नेत्र सुदर्शन अर्क, एक आई ड्राप है। इसे आँखों में किसी भी अन्य ऑय ड्राप की तरह डाला जाता है। इसमें पलाश की जड़ का अर्क है। यह ड्रॉप्स आँखों की सभी तरह की सामान्य बिमारियों में फायदेमंद है।
यह दवाई एक आयुर्वेदिक अर्क है। अर्क बनाने के लिए पलाश की जड़ को साफ़ करके रात में पानी में भिगो देते हैं। भिगो देने से यह मुलायम हो जाती है। अगले दिन पानी और जड़ों को नाड़िका यंत्र में डाल कर, इसे वाष्पीकृत करके भाप को कंडेंस कर अर्क बना लिया जाता है। अर्क को बोतलों में इकठ्ठा कर लिया जाता है। पलाश की जड़ों से बनने वाला यह अर्क, नेत्र सुदर्शन अर्क कहलाता है।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Netra Sudarshan Ark is an herbal eye drop. It is beneficial in most of eye diseases. It is prepared from the roots of Palash tree. It improves vision and helps in glaucoma, cataract, itching etc. In one study, Butea monosperma extract was administered three times a day, up to day 30 days and the intraocular pressure was monitored on different days post-administration. Butea monosperma root caused reduction of elevated intraocular pressure. Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
दवाई का प्रकार: ऑयड्राप
मुख्य उपयोग: आँखों की कमजोरी दूर करना और नेत्र रोग
नेत्र सुदर्शन अर्क के घटक Ingredients of Netra Sudarshan Ark
पलाश Butea Monosperma
पानी Water
नेत्र सुदर्शन अर्क के लाभ/फ़ायदे Benefits of Netra Sudarshan Ark
इस दवा को आँखों में डालने से जलन कम होती है।
यह एंटीबैक्टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल है।
यह दवा नियमित डालने से आँखों के अन्दर प्रेशर कम होता है।
यह ग्लूकोमा में लाभप्रद है।
नेत्र सुदर्शन अर्क के चिकित्सीय उपयोग Uses of Netra Sudarshan Ark
आँखों के रोगों में Improving vision
मोतियाबिंद Cataract
मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी Diabetic Retinopathy
कंप्यूटर सिंड्रोम Computer vision syndrome
दिखाई कम देना, चश्मा हटाने के लिए
ग्लूकोमा Glaucoma
नेत्र सुदर्शन अर्क आई ड्रॉप्स का प्रयोग कैसे करें?
यह एक आई ड्राप है और उसी प्रकार से प्रयोग की जाती है।
आई ड्राप प्रयोग करने से पहले हाथों को साबुन से साफ़ करें।
इस आईड्राप को दिन में तीन बार आँखों में डालना है।
दस साल से छोटे बच्चों की आँख में एक बूँद ड्राप डालें।
दस साल से अधिक आयु के बच्चों और व्यस्क दो बूँद आँखों में डाल सकते हैं।
ड्राप डालने के बाद आँखों को बंद रखें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
इस दवा का कोई भी ज्ञात साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
इस दवा को प्रयोग करना बहुत सुरक्षित है।
दवा को तीन महीने या उससे अधिक समय तक प्रयोग करें।
अगर दवा आप को सूट करे तो प्रयोग करते रहें।
आँखें बहुत ही नाज़ुक होती हैं। यदि कभी भी लगे की यह आपको सूट नहीं कर रही तो दवा का प्रयोग रोक दें और कृपया डॉक्टर से संपर्क करें।
नौली व्यायाम को न्यौली और लौलि नाम से जाना जाता है। इसे करते समय नाभि के पास नली जैसा आकार उभरता है। यह व्यायाम पेट के लिए बहुत लाभप्रद है। इस व्यायाम के सही अभ्यास से पेल्विक और पेट के अंगों, स्नायु, मांसपेशियों, रक्तवाहिनी नसों को अतिरिक्त शक्ति मिलती है। यह व्यायाम केवल उन लोगों को करना चाहिए जो उड्डीयानबंध मुद्रा सफलतापूर्वक कर सकें। उड्डीयानबंध मुद्रा में मुँह से बल पूर्वक हवा निकालकर नाभी को अंदर खीचतें है।
नौली करने की विधि | How to do Nauli?
यह व्यायाम करने के लिए, पैरों को एक से डेढ़ फुट फैलाकर खड़े हो जाएँ।
शरीर के कमर से ऊपर हिस्से को आगे झुकाकर रखें।
हथेलियाँ जाँघों पर रखें।
पूरा श्वास बाहर निकालकर खाली पेट की माँसपेशियों को ढीला रखते हुए अंदर की ओर खींचे।
इसके बाद स्नायुओं को ढीला रखें।
जंघाओं पर इस प्रकार दबाव डालें की पेल्विक प्रदेश और पेट की सभी मांसपेशियाँ चलने लगें।
अब इन सभी मांसपेशियों को बाहर की और निकालें।
नियमित अभ्यास के बाद ही संचालन अपनी इच्छानुसार हो पायेगा।
इसे पेट के मध्य भाग में स्थित करें और श्वास रोक कर रखें।
इसके बाद श्वास ग्रहण करें। फिर आराम करें। यह मध्यमा नौली है जिसमें नौली मध्य है। इसे तेजी से दाहिने से बाएँ और बाएँ से दाहिनी ओर ले जाएँ।
जब मध्य नौली का सफल अभ्यास हो जाए तो वाम नौली और दक्षिण नौली का अभ्यास करें।
जब उड्डीयान बंध पूरी तरह लग जाए तो माँसपेशियों को पेट के बीच में छोड़े। पेट की ये माँसपेशियाँ एक लम्बी नली की तरह दिखाई पड़ेगी। इन्हें बाएँ ले जाएँ। इसे वाम नौली कहते हैं। इस स्थिति में नौली को मध्य में स्थित कर दबाव दाहिनी ओर कम किया जाता है लेकिन बायीं ओर दबाव यथावत ही रहता है। शरीर के ऊपरी भाग को थोड़ा बायीं ओर मोड़ा जाता है और उदरप्रदेश की मांसपेशियों को बायीं ओर चलाया जाता है।
इसके पश्चात नौली को दाहिनी ओर ले जाएँ। यह दक्षिण नौली है। जब वाम नौली का अभ्यास आसान हो जाता है तो दक्षिण नौली का अभ्यास किया जाता है। दाहिनी तरफ का तनाव यथावत रख कर बायीं तरफ तनाव कम किया जाता है। शरीर को थोड़ा दाहिनी तरफ मोड़ कर, दाहिनी तरफ की मांसपेशी को उठाने का कोशिश करें। अभ्यास से मध्यमा नौली को दक्षिण नौली की तरह चलाया जाता है।
जब तीनों नौलियाँ अच्छी प्रकार चलने लगे तो श्वास के दौरान इनका संचालन करें।
संचालब बाएं से शुरू कर दाहिनी ओर ले जाएँ। इसके बाद दाहिने से प्रारम्भ कर बायीं ओर ले जाएँ।
शुरू में यह व्यायाम केवल तीन बार ही करना चाहिए।
उपयोग Benefits of doing Nauli
नौली को योगीगण काफी महत्व है। वस्ति और धौती के सफल अभ्यास के लिए नौली का अभ्यास बहुत आवश्यक है।
यह वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में अद्वितीय है।
इसके अभ्यास से उदरप्रदेश की स्नायु, मांसपेशियों, और रक्तवाहिनी नसों का भरपूर व्यायाम हो जाता है।
नौली करने से उदरप्रदेश के हिस्से के रोग दूर होते हैं।
यह लीवर और प्लीहा को ताकत देने वाला व्यायाम है।
नौली के अभ्यास से गर्भाशय, और मासिक सम्बन्धी रोगों तथा स्त्री रोगों की चिकित्सा होती है।
यह आंत्रवृद्धि, आंत्रपुच्छ वृद्धि, उदर घाव, अजीर्णरोग, कब्ज़, और पेट में दर्द आदि रोग में बहुत लाभप्रद है।
सावधानियां Warnings
नौली जानकार व्यक्ति के निर्देशन में ही सीखें।
इसे कम उम्र के बच्चे और वृद्ध न करें।
युवतियां इसे कर सकती हैं।
मासिक से दो-तीन दिन पूर्व और दो-तीन बाद इसे न करें।
गर्भावस्था और प्रसव के तीन महीने बाद तक इसे कदापि न करें।
पेट के घाव, उच्च रक्तचाप, हृदय के रोग में इसे न करें।
आर्थराइटिस आजकल आम है और करीब 100 से अधिक विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस और संबंधित बीमारियाँ हैं। किसी भी उम्र, लिंग के लोग आर्थराइटिस के शिकार हो सकते हैं। इससे प्रभावित लोगों में महिलाओं और अधिक उम्र के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है।
आर्थराइटिस के कॉमन लक्षणों में सूजन, दर्द, कठोरता और गति की कमी शामिल होती है। ये लक्षण हल्के, मध्यम या गंभीर हो सकते हैं। यह स्थिति एक्यूट/नई या पुरानी/क्रोनिक हो सकती है। गंभीर आर्थराइटिस के कारण दर्द, सूजन, दैनिक गतिविधियों को करने में असमर्थता और सीढ़ियों पर चलना या चढ़ना मुश्किल होता है। आर्थराइटिस होने पर जोड़ों में स्थायी परिवर्तन पैदा हो सकते हैं जैसे कि उंगली के जोड़ों में बदलाव, लेकिन यह नुकसान केवल एक्स-रे पर देखे जा सकते है। कुछ प्रकार के आर्थराइटिस में हृदय, आँखें, फेफड़े, गुर्दे और त्वचा भी प्रभावित हो जाते है।
आर्थराइटिस के विभिन्न प्रकार TYPES OF ARTHRITIS
आर्थराइटिस में जोड़ों की सूजन, दर्द और स्टिफनेस होती है। जोड़ों में अक्सर लाली और गर्माहट देखी जा सकती है। इसमें जोड़ और जोड़ के आसपास के ऊतक प्रभावित हो जाते हैं। आर्थराइटिस के प्रकार, जैसे की ऑस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटीयड गठिया, फाइब्रोमायल्गिया, गाउट, आदि के आधार पर विशिष्ट लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।
आर्थराइटिस के लक्षणों में शामिल है
दर्द,पीड़ा
कठोरता
सूजन
लाली
चलने-फिरने में दिक्कत
संधिवात Degenerative Arthritis (Sandhivata)
ऑस्टियोआर्थराइटिस Osteoarthritis आर्थराइटिस का सबसे आम प्रकार है। इसमें कार्टिलेज, जो की हड्डियों के जोड़ों की बीच कुशन की तरह काम करता है, घिस सा जाता है जिससे हड्डियाँ आपस में टकराने लगती है और परिणामस्वरूप दर्द, सूजन और स्टिफनेस हो जाती है।
समय के साथ, जोड़ों की ताकत कम हो सकती है और दर्द गंभीर हो सकता है। इसके रिस्क फैक्टर्स में शामिल हैं, मोटापा, पारिवारिक इतिहास, आयु और पिछली चोट (उदाहरण के लिए एक पूर्वकाल क्रूसीएट लिगमेंट) शामिल हैं।
ओस्टियोर्थराइटिस सक्रिय रहने, स्वस्थ वजन बनाए रखने और चोट आदि से बचाव से बार-बार होने वाले दर्द, सूजन से बचा जा सकता है।
आमवात Inflammatory Arthritis (Amavata)
एक स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली healthy immune system सुरक्षात्मक proactive है और यह संक्रमण से छुटकारा पाने और रोग को रोकने के लिए आंतरिक सूजन उत्पन्न करता है। लेकिन प्रतिरक्षा प्रणाली गड़बड़ हो सकती है और गलती से जोड़ों पर हमला कर अनियंत्रित सूजन कर सकती है।
इम्यून सिस्टम का यह अटैक शरीर के आंतरिक अंग, आंखों और अन्य भागों को नुकसान पहुंचा सकता है। रुमेटीयस आर्थराइटिस और सोरियाटिक आर्थराइटिस Rheumatoid arthritis and psoriatic arthritis सूजन वाले आर्थराइटिस के उदाहरण हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों genetics and environmental factors से इन्फ्लेमेटरी आर्थराइटिस हो सकता है।
धूम्रपान संधिशोथ आर्थराइटिस को बढ़ा सकता है। ऑटोइम्यून और सूजन वाले आर्थराइटिस में autoimmune and inflammatory types of arthritis, शीघ्र निदान और उपचार महत्वपूर्ण है। रोग के गति को धीमा कर जोड़ों को होने वाली स्थायी क्षति को कम करने में मदद मिल सकती है।
संक्रामक आर्थराइटिस Infectious Arthritis
जीवाणु, वायरस या कवक जोड़ में जाकर सूजन दर्ज कर सकते हैं। जीवों के उदाहरण जो जोड़ों को संक्रमित कर सकते हैं, साल्मोनेला और शिगेला (भोजन विषाक्तता या संदूषण), क्लैमाइडिया और गोनोरिया (यौन संचरित रोग) और हेपेटाइटिस सी (रक्त से रक्त संक्रमण, अक्सर साझा सुई या संक्रमण के माध्यम से) आदि। कई मामलों में, एंटीबायोटिक दवाओं के साथ समय पर उपचार संक्रमण को साफ कर सकता है, लेकिन कभी-कभी आर्थराइटिस क्रोनिक हो जाता है।
यूरिक एसिड मानव कोशिकाओं और कई खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले प्युरिन के टूटने से बनता है। कुछ लोगों में यूरिक एसिड स्वाभाविक रूप से अधिक बनता है। कुछ लोगों में यूरिक एसिड सुई की तरह क्रिस्टल बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप जोड़ों के दर्द, या गाउट, सूजन आदि लक्षण प्रकट होते हैं। यदि यूरिक एसिड का स्तर कम नहीं होता, तो यह गंभीर हो सकता है, जिसके चलते चल रहे दर्द और विकलांगता हो सकती है।
आर्थराइटिस निदान | DIAGNOSING ARTHRITIS
आर्थराइटिस का निदान शारीरिक परीक्षा, रक्त परीक्षण और इमेजिंग स्कैनद्वारा होता है। आर्थराइटिस विशेषज्ञ, रुमेटोलॉजिस्ट, आर्थोपेडिक सर्जन आदि इस फील्ड के विशेषज्ञ होते है।
आर्थराइटिस का इलाज TREATMENT OF ARTHRITIS
आर्थराइटिस के उपचार का लक्ष्य दर्द कम करना, कार्य सुधारना और आगे जोड़ों को होने वाले नुकसान को रोकना है।
इसके होने के कारणों को अक्सर ठीक नहीं किया जा सकता है।
जीवन शैली में परिवर्तन LIFESTYLE CHANGES
जीवनशैली में बदलाव पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और अन्य प्रकार के जोड़ों की सूजन के लिए मुख्य उपचार है। व्यायाम से जोड़ों की स्टिफनेस से राहत मिल सकती है। यह दर्द और थकान को कम करने और मांसपेशियों और हड्डी की ताकत में सुधार करने में भी मदद कर सकता है।
व्यायाम में शामिल हो सकते हैं:
चलना / वाकिंग
लचीलेपन के लिए व्यायाम
मांसपेशी को टोन करने का प्रशिक्षण
अन्य शारीरिक उपचार में शामिल है:
हीट या आइस से सेंक
जल उपचार/वाटर थेरपी
मालिश
अन्य उपयोगी सुझाव:
पूरी नींद लें। रात में 8 से 10 घंटों तक की नींद लेने से सूजन, दर्द में लाभ होता है।
एक स्थान में बहुत लंबे समय तक रहने से बचें।
स्थिति या गतियाँ से जो जोड़ों पर अतिरिक्त तनाव डालते हैं से बचें।
तनाव-कम करने की ध्यान, योग, करें।
फलों और सब्जियों युक्त आहार खाएं, जिसमें महत्वपूर्ण विटामिन और खनिज होते हैं, विशेषकर विटामिन ई हो।
शराब और धूम्रपान न करें।
जोड़ों पर कैप्सैसिइन क्रीम capsaicin cream लगायें । क्रीम को 3 से 7 दिनों तक लगाने के बाद आपको सुधार हो सकता है।
वजन कम करें।
जीवन शैली में बदलाव के साथ दवाओं भी प्रयोग की जा सकती है जो की डॉक्टर के निर्देशानुसार ही ली जानी चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार दवाएं और खान-पान
आर्थराइटिस को आयुर्वेद में वात अथवा वायु का रोग माना गया है। वायु का प्रकोप कुछ मौसमों में जैसे की बारिश-सर्दी में बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त बहुत अधिक गुस्सा, अधिक भूखा रहे, खून- वीर्य के अधिक स्राव, हड्डी के टूट जाने, रात भर जगे रहने से, शारीरिक वेगों को रोकने, अधिक स्ट्रेस में रहने, ठन्डे-नम स्थान पर रहने और पाचन की विकृति से संधि शोथ और दर्द होता है।
पाचन की विकृति से शरीर में आम दोष बढ़ जाता है और जब यह वायु से मिल जाता है तो संधियों में दर्द रहने लगता है और यह आमवात कहलाता है। आमवात में रुमेटोइड आर्थराइटिस और गठिया/गाउट आते हैं। गाउट को आयुर्वेद में वातरक्त कहते हैं।
असंतुलित भोजन, पालिश की चावल, बिना चोकर के आटे, मैदा, चीनी, तली-भुनी चीजें, चाट, मांस-मछली-अंडे के सेवन से रक्त में एसिडिटी बढ़ जाती है। रक्त के एसिडिक हो जाने पर गठिया की स्थिति हो जाती है।
खट्टे पदार्थ, मन्दाग्नि, फैटी खाने से जोड़ों का दर्द बढ़ता है। लेकिन कटु, तिक्त, रूक्ष, दीपन-पाचन पदार्थों का सेवन जोड़ों के दर्द को कम करता है।
रुमेटोइड आर्थराइटिस के होने का कारण आयुर्वेद में विरुद्ध आहार का सेवन, खाने के बाद व्यायाम माना जाता है। विरुद्ध आहार में शामिल है दूध के साथ खट्टा या नमक, दूध के साथ मछली आदि। मांस-मदिरा का सेवन भी बहुत हानिप्रद है। रात को देर से सोना, गलत उठने-बैठने का तरीका, अनुचित भोजन का सेवन, व खराब जीवनशैली सभी आर्थराइटिस करने के लिए जिम्मेदार हैं।
जब शरीर में वात का ज्यादा प्रभाव हो तो उपवास करें।
प्रतिदिन व्यायाम करें और भ्रमण पर जाएँ जिससे पसीना आये।
कूलर के सामने न रहें। नमी युक्त जगह पर न रहे। धूप रहित नम स्थान पर रहने से वात प्रकुपित होगा।
जब जोड़ों में दर्द और सूजन हो तो उस पर नमक वाला गर्म पानी डालें और सरसों के तेल में नमक मिलाकर मालिश करें।
भूख न लगे या कम लगे तो भोजन न करें।
दोपहर का खाना बारह बजे तक कर लें।
ताजे फलों का सेवन करें।
सप्ताह में एक दिन उपवास रखें। उपवास वाले दिन नींबू का रस मिला पानी, फल का रस, नारियल पानी पियें।
मछली, अंडा, मांस, घी, मक्खन, छेना, मिठाई, बिस्कुट, आदि का सेवन न करें।
चाय, काफी, बीड़ी, सिगरेट, चूना, तम्बाकू, शराब अथवा किसी भी अन्य मादक पदार्थ का सेवन न करें।
चावल और रोटी कम मात्रा में खाएं।
आर्थराइटिस में चावल को कम मात्रा में ही खाना चाहिए तथा अन्य आनाज जैसे की गेंहू, मक्का, जौ आदि ज्यादा मात्रा में खाना चाहिए।
दाल-सब्जी, फल, हरी सब्जी, तथा सात्विक भोजन करें।
हरी सब्जी में करेला, लौकी, सहजन, हरा पपीता, तोरी, परवल शामिल करें।
भिन्डी, कटहल, कद्दू का सेवन न करें।
गठिया में खट्टे पदार्थ का सेवन (अनार, आंवला छोड़) न करें।
भोजन में सोंठ, काली मिर्च, जीरा, लवंग और दालचीनी को शामिल करें।
चने, राजमा, माष/उड़द का सेवन बिलकुल न करें।
तलेभोजन का सेवन न करें।
मछली-अंडे न खाएं।
बासी, ठण्डा, गरिष्ठ भोजन न करें।
ज्यादा नमक–मीठा न खाएं।
निम्नलिखित औषधीय द्रव्यों को संधिशोथ और दर्द में प्रयोग किया जाता है:
अमृता Amrita (Tinospora cordifolia)
शुण्ठी Ardraka (Zingiber officinale)
भल्लाटक Bhallataka (Semicarpus anacardium)
एरण्ड Eranda (Ricinus communis)
गुग्गुलु Guggulu (Commiphora wighty)
हल्दी Haridra (Curcuma longa)
कटुकी Katuka (Picrorrhiza kurroa)
निर्गुण्डी Nirgundi (Vitex nigundo)
रसना Rasna (Pluchea lanceolata)
रसोन Rasona (Allium sativum)
मुलेठी Yastimadhu (Glycyrrhiza g)
आयुर्वेद में महायोगराज गुग्गुल को 250 mg की मात्रा में गर्म दूध या पानी के साथ खाली पेट रुमेटोइड आर्थराइटिस/रूमेटिज्म, में दिया जाता है। महारस्नादी काढ़ा, पुनर्नवा गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल, अमृतादि गुग्गुल अन्य महत्वपूर्ण औषधियां है जो की संधिशोथ और दर्द में लाभप्रद है।
इसके अतिरिक्त रस औषधियां जो की डॉक्टर के निर्देशन में ली जाती हैं में शामिल है, बृहत् वातचिंतामणि रस और आमवातारी रस।
गठिया या गाउट में कैशोर गुग्गुल को दो गोली की मात्रा में दिन में तीन बार, महामंजिष्ठ काढ़ा के साथ दिया जाता है। रस्नादी काढ़ा भी दिया जा सकता है। गठिया होने का कारण जोड़ों में यूरिक एसिड का जमा होना है।
गठिया में गिलोय का सेवन काढ़े, एक्सट्रेक्ट की तरह किया जाना चाहिए। अमृतादि गुग्गुल को दो गोली की मात्रा में दिन में तीन बार लिया जा सकता है।
गठिया के एक्यूट लक्षणों में पञ्चतिक्त घृत, दो टीस्पून की मात्रा में खाली पेट गर्म दूध में मिला कर देते हैं। इसे पंद्रह दिनों तक ले सकते हैं उसके बाद इसे नहीं ली चाहिए। यदि कब्ज़ हो तो रात को सोने से पहले हरीतकी चूर्ण को गर्म पानी के साथ लेना चाहिए।
बाह्य रूप से मालिश के लिए गुडूच्यादी तेल प्रयोग किया जाता है।
ओस्टोआर्थराइटिस में, योगराज गुग्गुल को त्रिवृतादी काढ़े के साथ 2 गोली की मात्रा में दूध के साथ लेते हैं। बाह्य रूप से पञ्चगुण तेल लगाया जा सकता है। महायोगराज गुग्गुलु, लाक्षादि गुग्गुल तथा वात गजनकुश रस भी अन्य उपयोगी दवाएं हैं।
घरेलू उपचार
हरीतकी का गुड़ के साथ सेवन करें।
त्रिफला, गिलोय का सेवन करें।
सोंठ, लवंग, लहसुन का काढ़ा बनाकर सेवन करें।
लहसुन को शहद का सेवन खाने के साथ करें।
रात को 2-5 ग्राम सोंठ को रात में पानी में भिगो दें और सुबह खाली पेट सेवन करें।
मेथी दाने के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में सुबह-सुबह लें।
लहसुन को तेल में गर्म कर प्रभावित स्थान पर लगाएं।
हरसिंगार / पारिजात, के 4-5 पत्ते पानी के साथ पीस लें और दिन में दो बार सुबह-शाम सेवन करें।
एक टीस्पून दालचीनी पाउडर और दो चम्मच शहद, को एक गिलास पानी में मिलाकर दिन में दो बार पियें।
दिन में चार-छः लीटर पानी पियें।
अश्वगंधा के चूर्ण का सेवन करें।
एलोपैथिक दवाइयां Allopathic MEDICINES
ओवर-द-काउंटर दवाइयां:
एसिटामिनोफेन (टाइलेनॉल) Acetaminophen अक्सर पहली दवा की होती है जो की जोड़ों के दर्द में दी जाती है। इसको प्रति दिन 3,000 मिलीग्राम, हर 8 घंटे पर, तक की मात्रा में दिया जाता है। अअधिक मात्रा में इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह लीवर को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा, एसिटामिनोफेन लेते समय शराब का सेवन नही करना चाहिए।
एस्पिरिन, इबुप्रोफेन, या नेप्रोक्सीन Aspirin, ibuprofen, or naproxen नॉनटेरोएडियल एंटी-इन्फ्लोमैट्री ड्रग्स (एनएसएआईडी) nonsteroidal anti-inflammatory drugs (NSAIDs) हैं जो गठिया दर्द को दूर कर सकती हैं। हालांकि, लंबे समय तक लगातार प्रयोग करने पर ये बहुत से दुष्प्रभाव डालती हैं। संभावित दुष्प्रभावों में शामिल है, दिल का दौरा, स्ट्रोक, पेट के अल्सर, पाचन तंत्र से रक्तस्राव, और किडनी को नुकसान।
प्रिस्क्रिप्शन दवाइयां:
कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स (“स्टेरॉयड”) Corticosteroids (“steroids”) सूजन को कम करने में सहायता करते हैं। वे दर्दनाक जोड़ों में इंजेक्शन या ओरली दिए जा सकते हैं।
Disease-modifying anti-rheumatic drugs (DMARDs) को ऑटोइम्यून गठिया का इलाज करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें मेथोटेरेक्सेट, सल्फासाल्जेन, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और लेफ्लोनोमाइड methotrexate, sulfasalazine, hydroxychloroquine, and leflunomide शामिल हैं।
गाउट के लिए, एलोप्यूरिनोल, फ़ेबक्सोस्टेट या प्रोबेनेसिड allopurinol, febuxostat or probenecid का उपयोग यूरिक एसिड को कम करने के लिए किया जा सकता है।
सर्जरी और अन्य उपचार
कुछ मामलों में, अगर अन्य उपचारों ने काम नहीं किया है तो सर्जरी की जा सकती है जैसे जॉइंट रिप्लेसमेंट / टोटल नी रिप्लेसमें।
क्षुधाकारी वटी या बटी, एक आयुर्वेदिक दवाई है जो की नींबू, त्रिकुटा, अकरकरा, शुद्ध टंकण आदि से बनी है। इस दवा को मुख में रख कर चूसने से क्षुधा बढ़ती है। यह क्षुधा कारी है मतलब भूख को बढ़ाती है।
यह बटी स्वादिष्ट और रोचक है तथा मुंह में रखते ही लारस्राव के साथ घुल जाती है और पाचन में सहयोग करती है। क्षुधाकारी वटी अरोचक, अजीर्ण, मन्दाग्नि, पेट में दर्द, खट्टी डकार, पेट फूलना, गैस बनना आदि में लाभदायक है।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Kshudhakari Vati, is Ayurvedic medicine for improving appetite, digestion and assimilation. It is very palatable and helps in digestive and respiratory disorders.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक दवाई
मुख्य उपयोग: पाचन की कमजोरी
मुख्य गुण: पित्त वर्धक, कफ और वात-शामक
क्षुधाकारी वटी के घटक Ingredients of Kshudhakari Vati
नींबू का रस, सेंधा नमक, घी, चीनी। सोंठ, मरीच, पिप्पली, सफ़ेद जीरा, काला जीरा, शुद्ध टंकण, अकरकरा, नींबू का सत्त्व।
त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है। यह पाचन और कफ रोगों, दोनों में ही लाभकारी है। इसे जुखाम colds, छीकें आना rhinitis, कफ cough, सांस लेने में दिक्कत breathlessness, अस्थमा asthma, पाचन विकृति dyspepsia, obesity और मोटापे में लिया जा सकता है।
अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी कहलाता है। सोंठ को भोजन में मसले की तरह और दवा, दोनों की ही तरह प्रयोग किया जाता है। सोंठ का प्रयोग आयुर्वेद में प्राचीन समय से पाचन और सांस के रोगों में किया जाता रहा है। इसमें एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं।
काली मिर्च न केवल मसाला अपितु दवा भी है। इसे बहुत से पुराने समय से आयुर्वेद में दवाओं के बनाने और अकेले ही दवा की तरह प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे मरीच कहा जाता है। इसे गैस, वात व्याधियों, अपच, भूख न लगना, पाचन की कमी, धीमे मेटाबोलिज्म, कफ, अस्थमा, सांस लेने की तकलीफ आदि में प्रयोग किया जाता है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।
पिप्पली उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।
त्रिकटु या त्रिकुटा के तीनो ही घटक आम पाचक हैं अर्थात यह आम दोष का पाचन कर शरीर में इसकी विषैली मात्रा को कम करते हैं। आमदोष, पाचन की कमजोरी के कारण शरीर में बिना पचे खाने की सडन से बनने वाले विषैले तत्व है। आम दोष अनेकों रोगों का कारण है।
सेंधा नमक, सैन्धव नमक, लाहौरी नमक या हैलाईट (Halite) सोडियम क्लोराइड (NaCl), यानि साधारण नमक, का क्रिस्टल पत्थर-जैसे रूप में मिलने वाला खनिज पदार्थ है। इसे त्रिकुटा के साथ लेने पर गैस नहीं रहती, पाचन ठीक होता है तथा हृदय को बल मिलता है।
टंकण, टंकन, टैंक, टंगन, द्रावक, टंकणक्षार, रंगक्षार, रंग, रंगद, सौभाग्य, धातुद्रावक, क्षारराज आदि सभी सुहागे या बोरेक्स के नाम हैं। आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, एलोपैथी, होमियोपैथी चिकित्सा पद्यति में इसे दवाई की तरह भी प्रयोग किया जाता है। सुहागे में मूत्रल, संकोचक, एंटासिड, और एंटीसेप्टिक गुण हैं। इसे स्वभाव से गर्म माना गया है। यह पित्तवर्धक और कफनाशक है। सुहागा अग्निवर्धक, विष, ज्वर, गुल्म, आम, शूल, और कासनाशक है। यह भेदक, कामोद्दीपक, पित्तजनक है। यह वमन, वातरक्त, और खांसी को दूर करने वाला है। आयुर्वेदिक दवाओं, जैसे की रजःप्रवर्तिनी वटी, लक्ष्मीविलास रस, में सुहागे भी एक घटक है।
सुहागे को निर्मल करने के लिए, एक भाग सुहागे का पाउडर कर चौबीस भाग साफ़ पानी में डालकर उसे घुला कर, तेज़ आग पर पकाकर और जब लगभग सारा पानी उड़ जाए तो तल में बचे गीले पदार्थ को सुखा कर, जो पाउडर बनता है वह शुद्ध सुहागा होता है। इस प्रकार से साफ़ सुहागा बोरिक एसिड के स्थान पर उपयोग होता है।
आकारकरभ, अकरकरा, करकरा आदि एनासाइक्लस पायरेथम के संस्कृत नाम हैं। इसका अरेबिक नाम आकिरकिर्हा, ऊदुलकई और फ़ारसी में तर्खून कोही है। इंग्लिश में इसे पाइरेथ्रम रूट, पेलेटरी रूट, स्पेनिश पेलिटरी Pellitory Root आदि नामों से जानते हैं। यह मुख्य रूप से मुख रोगों, दांत में दर्द, गले की दिक्कतों, मुंह के लकवे, मिर्गी, कमजोर नाड़ी, लार न बहने, पित्त की कमजोरी, कफ की अधिकता आदि में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे पित्त वर्धक और कफ नाशक माना गया है। यूनानी में इसे तीसरे दर्जे का रुक्ष और गर्म माना गया है। अकरकरा की जड़ का मुख्य सक्रिय तत्व पेलिटोरिन है अथवा पारेथ्रिन है। यह अकरकरा को तीक्ष्ण और लार बहाने के गुण देता है। यह स्वाद व स्वभाव में कुछ-कुछ काली मिर्च के पिपरिन जैसा है।
क्षुधाकारी वटी के लाभ/फ़ायदे | Benefits of Kshudhakari Vati
यह वात-कफ को कम करती है।
यह पित्त वर्धक है।
इसके सेवन से पित्त स्राव बढ़ता है और पाचन सही करता है।
यह भूख न लगना, जी मिचलाना, पाचन की कमजोरी, अजीर्ण में लाभ देता है।
यह बहुत स्वादिष्ट और रोचक है।
क्षुधाकारी वटी के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Kshudhakari Vati
बदहजमी
पेट में दर्द
खट्टी डकार
पेट फूलना
गैस बनना
पाचन की कमजोरी
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Kshudhakari Vati
2-4 गोली, दिन में दो-तीन लें।
इसे मुंह में रख कर चूसें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
गर्भावस्था में कोई दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न लें।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
यह प्रकृति में उष्ण है।
ज्यादा मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी कर सकता है।
निर्धारित मात्रा में लेने किसी भी तरह का गंभीर साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।
थायरॉयड ग्रंथि, थारेयॉइड कार्टिलेज के नीचे, गर्दन में स्थित एक अंतःस्रावी ग्रंथि है। इस्थमस या इस्मस isthmus (थायराइड के दो हिस्सों के बीच का पुल) cricoid cartilage के नीचे स्थित होता है। थायरॉयड ग्रंथि यह कण्ट्रोल करती है की शरीर कितनी कुशलता से ऊर्जा पैदा करता है और उसका उपयोग करता है। यह शरीर में लगभग हर ऊतक और अंग (मस्तिष्क, अंडाशय, वृषण, ओवरी, प्लीहा छोड़कर) को प्रभावित करती है। यह थायरॉयड हार्मोन, ट्रायियोोडोथायरोनिनिन (टी 3) और थायरोक्सिन (टी 4) triiodothyronine (T3) and thyroxine (T4) का निर्माण करती है।
टी 3 और टी -4 दोनों के संश्लेषण के लिए आयोडिन और टाइरोसिन ज़रूरी हैं। थायरॉयड ग्रंथि कैल्सीटोनिन भी पैदा करती है, जो कैल्शियम होमोस्टेसिस में भूमिका निभाता है।
हाइपोथायरायडिज्म क्या है? What is Hypothyroidism?
हाइपोथायरायडिज्म underactive thyroid एक ऐसी स्थिति है जिसमें थायरॉयड ग्रंथि से थायराइड हार्मोन थायरोक्सिन (टी4) और ट्राइयोडाओथोरोनिन (टी3) का उत्पादन सही मात्रा में नहीं होता। Hypothyroidism occurs when the thyroid is hypoactive and does not produce enough thyroid hormones। हाइपोथायरायडिज्म होने पर मेटाबोलिज्मकम हो जाता है और कम भोजन करने पर भी पीड़ित मोटापे का शिकार हो जाता है।
हाइपोथायरायडिज्म Hypothyroidism करीब 3.8-4.6% लोगों को प्रभावित करता है। विश्व स्तर पर, आयोडीन की कमी हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम कारण है। उन क्षेत्रों में जहां आहार में आयोडीन की मात्रा पर्याप्त है, हाइपोथायरायडिज्म हाशिमोटो थायरायराइटिस Hashimoto’s thyroiditis के कारण होता है। हाइपोथायरायडिज्म थायराइड ग्रंथि में सूजन, कुछ दवाओं, जन्मजात असामान्यताओं, या तनाव के कारण भी हो सकता है।
हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण क्या हैं?
हाइपोथायरायडिज्म, थायराइड ग्रंथि के अन्दर समस्याओं के कारण हो सकता है जिसके कारण थायराइड हार्मोन के अपर्याप्त मात्रा में बनता है। ज्यादातर मामलों में, रोग के लक्षण कई सालों से अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं।
हाइपोथायरायडिज्म के लक्षणों में शामिल है, थकान, अवसाद, कम रक्तचाप, गर्मी और ठंड के प्रति संवेदनशीलता, पीरेस्टेसियास, ब्रेडीकार्डिया, एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाना, एक्टिव हाइपोग्लाइसीमिया, कब्ज, सिरदर्द, मांसपेशियों की कमजोरी, जोड़ों की स्टिफनेस, चेहरे की सूजन, मासिक का ज्यादा आना, ऐंठन, बांझपन और बालों का झड़ना, मानसिक और शारीरिक गतिविधि का धीमा होना, चयापचय में कमी आना, गर्म-ठन्डे के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता, त्वचा में सूखापन, भूख न लगना, छाती में दर्द, रक्ताल्पता और माहवारी में गड़बड़ी।
हाइपोथायरायडिज्म लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
थकान Tiredness/lethargy
ठण्ड के प्रति संवेदनशीलता Intolerance to cold
शरीर का कम तापमान
हाथ-पैर का ठण्डा होना Cold hands and feet
कब्ज Constipation
रूखी त्वचा Dry skin and hair, brittle nails
वजन का बढ़ना Weight gain
सूजा हुआ चेहरा Puffiness of the body
स्वर बैठना Husky, hoarse voice
मांसपेशी में कमज़ोरी
रक्त कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना
मांसपेशियों में दर्द, स्टिफनेस Muscle stiffness
जोड़ों में दर्द, स्टिफनेस या सूजन
सामान्य या अनियमित मासिक धर्म से
पाचन की कमजोरी, धीमा पाचन
भूख न लगना
बालो का झड़ना
हार्ट रेट कम होना
डिप्रेशन Depression
याददाश्त कम होना Memory loss
भौहों के बाल झड़ना
बाँझपन Impotence
क्योंकि थायराइड हार्मोन शारीरिक और मानसिक विकास को विनियमित करते है इसलिए जिन बच्चों में थायराइड हार्मोन की कमी या हाइपोथायरायडिक बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो जाता है।
हाइपोथायरायडिज्म होने के कारण क्या हैं?
शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी के कई कारण हैं। शहरी क्षेत्रों में, आयोडीन की कमी इस रोग का एक प्रमुख कारक भी माना जा सकता है, क्योंकि इन क्षेत्रों में लोग कम नमक और आयोडीन का सेवन करते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार, 150 माइक्रो ग्राम (150 mcg) आयोडीन का सेवन थाइरोइड के फंक्शन को नार्मल रखने के लिए ज़रूरी है। आहार में अपर्याप्त आयोडीन के कारण टी3 तथा टी4 की सिंथेसिस नहीं हो पाती, जिसके परिणामस्वरूप टीएसएच circulating TSH में असामान्य वृद्धि हो जाती है जो की थायराइड ग्रंथि के आकार में वृद्धि कर देती है जिसे गोइटर Goiter कहते हैं।
हाइपोथायरायडिज्म के अन्य कारणों में शामिल हैं, तनाव, वंशानुगत दोष, टीएसएच या थेरेट्रोपिन-रिलीज हार्मोन (टीआरएच) में कमी, मिलावटी और बैक्टीजनिक खाद्य पदार्थों की अधिक खपत (जैसे, गोभी, फूलगोभी, कसावा, मूंगफली, मीठाआलू, आदि),सेलेनियम की कमी, और भारी धातुओं और कीटनाशकों युक्त भोजन का सेवन, स्वयं-इम्यून एंटीबॉडी का विकास आदि।
तनाव को थायरॉयड के सही से काम न करने देने का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। तनाव में अधिवृक्क ग्रंथियों adrenal glands से कोर्टिसोल का उत्पादन होता है। शरीर के हर कोशिका में थाइरोइड हार्मोन और कोर्टिसोल दोनों के लिए रिसेप्टर्स मौजूद हैं। कोर्टिसोल का सामान्य स्तर शरीर में हर ऊतक के लिए आवश्यक है। बहुत ज्यादा कोर्टिसोल के कारण ऊतक, थायरॉयड हार्मोन के सिग्नल का जवाब नहीं देते और थायरॉयड रेज़िज़टेन्स thyroid resistance हो जाते हैं। यद्यपि थायरॉयड हार्मोन का स्तर सामान्य हो सकता है, लेकिन ऊतक को थायराइड सिग्नल के लिए कुशलतापूर्वक प्रतिक्रिया देने में विफल हो जाते है। TSH का स्तर बढ़ जाता है जबकि टी 4 और टी 3 नार्मल रहते हैं।
हाइपोथायरायडिज्म के मुख्य कारणों को निम्न में वर्गीकृत किया जा सकता है:
प्राथमिक (थायरॉयड विफलता) कारण:
जब थायरॉयड ग्रंथि टी 3 और टी 4 को बनाने में असमर्थ हो जाती है तो हाइपोथायरायडिज्म, Primary Hypothyroidism, कहा जाता है। प्राइमरी हाइपोथायरायडिज्म में थायरॉयड ग्रंथि से हार्मोन ही कम बनता है और यह हाइपोथायरायडिज्म के 95% मामलों के लिए जिम्मेदार है। प्राथमिक हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम कारण है:
आयोडीन की कमी
ऑटोइम्यून थायरॉयड रोग)
ड्रग्स
जन्मजात
सेकेंडरी कारण (पिट्यूटरी टीएसएच में कमी के कारण)
अन्य कारण
हाइपोथायरायडिज्म में आहार और जीवन शैली
यदि वजन बढ़ रहा हो तो भी, दिन में तीन बार बहुत संतुलित लेकिन हल्का भोजन खाते रहें।
चावल, उबली सब्जियां, फल और कच्ची सब्जियां खाएं।
अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में दूध लें।
चावल, जौ, मूग दाल और ककड़ी का सेवन बढ़ाएं।
नारियल तेल थायराइड रोगियों में शरीर चयापचय में सुधार करने में मदद करता है।
गोभी, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, ब्रोकोली, वॉटरक्रेस, शलगम horseradish और सरसों का साग, न खाएं क्योंकि वे थायराइड हार्मोन के उत्पादन को दबा देते हैं।
नमकीन और खट्टे पदार्थों का सेवन न करें।
भारी और खट्टे खाद्य पदार्थों से बचें।
सरसों का सेवन थायरॉइड के फंक्शन को कम करता है, इसलिए सरसों का सेवन न करें।
व्यायाम: हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में एक और महत्वपूर्ण कारक व्यायाम है। व्यायाम थायरॉयड हार्मोन को ऊतक संवेदनशीलता बढ़ाता है, और थायरॉयड ग्रंथि स्राव को उत्तेजित करता है। प्रति दिन कम से कम 15-20 मिनट व्यायाम करें जैसे की चलना, तैराकी, दौड़ना और साइकल चलाना आदि।
आसन: सर्वांग आसन Sarvangasana थायराइड ग्रंथि के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी आसन है। इसको करने से थायरॉयड ग्रंथि पर दबाव पड़ता है और रक्त आपूर्ति बढ़ती है और संचलन में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मत्स्यसान, हलासन, सूर्य नमस्कार, पवनमुक्तासन आदि करने से भी लाभ होता है।
प्राणायाम: सबसे प्रभावी प्राणायाम है उज्जाई Ujjayi Pranayaam और जालंधर बंध Jalandhar bhanda है।
हाइपोथायरायडिज्म के लिए घरेलु उपचार क्या हैं?
त्रिकटु का सेवन करें। यहह सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है। दिन में दो बार आधे चम्मच को पानी के साथ सेवन करें।
गिलोय + आंवला + गोखरू, को मिलाकर चूर्ण बनाएं और तीन ग्राम की मात्रा में लें।
त्रिफला और कांचनार छाल का काढ़ा बनाकर लें।
कांचनार छाल का काढ़ा 20 ml की मात्रा में शहद के साथ पीना चाहिए।
पिप्पली का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ तीन सप्ताह तक लें।
हाइपोथायरायडिज्म पर आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य
आयुर्वेद में थायरॉइड ग्रंथि का कोई सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन गलगंड enlarged thyroid gland (galaganda) simple goiter नाम की एक बीमारी, जिसे गर्दन की सूजन की विशेषता है, अच्छी तरह से जाना जाता है। Goiter is produced by the inadequate secretion of thyroid hormones, resulting in a positive feedback of a pituitary hormone, thyrotropin (thyrotropin-stimulating hormone [TSH]), on the thyroid gland that ultimately enlarges।
आयुर्वेद के अनुसार, वात-कफ दोष और फैट के बढ़ जाने के कारण थायरॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है। आयुर्वेदिक उपचार द्वारा में स्रोतों में रुकावट को साफ़ करने पर बल दिया जाता है जिससे थारेक्सिन का बहना ठीक से हो। उपचार द्वारा शरीर की ऊर्जा को संतुलित भी करने की कोशिश की जाती है। इसके अतिरिक्त पाचन को सही करने पर बल दिया जाता है जिससे उचित मेटाबोलिज्म सही हो।
हाइपोथायरायडिज्म के लिए आयुर्वेदिक दवाएं
आयुर्वेद में गलगंड, ग्रंथि विकार, गले में सूजन, लिम्फ नोड की सूजन आदि में कांचनार, अश्वगंधा, सहजन, वरुण, गुग्गुल, ब्राह्मी, अपामार्ग, निर्गुन्डी आदि का प्रयोग किया जाता है।
कांचनार की छाल, रूखी, हल्की, शीतल, और कफ-पित्तहर होती है। यह ग्रन्थि विकार में आंतरिक रूप से प्रमुखता से प्रयोग की जाने वाली औषधि है। यह थायरोक्सिन के उत्पादन को संतुलित करने वाली दवाई है। कांचनार गोइटर, सूजी हुई लिम्फ नोड्स, ग्रीवा एडेंटाइटिस, स्क्रॉफुलियारिया, ग्रन्थि के बढ़ जाने में आदि में आयुर्वेद में प्रयुक्त प्रमुख दवाई है।
वैज्ञानिक शोध में चूहों को 2.5 मिलीग्राम / किग्रा, की मात्रा में कांचनार की छाल को तीन सप्ताह तक दिया गया। टेस्ट ने दिखाया कि यह सीरम टी 3 और टी 4 की कंसंट्रेशन को काफी सुधार देता है।
गुग्गुलु, ट्राईओयोडोथोरोनिन (टी 3) / थायरोक्सिन (टी 4) अनुपात को बढ़ाता है। यह थायराइड फ़ंक्शन को उत्तेजित करता है। त्रिफला गुग्गुलु जिसे गंडमाला में प्रयोग करते हैं, का मुख्य घटक गुग्गुलु है।
अश्वगंधा, इम्युनोमोडालेटर और एडाप्टोजनिक जड़ी बूटी है जो कोर्टिसोल को कम करती और थायराइड हार्मोन को संतुलित करती है। पशु अध्ययनों से पता चलता है कि अश्वगंधा थायरॉयड हार्मोन को संतुलित करता है। चूहों में 20 दिवसीय अध्ययन ने दिखाया कि अश्वगंधा टी 3 और टी 4 के स्तर में वृद्धि करता है।
शुद्ध गुग्गुल
कांचनार गग्गुलू
महायोगराज गुग्गुलु
योगराज गुग्गुल
पुनर्नवादी मंडुर
पूननवाडी क्वाथ
पुनार्नावारिष्ट
अश्वगंधारिष्ट
अश्वगंधा चूर्ण
अध्ययन के अनुसार लिव –52 का सेवन थायराइड हार्मोन स्राव को उत्तेजित करता है, विशेष रूप से टी3 को।
हाइपोथायरायडिज्म आजकल होने वाला एक आम विकार है। इसकी एलॉपथी में कई आधुनिक दवाएं और चिकित्सा उपलब्ध हैं लेकिन सभी का कोई न कोई साइड इफ़ेक्ट है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली, पारंपरिक जड़ी-बूटी उपचार, व्यायाम और प्राणायाम आदि द्वारा थायराइड ग्रंथि के सही काम करने को प्रेरित किया जा सकता है। यह उपचार काफी सुरक्षित हैं और इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
इसके अतिरिक्त, क्योंकि थायराइड से संबंधित समस्याएं शरीर के लगभग सभी प्रणालियों को प्रभावित करती हैं, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि कुछ प्रिवेंटिव उपाय करें, जिससे थायरॉयड ग्रंथि, थायराइड हार्मोन की आवश्यक मात्रा का निर्माण करे। यदि ग्रंथि के hypofunctioning का संदेह हो तो, ग्वाइट्रोजनिक goitrogenic भोजन जैसे कि रेपसीड, गोभी, पत्ता गोभी, काले और शलजम न खाएं।
भोजन के माध्यम से 150 माइक्रोमिलीग्राम / दिन का आयोडिन सेवन सुनिश्चित करें। कम क्लोराइड और फ्लोराइड युक्त फ़िल्टर्ड पानी पियें। स्ट्रेस, जेनेटिक्स, और अत्यधिक स्टेरॉयड थेरेपी, इसके होने के रिस्क को बढ़ा सकती है।
थायराइड ग्रंथि अंतःस्रावी तंत्र endocrine system का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। थायरॉयड गर्दन के सामने एक छोटी, तितली के आकार की ग्रंथि है। यह ग्रंथि गर्दन के सामने, कॉलरबोन्स के ठीक ऊपर की स्थित होती है। इस ग्रंथि का काम ऐसे हार्मोन बनाना है जो की कण्ट्रोल करे कि शरीर में हर कोशिका ऊर्जा का उपयोग कैसे करेगी। इस प्रक्रिया को चयापचय metabolism जाता है। हार्मोन शरीर के हर अंग को प्रभावित करते हैं, यहां तक कि हृदय की धड़कन भी।
हाइपरथायरॉडीजम, जिसे ओवेराक्टिव थायराइड overactive thyroid भी कहते हैं, एक मेडिकल कंडीशन है जिसमें थायरॉयड ग्रंथि बहुत थायराइड हार्मोन बनाने लगती है। हाइपरथायरॉडीजम कई कारणों से हो सकता है जैसे ग्रेव्स डिसीज, वायरल संक्रमण, कुछ दवाएं, या गर्भावस्था के बाद (सामान्य) के कारण थायरॉयड की सूजन (थायरायराइटिस), थायराइड हार्मोन (सामान्य) लेना, आयोडीन युक्त भोजन का बहुत अधिक सेवन आदि।
थायरॉयड ग्रंथि से अधिक थायराइड हार्मोन का स्राव थकावट, अधिक भूख, धड़कन, बार-बार मल त्याग, हाथ कांपना, अधिक पसीना, नींद की समस्याएं और वज़न के कम होने का कारण हो सकता है। यदि हाइपरथायरॉडीजम का उपचार नहीं किया जाए तो यह दिल, हड्डियों, मांसपेशियों, मासिक धर्म चक्र और फर्टिलिटी के साथ गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है। गर्भावस्था के दौरान, यदि हाइपरथायरायडिज्म ट्रीट नहीं किया जाए तो यह मां और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
थायराइड Thyroid
थायराइड एक 2 इंच लंबा, तितली के आकार की ग्रंथि है जो दो थायराइड हार्मोन बनाती है, ट्रायियोोडोथायरोनिनिन (टी 3) और थायरोक्सिन (टी 4) triiodothyronine (T3) and thyroxine (T4) ।
टी 3, टी 4 से बनता है और यह अधिक सक्रिय हार्मोन है, जोकि सीधे ऊतकों को प्रभावित करता है। थायराइड हार्मोन पूरे शरीर में खून में प्रसारित होते हैं और शरीर में लगभग हर ऊतक और कोशिका पर कार्य करते हैं। थायराइड हार्मोन चयापचय, मस्तिष्क के विकास, श्वास, हृदय और तंत्रिका तंत्र कार्यों, शरीर का तापमान, मांसपेशियों की ताकत, त्वचा सूखापन, मासिक धर्म चक्र, वजन और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रभावित करते हैं।
थायराइड हार्मोन का उत्पादन एक अन्य हार्मोन द्वारा नियंत्रित होता है जिसे थाइरॉयड-उत्तेजक हार्मोन (टीएसएच) hyroid-stimulating hormone (TSH) कहा जाता है, जिसे मस्तिष्क में पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा बनाया जाता है। जब रक्त में थायरॉयड हार्मोन का स्तर कम होता है, तो पीयूषिका अधिक टीएसएच जारी करता है। जब थायरॉयड हार्मोन का स्तर अधिक होता है, तो पिट्यूटरी टीएसएच उत्पादन को कम करके प्रतिक्रिया करता है।
हाइपरथायरॉडीजम क्या है?
थायरॉयड ग्रंथि का शरीर की जरूरतों से अधिक थायरॉयड हार्मोन बनाना हाइपरथायरायडिज्म है। Hyperthyroidism means elevation of thyroid function. Hyperthyroidism refers that hyper metabolic situation due to excessive level of thyroid hormone secretion and synthesis. The other common names of hyperthyroidism are Graves’s disease and thyrotoxicosis.
हाइपरथायरायडिज्म के रिस्क फैक्टर्स क्या हैं?
हाइपरथायरायडिज्म होने के खतरे को कुछ स्थितियां बढ़ा देती हैं जैसे की यह पुरुषों की तुलना में महिलाएं में अधिक होता है।
जेनेटिक्स
विटामिन बी 12 की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता
टाइप 1 मधुमेह
हार्मोनल डिसऑर्डर, प्राथमिक अधिवृक्क अपर्याप्तता
आयोडीन युक्त भोजन का ज्यादा मात्रा में सेवन
60 साल की आयु से अधिक उम्र के व्यक्ति आदि।
हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण क्या हैं?
हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण व्यक्ति से भिन्न हो सकते हैं और इसमें शामिल हो सकते हैं
आँखों का बाहर की ओर निकला होना
गले का फूला दिखा
घबराहट या चिड़चिड़ापन
थकान या मांसपेशियों की कमजोरी
गर्मी से परेशानी
नींद न आना
हाथ कांपना
तेज और अनियमित दिल की धड़कन
दस्त
वजन घटना
चिड़चिड़ापन
गण्डमाला
ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
आँखों के आस-पास सूजन
अल्पकालिक या अनियमित मासिक धर्म
घबराहट
हाइपरथायरॉडीजम का कारण क्या है?
हाइपरथायरायडिज्म में कई कारण हैं जैसे ग्रेव्स रोग, थायराइड नोड्यूल, थायरायराइटिस, ओवेरी और टेस्ट्स का ट्यूमर, थाइरोइड हॉर्मोन का सेवन, बहुत ज्यादा आयोडीन लेने या ज्यादा थायराइड हार्मोन दवा लेने से थायरॉयड हार्मोन का स्तर भी बढ़ सकता है।
ग्रेव्स रोग Graves’ disease
ग्रेव्स रोग एक Autoimmune Disorder है ज्सिमें प्रतिरक्षा प्रणाली थायरॉयड पर हमला करती है और इसे बहुत अधिक थायराइड हार्मोन बनने लगता है।
Overactive thyroid nodules
जब एक या एक से अधिक थायराइड नोडल्स एक्टिव हो जाते हैं तो सामान्य से अधिक थायराइड हार्मोन बनने लगता है।
थायरायराइटिस Thyroiditis
थायराइड ग्लैंड की सूजन को थायरायराइटिस कहते हैं।
बहुत ज्यादा आयोडीन
थायराइड हार्मोन बनाने के लिए थायरॉयड आयोडीन का उपयोग करता है। आयोडीन की अधिक मात्रा अधिक थायरॉयड हार्मोन बना सकती है।
हाइपरथायरायडिज्म की जांच कैसे होती है?
हाईपरथायरायडिज्म के निदान की पुष्टि करने और इसके कारण खोजने के लिए डॉक्टर कई रक्त परीक्षणों के उपयोग करते है। इमेजिंग परीक्षण, जैसे कि थायराइड स्कैन, हाइपरथायरायडिज्म के कारण का निदान और पता लगाने में भी मदद कर सकता है। टेस्ट में सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर का स्तर बढ़ा हुआ हो सकता है।
Physical examination
Blood test: levels of thyroid hormones
Other tests: Serum cholesterol and triglycerides, Serum glucose, Radioactive iodine uptake
हाइपरथायरायडिज्म और आयुर्वेद
आयुर्वेद के अनुसार, कमजोर पाचन, शरीर में स्रोतों के रुकावट से थायराइड ग्रंथि के कार्य में असंतुलन हो जाता है। हाइपरथायरायडिज्म में वात और पित्त दोष का असंतुलन हो जाता है। वायु और पित्त दोष शरीर के विभिन्न चैनलों और प्रणालियों में जाते हैं और लक्षण प्रकट करते हैं। वात की अधिकता से शरीर में हल्कापन आता है, वज़न घट जाता है। पित्त की अधिकता से अत्यधिक पसीना, दस्त, कमजोरी, गर्मी के प्रति संवेदनशीलता होती है। भूख और पाचन बढ़ जाते हैं, हाथों का कांपना, नींद न आना, घबराहट और मन को ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई पैदा होती है। व्यक्ति को भस्मक रोग हो जाता है जिससे वह दिन भर खाता-पीता है।
हाइपरथायरॉडीजम में प्रयोग वनस्पतियाँ
बगलवेड Lycopus virginicus
बेल Aegle marmelos
लहसुन एलो वेरा Aloe vera
नीम Azadirachta indica
शंखपुष्पि Convolvulus pluricaulis
आंवला Emblica officinalis
करेला Momordica charantia
सहजन Moringa oleifera
तुलसी Ocimum sanctum
पान के पत्ते Piper betel
मेथी Trigonella foenum graecum
आयुर्वेदिक दवाएं
कांचनार गुग्गुलु
कैशोर गुग्गुलु
त्रिकटु चूर्ण
त्रिफला चूर्ण
शंखपुष्पि चूर्ण/एक्सट्रेक्ट 125 mg twice/day, 9 महीने के लिए
सूतशेखर रस 130 to 250 mg twice/day, 3-4 महीने के लिए
शतावरी काषाय 30 ml twice/day
आहार और जीवन शैली
भोजन में पर्याप्त मात्रा में दूध, शुद्ध घी और दूध उत्पाद शामिल करें।
वात-पित्त दोष को कम करने वाला आहार खाएं।
कफ दोष बढ़ाने वाले भोजन का सेवन करने से भी पित्त की अधिकता को कम करता है।
भारी, चिकना, ठण्डा,मीठा और चिकने आहार का सेवन भी वात-पित्त को संतुलित करता है।
नमक का सेवन न करें।
योग, प्राणायाम और ध्यान करें।
प्राणायाम: अनुलोम-विलोम, कुम्भक, शीतली प्राणायाम लाभप्रद है।
दैनिक शीतली प्राणायाम दस मिनट करने से लाभ होता है।
आसन: सर्वांग आसन Sarvangasana थायराइड ग्रंथि के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी आसन है। इसको करने से थायरॉयड ग्रंथि पर दबाव पड़ता है और रक्त आपूर्ति बढ़ती है और संचलन में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मत्स्यसान, हलासन, सूर्य नमस्कार, पवनमुक्तासन आदि करने से भी लाभ होता है।
घरेलू उपचार
त्रिकटु का सेवन करें। यहह सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है। दिन में दो बार आधे चम्मच को पानी के साथ सेवन करें।
धनिया 10 ग्राम को उबाल कर काढ़ा बनाकर पियें।
कांचनार गुग्गुलु का सेवन करें।
त्रिफला, आंवला का नियमित सेवन करें।
कैशोर गुग्गुलु का सेवन मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है।
शंखपुष्पि का सेवन करें।
एलोपैथी में हाइपरथायरायडिज्म का उपचार
हाइपरथोरायडिज्म के इलाज के लिए दवाएं, रेडियोइडीनॉइन थेरेपी, या थायरॉयड सर्जरी की जाती हैं। उपचार का उद्देश्य दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिए, थायरॉयड हार्मोन के स्तर को वापस लाने और लक्षणों को दूर करने क्र लियर किया जाता है।
दवाएं
Beta blockers
Antithyroid medicines
एंटीथोयराइड, थेरेपी हाइपरथायरायडिज्म का इलाज करने का सबसे आसान तरीका है। यह दवाएं आम तौर पर एक स्थायी इलाज प्रदान नहीं करती हैं। एक बार एंटीथोयराइड दवा के साथ उपचार शुरू होने पर थायरॉयड हार्मोन का स्तर कई हफ्तों या महीनों के लिए सामान्य श्रेणी में नहीं आता। इलाज का कुल औसत समय लगभग 1 से 2 वर्ष है, लेकिन कई सालों से उपचार जारी रह सकता है।
हाइपरथायरॉडीजम में आयोडीन युक्त भोजन, खांसी के सिरप या मल्टीविटामिन सावधानी से लेना चाहिए।
हाइपरथायरॉडीजम के कारण अन्य स्वास्थ्य समस्याएं
यदि हाइपरथायरॉडीजम का इलाज नहीं किया जाता है, तो इसमें कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें शामिल हैं
अनियमित दिल की धड़कन जो रक्त के थक्कों, स्ट्रोक , दिल की विफलता और अन्य हृदय से संबंधित समस्याओं का कारण हो सकती है
भैंगापन, प्रकाश संवेदनशीलता और आंखों में दर्द , दिखाई कम देना
हड्डियों का पतला होना और ऑस्टियोपोरोसिस आदि।
हाइपरथायरायडिज्म चयापचय को प्रभावित करता है। यह घबराहट, पसीना, तेजी से दिल की धड़कन, नींद में कठिनाई और वजन घटाने का कारण हो सकता है। जैसे ही पता चले हाइपरथायरायडिज्म है तो ट्रीटमेंट शुरू कर दिया जाना चाहिए। नमक का सेवन कम करें। स्मोकिंग न करें। पौष्टिक, हल्का और सुपाच्य भोजन करें। आहार-परिवर्तन, जीवनशैली, और प्राणायाम आदि से करने से बहुत लाभ होता है।
क्या आप लगभग हर दिन दुखी, खाली और निराशाजनक महसूस करते हैं? क्या आपने अपने शौक या दोस्तों और परिवार के साथ में रुचि या खुशी खो दी है? क्या आपको सोने, खाने और काम करने में परेशानी हो रही है? यदि आपको कम से कम 2 सप्ताह के लिए इस तरह महसूस हुआ है, तो आपको अवसाद (Depression) हो सकती है, यह एक गंभीर लेकिन इलाज किया जाने वाली दिमागी बीमारी हो सकती है।
अवसाद क्या है? What is depression?
कभी-कभार सभी को दुखी या कमी लगती है, लेकिन ये भावनाएं आमतौर पर थोड़े समय में चली जाती हैं अवसाद – जिसे नैदानिक अवसाद(clinical depression) या अवसादग्रस्तता विकार(depressive disorder) भी कहा जाता है- एक दिमागी विकार है जो परेशान करने वाले लक्षणों का कारण बनता है जो आप सोचने समझने और दैनिक क्रियाकलापों को प्रभावित करते हैं, जैसे कि बहुत ज्यादा सोना या बहुत काम सोना, भोजन करना या बहुत ज्यादा करना। अवसाद के निदान के लिए, इसके लक्षणों को काम से काम २ सप्ताह तक होना चाहिए।
विभिन्न प्रकार के अवसाद क्या हैं? | What are the different types of depression?
सामान्य रूप से अवसाद दो प्रकार के होते हैं
Major depression:
इस प्रकार के डिप्रेशन में इसके लक्षण रोज काम से काम २ सप्ताह तक रहते हैं जैसे की ठीक से नींद न आना पड़ने में परेसानी और खाना ठीक से न खाना, ऐसा किसी के भी जीवन में एक बार से ज्यादा हो सकता है।
Persistent depressive disorder (dysthymia)| हमेसा डिप्रेसिव रहना:
इस तरह के डिप्रेशन में डिप्रेशन के लक्षण का काम से काम २ साल तक रहते हैं, हो सकता है ये लक्षण कम या ज्यादा हों।
कुछ प्रकार के अवसाद थोड़ा अलग होते हैं, या वे किसी खास परिस्थितियों में विकसित हो सकते हैं, जैसे:
१- Perinatal Depression: इस तरह का डिप्रेशन गर्भावस्था में या डिलीवरी के बाद हो सकता है, इसमें भी सारे लक्षण होते हैं।
२- Seasonal Affective Disorder (SAD): इस प्रकार के डिप्रेशन मौसमी होते हैं जो मौसम चेंज होने के साथ होता है और ठीक हो जाता है। ज्यादातर इस प्रकार का डिप्रेशन शुरुआती सर्दी में सुरु होता है और बसंत आते आते ठीक हो जाता है।
३- Psychotic Depression | मनोवैज्ञानिक अवसाद: इस प्रकार की अवसाद तब होती है जब किसी व्यक्ति को गंभीर अवसाद से अधिक मनोविकृति के कुछ प्रकार होते हैं, जैसे कि गलत विश्वासों (भ्रम) या सुनने या उन चीजों को परेशान करने जैसे जो दूसरों को सुन नहीं सकते या नहीं देख सकते हैं (मतिभ्रम)।
What causes depression? अवसाद का कारण क्या है?
बहुत सरे लोगों पर किये गए अनुसंधान से पता चलता है कि आनुवंशिक, जैविक, पर्यावरण और मनोवैज्ञानिक कारकों का एक संयोजन अवसाद के मुख्या कारण हैं।
अन्य गंभीर बीमारियों, जैसे मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग और पार्किंसंस रोग के के कारण भी अवसाद (डिप्रेशन) हो सकता हैं। ड्प्रेशन की वजसे से ये बीमारिया और बढ़ जाती है। कभी-कभी इन बीमारियों के लिए ली गई दवाओं के कारण दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिसके कारन डिप्रेशन हो सकता है।
अवसाद के लक्षण क्या हैं? What are the signs and symptoms of depression?
उदासी अवसाद का केवल एक छोटा सा हिस्सा है और कुछ लोगों को उदासी का सामना नहीं करना पड़ सकता है। अलग-अलग लोगों के अलग-अलग लक्षण हैं अवसाद के कुछ लक्षणों में शामिल हैं:
लगातार उदासी, चिंतित, या “खाली” मूड
निराशा या निराशावाद की भावनाएं
अपराध, निष्ठा, या असहाय की भावनाएं
शौक या गतिविधियों में रुचि या खुशी की कमी होना
ऊर्जा में कमी, थकान
निर्णय लेने, याद रखने, या निर्णय लेने में कठिनाई
सोने में कठिनाई होना, नींद न आना या बहुत नींद लगना
भूख और / या वजन में परिवर्तन
मृत्यु या आत्महत्या या आत्महत्या के प्रयासों के विचार
बेचैनी या चिड़चिड़ापन
दर्द, सिरदर्द, ऐंठन या पाचन समस्याएं बिना किसी स्पष्ट शारीरिक कारण और / या जो उपचार के साथ भी कम नहीं होती हैं
क्या अवसाद(Dipression) के लक्षण हर किसी में एक ही जैसे होते हैं?
नहीं। अवसाद अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग लोगों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए:
महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अक्सर अधिक डिप्रेशन होता है। औरतों के शरीर में बहुत सारे हार्मोनल बदलाव होने के कारण महिलाओं में डिप्रेशन ज्यादा होता है। अवसाद के साथ महिलाओं में आम तौर पर उदासी, निष्ठा और अपराध के लक्षण होते हैं
अवसाद के साथ पुरुषों को बहुत थका हुआ, चिड़चिड़ा और कभी-कभी गुस्सा हो सकता है। वे काम या गतिविधियों में रुचि रखते हैं जिन्हें वे एक बार मजा आया, नींद की समस्याएं हैं, और बिना बेतहाशा व्यवहार करते हैं, जिनमें ड्रग्स या शराब का दुरुपयोग भी शामिल है। बहुत से लोग अपने अवसाद को नहीं पहचानते हैं और सहायता प्राप्त करने में विफल होते हैं।
पुरुषों में डिप्रेशन की वजह से थकान, चिड़चिड़ाहट और गुस्सा आना शामिल है। इसके अलावा नींद न आना, बहुत ज्यादा अग्रेशन की समस्या हो सकती है। पुरुषों में डिप्रेशन की वजह शराब और ड्रग भी होता है।
अवसाद के साथ छोटे बच्चे बीमार होने का नाटक करते हैं, स्कूल जाने से इंकार कर सकते हैं, माता-पिता से चिपक सकते हैं, या चिंता कर सकते हैं कि माता-पिता मर सकते हैं
बड़े बच्चों और किशोर अवसाद के साथ स्कूल में परेशानी हो सकती है स्कूल, चिड़चिड़ा, और चिड़चिड़ा हो। अवसाद के साथ किशोरों में अन्य विकारों के लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि चिंता, खाने का विकार, या मादक द्रव्यों के सेवन।
डिप्रेशन का इलाज कैसे होता है ?
इन सभी लक्षणों के होने पर सबसे पहले किसी डॉक्टर या मनो चिकिस्तक को दिखाना चाहिए, वही सही सलाह दे सकते है और दवाये दे सकते हैं। डिप्रेशन मनोचिकिसक की सलाह और दवाइयों से ठीक हो जाता है। डिप्रेशन के लक्षण होने पर किसी डॉक्टर को दिखाकर ही इलाज करना ठीक रहता है।
खजूर और छुहारा, दोनों ही पाम जाति के एक ही पेड़ से प्राप्त होते हैं। खजूर के पेड़ रेगिस्तानी इलाकों में पाए जाते हैं। यह बहुत लम्बे होते है। इनका एक ही तना होता है जिस पर बढ़ कर पत्तियां निकलती हैं। खजूर के पेड़ में डालियाँ नहीं होती। पत्ते करीब हाथ भर लम्बे होते हैं। पत्तों की नोक कंटीली होती है। पेड़ पर फल गुच्छों में लगते है। कच्चे फल हरे, पीले और पकने पर लाल होते हैं। खजूर का फल करीब ढाई से सात सेंटीमीटर लम्बा होता है। यह रंग में लाल कुछ कालापन लिए होते हैं इसके बीज लम्बे-पतले और भूरे से होते हैं।
खजूर के सूखे रूप को छुहारा कहते हैं। खजूर केवल सर्दियों में उपलब्ध होते हैं जबकि छुहारा पूरे साल उपलब्ध होता है। छुहारा, का लैटिन नाम Phoenix dactylifera है। इसे इंग्लिश में डेट पाम Date Palm कहा जाता है। यह इरान, फारस, काबुल, आदि में काफी मात्रा में पाया जाता है।
खजूर जहाँ मुलायम होते हैं वहीँ छुहारे कड़े होते हैं। छुहारे को एक मेवे dry fruit की तरह प्रयोग किया जाता है। खजूर के सूख जाने पर इसमें पानी कम हो जाता है और सिलवटें आ जाती है। इसके अंदर गुठली या बीज होता है। छुहारे में खजूर से ज्यादा कैलोरीज होती हैं और इसलिए दूध में उबाल के इन्हें खाने से वजन बढ़ता है। 100 ग्राम छुहारे में करीब 3 ग्राम प्रोटीन, 1/2 ग्राम फैट, 80 ग्राम कार्बोहायड्रेट, और 5 ग्राम फाइबर होता है। इसमें 81 mg कैल्शियम और 8 mg लोहा पाया जाता है।
छुहारा स्वाद में मीठा और पचने में भारी होता है। यह तृप्तिदायक, शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, और हृदय के लिए हितकारी है। इसके सेवन से शरीर को ताकत मिलती है और कामशक्ति aphrodisiac बढ़ती है। छुहारा डाल कर पकाया हुआ दूध वाजीकारक, शक्तिवर्धक, और ओजवर्धक है। यह प्रमेह, स्वप्नदोष, धातुक्षीणता और कमजोरी को दूर करने वाला है। सर्दियों में छुहारा खाने से शरीर में गर्मी आती है और सर्दी-खांसी से आराम मिलता है।
छुहारा शरीर में खून की मात्रा बढ़ाता है और अनीमिया दूर करता है। यह वज़न को बढ़ाने में सहायक है।यह त्वचा को चिकना, चमकदार, और साफ़ करता है। यह पिचके हुए गालों को भरता है और बालों को लम्बा करता है। छुहारे के सेवन से प्रजनन अंगों को ताकत मिलती है और संतानोत्पत्ति के आसार बढ़ते हैं। यह एक ड्राई फ्रूट है और इसके सेवन के बहुत से लाभ हैं
छुहारे खाने के लाभ Health Benefits of Eating Dry Dates
छुहारे शीतल, स्निग्ध, रूचिकारक, भारी, ग्राही, यौनशक्तिवर्धक, और बलदायक होता हैं। छुहारे का सेवन।रक्तपित्त, वायु विकार, उलटी, कफ, खांसी, अस्थमा, बुखार के बाद की कमजोरी, अतिसार, भूख, प्यास, बेहोशी, कमजोरी, आदि को दूर करता है। छुहारे खाने के बहुत से लाभ हैं। उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं।
छुहारा बहुत पौष्टिक होता है। इसमें आयरन, कैल्यिशम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, मैंगनीज, तांबा आदि पोषक पदार्थ पाए जाते हैं।
इसके सेवन से कब्ज़ दूर होती है।
यह शरीर को ताकत देता है।
यह पाचन को सही करता है।
यह शुक्राणु और डिम्ब को बढ़ाता है।
यह मांसपेशियों के दर्द, शिथिलता, आदि को दूर करता है।
बुखार के बाद आई शारीरिक कमजोरी में यह लाभप्रद है।
यह यौन शक्ति को बढ़ाता है।
यह शरीर को हृष्ट-पुष्ट करता है।
यह मूत्रल है और पेशाब रोगों में लाभ करता है।
इसके सेवन से फेफड़ों को ताकत मिलती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
इसे खाने से मासिक धर्म खुल कर आता है और कमर दर्द में लाभ होता है।
यह प्रजनन अंगों को ताकत देता है.
छुहारे के औषधीय प्रयोग
छुहारे एक पौष्टिक भोजन है जिसे हम दवाई या घरेलू उपचार की तरह बहुत से रोगों में प्रयोग कर सकते हैं। यह कब्ज़नाशक है और आँतों से गंदगी दूर करता है। इसके ज्यादातर लाभ इसमें पाए जाने वाले खनिज, विटामिन और फाइबर के कारण होते हैं। यह पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य को सही करने के लिए अत्यंत उपयोगी है।
वज़न बढ़ाने के लिए
दुबले-पतले व्यक्ति इसके सेवन से अपना वज़न बढ़ा सकते हैं इसके लिए चार-पांच छुहारे, एक गिलास दूध में चुहारों को उबाल ठण्डा कर लें। छुहारे चबा-चबा कर खा लें और दूध पी लें। ऐसा दिन में एक या दो बार करें। इसे सुबह और रात में सोने से पहले ले सकते हैं। तीन-चार माह तक इस प्रकार करने से शरीर पुष्ट और गठीला होता है।
घाव
छुहारे की गुठली को पत्थर पर घिस कर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
पलकों पर गुहेरी
छुहारे की गुठली को पत्थर पर घिस कर लगाने से गुहेरी ठीक हो जाती है।
कब्ज
सुबह-शाम तीन छुहारे खाकर बाद में गर्म पानी पीने से कब्ज दूर होती है।
अच्छी सेहत
दूध में छुहारा उबालकर इसका सेवन करें।
शीघ्रपतन
दो सप्ताह तक, सुबह उठ कर खाली पेट दो छुहारे खाएं। तीसरे-चौथे सप्ताह, से तीन-चार छुहारे खाएं। रात में सोते समय तीन छुहारे दूध में उबाल कर खाएं और दूध पी लें।
ऐसा तीन मास तक करें।
याददाश्त, पुरुषों में धारण शक्ति -पुरुषत्व बढ़ाना, शुक्राणुओं की संख्या में बढ़ोतरी के लिए, ताकत, स्फूर्ति, ओज बढ़ाना
आधा लीटर गाय के दूध में चार छुहारा डालें और पकाएं। जब दूध आधा रह जाए तो छुहारे की गुठली हटा लें और दूध में मिश्री मिला दें। दूध पी लें और छुहारे चबा कर खा लें।
कफ-सर्दी, जुखाम, अस्थमा
सुबह-शाम, दो छुहारे चबा कर खाएं।
छुहारे, बहुत ही पौष्टिक हैं। यह शरीर के सभी अंगों को ताकत देते हैं। इनका सेवन दिमाग को पोषण देता है और याददाश्त हो बढ़ाता है। छुहारे फेफड़ों को ताकत देते हैं जिससे अस्थमा, खांसी आदि में लाभ होता है। कम मात्रा में छुहारे आँतों को साफ़ करते हैं और आँतों में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं। यह शरीर में एसिडिटी को कम करते हैं। लेकिन, क्योंकि छुहारे पौष्टिक हैं इसलिए इनका बहुत अधिक मात्रा में सेवन नहीं किया जाना चाहिए। जहाँ ये कम मात्रा में शरीर के लिए लाभप्रद हैं, अधिकता में किया गया सेवन छाती और गले के लिए हानिप्रद हो सकता है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
यह पचने में भारी है और इसके पाचन में समय लगता है।
यदि पाचन शक्ति कमज़ोर है तो इसके सेवन से शरीर को अधिक लाभ नहीं हो पायेगा।
सर्दियों के मौसम में इसका सेवन अधिक अनुकूल है।
एक बार में चार छुहारे से ज्यादा का सेवन नहीं करना चाहिए।
इसे सूखा खाने की अपेक्षा दूध में पका कर खाना चाहिए।
अधिक मात्रा में इसका सेवन ग्राही (जो द्रव्य दीपन और पाचन दोनों काम करे और अपने गुणों से जलीयांश को सुखा दे) है।
यह वज़न को बढ़ाता है इस्क्लिये यदि वज़न पहले से ही बढ़ा है तो इसका सेवन न करें।
यह मीठा होता है इसलिए यदि रक्तशर्करा का स्तर अधिक है तो इसका सेवन न करें।
सर्वाइकल स्पांडिलाइसिस एक प्रकार का डीजेनेरेटिव विकार है जिसमें गरदन की हड्डी (सर्वाइकल) में मौजूद कार्टिलेज और गर्दन की हड्डियों (ग्रीवा कशेरुका) में टूट-फूट wear and tear हो जाती है जिससे गर्दन में क्रोनिक पेन रहता है। इसके सबसे सामान्य लक्षण हैं, गर्दन में दर्द होना, स्टिफनेस, और सिर दर्द। इसके अतिरिक्त, हाथों और पैरों में दर्द, हाथ-पैर में सुन्नता, चलने में कठिनाई भी हो सकती है। कुछ लोगों में सरवाइकल स्पांडिलाइसिस के कोई भी लक्षण नहीं होते जबकि कुछ लोगों में इसके होने से दैनिक काम-काज करने में भी दिक्कतें आ सकती हैं।
Cervical spondylosis is a form of arthritis in which the vertebrae of the neck grow extra bone and start to press upon adjacent nerves, causing a stiff and painful neck, and tingling sensations. Cervical spondylosis arises from degenerative changes that occur in the spine with ageing. Genetics, Smoking, Jobs with lots of repetitive neck motion and overhead work, Depression or anxiety, Previous injury or trauma to the neck etc. increases risk of this diseases.
Symptoms of Cervical spondylosis include, pain, stiffness, headache, popping noise or sensation on turning neck, numbness and weakness in the arms, hands, and fingers, muscle spasms in the neck and shoulders. Physical Examination, X-rays, Magnetic resonance imaging (MRI) scans, Computed tomography (CT) scans, Electromyography (EMG), and some other tests are done to diagnose the condition. Treatment involves relieving the symptoms using Physical therapy, Medication, Soft cervical collar, heat, massage, and other local therapies, and Surgery.
Allopathy treats the conditions using pain killers which have many side-effects. Ayurvedic and Homeopathic treatments seems to be better option to treat this chronic condition with minimum or no side-effects.
सर्वाइकल स्पांडिलाइसिस को Cervical osteoarthritis, Arthritis – neck, Neck arthritis, Chronic neck pain, Degenerative disk disease आदि नामों से भी जाना जाता है।
Symptoms of Cervical Spondylosis
स्पोंडिलोसिस के लक्षणों में गर्दन का दर्द और कंधे का दर्द शामिल है। कुछ मामलों में यह दर्द गंभीर हो सकता है। कभी-कभी सिरदर्द भी हो सकता है, जो आमतौर पर गर्दन के ऊपर सिर के पीछे शुरू होता है, और माथे तक जा सकता है। दर्द आम तौर पर क्रोनिक होता है।
सरदर्द Headache
गर्दन में कठोरता Stiffness in the neck
बाहों में झुनझुनी और अस्थिरताTingling & Numbness in arms
गर्दन और कंधों के पीछे दर्द Pains on back of neck & shoulders
अन्य, अधिक गंभीर, लक्षण आमतौर पर केवल तब होते हैं यदि जब निम्न स्थितियां विकसित हो जाती हैं:
सरवाइकल रेडिकुलोपाथी cervical radiculopathy (जब गर्दन का दर्द बांह में हो जाता है और बाजू में सुन्नता या सुइयां चुभती लगती हैं)
सरवाइकल मायलोपैथी cervical myelopathy (यह तब होता है जब गंभीर सरवाइकल स्पोंडिलोसिस के कारण स्पाइनल कार्ड दब जाती है। परिणामतः दिमाग से पूरे शरीर में सिग्नल के सही से नहीं आ पाते और व्यक्ति को हाथ-पैर में भारीपन, संतुलन में दिक्कत, पेशाब के कण्ट्रोल में समस्या और शौच आदि रोकने में दिक्कत हो जाती है)
सरवाइकल मायलोपैथी के लक्षणों में व्यक्ति को बिना देर किये डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए जिससे समय रहते स्पाइनल कार्ड की क्षति को रोका जा सके नहीं तो ज्यादा नुकसान होने पर व्यक्ति दीर्घकालिक विकलांगता का सामना कर पड़ सकता है।
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के कारण
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस उम्र के बढ़ने के कारण रीढ़ में होने वाले टूट-फूट से हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ कशेरुका vertebrae के बीच मौजूद डिस्क, जो की जो की बाहर से मजबूत लेकिन अन्दर से टूथपेस्ट सी मुलायम होती है और एक कुशन का काम करती है, सूखने लगती है और डैमेज के प्रति अतिसंवेदनशील बन जाती है। शरीर गर्दन को बेहतर ढंग से बैलेंस करने के लिए और रीढ़ की हड्डी को सीधा करने के लिए अतिरिक्त हड्डियों का निर्माण कर सकता है। अतिरिक्त हड्डियों के इन गांठों को हड्डी के स्पर्स या ओस्टिफाइट्स bone spurs or osteophytes के रूप में जाना जाता है
ओस्टिफाइट्स के कारण, रीढ़ की हड्डी बहुत कठोर हो सकती है, जिससे कठोरता और गर्दन का दर्द हो सकता है। हड्डियों की संरचना में परिवर्तन भी पास की तंत्रिकाओं और रीढ़ की हड्डी को स्क्वैश कर सकता है।
यह ज्यादा उम्र के लोगों में अधिक आम हो सकता है। उम्र के अलावा, कई अन्य रिस्क फैक्टर हैं जो सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं। इसमें शामिल है:
मोटापा, व्यायाम की कमी
गर्दन या रीढ़ की हड्डी में लगी कोई चोट
गर्दन या स्पाइनल सर्जरी
गंभीर गठिया
स्लिप डिस्क
बार-बार भारी वजन उठाना
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का निदान
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस होने के संकेत तब हो सकते हैं, जब व्यक्ति को गर्दन में दर्द और कठोरता के विशिष्ट लक्षण हों। उसे बांह के दर्द, हाथों का उपयोग करने में समस्याएं या चलने में कठिनाई भी हो सकती है।
नीचे दिए गए विभिन्न परीक्षणों का इस्तेमाल अन्य दूसरे रोग की संभावना को दूर करने और निदान की पुष्टि करने के लिए किया जा सकता है।
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस एक डीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है और इसका कोई इलाज़ नहीं है। इसके उपचार का लक्ष्य दर्द के लक्षणों को दूर करने और नसों की स्थायी क्षति को रोकने के लिए होता है।
फिजिकल थेरेपी के द्वारा दर्द को कम करने और गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में सहायता होती है।
ओवर-द-काउंटर दर्दनिवारक, कोडीन, Muscle relaxants, ऐमिट्रिप्टिलाइन, गाबापेंटीन, दर्द निवारक इंजेक्शन के द्वारा दर्द को कम किया जाता है।
नॉन-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं (NSAIDs) जैसे की डाईक्लोफेनाक, आईबुप्रोफेन, नेपरोक्सन आदि स्पोंडिलोसिस के लक्षणों के लिए सबसे प्रभावी दर्दनाशक मानी जाती है। बहुत अधिक दर्द में कोडीन Codeine भी दी जा सकती है। कोडीन का सेवन कब्ज़ करता है।
यह भी जान लेना ज़रूरी है की अस्थमा, उच्च रक्तचाप, यकृत की बीमारी, हृदय रोग या पेट के अल्सर में नॉन-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं (NSAIDs) का सेवन उपयुक्त नहीं है। इन परिस्थितियों में, पेरासिटामोल आमतौर पर अधिक उपयुक्त होते हैं।
मसल्स रेलेक्सेंट, का प्रयोग गर्दन की मांसपेशियों के अचानक अनियंत्रित खिचाव की स्थिति में होती है। मसल्स रेलेक्सेंट का सेवन चक्कर और नींद लाता है और इसे एक सप्ताह – 10 दिन से अधिक तक लगातार नहीं लेना चाहिए।
ऐमिट्रिप्टिलाइन, का प्रयोग तब किया जाता है जब अन्य दर्द निवारकों के प्रयोग से कोई लाभ नहीं हो रहा होता। यह मूल रूप से अवसाद depression का इलाज करने के लिए है लेकिन डॉक्टरों ने पाया है कि तंत्रिका दर्द का इलाज करने में भी यह उपयोगी है। ऐमिट्रिप्टिलाइन के दुष्प्रभाव में शामिल हैं, बेहोशी होना, मुंह में सूखापन, ठीक से दिखायी न देना, कब्ज़ और पेशाब में दिक्कत।
गाबापेंटीन, का प्रयोग नर्व रूट इरीटेशन के कारण हाथ में दर्द या सुइयां चुभने जैसा लगने आदि में किया जा सकता है।
गर्दन पर ब्रेस या कॉलर भी इलाज़ में प्रयोग होते है। लेकिन नेक ब्रेस या कॉलर का उपयोग लम्बे समय तक नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आपके लक्षणों को और खराब कर सकता है। इसे एक हफ्ते से अधिक समय तक नहीं पहनें।
कुछ मामलों में डॉक्टर सर्जरी का भी सुझाव दे सकते हैं। सर्जरी कराने के बहुत से दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जो की साधारण लक्षणों से लेकर बहुत अधिक गंभीर भी हो सकते हैं जैसी की पक्षाघात, घाव का संक्रमण, गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया, नसों को नुकसान आदि।
आयुर्वेद में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का इलाज
आयुर्वेद में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस को मन्यास्तम्भ व ग्रीवास्तम्भ Neck rigidity से सम्बंधित देखा जा सकता है। यह मुख्य रूप से वात-कफ दोष के कारण उत्पन्न व्याधि है। वातवर्धक भोजन, दिन में सोने, लम्बे समय तक विषम तरीके से उठने – बैठेने, ग्रीवा उठा मुड़कर देखने से, कफावृत वायु प्रकुपित हो कर मन्या को जकड़ देती है जिससे गर्दन को घुमाने में बहुत दर्द और दिक्कत होती है और इसे मन्यास्तम्भ कहते हैं। इसका उपचार अन्य वातव्याधियों की तरह किया जाता है।
इसमें वात का प्रभाव गर्दन की नसों में अधिक होता है तो गर्दन में कठोरता/स्टिफनेस और दर्द के लक्षण पैदा होते हैं जो शरीर के दूसरे हिस्से में फ़ैल जाते हैं।
आयुर्वेद में निम्न दवाओं के प्रयोग से सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस में लाभ होता हैं। प्राकृतिक होने से इन दवाओं का कोई भी गंभीर साइड इफ़ेक्ट नहीं है। यह रोग को बढ़ने से भी रोकती हैं और लक्षणों में राहत देती है।
दशमूल काढ़ा: दशमूल के काढ़े को 30 ml की मात्रा में दिन में दो बार, पानी के साथ सेवन करें।
महारास्नादीकाढ़ा अथवा रसनादिकाढ़ा: रसनादि काढ़ा, 30 ml की मात्रा में दिन में दो बार, पानी के साथ सेवन करें।
महानारायणतेल: इसे बाह्य रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
प्रसारणीतेल: इसे बाह्य रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
पञ्चगुणतेल: इसे बाह्य रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
लक्षादिगुग्गुलु: 500 mg की मात्रा में इसे दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लें।
योगराज गुग्गुलु अथवा महायोगराजगुग्गुलु: इसकी दो गोली दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लें।
इसमें से कोई भी एक गुग्गुल वाली दवा + मालिश के कोई एक तेल + दशमूल या रस्नादी काढ़ा प्रयोग किया जा सकता है।
दवाओं के अतिरिक्त, वायु और कफ दोष को कम करने वाला आहार करना चाहिए। पाचन को ठीक रखना चाहिए और शरीर से आम दोष को कम करना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस में क्या खाएं और क्या न खाएं
कुछ प्रकार के चावल Special variety of rice (kodrava, samvaka)
मटर, चना, Peas,Chana, green gram (mudga)
गोभी, भिन्डी, खजूर Cauliflower, lady finger
खट्टे भोजन आदि।
होमियोपैथी में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के लिए प्रयुक्त दवाएं
होमियोपैथी में भी सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस की दवाएं उपलब्ध है जो की अलग-अलग लोगों में मौजूद लक्षणों के आधार पर अलग हो सकती हैं। दवाओं की पोटेंसी, कॉम्बिनेशन, और दिए जाने का तरीका cyclic rotation कुशल होमियोपैथिक डॉक्टर द्वारा बताया जा सकता है।
Kalmia latifolia
Calcarea phos 6x
Gelsemium 30, 200
Cimicifuga
Rhus Tox 30 c
Causticum 30
Ruta 30, 200
होम्योपैथिक दवाएं जो सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के लिए विशेष रूप से निर्मित हैं:
Schwabe Topi MP Gel
Dr.Reckeweg R11 Rheuma drops for Muscle pain, Back pain, Spondylosis, Sciatica
R S Bhargava Spondin Drops
Bakson’s Spondy Aid Drops
व्यायाम और जीवन शैली में बदलाव
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस की समस्या होने पर, व्यक्ति को सोने, उठने-बैठने, चलने-फिरने आदि में सही पोश्चर/मुद्राएँ अपनानी चाहिए। उसे कोई न कोई हल्का व्यायाम करना चाहिए और वजन को नियंत्रित रखना चाहिए। दर्द हो रहा हो तो गर्म सेंक कर लेनी चाहिए।
आसान अभ्यास जैसे तैराकी या पैदल चलना
गर्दन पर तनाव को कम करने के लिए रात में एक फर्म तकिया का उपयोग करना
पोश्चर को सुधारना – सही तरीके से उठना-बैठना
सरसों के तेल या तिल के तेल में लहसुन की कलियाँ और अजवाइन डाल के पका लेना चाहिए और आवश्यकता अनुसार मालिश के लिए प्रयोग करना चाहिए। सोते समय पतला तकिया गर्दन के नीचे लगा लेना चाहिए। वातवर्धक, रूखा, ठण्डा, भोजन नहीं किया जाना चाहिए। बहुत व्रत-उपवास नहीं रखना चाहिए।
भोजन सुपाच्य और हल्का होना चाहिए। चीनी का सेवन कम किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मैदा, प्रसंस्कृत भोजन, केक, बिस्किट, मांस, सोडा, कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। विटामिन बी, सी, डी और ई का सेवन भी आवश्यकता अनुसार सेवन किया जाना चाहिए। पानी सही मात्रा में पीना चाहिए। स्ट्रेस को कम करने के लिए प्राणायाम करना चाहिए। सूर्य नमस्कार, भुजंगासन और मकरासन करने से भी लाभ होता है। शराब का सेवन न करें।
हिंग्वष्टक चूर्ण या अष्टक चूर्ण एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। इसमें आठ औषधीय द्रव्य हींग, सेंधा नमक, सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, जीरा, कालाजीरा और अजवाईन है।
इस पाचक चूर्ण में हींग मुख्य औषध है इसलिए इसका नाम हिंग्वाष्टक है। हींग को घरेलू उपचार में अफारा, गैस को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे गैस बनाने वाले भोज्य पदार्थों में भी इसके गैसहर-वातहर गुण के कारण ही प्रयोग किया जाता है। हींग पेट में रुकी गैस को दूर करती है और कोलिक में आराम देती है। हींग पित्त स्राव को बढ़ा देता है।
हिंग्वष्टक पाचन तंत्र से संबंधित ऐसी समस्याओं जिसमें पाचक रस का स्राव कम होता है, जैसे की अजीर्ण, अपच और गैस, के लिए प्रयोग होता है। यह पाचन में सहयोग करता है और भूख बढ़ाता है। त्रिकटु होने से यह खराब पाचन के कारण शरीर में जमे आम दोष को कम करता है। यह पाचक रसों के स्राव को उत्तेजित करता है और गैस, पेट फूलना और अपच के कारण उत्पन्न लक्षणों को दूर करता है।
इस चूर्ण को भोजन के समय पहले ग्रास में घी में मिलाकर खाने से भोजन का पाचन सही से होता है और वात रोगों का नाश होता है। इससे वायु प्रधान मन्दाग्नि ठीक होती है।
गैस, पेट फूलना, खट्टी डकार, भूख न लगना, अपच होना, अपच से उलटी आदि में इसके सेवन से लाभ होता है।
हिंग्वष्टक चूर्ण पाचक और दीपन है। यह आम दोष को भी दूर करता है और स्रोतों को साफ़ करता है। त्रिकटु होने से यह शरीर में जमे कफ को ढीला करता है और मेटाबोलिज्म को ठीक करता है और इसप्रकार मोटापे में लाभ करता है।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
मुख्य उपयोग: मन्दाग्नि, पेट में दर्द, पेट फूलना, गैस, अरुचि, अपच
मुख्य गुण: गैसहर, आमदोषहर, रुचिकारक
Hingwastak Churna contain 8 ingredients, black pepper, pippali, dry ginger, ajwan, rock salt, cumin, black cumin, and asafoetida (hing). It is an anti-Vata formula that cleanse the colon. It (Effect on Dosha) reduces Vata and Kapha and increases Pitta. It should be take cautiously in high pitta, pregnancy, diarrhea and acidity.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
हिंग्वाष्टक चूर्ण के घटक Ingredients of Hingwastak Churna
सोंठ Sunthi Dry Ginger Powder 1 भाग
मरिचा Maricha Back Pepper 1 भाग
पिप्पली Pippali Long Pepper 1 भाग
अजमोद Ajamoda 1 भाग
सेंधा नमक Saindhava Namak 1 भाग
जीरा Jeeraka Cumin Seeds 1 भाग
कालजीरा Kalajira 1 भाग
घी में भुनी हींग Shuddha Hingu Asafoetida fried in Ghee 1 भाग अथवा 1/8 भाग
हींग, तेल और रालयुक्त गोंद है जिसे इंग्लिश में ओले-गम-रेसिन कहते हैं। हींग के पौधे की जड़ एवं तने पर चीरा लगाकर इस गोंद को प्राप्त करते हैं। हींग स्वाद में कटु गुण में लघु, चिकनी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। यह पित्त वर्धक है और पाचन को तेज करती है।
हींग का अधिक मात्रा में सेवन नुकसान करता है। यह शरीर का ताप तो नहीं बढ़ाता परन्तु धातुओं में उष्मा बढ़ा देता है। जहाँ कम मात्रा में यह पाचन में सहयोगी है, वहीँ इसकी अधिक मात्रा पाचन की दुर्बलता, लहसुन की तरह वाली डकार, शरीर में जलन, पेट में जलन, एसिडिटी, अतिसार, पेशाब में जलन आदि दिक्कतें पैदा करता है।
त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है। यह पाचन और कफ रोगों, दोनों में ही लाभकारी है। इसे जुखाम colds, छीकें आना rhinitis, कफ cough, सांस लेने में दिक्कत breathlessness, अस्थमा asthma, पाचन विकृति dyspepsia, obesity और मोटापे में लिया जा सकता है।
अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी कहलाता है। सोंठ को भोजन में मसले की तरह और दवा, दोनों की ही तरह प्रयोग किया जाता है। सोंठ का प्रयोग आयुर्वेद में प्राचीन समय से पाचन और सांस के रोगों में किया जाता रहा है। इसमें एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं।
काली मिर्च न केवल मसाला अपितु दवा भी है। इसे बहुत से पुराने समय से आयुर्वेद में दवाओं के बनाने और अकेले ही दवा की तरह प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे मरीच कहा जाता है। इसे गैस, वात व्याधियों, अपच, भूख न लगना, पाचन की कमी, धीमे मेटाबोलिज्म, कफ, अस्थमा, सांस लेने की तकलीफ आदि में प्रयोग किया जाता है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।
पिप्पली उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।
त्रिकटु या त्रिकुटा के तीनो ही घटक आम पाचक हैं अर्थात यह आम दोष का पाचन कर शरीर में इसकी विषैली मात्रा को कम करते हैं। आमदोष, पाचन की कमजोरी के कारण शरीर में बिना पचे खाने की सडन से बनने वाले विषैले तत्व है। आम दोष अनेकों रोगों का कारण है।
सेंधा नमक, सैन्धव नमक, लाहौरी नमक या हैलाईट (Halite) सोडियम क्लोराइड (NaCl), यानि साधारण नमक, का क्रिस्टल पत्थर-जैसे रूप में मिलने वाला खनिज पदार्थ है। इसे त्रिकुटा के साथ लेने पर गैस नहीं रहती, पाचन ठीक होता है तथा हृदय को बल मिलता है।
घर पर हिंग्वाष्टक चूर्ण कैसे बनाएं
हिंग्वाष्टक चूर्ण को घर पर भी बनाया जा सकता है। इसके लिए सेंधा नमक, सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, जीरा, कालाजीरा और अजवाईन, सभी को समान मात्रा में ले कर महीन कपड़छन पाउडर बना लें। फिर इसमें घी में भुनी हुई हींग का चूर्ण एक द्रव्य का आठवाँ भाग लेकर चूर्ण में मिला दें। यही हिंग्वाष्टक चूर्ण है। अन्य द्रव्यों को एक – एक भाग लेकिन हींग कम मात्रा में ही रखते हैं जिससे चूर्ण बहुत अधिक उष्ण और तीक्ष्ण न हो जाए। हींग की मात्रा अधिक होने पर इसके सेवन से शरीर में दिक्कत हो सकती है।
घर पर बनाने पर इसमें नमक की मात्रा भी कम या बिलकुल ही नहीं, की जा सकती है।
प्रधान कर्म
अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
छेदन: द्रव्य जो श्वास नलिका, फुफ्फुस, कंठ से लगे मलको बलपूर्वक निकाल दे।
हिंग्वाष्टक चूर्ण के लाभ / फ़ायदे | Benefits of Hingwastak Churna
यह दवा घर में प्रयोग किये जाने वाले मसालों से बनी है।
इसका कोई भी सीरियस साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
इसे छोटे-बड़े सभी ले सकते हैं, लेकिन लेने की मात्रा अलग होगी।
यह स्वभाव से गर्म है और पाचक पित्त को बढ़ाने वाली दवा है।
इसे लेने से मेटाबोलिज्म तेज होता है, अरुचि दूर होती है और पाचन सही होता है।
हिंग्वाष्टक चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Hingwastak Churna
पेट फूलना Abdominal distention
अग्निमांद्य Agnimandya (Digestive impairment)
आम दोष Ama Dosha (metabolic waste and toxins)
कब्ज़ Constipation
गैस Flatulence
गुल्म Gulma (Abdominal lump)
पेट में भारीपन लगना Heaviness
हिचकी Hiccups
अपच Indigestion
कोलिक Intestinal colic
अरुचि Loss of appetite
धीमा मेटाबोलिज्म Low metabolism
मोटापा Obesity
वात रोग Vataroga (Disease due to Vata Dosha)
सेवन विधि और मात्रा | Dosage of Hingwastak Churna
1-4 ग्राम, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
इसे घी अथवा गर्म पानी के साथ लें।
इसे भोजन करने के पहले लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें | Cautions/Side effects/Contraindications
आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
हींग को मासिक स्राव को बढ़ाने वाला और गर्भनाशक माना गया है।
इसमें नमक है इसलिए इसे कम नमक की सलाह और उच्च रक्तचाप में न लें।
हींग का सेवन दवा की मात्रा में स्तनपान के दौरान नहीं किया जाता. स्तनपान के दौरान भी इसका सेवन दवा के रूप में न करें क्योंकि दूध से बच्चे में जाने पर यह methaemoglobinaemia कर सकता है।
यह तासीर में गर्म है।
बच्चों को यदि देना है तो कम मात्रा में दें। `
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
ज्यादा मात्रा में इसके सेवन से पेट में जलन हो सकती है।
शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन सावधानी से करें।
चूहों में किये गए परीक्षण में हींग के सेवन से कमजोर sister chromatid exchange-inducing effect स्पर्म बनते देखा गया। यह क्रोमोसोमल को डैमेज करने वाला असर हींग में मौजूद coumarin के कारण होता है।
उपलब्धता
इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।
यह एक ऐलोपथिक दवाई है जो की प्रिसक्रिप्शन ड्रग (डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर मिलने वाली ) है। ℞ निशान का मतलब है “प्रिस्क्रिप्शन”। यह सिंबल लैटिन भाषा में प्रयोग किये जाने शब्द recipere का संक्षिप्त नाम है जिसका शाब्दिक मतलब है “लेने के लिए” या “इस प्रकार लें” । इस पेज पर इस दवा के बारे बताया गया है जो की केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है।
ज़ाइलोरिक (एलोप्यूरीनॉल), एंजाइम अवरोधक enzyme inhibitor नामक दवाइयों के एक समूह से संबंधित है जो शरीर में विशेष रासायनिक परिवर्तन होने की दर को नियंत्रित करती है। इसका उपयोग गुर्दे में कैल्शियम की पथरी सहित शरीर में बढ़े हुए यूरिक एसिड, गाउट और अन्य कुछ कंडीशन में प्रयोग की जाती है। वयस्कों के लिए सामान्य खुराक एक ज़िलोरिक टैब (100, 200, 300 mg) मिलीग्राम टैबलेट है। इस दवा का प्रयोग, मात्रा आपको डॉक्टर के डायग्नोसिस से ही सही पता लगेगी।
दी गई जानकारी का प्रयोग सेल्फ-मेडिकेशन के लिए न करें। यदि आपके कोई संदेह या प्रश्न हैं, या आप किसी चीज़ के बारे में निश्चित नहीं हैं, तो अपने डॉक्टर या फार्मासिस्ट से पूछें।
Allopurinol is known chemically as 1,5-dihydro-4H-pyrazolo [3,4-d] pyrimidin-4-one. It is a xanthineoxidaseinhibitor which is administered orally. Each white tablet contains allopurinol and the inactive ingredients corn starch, lactose monohydrate, magnesium stearate, povidone and purified water.
Allopurinol acts on purinecatabolism, without disrupting the biosynthesis of purines. It reduces the production of uric acid by inhibiting the biochemical reactions immediately preceding its formation.
Allopurinol tablets are indicated in the management of patients with signs and symptoms of primary or secondary gout (acute attacks, tophi, joint destruction, uric acid lithiasis, and/or nephropathy); the management of patients with recurrent calcium oxalate calculi whose daily uric acid excretion exceeds 800 mg/day in male patients and 750 mg/day in female patients.
The average dose is 200 to 300 mg/day for patients with mild gout and 400 to 600 mg/day for those with moderately severe tophaceous gout. Dosage requirements in excess of 300 mg should be administered in divided doses. The minimal effective dosage is 100 to 200 mg daily and the maximal recommended dosage is 800 mg daily.
The most common reactions of medicine include diarrhea, nausea, alkaline phosphatase increase, SGOT/SGPT increase; Rash, maculopapular rash and Acute attacks of gout. Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
ब्रांड का नाम: GlaxoSmithKline Pharmaceuticals
जेनरिक: एलोप्यूरीनॉल Allopurinol
चिकित्सीय: antigout agents, antihyperuricemics
फार्माकोलॉजिक: xanthine oxidase inhibitors
केटेगरी सी C – पशु प्रजनन के अध्ययन से भ्रूण पर प्रतिकूलadverse प्रभाव दिखा। गर्भवती महिलाओं पर कोई पर्याप्त, नियंत्रित अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन संभावित लाभ तथा संभावित जोखिम को तौलते हुए इसको डॉक्टरों द्वारा गर्भावस्था में प्रयोग किया जा सकता है।
उपयोग: गठिया संधिशोथ और नेफ्रोपैथी के बार-बार होने को रोकने के लिए, उपचारमाध्यमिक हाइपरराइसीमिया
कार्य: जेंथिन ऑक्सीडेज की कार्रवाई को इनहिबिट करके यूरिक एसिड के उत्पादन को रोकता है।
चिकित्सीय प्रभाव: सीरम यूरिक एसिड स्तर कम करना।
वितरण: ऊतक और स्तन के दूध में व्यापक रूप से वितरित।
निषेध: अतिसंवेदनशीलता।
सावधानी से उपयोग करें: गठिया केअटैक में,गुर्दे के सही काम न करने में; निर्जलीकरण, स्तनपान:बहुत कम प्रयोग किया जाता है।
प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं / साइड इफेक्ट्स: हाइपोटेंशन, फ्लशिंग, उच्च रक्तचाप, ब्राडीकार्डिया, और दिल की विफलता; , हेपेटाइटिस, मतली, उल्टी; गुर्दे की विफलता, हेमट्यूरिया त्वचा: दाने (दाने के पहले संकेत पर दवा बंद कर देना), अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाएं।
वयस्क और बच्चे (10 साल) : शुरू में 100 मिलीग्राम / दिन। दवा की स्ट्रेंग्थ यूरिक एसिड की मात्रा के अनुसार साप्ताहिक अंतराल पर बढ़ाया जा सकता है।
ज़ाइलोरिक के घटक Composition of Zyloric tablet
एलोप्यूरिनॉल Allopurinol
ज़ाइलोरिक के चिकित्सीय उपयोग Uses of Zyloric tablet
ज़ाइलोरिक को पेशाब में यूरेट की सांद्रता को कम करने और यूरिक एसिड के जमाव को रोकने या रिवर्स किया जाता है।
यह दवा यूरिक एसिड के जमाव के कारण होने वाले लक्षणों को कम करने के लिए दी जाती है जैसे की इडियोपैथिक गाउट, यूरिक एसिड लिथियसिस; तीव्र यूरिक एसिड नेफ्रोपैथी; नियोप्लास्टिक रोग आदि।
ज़ाइलोरिक को 2,8 डायहाइड्रोक्सीडेडेनिन (2,8-डीएचए) किडनी की पथरी जो की एडिनिन फॉस्फोरीबोसेसिलट्रांसफेरेज की कमी से संबंधित है, के प्रबंधन के लिए भी दिया गया है।
गाउट, रक्त में यूरिक एसिड के उच्च स्तर के कारण होता है। यदि रक्त में बहुत अधिक यूरिक एसिड मौजूद है, तो इसमें से कुछ अक्सर जोड़ों में सुई की तरह क्रिस्टल बन सकते हैं। शरीर इनसे लड़ने की कोशिश करता है, जो दर्द और सूजन का कारण बनता है। गाउट सभी प्रकार के लोगों को प्रभावित करता है अधिकतर यह एक वंशानुगत दिक्कत है।
आपके रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा को नियंत्रित करने, क्रिस्टल बनना रोकने के लिए, और दर्द और सूजन से बबचने के लिए यह ज़रूरी है यूरिक एसिड का स्तर रक्त में कम हो।
ज़ाइलोरिक के सेवन के 2-6 सप्ताह के बाद से गाउट में इम्प्रूवमेंट दिख सकता है।
डॉक्टर यूरिक एसिड स्तर कम होने तक सहायता के लिए अतिरिक्त दवाइयों को दे सकते हैं।
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Zyloric tablet
नोट: यह प्रिस्क्रिप्शन ड्रग है।
एक गोली प्रतिदिन लें।
प्रत्येक दिन एक ही समय में पर टेबलेट लेने का प्रयास करें।
इसे पानी के साथ लें।
खाली पेट न लें। इसे भोजन करने के बाद लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
दवाइयों को बच्चों की पहुंच से बाहर रखें।
ठीक से उपयोग नहीं किए जाने पर दवाएं हानि पहुंचा सकती हैं।
कुछ मामलों में अप्रत्याशित त्वचा की प्रतिक्रिया, जैसे दाने निकलना आदि हो सकते हैं।
दवा की ओवरडोज़ से मतली, उलटी, चक्कर आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
दवा के प्रति इन्टोलेरेंस छोड़ कर इसका कोई अन्य कॉण्ट्राइंडिकेशन नहीं है।
किडनी के सही फंक्शन न होने पर, इसे लेने में सावधानी रखनी चाहिए।
गर्भावस्था में इसकी सेफ्टी का कोई पर्याप्त प्रमाण नहीं है, हालांकि इसे बहुत वर्षों से गर्भवस्था के दौरान प्रयोग किया जाता रहा है। गर्भावस्था में जीलोरिक का प्रयोग तभी किया जाता है जबकि कोई भी अन्य सुरक्षित विकल्प न हो और बीमारी माँ या बच्चे के लिए जोखिम रखती है।
एलोप्यूरिनॉल का दुष्प्रभाव हो सकता है अपने डॉक्टर से संपर्क करें यदि इनमें से कोई लक्षण गंभीर हैं या दूर नहीं हो रहे हैं:
पेट की ख़राबी
दस्त
बेहोशी
निम्नलिखित लक्षण असामान्य हैं, लेकिन यदि आप उनमें से किसी एक का अनुभव करते हैं, तो तुरंत अपने चिकित्सक को संपर्क करें:
त्वचा के लाल चकत्ते
मूत्र करने में दर्द
मूत्र में रक्त
आँखों की जलन
होंठ या मुँह की सूजन
बुखार, गले में खराश, ठंड लगना, और संक्रमण के अन्य लक्षण
भूख में कमी
अप्रत्याशित वजन घटाने
खुजली
एलोप्यूरिनॉल का सेवन अन्य दुष्प्रभावों का कारण हो सकता है इसलिए दवा को लेते समय यदि कोई असामान्य समस्या है, तो अपने चिकित्सक को संपर्क करें।
त्रिफला घृत एक आयुर्वेदिक घी है जिसमें मुख्य घटक त्रिफला और गोघृत है। त्रिफला का काढ़ा और पेस्ट (कल्क) दोनों ही इस घृत कल्पना में प्रयुक्त हैं। इसके सेवन से बल और ओज की वृद्धि होती है।
त्रिफला घृत के सेवन से आंख की ज्योति बढ़ती है तथा नेत्र रोगों जैसे की रात को न दिखाई देना, आँखों की लाली, आँखों में सूखापन, आंखों से पानी बहना, खुजली होना, आदि विकार दूर होते हैं। इसमें घी होने से आंतरिक रूक्षता दूर होती है और स्निग्धता आती है। त्रिफला और घी दोनों के ही प्रभाव से पेट साफ रहता है। त्रिफला घृत का सेवन बालों को भी मजबूती देता है जिससे बालों के गिरने और खालित्य में लाभ होता है।
आंतरिक प्रयोग के अतिरिक्त त्रिफला घृत को पंचकर्म प्रक्रिया की तैयारी के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसे आँखों में लगाया भी जाता है।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Triphala Ghrita is an herbal Ayurvedic medicated Ghee containing Triphala and Ghee as the main ingredients. It is mainly indicated in all diseases of eyes. It pacifies aggravated Vata and Pitta and cures internal dryness.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
पर्याय: Triphala Ghee, Triphala Ghritam
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक घी
मुख्य उपयोग: नेत्र रोग
मुख्य गुण: दृष्टि को ठीक करना, बलवर्धक, ओजवर्धक
त्रिफला घृत के घटक Ingredients of Triphala Ghrita
हरीतकी Haritaki (P.) 12 g
बिभितकी Bibhitaka (P.) 12 g
आमलकी Amalaki (P.) 12 g
सोंठ Shunthi (Rz.) 12 g
काली मिर्च Maricha (Fr.) 12 g
पिप्पली Pippali (Fr.) 12 g
द्राक्षा Draksha (Dr.Fr.) 12 g
मुलेठी Madhuka (Yashti) (Rt.) 12 g
कटुका Katurohini (Katuka) (Rt./Rz.) 12 g
प्रौपौंड्रिक Prapaundarika (Fl.) 12 g
छोटी इलाइची Sukshmaila (Sd.) 12 g
विडंग Vidanga (Fr.) 12 g
नागकेशर Nagakeshara (Stmn.) 12 g
नीलोत्पला Nilotpala (Utpala) (Fl.) 12 g
श्वेत सरीवा Sveta Sariva (Rt.) 12 g
कृष्ण सरीवा Krishna Sariva (Rt.) 12 g
सफ़ेद चन्दन Chandana (Shveta Chandana) (Ht.Wd.) 12 g
हल्दी Haridra (Rz.) 12 g
दारुहल्दी Daruharidra (St.) 12 g
घी Ghrita (Goghrita) 768 g
पायस Payasa (Godugdha) 768 g
त्रिफला काढ़ा Triphala rasa kvatha ( P.) 2.304 l
त्रिफला तीन प्राकृतिक जड़ी बूटियों (आवला, हरड और बहेड़ा) का एक कॉम्बिनेशन है। इसके सेवन से immunity बढती है तथा पाचन ठीक रहता है। यह रसायन होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छा विरेचक, दस्तावर भी है। इसके सेवन से पेट सही से साफ़ होता है, शरीर से गंदगी दूर होती है और पाचन सही होता है। यह पित्त और कफ दोनों ही रोगों में लाभप्रद है। त्रिफला प्रमेह, कब्ज़, और अधिक पित्त नाशक है। यह पूरे शरीर को साफ़ करता है और फर्टिलिटी को बढाता है।
त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है।
द्राक्षा सूखे हुए अंगूर को कहते है। यह बहुत पौष्टिक, मीठे, विरेचक, रक्तवर्धक , कूलिंग और कफ ढीला करने वाले होते हैं । आयुर्वेद में मुख्य रूप से इन्हें खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया, पीलिया, प्यास, शरीर, खांसी, स्वर बैठना और सामान्य दुर्बलता आदि को दूरकरने के लिए प्रयोग किया जाता है। द्राक्षा को आँखों और आवाज़ के लिए अच्छा माना गया है। यह शरीर में वायु और पित्त को कम करते हैं। यह तासीर में ठन्डे होते हैं और शरीर में पित्त की अधिकता से होने वाले रोगों जैसे की हाथ-पैर में जलन, नाक से खून गिरना, आदि में विशेष रूप से फायदेमंद हैं। द्राक्षा में कब्ज़, अग्निमांद्य, अधिक प्यास लगना, पेट में दर्द, खून की कमी, और वातरक्त को भी नष्ट करने के गुण हैं।
मुलेठी को आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसे खांसी, गले में खराश, सांस की समस्याओं, पेट दर्द औरअम्लपित्त आदि में उपयोग किया जाता है। यह खांसी, अल्सर, के उपचार में और बाहरी रूप से भी त्वचा और बालों के लिए उपयोग किया जाता है।
मुलेठी का सेवन उच्च रक्तचाप, द्रव प्रतिधारण, मधुमेह और कुछ अन्य स्थितियों में नहीं किया जाना चाहिए।
कटुकी एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, और एंटीडायबिटिक है। यह स्वाद में कड़वी किन्तु सूजन को दूर करने वाली औषध है। कटुकी रस में कटु-तिक्त है। गुण में लघु है। तासीर में यह शीतल और कटु विपाक है। कर्म में यह ज्वरघ्न, पित्तहर, भेदी, दीपन और रक्तदोषहर है।
कटुकी का सेवन गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए।
इला / इलायची, के बीज त्रिदोषहर, पाचक, वातहर, पोषक, विरेचक और कफ को ढीला करने वाला है। यह मूत्रवर्धक है और मूत्र विकारों में राहत देता है। इलाइची के बीज अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गले के विकार, बवासीर, गैस, उल्टी, पाचन विकार और खाँसी में उपयोगी होते हैं।
गो घृत, देसी गाय के दूध से तैयार घी है। आयुर्वेद में इसे एक उत्तम औषध माना गया है। गो घृत मधुर, शीतल, स्निग्ध, गुरु (पचने में भारी) है। यह वात-पित्त शामक, सूक्ष्म स्रोतगामी, योगवाही, रासयान है। यह एक स्नेह द्रव्य है जो की रूक्षता को दूर करता है। यह जिन औषधीय द्रव्यों के साथ मिला कर लिया जाता है उनकी स्रोतों में पहुँचने में मदद करता है। घृत के सेवन से आंतरिक रूक्षता दूर होती है और बल वृद्धि होती है।
त्रिफला घृत के लाभ/फ़ायदे Benefits of Triphala Ghrita
यह एक आयुर्वेदिक घृत या घी है। इसके सेवन से शरीर में ताकत आती है।
यह पौष्टिक होने के साथ-साथ शरीर के भीतर की रूक्षता को दूर करता है और कब्ज़ से राहत देता है।
यह पाचक है और बस्ती को शुद्ध करता है।
यह धातुक्षीणता को दूर करता है और शरीर को सबल बनता है।
यह वज़न, कान्ति, और पाचन को बढ़ाता है।
यह दिमाग, नसों, मांस, आँखों, मलाशय आदि को शक्ति प्रदान करता है।
यह धातुओं को पुष्ट करता है।
यह पित्त विकार को दूर करता है।
यह बालों को मजबूती देता है और उनका असमय सफ़ेद होना और गिरना रोकता है।
त्रिफला घृत के चिकित्सीय उपयोग Uses of Triphala Ghrita
त्रिफला घृत को सम्पूर्ण नेत्ररोगों को मष्ट करने वाला कहा गया हा। काश्यप आदि ऋषियों ने इस घृत से बढ़कर अन्य कोई दृष्टिप्रसाधन योग नहीं देखा अर्थात यह नेत्र के लिए अत्यंत उत्कृष्ट योग है।
तिमिर
नेत्रस्राव
कामला
अर्बुद
विसर्प
प्रदर
कंडू
रक्तस्राव
खालित्य (गंजापन)
पलित (असमय सफ़ेद होना)
बालों का गिरना
विषमज्वर
शुक्र प्रभृति रोग
नेत्र सम्बंधित सभी रोग
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Triphala Ghrita
3-6 ग्राम, दिन में एक अथवा दो बार लें।
इसे दूध, गर्म पानी के साथ लें।
इसे भोजन करने के 10 मिनट पहले लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
गर्भावस्था में इसका सेवन न करें।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
कृपया ध्यान दें, आयुर्वेदिक दवाओं की सटीक खुराक आयु, ताकत, पाचन शक्ति का रोगी, बीमारी और व्यक्तिगत दवाओं के गुणों की प्रकृति पर निर्भर करता है।
मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल में एहतियात के साथ इस दवा का उपयोग करना चाहिए।
शिशु के लिए माँ का दूध ही सबसे उत्तम है। इसका कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता। यह ताज़ा, शुद्ध, जीवाणु-कीटाणु रहित, स्वास्थ्यवर्धक व पौष्टिक होता है। माँ के दूध में 1.5 % प्रोटीन, 7% कार्बोहायड्रेट, 3.5% वसा, 0.2% लवण और करीब 89% पानी होता है। यह शिशु को ताकत देता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। प्रसूति के बाद यह महिला को गर्भावस्था में बढ़े हुए वज़न को भी कम करने में मदद करता है।
नवजात शिशु में पाचनतन्त्र बहुत नाजुक होता है और उसमें अभी भी विकास चल ही रहा होता है। माँ का दूध, बच्चे के पाचन के अनुसार ही होता है और आसानी से पच जाता है। इस दूध में बहुत से पोषक तत्व होते हैं जो की पशुओं के दूध और फार्मूला मिल्क में नहीं होते। इसके अतिरिक्त यह शरीर के तापमान पर होता है और बच्चे के सीधे मुंह में जाता है। बच्चा अपनी भूख के अनुसार यह दूध पी लेता है और फिर सो जाता है। सोते समय बच्चे की शक्ति बचती है और उसमें अन्य विकास जारी रहते हैं।
कुछ मामलों में यह देखा जाता है कि डिलीवरी के बाद माता के स्तनों में दूध नहीं उतरता या अपर्याप्त मात्रा में उतरता है। दूध न मिलने से बच्चा भूखा रहता है और रोता रहता है। बाहरी दूध देने से बच्चे में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
प्रसुताओं में दूध की कमी के कारण
नई माता में दूध कम मात्रा में बनने के कई कारण हैं। उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
कमजोरी
खून की कमी
हॉर्मोन की कमी
होर्मोन कॉण्ट्रासेप्टिव का प्रयोग
बार-बार दूध न पिलाना
तनाव, दुखी रहना
ब्रेस्ट सर्जरी
कोल्ड-फ्लू, तथा अन्य दवाओं का सेवन
थाइरोइड लेवल कम या ज्यादा होना
बहुत क्रोध करना
वात्सल्य की कमी
उपवास करना
दुग्धवर्धन के लिए घरेलू उपचार Home Remedies
यदि माता को ऐसा लगे की दूध की मात्रा कम है तो उसे खाने-पीने और हर्बल औषधियों के माध्यम से दूध के उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। जितनी बार हो सके बच्चे को दूध पिलाना चाहिए जिससे दूध बनना स्टीमुलेट हो सके। निपप्ल्स को साफ़ रखना चाहिए और बच्चे को ठीक से गोदी में लेकर बैठ कर दूध पिलाना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए बच्चा दिन में कई बार पेशाब करे और ठीक मोशन करे। नीचे कुछ घरेलू उपचार दिए गए हैं जो की दूध की मात्रा बढ़ाने में उपयोगी हैं।
शतावरी का चूर्ण, 1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम गर्म दूध में चीनी मिलाकर सेवन करें।
जीरे का चूर्ण ground cumin seeds in grinder to make a powder बनाकर रख लें और दिन में दो-तीन बार एक टी स्पून की मात्रा में खाएं और पानी पी लें।
सौंफ चबा कर खाएं।
सौंफ + जीरा + मिश्री, को अलग-अलग पीस का चूर्ण बना ले। इसे बराबर मात्रा में मिलें और दिन में दो बार, सुबह और शाम एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ दें।
मेथी दाना को अंकुरित करके खाएं या पीस कर चूर्ण बना लें और दूध में एक चम्मच मिलाकर पिए। ऐसा दिन में तीन बार करें।
तिल को अच्छी तरह चबाकर एक चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें।
चुकंदर, पका पपीता, गाजर, अंगूर, अनार, उरद आदि का सेवन करें।
दूध पियें और मेवे खाएं।
दूध में सोंठ डाल आकर उबाल लें और पियें।
किशमिश को दूध में उबाल कर खाएं।
बच्चा जब भी भूख से रोये उसे दूध पिलायें जिससे ब्रेस्ट खाली हो जाएँ जिससे और दूध बने।
लहसुन, जीरा, सिंघाड़ा, सुंफ़सौंफ आदि को भोजन में शामिल करें।
पानी सही मात्रा में पियें।
पौष्टिक भोजन करें।
दूध पिलाने से पहले ब्रेस्ट पर गर्म सेंक करें जिससे खून का दौरा ठीक हो।
कैस्टर आयल से ब्रेस्ट मसाज करें।
माँ का दूध बढ़ाने में उपयोगी आयुर्वेदिक दवाएं
Galakol Granules by Charak
Lactin by SAS Pharma
Lactoplus Granules by Abhinav Health care
Satavarex by Zandu
सभी महिलायों को प्रसूति के बाद अपने बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। बच्चे के लिए माँ के दूध से बढ़िया कोई भी आहार नहीं है। शुरुवाती छः महीने में तो माँ का दूध ही बच्चे के लिए पूरा आहार है। यह न केवल बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रखता है, अच्छी ग्रोथ में मदद करता है अपितु माँ में शिशु के प्रति वात्सल्य भी बढ़ाता है। किसी भी माँ को अपने बच्चे को दूध पिलाने में संकोच नहीं करना चाहिए। यह बच्चे का अधिकार है और माँ का कर्तव्य। महिला को यह भाव कभी नहीं लाना चाहिए की इससे उसके स्तनों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा अथवा उसका टाइम वेस्ट होगा। महिला को मन में कोई भी ऐसी धारणा नहीं रखनी चाहिए और यदि दूध कम भी उतरता हो तो भी चेष्टा जारी रखनी चाहिए क्योंकि बच्चे के चूसने से ही और दूध का स्राव होता है। चेष्टा छोड़ देने पर स्तन में दूध आना बंद हो जाता है। यह ध्यान रखें, बच्चे के लिए माँ का दूध अमृत है और सही शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
मेदोहर गुग्गुल वजन कम करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा है। यह दवा आयुर्वेद की एक क्लासिकल दवाई है इसलिए कई फार्मसियों द्वारा निर्मित है। मेदोहर गुग्गुलु एक एंटीओबेसिटी फार्मूला है जिसमें प्रयुक्त द्रव्य शरीर में वसा के जमाव को कम करते हैं, आमदोष दूर करते हैं, भूख-पाचन और मेटाबोलिज्म में सुधार करते हैं और वज़न को कम करते हैं।
पतंजलि दिव्य फार्मेसी द्वारा निर्मित वज़न कम करने की दवा, दिव्य मेदोहर वटी बाज़ार में उपलब्ध है जिसका फार्मूलेशन मेदोहर गुग्गुलु से बिलकुल अलग है। मेदोहर गुग्गुलु और मेदोहर वटी बिलकुल भिन्न हैं।
मेदोहर गुग्गुल, शरीर में मेद धातु को कम करती है या उसे हरती है, इसलिए यह मेदोहर है। मेद धातु, शरीर के लिए आवश्यक है तथा धारण और पोषण का कार्य करती है। अधिकता में चर्वी अनावश्यक रूप से स्थित मेद-धातु का ही विकृत रूप है। किसी व्यक्ति में मेद-धातु की वृद्धि ही मोटापा है।
मोटापे के कई महत्वपूर्ण कारण हैं जैसे की पाचन तंत्र की खराबी, थायराइड की समस्या, hormonal असंतुलन, आनुवंशिकी, धीमा चयापचय, PCOD, निष्क्रिय जीवन शैली और अधिक वसा वाला खाना, भोजन की आदतें आदि। मोटापा या अधिक वजन बहुत से अन्य रोगों का कारण है। ये मधुमेह, उच्च रक्तचाप, बांझपन, हृदय, संचार की समस्याओं, आदि होने के रिस्क को बढाता है।
मेदोहर गुग्गुलु बढे हुए वजन को कम करने में मदद करती है। इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Medohar Guggul is a useful medicine to treat obesity and hyperlipaemia. Hyperlipaemia is condition of an abnormally high concentration of fats or lipids in the blood.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
मेदोहर गुग्गुलु को त्रिकटु, त्रिफला, चित्रकमूल, नागरमोथा, विडंग और गुग्गुल को एरण्ड तेल की भावना देकर बनाया जाता है। बाज़ार में उपलब्ध ज्यादातर ब्रांड की मेदोहर गुग्गुल के यही घटक हैं। लेकिन हर गोली में जड़ी-बूटियों की मात्रा अलग हो सकती है।
कुछ फार्मसी गुग्गुल की मात्रा ज्यादा रखती हैं और कुछ कम। कुछ तो शुद्ध गुग्गुल की जगह अन्य किसी पेड़ की गोंद का भी प्रयोग कर रही हैं। यह एक गुग्गुल प्रधान औषध है इसलिए लेबल पर गुग्गुल की प्रयुक्त मात्रा अवश्य देख लें।
श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन, एक बहुत ही जानी-मानी और पुरानी आयुर्वेदिक फार्मसी है। इसके द्वारा निर्मित मेदोहर गुग्गुल में शुद्ध गुग्गुलु की मात्रा करीब 36 प्रतिशत है।
नीचे बैद्यनाथ मेदोहर गुग्गुलु में प्रयुक्त जड़ी-बूटियाँ दी गयीं हैं:
मेदोहर गुग्गुलु जाने दवा में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों को
गुग्गुल एक पेड़ से प्राप्त गोंद है। यह मुख्य रूप से शरीर से किसी भी प्रकार की सूजन को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में यह आर्थराइटिस, गाउट, रुमेटिस्म, लम्बागो, तथा सूजन को दूर करने में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख औषध है। यह मेदोहर antiobesity है। गुग्गुलु किसी भी वज़न कम करने की दवा का प्रमुख घटक है। यह शरीर से वसा को कम करती है। यह शरीर में कोलेस्ट्रोल के संश्लेषण को कम करती है। यह सीरम ट्राइग्लिसराइड, बुरे कोलेस्ट्रोल, और मेद को कम करती है।यह मेटाबोलिज्म में सुधार करती है और अतिरिक्त वज़न को कम करने में सहायक है।
गुग्गुल को सदियों से आयुर्वेद में विभिन्न बिमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसमें प्रमुख है जोड़ों का दर्द, गठिया, मोटापे में एक वजन कम करने के लिए और रक्त वाहिकाओं के सख्त होना आदि। गुग्गुलु में शांतिदायक demulcent, मल को ढीला करनेवाले aperient, रक्त को साफ़ करनेवाले purifier of blood, वसा कम करनेवाले, सूजन घटाने के और कोलेस्ट्रॉल कम करने के गुण होते है।
त्रिकटु चूर्ण, को तीन (त्रि) कटु पिप्पली long pepper, काली मिर्च Black pepper और सोंठ dry ginger बराबर मात्रा में मिला कर बनाया जाता है। त्रिकटु पाचन और श्वास सम्बन्धी समस्याओं में लाभकारी है।
अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।
शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।
मरिच या मरिचा, काली मिर्च को कहते हैं। इसके अन्य नाम ब्लैक पेपर, गोल मिर्च आदि हैं। यह एक पौधे से प्राप्त बिना पके फल हैं। यह स्वाद में कटु, गुण में गर्म और कटु विपाक है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।
पिप्पली, उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।
त्रिकटु या त्रिकुटा के तीनो ही घटक आम पाचक हैं अर्थात यह आम दोष का पाचन कर शरीर में इसकी विषैली मात्रा को कम करते हैं। आमदोष, पाचन की कमजोरी के कारण शरीर में बिना पचे खाने की सडन से बनने वाले विषैले तत्व है। आम दोष अनेकों रोगों का कारण है। यह मेटाबोलिज्म metabolism को बढ़ाता है जिससे वज़न कम करने में सहयोग होता है।
अधिक मात्रा में त्रिकटु का सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है। त्रिकटु का सेवन गर्भावस्था में न करें।
त्रिफला (फलत्रिक, वरा) आयुर्वेद का सुप्रसिद्ध रसायन है। यह आंवला, हर्र, बहेड़ा को बराबर मात्रा में मिलाकर बनता है। यह रसायन होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छा विरेचक, दस्तावर भी है। इसके सेवन से पेट सही से साफ़ होता है, शरीर से गंदगी दूर होती है और पाचन सही होता है। यह पित्त और कफ दोनों ही रोगों में लाभप्रद है। त्रिफला प्रमेह, कब्ज़, और अधिक पित्त नाशक है। यह मेदोहर और कुछ दिन के नियमित सेवन से वज़न को कम करने में सहायक है। यह शरीर से अतिरिक्त चर्भी को दूर करती है और आँतों की सही से सफाई करती है।
हरीतकी Terminalia chebula आयुर्वेद की रसायन औषधि है। यह पेट रोगों में प्रयोग की जाने वाली सबसे प्रभावी औषध है। संस्कृत में हरड़ को हरीतकी, हर्रे, हर्र, अभया, विजया, पथ्या, पूतना, अमृता, हैमवती, चेतकी, विजया, जीवंती और रोहिणी आदि नामों से जानते हैं। यूनानी में इसे हलीला कहते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, हरीतकी में पांचो रस मधुर, तीखा, कडुवा, कसैला, और खट्टा पाए जाते हैं। गुण में यह लघु, रुक्ष, वीर्य में उष्ण और मधुर विपाक है। हरीतकी, विषाक्त पदार्थों को शरीर से निकलती है व अधिक वात को काम करती है। यह विरेचक laxative, कषाय astringent, और रसायन tonic है। यह सूजन को दूर करती है। यह मूत्रल और दस्तावर है। यह अफारे को दूर करती है और पेट के कीड़ों को भी नष्ट करती है।
बहेड़ा या विभीतक, बिभीतकी (Terminalia bellirica) रस में मधुर, कसैला, गुण में हल्का, रूक्ष, प्रकृति में गर्म, और मधुर विपाक है। यह त्रिदोषनाशक, धातुवर्द्धक, वीर्यवर्धक, पोषक, रक्तस्तम्भक, दर्द को शांत करने वाला तथा कब्ज में लाभकारी है। बहेड़े में टैनिन में पाए जाते हैं तथा यह रक्त को बहने से रोकता है। यह रस, रक्त, मांस और मेद से उत्पन्न विकारों और दोषों को दूर करता है। यह पित्त और कफ को संतुलित करता है।
बहेड़े का सेवन मन्दाग्नि, प्यास, वमन, अर्श, कृमि, खांसी-जुखाम, सांस फूलना, आवाज़ बैठना, आदि में लाभकारी है। यह मेद धातु पर तेज़ी से प्रभाव डालता है।
आंवला, ठंडक देने वाला, कसैला, पाचक, विरेचक, भूख बढ़ाने वाले और कामोद्दीपक माना गया है। इसमें ज्वरनाशक, सूजन दूर करने के और मूत्रवर्धक गुण है। आंवला एक रसायन है जो की शरीर में बल बढाता है और आयु की वृद्धि करता है। यह शरीर में इम्युनिटी boosts immunity को बढाता है। यह विटामिन सी vitamin C का उत्कृष्ट स्रोत है। इसके सेवन से बाल काले रहते है, वात, पित्त और कफ नष्ट होते है और शरीर में अधिक गर्मी का नाश होता है।
चित्रक मूल Plumbago zeylanica roots वातशामक, कफनाशक, पित्तवर्धक, आमपाचन, रक्तशोधक, और लेखनीय है।
चित्रक का अधिक मात्रा में उपयोग नहीं करना चाहिए। यह स्वभाव से बहुत उष्ण है। इसे गर्भवस्था में कभी भी प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। पित्त प्रकृति के लोगों, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, नाक से खून गिरना, पीरियड में अधिक ब्लीडिंग होना, गर्भाशय से असामान्य खून जाना, आदि में चित्रक का प्रयोग नहीं करना चाहिए. इसे कोमल प्रकृति के लोगों में बहुत ही सावधानी से प्रयोग करना चाहिए.
नागरमोथा (वानस्पतिक नाम साइप्रस स्केरियस Cyperus scariosus) एक पौधा है जो पूरे भारत में खरपतवार के रूप में उगता है। संस्कृत में इसे नागरमुस्तक या भद्र मुस्तक कहते हैं। इसके पौधे अधिक पानी वाली जगहों पर पाए जाते हैं। इसकी जड़ें कन्द है। यह सुगंधित होती हैऔर इत्र बनाने और अरोमाथेरेपी में प्रयोग होती हैं। कंदों में ज्वरघ्न, मूत्रवर्धक, रोगाणुरोधी, रक्तचाप को कम करने, सूजन दूर करने और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करने के गुण हैं। कन्द रस (स्वाद) में कड़वे, तीखे, कैसैले, गुण में लघु, रूक्ष, और विपाक में कटु है। यह ग्राही (शोषक), दीपन, पाचन, और कृमिघ्न है।
वायविडंग Embelia Ribes कृमि रोग, मेदवृद्धि तथा कफ रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है। यह अनुलोमन, एंटीबैक्टीरियल, कृमिनाशक, और एंटीबायोटिक है। यह आयुर्वेद में पेट के कीड़ों के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रमुख वनस्पति है। यह पेट के सभी रोगों, कब्ज़, अफारा, अपच, पाइल्स आदि में उपयोगी है।
एरंड का तेल या केस्टर आयल एक वनस्पति तेल है जिसे अरंडी/रेंड castor seeds से निकाला जाता है। इसमें कोई गंध और स्वाद नहीं होता। अरंडी का तेल एक विरेचक laxative है और कब्ज constipation के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका गर्भावस्था में इसका उपयोग लेबर/ प्रसव को शुरू करा सकता है। Its use in pregnancy can induce labour pain।
मेदोहर गुग्गुलु के मुख्य गुणधर्म Qualities of Medohar Guggulu
कफहर: द्रव्य जो कफदोष निवारक हो।
वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
मेदोहर: मोटापे को दूर करना।
कृमिघ्न: पेट के कीड़ों को नष्ट करना।
भेदनीय: दस्तावर और शरीर में जमाव को दूर करना।
लेखन: शरीर से विजातीय – विषैले पदार्थों को दूर करना।
मेदोहर गुग्गुलु के लाभ/फ़ायदे Medohar Guggul Benefits
यह दवाई Metabolism को सही करती है।
यह दवाई पाचन को सही कर, फैट को कम करने में मदद करती है।
यह दवाई रक्त परिसंचरण में सुधार करती है।
यह दवाई कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लिसराइड, और लिपिड लेवल को कम करती है।
यह दवाई कृमिनाशक है।
यह मेदोहर है।
यह शरीर से चर्बी कम करती है।
पेट पर चर्बी के अतिरिक्त यह मधुमेह, घुटने के दर्द, फैटी यकृत, उच्च कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड लेवल में लाभप्रद है।
मेदोहर गुग्गुलु के चिकित्सीय उपयोग Uses of Medohar Guggul
मोटापा / स्थौल्य / शरीर का भारीपन Obesity or For weight loss
पेट पर चर्बी abdominal fat
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Medohar Guggul
इस दवा की 500mg से 1000mg की मात्रा दिन में दो अथवा तीन बार अपने वज़न को कम करने अनुसार ले सकते हैं।
ज्यादातर लोगों को इसकी 2 गोली दिन में सुबह नाश्ते के बाद और रात के भोजन के बाद लेनी चाहिए।
एक दिन में इसकी अधिकतम ली जा सकने वाली मात्रा 6 ग्राम है।
इस दवा को गर्म पानी के साथ लेना चाहिए तथा उपचार के समय हो सके तो गर्म पानी का ही सेवन करें। इसे चबा कर लिया जाए तो ज्यादा उचित है।
इस दवा को खाना खाने से आधा घंटा पहले या भोजन करने के एक घंटे बाद गर्म पानी से लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
दवा की सटीक मात्रा व्यक्ति के पाचन, उम्र, वज़न और स्वास्थ्य को देख कर ही तय की जा सकती है।
दवा के साथ-साथ भोजन और व्यायाम पर भी ध्यान दें।
पानी ज्यादा मात्रा में पियें।
पीने के लिए हल्का गर्म पानी लें।
खाने में सलाद ज़रूर लें।
घी, मिठाई, चीनी, जंक फ़ूड, केक, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक, मैदे से बने भोज्य पदार्थ न खाएं।
यह दवा बारह साल से छोटे बच्चों को न दें।
गर्भावस्था में इसका प्रयोग न करें।
महिलायें जो बच्चे के लिए प्लान कर planning for conception रही हों वे इसका सेवन न करें। क्योंकि इसमें कई उष्ण वीर्य, लेखन, भेदन जड़ीबूटियाँ है।
यदि मासिक periods में इसके सेवन से ज्यादा ब्लीडिंग लगे तो इसका सेवन कुछ दिनों के लये बंद कर दें।
इस दवा में विरेचक laxative गुण हैं।
अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन कर सकता है।
यह दवा कुछ महीनों तक प्रयोग की जा सकती है।
अच्छे प्रभाव के लिए दवा के साथ-साथ जीवन शैली में भी परिवर्तन करें।
डायबिटीज हो तो इसके सेवन के दौरान रक्त शर्करा के स्तर को बराबर जांचते रहें।
गुग्गुलु के सेवन के समय खट्टे – तीक्ष्ण पदार्थों और अल्कोहल का सेवन न करें।
यह एक दवा है, इससे तुरंत जादुई असर नहीं होगा। दवा के साथ साथ खाने-पीने पर नियंत्रण और व्यायाम आवश्यक है। वज़न कितना ज्यादा है और कितने समय से है, खान -पान क्या, लाइफस्टाइल कैसी है, ये सभी फैक्टर दवा के परिणाम को प्रभावित करते हैं। धैर्य से सभी चीजों पर ध्यान दें, लाभ अवश्य होगा।
मेदोहर गुग्गुलु के बारे में पूछे जाने वाले कुछ सामान्य प्रश्न
1- क्या मेदोहर गुग्गुलु के साथ त्रिफला गुग्गुलु, और वृक्षमला आदि लिए जा सकते हैं।
मेदोहर गुग्गुल को त्रिफला गुग्गुलु के साथ भी लिया जा सकता है। क्योंकि दोनों में ही त्रिफला और गुग्गुल है इसलिए दवा की मात्रा एडजस्ट करनी पड़ेगी। दोनों की एक-एक गोली (500mg) को दिन में दो बार लिया जा सकता है।
वृक्षमला के सेवन से भूख लगना कम होता है और अधिक मोटे लोगों में यह वसा को भी कम करता है।
2- मेदोहर गुग्गुल के लिए सही अनुपान क्या है?
इसे गर्म पानी के साथ लिया जाना चाहिए। इसे त्रिफला के काढ़े के साथ भी ले सकते हैं। गर्म पानी से दवा के अवशोषण में सहायता मिलती है।
3- यदि यह दवा मेरे लिए काम नहीं कर रही है तो मैं क्या कर सकता हूं?
दवा को शुरू करने से पहले अपना वज़न अवश्य नाप लें। एक-दो महीने बाद फिर वज़न करें। यदि संतुलित भोजन रहें हैं, बहुत अधिक मात्रा में भोजन नहीं कर रहे,जंक फ़ूड-कोल्ड ड्रिंक, पिज़्ज़ा, बर्गर, आलू, चिप्स नहीं खा रहे और व्यायाम भी नियमित कर रहे हैं, लेकिन वज़न कम नहीं हुआ तो आप दूसरी फार्मसी के यही दवा प्रयोग करके देखें। यदि फिर भी लाभ नहीं हो पाए तो यह दवा न लें।
4- क्या यह दवा सभी में समान परिणाम देती हैं?
नहीं, दवा का प्रभाव और परिणाम बहुत सी बातों पर निर्भर है। इसलिए जो लोग भी इसे ले रहें हैं सबमे एक जैसा वज़न कम हो या समान परिणाम मिलें, ऐसा ज़रूरी नहीं है।
5- दिन में कितनी बार यह दवा लूं?
यह दवा दिन में तीन बार या दो बार ली जा सकती है। जैसे एक गोली दिन में तीन बार खाने के बाद अथवा दो गोली, सुबह और रात के खाने के बाद। एक दिन में तीन ग्राम तक की मात्रा, ज्यादतर वयस्कों के लिए सुरक्षित है। हर गोली की स्ट्रेंग्थ दवा के लेबल पर लिखी होती है।
6- क्या मेदोहर गुग्गुल को बंद करने के बाद वजन वापस आ जाएगा?
यदि आप उच्च वसा युक्त भोजन, पराठे, पिज़्ज़ा, बर्गर, चिप्स, फ्रेंच फ्राइज, तली भोज्य पदार्थ, चाट आदि अक्सर खा लेते हैं, तो वज़न फिर से बढ़ जाएगा। लेकिन यदि आप डाइट पर कण्ट्रोल रखते हुए नियमित व्यायाम, चलना-घूमना, स्विमिंग आदि करते हैं तो आपका वज़न दवा न खाने पर भी ठीक बना रहेगा।
7- क्या यह दवा बच्चों को दे सकते हैं?
नहीं, एंटी-ओबेसिटी दवाएं बच्चों को न ही दें तो बेहतर है। बच्चे बहुत कोमल होते हैं. उनमे लगातार शारीरिक और मानसिक विकास चल रहा होता है. इसलिए कोई भी दवा बच्चों को डॉक्टर के निर्देश के बिना न दें।
8- क्या यह दवा गर्भावस्था के दौरान खा सकते हैं?
बिलकुल नहीं। इस दवा में में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों की तासीर उष्ण है जिससे यह शरीर में गर्मी बढ़ा देती है। आयुर्वेद में तासीर से गर्म भोज्य पदार्थों का सेवन दवा रूप में करने का निषेध है।
9- क्या दूध पिलाने वाली माताएं इसे ले सकती हैं?
कृपया गर्भावस्था के तुरंत बाद तेजी से वज़न घटाने का प्रयत्न न करें। बच्चा 6 महीने तक पूरी तरह माँ के दूध पर निर्भर रहता है। बच्चे को उसकी ज़रूरत के अनुसार दूध पिलायें। स्तनपान, गर्भावस्था में शरीर में संग्रहित वसा को कम करने में सहयोगी है।
बाद में डॉक्टर की सलाह लें।
10- क्या पीरियड्स के दौरान यह दवा ले सकते हैं?
यदि इसकी उष्ण प्रकृति के कारण पीरियड पर किसी भी तरह का प्रभाव लगे, जैसे ब्लीडिंग ज्यादा दिन हो, अधिक हो आदि तो इसे पीरियड्स के दौरान न लें।
11- क्या जब बच्चे के लिए प्लान कर रही हूँ तो मैं इस ले सकती हूँ?
नहीं। इसे न लें। यह हॉट पोटेंसी है और गर्भ ठहरने में दिक्कत हो सकती है।
12- क्या इसे लम्बे समय तक ले सकते हैं?
हाँ, इसे लेने का कोई भी सीरियस साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।
13- यदि इस दवा को लेने से एसिडिटी हो और सिर दर्द हो, तो क्या करें?
हो सकता है कि आप दवा को ज्यादा मात्रा में ले रहें हैं ऐसे में दवा की मात्रा को कम करके देखें। ऐसा भी हो सकता है आप पित्त प्रकृति के हों और दवा का सेवा शरीर में पित्त को और बढ़ा रहा हो। दवा की मात्रा को कम करके देखें।
14- क्या अन्य एलोपैथिक या होम्योपैथिक दवा ले रहें हैं तो इसे ले सकते है?
ले सकते हैं। पर सभी दवाएं एक साथ न लें। दवाओं को लेने में कम से कम 2-3 घंटे का गैप रखें।
15- क्या उच्च रक्तचाप की दवाओं के साथ इसे ले सकते हैं?
उच्च रक्तचाप की दवाएं खून पतला करती हैं और गुग्गुलु भी यही काम करता है। इसलिए हाइपरटेंशन, एंटीप्लेटलेट दवाएं, एस्पिरिन आदि के सेवन के साथ इसका सेवन सावधानी से डॉक्टर की सलाह पर करें।
16- क्या इसे त्रिफला के साथ ले सकते हैं?
हाँ। एक चम्मच त्रिफला को रात में भिगो लें और सुबह उबाल कर काढ़ा बना लें। इसे छान लें और दवा को इसके साथ लें। ऐसा रात सोने से पहले भी करें।
17- इस दवा के सेवन से एक महीने में कितना वज़न कम होगा?
ऐसा बता पाना मुश्किल है। ज्यादा मोटे लोगों में ज्यादा वज़न कम होने की संभावना रहती है। व्यक्ति को दवा के साथ साथ डाइट और लाइफस्टाइल में भी बदलाव लाने चाहिए जिससे अच्छे परिणाम मिलें।
18- क्या मेदोहर गुग्गुल और मेदोहर वटी एक ही दवा है?
नहीं। मेदोहर गुग्गुल और मेदोहर वटी का फार्मूला अलग है। मेदोहर गुग्गुल कई फार्मेसी बनाती हैं जबकि मेदोहर वटी दिव्य फार्मेसी की प्रोप्राइटरी दवा है। मेदोहर वटी में गुग्गुल की मात्रा कम है।
19- क्या मेदोहर गुग्गुल का सेवन भूख पर असर डालता है?
हाँ, ऐसा हो सकता है की भूख बढ़ जाए या ठीक से लगे। इसमें त्रिफला और कैस्टर आयल हैं जो पेट को साफ़ करने में मदद करते हैं। त्रिकटु दीपन-पाचन और स्रोतों को साफ़ करने वाला है। अगर भूख अधिक लगती हो तो सलाद, फल आदि अधिक खाएं। फलों के स्थान अपर जूस का प्रयोग कदापि न करें।
20- क्या यह दवा वज़न ज़रूर कम कर देगी?
नहीं ऐसा ज़रूरी नहीं है। किसी भी अन्य दवा की तरह यह आप को सूट कर भी सकती है और नहीं भी। यह वज़न कम कर भी सकती है और नहीं भी।
बाज़ार में मिलने वाली नकली दवाओं से सावधान रहें। दवा केवल जानी-मानी आयुर्वेदिक फार्मसी की और भरोसेमंद दुकान से लें। किसी भी ब्रांड की मेदोहर गुग्गुल लेने से पहले, प्रत्येक गोली की स्ट्रेंग्थ और उसमें पड़ी जड़ी-बूटियों को अवश्य देख लें। गुग्गुल की मात्रा बहुत कम होने पर अधिक प्रभाव नहीं होगा। इसके अतिरिक्त दवा की सही मात्रा लें। कम मात्रा में लेने से दवा प्रभाव नहीं करेगी।
वैश्वानर चूर्ण, एक आयुर्वेदिक औषधीय पाउडर है जिसका मुख्य घटक हरीतकी है। हरीतकी के अतिरिक्त इसमें अजमोद, यवनी, सोंठ और सेंधा नमक भी है।
भैषज्य रत्नावली में इसे बनाने के लिए हरीतकी 12 हिस्सा, सोंठ 5 हिस्सा, अजमोद 3 हिस्सा, अजवाइन 2 हिस्सा और सेंधा नमक 2 हिस्सा लेने को कहा गया है तथा इसे आमवात की चिकित्सा के लिए बताया गया है। यदि अजमोद न हो तो 5 हिस्सा अजवाइन ली जा सकती है।
अष्टांग हृद्यम में वैश्वानर चूर्ण का भिन्न फार्मूला दिया गया है। इसमें सेंधा नमक 1 भाग, अजवायन 2 भाग, अजमोद 3 भाग, पिप्पली 4 भाग, सोंठ 5 भाग और छोटी हरीतकी 15 भाग लेने को कहा गया है तथा इसके सेवन से कब्ज़ दूर होता है।
हरीतकी के होने से यह उत्तम विरेचक है और शरीर से गंदगी को दूर करता है। विरेचक गुण से यह कब्ज़ और बवासीर में लाभ करता है। इसमें अन्य वातहर द्रव्यों के होने से यह अन्य वात रोगों जैसे की आमवात, गुल्म, बस्तिरोग, प्लीहा, ग्रंथि, दर्द, बवासीर, आनाह, और हाथ और पाँव के रोग नष्ट होते हैं। यह चूर्ण वातानुलोमन है।
वैश्वानर चूर्ण को कई रोगों में प्रयोग करते हैं इसलिए इसके अनुपान भी रोग अनुसार अलग हो सकते हैं जैसे की मस्तु (दही का पानी), कांजी तक्र (छाछ), घी अथवा गर्म जल। जब बहुत अधिक गैस हो, पेट फूल रहा हो, दर्द हो, कब्ज़ हो तो इसे गर्म जल के साथ ले लें। शरीर में ड्राईनेस-कब्ज़ है तो इसे घी के साथ लें। पाचन की समस्या में इसे छाछ के साथ लिया जा सकता है।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Vaishwanara Churnam is a classical Ayurvedic medicated powder used in treatment of constipation, bloating, flatulence, impaired digestion and Amavata (Rheumatoid Arthritis). Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक हर्बल पाउडर
मुख्य उपयोग: कब्ज़, पाचन की कमजोरी
मुख्य गुण: विरेचन, दीपन, पाचन
वैश्वानर चूर्णम के घटक Vaishwanara Churnam Composition
हरड़ Haritaki Terminalia chebula 12 parts
सोंठ Shunthi Ginger Zingiber officinalis 5 parts
अजमोद Ajamoda Trachyspermum roxburghianum 3 parts
सेंधा नमक Saindhava lavana Rock salt 2 parts
अजवायन Ajwain Trachyspermum ammi 2 parts
संस्कृत में हरड़ को हरीतकी, हर्रे, हर्र, अभया, विजया, पथ्या, पूतना, अमृता, हैमवती, चेतकी, विजया, जीवंती और रोहिणी आदि नामों से जानते हैं। यूनानी में इसे हलीला कहते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, हरीतकी में पांचो रस मधुर, तीखा, कडुवा, कसैला, और खट्टा पाए जाते हैं। गुण में यह लघु, रुक्ष, वीर्य में उष्ण और मधुर विपाक है। हरीतकी, विषाक्त पदार्थों को शरीर से निकलती है व अधिक वात को काम करती है। यह विरेचक laxative, कषाय astringent, और रसायन tonic है।
सोंठ का प्रयोग आयुर्वेद में प्राचीन समय से पाचन और सांस के रोगों में किया जाता रहा है। इसमें एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उल्टी-मिचली को दूर करता है। एक शोध दिखाता है, एक दिन में करीब १ ग्राम सोंठ (दिन में कई अंतराल पर लेने से) का सेवन मोशन सिकनेस को दूर करता है।
सेंधा नमक, सैन्धव नमक, लाहौरी नमक या हैलाईट (Halite) सोडियम क्लोराइड (NaCl), यानि साधारण नमक, का क्रिस्टल पत्थर-जैसे रूप में मिलने वाला खनिज पदार्थ है। यह नमक का शुद्धतम रूप है। यह रासायनिक रूप से प्रोसेस्ड नहीं होता है। यह पोटैशियम से भरपूर होता है और पाचन में सहायक है। इसे त्रिकुटा के साथ लेने पर गैस नहीं रहती, पाचन ठीक होता है तथा हृदय को बल मिलता है।
अजवायन एक मसाला है जो की मुख्य रूप से वातहर है। इसके सेवन से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं। भूख न लगना, गैस, गठिया, पेट दर्द, खांसी, सर्दी, जिगर-तिल्ली की सख्ती आदि में इसका सेवन लाभप्रद है।
अजवायन आठ भाग में सेंधा नमक 1 भाग मिलाकर गर्म पानी के साथ लेने से पेट का दर्द, अग्निमांद्य, अपचन, अफारा, अजीर्ण, व अतिसार में लेने से फायदा मिलता है। यह विरेचक भी है और यदि रात को सोने से पहले अजवायन को गर्म पानी के साथ लिया जाए तो पेट साफ़ होता है।
अजमोद, अजवायन से अलग है। इसके पौधे अजवायन जैसे ही होते हैं लेकिन बीज अजवायन से बड़े होते है। अजमोद स्वभाव से गर्म, स्वाद में कड़वा और तीखा होता है। गुण में है रूक्ष है। यह पित्त वर्धक तथा कफ-वातहर है। पेट के सभी प्रकार के रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है। यह बवासीर, कब्ज़, वीर्य विकार और स्तम्भन शक्ति को बढ़ाने वाला है। पेट रोगों में अजमोद को अजवाइन, हरीतकी और सेंधा नमक के साथ लेने से पेट का दर्द, कब्ज़, वायु विकार, अपच, आंव गठिया का दर्द आदि दूर होते हैं।
वैश्वानर चूर्णम को घर पर कैसे बनाएं?
यह चूर्ण घर पर बनाने के लिए छोटी हरीतकी 120 ग्राम, सोंठ 50 ग्राम, अजमोद 30 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम और सेंधा नमक 20 ग्राम को अलग-अलग बारीक पीस लें।
यदि अजमोद न हो तो अजवायन 50 ग्राम की मात्रा में ले लें।
सभी को अच्छे से मिलाकर कपड़े से छान लें और एक एयरटाइट डब्बे में रख लें।
प्रधान कर्म
अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
छेदन: द्रव्य जो श्वास नलिका, फुफ्फुस, कंठ से लगे मलको बलपूर्वक निकाल दे।
वैश्वानर चूर्णम के लाभ/फ़ायदे Benefits of Vaishwanara Churnam
इसके सेवन से गुल्म, वस्तिरोग, तिल्ली के रोग, अर्श, आनाह, मलबंध आदि में लाभ होता है।
यह पित्त वर्धक है।
इसके सेवन से पित्त स्राव बढ़ता है और पाचन सही करता है।
यह भूख न लगना, जी मिचलाना, पाचन की कमजोरी, अजीर्ण में लाभ देता है।
यह वात-कफ को कम करता है।
यह दवा घर में प्रयोग किये जाने वाले मसालों से बनी है।
इसका कोई भी सीरियस साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
इसे छोटे-बड़े सभी ले सकते हैं, लेकिन लेने की मात्रा अलग होगी।
यह स्वभाव से गर्म है और पाचक पित्त को बढ़ाने वाली दवा है।
इसे लेने से अरुचि दूर होती है और पाचन सही होता है।
वैश्वानर चूर्णम के चिकित्सीय उपयोग Uses of Vaishwanara Churnam
पेट में दर्द Abdominal pain
गैस Bloating
कब्ज़ Constipation
बवासीर Haemorrhoids
गुल्म Lump in Abdomen
आमवात Rheumatoid arthritis
वातरोग other Vata Roga
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Vaishwanara Churnam
1-3 gram, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
इसे दही के पानी, अथवा तक्र छाछ अथवा गौ घृत अथवा गर्म पानी के साथ लें।
इसे भोजन करने के पहले लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
इसे गर्भावस्था के दौरान न लें।
यह प्रकृति में उष्ण है।
ज्यादा मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी कर सकता है।
निर्धारित मात्रा में लेने किसी भी तरह का गंभीर साइड-इफ़ेक्ट नहीं है।
उपलब्धता
इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है
Kottakkal Arya Vaidya Sala Vaishwanara Churnam
Pankajakasthuri Herbals India Vaishwanara Churnam
Kairali Products (Vaishwanara Churnam), Arya Vaidya Sala Vaishwanara Churnam
पतंजलि शिलाजीत कैप्सूल (दिव्य शिलाजीत कैप्सूल), एक आयुर्वेदिक कैप्सूल है जिसमें शुद्ध शिलाजीत का एक्सट्रेक्ट और आमलकी रसायन है। दोनों ही द्रव्य रसायन tonic है तथा कई विकारों के उपचार और रोकथाम में लाभप्रद है।
शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।
शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है। शिलाजीत को हजारों साल से लगभग हर बीमारी के उपचार में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में यह कहा गया है की कोई भी ऐसा साध्य रोग नहीं है जो की शिलाजतु के प्रयोग से नियंत्रित या ठीक नहीं किया जा सकता। शिलाजीत प्रमेह रोगों की उत्तम दवा है।
रसायन गुणों के कारण शिलाजीत कैप्सूल शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सही करने वाली दवा है। इसके सेवन से प्रतिरक्षा प्रणाली पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है, रोगों से बचाव होता है व शरीर के अंगों के सही काम करने में सहयोग होता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीएजिंग, एंटीडायबिटिक, प्रमेहनाशक, वाजीकारक, एंटीअल्सर, जोशवर्धक, बलवर्धक गुणों के साथ ही अन्य बहुत से गुण हैं।
शिलाजीत कैप्सूल पुरुषों के लिए विशेष लाभप्रद है क्योंकि इसके सेवन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ता है।
टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के वृषण और एड्रेनल ग्लैंड से स्रावित होने वाला एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। यह प्रमुख पुरुष हॉर्मोन है जो की एनाबोलिक स्टीरॉएड है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुषों में उनके प्रजनन अंगों के सही से काम करने और पुरुष लक्षणों जैसे की मूंछ-दाढ़ी, आवाज़ का भारीपन, ताकत आदि के लिए जिम्मेदार है। यह पुरुष के शरीर में बालों का डिस्ट्रीब्यूशन, बोन मॉस, मसल्स मास, फैट का डिस्ट्रीब्यूशन, आवाज़, समेत सेक्स ड्राइव, और स्पर्म के बनने का भी कारण है।
यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जाता है तो यौन प्रदर्शन पर सीधे असर पड़ता है, जैसे की इंद्री में शिथिलता, कामेच्छा की कमी, चिडचिडापन, सेक्स में अरुचि, नपुंसकता, प्रजनन क्षमता की कमी आदि।
क्योंकि शिलाजीत कैप्सूल का सेवन टेस्टोस्टेरोन को बढ़ाता है और इसलिए यह यौन प्रदर्शन को सुधारने में भी लाभप्रद है।
पतंजलि शिलाजीत कैप्सूल को दिन में दो बार, एक कैप्सूल या दो कैप्सूल की मात्रा में लिया जाता है। इसे दूध के साथ निगल कर लेते हैं। बताई गई डोज़ से ज्यादा मात्रा में इसे नहीं लेना चाहिए क्योंकि तब यह नुकसानदायक हो सकता है। एक शोध में देखा गया की शिलाजीत का कम मात्रा में सेवन करने से हृदय के कार्य = पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन ज्यादा मात्रा में सेवन ने हृदय की गति / धड़कन को बढ़ा दिया। इसके अतिरिक्त शिलाजीत में मिनरल्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसे बताई मात्रा से ज्यादा में न लें।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Patanjali Shilajit Capsule or Divya Shilajit Capsule is manufactured by Patanjali Pharmacy. Shilajit Capsules from Patanjali is the combination of Shilajit 390 mg with Amalki Rasayan. This medicine can be used as health tonic to improve overall health. It is especially beneficial for males for promoting better sexual health. Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
निर्माता: पतंजलि दिव्य फार्मेसी
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
दवाई का प्रकार: जड़ी-बूटी खनिज युक्त आयुर्वेदिक दवा
पतंजलि शिलाजीत कैप्सूल के घटक Ingredients of Patanjali Shilajit Capsule
शुद्ध शीलजीत का सूखा एक्सट्रेक्ट 390 मिलीग्राम
आमलकी रसायन 50 मिलीग्राम
शिलाजीत क्या है?
शिलाजीत पहाड़ों से प्राप्त, सफेद-भूरा मोटा, चिपचिपा राल जैसा पदार्थ है (संस्कृत शिलाजतु) जिसमे सूजन कम करने, दर्द दूर करने, अवसाद दूर करने, टॉनिक के, और एंटी-ऐजिंग गुण होते हैं। इसमें कम से कम 85 खनिजों पाए जाते है।
शिलाजीत कहाँ मिलता है?
भारत में यह गंगोत्री के आस-पास शिलाओं से टपकता है। यह नेपाल में भी मिलता है। यह अल्ताई, हिमालय, और मध्य एशिया के काकेशस पहाड़ों से प्राप्त किया जाता है।
शिलाजीत के लाभ क्या हैं?
शिलाजीत एक टॉनिक है जो पुरुषों में यौन विकारों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शिलाजीत रस में अम्लीय और कसैला, कटु विपाक और समशीतोष्ण (न अधिक गर्म न अधिक ठंडा) है। ऐसा माना जाता है, संसार में रस-धातु विकृति से उत्पन्न होने वाला कोई भी रोग इसके सेवन से दूर हो जाता है। शिलाजीत शरीर को निरोगी और मज़बूत करता है।
शिलाजीत पुरुषों के प्रमेह की अत्यंत उत्तम दवा है।
शिलाजीत वाजीकारक है और इसके सेवन से शरीर में बल-ताकत की वृद्धि होती है।
शिलाजीत पुराने रोगों, मेदवृद्धि, प्रमेह, मधुमेह, गठिया, कमर दर्द, कम्पवात, जोड़ो का दर्द, सूजन, सर्दी, खांसी, धातु रोग, रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी आदि सभी में लाभप्रद है।
शिलाजीत शरीर में ताकत को बढाता है तथा थकान और कमजोरी को दूर करता है।
शिलाजीत यौन शक्ति की कमी को दूर करता है।
शिलाजीत भूख को बढाता है।
शिलाजीत पुरुषों में नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculation, कम शुक्राणु low sperm count, स्तंभन erectile dysfunction में उपयोगी है।
यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में मदद करता है।
शिलाजीत के सेवन के दौरान, आहार में दूध की प्रधानता रहनी चाहिए।
आमलकी रसायन क्या है?
आमलकी रसायन, आंवला चूर्ण की आंवला रस में कई बार घुटाई करके बनाई गई दवा है। यह एक उत्तम टॉनिक, कामोत्तेजक, इम्युनिटी बूस्टर और एंटीऑक्सिडेंट है।
अमलकी रसायन के सेवन से मस्तिष्क, आंख, हृदय, यकृत, त्वचा और बालों सभी के सही से काम करने में मदद होती है। एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन सी होने से यह उम्र बढ़ने के लक्षणों को कम करता है। इसके सेवन से सिरदर्द, धुंधला दिखाई देना,आँखों में जलन, आंखों की थकान, चक्कर आना, दोहरी दृष्टि आदि लक्षण कम होते हैं।
यह एंटासिड भी है तथा पेप्टिक अल्सर, पित्त की अधिकता, आँतों में सूजन आदि में लाभप्रद है। आमलकी रसायन के नियमित सेवन से रोगनिरोधक क्षमता बढ़ती है, शरीर में रक्त की वृद्धि होती है, बालों-त्वचा का स्वास्थ्य सही होता है, तथा मस्तिष्क सही से काम करता है। पूरे स्वास्थ्य में सुधार होने से प्रजनन अंगों को भो बल मिलता है तथा यौन प्रदर्शन में सुधार होता है।
पतंजलि शिलाजीत कैप्सूल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Patanjali Shilajit Capsule
यह एक टॉनिक औषधि है और कमजोरी को दूर करती है।
यह दवाई वृषण testes को सही काम करने में सहयोगी है और शुक्राणुजनन को उत्तेजित करती है।
इसके सेवन से शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।
यह वाजीकारक है।
यह शक्तिवर्धक, जोशवर्धक, वाजीकारक रसायन है।
पतंजलि शिलाजीत कैप्सूल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Patanjali Shilajit Capsule
ऑलिगॉस्पर्मिया Oligospermia
शुक्राणु असामान्यताएं Sperms abnormalities
शीघ्रपतन, समयपूर्व स्खलन Premature ejaculation
नपुंसकता Impotency
सामान्य दुर्बलता General debility
यौन दुर्बलता
यौन विकार
कामेच्छा की कमी
जोश – शक्ति की कमी
ब्रोंकाइटिस
शारीरिक या मानसिक कमजोरी
ऑस्टियोपोरोसिस
पेप्टिक अल्सर
मोटापा
यक्ष्मा टी बी
शारीरिक व मानसिक थकान
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Patanjali Shilajit Capsule
1-2 कैप्सूल दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
इसे दूध के साथ लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
शिलाजीत के सेवन के समय विदाही (जलन करने वाले भोजन) और भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
कुल्थी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद के कुछ व्याख्याकार ने तो यहाँ तक कहा है जो लोग शिलाजीत का सेवन कर रहे हो उन्हें एक वर्ष तक कुलथी का सेवन नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत उन लोगों को नहीं लेना चाहिए जिनका यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है। जिनमें यूरिक एसिड की पथरी हो, गठिया हो उन्हें भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत को अधिक पित्त में भी इसका सेवन सावधानी से किया जाना चाहिए।
संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें।
खाने में दूध, फलों और सब्जियां को शामिल करें।
मादक पदार्थों, शराब, चाय और कॉफी का सेवन नहीं करें।
पानी पर्याप्त मात्रा में पियें।
प्राणायाम और व्यायाम करें।
गर्भवती महिलाओं में इस दवा का अध्ययन नहीं किया गया है। इसमें छेदन, मेदोहर, गुण हैं। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को इस दवा का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
इस दवा के सेवन के दौरान ब्लड शुगर लेवल की बराबर जांच करते रहें।
उच्च रक्तचाप में इसे कम मात्रा में लिया जाना चाहिए।
इसे आप एलोपैथी की दवा के सेवन के दौरान भी ले सकते हैं।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
निर्धारित मात्रा में लेने से इसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है।
अच्छे परिणाम के लिए दवा को तीन महीने तक प्रयोग करें।
शिलाजीत कैप्सूल, श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित एक दवाई है जिसमें शिलाजीत का ड्राई एक्सट्रेक्ट 300 मिलीग्राम है।
शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है। शिलाजीत को हजारों साल से लगभग हर बीमारी के उपचार में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में यह कहा गया है की कोई भी ऐसा साध्य रोग नहीं है जो की शिलाजतु के प्रयोग से नियंत्रित या ठीक नहीं किया जा सकता। शिलाजीत प्रमेह रोगों की उत्तम दवा है।
रसायन गुणों के कारण शिलाजीत कैप्सूल शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सही करने वाली दवा है। इसके सेवन से प्रतिरक्षा प्रणाली पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है, रोगों से बचाव होता है व शरीर के अंगों के सही काम करने में सहयोग होता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीएजिंग, एंटीडायबिटिक, प्रमेहनाशक, वाजीकारक, एंटीअल्सर, जोशवर्धक, बलवर्धक गुणों के साथ ही अन्य बहुत से गुण हैं।
शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।
शिलाजीत कैप्सूल पुरुषों के लिए विशेष लाभप्रद है क्योंकि इसके सेवन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ता है।
टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के वृषण और एड्रेनल ग्लैंड से स्रावित होने वाला एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। यह प्रमुख पुरुष हॉर्मोन है जो की एनाबोलिक स्टीरॉएड है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुषों में उनके प्रजनन अंगों के सही से काम करने और पुरुष लक्षणों जैसे की मूंछ-दाढ़ी, आवाज़ का भारीपन, ताकत आदि के लिए जिम्मेदार है। यह पुरुष के शरीर में बालों का डिस्ट्रीब्यूशन, बोन मॉस, मसल्स मास, फैट का डिस्ट्रीब्यूशन, आवाज़, समेत सेक्स ड्राइव, और स्पर्म के बनने का भी कारण है।
यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जाता है तो यौन प्रदर्शन पर सीधे असर पड़ता है, जैसे की इंद्री में शिथिलता, कामेच्छा की कमी, चिडचिडापन, सेक्स में अरुचि, नपुंसकता, प्रजनन क्षमता की कमी आदि।
क्योंकि शिलाजीत कैप्सूल का सेवन टेस्टोस्टेरोन को बढ़ाता है और इसलिए यह यौन प्रदर्शन को सुधारने में भी लाभप्रद है। इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है. कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Shilajit Capsule medicine can be used as health tonic to improve overall health. It is especially beneficial for males for promoting better sexual health. Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
निर्माता: श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड
बैद्यनाथ शिलाजीत कैप्सूल के घटक Ingredients of Baidyanath Shilajit Capsules
Baidyanath Shodhit Shilajit Capsule contains:
शुद्ध शीलजीत का सूखा एक्सट्रेक्ट Shuddha Shilajit 300mg
शिलाजीत क्या है?
शिलाजीत पहाड़ों से प्राप्त, सफेद-भूरा मोटा, चिपचिपा राल जैसा पदार्थ है (संस्कृत शिलाजतु) जिसमे सूजन कम करने, दर्द दूर करने, अवसाद दूर करने, टॉनिक के, और एंटी-ऐजिंग गुण होते हैं। इसमें कम से कम 85 खनिजों पाए जाते है।
शिलाजीत कहाँ मिलता है?
भारत में यह गंगोत्री के आस-पास शिलाओं से टपकता है। यह नेपाल में भी मिलता है। यह अल्ताई, हिमालय, और मध्य एशिया के काकेशस पहाड़ों से प्राप्त किया जाता है।
शिलाजीत के लाभ क्या हैं?
शिलाजीत एक टॉनिक है जो पुरुषों में यौन विकारों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शिलाजीत रस में अम्लीय और कसैला, कटु विपाक और समशीतोष्ण (न अधिक गर्म न अधिक ठंडा) है। ऐसा माना जाता है, संसार में रस-धातु विकृति से उत्पन्न होने वाला कोई भी रोग इसके सेवन से दूर हो जाता है। शिलाजीत शरीर को निरोगी और मज़बूत करता है।
शिलाजीत पुरुषों के प्रमेह की अत्यंत उत्तम दवा है।
शिलाजीत वाजीकारक है और इसके सेवन से शरीर में बल-ताकत की वृद्धि होती है।
शिलाजीत पुराने रोगों, मेदवृद्धि, प्रमेह, मधुमेह, गठिया, कमर दर्द, कम्पवात, जोड़ो का दर्द, सूजन, सर्दी, खांसी, धातु रोग, रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी आदि सभी में लाभप्रद है।
शिलाजीत शरीर में ताकत को बढाता है तथा थकान और कमजोरी को दूर करता है।
शिलाजीत यौन शक्ति की कमी को दूर करता है।
शिलाजीत भूख को बढाता है।
शिलाजीत पुरुषों में नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculation, कम शुक्राणु low sperm count, स्तंभन erectile dysfunction में उपयोगी है।
यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में मदद करता है।
शिलाजीत के सेवन के दौरान, आहार में दूध की प्रधानता रहनी चाहिए।
बैद्यनाथ शिलाजीत कैप्सूल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Baidyanath Shilajit Capsules
यह एक टॉनिक औषधि है और कमजोरी को दूर करती है।
यह दवाई वृषण testes को सही काम करने में सहयोगी है और शुक्राणुजनन को उत्तेजित करती है।
इसके सेवन से शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।
यह वाजीकारक है।
यह शक्तिवर्धक, जोशवर्धक, वाजीकारक रसायन है।
बैद्यनाथ शिलाजीत कैप्सूल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Baidyanath Shilajit Capsules
ऑलिगॉस्पर्मिया Oligospermia
शुक्राणु असामान्यताएं Sperms abnormalities
शीघ्रपतन, समयपूर्व स्खलन Premature ejaculation
नपुंसकता Impotency
सामान्य दुर्बलता General debility
यौन दुर्बलता
यौन विकार
कामेच्छा की कमी
जोश – शक्ति की कमी
ब्रोंकाइटिस
शारीरिक या मानसिक कमजोरी
ऑस्टियोपोरोसिस
पेप्टिक अल्सर
मोटापा
यक्ष्मा टी बी
शारीरिक व मानसिक थकान
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Baidyanath Shilajit Capsules
1-2 कैप्सूल दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
इसे दूध के साथ लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
शिलाजीत के सेवन के समय विदाही (जलन करने वाले भोजन) और भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
कुल्थी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद के कुछ व्याख्याकार ने तो यहाँ तक कहा है जो लोग शिलाजीत का सेवन कर रहे हो उन्हें एक वर्ष तक कुलथी का सेवन नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत उन लोगों को नहीं लेना चाहिए जिनका यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है। जिनमें यूरिक एसिड की पथरी हो, गठिया हो उन्हें भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत को अधिक पित्त में भी इसका सेवन सावधानी से किया जाना चाहिए।
संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें।
खाने में दूध, फलों और सब्जियां को शामिल करें।
मादक पदार्थों, शराब, चाय और कॉफी का सेवन नहीं करें।
पानी पर्याप्त मात्रा में पियें।
प्राणायाम और व्यायाम करें।
गर्भवती महिलाओं में इस दवा का अध्ययन नहीं किया गया है। इसमें छेदन, मेदोहर, गुण हैं। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को इस दवा का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
इस दवा के सेवन के दौरान ब्लड शुगर लेवल की बराबर जांच करते रहें।
उच्च रक्तचाप में इसे कम मात्रा में लिया जाना चाहिए।
इसे आप एलोपैथी की दवा के सेवन के दौरान भी ले सकते हैं।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
निर्धारित मात्रा में लेने से इसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है।
अच्छे परिणाम के लिए दवा को तीन महीने तक प्रयोग करें।
डाबर निर्मित शिलाजीत गोल्ड कैप्सूल, यौन स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए बनाई गई एक दवाई है जिसमें कौंच बीज, गोखरू, अश्वगंधा, सफेद मूसली, अकरकरा आदि जड़ी बूटियाँ, यशद-रौप्य-स्वर्ण की भस्में, शिलाजीत समेत कई द्रव्य हैं जो की शरीर को ऊर्जा, जवानी, जोश देते हैं।
डाबर निर्मित शिलाजीत गोल्ड कैप्सूल, शक्तिवर्धक, जोश वर्धक, और वाजीकारक है। इसके सेवन से पुरुषों के प्रजनन अंगों को ताकत मिलती है और यौन दुर्बलता दूर होती है। इसमें आयुर्वेद के जाने-माने वाजीकारक जैसे की अश्वगंधा, कौंच बीज, गोखरू, सफ़ेद मुसली हैं। इसके सेवन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ता है।
टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के वृषण और एड्रेनल ग्लैंड से स्रावित होने वाला एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। यह प्रमुख पुरुष हॉर्मोन है जो की एनाबोलिक स्टीरॉएड है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुषों में उनके प्रजनन अंगों के सही से काम करने और पुरुष लक्षणों जैसे की मूंछ-दाढ़ी, आवाज़ का भारीपन, ताकत आदि के लिए जिम्मेदार है। यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जाता है तो यौन प्रदर्शन पर सीधे असर पड़ता है, जैसे की इंद्री में शिथिलता, कामेच्छा की कमी, चिडचिडापन, आदि। केवांच, मूसली और गोखरू के सेवन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को सुधारने में मदद होती है।
इस पेज पर शिलाजीत गोल्ड कैप्सूल के बारे बताया गया है। हम इस दवा को एंडोर्स नहीं कर रहे तथा हमारी कोशिश सही जानकारी देने की है। हर दवा सभी के लिए नहीं होती। हो सकता है इसके सेवन से आपको लाभ हो या नहीं भी। दवाओं का शरीर में असर बहुत से फैक्टर्स पर निर्भर है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Shilajit Gold from Dabur is a combination of Shilajit, Gold, Saffron with other aphrodisiac herbs like Ashwagandha, Kevanch and Safed Musli. This medicine is a tonic for general health. It helps to increase strength, stamina, vigour and vitality. Shilajit gold helps to maintain mental fitness and physical endurance, and helps improve immunity against common diseases.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
दवाई का प्रकार: जड़ीबूटी-भस्म युक्त आयुर्वेदिक, प्रोप्राइटरी
मुख्य उपयोग: पुरुषों में यौन दुर्बलता
मुख्य गुण: वाजीकारक, टॉनिक, पुरुष प्रजनन अंगों को ताकत देना
डाबर शिलाजीत गोल्ड कैप्सूल के घटक Ingredients of Dabur Shilajit Gold
प्रत्येक कैप्सूल में:
केवांच गिरी 90 मिलीग्राम
गोखरू काँटा 90 मिलीग्राम
अश्वगंधा 75 मिलीग्राम
शुद्ध शिलाजीत 50 मिलीग्राम
मूसली जड़ 50 मिलीग्राम
वराही कन्द 45 मिलीग्राम
विदारी कन्द 45 मिलीग्राम
अकरकरा जड़ 10 मिलीग्राम
लवंग 10 मिलीग्राम
केशर 10 मिलीग्राम
दालचीनी 10 मिलीग्राम
कपूर 3 मिलीग्राम
जायफल 3 मिलीग्राम
यशद भस्म 15 मिलीग्राम
रजत भस्म 5 मिलीग्राम
स्वर्ण भस्म 1 मिलीग्राम
कौंच या केवांच बीज Mucuna pruriens की गिरी है। केवांच की गिरी बहुत ही प्रभावशाली हर्बल दवा है तथा इसे हजारों वर्षों से पुरुष प्रजनन क्षमता में सुधार करने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। यह हाइपोथेलेमस पर काम करता है। इसके सेवन से सीरम टेस्टोस्टेरोन, लुटीनाइज़िंग luteinizing हार्मोन, डोपामाइन, एड्रेनालाईन, आदि में सुधार होता है। यह शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में भी उचित सुधार करने वाली नेचुरल दवा है । मानसिक तनाव, नसों की कमजोरी, टेस्टोस्टेरोन के कम लेवल आदि में इसके सेवन से बहुत लाभ होता है।
गोखरू आयुर्वेद की एक प्रमुख औषधि है। इस मुख्य रूप से पेशाब रोगों और पुरुषों में यौन कमजोरी के लिए प्रयोग किया जाता है। गोखरू शीतल, मूत्रशोधक, मूत्रवर्धक, वीर्यवर्धक, और शक्तिवर्धक है। यह पथरी, पुरुषों के प्रमेह, सांस की तकलीफों, शरीर में वायु दोष के कारण होने वाले रोगों, हृदयरोग और प्रजनन अंगों सम्बन्धी रोगों की उत्तम दवा है। यह वाजीकारक है और पुरुषों के यौन प्रदर्शन में सुधार करता है।
गोखरू का प्रयोग यौन शक्ति को बढ़ाने में बहुत लाभकारी माना गया है। यह नपुंसकता, किडनी/गुर्दे के विकारों, प्रजनन अंगों की कमजोरी-संक्रमण, आदि को दूर करता है।
अश्वगंधा को असगंध, आसंध और विथानिया, विंटर चेरी आदि नामों से जाना जाता है। इसकी जड़ को सुखा, पाउडर बना आयुर्वेद में वात-कफ शामक, बलवर्धक रसायन की तरह प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक दवा है। यह शरीर को बल देती है। असगंध तिक्त-कषाय, गुण में लघु, और मधुर विपाक है। यह एक उष्ण वीर्य औषधि है। यह वात-कफ शामक, अवसादक, मूत्रल, और रसायन है जो की स्पर्म काउंट को बढ़ाती है।
अश्वगंधा जड़ी बूटी पुरुषों में यौन शक्ति बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है।
यह पुरुष प्रजनन अंगों पर विशेष प्रभाव डालती है।
यह पुरुषों में जननांग के विकारों के लिए एक बहुत ही अच्छी दवा है।
यह वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने में भी मदद करती है।
यह शुक्र धातु की कमी, उच्च रक्तचाप, मूर्छा भ्रम, अनिद्रा, श्वास रोगों, को दूर करने वाली उत्तम वाजीकारक औषधि है।
सफ़ेद मुस्ली को नेचुरल वियाग्रा या इंडियन जेन्सेंग के नाम से भी जाना जाता है। यह वाजीकारक, और सेक्स टॉनिक के रूप में अन्य घटकों के साथ बहुत से दवाओं में कामेच्छा की कमी, शीघ्रपतन, स्तम्भन दोष आदि में प्रयोग की जाती है। यह फर्टिलिटी बूस्टर है और प्रजनन अंगों को ताकत देती है। मुस्ली का सेवन शरीर और मन को फिर से दुर्बलता को दूर करता है। इसके सेवन से कामेच्छा, शुक्राणुओं की संख्या बढ़ जाती है और सामान्य दुर्बलता का इलाज होता है। यह एक शक्तिशाली पुरुष और महिला यौन उत्तेजक के रूप में काम करता है। यह रक्त और वीर्य वर्धक है।
शिलाजीत पहाड़ों से प्राप्त, सफेद-भूरा मोटा, चिपचिपा राल जैसा पदार्थ है (संस्कृत शिलाजतु) जिसमे सूजन कम करने, दर्द दूर करने, अवसाद दूर करने, टॉनिक के, और एंटी-ऐजिंग गुण होते हैं। इसमें कम से कम 85 खनिजों पाए जाते है। शिलाजीत एक टॉनिक है जो पुरुषों में यौन विकारों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शिलाजीत रस में अम्लीय और कसैला, कटु विपाक और समशीतोष्ण (न अधिक गर्म न अधिक ठंडा) है।
ऐसा माना जाता है, संसार में रस-धातु विकृति से उत्पन्न होने वाला कोई भी रोग इसके सेवन से दूर हो जाता है। शिलाजीत शरीर को निरोगी और मज़बूत करता है।
यह पुरुषों के प्रमेह की अत्यंत उत्तम दवा है।
यह वाजीकारक है और इसके सेवन से शरीर में बल-ताकत की वृद्धि होती है।
यह पुराने रोगों, मेदवृद्धि, प्रमेह, मधुमेह, गठिया, कमर दर्द, कम्पवात, जोड़ो का दर्द, सूजन, सर्दी, खांसी, धातु रोग, रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी आदि सभी में लाभप्रद है।
यह शरीर में ताकत को बढाता है तथा थकान और कमजोरी को दूर करता है।
यह यौन शक्ति की कमी को दूर करता है।
यह भूख को बढाता है।
यह पुरुषों में नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculation, कम शुक्राणु low sperm count, स्तंभन erectile dysfunction में उपयोगी है।
यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में मदद करता है।
शिलाजीत के सेवन के दौरान, आहार में दूध की प्रधानता रहनी चाहिए।
जायफल को बाजिकारक aphrodisiac दवाओं और तेल को तिलाओं में डाला जाता है। यह पुरुषों की इनफर्टिलिटी, नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculationकी दवाओं में भी डाला जाता है। यह इरेक्शन को बढ़ाता है लेकिन स्खलन को रोकता है। यह शुक्र धातु को बढ़ाता है। यह बार-बार मूत्र आने की शिकायत को दूर करता है तथा वात-कफ को कम करता है।
कर्म Principle Action
बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
शुक्रकर: द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे।
वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
रसायन: द्रव्य जो शरीर की बीमारियों से रक्षा करे और वृद्धवस्था को दूर रखे।
डाबर शिलाजीत गोल्ड कैप्सूल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Dabur Shilajit Gold
इसमें केवांच, अश्वगंधा, गोखरू, सफ़ेद मूसली, शिलाजीत, जैसे द्रव्य हैं जो की पुरुषों के विशेष रूप से उपयोगी माने गए हैं।
यह एक सेक्सुअल टॉनिक है।
यह यौन दुर्बलता को दूर करने में सहायक है।
यह कामेच्छा और प्रदर्शन में सुधार करती है।
यह दवाई नसों को ताकत देती है। इसके सेवन से नसों की कमजोरी दूर होती है।
यह शीघ्रपतन, स्तंभन दोष, अनैच्छिक शुक्रपात, स्वप्नदोष में लाभप्रद है।
यह शारीरिक दुर्बलता को करती है।
यह जोशवर्धक टॉनिक है।
इसके सेवन से शरीर को ताकत मिलती है।
यह स्पर्म काउंट को बढ़ाती है।
इसके सेवन से खून की कमी दूर होती है।
यह टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बढ़ाती है।
यह यौन संतुष्टि को बढ़ावा देती है।
यह शीघ्रपतन, स्तंभन दोष, अनैच्छिक शुक्रपात, स्वप्नदोष में लाभप्रद है।
डाबर शिलाजीत गोल्ड कैप्सूल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Dabur Shilajit Gold
आयुर्वेद की मुख्य ८ शाखाएं हैं, इनमें से वाज़ीकरण यौन-क्रियायों की विद्या तथा प्रजनन Sexology and reproductive medicine चिकित्सा से सम्बंधित है। वाज़ीकरण के लिए उत्तम वाजीकारक वनस्पतियाँ और खनिजों का प्रयोग किया जाता है जो की सम्पूर्ण स्वास्थ्य को सही करती हैं और जननांगों पर विशेष प्रभाव डालती है। आयुर्वेद में प्रयोग किये जाने वाले उत्तम वाजीकरण द्रव्यों में शामिल है, मूसली, अश्वगंधा, शतावरी, गोखरू, केवांच, शिलाजीत, विदारीकन्द आदि। यह द्रव्य कामोत्तेजक है, स्नायु, मांसपेशियों की दुर्बलता, को दूर करने वाले है तथा धातु वर्धक, वीर्यवर्धक, शक्तिवर्धक तथा बलवर्धक हैं।
यौन कमजोरी के लिए sexual disorders of male
स्वप्नदोष Nocturnal Emission (Night Fall)
शीघ्रपतन Premature Ejaculation
स्तम्भन दोष Erectile Dysfunction
पुरुषों में यौन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए
शारीरिक कमजोरी, स्ट्रेस
शुक्र कीटों को बढ़ाना increasing Sperm Count
वाजीकरण improving Sexual Desire
लिबिडो कम होना Low Libido
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Dabur Shilajit Gold
1 कैप्सूल, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
इसे दूध अथवा पानी के साथ लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
उपयोगी सुझाव/ सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता की यह दवा आपकी समस्या दूर करेगी की नहीं। इस दवा के मिक्स्ड रिव्यु हैं। कुछ लोगों कहते हैं इसके सेवन से उन्हें बहुत लाभ हुआ। लेकिन कुछ के अनुसार इससे जैसा वो चाहते थे, लाभ नहीं हुआ।
इस दवा को डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
कुलथी का सेवन शिलाजीत के सेवन के दौरान नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए है की, कुलथी पथरी की भेदक है।
इसे लम्बे समय तक न लें।
शिलाजीत के सेवन के समय विदाही (जलन करने वाले भोजन) और भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत उन लोगों को नहीं लेना चाहिए जिनका यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है। जिनमें यूरिक एसिड की पथरी हो, गठिया हो उन्हें भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत को अधिक पित्त में भी इसका सेवन सावधानी से किया जाना चाहिए।
दवा के साथ-साथ भोजन और व्यायाम पर भी ध्यान दें।
संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें।
खाने में दूध, फलों और सब्जियां को शामिल करें।
जंक फ़ूड न खाएं।
तले, भुने, खट्टे, मसालेदार भोजन न खाएं।
मादक पदार्थों, शराब, चाय और कॉफी का सेवन नहीं करें।
शुद्ध शिलाजीत (दिव्य शिलाजीत सत), जो की पतंजलि द्वारा उपलब्ध है एक थिक लिक्विड है। यह तरल, शुद्ध किया हुआ शिलाजीत है। शिलाजीत एक पदार्थ है जो की हिमालय की चट्टानों से मिलता है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को केवल शुद्ध करके अथवा साफ़ करके ही प्रयोग किया जाता है। अशुद्ध या बिना साफ़ किये हुए शिलाजीत का सेवन नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें बहुत से अवांछनीय पदार्थ होते हैं। अशुद्ध शिलाजीत का सेवन करने से व्यक्ति बीमार हो सकता है। शिलाजीत को शुद्ध करने से उसमें से सारे विजातीय पदार्थ दूर हो जाते हैं।
शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है। शिलाजीत को हजारों साल से लगभग हर बीमारी के उपचार में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में यह कहा गया है की कोई भी ऐसा साध्य रोग नहीं है जो की शिलाजतु के प्रयोग से नियंत्रित या ठीक नहीं किया जा सकता। शिलाजीत प्रमेह रोगों की उत्तम दवा है।
शिलाजीत शुद्ध, पुरुषों के लिए विशेष लाभप्रद है क्योंकि इसके सेवन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ता है।
टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के वृषण और एड्रेनल ग्लैंड से स्रावित होने वाला एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। यह प्रमुख पुरुष हॉर्मोन है जो की एनाबोलिक स्टीरॉएड है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुषों में उनके प्रजनन अंगों के सही से काम करने और पुरुष लक्षणों जैसे की मूंछ-दाढ़ी, आवाज़ का भारीपन, ताकत आदि के लिए जिम्मेदार है। यह पुरुष के शरीर में बालों का डिस्ट्रीब्यूशन, बोन मॉस, मसल्स मास, फैट का डिस्ट्रीब्यूशन, आवाज़, समेत सेक्स ड्राइव, और स्पर्म के बनने का भी कारण है।
यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जाता है तो यौन प्रदर्शन पर सीधे असर पड़ता है, जैसे की इंद्री में शिथिलता, कामेच्छा की कमी, चिडचिडापन, सेक्स में अरुचि, नपुंसकता, प्रजनन क्षमता की कमी आदि।
क्योंकि शिलाजीत का सेवन टेस्टोस्टेरोन को बढ़ाता है और इसलिए यह यौन प्रदर्शन को सुधारने में भी लाभप्रद है।
पतंजलि शुद्ध शिलाजीत को दूध के साथ मिलाकर दिन में दो बार खाने के बाद, एक टॉनिक की तरह से लिया जा सकता है। दवा को करीब तीन महीने तक लिया जाना चाहिए।
बताई गई डोज़ से ज्यादा मात्रा में इसे नहीं लेना चाहिए क्योंकि तब यह नुकसानदायक हो सकता है। एक शोध में देखा गया की शिलाजीत का कम मात्रा में सेवन करने से हृदय के कार्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन ज्यादा मात्रा में सेवन ने हृदय की गति / धड़कन को बढ़ा दिया। इसके अतिरिक्त शिलाजीत में मिनरल्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसे बताई मात्रा से ज्यादा में न लें। इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Patanjali Shudh Shilajit or Divya Shilajit Sat is manufactured by Patanjali Pharmacy. It conatins Purified Shilajit. It is in liquid form and taken in dose of 1-2 drops with warm water or milk.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
निर्माता: Divya Pharmacy the manufacturing unit of Patanjali Yogpeeth, Patanjali Ayurved
पतंजलि शुद्ध शिलाजीत के घटक Ingredients of Patanjali Shudh Shilajeet
शुद्ध शीलजीत
शिलाजीत क्या है?
शिलाजीत पहाड़ों से प्राप्त, सफेद-भूरा मोटा, चिपचिपा राल जैसा पदार्थ है (संस्कृत शिलाजतु) जिसमे सूजन कम करने, दर्द दूर करने, अवसाद दूर करने, टॉनिक के, और एंटी-ऐजिंग गुण होते हैं। इसमें कम से कम 85 खनिजों पाए जाते है।
शिलाजीत कहाँ मिलता है?
भारत में यह गंगोत्री के आस-पास शिलाओं से टपकता है। यह नेपाल में भी मिलता है। यह अल्ताई, हिमालय, और मध्य एशिया के काकेशस पहाड़ों से प्राप्त किया जाता है।
शिलाजीत के लाभ क्या हैं?
शिलाजीत एक टॉनिक है जो पुरुषों में यौन विकारों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शिलाजीत रस में अम्लीय और कसैला, कटु विपाक और समशीतोष्ण (न अधिक गर्म न अधिक ठंडा) है। ऐसा माना जाता है, संसार में रस-धातु विकृति से उत्पन्न होने वाला कोई भी रोग इसके सेवन से दूर हो जाता है। शिलाजीत शरीर को निरोगी और मज़बूत करता है।
शिलाजीत पुरुषों के प्रमेह की अत्यंत उत्तम दवा है।
शिलाजीत वाजीकारक है और इसके सेवन से शरीर में बल-ताकत की वृद्धि होती है।
शिलाजीत पुराने रोगों, मेदवृद्धि, प्रमेह, मधुमेह, गठिया, कमर दर्द, कम्पवात, जोड़ो का दर्द, सूजन, सर्दी, खांसी, धातु रोग, रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी आदि सभी में लाभप्रद है।
शिलाजीत शरीर में ताकत को बढाता है तथा थकान और कमजोरी को दूर करता है।
शिलाजीत यौन शक्ति की कमी को दूर करता है।
शिलाजीत भूख को बढाता है।
शिलाजीत पुरुषों में नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculation, कम शुक्राणु low sperm count, स्तंभन erectile dysfunction में उपयोगी है।
यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में मदद करता है।
शिलाजीत के सेवन के दौरान, आहार में दूध की प्रधानता रहनी चाहिए।
पतंजलि शुद्ध शिलाजीत के लाभ/फ़ायदे Benefits of Patanjali Shudh Shilajeet
यह एक टॉनिक औषधि है और कमजोरी को दूर करती है।
यह दवाई वृषण testes को सही काम करने में सहयोगी है और शुक्राणुजनन को उत्तेजित करती है।
इसके सेवन से शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।
यह वाजीकारक है।
यह शक्तिवर्धक, जोशवर्धक, वाजीकारक रसायन है।
पतंजलि शुद्ध शिलाजीत के चिकित्सीय उपयोग Uses of Patanjali Shudh Shilajeet
ऑलिगॉस्पर्मिया Oligospermia
शुक्राणु असामान्यताएं Sperms abnormalities
शीघ्रपतन, समयपूर्व स्खलन Premature ejaculation
नपुंसकता Impotency
सामान्य दुर्बलता General debility
यौन दुर्बलता
यौन विकार
कामेच्छा की कमी
जोश – शक्ति की कमी
ब्रोंकाइटिस
शारीरिक या मानसिक कमजोरी
ऑस्टियोपोरोसिस
पेप्टिक अल्सर
मोटापा
यक्ष्मा टी बी
शारीरिक व मानसिक थकान
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Patanjali Shudh Shilajeet
1-2 ड्रॉप्स दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
इसे दूध के साथ लें।
इसे नाश्ते और डिनर के बाद दूध के साथ लें।
अच्छे परिणामों के लिए कम से कम तीन महीने प्रयोग करें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
शिलाजीत के सेवन के समय विदाही (जलन करने वाले भोजन) और भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
कुल्थी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद के कुछ व्याख्याकार ने तो यहाँ तक कहा है जो लोग शिलाजीत का सेवन कर रहे हो उन्हें एक वर्ष तक कुलथी का सेवन नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत उन लोगों को नहीं लेना चाहिए जिनका यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है। जिनमें यूरिक एसिड की पथरी हो, गठिया हो उन्हें भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत को अधिक पित्त में भी इसका सेवन सावधानी से किया जाना चाहिए।
संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें।
खाने में दूध, फलों और सब्जियां को शामिल करें।
मांसाहार न करें।
मादक पदार्थों, शराब, चाय और कॉफी का सेवन नहीं करें।
पानी पर्याप्त मात्रा में पियें।
प्राणायाम और व्यायाम करें।
गर्भवती महिलाओं में इस दवा का अध्ययन नहीं किया गया है। इसमें छेदन, मेदोहर, गुण हैं। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को इस दवा का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
इस दवा के सेवन के दौरान ब्लड शुगर लेवल की बराबर जांच करते रहें।
उच्च रक्तचाप में इसे कम मात्रा में लिया जाना चाहिए।
इसे आप एलोपैथी की दवा के सेवन के दौरान भी ले सकते हैं।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
निर्धारित मात्रा में लेने से इसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है।
अच्छे परिणाम के लिए दवा को तीन महीने तक प्रयोग करें।
अश्वशिला कैप्सूल Patanjali Ashvashila Capsule or Ashwashila Capsule (Divya Ashwashila Capsule) पतंजलि द्वारा निर्मित एक प्रोप्राइटरी आयुर्वेदिक दवा है। इस दवा में दो द्रव्य हैं, अश्वगंधा और शिलाजीत, इसलिए इसे नाम दिया गया है अश्वशिला। दोनों ही द्रव्य रसायन, वाजीकारक, शुक्रल, बलवर्धक हैं और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने में सहयोगी है।
अश्वगंधा (Withania somnifera) की जड़ें आयुर्वेद में टॉनिक, कामोद्दीपक, वजन बढ़ाने के लिए और शरीर की प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए increases weight and improves immunity प्रयोग की जाती है।
शिलाजीत, हिमालय की चट्टानों से निकलने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजन के लिए शिलाजीत को शुद्ध करके प्रयोग किया जाता है। यह एक adaptogen है और एक प्रमुख आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक है। यह पाचन और आत्मसात में सुधार करता है। आयुर्वेद में, इसे हर रोग के इलाज में सक्षम माना जाता है। इसमें अत्यधिक सघन खनिज और अमीनो एसिड है।
शिलाजीत प्रजनन अंगों पर काम करता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा में सुधार करता है। यह पुरानी बीमारियों, शरीर में दर्द और मधुमेह में राहत देता है। इसके सेवन शारीरिक, मानसिक और यौन शक्ति देता है। शिलाजीत को हजारों साल से लगभग हर बीमारी के उपचार में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में यह कहा गया है की कोई भी ऐसा साध्य रोग नहीं है जो की शिलाजतु के प्रयोग से नियंत्रित या ठीक नहीं किया जा सकता। शिलाजीत प्रमेह रोगों की उत्तम दवा है।
इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।
Patanjali Ashwashila Capsule is proprietary Ayurvedic pharmacy from Patanjali. It is a tonic medicine and helps to improve overall health. It especially useful for males and helps in sexual disorders. Ashwashila promotes better functioning of reproductive organs and improves sexual performance. It reduces stress, fatigue and boosts the energy level. It is taken in dose of 1 to 2 tablets depending on health, digestion, disease and other factors. The results may not be same for every person. It may or may not work in your condition.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
अश्वशिला कैप्सूल के घटक Ingredients of Patanjali Ashwashila Capsule
प्रत्येक कैप्सूल में:
अश्वगंधा Extract of Aswagandha (Withania somnifera) 200 mg
शिलाजीत Dry extract of Asphaltum (Shilajit) 200 mg
अश्वगंधा जड़ में कई एल्कलॉइड होते हैं जैसे की, विथानिन, विथानानाइन, सोमनाइन, सोम्निफ़ेरिन आदि। जड़ में फ्री अमीनो एसिड में जैसे की एस्पार्टिक अम्ल, ग्लाइसिन, टाइरोसीन शामिल एलनाइन, प्रोलाइन, ट्रीप्टोफन ,ग्लूटामिक एसिड और सीस्टीन aspartic acid, glycine, tyrosine, alanine, proline, tryptophan, glutamic acid and cysteine आदि भी पाए जाते हैं। विथानिन में शामक और नींद दिलाने वाला गुण है sedative and hypnotic। विथफेरिन एक अर्बुदरोधी antitumor, एंटीऑर्थरिटिक anti-arthritic और जीवाणुरोधी antibacterial है।
अश्वगंधा स्वाद में कसैला-कड़वा और मीठा होता है। तासीर में यह गर्म hot in potency है। इसका सेवन वात और कफ को कम करता है लेकिन बहुत अधिक मात्रा में सेवन शरीर में पित्त और आम को बढ़ा सकता है। यह मुख्य रूप से मांसपेशियों muscles, वसा, अस्थि, मज्जा/नसों, प्रजनन अंगों reproductive organ, लेकिन पूरे शरीर पर काम करता है। यह मेधावर्धक, धातुवर्धक, स्मृतिवर्धक, और कामोद्दीपक है। यह बुढ़ापे को दूर करने वाली औषधि है।
अश्वगंधा तंत्रिका कमजोरी, बेहोशी, चक्कर और अनिद्रा nervous weakness, fainting, giddiness and insomnia तथा अन्य मानसिक विकारों की भी अच्छी दवा है। यह पुरुषों में यौन शक्ति बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह पुरुष प्रजनन अंगों पर विशेष प्रभाव डालती है। यह पुरुषों में जननांग के विकारों के लिए एक बहुत ही अच्छी हर्ब है। यह वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने में भी मदद करती है। स्त्रियों में अश्वगंधा का सेवन स्तनपान breastfeeding कराते समय दूध की मात्रा में वृद्धि galactagogue करता है और हॉर्मोन के संतुलन में मदद करता है। इसका सेवन भ्रूण fetus को स्थिर करता है और हार्मोन पुन: बनाता है। प्रसव after delivery बाद इसका सेवन शरीर को बल देता है।
शिलाजीत क्या है?
शिलाजीत पहाड़ों से प्राप्त, सफेद-भूरा मोटा, चिपचिपा राल जैसा पदार्थ है (संस्कृत शिलाजतु) जिसमे सूजन कम करने, दर्द दूर करने, अवसाद दूर करने, टॉनिक के, और एंटी-ऐजिंग गुण होते हैं। इसमें कम से कम 85 खनिजों पाए जाते है।
शिलाजीत कहाँ मिलता है?
भारत में यह गंगोत्री के आस-पास शिलाओं से टपकता है। यह नेपाल में भी मिलता है। यह अल्ताई, हिमालय, और मध्य एशिया के काकेशस पहाड़ों से प्राप्त किया जाता है।
शिलाजीत के लाभ क्या हैं?
शिलाजीत एक टॉनिक है जो पुरुषों में यौन विकारों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शिलाजीत रस में अम्लीय और कसैला, कटु विपाक और समशीतोष्ण (न अधिक गर्म न अधिक ठंडा) है। ऐसा माना जाता है, संसार में रस-धातु विकृति से उत्पन्न होने वाला कोई भी रोग इसके सेवन से दूर हो जाता है। शिलाजीत शरीर को निरोगी और मज़बूत करता है।
शिलाजीत पुरुषों के प्रमेह की अत्यंत उत्तम दवा है।
शिलाजीत वाजीकारक है और इसके सेवन से शरीर में बल-ताकत की वृद्धि होती है।
शिलाजीत पुराने रोगों, मेदवृद्धि, प्रमेह, मधुमेह, गठिया, कमर दर्द, कम्पवात, जोड़ो का दर्द, सूजन, सर्दी, खांसी, धातु रोग, रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी आदि सभी में लाभप्रद है।
शिलाजीत शरीर में ताकत को बढाता है तथा थकान और कमजोरी को दूर करता है।
शिलाजीत यौन शक्ति की कमी को दूर करता है।
शिलाजीत भूख को बढाता है।
शिलाजीत पुरुषों में नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculation, कम शुक्राणु low sperm count, स्तंभन erectile dysfunction में उपयोगी है।
यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में मदद करता है।
शिलाजीत के सेवन के दौरान, आहार में दूध की प्रधानता रहनी चाहिए।
शिलाजीत पुरुषों के लिए विशेष लाभप्रद है क्योंकि इसके सेवन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ता है।
टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के वृषण और एड्रेनल ग्लैंड से स्रावित होने वाला एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। यह प्रमुख पुरुष हॉर्मोन है जो की एनाबोलिक स्टीरॉएड है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुषों में उनके प्रजनन अंगों के सही से काम करने और पुरुष लक्षणों जैसे की मूंछ-दाढ़ी, आवाज़ का भारीपन, ताकत आदि के लिए जिम्मेदार है। यह पुरुष के शरीर में बालों का डिस्ट्रीब्यूशन, बोन मॉस, मसल्स मास, फैट का डिस्ट्रीब्यूशन, आवाज़, समेत सेक्स ड्राइव, और स्पर्म के बनने का भी कारण है।
यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम हो जाता है तो यौन प्रदर्शन पर सीधे असर पड़ता है, जैसे की इंद्री में शिथिलता, कामेच्छा की कमी, चिडचिडापन, सेक्स में अरुचि, नपुंसकता, प्रजनन क्षमता की कमी आदि।
क्योंकि शिलाजीत कैप्सूल का सेवन टेस्टोस्टेरोन को बढ़ाता है और इसलिए यह यौन प्रदर्शन को सुधारने में भी लाभप्रद है।
अश्वशिला कैप्सूल के लाभ/फ़ायदे Benefits of Patanjali Ashwashila Capsule
यह एक टॉनिक औषधि है और कमजोरी को दूर करती है।
यह दवाई वृषण testes को सही काम करने में सहयोगी है और शुक्राणुजनन को उत्तेजित करती है।
इसके सेवन से शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।
यह वाजीकारक है।
यह शक्तिवर्धक, जोशवर्धक, वाजीकारक रसायन है।
अश्वशिला कैप्सूल के चिकित्सीय उपयोग Uses of Patanjali Ashwashila Capsule
ऑलिगॉस्पर्मिया Oligospermia
शुक्राणु असामान्यताएं Sperms abnormalities
शीघ्रपतन, समयपूर्व स्खलन Premature ejaculation
नपुंसकता Impotency
सामान्य दुर्बलता General debility
यौन दुर्बलता
यौन विकार
कामेच्छा की कमी
जोश – शक्ति की कमी
ब्रोंकाइटिस
शारीरिक या मानसिक कमजोरी
ऑस्टियोपोरोसिस
पेप्टिक अल्सर
मोटापा
यक्ष्मा टी बी
शारीरिक व मानसिक थकान
सेवन विधि और मात्रा Dosage of Patanjali Ashwashila Capsule
1-2 कैप्सूल दिन में दो बार, नाश्ते और डिनर के बाद लें।
इसे दूध के साथ लें।
या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications
शिलाजीत के सेवन के समय विदाही (जलन करने वाले भोजन) और भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
कुल्थी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद के कुछ व्याख्याकार ने तो यहाँ तक कहा है जो लोग शिलाजीत का सेवन कर रहे हो उन्हें एक वर्ष तक कुलथी का सेवन नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत उन लोगों को नहीं लेना चाहिए जिनका यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है। जिनमें यूरिक एसिड की पथरी हो, गठिया हो उन्हें भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शिलाजीत को अधिक पित्त में भी इसका सेवन सावधानी से किया जाना चाहिए।
संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें।
खाने में दूध, फलों और सब्जियां को शामिल करें।
मादक पदार्थों, शराब, चाय और कॉफी का सेवन नहीं करें।
पानी पर्याप्त मात्रा में पियें।
प्राणायाम और व्यायाम करें।
पाचन सही रखें।
खाना सुपाच्य खाएं।
कब्ज़ न रहने दें। फाइबर युक्त भोजन करें, सलाद खाएं, मुनक्का का सेवन करें और रात को सोने से पहले गर्म पानी के साथ त्रिफला का सेवन करें।
गर्भवती महिलाओं में इस दवा का अध्ययन नहीं किया गया है। इसमें छेदन, मेदोहर, गुण हैं। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को इस दवा का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
इस दवा के सेवन के दौरान ब्लड शुगर लेवल की बराबर जांच करते रहें।
उच्च रक्तचाप में इसे कम मात्रा में लिया जाना चाहिए।
इसे आप एलोपैथी की दवा के सेवन के दौरान भी ले सकते हैं। दवाओं में किसी तरह का इंटरेक्शन न हो इसलिए 2-3 घंटे का गैप रखें।
इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
अधिक मात्रा में लेने से पित्त बढ़ सकता है और पेट में जलन, डकार, आदि समस्या हो सकती है।
निर्धारित मात्रा में लेने से इसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है।