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पुत्रजीवक Putranjiva roxburghii in Hindi

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पुत्रजीवक का लैटिन में मान पुत्रन्जिवा रोक्सबरगी है। हिंदी में इसे पुत्रजिया, जियापोता, कहते हैं। आयुर्वेद में पुत्रजीवक के साथ कई अन्य नामों जैसे की जीव, पवित्रा, गर्भदा, गर्भकर आदि से जाना जाता है।

यह आयुर्वेद की एक जानी-मानी प्रभावी औषधि है और इसे मुख्य रूप से गर्भ ठहरने के लिए प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे हजारों वर्षों से संतानोपत्ति के लिए उत्तम औषध माना गया है। क्योंकि की सन्तानहीनों को संतान देने में मदद करता है और इसलिए इसे पुत्रजीवक का नाम दिया गया है। आयुर्वेद में यहाँ तक कहा गया है इसके बीजों से बनी माला का धारण करने से स्वस्थ्य और सुन्दर संतान होती है। औषधि की तरह बीज, मज्जा, छाल और पत्ते प्रयोग होते हैं।

By Forestowlet (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
By Forestowlet (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
पुत्रजीवक का पेड़ पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से मिलता है। यह एक सदाहरित वृक्ष है और हमेशा हरा रहता है। इसके तने पर फीके रंग की छाल होती है। पत्ते के किनारे कटे से होते हैं और इनका रंग गहरा होता है। इसके पुष्प पीले-हरे रंग और गुच्छों में होते हैं। इसके फल लम्बे-गोल और तीखे नोक वाले होते हैं।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: पुत्रन्जिवा रोक्सबरगी Putranjiva roxburghii सिननिम Drypetes roxburghii (Wall।) Hurusawa
  • कुल (Family): Euphorbiaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज, पत्ते, छाल, जड़
  • पौधे का प्रकार: पेड़
  • पर्यावास और वितरण: सदाहरित जंगल, पूरे भारत में

स्थानीय नाम / Synonyms

  • संस्कृत: Aksaphala, Kumarabeeja, Putrajivah, Putranjivah
  • हिंदी: Jiaputa, joti, putr-jiva
  • बंगाली: Putranjiva, jiaputa
  • अंग्रेज़ी: Officinal Drypetes
  • कन्नड़: Putranjeeva, Putranjeevi
  • मलयालम: Pongalam, Ekkoli, Poothilanji, Ponkulam, Puthrajeevi
  • मराठी: Puta-jan, putra-jiva, jiv-putrak, jiwan-putr
  • तमिल: Karupali
  • तेलुगु: Kadrajuvi, kudrajinie, mahaputra jivi yarala, kuduru juvir

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

पुत्रजीवक रस में कटु, लवण, तथा गुण में रूक्ष और गुरु है। यह शीत वीर्य और मधुर विपाक है। इसमें गर्भस्थापक, वात कफहर, विषघ्न, शोथाघ्न और तृषाहर गुण हैं।

  • रस (taste on tongue): कटु, लवण
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर
  • कर्म: गर्भस्थापक, वात कफहर, विषघ्न, शोथाघ्न और तृषाहर गुण

यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने वीर्य को मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होता है।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।

मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

पुत्रजीवक के औषधीय प्रयोग

पुत्रजीवक के बीज मधुर, कसैले, ठंडक देने वाले, विरेचक, मूत्रल होते हैं। यह वात और पित्त को कम करते हैं। बीजों का सेवन शरीर में अधिक गर्मी को कम करता है और इस तरह से गर्मी के कारण होने वाले रोगों जैसे की ब्लीडिंग डिसऑर्डर में लाभ करता है। बीजों का प्रयोग मुख्य रूप से महिलाओं की इनफर्टिलिटी और बार-बार होने वाले मिसकैरिज को दूर करने में होता है।

आयुर्वेद में गर्भधारण के लिए दवा बनाने के लिए, पुत्रजीवक के फल की मज्जा, पारस पीपल के बीज, नाग्कोश, अश्वगंधा की जड़, सरपंखा की जड़, हरीतकी, विभिताकी, आमलकी, देवदारु, उलटकम्बल की जड़, कमल गट्टा, बल के बीज, सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, दारु हल्दी, वंश लोचन, तथा भस्में (लौह भस्म, बंग भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म) को बराबर मात्रा में लिया जाता है। प्रत्येक औषधि को कूट-पीस लिया जाता और अच्छे से मिला लेते हैं। इसमें फिर भौरंगिनी के काढ़े, अशोक छाल के काढ़े की, और शतावरी के रस की एक -एक भावना दी जाती है। इसके बाद इसकी 6 रत्ती की गोलियां बना ली जाती हैं और सुखा ली जाती है। इस दवा का सेवन कम मासिक आने, मासिक में दर, गर्भ न ठहर पाना, गर्भ का बार-बार गिर जाना, बाँझपन, आदि में किया जाता है। इसको चार गोली की मात्रा में सुबह और शाम दूध के साथ लिया जाता है। दवा के सेवन के दौरान तेल, खटाई, मिर्च, मसाले तथा गर्म तासीर के भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

  • गर्भधारण के लिए बीज की गिरी को दूध के साथ मासिक के दिनों में लिया जाता है।
  • पुत्रजीवक की जड़ को दूध में घिसकर पीने से गर्भ ठहरने के आसार बढ़ते हैं।
  • पुत्रजीवक पेड़ की छाल, बिल्व Aegle marmelos की जड़ और मालकांगणी Celastrus paniculatus की जड़ को पानी में पीस कर दिन एक बार, २-३ सप्ताह तक लेने से गर्भवती महिला के गर्भ से होने वाला असामान्य रक्तस्राव रुकता है।
  • सभी प्रकार के मासिक रोगों के लिए, बीज का गूदा और जीरा दूध में पीस कर सुबह मासिक के चौथे दिन से लेते हैं।
  • सफ़ेद पानी की समस्या (प्रदर) में पुत्रजीवक के फल का गूदा पानी और गुड़ के साथ लेते हैं।
  • गर्दन में सूजन और दर्द के लिए इस पेड़ की छाल को पानी में घिस कर लगाते हैं।
  • पत्तों और फलों का काढ़ा जुखाम और बुखार में दिया जाता है।
  • छाल के काढ़े को शरीर में बहुत गर्मी, बांझपन, उल्टी, कफ, मतली, बुखार, लिम्फ नोड की सूजन आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।

औषधीय मात्रा

पत्तों का रस १०-२० मिलीलीटर और बीजों का चूर्ण ३-६ ग्राम तक लिया जा सकता है।


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