।
  6. इसमें शिलाजीत, मकरध्वज, अश्वगंधा जैसे सेक्स टॉनिक हैं।
  7. यह सेक्सुअल प्रदर्शन में सुधार करती है।
  8. यह काम भावना को बढाती है।
  9. इसमें केवांच है जो की वीर्य को गुणवत्ता को सुधारताहै, नसों को ताकत देता है और कामेच्छा को बढ़ाता है।

बैद्यनाथ वीटा-एक्स गोल्ड स्वर्ण युक्त के चिकित्सीय उपयोग Uses of Baidyanath Vita-Ex Gold Capsules

  1. रसायन और सेक्स टॉनिक की तरह प्रयोग
  2. शरीर में ताकत, उर्जा की कमी, थकावट
  3. पुरुषों में यौन कमजोरी
  4. यौन कमजोरी से स्ट्रेस, एंग्जायटी, और अवसाद
  5. नसों की कमजोरी
  6. कामेच्छा की कमी
  7. सेक्सुअल प्रदर्शन में सुधार करने के लिए

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Baidyanath Vita-Ex Gold Capsules

  • 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे दूध के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • इसे २-३ महीने तक लगातार लेने पर ही लाभ दिखाई देते हैं।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
  • इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

Ayurvedic medicines containing detoxified, toxic material/ poisonous substances (Shuddha Kuchla), should be taken only under medical supervision.

फिटकरी Alum Information, Benefits and 20 Medicinal Uses in Hindi

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फिटकरी को संस्कृत में स्फटिका, हिंदी में फिटकरी, इंग्लिश में पोटाश एलम कहते है। कांक्षी, तुवरी, स्फटिका, सौराष्ट्री, शुभ्रा, स्फुटिका आदि इसके अन्य संस्कृत पर्याय हैं। यह एक रंगहीन, क्रिस्टलीय पदार्थ है। साधारण फिटकरी का रासायनिक नाम पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेटKAl(SO4)2.12H2O होता है। देखने में यह प्राकृतिक नमक के ढेले जैसी होती है।

By Miansari66 (Own work) [Public domain], via Wikimedia Commons
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फिटकरी सफेद, पीले, लाल और काली रंग की हो सकती है। सफ़ेद रंग की फिटकरी को सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है।

फिटकरी के बारे में भारतीयों को जानकारी बहुत ही प्राचीन समय से थी। भारत में चिकित्सा के लिए इसका प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता रहा है। चरक संहिता में भी इसके प्रयोग का वर्णन पाया जाता है। रत्न समुच्चय ग्रन्थ में इसे तुवरी कहा गया है। रसतरंगिणी में इसे पित्त-कफ नाशक, ज्वरनाशक, आँखों के रोगों में लाभप्रद, खूनके बहने को रोकने वाली, मुख के रोगों, कान रोगों और नाक से खून बहने से रोकने वाली माना गया है।

फिटकरी एल्युमीनियम और पोटेशियम सल्फेट का संयोग है। फिटकरी को एक प्रकार की खनिज मिट्टी जिसे रोल (हिंदी) या एलम शोल (इंग्लिश) से बनाया जाता है। जहाँ भूमि में एल्युमीनियम और सल्फर ज्यादा मात्रा में पाया जाता है वहां की ऊपरी मिट्टी में फिटकरी की थोड़ी मात्रा में प्राकृतिक रूप से मिलती है। इसका निर्माण कृत्रिम रूप से सौराष्ट्र की मिट्टी को सत्वपातित करके किया जाता था। आजकल तो इसे रासयनिक तरीके से काफी मात्रा में बनाया जाता है।

चिकित्सा के लिए फिटकरी का प्रयोग खून के बहने / रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जाता है। शुद्ध फिटकरी या इसकी भस्म को सुजाक, रक्तप्रदर, खांसी, निमोनिया, खून की उलटी, विष विकार, मूत्रकृच्छ, त्रिदोष के रोगों, घाव, कोढ़ आदि में आंतरिक प्रयोग भी किया जाता है।

इसे पानी को साफ करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे रंग पक्का करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

प्रकार: अकार्बनिक खनिज, क्रिस्टलीय

रासयनिक सूत्र Molecular formula: KAl(SO4)2·12H2O हाइड्रेट पोटैशियम एल्युमीनियम सल्फेट

आंतरिक प्रयोग के लिए मात्रा: 250 mg- 1 gram

बुरा असर: फेफड़ों, पेट और आँतों पर

स्थानीय नाम

  1. संस्कृत: कांक्षी, तुवरी, स्फटिका, सौराष्ट्री, शुभ्रा, स्फुटिका, स्फटी, रंगदा, दृढरंगा
  2. लैटिन: एल्युमीनियम सल्फस
  3. हिंदी, बंगाली: फिटकिरी Phitkari
  4. मराठी: तुरटी
  5. गुजराती: फटकड़ी
  6. तमिल: Patikaram, Padikharam, Shinacarum
  7. तेलुगु: Pattikaramu
  8. कन्नड़: Phatikara
  9. फारसी: जाक सफ़ेद Zak safed, Zamah
  10. अरब: शवेयमानी Shibe yamani, Zaj abyaz
  11. इंग्लिश: एलम Sulphate of Alumina and Potash, Sulphate of Aluminium and Ammonium, Aluminous Sulphate
  12. उर्दू: फिटकिरी Phitkari
  13. सिन्धी: पटकी
  14. तमिल: Patikaram, Padikharam, Shinacarum

फिटकरी के गुण

  1. यह कसैली, गर्म, योनि संकोचक Vaginal contractive है।
  2. यह वातपित्त, कफ, घाव, कोढ़, और विसर्प नाशक है।
  3. यह तासीर में गर्म है।
  4. यह रक्तस्राव को रोकती है।
  5. यह एसट्रिनजेंट / संकोचक है।
  6. फिटकरी की भस्म का सेवन छाती में जमे कफ को निकालती है।
  7. यह विष नाशक है। सांप काटने पर तुरंत ही, फिटकरी की भस्म (1 gram) को घी (60 gram) में मिलाकर लेने से ज़हर का आगे बढ़ना रुक जाता है।

फिटकरी के चिकित्सीय प्रयोग

फिटकरी को बाहरी तथा आंतरिक दोनों तरह से प्रयोग किया जाता है। बाहरी रूप से पानी में डुबा कर खून बहने वाली जगह पर मल लेने से खून का बहना रुक जाता है। फिटकरी को लगाने से संक्रमण भी नहीं होता।

खाने या आंतरिक प्रयोग के लिए फिटकरी की बहुत कम मात्रा प्रयोग की जाती है। आंतरिक प्रयोग के लिए हमेशा शुद्ध फिटकरी ही प्रयोग की जानी चाहिए। आग में फुला देने से फिटकरी शुद्ध हो जाती है। इसे तवे पर रख कर फुला कर, खील बना कर, महीन पीस लेने के बाद आंतरिक प्रयोग में ला सकते हैं।

१. नाक से खून आना nose bleed, naksir

गाय के दूध में थोड़ी सी फिटकरी घोल कर नाक में कुछ बूंदे टपकाने से नाक से खून बहना रुकता है।

२. चोट लगने से खून बहना, कटने से खून बहना Bleeding from cut

फिटकरी का टुकड़ा या चूरा प्रभावित जगह पर लगायें।

३. योनि की शिथिलता, फ़ैल जाना slackness of vagina

२ ग्राम फिटकरी को पानी में १०० मिलीलीटर पानी में घुला कर, रोज़ योनि माग का प्रक्षालन करने से योनि मार्ग को सिकोड़ने में मदद होती है।

४. रक्तपित्त bleeding disorders

फिटकरी को १२५ मिलीग्राम की मात्रा में ३ ग्राम चीनी के साथ मिला कर खाने से लाभ होता है।

५. आँखों से पानी आना, लाली, कीचड़, पकना, दुखना, सूजन diseases of eyes

50 ml गुलाब जल में 500-600 mg, फिटकरी घोलकर रख लें। इसे कुछ बूंदों में आँखों में डालने से लाभ होता है।

६. मजबूत दांत strengthening teeth

फिटकरी के चूरे को मौलश्री छल के चूर्ण में मिलाकर दांतों पर मलने से दांत मजबूत होते हैं।

७. दांत दर्द, दांत में मवाद, मुंह में लिसलिसापन tooth ache, stickiness in mouth

सेंधा नमक और फिटकरी के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर दांतों पर रगड़ने से दांत मजबूत होते है, दांत दर्द से राहत मिलती है।

८. दांतों के रोग dental diseases

सरसों तेल में फिटकरी चूर्ण मिलाकर दांतों की मालिश करें।

९. दन्त मंजन tooth powder

दन्त मंजन बनाने के लिए फुलाई हुई फिटकरी + हल्दी + सेंधा नमक + त्रिफला + नीम की पत्तियां + बबूल की छाल (प्रत्येक 100 gram) तथा 20 ग्राम लौंग का पाउडर मिला लें। इसे दिन में दो बार प्रयोग करने से पायरिया, मुंह की दुर्गध, दांतों का दर्द, कमजोरी, सेंसिटिवटी आदि दूर होते हैं।

१०. शीतपित्त urticaria

शुद्ध फिटकरी का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दूध या पानी के साथ लें।

११. दाढ़ी बनाते समय कट जाना cut in shaving

फिटकरी को कट पर पानी लगाकर लगाने से कट से खून निकलना बंद होता है।

१२. बवासीर में मस्से hemorrhoids

बवासीर के मस्सों पर फिटकरी का लेप लगाने से लाभ होता है।

१३. अंदरूनी चोट के लिए internal injuries

एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच शुद्ध फिटकरी का चूर्ण मिलाकर पीने से लाभ होता है।

१४. पेशाब में खून जाना, गुदा से खून जाना blood in urine

आधा चम्मच शुद्ध फिटकरी का चूर्ण, आधा चम्मच मिश्री के साथ मिलाकर लें।

१५. विषम ज्वर, मलेरिया का बुखार intermittent fever

चौथाई या आधा चम्मच फिटकरी भस्म, समभाग मिश्री के साथ, २-४ घंटे के अंतराल पर लेना चाहिए।

१६. पेचिश, अतिसार, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर loose motions, dysentery, bleeding piles, abnormal uterine bleeding

फिटकरी भस्म आधा चम्मच की मात्रा में मुनक्के / दही के साथ लें।

१७. मुंह / जीभ पर छाले, टांसिल mouth blisters, tonsillitis

फिटकरी के पानी से कुल्ला करें।

१८. जहरीले कीटों (बर्रे, मधुमक्खी), बिच्छु, आदि के काटने पर insect stings

गर्म पानी के साथ फिटकरी पीस कर, प्रभावित जगह पर लगाएं।

१९. मूत्रकृच्छ painful urination

गर्म करके फुलाई और पीसी हुई फिटकरी १ ग्राम की मात्रा में फंकी की तरह लेने से और फिर दूध पीने से पेशाब में दर्द आदि दूर होता है।

२०. खांसी, कुक्कुर खांसी whooping cough

फुलाई फिटकरी को 500 mg-1 gram की मात्रा में दिन में तीन बार लेने से कफ, खांसी दूर होते हैं।

फिटकरी को आमतौर पर बाहरी प्रयोग के लिए ही प्रयोग किया जाता है। बाहरी प्रयोग से किसी भी तरह की हानि नहीं है। लेकिन आंतरिक प्रयोग में सावधानी रखने की ज़रूरत है। आंतरिक प्रयोग के लिए केवल उपयुक्त फिटकरी (शुद्ध या भस्म) ही प्रयोग की जानी चाहिए और वो भी बहुत ही कम मात्रा में। अधिक मात्रा में प्रयोग फेफड़े, आँतों और पेट के लिए नुकसानदायक है।

व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) Navaka Guggulu Detail and Uses in Hindi

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व्योषादि गुग्गुलु को नवक गुग्गुलु के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गुग्गुल्कल्प है जिसमें गुग्गुल की मात्रा अन्य सभी घटकों से अधिक है। इस दवाई का प्रयोग मुख्य रूप से मेदोरोग, मोटापे को कम करने और वात के रोगों में होता है।

व्योषादि गुग्गुलु की तासीर गर्म है और इस गुण के कारण यह कफ, कोलेस्ट्रोल, लिपिड और ट्राईग्लीसिराइड्स को कम करता है। अपने रूक्ष और हल्के गुण के कारण यह शरीर में फैट को कम करता है। यह वात-कफ को कम करता है और पित्त को बढ़ाता है। इस दवाई का मुख्य घटक व्योष है। व्योष, त्रिकटु को कहते है।

Navak, Navaka or Vyoshadi Guggulu is a polyherbal ayurvedic medicine with antiobesity, antihyperlipidic, antiinflammatory, and carminative properties. It is helpful in improving digestion, metabolism bowel movement and clearing the obstruction and congestion. It increases Pitta, and reduces Vata and Kapha. This helps in weight reduction and Vata Vyadhi such as arthritis, joint swelling, gout etc.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) के घटक Ingredients of Navaka Guggulu

  1. शुंठी Shunthi Zingiber officinale Rz. 1 Part
  2. मरिच / काली मिर्च Marica Piper nigrum Fr. 1 Part
  3. पिप्पली Pippali Piper longum Fr. 1 Part
  4. चित्रक Citraka Plumbago zeylanica Rt. 1 Part
  5. मोथा Musta Cyperus rotundus Rz. 1 Part
  6. हरीतकी Haritaki Terminalia chebula P. 1 Part
  7. विभितकी Bibhitaka Terminalia belerica P. 1 Part
  8. आमलकी Amalki Emblica officinalis P. 1 Part
  9. विडंग Vidanga Embelia ribes Fr. 1 Part
  10. गुग्गुल Guggulu- Shuddha Commiphora wightii O.R. 9 Parts

त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और कब्ज करता है। यह यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है।

त्रिफला, हरीतकी, विभितकी और आमलकी का बराबर मात्रा में मिश्रण है। यह शरीर में वात विकार को शांत करता है। यह आँतों की सफाई करता है और कब्ज़ को दूर करता है। यह एक टॉनिक है। इसमें सूजन को दूर करने के, रक्त परिसंचरण को सही करने के और अच्छा पाचन और विरेचन कराने के गुण हैं। यह विषाक्त पदार्थों को शरीर से दूर करता है और पाचन से लेकर विरेचन में सहयोगी है। यह त्रिदोष का संतुलन करने वाली औषध है।

गुग्गुलु एक पेड़ से प्राप्त निर्यास या गोंद है। इसका प्रयोग धूप की तरह भी किया जाता है। आयुर्वेद में गुग्गुल को मुख्य रूप से वात रोगों के उपचार और मोटापे को दूर करने के लिए किया जाता है। यह गुण में लघु, रुक्ष, विशद, और सुगन्धित होता है। यह रस में तिक्त और कटु है। वीर्य में उष्ण और कटु विपाक है। प्रकृति में गर्म होने से यह वात को दूर करता है और चयापचय / मेटाबोलिज्म को तेज़ करता है। यह सभी वात शामक द्रव्यों में प्रमुख है।

व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) के लाभ/फ़ायदे Benefits of Navaka Guggulu

  1. यह शरीर में वात और कफ को कम करता है।
  2. यह पित्त को बढ़ाता है।
  3. यह मेटाबोलिज्म को सही करता है।
  4. यह पेट को साफ़ करने में मदद करता है।
  5. इसके सेवन से स्रोतों से रूकावट हटती है, वात का बहाव नीचे की तरफ होता है।
  6. यह आम-पाचक है और शरीर से आम दोष को दूर करता है। आम दोष, शरीर में पाचन की कमजोरी के कारण बनने वाले दूषित पदार्थ है जो की तीनों दोषों को असंतुलित कर देते हैं और अनेकों रोगों के कारण हैं।
  7. यह कोलेस्ट्रोल और लिपिड को कम करता है।
  8. यह बुरे कोलेस्ट्रोल को कम लेकिन अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढाने में सहायक है।
  9. इसके सेवन से वज़न कम होता है।
  10. व्योषादि गुग्गुलु (नवक गुग्गुलु) के चिकित्सीय उपयोग Uses of Navaka Guggulu
  11. मेदो रोग, मोटापा, शरीर में ज्यादा फैट
  12. वात व कफ रोग
  13. फैटी लीवर
  14. मोटापे से सम्बंधित शिकायतें
  15. आमवात
  16. रुमेटिज्म
  17. सूजन, मांसपेशियों में दर्द

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Navaka Guggulu

  1. 2-3 गोली, दिन में दो या तीन बार, लें।
  2. इसे पानी के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के पहले लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

ऐसे तो इस दवा को विशेष साइड इफ़ेक्ट नहीं है लेकिन यह शरीर में पित्त को बढ़ाती है। इसलिए कुछ लोगों में यह एसिडिटी, पेट में जलन को बढ़ा सकती है।

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

This medicine is manufactured by Dabur (Dabur Vyoshadi Vati), Shree Baidyanath Ayurved Bhawan (Baidyanath Vyoshadi Bati) Vaidyaratnam Oushadhasala (Vyoshadi Gulgulu Tablets) and some other pharmacies.

अशोक के औषधीय उपयोग Ashok Tree Medicinal Uses in Hindi

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अपशोक, अशोक, चिर, दोहली, दोषहारी, गन्धपुष्प, हेमपुष्पा, कंकाली, कंकेली, कंटाचरणदोहडा, कर्णपुरा, कर्णपूरक, केलिक, क्रिमिकारक, मधुपुष्प, पल्लदरु, पिंडपुष्प, परपल्लव, रक्तपल्लव, रमा, रोगितारू, शहय, सुभग, ताम्रपल्लव, वामनघरिघटक, वामनकायतना, विचित्र, विशोक, वीताशोक आदि अशोक के वृक्ष के संस्कृत पर्याय हैं। अशोक का वृक्ष हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है। कामदेव, जो की प्रेम के देवता हैं, के पांच पुष्पों से सुसज्जित बाणों में इसके पुष्प भी एक हैं। यह वृक्ष पवित्र, आदरणीय और औषधीय है।

By Varun Pabrai (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
By Varun Pabrai (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
यह अशोक (बिना शोक के) है क्योंकि यह रोगों को हर, शरीर से दुःख दूर करता है। इसके नीचे बैठने से शोक नहीं होता। प्राचीन समय में इसकी वाटिकाएं बनायीं जाती थी जो की हमेशा हरी रहती थी और अपने सुगन्धित पुष्पों से सभी का मन प्रसन्न कर देती थीं।

अशोक एक औषधीय पेड़ है। इसका दवा की तरह प्रयोग हजारों साल से होता आया है। यह मुख्य रूप से स्त्री रोगों, रक्त बहने के विकारों और मूत्र रोगों में लाभकारी है। यह रक्त के असामान्य बहाव को अपने संकोचक गुण के कारण रोकता है। अशोक की छाल कसैली, रूखी, और स्वभाव से ठंडी होती है। यह स्त्री रोगों में बहुत उपयोगी है। यह गर्भाशय की कमजोरी, बाँझपन, श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर सभी को नष्ट करता है। यह मूत्रल गुणों के कारण पेशाब के रोगों में भी लाभकारी है।

अशोक के पेड़ के पत्ते लम्बे होते है। शुरू में पत्ते ताम्बे के रंग के होते हैं, इसलिए इसे ताम्रपत्र भी कहते है। इसमें सुन्दर और सुगन्धित पुष्प आते हैं जो की पहले पीले होते हैं और फिर नारंगी हो हुए लाल हो जाते हैं। फल, फलियों के रूप में होते हैं। फलियाँ करीब आठ-दस इंच लम्बी होती हैं। फलियों के अन्दर चार से दस बीज होते हैं। दवाई की तरह अशोक की छाल, पत्तों, फूलों और बीजों का प्रयोग होता है।

दवा की तरह, अशोक की छाल का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। छाल में टैनिन, कैटीकाल, उड़नशील तेल, कीटोस्टेरोल, ग्लाइकोसाइड, सेपोनिन, कैल्शियम और आयरन यौगिक होते हैं। बीजों का चूर्ण पथरी और मूत्रकृच्छ में फायदा देते हैं।

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

अशोक, शिम्बी कुल का पेड़ है। इसका उपकुल कंटकीकरंज / सीजलपिनोयडी है।

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  • आर्डर Order: फेबल्स Fabales
  • परिवार Family: Fabaceae – मटर परिवार
  • जीनस Genus: सराका Saraca
  • Species: अशोका या इंडिका asoca or indica

स्थानीय नाम / Synonyms

Latin: Saraca asoca (Rose.) De. Willd

Sanskrit: Anganapriya, Apashoka, Ashoka, Chakraguchha, Chira, Dohali, Doshahari, Gandhapushpa, Hemapushpa, Kankali, Kankelli, Kantacharandohada, Kantanghridohada, Karnapura, Karnapuraka, Kelika, Krimikaraka, Madhupushpa, Nata, Palladru, Pindapushpa, Prapallava, Raktapallava, Rama, Rogitaru, Shhaya, Shokaharta, Shokanasha, Smaradhivasa, Strinirikshanadohada, Subhaga, Tamrapallava, Vamanghrighataka, Vamankayatana, Vanjula, Vanjuldruma, Vichitra, Vishoka, Vitashoka

  1. Assamese: Ashoka
  2. Bengali: Ashoka
  3. English: Asoka Tree
  4. Gujrati: Ashoka, Ashopalava
  5. Hindi: Ashoka, Sita Ashok, Ashok
  6. Kannada: Ashokadamara, Ashokamara, Kankalimara, Achenge
  7. Kashmiri: Ashok
  8. Malayalam: Asokam, Hemapushpam
  9. Marathi: Ashok, Jasundi
  10. Oriya: Ashoka
  11. Punjabi: Asok
  12. Tamil: Asogam, Asogu, Asokam, Asogam, Anagam, Malaikkarunai, Sasubam
  13. Telugu: Ashokapatta, Asokamu
  14. Sinhalese: Asoka, Diyaratambala, Diyaratmal

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

अशोक की छाल को आयुर्वेद में प्रमुखता से स्त्री रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह स्वभाव से शीत होती और प्रजनन तथा मूत्र अंगों पर विशेष रूप से काम करती है। यह गर्भाशय की कमजोरी और योनी की शिथिलता को दूर करती है। यह संकोचक, कडवा, ग्राही, रंग को सुधारने वाला, सूजन दूर करने वाला और रक्त विकारों को नष्ट करने वाला है।

  • रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

ग्राही, गर्भाशय रसायन, हृदय, प्रजास्थापना, स्त्री रोग्जित, वेदना स्थापना, विशाघ्न, वर्ण्य

अशोक रक्त रोधक प्रयोगों में बहुत ही हितकर है।

अशोक के औषधीय प्रयोग

अशोक स्त्री रोगों में बहुत ही फायदा करता है। इसके सेवन से बाँझपन नष्ट होता है और राजोविकर दूर होते है। यह दर्द, सूजन, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, दर्द, अतिसार, पथरी, पेशाब में दर्द, आदि में लाभप्रद है।

अशोक की छाल को अशोकारिष्ट और अशोक घृत बनाने में प्रयोग किया जाता है। यह दोनों ही दवाएं स्त्री-रोगों में प्रभाकारी हैं।

1. मासिक में बहुत खून जाना Excessive bleeding in periods

अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर, दिन भर में कई बार कुछ-कुछ देर पर दिन में कई बार पियें।

अशोक के पेड़ की 8 कोपलें और कलियाँ तोड़ कर, साफ़ करके रोज़ सुबह खाएं।

2. मासिक की अनियमितता Period irregularities

असोक की छाल का काढ़ा बनाकर पियें।

3. रक्त प्रदर, योनि से असामान्य खून जाना, पेशाब के रोग Bleeding disorders, urinary disorders

अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पियें।

4. बाँझपन, गर्भाशय की कमजोरी, होर्मोन का असंतुलन, मासिक की परेशानियाँ, पेट के रोग, पेडू का दर्द Infertility

अशोकारिष्ट Ashokarishta का सेवन करें।

5. सफ़ेद पानी आना, लिकोरिया या श्वेत प्रदर Leucorrhoea

अशोक की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार, गाय के दूध के साथ लें।

6. अंडकोष की सूजन Swelling of the testicles

अशोक छाल का काढ़ा दिन में दो बार, एक सप्ताह तक पियें।

7. पेट में दर्द, पेशाब रोग Painful urination

अशोक की छाल को पानी में उबालकर काढा बनाकर दिन में दो बार पियें।

8. पथरी Urinary stones

अशोक की फली से बीज निकालकर पीस लें। इसे पांच-दस ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ फंकी लें।

9. सांस रोग, श्वास Respiratory disorders

अशोक के बीजों का चूर्ण थोड़ी सी मात्रा (65mg) में पान के बीड़े में रख कर सेवन करें।

10. हड्डी टूटना Bone fracture

हड्डी के टूटने पर अशोक की छाल का चूर्ण पांच से दस ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करें।

11. खूनी पेचिश Bloody dysentery

अशोक के पुष्पों को 3-4 gram की मात्रा में पीस के पीने से लाभ होता हैं।

12. खूनी बवासीर Bleeding piles

अशोक की छाल 5 gram और इतनी ही मात्रा में इसके पुष्प ले कर रात में पानी में भिगो दें। सुबह इसे छान कर पी लें। इसी प्रकार सुबह भिगो कर शाम को पियें।

13. योनि का ढीलापन Vaginal Sag

अशोक की छाल + बबूल छाल + गूलर छाल + माजूफल + फिटकरी, समान भाग में मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से छान कर इसका कपड़छन पाउडर बना लें। इस चूर्ण की सौ ग्राम की मात्रा एक लीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई रह जाए तो स्टोव से उतार कर ठंडा कर लें। इसे योनि के अन्दर रात को डालें। यह प्रयोग कुछ दिन तक लगातार करें।

औषधीय मात्रा

  1. काढ़ा: 20-50 ml
  2. बीज चूर्ण: 1-3 grams
  3. पुष्प चूर्ण: 3-6 grams

अशोक के सेवन का दवा की मात्रा में प्रयोग शरीर पर कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं डालता। यह ग्राही है और इसका सेवन कब्ज़ कर सकता है। कब्ज़ को दूर त्रिफला चूर्ण के सेवन से किया जा सकता है।


अनवांटेड-21 Unwanted-21 in Hindi

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अनवांटेड-21, मैनकाइंड द्वारा निर्मित रेगुलर गर्भनिरोधक गोली है Regular contraceptive pill from Mankind Pharmaceuticals जो बच्चा रोकने के लिए रोजाना 21 दिन तक प्रयोग की जाती है।

यह गर्भ को रोकने और बच्चों में अंतर रखने के प्रयोग की जाती है। यह एक हार्मोनल गर्भनिरोधक गोली है। यह शरीर के होरमोन सिस्टम को प्रभावित करती है। इसमें हार्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन हैं जो की कृत्रिम रूप से बनाए गए है। ये दोनों हार्मोन शरीर में महिला प्रजनन अंगों पर कई तरह से काम करते हैं। यह अंडाशय यानि कि ओवरी से अंडाणु के निकलने ovulation को रोकते है, निषेचन fertilization को मुश्किल करते हैं तथा निषेचन होने पर उसके गर्भाशय में स्थापन implant को रोकते हैं।

जो भी हार्मोनल कॉण्ट्रासेप्टिव पिल्स होती हैं उनकी एक गोली रोज़, 21 दिन तक ली जाती है। फिर 7 दिनों तक कोई गोली नहीं ली जाती।

यदि सही ढंग से लिया जाए तो यह गोली गर्भावस्था को रोकने में 99% से अधिक कारगर है।

Unwanted-21 is a combined hormonal contraceptive pill for preventing pregnancy. It directly affects hormones in body and hence should be taken after consulting doctor. For example it is not suitable for women above the age of 35. It should not be taken while breastfeeding. There are many medical conditions in which intake of these pills can worsen the condition. Once you stop taking the pills it may take few months to gain normal fertility as it induces temporary infertility.

  1. ब्रांड का नाम : मैनकाइंड
  2. जेनरिक: लेवोनॉरजस्ट्रेल Levonorgestrel और एथिनायलोएस्ट्राडिओल Ethinyloestradiol टैब
  3. प्रकार: हार्मोनल पिल्स Hormonal Contraceptive pills
  4. गोलियां: 21 गोली
  5. प्राइस MRP: Rs. 58.00

अनवांटेड-21 के घटक Composition of Unwanted-21

  • लेवोनॉरजस्ट्रेल Levonorgestrel 0.15 mg
  • एथिनाय लोएस्ट्राडिओल Ethinyloestradiol 0.03mg
  • अनवांटेड-21 गर्भावस्था को कैसे रोकती है:
  • यह हर महीने होने वाले ओवूलेशन (ओवेरी से अंडा निकलना) Ovulation को रोकती है।
  • यह गर्भाशयग्रीवा के म्यूकस cervical mucous को गाढ़ा करती है जिससे स्पर्म sperm, एग egg / ova तक न पहुँच पायें।
  • यह गर्भाशय की लाइनिंग को पतला करती thins uterus lining है जिसिसे निषेचन fertilization हो जाने पर भी, गर्भ में निषेचित अंडाणु न आरोपित implantation हो पाए।
  • अनवांटेड-21 के चिकित्सीय उपयोग Uses of Unwanted-21
  • गर्भ को न ठहरने देना, बच्चों में गैप रखने के लिए

इसे निम्न दिक्कतों में भी दिया जाता है:

  1. पीरियड में होने वाला दर्द, तकलीफ दूर करने के लिए painful periods
  2. मासिक में ज्यादा खून जाना heavy Bleeding
  3. एंडोमेट्रिओसिस endometriosis
  4. अनवांटेड-21 के लाभ Benefits of Unwanted-21
  5. गर्भ को रोकना prevention of pregnancy
  6. मासिक धर्म प्रवाह और ऐंठन में कमी decreases bleeding and pain during periods
  7. मासिक चक्र को नियमित करना regularize periods
  8. डिम्बग्रंथि और एंडोमेट्रियल कैंसर से रक्षा protection from endometrial and ovary cancer
  9. अनवांटेड-21 के नुकसान Side-effects of Unwanted-21
  10. मतली और चक्कर nausea and vomiting
  11. स्तनों में दर्द tender breasts
  12. सिरदर्द, माइग्रेन headaches
  13. उच्च रक्तचाप high blood pressure
  14. वज़न बढ़ना weight gain
  15. मासिक के बीच में योनि से खून जाना dysfunctional bleeding
  16. मस्तिष्कीय रक्तस्राव brain hemorrhage
  17. पित्ताशय की थैली के रोग gallbladder diseases
  18. रेटिना थ्रोम्बोसिस retina thrombosis
  19. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण gastrointestinal symptoms
  20. अस्थाई बांझपन temporary infertility in woman
  21. एडेमा / द्रव प्रतिधारण edema
  22. मासिक स्राव में परिवर्तन change in periods
  23. एलर्जी allergy
  24. अवसाद सहित मनोदशा में बदलाव
  25. Vaginitis, कैंडिडिआसिस candidiasis
  26. कॉन्टेक्ट लेंस लगाने पर परेशानी difficulty in using contact lenses
  27. सीरम फोलेट स्तर में कमी आदि decrease in serum folate etc.

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Unwanted-21

  • इसकी 21 गोलियां हैं।
  • मासिक के पहले दिन से गोली लेना शुरू करें।
  • अगले 21 दिन लगातार गोली लें।
  • 7 दिनों का गैप रखें।
  • 8वें दिन से नया पैक लेना शुरू करें।
  • इस गोली को रोज़ एक ही समय पर लिया जाना चाहिए।
  • दवा के सेवन के बाद २ घंटे पर उल्टी हो जाने पर, गंभीर दस्त (एक दिन में 6-8 बार) आदि होने पर गर्भावस्था हो सकती है। ऐसे में कंडोम का प्रयोग करें और गोली लेना भी जारी रखें।
  • उलटी हो जाने पर दूसरी गोली लें।

Who should not take the pill?

  1. गर्भावस्था में
  2. 35 वर्ष से अधिक महिला
  3. धूम्रपान करने वाली महिला
  4. अधिक वज़न में
  5. थ्रोम्बोसिस (खून का थक्का)
  6. हृदय रोग, उच्च रक्तचाप
  7. गंभीर सिरदर्द, माईग्रेन
  8. स्तन कैंसर
  9. या लीवर की या पित्ताशय की थैली की बीमारी
  10. मधुमेह
  11. बच्चा होने के बाद
  12. बच्चा होने के बाद यदि आप स्तनपान नहीं करा रही तो जन्म के बाद 21 दिन पर गोली शुरू कर सकती हैं
  13. स्तनपान कराते समय इसका सेवन न करें
  14. गर्भपात के बाद
  15. या जिन्हें किसी तरह की अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हों, के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  16. यह गोली यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) के खिलाफ की रक्षा नहीं करती।

अनवांटेड-21 को कैसे लें?

अनवांटेड-21 का एक पैक, एक महीने के लिए है। इसमें 21 पिल्स हैं। मासिक होने के पहले दिन से इसे लेना शुरू करें। जब सभी 21 गोलियां ले ली गई हों, तो 7 दिन तक इसे नहीं लेना है। फिर आठवें दिन से नया पैक शुरू करें।

ऐसे तो इसे महीने के किसी भी दिन से लेना शुरू किया जा सकता है लेकिन यदि इसे पीरियड के पहले दिन से लेते हैं तो यह अनचाहे गर्भ को करीब 99 प्रतिशत तक रोकती है। लेकिन यदि महीने के किसी भी दिन से लेना शुरू किया जाए तो यह उतनी इफेक्टिव नहीं होती और गर्भ ठहर सकता है। इसलिए ऐसे में कंडोम आदि का प्रयोग करना चाहिए।

What to do if you miss a pill?

  1. गोली को लेना भूल जाना, इसकी गर्भनिरोधन की क्षमता को कम करता है। ऐसे में गर्भ ठहर सकता है।
  2. यदि आप एक गोली लेना भूली हैं और गोली लेने में 24 घंटे से ज्यादा हो गए हैं, तो जब याद आये तो भूली वाली गोली और उस दिन की गोली, यानि कि दो गोली लें।
  3. यदि २ या ज्यादा दिन तक गोली नहीं लीं हैं, या नया पैक दो दिन से ज्यादा के अंतर पर शुरू किया है, तो ऐसे में इस गर्भावस्था होने के चांसेस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं क्योंकि ओवरी से एग निकल सकता है और उसका निषेचन भी हो सकता है। ऐसे में २ गोली लें और फिर रोजाना की एक गोली लेते रहें।

सोंठ Dry Ginger Powder Shunthi in Hindi

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अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। सोंठ को भोजन में मसाले और दवा, दोनों की ही तरह प्रयोग किया जाता है। अदरक Ginger से तो सभी परिचित हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप का ही पौधा है। इसका भारतीय भोजन को स्वादिष्ट और पाचक बनाने में इसका विशेष योगदान है। करी, पकौड़े, सब्जियां सभी में अदरक और लहसुन का पेस्ट पड़ता है। इसका सुखा कर बनाया गया पाउडर कई व्यंजनों में किया जाता है।

By Miansari66 (Own work) [Public domain], via Wikimedia Commons
By Miansari66 (Own work) [Public domain], via Wikimedia Commons
सोंठ का प्रयोग आयुर्वेद में प्राचीन समय से पाचन और सांस के रोगों में किया जाता रहा है। आयुर्वेद में इसे शुंठी, विश्वा, विश्व, नागर, विश्वभेषज, ऊषण, कटुभद्र, शृंगवेर, और महौषधि आदि नामों से जाना जाता है।

इसमें एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।

एक शोध दिखाता है, एक दिन में करीब 1 ग्राम सोंठ (दिन में कई अंतराल पर लेने से) का सेवन मोशन सिकनेस motion sickness को दूर करता है।

इसके कुछ बहुत ही सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक योग हैं, जैसे की त्रिकटु Trikatu, सौभाग्य शुण्ठी पाक Saubhagya Shunthi Pak, पञ्चकोल Panchkol, पंचसम चूर्ण Panchsum Churna आदि।

अदरक पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। इसका पौधा रेत मिश्रित और उर्वरक ज़मीन में पाया जाता है। यह कुछ फुट ऊँचा और लम्बे पत्तों युक्त होता है। इसके जमीन के नीचे कंद होते हैं जो की पौधे के तने ginger is stem होते हैं। कन्द को जड़ नहीं समझना चाहिए।

सोंठ बनाने के लिए ताज़ी अदरक को सुखा लिया जाता है। फिर इसे सीधे या चूर्ण के रूप में प्रयोग किया जाता है।

स्थानीय नाम

  • Latin: Zingiber officinale
  • Sanskrit: Aushadha, Muhaushadha, Nagara, Vishva, Vishvabheshaja, Shringavera, Vishva, Vishvauashadha
  • Hindi: Ada, Adrak, Sonth
  • English: Ginger
  • Sinhalese: Inguru, Sidhinguru
  • Tamil: Allan, Arttiragam, Attiragam, Inji, Kulumamulam, Kodataram, Maruppu, Sangai, Sigaram, Singaveram, Singiveram, Sukku, Sundi, Ubugallam, Sukku, Chukku
  • Malayalam: Chukku
  • Marathi: Sunth
  • Oriya: Sunthi
  • Punjabi: Sund
  • Telugu: Sonthi, Sunti
  • Urdu: Sonth, Zanjabeel
  • Siddha: Fresh-Ingi; dried-Chukku
  • Unani: Fresh-Zanjabeel-e-Ratab; Al-Zanjabeel; dried-Zanjabeel, Zanjabeel-e-Yaabis

संरचना / घटक

  1. अदरक के कंद में कटु पदार्थ होते है, जिंजरोन zingerone और शोगोल shogaol।
  2. इसकी खुशबु कैम्फ़ेन, फेललैंडरेन, जिंजीबेरिन, सीनोल और बोरनिओल camphene, phellandrene, zingiberene, cineol and borneol के कारण होती है।
  3. इसमे पीले रंग का कटु पदार्थ, ओले रेज़िन, और जींजरीन भी पाया जाता है।

मुख्य गुण

  1. वातहर, गैस हर
  2. कफहर
  3. उत्तेजक
  4. स्वेदजनक
  5. पाचक
  6. प्रमुख प्रयोग
  7. अपच, पेट फूलना, पेट का दर्द, उल्टी, पेट और आंत में दर्द
  8. जुकाम, खांसी और बुखार
  9. आमवात, वातव्याधि

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

अदरक के ताज़े कन्द आद्रकम और सूखे रूप को आयुर्वेद में शुण्ठी या सोंठ कहते हैं। जनवरी-फरवरी के महीने में अदरक को खोद कर जमीन में से निकलते हैं। फिर इन्हें पानी में रात भर भिगोते हैं। इसकी फिर परत उतार कर सुखा लेते हैं।

शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

  • रस (taste on tongue): कटु
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर
  • कर्म: दीपन, पाचन, हृदय, मेध्य, सर्वदोषप्रसामना, रसायन, अनुलोमना
  • दोष: वात और कफ को कम करना और पित्त को बढ़ाना

शुण्ठी का सेंधा नमक के साथ सेवन वात या वायु को कम करता है और शहद के साथ यह कफ को कम करता है।

शुण्ठी / सूखे अदरक के लाभ Health Benefits of Dry Ginger

  1. यह आमवात arthritis नाशक है।
  2. यह वात-कफ को कम करता है।
  3. वात कम करने के कारण इसे आमवात, पुराना गठिया, गैस, सायटिका, वातव्याधियों में प्रयोग किया जाता है।
  4. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता immunity को बढ़ाता है।
  5. यह कफ को कम करता है।
  6. कफ कम करने के गुण के कारण इसे खांसी, जुखाम, जकड़न आदि में प्रयोग किया जाता है।
  7. यह पित्त वर्धक है।
  8. इसके सेवन से पित्त स्राव बढ़ता है और पाचन सही करता है।
  9. यह भूख न लगना, जी मिचलाना, पाचन की कमजोरी, अजीर्ण में लाभ देता है।
  10. यह सर्दी के मौसम में बहुत लाभकारी है क्योंकि यह वात-व्याधियों और कफ दोनों में ही राहत देता है।
  11. यह नाड़ी संस्थान के लिए उत्तेजक है।
  12. प्रसव के बाद इसके सेवन शरीर की कमजोरी, बुखार आना, आदि दिक्कतों को दूर करता है।
  13. यह दिल के लिए टॉनिक है।
  14. यह कोलेस्ट्रोल के लेवल को कम करता है।
  15. यह माइग्रेन के अटैक को कम करता है।

सौंठ के औषधीय प्रयोग

सोंठ, रुचिकारक, आमवात नाशक, पाचक, चटपटी, वात-कफ नाशक, वीर्यवर्धक, आवाज़ को मधुर बनाने वाला, खांसी, हृदय रोग, उदर रोगों में लाभप्रद है। यह मलबंध को तोड़ तो सकता है लेकिन उसको शरीर से बाहर नहीं कर सकता। इसलिए कब्ज़ आदि में इसे विरेचक के साथ दिया जाता है।

आमवात gout

सोंठ + गिलोय, को बराबर मात्रा में मोटा कूट कर दो कप पानी में उबाल ले। जब पानी आधा बचे तो इसे छान कर पी लें। इसे रोजाना खाना खाने के एक घंटे बाद लें।

आर्थराइटिस arthritis

तिल और सोंठ के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलकर, दिन में 3-4 बार सेवन करें।

कमर में दर्द waist pain

सोत को मोटा पीसकर, २ कप पानी में उबाल कर काढा बना ले। जब पानी आधा बचे तो इसे छान कर पी लें।

दस्त loose motions, diarrhea

1-3 gram सोंठ का चूर्ण, दिन में 2-3 बार पानी या छाछ के साथ लेने से दस्त रुक जाते हैं।

गैस flatulence

त्रिफला 15 g+ मिश्री 10 g+ शुण्ठी 5 g,मिलाकर रख लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में लेने से गैस दूर होती है।

मन्दाग्नि digestive weakness

सोंठ को 1-3 ग्राम की मात्रा में गुड के साथ मिलकर कुछ दिन खाएं।

शीघ्रपतन premature ejaculation

बादाम को रात में पानी में भिगो दें। सुबह इसका छिलका निकाल कर, पत्थर पर घिस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट में 4-5 काली मिर्च, 2 ग्राम सोंठ और मिश्री का बारीक पेस्ट मिला दें। इसको चाट कर लें और फिर दूध पी लें। ऐसा २ महीने तक लगातार करें।

पुरुषों में यौन कमजोरी sexual weakness

बराबर मात्रा में आमला, हरड़, बहेड़ा, सोंठ, पिप्पली, काली मिर्च, तिल के पाउडर को मिला दें। इस हुए पाउडर को अच्छे से मिला दें और 1-4 ग्राम की मात्रा में लें।

संग्रहणी, भूख न लगना, आमदोष digestive disorders

सोंठ + मोथा + अतीस + गिलोय, को बराबर मात्रा में मिला दें। इसे पानी में उबाल लें और कुछ मिनट पकाएं। इसे 20-30 ml की मात्रा में सुबह और शाम पियें।

कफ cough, cold, and coryza

1-3 ग्राम की मात्रा में सोंठ का सेवन शहद के साथ करें।

सूजन, दर्द, कफ, कम पित्त के कारण पाचन की कमजोरी, गैस

  1. बराबर मात्रा में सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च के चूर्ण को मिला दें।
  2. यह तीन कटु मसालों का संयोग, आयुर्वेद में त्रिकटु Trikatu चूर्ण कहलाता है।
  3. त्रिकटु के प्रयोग: यह पाचन और कफ रोगों, दोनों में ही लाभकारी है। इसे जुखाम colds, छीकें आना rhinitis, कफ cough, सांस लेने में दिक्कत breathlessness, अस्थमा asthma, पाचन विकृति dyspepsia, Obesity और मोटापे में लिया जा सकता है।
  4. त्रिकटु की औषधीय मात्रा: इसे बड़े 2 ग्राम की मात्रा में और बच्चे 125 mg से 500 mg की मात्रा में दिन में तीन बार ले सकते हैं।

गला सूखना, खांसी और घरघराहट dry throats, coughs and wheezing

सोंठ की चाय बनाकर पियें।

अपच indigestion

सुबह सोंठ को सेंधा नमक के साथ लें।

औषधीय मात्रा Therapeutic dosage of Dry Ginger Powder

  • शुण्ठी को प्रयोग करने की औषधीय मात्रा 1-3 gram है।
  • सावधानियां Cautions for using Dry ginger
  • यह प्रकृति में उष्ण hot in potency है। आयुर्वेद के मत अनुसार गर्भावस्था में उष्ण चीजों का सेवन बहुत स्सव्धानी से किया जाना चाहिए।
  • यह पित्त को बढ़ाता है।
  • जिसे पेशाब में जलन, पेट में जलन, शरीर में जलन, पित्त रोगों में न लें।
  • ज्यादा मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी कर सकता है।
  • निर्धारित मात्रा में लेने किसी भी तरह का गंभीर साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।

चिकनगुनिया Chikungunya Ayurvedic in Hindi

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चिकनगुनिया, एक वायरल रोग है जो की संक्रमित मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है। इस रोग को सबसे पहले, तंज़ानिया Tanzania, मारकोंड प्लेटू Markonde Plateau, मोजाम्बिक Mozambique और टनगानिका Tanganyika पर 1952 में फैलते देखा गया था। चिकनगुनिया वायरस जनित रोग है और इस रोग का वेक्टर एडीज एजिप्टी मच्छर है जो डेंगू बुखार और येलो फीवर का भी वेक्टर है। हाल ही में पेरिस के पाश्चर संस्थान ने दावा किया है कि इस वायरस में अब म्युटेशन हो गए हैं और यह वायरस अब टाइगर मच्छर के द्वारा भी फैलाया जा रहा है।

chikanguniya

“चिकनगुनिया” शब्द मारकोंड प्लेटू के भाषा के एक शब्द Kungunyala से लिया गया है जिसका मतलब होता है to become contorted मुड़ जाना / झुक जाना, ऐंठ जाना या बिगड़ जाना। यह शब्द इस रोग के शरीर पर देखे प्रभाव के कारण दिया गया क्योंकि इस रोग में शरीर में आर्थराइटिस जैसी स्थिति हो जाती है।

चिकनगुनिया होने पर आम तौर पर देखे जाने वाले लक्षणों में शामिल हैं, बुखार, ठंड लगना, सिर दर्द, मतली, उल्टी और जोड़ों में दर्द। जोड़ों में सूजन हो भी सकती है और नहीं भी। इसके साथ ही शरीर पर और दाने भी देखे जा सकते हैं। डेंगू के विपरीत इसमें रक्तस्राव या शॉक सिंड्रोम नहीं होता है।

पहले यह रोग भारत में नहीं देखा जाता था। यह मुख्यतः ईस्ट अफ़्रीकी देशों में ही फैलता था। लेकिन अब यह भारतीय उपमहाद्वीप पर बहुत ज्यादा फैलता देखा गया है। इसका एपीडेमिक की तरह विस्तार, भारत में 1963 (कोलकाता), 1965 (पांडिचेरी और चेन्नई तमिलनाडु, राजमुंदरी में,विशाखापत्तनम और आंध्र प्रदेश में काकीनाडा; मध्य प्रदेश में सागर; और नागपुर में महाराष्ट्र) और 1973 (महाराष्ट्र में बरसी) में देखा गया। इसके बाद इसके छिटपुट मामले जारी रहे 1983 और 2000 के दौरान महाराष्ट्र राज्य में विशेष रूप से इसके कई मामले दर्ज किये गए। वर्ष 2005 और 2006 से, भारत में चिकनगुनिया का एक बड़ा प्रकोप देखा जा रहा है। इससे प्रभावित राज्यों में शामिल हैं, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, गोवा, पांडिचेरी, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, अंडमान एवं निकोबार और दिल्ली। आजकर डेंगू की ही तरह, भारत भर में फ़ैल गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अभी इसके बहुत से नए केस देखे जा रहे है।

Chikungunya is a mosquito-borne viral disease transmitted to humans by bite of infected mosquitoes. It causes fever and severe joint pain. Other symptoms include muscle pain, headache, nausea, fatigue and rash. This diseases is spread in Africa, Asia and the Indian subcontinent. In recent decades mosquito vectors of chikungunya have spread to Europe and the Americas. It was first described during an outbreak in southern Tanzania, other neighboring areas in 1952 (arthralgia).

There is no cure for the disease. Its treatment is focused on relieving the symptoms. No specific antiviral drug is available for chikungunya. Treatment is done to relieve the symptoms, using anti-pyretic, analgesics and fluids. There is no commercial chikungunya vaccine.

चिकनगुनिया के लक्षण Chikungunya Symptoms

चिकनगुनिया का इन्क्यूबेशन पीरियड 2-12 दिनों का है, लेकिन आम तौर पर यह 3-7 दिनों में हो सकता है। इन्क्यूबेशन पीरियड के बाद अचानक तेज़ बुखार होता है (> 40 डिग्री सेल्सियस या 104 ° F)

ठंड लगना, जोड़ों का दर्द या गठिया, व्यग्रता, मतली, उल्टी, सिरदर्द, हल्का फोटोफोबिया भी होता है। हाथ पैरों के जोड़ों में सूजन और दर्द होता है। कुछ रोगियों को अशक्त कर देने वाला जोड़ों का दर्द या गठिया भी हो जाता है जो कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक परेशान कर सकता है। एक्यूट चिकनगुनिया का बुखार कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ़्ते तक रह सकता है। इससे होने वाली दिक्कतें जैसे की जोड़ों की सूजन, दर्द, गठिया आदि कुछ महीनो या वर्षों तक मरीज़ को परेशान कर सकती है। चिकनगुनिया की डाइगनोसिस प्रायः तब की जाती है जब यह महामारी की तरह फैला हो तथा शरीर में तेज़ बुखार, दाने और आमवाती लक्षण हों।

  • बुखार जिसमें जोड़ों का दर्द हो
  • मांसपेशियों में दर्द, सिर दर्द, उल्टी, थकान और शरीर पर दाने
  • जोड़ों का दर्द आम तौर पर कुछ दिनों से लकर हफ्तों तक रह सकता है। लेकिन कुछ मामलों में जोड़ों के दर्द कई महीनों, या वर्षों के लिए रह सकता है।

एलोपैथिक उपचार

  1. चिकनगुनिया का कोई विशेष उपचार एलोपैथी में नहीं है।
  2. इसकी कोई वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है।
  3. उपचार के तरीको में शामिल हैं, इंट्रावीनस फ्लुइड्स देना, ज्वरनाशक दवाई देना, सूजन कम करने की और एनाल्जेसिक दवाओं द्वारा दर्द कम करना।
  4. क्लोरोक्विन फास्फेट (250 मिलीग्राम) Chloroquine Phosphate (250 mg) दिन में एक बार दैनिक देने से से चिकनगुनिया से पीड़ित लोगों में लाभ देखा गया है।

आयुर्वेदिक या हर्बल उपचार Ayurvedic or Herbal Treatment of Chikungunya

आयुर्वेद में चिकनगुनिया का उपचार उस बुखार की तरह किया जाता है जिसमें शरीर में बुखार के साथ आर्थराइटिस की समस्या भी हो। इस प्रकार के ज्वरों में वात-पित्त ज्वर, वात-कफ ज्वर और संधिगत सन्निपात ज्वर आते है। चिकनगुनिया जानलेवा तो नहीं है किन्तु शरीर को बहुत ही कष्ट देने वाला रोग है।

चिकनगुनिया के लिए निम्लिखित उपयोगी है:

ज्वरहर वनस्पतियाँ:

गिलोय, सोंठ, कालमेघ, पाठा, तुलसी, नीम, त्रिफला, मंजीठ, रसना, गुग्गुलु, हल्दी और निर्गुन्डी

नीम की चाय, गिलोय का काढ़ा, त्रिफला का काढ़ा, तुलसी, सोंठ, अदरक का रस आदि का प्रयोग घरेलू उपचार की तरह किया जा सकता है।

तुलसी और नीम शरीर की इम्युनिटी को भी बढ़ाते है। यह शरीर में वात-कफ को कम करते हैं।

गिलोय लीवर की रक्षा करने वाली और वायरस जनित ज्वारों को नष्ट करने वाली उत्तम औषध है। गिलोय का काली मिर्च और तुलसी के पत्तों से बना काढ़ा डेंगू के साथ-साथ इसमें भी उपयोगी है। ताज़ी गिलोय न उपलब्ध होने पर, गिलोय घन वटी का प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ी गिलोय का काढ़ा गिलोय घन वटी से अधिक प्रभावशाली है।

स्वास्थ्यवर्धक वनस्पतियाँ:

आंवले, अश्वगंधा, गिलोय और मुलेठी का सेवन करने से शरीर में बल आता है। ये सभी आयुर्वेद की रसायन या टॉनिक औषधियां हैं।

आयुर्वेदिक दवाएं:

चिकनगुनिया के उपचार के लिए उपयोगी दवाएं

नीचे दी गई दवाओं को २ सप्ताह तक, गर्म पानी के साथ लें। सटीक दवा शरीर में देखे जा रहे लक्षणों, दवा के प्रभाव पर तय की जाती है।

  1. संजीवनी वटी (100 mg) दिन में दो बार।
  2. सुदर्शन घन वटी 500mg 1 गोली दिन में तीन बार।
  3. अमृतारिष्ट 15-30 ml दिन में दो बार।

अथवा

  1. संजीवनी वटी (100 mg) दिन में दो बार।
  2. त्रयोदशांग गुग्गुलु 500mg दिन में तीन बार।
  3. महारस्नादी क्वाथ 45 ml दिन में दो बार।

लक्षणों के आधार पर इनका सेवन करें:

  • बुखार और दर्द: दशमूल काढ़ा का सेवन करें।
  • बुखार के लिए: पटोलादि क्वाथ अथवा पञ्च तिक्त क्वाथ अथवा सुदर्शन चूर्ण का सेवन करें।
  • बुखार जिसमें कफ की अधिकता हो: निम्बादी क्वाथ
  • आमवात, गठिया, आर्थराइटिस जैसी स्थिति: रस्नादी क्वाथ अथवा महारास्नादि क्वाथ अथवा महा योगराज गुग्गुलु अथवा योगराज गुग्गुलु अथवा रसना सप्तक क्वाथ का सेवन करें।
  • पुराने बुखार में: आरोग्यवर्धिनी गुटिका का सेवन करें।
  • त्वचा पर दाने/रैशेस: गुडूच्यादी क्वाथ अथवा बिल्वादी गुटिका अथवा हरिद्रा खण्ड का सेवन करें।

चिकनगुनिया में गुग्गुलु का सेवन

गुग्गुलु क्योंकि शरीर में सूजन को दूर करते हैं इसलिए चिकनगुनिया में विशेष रूप से उपयोगी है। जब बुखार ठीक भी हो जाता है तो श्री में जोड़ों की दिकात रह जाती है। ऐसे में निम्न से किसी एक गुग्गुलु का सेवन शरीर में दर्द सूजन में राहत देता है:

  1. अमृता गुग्गुलु Amrita Guggulu (2 tablets twice daily)
  2. योगराज गुग्गुलु Yogaraj guggulu (2 tablets thrice daily)
  3. महायोगराज गुग्गुलु Maha yogaraja Guggulu (2 tablets twice daily)
  4. सिंहनाद गुग्गुलु Simhanada Guggulu (2 tablets thrice daily)
  5. गोक्षुरादी गुग्गुलु Gokshuradi Guggulu (2 tablets twice daily)
  6. कैशोर गुग्गुलु Kaishore Guggulu (2 tablets twice daily)
  7. त्रयोदाशांग गुग्गुलु Trayodashanga Guggulu (2 tablets thrice daily)

सिद्ध की उत्तम दवा

सिद्ध की एक हर्बल दवा Nilavembu kudineer chooranam भी चिकनगुनिया में लाभकारी है। इसमें बुखार दूर करने के antipyretic, सूजन नष्ट करने के anti-inflammatory और दर्द निवारक analgesic गुण है।

अन्य सुझाव

  1. पर्याप्त आराम करें।
  2. पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों, ओआरएस, फलों का रस, संतरे का रस, अनार का रस और अन्य तरल पदार्थ का सेवन करें।
  3. शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स और पानी की कमी न होने दें।
  4. दूध, फलों का रस, इलेक्ट्रोलाइट समाधान (ओआरएस) और जौ/चावल का पानी का सेवन करें।
  5. गेंहू के जवारे का २०-२५ मल जूस सुबह पीने से शरीर में इलेक्ट्रोलाइट की आपूर्ति होती है और ताकत मिलती है।
  6. विटामिन सी का सेवन करें यह इम्युनिटी को बढ़ता है और आयरन के अवशोषण में भी मदद करता है।
  7. नारियल पानी पियें।

पथ्य What to eat

जब तक शरीर का तापक्रम सामान्य न हो जाये, रोगी को तरल आहार ही दें। दूध और फलों के रस के सेवन से शरीर में कमजोरी कम करने में साहयता होगी और ज़रूरी पोषक पदार्थों की आपूर्ति भी होती रहेगी।

रोकथाम और नियंत्रण

  1. चिकनगुनिया की रोकथाम के लिए सबसे ज़रूरी है मच्छर के काटने से बचा जाए।
  2. त्वचा पर ओडोमोस, DEET युक्त मोसक्युटो रेपलेंट क्रीम लगायें।
  3. सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
  4. पूरी बांह के कपड़े, फुल पेंट पहनें।
  5. अगर आस-पास में किसी को यह संक्रमण है तो विशेष सावधानी बरते।
  6. इसका नियंत्रण करने के लिए मच्छरों के ब्रीडिंग स्थानों को नष्ट करना होगा। कूलर, A/C, चिड़ियों के लिए रखे पानी, गमले में रुके पानी को साफ़ कर दें। घर के आसपास पानी न इकठ्ठा होने दें।

त्रिकटु चूर्ण Trikatu Powder in Hindi

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त्रिकटु चूर्ण Trikatu, एक बहुत ही प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। त्रिकटु चूर्ण, को तीन (त्रि) कटु पिप्पली long pepper, काली मिर्च Black pepper और सोंठ dry ginger बराबर मात्रा में मिला कर बनाया जाता है। त्रिकटु पाचन और श्वास सम्बन्धी समस्याओं में लाभकारी है।

Trikatu
Trikatu

त्रिकटु आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है। यह यकृत liver को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म hot in potency है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है।

पर्याय Synonyms: Trikatu Choornam, Three Pungent and Trikuta त्रिकुटा चूर्ण, व्योष, The Three Spices Formula, Tri Ushna

दोषों पर प्रभाव Effect on Tridosha: वात तथा कफ को कम करना, पित्त को बढ़ाना Vata and Kapha reducing and Pitta increases

त्रिकटु चूर्ण के घटक Ingredients of Trikatu Powder

बराबर मात्रा में

  1. Piper nigrum पाइपर निग्रम Black Pepper
  2. Piper longum पाइपर लोंगम Long Pepper
  3. Zingiber officinale जिंजिबर ओफीशिनेल Dry Ginger

पिप्पली, उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।

मरिच या मरिचा, काली मिर्च को कहते हैं। इसके अन्य नाम ब्लैक पेपर, गोल मिर्च आदि हैं। यह एक पौधे से प्राप्त बिना पके फल हैं। यह स्वाद में कटु, गुण में गर्म और कटु विपाक है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वशन और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।

अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।

शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

त्रिकटु या त्रिकुटा के तीनो ही घटक आम पाचक हैं अर्थात यह आम दोष का पाचन कर शरीर में इसकी विषैली मात्रा को कम करते हैं। आमदोष, पाचन की कमजोरी के कारण शरीर में बिना पचे खाने की सडन से बनने वाले विशले तत्व है। आम दोष अनेकों रोगों का कारण है।

त्रिकटु घर पर कैसे बनायें?

  1. घर पर यह चूर्ण बनाने के लिए आपके पास पिप्पली, काली मिर्च और सोंठ (सूखा अदरक) का होना ज़रुरी है।
  2. इन्हें अलग-अलग बारीक पीस, बराबर मात्रा में अच्छे से मिला दें। इस चूर्ण को कपड़े से छान लें और किसी एयर-टाइट कंटेनर में रख लें।
  3. त्रिकटु के फाइटोकेमिकल्स Phytochemicals
  4. पिपेरीन (पाइपर निग्रम और पाइपर लोंगम से)
  5. जिंजरोल्स (जिंजिबर ओफीशिनेल से)

त्रिकटु के औषधीय गुण Medicinal Properties

  1. एंटी-वायरल Anti-viral: वायरस के खिलाफ प्रभावी
  2. एंटी-इन्फ्लेमेटोरी Anti-inflammatory: सूजन को कम करने वाला
  3. कफ निकालने वाला expectorant
  4. वातहर Carminative
  5. कफहर Phlegm reducing
  6. एंटीहाइपरग्लैसिमिक Anti-hyperglycemic: रक्त में ग्लूकोज को कम करता है
  7. वमनरोधी Anti-emetic: उलटी रोकने वाला
  8. एंटीहिस्टामिन Anti-histamine

त्रिकटु के सेवन के लाभ Benefits of Trikatu Powder

  1. त्रिकटु लीवर / यकृत liver को उत्तेजित stimulates कर बाइल bile का स्राव recreation कराता है जो की पाचन के लिए आवश्यक है।
  2. त्रिकटु का सेवन पाचक अग्नि को बढ़ाता है जिससे पाचन बेहतर होता है।
  3. यह वातहर है।
  4. यह फेट फूलना, डकार आना आदि परेशानियों को दूर करता है।
  5. यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को भी दूर करने में सहयोगी है।
  6. यह मेटाबोलिज्म metabolism को बढ़ाता है जिससे वज़न कम करने में सहयोग होता है।
  7. यह पोषक तत्वों की शरीर में अवशोषण के लिए उपलब्धता को बढ़ा शरीर को बल देने में मदद करता है।
  8. यह कफहर है।
  9. यह कफ दोष के कारण बढे उच्च रक्तचाप Kapha based hypertension में लाभ करता है।
  10. यह उष्ण प्रकृति hot potency के कारण कफ का नाश करता है और फेफड़ों को स्वस्थ्य करता है।
  11. यह शरीर से आम दोष Ama Dosha को नष्ट करता है।
  12. यह लिपिड लेवल Lipid level को कम करता है।
  13. यह शरीर से वसा fat को कम करता है।
  14. यह बुरे कोलेस्ट्रोल LDLsऔर ट्राइग्लिसराइड triglyceridesलेवल को कम करता है।
  15. यह हिस्टामिन का बनना रोकता है इसलिए एलर्जी में लाभप्रद है।

त्रिकटु चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग Uses of Trikatu Powder

  1. त्रिकुटा का सेवन मुख्य रूप से पाचन और श्वास अंगों के रोगों में किया जाता है। यह तासीर में गर्म है और पित्त को बढ़ाता है तथा कफ को साफ़ करता है।
  2. त्रिकुटा का सेवन मेटाबोलिज्म तेज़ करता है, इसलिए इसे वज़न कम करने के लिए भी खाया जाता है। इसे अनेकों आयुर्वेदिक दवाओं में भी डाला जाता है क्योकि यह दवा के अच्छे अवशोषण में मदद करता है bioavailability of other drugs। इसके अतिरिक्त यह वात-कफ हर भी है।
  3. भूख न लगना Loss of appetite
  4. पाचन सही से न होना Indigestion
  5. डकार आना Belching
  6. पेट फूलना Abdominal bloating
  7. ज़ुखाम, कफ, खांसी Coryza, cold, cough
  8. सांस की तकलीफ difficult breathing, Asthma

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Trikatu Powder

  1. त्रिकुटा को आधा ग्राम से तीन ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं।
  2. इसे पानी अथवा शहद अथवा खाने के साथ मिला कर, लिया जा सकता है।
  3. सांस रोग में इसे शहद के साथ लेना चाहिए।
  4. भोजन करने से पंद्रह मिनट पहले इसे खाने से पाचन सही से होता है।
  5. भोजन को सुपाच्य बनाने के लिए आप त्रिकुटा को भोजन पर छिड़क कर भी खा सकते हैं ।

उपलब्धता

यह एक क्लासिकल आयुर्वेदिक दवा है और बहुत सी फार्मेसियों द्वारा निर्मित है। यह पाउडर, सिरप और गोली के रूप में उपलब्ध है।

  1. Baidyanath Trikatu Capsules
  2. Divya / Patanjali Trikatu churna (A.S.S)
  3. Himalaya Trikatu (गोली और सिरप के रूप में)
  4. Gopala Trikatu Three Spices (Traditional Spice Blend)
  5. Vyas Trikatu Churna (A.F.I)

त्रिकटु चूर्ण के सेवन में सावधानियाँ, साइड-इफेक्ट्स

  1. यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है Bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। त्रिकटु का सेवन गर्भावस्था में न करें।

Corn Soup(कॉर्न सूप) Health Benefits in Hindi

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मक्के का सूप स्वस्थ शारीर के लिए बहुत लाभकर होता है। अगर इसे बिना घी/तेल के पकाया जाये तो यह कोलेस्ट्रॉल को घटने में बहुत मदद करता है और वजन कम करने में भी बहुत ही असरकारी है। कॉर्न सूप को सुबह नसते में खाना ज्यादा लाभदायक होता है।

corn-soup

कॉर्न सूप बनाने की बिधि

  1. 4 कप ताज़ा मक्का
  2. 5 कप पानी
  3. 1 चम्मच कटा धनिया
  4. 1 इंच अदरक बारीक कटा हुआ
  5. 2 tbs घी
  6. 1 चाय का चम्मच जीरा
  7. 1/4 चाय का चम्मच काली मिर्च
  8. 1 चुटकी नमक

बनाने की बिधि

कॉर्न को २ कप पानी मिला कर मिक्सी में पीस ले और एक तरफ रख दें। अब अदरक और धनिया को 1/4 कप पानी मिला कर अच्छे से पीस लें।

अब एक सूप पैन में घी गरम करें और जीरा का तदाका लगायें।अब इसमे पिसा हुआ मक्का, अदरक और धनिया का पेस्ट और काली मिर्च मिलाएं और २ कप पानी मिलाएं। अब इसे धीमी आंच पर १५ मिनट तक पकायें। इसे बीच बीच में हिलाते रहें।

लीजिये आप का कॉर्न सूप तैयार है परोसने से पहले १ चुटकी नमक स्वादानुसार डालें।

अगर आप इसे और हेल्दी बनाना चाहते हैं तो घी बहुत थोडा डालें।

इस सूप को नसते में खाएं यह आप के cholesterol और weight कम करने में बहुत सहायता करेगा।

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